Friday, May 31, 2013

धन्य है अटल जी ..

क्या आप जानते है की जब जनता पार्टी की केंद्र में सरकार थी और अटल जी भारत के विदेशमंत्री थे तब उन्होंने १२ भारतीयों की अरब देशो में हुई फांसी की सजा को खूब रियाद और दुबई जाकर खत्म करवाया था ...

अरब देशो के इतिहास की पहली घटना है जब अरब देशो ने किसी के फांसी की सजा को बिना ब्लडमनी लिए माफ़ करते हुए रिहा कर दिया था ..

पहली घटना सऊदी अरब की है जिसमे भारत का एक परिवार सऊदी गया था जिसके कुछ रिश्तेदार सऊदी में रहते थे ... उन लोगो को ये नही पता था कि खसखस को सऊदी में एक नशीला पदार्थ माना जाता है और भारत में लोग इसे एक मसाला मानते है और नानवेज में इसे डाला जाता है .. उस परिवार ने अपने रिश्तेदारों के लिए तीन किलो खसखस लेकर गये थे .. और उन्हें रियाद हवाईअड्डे पर ही गिरफ्तार कर लिया गया और सर कलम करने की सजा दी गयी थी ... लेकिन अटल जी तुंरत ही रियाद पहुंचे और किंग अब्दुल अजीज से मिलकर उनको रिहा करवा दिया ...
बाद में मजलिसे सूरा में किंग अब्दुल अजीज ने कहा था की कुछ भी कहो बंदे में गजब की कशिश है उसने जैसे मुझे सम्मोहित कर दिया था |

दूसरी घटना दुबई में हुई थी जब एक आदमी के पास आचार्य दयानन्द सरस्वती की लिखी किताब सत्यार्थ प्रकाश मिली .. उसे नही मालूम था की सत्यार्थ प्रकाश के कुछ अध्याय में इस्लाम के झूठ को बेनकाब किया गया है इसलिए ये किताब अरब देशो में प्रतिबंधित है और यदि किसी के पास सत्यार्थ प्रकाश मिली तो उसे फांसी दी जाती है ...

फिर अटल जी तुरंत ही दुबई पहुंचे और उस आदमी को रिहा करवाकर भारत वापस भेज दिया था ...

धन्य है अटल जी ..

शास्त्री जी ज़िंदाबाद !



ये वही शास्त्री जी है जिन्होंने अपने प्रधानमंत्री रहते समय लाहौर पे ऐसा कब्ज़ा जमाया था की पुरे विश्व ने जोर लगा लिया लेकिन लाहौर देने से इनकार कर दिया था | आख़िरकार उनकी एक बड़ी साजिस के तहत हत्या कर दी गयी | जिसका आज तक पता नहीं लगाया जा सका है |

1. जब इंदिरा शाश्त्रीजी के घर (प्रधान मंत्री आवास ) पर पहुची तो कहा कि यह तो चपरासी का घर लग रहा है, इतनी सादगी थी हमारे शास्त्रीजी में...

2. जब 1965 मे पाकिस्तान से युद्ध हुआ था तो शासत्री जी ने भारतीय सेना का मनोबल इतना बड़ा दिया था की भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को गाजर मूली की तरह काटती चली गयी थी और पाकिस्तान का बहुत बड़ा हिस्सा जीत लिया था ।

3. जब भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा तो अमेरिका ने भारत पर दबाव बनाने के लिए कहाथा की भारत युद्ध खत्मकर दे नहीं तो अमेरिकाभारत को खाने के लिए गेहू देना बंद कर देगातो इसके जवाब मे शास्त्री जी ने कहाकीहम स्वाभिमान से भूखे रहना पसंद करेंगे किसी के सामने भीख मांगने की जगह । और शास्त्री जी देशवासियों से निवेदन किया की जब तक अनाज की व्यवस्था नहीं हो जाती तब तक सब लोग सोमवार का व्रत रखना चालू कर दे और खाना कम खाया करे ।

4. जब शास्त्री जी तस्केंत समझोते के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी के कहा की अब तो इस पुरानी फटी धोती कीजगह नई धोती खरीद लीजिये तो शास्त्री जी ने कहा इस देश मे अभी भी ऐसे बहुत से किसान है जो फटी हुई धोती पहनते है इसलिए मै अच्छे कपडे कैसे पहन सकता हु क्योकि मै उन गरीबो का ही नेता हूँ अमीरों का नहीं और फिरशास्त्री जी उनकी फटी पुरानी धोती को अपने हाथ से सिलकर तस्केंत समझोते के लिए गए ।

5. जब पाकिस्तान से युद्ध चल रहा था तो शास्त्री जी ने देशवासियों से कहा की युद्ध मे बहुत रूपये खर्च हो सकते है इसलिएसभी लोग अपने फालतू केखर्च कम कर देऔर जितना हो सके सेना को धन राशि देकर सहयोगकरें । और खर्च कम करने वाली बात शास्त्री जी ने उनके खुद के दैनिक जीवन मे भी उतारी । उन्होने उनके घर के सारे काम करने वाले नौकरो को हटा दिया था और वो खुद ही उनके कपड़े धोते थे, और खुद ही उनके घर की साफ सफाई और झाड़ू पोंछा करते थे ।

