Wednesday, April 17, 2019

शंकराचार्य और सरसंघचालक एक_तुलनात्मक_अध्ययन

वरिष्ठ आईपीएस चाचाजी  श्री Suvrat Tripathi की कलम से।

#शंकराचार्य_और_सरसंघचालक_एक_तुलनात्मक_अध्ययन

सनातन धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था के विरुद्ध बौद्ध धर्म दलितों और दबे-कुचलों की आवाज बनकर उभरा। एक जनक्रांति हुई तथा सामंतवाद की चूलें हिल गई। मुझे इतिहास का कोई विशेष ज्ञान नहीं- पुराणों और शास्त्रों के अध्ययन को आधार बनाकर मैं कुछ प्राक्कल्पनाओं(hypothesis) को प्रस्तुत कर रहा हूं जिसकी प्रमाणिकता के पीछे मेरे पास कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। यह मेरे अंतर्मन की आवाज है- परिकल्पना है- मेरा बौद्धिक विलास है। ब्राह्मण कभी हारता नहीं है- वह हर पराजय में जय देखता है। जैसे Germany तथा England का साम्राज्यवाद world war से ढह गया तथा colonies समाप्त हो गई तथा भारत जैसे तमाम देश स्वतंत्र हो गए वैसे ही ब्राह्मण-क्षत्रिय, ब्राह्मण-ब्राह्मण तथा क्षत्रिय-क्षत्रिय संघर्ष की आग में वर्णाश्रम व्यवस्था झुलस कर रह गई तथा सनातन धर्म ढलान पर पहुंच गया। बौद्ध धर्म के बाद तो सनातन धर्म के ध्वंसावशेष भी ढह गए। गांधीजी का नए बुद्ध तथा ईसा के प्रतीक के रूप में स्वागत हुआ तथा कहा गया कि-" The greatest Christian of the world is out of Christianity"
डा अंबेडकर का बोधिसत्व के अवतार के रूप में अविर्भाव हुआ। #इंग्लैंड_में_मोदीजी_ने_भारत_को_गांधी_तथा_बुद्ध_का_देश_घोषित_किया तथा #भारत_में_अपने_उद्गारों_से_और_कार्यों_से_देश_को_अंबेडकरमय_बना_दिया।
बौद्ध धर्म जब भारत भूमि पर हावी हो गया था, तो महर्षि पतंजलि के शिष्य पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म का उन्मूलन कर दिया तथा अन्य कई कारनामे में भी उसके नाम के साथ जोड़े गए। वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था में बदल दिया गया तथा बुद्धिजीवियों को ऐसा लगा कि जो ज्वाला दब गई है वह फिर कभी भड़क सकती है। लिहाजा शंकराचार्य का वेदांत दर्शन सामने आया जिसमें चिंतन को उच्चतम सोपान तक ले जाया गया तथा शास्त्रार्थ में शंकराचार्य ने दिग्विजय की। तब से हिंदुत्व शब्द एक तरह से शंकराचार्य के दर्शन का पर्यायवाची बन बैठा। शंकराचार्य ने समस्त पंथों का समन्वय किया-

यं शैवाः समुपासते शिव इति
ब्रह्मेति वेदान्तिनो।
बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कर्मेति मीमांसकाः।।
अर्हंन्नित्यथ जैनशासनरताः तर्केति नैयायिकाः।
सोऽयं नो विदधातु वाञ्छितफलं  त्रैलोक्यनाथो हरिः।।

अर्थात जिसकी शैव लोग शिव के रूप में उपासना करते हैं, तथा वेदांती ब्रह्म के रूप में, बौद्ध बुद्ध के रूप में,मीमांसक कर्म के रूप में, जैनी अर्हन् के रूप में तथा नैयायिक तर्क के रूप में- वे तीनो लोक के नाथ-हरि हमें वांछित फलों को प्रदान करें।
यह दृष्टिकोण शंकराचार्य की देन के रूप में परंपरा में मान्य है। मैं इतिहास का ज्ञाता नहीं- कोई ऐतिहासिक गलती हो तो विद्वान मेरी मूर्खता का बयान करने की जगह सुधारने की कृपा करें- मैं क्षमा याचना पूर्वक स्वीकार कर लूंगा। मेरा इतिहास ज्ञान मात्र शास्त्रों तथा पुराणों तथा साहित्य और उपाख्यानों एवं अंत में दंत कथाओं तथा किंवदंतियों पर आधारित है।
एक common minimum programme संविद सरकार का बना- बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना गया- परशुराम, राम, बलराम तथा कृष्ण के बाद के क्रम में तथा #आज_भी_कोई_सनातनी_ब्राह्मण_भी_यदि_कोई_कथा_पुराण_सुनता_है_तो_कथा_प्रारंभ_करने_के_पूर्व तथा संकल्प लेते समय यह घोषणा करता है कि "बौद्धावतारे" अर्थात In the age of Buddha अर्थात We are living in the age of Buddha.
वह बुद्ध पूर्णिमा को गंगा स्नान करता है- जिस गंगा स्नान के मिथक को बुद्ध ने तोड़ा था।
यह परिवर्तन किसने किया- इस पर इतिहासवेत्ता बहस करें- किंतु अनंत श्री करपात्री जी महाराज कथा प्रभु दत्त ब्रहमचारी जी का निकट सानिध्य मुझे उपलब्ध हुआ- उसके आधार पर उस समय की बाल सुलभ बुद्धि से इसे मैं शंकराचार्य की देन मानता हूं। छिन्न-भिन्न भारतीय समाज को एक कड़ी के रुप में शंकराचार्य ने पिरोया, सबको साथ लेकर चले।
इसलिए जब मोदी ने भारत को गांधी तथा बुद्ध का देश घोषित किया तो देश में कहीं इसका विरोध नहीं दिखा क्योंकि पूर्व में ही परशुराम, राम, बलराम तथा कृष्ण को सेवानिवृत्त करके भारत को बुद्ध का देश शंकराचार्य घोषित करवा चुके थे- राम कथा कृष्ण के पूजन में भी पहले बुद्ध के वर्चस्व को स्वीकार करने की घोषणा की जाती है- "बुद्धावतारे"।
इसी तरह मोदी जब देश को गांधीमय तथा अंबेडकरमय करने लगे तो उनकी लोकप्रियता को कोई आघात न लगा- जैसे शंकराचार्य की प्रेरणा से परशुराम, राम, बलराम तथा कृष्ण को पृष्ठभूमि में करके बुद्ध को जनमानस ने अंगीकृत किया- उसी मानसिकता के उत्तराधिकारी भारतीयों ने सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर को पृष्ठभूमि में करके अंबेडकर के आगे मोदी के नेतृत्व में दंडवत करना श्रेयस्कर समझा-
"क्या बिगड़ जाता है, तुम्ही बड़े।"
परंतु बात पूरी नहीं बन पाई दो नए परिवर्तन आ गए थे-