6. शास्त्री जी दिखन?े मे जरूर छोटे थे पर वो सच मे बहुत बहादुर और स्वाभिमानी थे ।

7. जब शास्त्री जी की मृत्यु हुई तो कुछ नीचलोगों ने उन पर इल्ज़ाम लगाया की शास्त्री जी भ्रस्टाचारी थे पर जांच होने के बाद पता चला की शास्त्री जी केबैंक के खाते मे मात्र365/- रूपये थे । इससे पता चलता है की शास्त्री जी कितने ईमानदार थे ।

8. शास्त्री जी अभी तक के एक मात्र ऐसे प्रधान मंत्री रहे हैं जिनहोने देश के बजट मे से 25 प्रतिशत सेना के ऊपर खर्च करनेका फैसला लिया था । शास्त्री जी हमेशा कहते थे की देश का जवान और देश का किसान देश के सबसे महत्वपूर्ण इंसान हैं इसलिए इन्हे कोई भी तकलीफ नहीं होना चाहिए और फिर शास्त्री जी ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया ।

9.जब शास्त्रीजि तस्केंत गए थे तो उन्हे जहर देकर मार दिया गया था और देश मे झूठी खबर फैला दी गयी थी की शास्त्री जी की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई । और सरकार ने इस बात पर आज तक पर्दा डाल रखा है ।

10 शास्त्री जी जातिवाद के खिलाफ थे इसलिए उन्होने उनके नाम के आगे श्रीवास्तव लिखना बंद कर दिया था ।

हम धन्य हैं की हमारी भूमि पर ऐसे स्वाभिमानी और देश भक्त इंसान ने जन्म लिया । यह बहुत गौरव की बात है की हमे शास्त्री जी जैसे प्रधान मंत्री मिले ।

जय जवान जय किसान !

शास्त्री जी ज़िंदाबाद !

भारत की विदेश नीति पर केजरीवाल जी के विचार

आप सभी संघी और भाजपाई केजरीवाल की भ्रष्टाचार के अतिरिक्त दुसरे विषयों पर उसकी नीतियों पर उसका दृष्टिकोण पूछते रहते हो तो आज मैं आपको बताता हूँ ....
सबसे पहले भारत की विदेश नीति पर केजरीवाल जी के विचार जो बाद में पार्टी का विचार बनने जा रहे है आप पार्टी की विदेश नीति के मुख्या बिंदु इस प्रकार है :

१. मयन्मार में मुस्लिम २ से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर सकते ...
केजरीवाल जी के विचार ---हम मयन्मार से सभी कूटनीतिक व् राजनयिक सम्बन्ध तोड़ लेंगे
(वो इसलिए क्यूंकि मयन्मार कोई ख़ास बड़ा देश तो है नहीं)

२. यूरोप में सडको पर अपनी **** उठा उठा कर नमाज नहीं पढ़ सकते
केजरीवाल जी के विचार ---हम इसका राष्ट्र संघ में विरोध करेंगे
(और तो कुछ ज्यादा कर नहीं सकते लेकिन वहां तो कर ही सकते है ना )

३. फ़्रांस और बुल्गारिया जैसे देशो में बुरका नहीं पहन सकते
केजरीवाल जी के विचार --- इस विषय पर हम सम्बंधित देशो से बात करेंगे।
(हम उन्हें समझायेंगे की मुस्लिम लोग हमारा वोट बैंक है हमारे लिए इस विषय पर कम से कम बात तो करे)
४. चीन में रोजे के समय दोपहर को खाना जरूरी और बच्चो का मस्जिदों और मदरसों में प्रवेश पर पाबंदी
केजरीवाल जी के विचार ---हम इस मुद्दे पर अमेरिका से बात करेंगे और जरूरी हुआ तो चीन के खिलाफ इस मुद्दे पर गठजोड़ करेंगे।
(चीन से तो हमारी बात करने से भी फटती है इसलिए अमेरिका से करेंगे)

५. जापान में मस्जिदों के निर्माण पर प्रतिबन्ध और मुस्लिमो को नागरिकता नहीं
केजरीवाल जी के विचार ---हम जापान से सारे आर्थिक सम्बन्ध तोड़ लेंगे।
(हमारा वोट बैंक पक्का होना चाहये भले ही देश का सत्यानाश हो)
आप सभी संघी और भाजपाई केजरीवाल की भ्रष्टाचार के अतिरिक्त दुसरे विषयों पर उसकी नीतियों पर उसका दृष्टिकोण पूछते रहते हो तो आज मैं आपको बताता हूँ ....
सबसे पहले भारत की विदेश नीति पर केजरीवाल जी के विचार जो बाद में पार्टी का विचार बनने जा रहे है आप पार्टी की विदेश नीति के मुख्या बिंदु इस प्रकार है :

१. मयन्मार में मुस्लिम २ से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर सकते ...
   केजरीवाल जी के विचार ---हम मयन्मार से सभी कूटनीतिक व् राजनयिक सम्बन्ध तोड़ लेंगे
   (वो इसलिए क्यूंकि मयन्मार कोई ख़ास बड़ा देश तो है नहीं)

२. यूरोप में सडको पर अपनी **** उठा उठा कर नमाज नहीं पढ़ सकते 
    केजरीवाल जी के विचार ---हम इसका राष्ट्र संघ में विरोध करेंगे
   (और तो कुछ ज्यादा कर नहीं सकते लेकिन वहां तो कर ही सकते है ना )

३. फ़्रांस और बुल्गारिया जैसे देशो में बुरका नहीं पहन सकते 
   केजरीवाल जी के विचार --- इस विषय पर हम सम्बंधित देशो से बात करेंगे। 
   (हम उन्हें समझायेंगे की मुस्लिम लोग हमारा वोट बैंक है हमारे लिए इस विषय पर कम से कम बात तो करे)
४. चीन में रोजे के समय दोपहर को खाना जरूरी और बच्चो का मस्जिदों और मदरसों में प्रवेश पर पाबंदी 
   केजरीवाल जी के विचार ---हम इस मुद्दे पर अमेरिका से बात करेंगे और जरूरी हुआ तो चीन के खिलाफ इस मुद्दे पर गठजोड़ करेंगे।
  (चीन से तो हमारी बात करने से भी फटती है इसलिए अमेरिका से करेंगे) 

५. जापान में मस्जिदों के निर्माण पर प्रतिबन्ध और मुस्लिमो को नागरिकता नहीं 
    केजरीवाल जी के विचार ---हम जापान से सारे आर्थिक सम्बन्ध तोड़ लेंगे। 
    (हमारा वोट बैंक पक्का होना चाहये भले ही देश का सत्यानाश हो)

*मोटापा घटाने केलिए कुछ आयुर्वेदिक नुस्खेँ

*मोटापा घटाने केलिए कुछ आयुर्वेदिक नुस्खेँ *

मोटापे को लेकरकई लोग परेशानरहतें हैं और इससेछुटकारा पाना चाहतेंहैं ! कुछ उपाय ढूंढकर उनको प्रयोग में लातें हैं लेकिन कई बार ऐसा देखा गया हैकि हर उपाय हरआदमी के लिएफायदेमंदनहीं हो पाता हैजिसके कारणउनको निराश होनेकि आवश्यकतानहीं है औरउनको दुसरा उपायअपनाना चाहिए !आज में आपके सामनें मोटापे को दूर भगाने के लिए कुछ सामान्यआयुर्वेदिक नुस्खेँ लेकर आया हूँ! जिनका प्रयोग करके फायदा उठाया जा सकता है !

1. मूली के रस मेंथोडा नमक और निम्बूका रस मिलाकरनियमित रूप से पीने से मोटापा कमहो जाता है और शरीरसुडौल हो जाता है !

2. गेहूं, चावल, बाजराऔर साबुत मूंगको समान मात्रा मेंलेकर सेककरइसका दलियाबना लें !इस दलिये में अजवायन 20 ग्राम तथा सफ़ेदतिल 50 ग्रामभी मिला दें ! 50 ग्रामदलिये को 400मि.ली.पानी मेंपकाएं !स्वादानुसार सब्जियां और हल्का नमक मिला लें !नियमित रूप से एकमहीनें तक इस दलिये के सेवन से मोटापा और मधुमेह में आश्चर्यजनकलाभ होता है !

3. अश्वगंधा के एकपत्ते को हाथ सेमसलकर गोली बनाकर प्रतिदिनसुबह,दोपहर,शामको भोजन से एकघंटा पहलेया खाली पेट जल केसाथ निगल लें ! एकसप्ताह के नियमितसेवन के साथफल, सब्जियों, दूध, छाछ और जूस पर रहते हुए कईकिलो वजन कमकिया जा सकता है !

4. आहार में गेहूं केआटे और मैदा से बनेसभी व्यंजनों का सेवन एक माह तक बिलकुल बंद रखें ! इसमें रोटी भीशामिल है !अपना पेट पहले के4-6 दिन तक केवलदाल, सब्जियां औरमौसमी फल खाकरही भरें ! दालों में आपसिर्फ छिलकेवाली मूंग कि दाल, अरहर या मसूर कि दाल ही ले सकतें हैं चनें या उडदकि दाल नहीं !सब्जियों में जो इच्छा करें वही ले सकते हैं !गाजर, मूली, ककड़ी,पालक, पतागोभी, पके टमाटर औरहरी मिर्च लेकरसलाद बना लें ! सलाद पर मनचाही मात्रा में कालीमिर्च, सैंधा नमक, जीरा बुरककर औरनिम्बू निचोड़ करखाएं ! बस गेहूंकि बनी रोटी छोडकरदाल, सब्जी, सलाद और एक गिलास छाछका भोजन करते हुए घूंट घूंट करके पीते हुए पेट भरना चाहिए ! इसमें मात्रा ज्यादा भी हो जाए तो चिंता कि कोई बात नहीं ! इस प्रकार 6-7 दिन तक खाते रहें !इसके बाद गेहूंकि बनी रोटी किजगह चना और जौ के बने आटे कि रोटी खाना शुरू करें !