(1)#इस्लाम_तथा_ईसाईयत_का_आविर्भाव_हो_चुका_था। मोदी के प्रेरणास्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शंकराचार्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इनको भी सनातन परंपरा में समाहित करना चाहा किंतु बात नहीं बनी तो नहीं बनी।
" हिंदू ही यहां का राष्ट्र हो तथा अन्य परकीय हैं" की गर्जना जब डा हेडगेवार तथा गुरूजी गोलवलकर ने की, तो तुरंत उसको modify करते हुए अपनी मसीही हिंदू तथा मोहम्मदी हिंदू की धारणा को मूर्त स्वरूप दिया जैसे शैव, स्मार्त, मीमांसक, नैयायिक, वेदांती, जैन, बौद्ध आदि समस्त दर्शनों के अनुयायियों के कल्याण की कामना हरि से की जाने लगी उसी प्रकार इस सूची में मोहम्मदी हिंदू तथा मसीही हिंदू को भी पचाने की कोशिश की गई। यही संघ का भ्रमपूर्ण चिंतन था कदाचित कोई मसीही हिंदू हो सकता है किंतु मोहम्मदी हिंदू का एक ही अर्थ है- मुनाफिक जिसे काफ़िर से भी निकृष्ट माना गया है।
RSS के राष्ट्रवादी मुसलमान की परिभाषा पर टिप्पणी करते हुए सरदार विट्ठल भाई पटेल ने लिखा है-
"There is only one Nationalist Muslim in India and he is Pt. Jawahar Lal Nehru." अर्थात् भारत में केवल एक ही राष्ट्रवादी मुसलमान है और वह है पंडित जवाहरलाल नेहरू।
सरदार पटेल मुसलमानों को राष्ट्रद्रोही नहीं मानते थे किंतु जिस अर्थ में संघ किसी मुसलमान के राष्ट्रवादी होने का प्रमाण पत्र देता है, उस अर्थ को उन्होंने स्पष्ट किया।
इसी प्रकार गांधी जी द्वारा मुसलमानों को समझाने-बुझाने तथा संघ परिवार द्वारा उनको राष्ट्रवादी बनाने के लिए मोहम्मदी हिंदू बनाने के प्रयासों को निरर्थक घोषित करते हुए स्वामी श्रद्धानंद के शिष्य कुंवर सुखलाल ने गर्जना की-
जब तलक तालीम क़ुरआन
पे है इनका एतकाद
ये न समझेंगे मुसाफिर
आप समझाएंगे क्या?
अर्थात जब तक किसी मुसलमान का कुरान पर विश्वास है, तब तक कोई गांधी, हेडगवार या गोलवलकर उनको समझा नहीं पाएगा। कारण क्या है- "जहां महज शक करने से इंसा कुफ्र करता है।"
अर्थात कुरान में संशोधन नहीं हो सकता। एक संशोधित इस्लाम- इस्लाम नहीं है। कुरान की एक लाइन पर भी शक करते ही कोई मुसलमान नहीं रह जाता- वह मुनाफिक हो जाता है।
यहां उल्लेखनीय है कि हिंदुत्व तथा इस्लाम दोनों ही बौद्ध तथा ईसाई धर्म से बिल्कुल अलग है इसलिए इनमे घालमेल नहीं हो सकता। #ईसाईयत_की_कोई_भाषा_नहीं_है- अंग्रेजी का ईसाईयत से कोई लेना-देना नहीं। फ्रांस का ईसाई फ्रेंच में बाइबल पढ़ता है तथा जर्मनी का जर्मन में। ईसा मसीह अंग्रेजी का एक शब्द नहीं जानते थे। उत्तर प्रदेश का इसाई हिंदी में तथा केरल का ईसाई मलयालम में Bible पढ़े तो उसे उतना ही पुण्य मिलेगा। किंतु यज्ञोपवित या विवाह चाहे विश्व के किसी कोने में हो- #मंत्र_संस्कृत_में_ही_बोले_जाएंगे तथा वह भी एक विशेष उच्चारण के साथ- उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित का ध्यान रखते हुए। #नमाज_जहां_भी_अता_होगी_अरबी_में_ही_होगी उसका कोई local भाषा में translation, उसका substituteनहीं होगा। कुरान को हिफ़्ज़ करने वाला ही हाफिज होगा तथा इसका कोई विकल्प नहीं है।

(2) #दूसरा_परिवर्तनीय_यह_आया_कि_पिछड़ों_और_दलितों_में_नए_शक्ति_केंद्रों_का_उदय_हो_गया_था। यदि संघ ने यह अंबेडकर पूजा 1947 में प्रारंभ की होती तो सफलता मिल सकती थी क्योंकि उस समय यदि भारत अंबेडकरमय हुआ होता तो जैसे बुद्ध= incarnation of God Vishnu ( विष्णु का अवतार तथा बुद्ध= मूर्ख मान लिया गया उसी प्रकार Ambedkar= बोधिसत्व तथा Ambedkarite=?  मान लिया जाता क्योंकि अंबेडकर का समाज जागरूक नहीं हो पाया था। किंतु "अब पछताए होत क्या चिड़िया चुग गई खेत" 1947 में सवर्ण आगे थे, अंबेडकर का समाज इतने में ही धन्य हो जाता कि सारा सवर्ण तथा पिछड़ा उन्हें पूछ रहा है तथा वह अंबेडकर के मंदिरों को देखकर धन्य हो जाता। यही हाल सरदार पटेल जैसे कुछ लोगों को लौहपुरुष तथा और भी अधिक आवश्यक होने पर रजत पुरुष तथा स्वर्ण पुरुष बनाकर की जा सकती थी। पिछड़ा कभी लोहिया, चरण सिंह या वी.पी. सिंह के नेतृत्व में संघर्षरत था, जनेश्वर मिश्र "मिनी" लोहिया थे, मोहन सिंह जैसे लोग अग्रणी पर #लालू_तथा_मुलायम_के_मंच_पर_आने_के_बाद_स्थिति_बदल_गई। अब जनेश्वर मिश्र के वंशजों को पता है कि-
" वह दिन हवा हुए,
जब पसीना गुलाब था।
अब इतर भी मलिए
तो खुशबू नहीं आती।।"
 एक समय था जब जनेश्वर मिश्र के नेतृत्व में समाजवादी युवजन सभा के ब्राह्मण युवा, मंच पर चढ़कर डा लोहिया के आह्वान पर जनेऊ उतारकर तड़ाक से "#जाति_तोड़ो_जनेऊ_तोड़ो" अभियान में तोड़ते थे तो सारे अहीर तालियां बजा कर उन्हें 80% बनाम 20% की लड़ाई का योद्धा तथा अपना नायक मानते थे किंतु अब 80% बनाम 20% की लड़ाई खत्म हो चुकी है।
#अखिलेश_और_मायावती_भले_आपस_में_दोस्ती_कर_लें लेकिन अब यह दोस्ती स्वार्थों के लिए अफजल खां तथा शिवाजी की तरह बबुआ तथा बुआ का तालमेल होगा-हिरण्यकश्यप का स्टेट गेस्ट हाउस कांड स्वार्थों के चलते मायावती भुला सकती हूं कि उनका समाज उसकी याद करके सिहर उठता है। इस समझौते के होते ही #जिन_सीटों_पर_अखिलेश_नहीं_लड़ेंगे_वहां_शिवपाल_की_बिना_किसी_ठोस_प्रयास_के_दुकान_खुल_जाएगी तथा #जिन_इलाकों_से_हाथी_नहीं_होगी वहां जो पहले हाथी की लीद ढोते थे तथा अब बगावत के रास्ते पर हैं मौका पाकर हाथी के पीलवान हो जाएंगे तथा उसे अपने अंकुश के नीचे ले लेंगे। #लोहिया_चीखते_रहे_कि_उन्हें_शम्बूक_के_खून_का_राम_से_बदला_लेना_है किंतु शम्बूक के वंशज आत्मनिर्भर हो चुके हैं- #शम्बूक_की_बेटी_मायावती_अब_वशिष्ट_और_राम_के_वंशजों_को_अपने_चरणो_में_लिटा_चुकी_है। कितने भी जोर शोर से बसपाई ब्राह्मण परशुराम जयंती पर फरसा लहरालें किंतु TV पर उनका चेहरा देखते ही कनखियों में दलित मुस्कुरा देता है कि किस रूप में उसने मायावती के दरबार में उनको देखा है-

 "पितु समेत लै लै निज नामा।करन लगे सब दंड प्रणामा।।"

अब शंकराचार्य की भूमिका निभा रहा संघ जो भी समन्वय का फार्मूला रखेगा उसमें सवर्ण को सबसे निचले पायदान पर रहना होगा। आदि शंकराचार्य के फार्मूले में बुद्ध को सर्वोच्च स्थान दिया गया किंतु व्यवहार में सवर्ण शीर्ष पर रहा जिससे दोनों को स्वीकार्य हो गया। किंतु अब सवर्ण जो 1989 तक सत्ता के शीर्ष पर रहा है, एकबारगी अपनी सबसे निम्न स्थिति को स्वीकार नहीं करेगा। पिछड़ों और दलितों में जो शीर्ष पर पहुंचने से वंचित रह जाएगा- उसको साथ लेकर के वह लड़ाई छेड़ देगा तथा जैसे "हाथी नहीं गणेश है" के नारे के साथ यह माहौल ला दिया था कि कई यादव दरोगा अपनी नेम प्लेट बदलवा लिए थे तथा "यादव" शब्द हटवा दिए थे- उसी प्रकार आवश्यकतानुसार पुरानी मायावती- मायावती के किसी नए संस्करण को आगे करके  सारा मायाजाल ध्वस्त कर देगा।
"तप बल विप्र सदा बरियारा" #मात्र67विधायकों_वाली_मायावती_को213विधायकों_के_बूते_मिलने_वाली_सारी_की_सारी_मलाई_को_एकतरफा_चटवा_कर वह अपनी अद्भुत क्षमता प्रदर्शित कर चुका है।