5 किलो देशी चना और एक किलो जौ को मिलकर साफ़ करके पिसवा लें !6-7 दिन तक इस आटे से बनी रोटी आधी मात्रा में औरआधी मात्रा मेंदाल,सब्जी,सलाद और छाछ लेना शुरू करें ! एकमहीने बाद गेहूंकि रोटी खाना शुरूकर सकते हैं लेकिनशुरुआत एक रोटी सेकरते हुए धीरे धीरेबढाते जाएँ ! भादों केमहीने में छाछका प्रयोगनहीं किया जाता हैइसलिए इस महीनें मेंछाछ का प्रयोगनां करें !!

5. एरण्ड की जड़का काढ़ा बनाकरउसको छानकर एक एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार नियमितसेवन करने सेमोटापा दूरहोता है !!

6. चित्रक कि जड़का चूर्ण एक ग्रामकी मात्रा में शहद केसाथ सुबह शामनियमित रूप से सेवन करने और खानपान का परहेज करनें से भी मोटापा दूर किया जा सकता है !!

Thursday, May 30, 2013

गति के नियमों की खोज से पहले भारतीय वैज्ञानिक और दार्शनिक महर्षि कणाद ने की थी

गति के तीन नियमों को किसने लिखा है ?? 

जानिए और सबको बताइए : http://phys.org/news106238636.html
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हम सभी न्यूटन के गति के नियमों से परिचित हैं | उन्होंने 5 जुलाई 1687 को अपने कार्य “फिलोसोफी नेचुरेलिस प्रिन्सिपिया मेथेमेटिका” में इन नियमों को प्रकाशित किया |

लेकिन .........................

न्यूटन के, गति के नियमों की खोज से पहले भारतीय वैज्ञानिक और दार्शनिक महर्षि कणाद ने (600 ईसा पूर्व में) “वैशेशिका सूत्र” दिया था जो शक्ति और गति के बीच संबंध का वर्णन करता है |
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Albert Einstein - "We owe a lot to the Indians, who taught us how to count, without which no worthwhile scientific discovery could have been made"



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Indians predated Newton 'discovery' by 250 years


A little known school of scholars in southwest India discovered one of the founding principles of modern mathematics hundreds of years before Newton according to new research.
Dr George Gheverghese Joseph from The University of Manchester says the 'Kerala School' identified the 'infinite series'- one of the basic components of calculus - in about 1350.
The discovery is currently - and wrongly - attributed in books to Sir Isaac Newton and Gottfried Leibnitz at the end of the seventeenth centuries.
The team from the Universities of Manchester and Exeter reveal the Kerala School also discovered what amounted to the Pi series and used it to calculate Pi correct to 9, 10 and later 17 decimal places.
And there is strong circumstantial evidence that the Indians passed on their discoveries to mathematically knowledgeable Jesuit missionaries who visited India during the fifteenth century.
That knowledge, they argue, may have eventually been passed on to Newton himself.
Dr Joseph made the revelations while trawling through obscure Indian papers for a yet to be published third edition of his best selling book 'The Crest of the Peacock: the Non-European Roots of Mathematics' by Princeton University Press.
He said: "The beginnings of modern maths is usually seen as a European achievement but the discoveries in medieval India between the fourteenth and sixteenth centuries have been ignored or forgotten.
"The brilliance of Newton's work at the end of the seventeenth century stands undiminished - especially when it came to the algorithms of calculus.
"But other names from the Kerala School, notably Madhava and Nilakantha, should stand shoulder to shoulder with him as they discovered the other great component of calculus- infinite series.
"There were many reasons why the contribution of the Kerala school has not been acknowledged - a prime reason is neglect of scientific ideas emanating from the Non-European world - a legacy of European colonialism and beyond.
"But there is also little knowledge of the medieval form of the local language of Kerala, Malayalam, in which some of most seminal texts, such as the Yuktibhasa, from much of the documentation of this remarkable mathematics is written."
He added: "For some unfathomable reasons, the standard of evidence required to claim transmission of knowledge from East to West is greater than the standard of evidence required to knowledge from West to East.
"Certainly it's hard to imagine that the West would abandon a 500-year-old tradition of importing knowledge and books from India and the Islamic world.
"But we've found evidence which goes far beyond that: for example, there was plenty of opportunity to collect the information as European Jesuits were present in the area at that time.
"They were learned with a strong background in maths and were well versed in the local languages.
"And there was strong motivation: Pope Gregory XIII set up a committee to look into modernising the Julian calendar.
"On the committee was the German Jesuit astronomer/mathematician Clavius who repeatedly requested information on how people constructed calendars in other parts of the world. The Kerala School was undoubtedly a leading light in this area.
"Similarly there was a rising need for better navigational methods including keeping accurate time on voyages of exploration and large prizes were offered to mathematicians who specialised in astronomy.
"Again, there were many such requests for information across the world from leading Jesuit researchers in Europe. Kerala mathematicians were hugely skilled in this area."
Source: University of Manchester


Read more at: http://phys.org/news106238636.html

Wednesday, May 29, 2013

२०१४ में भाजपा को अकेले अपने दम पर ही चुनाव लड़ना चाहिए


२०१४ में भाजपा को अकेले अपने दम पर ही चुनाव लड़ना चाहिए

कहावत है कि “यदि किसी पार्टी में जनता का मूड भाँपने का गुर नहीं है और निर्णयों को लेकर उसकी टाइमिंग गलत हो जाए, तो उसका राजनैतिक जीवन मटियामेट होते देर नहीं लगती...” कितने लोगों को यह याद है कि देश का प्रमुख विपक्ष कहलाने वाली भाजपा ने “अपने मुद्दों”, “अपनी रणनीति” और “अपने दमखम” पर अकेले लोकसभा का चुनाव कब लड़ा था?? जी हाँ... 1989 से लेकर 1996 (बल्कि 1998) तक आठ-नौ साल भाजपा ने अपने बूते, अपने चुने हुए राष्ट्रवादी मुद्दों और अपने जमीनी कैडर की ताकत के बल पर उस कालखंड में हुए सभी लोकसभा चुनाव लड़े थे. सभी लोगों को यह भी निश्चित रूप से याद होगा कि वही कालखंड “भाजपा” के लिए स्वर्णिम कालखंड भी था, पार्टी की साख भी जनता (और उसके अपने कार्यकर्ताओं) के बीच बेहतरीन और साफ़-सुथरी थी. साथ ही उस दौरान लगातार पार्टी की ताकत दो सीटों से बढते-बढते १८४ तक भी पहुँची थी. देश की जनता के सामने पार्टी की नीतियां और नेतृत्व स्पष्ट थे.





उसके बाद आया 1998... जब काँग्रेस से सत्ता छीनने की जल्दबाजी और बुद्धिजीवियों द्वारा सफलतापूर्वक “गठबंधन सरकारों का युग आ गया है” टाइप का मिथक, भाजपा के गले उतारने के बाद भाजपा ने अपने मूल मुद्दे, अपनी पहचान, अपनी आक्रामकता, अपना आत्मसम्मान... सभी कुछ क्षेत्रीय दलों के दरवाजे पर गिरवी रखते हुए गठबंधन की सरकार बनाई... किसी तरह जयललिता, चंद्रबाबू नायडू, ममता बैनर्जी जैसे लोगों का ब्लैकमेल सहते हुए पाँच साल तक घसीटी और २००४ में विदा हो गई. वो दिन है और आज का दिन है... भाजपा लगातार नीचे की ओर फिसलती ही जा रही है. पार्टी को गठबंधन धर्म निभाने और “भानुमति के कुनबेनुमा” सरकार चलाने की सबसे पहली कीमत तो यह चुकानी पड़ी कि राम मंदिर निर्माण, समान नागरिक संहिता और धारा ३७० जैसे प्रखर राष्ट्रवादी मुद्दों को ताक पर रखना पड़ा... जिस आडवानी ने पार्टी को दो सीटों से १८० तक पहुंचाया था, उन्हीं को दरकिनार करते हुए एक “समझौतावादी” प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी को चुनना पड़ा. तभी से भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता जो हताश-निराश हुआ, वह आज तक उबर नहीं पाया है. पिछले लगभग दस वर्ष में देश ने सभी मोर्चों पर अत्यधिक दुर्दशा, लूट और अत्याचार सहन किया है, लेकिन आज भी प्रमुख विपक्ष के रूप में भाजपा से जैसी आक्रामक सक्रियता की उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हो पा रही थी. पिछले एक वर्ष के दौरान, अर्थात जब से नरेंद्र मोदी एक तरह से राष्ट्रीय परिदृश्य पर छाने लगे हैं, ना सिर्फ कार्यकर्ताओं में उत्साह जाग रहा है, बल्कि पार्टी की १९८९ वाली आक्रामकता भी धीरे-धीरे सामने आने लगी है.


यूपीए-१ और यूपीए-२ ने जिस तरह देश में भ्रष्टाचार के उच्च कीर्तिमान स्थापित किए हैं, उसे देखते हुए भारत की जनता अब एक सशक्त व्यक्तित्व और सशक्त पार्टी को सत्ता सौंपने का मन बना रही है. गठबंधन धर्म के लेक्चर पिलाने वाले बुद्धिजीवियों तथा टीवी पर ग्राफ देखकर भविष्यवाणियाँ करने वाले राजनैतिक पंडितों को छोड़ दें, तो देश के बड़े भाग में आज जिस तरह से निम्न-मध्यम, मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग के दिलों में काँग्रेस के प्रति नफरत का एक “अंडर-करंट” बह रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि भाजपा द्वारा २०१४ का लोकसभा चुनाव अकेले दम पर लड़ने का दाँव खेलने का समय आ गया है.