संघ परिवार उसे धमकाएगा- किसी भीम सेना के समर्थकों की आवाज आएगी कि "हम मुसलमान हो जाएंगे।"
इस धमकी पर मैं आपको एक संस्मरण सुना रहा हूं जो कल्पित नहीं है। मैं अपने पूज्य स्वर्गीय पिता श्री की सौगंध खाकर कह रहा हूं कि यह संस्मरण सही है। मेरे पिताजी कौशांबी में सैनी college में Lecturer थे। एक मौर्य जी थे जिनका नाम ध्यान नहीं आ रहा है communist विचारधारा से प्रभावित थे तथा सैनी कॉलेज में एक टीचर श्री राजेंद्र मोहन वर्मा जी थे जो कट्टर communist थे तथा पिताश्री के सनातनी होने के बावजूद इन लोगों की अच्छी मित्रता थी तथा कभी चौराहे पर तथा कभी घर पर debate हो जाती थी। एक बार किसी बात पर बहस के दौरान मौर्य जी तैश में आकर कह बैठे- "#आप_लोगों_की_बनाई_जाति_व्यवस्था_से_त्रस्त_होकर_हम_लोग_मुसलमान_हो_जाएंगे तथा तब आपको पता लगेगा।" वहां चौराहे पर मौजूद कई मुसलमान बड़े प्रसन्न हो गए तथा कई RSS Minded हिंदू परेशान हो गए। पिताजी ने बड़े सौम्य भाव से उनको निरुत्तर कर दिया- कौन सा तीर मार लोगे? जब रोम में बहुजन इसाई हो गया तो उनका राजा भी इसाई धर्म स्वीकार कर लिया तथा उनका राजा बना रहा। क्या तुम मुसलमान बन कर हमारे मकड़जाल से निकल पाओगे? तुम और वर्मा जी दोनों रात भर यह सोचो कि अगर अल्पमत में आने पर हम मुसलमान हो गए तो क्या होगा? हम सैयद बनेंगे तथा तुम वहां भी कुँजड़ा रहोगे, सैयद तो होगे नहीं। जरा पता कर लो क्या कोई सैयद या खान साहब किसी कुँजड़े से कोई वैवाहिक रिश्ता बनाए हैं? यदि बनाए होंगे तो भी वह उतना ही rare होगा जितना हिंदुओं में। यहां हम पुड़ी सब्जी खाकर कथा सुनाते हैं वहां मुर्ग मुसल्लम खाकर कर्बला की कहानी सुनाएंगे। यहां तो आरक्षण की भी अवधारणा है, पाकिस्तान में वह भी नहीं है। हमने इतनी पीढ़ी तक वेद कंठस्थ किया है कुरान हिफ्ज करने में कोई आरक्षण नहीं रहेगा? #पाकिस्तान_में_कोई_तुम्हारे_समाज_का_आज_तक_उतनी_भी_महत्वपूर्ण_जगहों_पर_पहुंचा_है_जितना_भारतवर्ष_में?
जितने मुसलमान भी थे उन्होंने भी सहमति जताई तथा एक भठियारा समाज के उपस्थित व्यक्ति ने कटाक्ष करते हुए अल्लामा इकबाल की पंक्तियां उद्धत की-

शेख हो, सैय्यद हो, पठान हो तुम?
सच बताओ कि मुसलमान हो तुम?

आज के प्रसंग में पूज्य पिताश्री के वचनों का मूल्यांकन करते समय सोचता हूं कि सहारनपुर प्रसंग के बाद रामपुर कांड ने कुछ हद तक दलितों की आंखें खोल दी होंगी कि #आखिर_कुछ_तो_ऐसी_वजह_रही_होगी_कि_डा_अंबेडकर_बौद्ध_बने_थे_तथा_किसी_अन्य_धर्म_में_नहीं_गए_थे।
इन 2 कारणों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का Social Harmony का फार्मूला कारगर नहीं होगा तथा जिन चार जूतों को उग्र संगठन शक्ति के बल पर नहीं मार पाए उन चार जूतों को खाने के लिए संघ परिवार बहला-फुसलाकर सहर्ष तैयार कर ले- इसकी संभावना न के बराबर है। अतः सामाजिक संरचना को नए सिरे से परिभाषित कर आधुनिक शंकराचार्य की भूमिका में संघ की परिकल्पना शेखचिल्ली के मंसूबे बनकर बिखर जाएगी तथा "अमित शाह" का जुमला बनकर रह जाएगी।

Tuesday, April 2, 2019

देशी गाय को कैसे बचाया जा सकता है?