सबसे पहले हम भाजपा की ताकत को तौलते हैं. दिल्ली, हरियाणा, उत्तरांचल, हिमाचल, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भाजपा अकेले दम पर काँग्रेस के साथ सीधे टक्कर में है. यहाँ लगभग सौ-सवा सौ सीटें हैं (पंजाब में अकाली दल को ना तो भाजपा और ना ही नरेंद्र मोदी से कोई समस्या है). उत्तरप्रदेश-बिहार की “जाति आधारित राजनीति” में पिछले बीस साल से चतुष्कोणीय मुकाबला हो रहा है, यहाँ भाजपा को किसी से ना तो गठबंधन करने की जरूरत है और ना ही सीटों का रणनीतिक बँटवारा करने की. इन दोनों राज्यों को मिलाकर लगभग सवा सौ सीटें हैं. और नीचे चलें, तो बालासाहेब ठाकरे के निधन के पश्चात एक “वैक्यूम” निर्मित हुआ है, इसलिए महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना की धमकियों में आने की बजाय किसी सशक्त और ईमानदार प्रांतीय नेता को आगे करते हुए अकेले लड़ने का दाँव खेलना चाहिए.

दक्षिण के चार राज्यों में से कर्नाटक में येद्दियुरप्पा ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि कोई नेता पूरे लगन और जोश से जमीनी कार्य करता रहे, तो उसे एवं पार्टी को समय आने पर उसका फल मिलता ही है. एक तरह से कर्नाटक को हम भाजपा के लिए मेहनत और फल का एक “रोल माडल” के रूप में ले सकते हैं. अब बचे आंधप्रदेश, तमिलनाडु और केरल – तीनों ही राज्यों में भाजपा की स्थिति फिलहाल सिर्फ “वोट कटवा” के रूप में है, इसलिए इन तीनों ही राज्यों में रणनीतिक आधार पर सीट-दर-सीट काँग्रेस को हराने के लिए चाहे जिसका कंधा उपयोग करना पड़े, वह करना चाहिए. सभी क्षेत्रीय दलों से समान दूरी होनी चाहिए| खुले में तो यह घोषणा होनी चाहिए कि भाजपा अकेले चुनाव लड़ रही है, लेकिन जिस तरह से कई राज्यों में मुस्लिम वर्ग भाजपा को हराने के लिए अंदर ही अंदर “रणनीतिक मतदान” करता है, उसी तरह भाजपा के कट्टर वोटर और संघ का कैडर मिलकर दक्षिण के इन तीनों राज्यों में किसी सीट पर द्रमुक, कहीं पर जयललिता तो कहीं वामपंथी उम्मीदवार का समर्थन कर सकते हैं, लक्ष्य सिर्फ एक ही होना चाहिए कि भले ही क्षेत्रीय दल जीत जाएँ, लेकिन काँग्रेस का उम्मीदवार ना जीतने पाए, और यह काम संघ-भाजपा के इतने बड़े संगठन द्वारा आज के संचार युग में बखूबी किया जा सकता है.

अब चलते हैं पूर्व की ओर, पश्चिम बंगाल में भाजपा की उपस्थिति सशक्त तो नहीं कही जा सकती, लेकिन वहाँ भी भाजपा को काँग्रेस-वाम-ममता तीनों से समान दूरी बनाते हुए हिन्दू वोटरों को गोलबंद करने की कोशिश करनी चाहिए. जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों में वामपंथियों और अब ममता बनर्जी के शासनकाल में बंगाल का तेजी से इस्लामीकरण हुआ है, उसे वहाँ की जनता को समझाने की जरूरत है, और बंगाल का मतदाता बांग्लादेशी घुसपैठियों, दंगाईयों और उपरोक्त तीनों पार्टियों के कुशासन से त्रस्त हो चुका है. यदि बंगाल में भाजपा किसी “मेहनती येद्दियुरप्पा” का निर्माण कर सके, तो आने वाले कुछ वर्षों में अच्छे परिणाम मिल सकते हैं.फिलहाल २०१४ में काँग्रेस-वाम-ममता के त्रिकोण के बीच बंगाल में भाजपा का अकेले चुनाव लड़ना ही सही विकल्प होगा, नतीजा चाहे जो भी हो. उत्तर-पूर्व के राज्यों में सिर्फ असम ही ऐसा है, जहाँ भाजपा की उपस्थिति है इसलिए पूरा जोर वहाँ लगाना चाहिए. असम गण परिषद एक तरह से भाजपा का “स्वाभाविक साथी” है, इसलिए उसके साथ सीटों का तालमेल किया जाना चाहिए.