देशी गाय को कैसे बचाया जा सकता है?
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ऍफ़ डी आई को रोके बिना भारत में गाय को बचाया नहीं जा सकता। यदि ऍफ़ डी आई जारी रही तो 2050 तक हिन्दुओ का एक अच्छा खासा तबका गौ मांस खाने लगेगा, और गौ मांस भक्षण को सार्वजनिक स्वीकार्यता मिल जायेगी। देशी गाय की संख्या इतनी सिकुड़ चुकी होगी कि, इसके दूध एवं उत्पादो से मध्यम वर्ग तक वंचित हो जाएगा, और सिर्फ अमीर लोग ही इसका इस्तेमाल कर सकेंगे।
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देशी गाय A2 दूध देती है, जो कि एक औषधि है। वर्ण संकर गाय, भैंस समेत शेष सभी अन्य दुधारू जानवर A1 दूध देते है। A2 एवं A1 दूध में क्या फर्क है, और क्यों A2 दूध एवं गौ मूत्र फायदेमंद है, इस बार में कृपया गूगल करें। मैंने जवाब में इस विवरण को शामिल नहीं किया है।
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गाय को लेकर अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको के दो लक्ष्य है :
देशी गाय के A2 दूध, गौ मूत्र आदि पर एकाधिकार बनाना
भारत में ज्यादातर हिन्दुओ को गौमांस खाने के लिए तैयार करना, ताकि धर्मांतरण किये जा सके।
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देशी गाय के उत्पादों पर एकाधिकार बनाने के लिए वे कानूनों का इस्तेमाल करते है, और हिन्दु युवाओं को गौ मांस भक्षण की तरफ धकेलने के लिए उनके पास पेड मीडिया है।
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( इस जवाब में चार खंड है। खंड (स) एवं (द) महत्त्वपूर्ण है। आप चाहे तो सीधे खंड (स) एवं (द) पढ़ सकते है। )
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खंड (अ)
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(1) मुग़लो के शासन काल में ज्यादातर समय तक गौ कशी निषिद्ध थी। बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ आदि के काल में गौ हत्या पर प्रतिबंध जारी रहे। औरंगजेब के शासन के शुरूआती वर्षो में गौ हत्या की अनुमति थी, किन्तु बाद में औरंगजेब ने गौ हत्या पर रोक लगाने के लिए गेजेट नोटिफिकेशन निकाले थे । तब से लेकर बहादुरशाह जफर तक बहुधा प्रतिबन्ध जारी रहा। जफ़र के शासन काल में भी गौ कशी पर मृत्यु दंड का प्रावधान था। मुगल शासको द्वारा गौ हत्या का समर्थन नहीं करने के कारण इस काल में गायें बची रही।
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(2) ब्रिटिश गौ मांस खाते थे, और उन्होंने भारत में आने के साथ ही गायें काटने के लिए गेजेट नोटिफिकेशन छापने शुरू किये। जब कत्लखानों में गायें काटी जाने लगी तो मुस्लिम धर्मावलम्बी भी गौ मांस खाने लगे, और यहाँ से हिन्दू-मुस्लिम में गाय को लेकर प्रतिरोध प्रारंभ हुआ। ब्रिटिश द्वारा गौ कशी को प्रोत्साहन देने के पीछे दो कारण थे : धर्मांतरण , एवं हिन्दू-मुस्लिम में राजनैतिक अलगाव खड़ा करना।
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(3) सैन्य नियंत्रण हासिल करने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत के सैनिको को कन्वर्ट करने के प्रयास शुरु कर दिए थे। बैरको में हिन्दू देवी देवताओं के चित्र लगाने एवं धार्मिक चिन्ह शरीर पर धारण करने आदि पर प्रतिबन्ध लगाये गए, बैरको में चर्च खोले गए, और रविवार को पादरियों को बुलाकर उन्हें उपदेश किये जाने लगे। 1857 से पहले तक कारतूसो पर भैंस की चर्बी चढ़ाई जाती थी, किन्तु वायसराय ने इस पर गाय एवं सूअर की चर्बी मिक्स करके लगाने के आदेश दिए।
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(4) क्रान्ति तो असफल हो गयी थी, लेकिन 1860 से भारत में देश के विभिन्न स्थानों से गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए छोटे मोटे आन्दोलन शुरू हुए, और ये फैलने-बढ़ने लगे। किन्तु गोरो ने गाय काटने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया। गोरे जानते थे कि, यदि गाय कटती रहेगी तो मुस्लिम गौ मांस खायेंगे और इससे हिन्दू मुस्लिम के बीच के खाई बनेगी। और इस तरह भारत में हिन्दू-मुस्लिम के बीच गाय को लेकर पहली बार दंगो की शुरुआत हुयी !!!
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इसी बीच गोरों ने दलितों को कन्वर्ट करने के लिए कुछ दलित नेताओं को सार्वजनिक रूप से गाय काटने और गौ मांस खाने के लिए चाबी देना शुरू किया। यदि दलित गाय खाना शुरू कर देते थे, तो वे हिन्दू धर्म से च्युत हो जाते थे, और फिर उन्हें कन्वर्ट करना आसान हो जाता था। किन्तु दलितों ने पेड नेताओं के झांसे में आने से इनकार कर दिया।
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भारत में गाय बचाने की यह मूवमेंट देश व्यापी हो चुकी थी, और 1860 से 1895 के दौरान गाय को लेकर सैंकड़ो दंगे हुए। बाद में महर्षि दयानंद सरस्वती से लेकर देश के कई नेता, संत, महंत, राजनेता, सेनानी आदि भी इस मूवमेंट में जुड़ते चले गए। यह विकेन्द्रित आन्दोलन था। हिन्दुओ का तर्क था कि गाय काटना हमारे धर्म के खिलाफ है, और हम अपने देश में गौ कशी नहीं होने देंगे।
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https://goo.gl/2NHb54
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(5) इसी समय इत्तिफाक से भारत में एक संत का अवतरण हुआ। इन्होने 1885 में भारत के हिन्दुओ को यह बात बतानी शुरू की कि :
"गौ मांस का सेवन हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति का अनिवार्य अंग रहा है। और वैदिक काल में ऐसा कोई हिन्दू नहीं हो सकता था, जो गौ मांस न खाता हो। यदि हिन्दूओ को ताकतवर होना है तो उन्हें मांसाहार अवश्य करना चाहिए।"
उन्होंने यह भी बताया कि : "गीता पढ़ने की जगह यदि हिन्दू फ़ुटबाल खेलेंगे तो उन्हें मुक्ति जल्दी मिलेगी !!"
चूंकि ये संत बंगाली थे, अत: मांसाहार उनकी संस्कृति का अंग था, और यह स्वभाविक भी था। किन्तु अंत तक वे माँसाहारी ही बने रहे, और अपने अनुयायियों को भी मांसाहार करने की सलाह दी !! हालांकि, उन्होंने हिन्दुओ को गौ मांस खाने के लिए कभी प्रेरित नहीं किया, किन्तु इसे त्याज्य ही बताया। बात के साधारण होने के बावजूद इन उपदेशो की टाइमिंग का अपना महत्त्व था। इन महाशय ने उस समय गौ हत्या एवं गौ मांस भक्षण के पक्ष में एक वाजिब धार्मिक वजह दे दी थी !!
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जाहिर है, ब्रिटिश काल में इन्हें काफी मकबूलियत प्राप्त हुयी, और आज भी ये भारत के सबसे महान संत माने जाते है !!
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( मैं वेदों आदि का मर्मग्य नहीं हूँ। अत: मुझे नहीं पता कि वैदिक काल में हिन्दू होने के लिए गौ मांस भक्षण करना आवश्यक था, या नही। किन्तु भारत में शायद ये एक मात्र संत हुए, जिन्होंने गौ मांस भक्षण को वैदिक संस्कृति से जोड़ा, और इत्तिफाक से इन्हें अन्तराष्ट्रीय ख्याति भी मिली !! )
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(6) अपने शुरूआती दौर में मोहन दास ने गौ हत्या का विरोध किया था, किन्तु 1947 में मोहन ने स्टेंड लिया कि गौ हत्या को प्रतिबंधित करने के लिए क़ानून नहीं बनाया जाना चाहिए। मोहन का मानना था - धर्म के आधार पर न तो मुस्लिमो के लिए क़ानून बनने चाहिए न हिन्दुओ के लिए।
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(7) 1955 में कोंग्रेस के सांसद ने पहली बार गौ हत्या पर देश व्यापी प्रतिबन्ध लगाने के लिए बिल संसद में रखा था। किन्तु जवाहर लाल ने कोंग्रेस के सांसदों को धमकाया कि यदि यह बिल पास हुआ तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। बिल गिर गया।
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(8) 1966 में हजारो साधू-संतो ने संसद का घेराव करके देश व्यापी गौ हत्या पर रोक लगाने के लिए गेजेट नोटिफिकेशन निकालने की मांग की। पहले लाठी चार्ज, फिर टियर गैस और फिर इंदिरा जी ने गोली चलाने के आदेश दिए। लगभग 66 लोग मारे गए। सरकारी आंकड़ा शायद 11 के आस पास का है। संख्या के बारे में विकी पीडिया पर भी गलत जानकारी रखी है। 2 साल पहले तक वहां सही जानकारी थी। पिछले वर्ष इसे बदल दिया गया।
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बाद में इंदिरा जी ने उन सभी राज्यों में गौ हत्या के क़ानून लागू किये, जहाँ जहाँ पर कोंग्रेस सत्ता में थी। उन सभी राज्यों में गौ हत्या के क़ानून लागू नहीं हुए जहाँ पर कम्युनिस्ट सरकार थी, या कोंग्रेस विपक्ष में थी। इस तरह 150 साल बाद देश के कई राज्यों में फिर से गौ हत्या निषेध के बिल पास हुए !!
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( कृपया ध्यान दें कि गौ हत्या रोकने का क़ानून केंद्र सरकार द्वारा नहीं बनाया जा सकता। यह राज्य का विषय है। अत: सिर्फ राज्य सरकारें ही इस पर प्रभावी क़ानून बना सकती है। )
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खंड (ब)
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1966 से 1998 तक गाय राजनीती से लगभग बाहर रही। ऍफ़ डी आई का विस्तार होने के साथ ही भारत में अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का नियंत्रण बढ़ने लगा और इस वजह से मिशनरीज की ताकत भी बढ़ना शुरू हुयी। पिछले 10 वर्षो से गाय फिर से राजनीति की मुख्यधारा में है। तो वह चक्र फिर से शुरू हो चुका है जो गोरों ने 200 साल पहले प्रारंभ किया था। इसमें कुछ नई चीजे यह है कि, अब ब्रिटिश-अमेरिकी धनिक पहले के मुकाबले कई गुणा ज्यादा ताकतवर है, और उनके एजेंडे में देशी गाय पर एकाधिकार करने की नीति भी शामिल है।
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आज की तारीख में भारत की किसी भी राजनैतिक पार्टी या नेता में इतना साहस नहीं है कि वे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के खिलाफ जा सके। तो वास्तविक रूप से वे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के साथ है, किन्तु मौखिक रूप से गौ हत्या रोकने के पक्ष में बयान वगेरह देते रहते है।
किन्तु वास्तव में गाय बचाने के ये सारे बयान सिर्फ तनाव बढाने के लिए दिए जाते है। क्योंकि यदि गाय बचानी हो तो इसके लिए गेजेट में क़ानून छापने होते है। और क़ानून छापने को कोई पार्टी तैयार नहीं है। कार्यकर्ताओ को भाषण सुनाकर वे यह विश्वास दिला देते है, कि हम गाय बचाने के प्रयास कर रहे है !!
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इसके सैंकड़ो उदाहरण है, किन्तु निचे मैंने कुछ उदाहरण दिए है, जिससे आपको इस नीति की झलक मिल सकती है। तनाव बढाने के इस सर्कस में सभी पॉलिटिकल पार्टियां शामिल है। कोई अपवाद नहीं। कोई भी नहीं।
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(1) वाजपेयी ने 2003 में संसद में देश व्यापी गौ हत्या पर प्रतिबन्ध के लिए बिल पेश किया था। NDA में शामिल अन्य दलों ने इस बिल का विरोध किया और बिल गिर गया। मेरे विचार में बिल अव्यवहारिक था, और इसे गिरना ही था। केंद्र सरकार के पास पुलिस नहीं होती है, अत: गौ हत्या पर केंद्र द्वारा देश व्यापी बिल लाना अव्यवहारिक है। और यदि पास कर भी दिया जाता है, तो यह कभी लागू नहीं होगा।
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https://goo.gl/4oejVN
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(2) 12 जुलाई 2014, एम पी विधानसभा में कोंग्रेस विधायक आरिफ अकील द्वारा गौ रक्षा हेतु निजी बिल सदन में रखा गया। इस बिल में प्रावधान थे कि : गाय की मृत्यु के बाद गायो का अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए , या तो उसे जलाया जाए या उसे दफनाया जाए। गाय के अंगो की तस्करी तथा खरीद फरोख्त पर प्रतिबन्ध लगाया जाए आदि आदि।
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https://goo.gl/b65Nf9
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अक़ील ने सदन में कहा कि गाय को हिन्दू अपनी माता का दर्जा देते है इसलिए गाय की रक्षा तथा सम्मान के लिए सरकार को गौ सरक्षण के क़ानून को पास करना चाहिए। संघ=बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में बिल को 55 वोटो से गिरवा दिया !!! संघ=बीजेपी सरकार द्वारा बिल गिरा दिए जाने पर आरिफ अकिल कोर्ट चले गए और यह बिल पास करने का ऑर्डर करवाने के लिए उन्होंने जनहित याचिका लगाई।
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( इसका यह आशय नहीं है, कि कोंग्रेस गौ हत्या रुकवाना चाहती है। क्योंकि जब मैंने कोंग्रेस के कार्यकर्ताओ से पूछा कि एमपी को जाने दीजिये, आप उन राज्यों में ये बिल पास करवा दीजिये जहाँ आपकी सरकारें है, तो उन्होंने जवाब दिया कि, --- हमें ये बिल पास करने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। पर हम यह स्थापित करना चाहते थे कि, गाय पर क़ानून बनाने को लेकर कोंग्रेस एवं बीजेपी=संघ एक ही है। बस भाषण एवं बयानो में भिन्नता है।)
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(3) पेड आमिर खान ने जब युवाओं को मांस खाने को प्रोत्साहित करने के लिए दंगल फिल्म बनाई तो बीजेपी=संघ के सांसद उदित राज ने एक के बाद एक 3 ट्विट किये कि, गरीब दलितों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए बीफ खाना चाहिए। उन्हें प्रेरित करने के लिए उन्होंने उसेन बोल्ट का उदाहरण भी दिया कि, बोल्ट गरीब थे , किन्तु बीफ खाने से ही वे गोल्ड मैडल जीत पाए। भारत में बीफ सबसे सस्ता पोषक आहार है, अत: गरीबों-दलितों को बीफ खाना चाहिए। ये बयान मैंने अपनी जेब से नहीं रखा है, संघ=बीजेपी के सांसद उदित राज ने ये ट्विट किये थे।
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https://goo.gl/cHxK3L
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कैच इसमें यह है कि, उदित राज ने कार्ल लुईस का जिक्र जानबूझकर नहीं किया। दरअसल 90 के दशक के ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता कार्ल लुइस 100% शाकाहारी है !! जब लुइस की आयु 20 वर्ष के क़रीब थी तो उन्होंने शाकाहार अपना लिया था, और अपने बेहतरीन प्रदर्शन का श्रेय वे शाकाहार को देते है। उनका दावा है कि, शाकाहार अपनाने के कारण ही उनके प्रदर्शन में सुधार हुआ और वे बेहतर एथलीट बन पाए।
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जाहिर है, संघ=बीजेपी का लक्ष्य खेल और खुराक पर टिप्पणी करना नही था, बल्कि वे गौ माँस सेवन को प्रोत्साहित करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने गौ मांस का फेवर करने वाला किरदार चुना। संघ=बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने उदित राज पर कार्यवाही करने से इनकार कर दिया था।
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(4) पहले संघ=बीजेपी के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि, जिन्हें गौ मांस खाना है वे पाकिस्तान चले जाए। और इसके जवाब में संघ=बीजेपी के केन्द्रीय राज्य मंत्री किरेन रिजुजू ने सार्वजनिक रूप से कहा कि -- " मैं गौ मांस खाता हूँ, और किसी में हिम्मत है तो मुझे रोक कर दिखाए !! संघ=बीजेपी के किसी भी कार्यकर्ता ने न तो नकवी एवं रिजीजू पर कार्यवाही की मांग की और न ही उनका विरोध किया !! लेकिन यदि किसी सामान्य नागरिक पर उन्हें गौ मांस खाने का शुबहा हो जाए तो वे उसे पीटना शुरू कर देते है !!
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https://goo.gl/Y9iyTv
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(5) जब मनोहर पर्रीकर गोवा के सीएम थे तो हाईकोर्ट ने गोवा में गौ वंश की कटवाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। पर्रीकर तब इस प्रतिबन्ध को हटवाने के लिए कोर्ट गए। जब पर्रीकर को केंद्र में मंत्री बना दिया गया तो, संघ=बीजेपी के लक्ष्मीकान्त पार्सेकर गोवा के सीएम बने और उन्होंने गौ हत्या पर रोक का क़ानून लाने से इनकार कर दिया !! उनका तर्क था कि, हमें बड़ी मुश्किल से अल्पसंख्यको का विश्वास हासिल किया है, गौ हत्या पर बेन लगाकर हम लोगो को नाराज नहीं कर सकते। केंद्र में बीजेपी=संघ का जो भी एजेंडा रहा हो किन्तु गोवा में गौ कशी जारी रहेगी !!
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https://goo.gl/rvZ1rT
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(6) मई 2017, केरल में यूथ कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से गाय काटी, गौ मांस का वितरण किया। और केरल के बीजेपी अध्यक्ष ने घटना का वीडियो ट्विटर पर अपलोड किया। यदि आप इस घटना की गहराई से पड़ताल करेंगे तो जान जायेंगे कि मिशनरीज गाय का इस्तेमाल किस तरह कर रही है। ऊपर दिए गए प्रसंग में 3 घटनाएं है और तीनो का प्रभाव अलग अलग है।
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https://goo.gl/xGQxen
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केरल में गाय काटना कानूनी है। पर भारत में क्या आपने पहले कभी यह सुना या देखा है कि किन्ही नामचीन लोगो ने सार्वजनिक रूप से गाय काटी हो, और इसके फुटेज पूरे देश में फैलाए हो ? क्या ऐसे फुटेज कभी आप तक पहुंचे है ? नहीं !!
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राज्य सरकार ने इन लोगो पर आईपीसी की धारा 428 एवं पशु क्रूरता अधिनियम के तहत केस दर्ज किया। दोनों धाराएं कमजोर है अत: आरोपी आसानी से बच निकलेंगे।