कुल मिलाकर स्थिति यह उभरती है कि यदि भाजपा हिम्मत जुटाकर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर ले, तो – लगभग १५० सीटों पर भाजपा व काँग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होगा... लगभग २०० सीटों पर त्रिकोणीय अथवा चतुष्कोणीय मुकाबला होगा... जबकि दक्षिण-पूर्व की लगभग १५०-१७० सीटें ऐसी होंगी, जहाँ भाजपा के पास खोने के लिए कुछ है ही नहीं (इन सीटों पर भाजपा चाहे तो गठबंधन करते हुए, अपने वोटरों को सम्बन्धित पार्टी के पाले में शिफ्ट कर सकती है). लेकिन समूचे उत्तर-पश्चिम भारत की ३५० सीटों पर तो भाजपा को अकेले ही चुनाव लड़ना चाहिए, बिना किसी दबाव के, बिना किसी गठबंधन के, बिना किसी क्षेत्रीय दल से तालमेल के.



यह तो हुआ सीटों और राज्यों का आकलन, अब इसी आधार पर चुनावी रणनीति पर भी बात की जाए... जैसा कि स्पष्ट है १५० सीटों पर भाजपा का काँग्रेस से सीधा मुकाबला है, इन सीटों में से अधिकांशतः उत्तर-मध्य भारत और गुजरात में हैं. यहाँ पर भाजपा का कैडर भी मजबूत है और नरेंद्र मोदी के बारे में मतदाताओं के मन में सकारात्मक हलचल बन चुकी है. सबसे महत्वपूर्ण हैं उत्तरप्रदेश और बिहार. उत्तरप्रदेश की जातिगत राजनीति का “तोड़” भी नरेंद्र मोदी ही हैं. जैसा कि सभी जानते हैं, नरेंद्र मोदी घांची समुदाय अर्थात अति-पिछड़ा वर्ग से आते हैं, इसलिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने से उत्तरप्रदेश के जातिवादी नेता भाजपा पर “ब्राह्मणवादी” पार्टी होने का आरोप लगा ही नहीं सकेंगे. कुछ माह पहले मैंने अपने लेख में नरेंद्र मोदी को लखनऊ से चुनाव लड़वाने की सलाह दी थी, इस पर अमल होना चाहिए. लखनऊ से मोदी के चुनाव में खड़े होते ही, उत्तरप्रदेश की राजनैतिक तस्वीर में भूकंप आ जाएगा. मुसलमानों के वोटों को लुभाने के लिए सपा-बसपा और काँग्रेस के बीच जैसा घिनौना खेल और बयानबाजी होगी, उसके कारण भाजपा को हिंदुओं-पिछडों को काँग्रेस के खिलाफ एक करने में अधिक परेशानी नहीं होगी. इसके अलावा रोज़गार के सिलसिले में उत्तरप्रदेश से गुजरात गए हुए परिवारों का भी प्रचार में उपयोग किया जा सकता है, ये परिवार स्वयं ही गुजरात की वास्तविक स्थिति और बिजली-पानी-सड़क की तुलना उत्तरप्रदेश से करेंगे व मोदी की राह आसान बनती जाएगी. साम्प्रदायिक आधार पर नरेन्द्र मोदी का विरोध करके काँग्रेस-सपा-बसपा अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारेंगे, यह बात गुजरात में साबित हो चुकी है, और अब तो पढ़ा-लिखा मुसलमान भी इतना बेवकूफ नहीं रहा कि वह धर्म के आधार पर वोटिंग करे. पढ़े-लिखे समझदार मुसलमान चाहे संख्या में बहुत ही कम हों, लेकिन वे साफ़-साफ़ देख रहे हैं कि बंगाल व उत्तरप्रदेश के मुकाबले गुजरात के मुसलमानों की आर्थिक स्थिति में काफी अंतर है. मुसलमान भी समझ रहे हैं कि काँग्रेस और सपा ने अभी तक उनका “उपयोग” ही किया है. इसलिए यदि मोदी को लेकर काँग्रेस तीव्र साम्प्रदायिक विभाजन करवाने की चाल चलती है, तो ऐसे चंद समझदार मुसलमान भी भाजपा के पाले में ही आएँगे.

कमोबेश यही स्थिति बिहार में भी सामने आएगी. नीतीश भले ही अभी मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए मोदी के खिलाफ ख़म ठोंक रहे हों, लेकिन लोकसभा के चुनावों में जब काँग्रेस-लालू-पासवान मिलकर नीतीश की पोल खोलना आरम्भ करेंगे तब फायदा भाजपा का ही होगा. यहाँ भी मोदी के पिछड़ा वर्ग से होने के कारण “जातिगत” कार्ड भोथरे हो जाएंगे. असल में जिस तरह से पिछले कुछ माह में नरेंद्र मोदी ने विभिन्न मंचों का उपयोग करते हुए अपनी लोकप्रियता को जबरदस्त तरीके से बढ़ा लिया है, उसके कारण लगभग सभी राजनैतिक दलों के रीढ़ की हड्डी में ठंडी लहर दौड़ गई है. स्वाभाविक है कि अब आने वाले कुछ माह नरेंद्र मोदी पर चहुँओर से आक्रमण जारी रहेगा. लेकिन नरेंद्र मोदी जिस तरह से लोकप्रियता की पायदान चढ़ते जा रहे हैं, लगता नहीं कि नीतीश कुमार जैसे अवसरवादी क्षत्रप उन्हें रोक पाएंगे.