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(!) धारा 428 : जो कोई दस रुपए या उससे अधिक के मूल्य के किसी जीवजन्तु या जीवजन्तुओं को वध करने, विष देने, विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
यह धारा "रिष्टि" होने की दशा में लागू होती है। रिष्टि करना तब कहा जाता है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाए। इन लोगो ने जो गाय काटी है उसे ये किसी अन्य व्यक्ति से छीन कर तो नहीं लाये थे। गाय इन्ही की रही होगी। खुद की संपत्ति की रिष्टि नहीं की जा सकती, अत: अदालत में यह धारा उड़ जायेगी।
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(!!) पशु क्रूरता अधिनियम में पहला अपराध करने से सिर्फ जुर्माने का प्रावधान है। वो भी 50 से 150 रुपये। दूसरा या तीसरा अपराध करने से जुर्माना 200 रूपये एवं अधिकतम सजा 3 महीने की है। इस तरह से आरोपी 50 रूपये देकर बरी हो जायेंगे।
केरल में गौ वध करना गैर कानूनी नहीं है, इसीलिए इन्हे गौ कशी के जुर्म में भी सजा नहीं दी जा सकती। स्पष्ट है कि कोंग्रेस के पदाधिकारियों ने सब देख भाल कर यह हरकत की थी।
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यदि इन आरोपियों पर आईपीसी की धारा 295 के तहत केस दर्ज किया जाए तो इन्हे 2 साल की सजा हो जायेगी। किन्तु यह सजा तब होगी जब इन पर पुलिस यह धारा लगाए और जज घूस खाकर इन्हे छोड़ न दे। पुलिस राज्यों के अधीन आती है, अत: केंद्र सरकार तकनीकी रूप से इसमें कोई हस्तक्षेप करके यह धारा नहीं लगवा सकती। तो इस तरह यह नजर आता है, कि प्रधानमंत्री जी इसमें कुछ नहीं कर सकते थे। पर ऐसा नहीं है।
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6.1. केंद्र सरकार कैसे यह सुनिश्चित कर सकती है कि इन सभी आरोपियों को जल्दी से जल्दी 2 साल की सजा हो जाए ?
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इसके लिए केंद्र सरकार निम्न कदम उठा सकती थी :
केंद्र सरकार एक गेजेट नोटिफिकेशन निकाल सकती थी कि, पशु क्रूरता अधिनियम तथा आई पी सी की धारा 428 एवं धारा 295 के तहत दर्ज मामलो की सुनवाई नागरिको की ज्यूरी द्वारा की जायेगी।
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यह अधिसूचना जारी होने के बाद यह मुकदमा ज्यूरी के सामने आता। अब ग्रांड ज्यूरी इस मुकदमे की सुनवाई के लिए केरल राज्य के 500 से 1500 नागरिको की ज्यूरी का गठन कर सकती थी। ग्रांड ज्यूरी को यह अधिकार होता है कि वह किसी मुकदमे की धाराएं बदल सके। इस तरह ग्रांड ज्यूरी इन आरोपियों पर धारा 295 लगा देगी। ज्यूरी में सुनवाई रोजाना होती है। तथा वीडियो एवं फोटो के रूप में सबूत मौजूद होने से ज्यूरी इन सभी आरोपियों को 2-3 दिन में ही 2 साल की सजा दे देती।
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ज्यूरी चाहे तो इन आरोपियों का सार्वजनिक नारको टेस्ट भी ले सकती थी। नारको टेस्ट होने से यह सामने आता कि इन कार्यकर्ताओं को ऐसा करने के निर्देश कोंग्रेस के किन किन आला नेताओं से मिले थे। इस तरह इस साजिश में शामिल सभी व्यक्ति आरोपी बनते और ज्यूरी इन्हें भी दो दो साल की सजा दे देती। यदि ज्यूरी चाहे तो अपराध में भूमिका के आधार पर सजा को घटा बढ़ा सकती थी।
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6.2. क्यों मैं कहता हूँ कि यदि जूरी होती कोंग्रेस के इन नेताओं को 100% सजा हो जाती ?
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देखिये, यहाँ एक बात यह समझना जरुरी है कि, केरल में रहने वाले जो भी लोग गौ मांस खाते है, वे भी इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि कुछ लोग सार्वजनिक रूप से गाय काट कर इसके फुटेज पूरे देश में फैलाकर हिन्दुओ की भावनाएं जाया तौर पर भड़काएं। गौ मांस खाना और सार्वजनिक रूप से गाय काट कर पूरे देश में इसे फैलाना बिलकुल अलग बात है।
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इसे एक और उदाहरण से समझिये :
भारत में कितने लोग गाली देते है, या पोर्न देखते है ? और
उनमें से कितने लोग यह स्वीकार करेंगे कि कोई व्यक्ति टीवी पर आकर गालियाँ दें ?
मेरे विचार में 99.99% लोग नग्नता-हिंसा-बर्बरता आदि के सार्वजनिक प्रदर्शन को बर्दाश्त नहीं करेंगे, और वे सोचेंगे कि यदि इन्हें रोका नहीं गया तो समाज में वैमनस्य एवं हिंसा फैलेगी। तो वे इन आरोपियों को सजा देंगे। जज का दिमाग इस तरीके से काम नहीं करता। उन्हें जो पैसा देता है, वे उस हिसाब से क़ानून की व्याख्या कर देते है। और मिशनरीज के पास पैसे का समन्दर है।
यदि धारा 295 के तहत ट्रायल होता, और ज्यूरी सुनवाई करती तो सजा होना तय था। क्योंकि वीडियो में यह साफ़ नजर आ रहा है कि जब गाय काटी जा रही थी, तो ये लोग कई मोबाइल से इसका वीडियो शूट कर रहे थे। इस तरह यह साबित है कि इनका उद्देश्य सिर्फ गाय काटना ही नहीं था, बल्कि गाय को बर्बर तरीके से काटते हुए वीडियो बनाना, और इसे जनता में फैलाना था। यदि इन्हें सिर्फ कानून का विरोध करना होता था तो ये वीडियो नहीं बनाते थे।
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जूरी द्वारा सजा दिए जाने का परिणाम यह होता कि, आगे कोई इस तरह का दुस्साहस नहीं करता। क्योंकि ज्युरर इस बात पर भी ध्यान देते कि ऐसी घटना से देश में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे फ़ैल सकते है, और सैंकड़ो जाने जा सकती है।
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29 मई, 2017 को राईट टू रिकॉल-जूरी सिस्टम कार्यकर्ताओ ने प्रधानमंत्री जी को ट्विट भेजने शुरू किये कि, इन आरोपियों का जूरी ट्रायल करने के लिए पीएम एक नोटिफिकेशन निकाले। किन्तु पीएम ने इस तरह का नोटिफिकेशन नहीं निकाला। यदि तब बीजेपी=संघ के कार्यकर्ता भी इस मामले के लिए जूरी ट्रायल की मांग करनी शुरू करते तो पीएम के नोटिफिकेशन निकालने की सम्भावना बढ़ जाती।
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मेरे द्वारा किया गया ट्विट - https://twitter.com/pawanjury/status/869150717914869760
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किन्तु संघ=बीजेपी के कार्यकर्ताओ की ज्यादा रुचि इस बात में थी कि कैसे इस बात को पूरे देश में फैलाया जाए कि, कोंग्रेस के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से गाय काटी है। उन्होंने सजा दिलवाने और इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई कदम न उठाये। यहाँ तक कि बीजेपी की केरल इकाई के शीर्ष नेताओं ने इसका बर्बर वीडियो अपनी प्रोफाइल पर अपलोड किया और इसे पूरे देश में फैलाया !! तो इस तरह गाय का इस्तेमाल सिर्फ लोगो का खून गरम करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन समाधान की अवहेलना की जाती है।
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यही बात जब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओ से कही गयी कि, आप इन्हे सजा दिलवाने के लिए इनकी ज्यूरी ट्रायल की मांग का ट्वीट भेजने का समर्थन करो, तो उनका कहना यह था कि हम इसकी निंदा कर सकते है, लेकिन जूरी ट्रायल का समर्थन न करेंगे। और वैसे भी गाय हमारे एजेंडे में शामिल नहीं है। हम उसे अन्य पशुओ के सदृश ही समझते है।
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मेरा मानना है कि, आप हिन्दू है या मुसलमान है या मांसाहारी है या शाकाहारी है, या कोंग्रेसी है या भाजपाई है उत्तर भारतीय है या दक्षिण भारतीय है, जो भी है एक भारतीय होने के नाते इस तरह की घटनाओ से देश को एवं देश के हर वर्ग को हर तरफ से नुकसान ही होगा। ऐसी घटनाएं देश में बारूद बिछा देती है, और कभी एक चिंगारी इसमें विस्फोट कर देगी। मिशनरीज पेड मीडिया के माध्यम से गाय का इस्तेमाल देश में इसी तरह का बारूद बिछाने के लिए कर रहा है।
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(7) और कैसे वे गायों का इस्तेमाल समुदाय में आपसी प्रतिरोध बढाने के लिए कर रहे है ?
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अन्य राज्यों का हाल मुझे पता नही । लेकिन राजस्थान में सड़कों पर काफी गायें बढ़ गयी है। इक्का दुक्का नही। बल्कि उनके झुंडो ने सड़कों को अपना ठिकाना बना लिया है । राजमार्ग से लेकर शहरों के मुख्य मार्गों और गलियों तक। सभी जगह। वाहन चलाने वालों को इससे बहुत समस्या का सामना करना पड़ रहा है, और एक्सीडेंट्स भी हो रहे है।
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वे चाहते है कि गाएँ और गौ रक्षक नागरिकों की आँखों में चुभने लगे। यदि नागरिकों को गाये मुसीबत की तरह दिखने लगेंगी तो वे इन्हें बचाने की मुहिम के प्रति उदासीन हो जाएँगे। आवारा पशुओं को प्रबंधित करने तथा नागरी यातायात को समुचित बनाए रखने की ज़िम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है, तथा पशु कल्याण अधिकारी गायों के रख रखाव के लिए उत्तरदायी है। लेकिन शहर के नागरिकों के पास ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है कि वे इन अधिकारियों को नियंत्रित कर सके।
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नगर पालिकाओ ने अचानक से गौ वंश को अधिग्रहीत करके उन्हें आश्रय देना बंद कर दिया है। मुझे नहीं पता, ऐसा क्यों हुआ। अचानक से लावारिस मवेशियों को पकड़ने वाले वाहन निष्क्रिय हो गए है, इस विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी अन्य विभागों में लगा दी गयी है, पालिकाओ द्वारा संचालित कोईंन हाउसेस ने गायों को आश्रय देना बन्द ही नही कर दिया बल्कि उलटे उन्हें बाज़ार में छोड़ दिया है, तथा गौ शालाओं को दिए जा रहे अनुदानों को लम्बित कर दिया गया है। और नतीजे में गौ वंश के झुंडो ने सड़कों पर अपना जमाव बना लिया।
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सड़कों पर गायों की संख्या बढ़ने से अब सड़क दुर्घटनाएँ भी हो रही है । सिर्फ़ वडोदरा में ही गौ वंश के चलते दो व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। देश भर में इस तरह की दुर्घटनाओं में इजाफा हुआ है, और पेड मीडिया द्वारा रिपोर्ट भी किया जा रहा है, कि दुर्घटनाओ की वजह गौ वंश है।
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और यह प्रक्रिया इस तरह समुदाय में प्रतिरोध बढ़ाती है :
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पहले पेड आमिर खान दंगल में युवाओं को मांस खाने के लिए प्रेरित करते है। फिर सांसद उदित राज कहते है कि गरीब-दलित बच्चों को पोषक तत्वों के लिए गौ मांस का सेवन करना चाहिए। ( दरअसल, गौ मांस चिकेन, मटन से सस्ता है। सस्ता होने की वजह भी राजनैतिक है। ) , इसके बाद कोइन हाउस एवं स्थानीय प्रशासन के कमजोर प्रबंधन के कारण गौ वंश की आवक सड़को पर बढ़ने लगी।
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फिर प्रधानमंत्री जी एक के बाद एक सार्वजनिक रूप से गौ रक्षको को गुंडा एवं असामाजिक तत्व कहते है, और नतीजे में गौ रक्षको को ऐसे अन वांछित समूहों के रूप में देखा जाने लगता है, जो एक तरफ तो सड़को पर गायों को संख्या बढाकर दुर्घटनाओ के लिए जिम्मेदार है, और दूसरी तरफ उनकी वजह से गरीब-दलित गौ मांस का सेवन करके खुद को पोषित नहीं कर पा रहे है !!! जबकि सच्चाई यह है कि गौ रक्षक कुछ न कर रहे है, बल्कि सारी अव्यवस्था की वजह वांछित कानूनों का अभाव और गलत कानूनों का लागू होना है।
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ब्रिटिश राज द्वारा सेना को दूध आपूर्ति के लिए जो गौ शालाएं स्थापित की गयी थी, उन्हें भी बंद करने के आदेश दिए गए है, और अब 1 लाख रूपये मूल्य तक की गाय को 1000 रूपये के टोकन एमाउंट में विभिन्न उपक्रमों को दिया जा रहा है !!
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https://goo.gl/ZC4Kys
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इन 40 गौ शालाओं में कुल 25,000 गायें है !! दरअसल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाहें इस जमीन पर है । अभी अगले 5-10 साल में ये लोग मुक्त हुयी इस 20,000 हैक्टेयर जमीन को ठिकाने लगा देंगे, मतलब बेच बाच देंगे। यानी हमारे हाथ से गायें भी गयी और अब जमीन भी जायेगी !!
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https://goo.gl/uAjXHg
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तो वक्त के साथ साथ गाय को लेकर बयान बाजी और हिंसा और भी बढ़ेगी, गौ रक्षको द्वारा स्ट्रीट जस्टिस की घटनाओ में भी इजाफा होगा, पेड मीडिया पर इन्हें बड़े पैमाने पर रिपोर्ट भी किया जाएगा, और ऐसे कोई क़ानून नही छापे जायेंगे जिससे बढ़ते हुए तनाव को कम किया जा सके। और फिर हम किसी भी समय हम गाय को लेकर एक देश व्यापी दंगे के गवाह बनेंगे, जिसके अलाव पर फिर से वोट इकट्ठे किये जायेंगे !!
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और जब गौ मांस पर भक्षण पर इस तरह की बहस शुरू होगी तो अचानक से आप टीवी-अखबारों में कुछ बुद्धिजीवियों को यह तर्क देते हुए सुनेंगे कि हिन्दू धर्म में गौ मांस खाना जायज है, और ऐसा खुद स्वामी विवेकानंद ने कहा है !! अब पिछले 100 वर्षो से पेड मीडिया ने पूरे देश के हिन्दुओ के मानस पर स्वामी विवेकानन्द जी को इतना गहरा छापा है, कि आम राय में स्वामी विवेकानंद को हिन्दू धर्म का प्रतीक मान लिया गया है।
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तो मुझे नहीं लगता कि पेड मीडिया की चपेट में आये नागरिक स्वामी विवेकानंद के वक्तव्यों को डिफेंड करेंगे, बल्कि वे विभिन्न तर्क देकर इन्हें स्वीकार करना शुरू कर देंगे। गौ मांस को सार्वजनिक रूप से धार्मिक स्वीकृत मिलने लगेगी, और फिर मिशनरीज अन्य हिन्दू संतो को मीडिया कवरेज के एवज में गौ मांस का सार्वजनिक समर्थन करने के लिए बाध्य करेंगे।
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और वे ऐसा करेंगे भी। बाकी का काम सँभालने के लिए उनके पास मीडिया कवरेज के भूखे नेता है, और वे इसमें और भी इंधन डालेंगे। तो अब उनके पास आरक्षण के अलावा देश में आग लगाने के लिए एक और मुद्दा गाय है !!
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यह सब इतने धीमी गति से होगा कि आपको लगेगा यह खुद ब खुद हो रहा है !! जैसे आज भारत में हर महीने जीएसटी के कारण सैंकड़ो छोटे-मझौले व्यापारी अपना धंधा गँवा रहे है, और उन्हें इसका अहसास नहीं है, कि वे अपना कारोबार एक गलत क़ानून की वजह से खो रहे है।
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खंड (स)
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(1) और कैसे अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिक भारत में देशी गाय की नस्ल को ख़त्म कर देंगे ?
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बहुराष्ट्रीय कम्पनियां A2 दूध के उत्पादन पर एकाधिकार बनाना चाहती है, ताकि इन्हें ऊँचे दाम पर बेचा जा सके। आज से कई दशको पहले अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने भारत की देशी गाय की नस्ल आयात की और विदेश में इसे संवर्धित करना शुरू किया। किन्तु जब तक भारत में इस नस्ल की गाये इतनी बड़ी संख्या में मौजूद है, तब तक देशी गाय के उत्पादों को ऊँची कीमत पर नहीं बेचा जा सकता।
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तो भारत में देशी गाय की नस्ल की गायो की संख्या कम करने के लिए उन्होंने मनमोहन सिंह जी + सोनिया जी को 2014 में यह निर्देश दिए थे कि, वे भारत में देशी गायों का निषेचन जर्मन सांडो से बड़े पैमाने पर करवाने के लिए आवश्यक क़ानून गेजेट में छापे। मनमोहन सिंह जी ने इस योजना को हरी झंडी दे दी थी, किन्तु सांडो का आयात होने से पहले ही सत्ता परिवर्तन हो गया। बाद में मोदी साहेब ने पीएम बनने के बाद इन सांडो का आयात किया।
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https://goo.gl/QE4Ht4
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NDDB ( राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड ) चेयरमेन को आदेश दिए गए कि पशुपालको को जर्सी सांडो का वीर्य उपलब्ध करवाया जाए। भारत की लाखों देशी गायो का गर्भाधान अब जर्मन सांडो द्वारा करवा दिया जाएगा। देशी गायों की अगली पीढ़ी में देशी गायों के सिर्फ 50% जींस ही देशी होंगे, और इससे अगली पीढ़ी 25% देशी होगी। तीसरी और चौथी पीढ़ी में क्रमश: देशी जींस 12% एवं इससे कम रह जायेंगे।
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एक गाय की अगली पीढ़ी 6 वर्ष में आती है। इस तरह अगले 20-30 वर्षो में भारत की ज्यादातर देशी गायों का आनुवंशिक रूपांतरण भैंसों-सुअरों में हो चुका होगा। और इस निषेचन के बाद देशी गायें A2 की जगह A1 दूध देने लगेगी !!
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https://goo.gl/pgytYJ
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देशी गाय कम दूध देती है लेकिन भारत की शुद्ध नस्ल की गाय के दूध में A2 प्रोटीन होने के कारण यह दूध प्राकृतिक रूप से सेहत के लिए लाभदायक होता है। जबकि जर्सी जानवर के दूध में A1 प्रोटीन होने से यह दूध सेहत के लिए हानिकर है। A1 प्रोटीन होने से हार्ट अटेक, हाई कोलेस्ट्रोल, एवं पाचन सम्बन्धी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
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यदि सरकार जर्सी सांडो का आयात नहीं करेगी तब भी इस प्रक्रिया को धीमा तो किया जा सकता है किन्तु रोका नहीं जा सकता। क्योंकि सरकार के न करने से भी प्राइवेट कम्पनियां इन सांडो का आयात करेगी और पशुपालक मुनाफा कमाने के लिए अपनी गायों का गर्भाधान इन सांडो से करवाएंगे। उदाहरण के लिए बाबा रामदेव ने भी भारतीय गायों की नस्ल "सुधारने" के लिए ब्राजील के सांडो की सेवाएं लेने का प्रोजेक्ट शुरू किया है। वे इस मद में 500 करोड़ रूपये का निवेश करेंगे।
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https://goo.gl/WYt6yY
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बड़े पैमाने पर इस दूध का उत्पादन होने के कारण इस दूध की लागत कम होती चली जाएगी जबकि देशी गायों का दूध बहुत महंगा पड़ने लगेगा। इस तरह धीरे धीरे कुछ ही दशको में भारतीय प्रजाती की शुद्ध नस्ल की गाये लुप्त हो जायेगी। यह कुछ उसी तरह से होगा जिस तरह से बाजार से देशी टमाटर, देशी बैंगन, देशी लौकी, देशी आम आदि गायब हो गए है।
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भारत में इस तरह का कोई क़ानून नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति A1 दूध को A1 बताकर बेचता है तो उस पर कार्यवाही की जा सके। और इस क़ानून के न होने की वजह से जो गौ पालक शुद्ध देशी गाय का दूध बेचना चाहते है, वे यह कभी साबित नहीं कर पायेंगे कि उनका दूध A2 श्रेणी का है। क्योंकि यदि कोई व्यक्ति A2 दूध में A1 दूध मिलाकर बेचता है तो यह पूरी तरह से कानूनी है।
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तो होगा यह कि रंग, रूप काठी में गायें देशी नस्ल की ही रहेगी लेकिन उनके दूध की किस्म बदल जायेगी। दूध A2 नहीं रहेगा, बल्कि A1 हो जाएगा। और जब देशी गायों की संख्या काफी घट जायेगी तो वे इस तरह का क़ानून ले आयेंगे कि A1 दूध को A2 दूध बताकर बेचना गैर कानूनी है। तब वे A2 दूध के दोगुने दाम वसूलना शुरू करेंगे !! और उस समय वे A2 दूध के सबसे बड़े सप्लायर होंगे !!
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यदि आज की तारीख में इस तरह का क़ानून छाप दिया जाता है तो जिन लोगो के पास देशी गायें है वे अपने दूध पर A2 दूध की छाप डालकर बेच सकेंगे और देशी गाय को सरंक्षण मिलने लगेगा।
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खंड (द)
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समाधान
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(1) कृषि मंत्रालय को तीन हिस्सों में विभाजित किया जाए :
कृषि मंत्रालय
पशुपालन मंत्रालय
गाय मंत्रालय।
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फिलहाल डेयरी उद्योग, पशुपालन, गाय आदि सभी मवेशी कृषि मंत्री के अधीन आते है। जो कि काफी बड़ा मंत्रालय है। अब से तीन मंत्री होंगे। कृषि मंत्री अलग होगा। पशुपालन मंत्री अलग से होगा। तथा गाय मंत्री अलग से होगा। जर्सी एवं अन्य सभी प्रकार के विदेशी नस्ल के गाय के सदृश नजर आने वाले जानवर मवेशी की श्रेणी में रखे जायेंगे। जबकि गाय मंत्रालय सिर्फ देशी गायों या भारतीय नस्ल की गायों का ही नियमन करेगा।
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(2) डेयरी उद्योगों एवं दूध विक्रेताओ को अपने दूध के डिब्बे या बोतल पर स्पष्ट रूप से यह अंकित करना होगा कि इसमें जो दूध है वह देशी गाय का है या वर्ण संकर प्रजाति का। दूध विक्रेता अपनी गायों की नस्ल की शुद्धता के लिए विभाग से सर्टिफिकेट ले सकेंगे एवं छोटे पशुपालक अपनी गायों की नस्ल की शुद्धता का सेल्फ सर्टिफिकेट जारी कर सकेंगे। गाय मंत्री इन स्व घोषित सर्टिफिकेट को अनुमोदित करेगा।
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(3) यदि कोई विक्रेता अपने दूध पर देशी गाय के दूध का चिन्ह अंकित करता है और उसमे 5% से अधिक मिलावट पायी जाती है तो उस पर आर्थिक दंड या लाइसेंस का रद्दीकरण किया जाएगा। सभी मामलो की सुनवाई नागरिको की ज्यूरी करेगी। दूध के अन्य उत्पादों जैसे पनीर, घी आदि पर भी यही नियम लागू होंगे।
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(4) गाय मंत्री को नौकरी से निकालने का अधिकार मतदाताओ के पास होगा, तथा कोई शिकायत आने पर सुनवाई करने का अधिकार नागरिको की जूरी के पास होगा। ( यह सबसे महत्तवपूर्ण धारा है। इसके बिना कोई भी प्रावधान लागू नहीं हो पायेगा । सिर्फ कागज में ही रहेगा। )
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(5) गाय मंत्री नस्ल परिक्षण आदि के लिए लेब आदि की का आधारभूत ढांचा उपलब्ध करवाएगा एवं गौ शालाओं का नियमन करेगा।
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(6) देशी गायों का पंचायत स्तर पर पंजीकरण किया जाएगा।
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(7) गाय मंत्री देश में विभिन्न स्तरों पर इस तरह के वैज्ञानिक अनुसन्धान एवं शोध करवाएगा जिससे इन तथ्यों की वैज्ञानिक रूप से पुष्टि हो कि भारतीय गाय का दूध किस तरह से एवं किन मायनों में सेहत के लाभदायक है। वह देश में नागरिको में इन तथ्यों के बारे में जानकारी भी फैलाएगा।
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(8) किसी एक राज्य से दूसरे राज्य में गाय को ले जाने पर पाबन्दी हो । ऐसा करने वालों को भी ज्यूरी पाँच वर्षों की सजा दे सकती है।
( भारत के कई राज्यों जैसे केरला, गोवा, आन्ध्र, बंगाल आदि में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध नहीं है। तो अन्य राज्यों से गाये इन राज्यों में ले जायी जाती है, और फिर कानूनी रूप से काट दी गाती है। यह क़ानून ठीक से काम करे इसके लिए पुलिस प्रमुख पर राईट टू रिकॉल एवं जूरी सिस्टम होना जरुरी है, वर्ना गायों को इस राज्य से उस राज्य में ले जाने के एवज में पुलिस एवं जज बड़े पैमाने पर हफ्ता वसूली करना शुरू कर देंगे। )
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(9) गाय का चमड़ा बेचने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए। मृत गाय को दफनाया जायेगा या जलाया जायेगा। जूतों आदि पर "हरा गो-हत्या मुक्त लेबल" लगाना, जिसका मतलब होगा कि चमड़ा जिस पशु से आया है, उसकी प्राकृतिक मृत्यु हुई है और उसका मांस खाने के लिए प्रयोग नहीं किया गया था।
( इस "हरा" चमड़े का मूल्य अधिक होगा लेकिन गो-हत्या और जीव-हत्या कम हो जायेगी।)
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(10) गाय-भैंस खरीदने पर सरकार द्वारा कोई सब्सीडी नहीं मिलेगी।
( छूट के कारण गो-हत्या बढ़ रही है, क्योंकि गाय सस्ते दामों पर कसाई को मिल जाती है और मुनाफा अधिक होता है। उस मुनाफे का एक भाग दोषी जज, पुलिस आदि को रिश्वत के रूप में देते है और छूट जाते है। )
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(11) सरकार बूढ़ी गायों को एक निर्धारित कीमत पर खरीदेगी ।
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(12) शुक्राणु-विभाजन की प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये पूंजी निवेश किया जाए ताकि सांड की पैदावार कम की जा सके, और इस प्रकार सांड की हत्या कम होगी।
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(13) सरकार गौ-शालाएँ चलायेगी जिसके लिये धन बिना दान से आयेगा। किन्तु जो कोई इसके लिए दान देगा उसे टेक्स में कोई छूट नहीं मिलेगी। शहरों में 10,000 से 30,000 आबादी वाले हर बस्ती में कम से कम एक गौशाला जरूर होनी चाहिये। इस तरह शहरों में हर वार्ड में कम से कम 1 या 2 गौशाला अवश्य हो जायेंगी।
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(14) गायो को ढोने के लिए सिर्फ जालीदार वाहनों का ही उपयोग किया जाएगा, ऐसा क़ानून बने। इन वाहनों पर गौ परिवहन यान लिखा रहेगा और सिर्फ इन्ही वाहनों में गायो को ले जाया जा सकेगा।
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ये कुछ सुझाव मोटे तौर पर दिए गए है। इस सम्बन्ध में अन्य ड्राफ्ट देखने के लिए कृपया यह एल्बम देखें - https://www.facebook.com/pawan.jury/media_set…
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काम की बात : यदि उपरोक्त प्रावधान गेजेट में आते है, तो गाय बचेगी वर्ना नहीं बचेगी। इस बात से कोई फर्क नहीं आएगा कि आप किस नेता को वोट कर रहे है। लेकिन एक बात तय है कि, सरकार को जितनी ज्यादा सीटे मिलेगी, सरकार उतनी ही ज्यादा ताकतवर होगी, और सरकार जितनी ज्यादा ताकतवर होगी, गायें भी उतनी तेजी से कटेगी !! और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि सरकार किसकी है और पीएम कौन है !! तस्दीक के लिए आप पीछे मुड़कर पिछले 10 साल का हिसाब देख सकते है !! 

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क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...