लगभग ३५० सीटों पर इतनी साफ़ तस्वीर सामने होने के बावजूद, भाजपा को क्षेत्रीय दलों के सामने दबने की क्या जरूरत है? नरेंद्र मोदी के नाम पर बिदक रहे शिवसेना और जद(यू) यदि गठबंधन से बाहर निकल भी जाएँ तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? इन्हें मिलाकर बना हुआ NDA नाम का “बिजूका” तो चुनाव परिणामों के बाद भी तैयार किया जा सकता है.उल्लिखित ३५० सीटों पर प्रखर राष्ट्रवादी विचारधारा, आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त आवाज़ तथा नरेंद्र मोदी की विकासवादी छवि को सामने रखते हुए भाजपा अकेले चुनाव लड़े तो यूपीए-२ के कुकर्मों की वजह से बुरी से बुरी परिस्थिति में भी कम से कम १८० से २०० सीटों पर जीतने का अनुमान है.

यदि भाजपा अकेले लड़कर, कड़ी मेहनत और नरेंद्र मोदी की छवि और काम के सहारे २०० सीटें ले आती है, तो क्या परिदृश्य बनेगा यह समझाने की जरूरत नहीं है. एक बार भाजपा की २०० सीटें आ जाएँ तो शिवसेना, जयललिता और अकाली दल तो साथ आ ही जाएंगे. साथ ही भाजपा “अपनी शर्तों पर” (यानी १९९८ की गलतियाँ ना दोहराते हुए) चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक इत्यादि से समर्थन ले सकती है. जिस प्रकार यूपीए का गठबंधन भी चुनावों के बाद ही “आपसी हितों” और “स्वार्थ” की खातिर बना था, वैसे ही भाजपा भी २०० सीटें लाकर राम मंदिर निर्माण, धारा ३७० और समान नागरिक क़ानून जैसे “राष्ट्रवादी हितों” की खातिर क्षेत्रीय दलों से चुनाव बाद लेन-देन कर सकती है, इसमें समस्या क्या है? लेकिन चुनावों से पहले ही भाजपा जैसी बड़ी पार्टी को उसके वर्तमान सहयोगी आँखें दिखाने लग जाएँ, चुनाव की घोषणा से पहले ही प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हेतु अपनी शर्तें थोपने लग जाएँ तो यह भाजपा के लिए ही शर्म की बात है...

इस विश्लेषण का तात्पर्य यह है कि अब भाजपा को तमाम संकोच-शर्म झाड़कर उठ खड़े होना चाहिए, नरेन्द्र मोदी जैसा व्यक्तित्व उसके पास है, भाजपा स्पष्ट रूप से कहे कि नरेन्द्र मोदी हमारे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं. NDA के जो-जो सहयोगी साथ में चुनाव लड़ना चाहते हैं वे साथ आएं, जो अलग होकर चुनाव लड़ना चाहते हैं वे अपनी राह खुद चुनें...| बाकी का सारा गठबंधन चुनाव परिणाम आने के बाद सभी की सीटों के संख्या के आधार पर किया जाएगा और उस समय भी यदि भाजपा २००-२१० सीटें ले आती है, तो सभी क्षेत्रीय दलों के लिए “हमारी शर्तों पर” दरवाजे खुले रहेंगे... स्वाभाविक है कि यदि भाजपा की सीटें कम आती हैं, तो उसे इन दलों की शर्तों के अनुसार गठबंधन करना होगा. परन्तु जैसा कि मैंने कहा, यह काम चुनाव बाद भी किया जा सकता है, जो ३५० सीटें ऊपर गिनाई गई हैं, सिर्फ उन्हीं पर फोकस करते हुए भाजपा को अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम उठाना चाहिए, देश की जनता भी अब “गठबंधन सरकारों” की नौटंकी से ऊब चुकी है. जब तक भाजपा धूल झाड़कर, हिम्मत जुटाकर राष्ट्रवादी मुद्दों के साथ स्पष्टता से नहीं खड़ी होगी, उसे जद(यू) जैसे बीस सीटों वाले दल भी अपने अंगूठे के नीचे रखने का प्रयास करते रहेंगे. जब एक बार पार्टी को बैसाखियों की आदत पड़ जाती है, तो फिर वह कभी भी अपने पैरों पर नहीं खड़ी हो सकती... नीतीश-शिवसेना जैसी बैसाखियाँ तो चुनाव परिणामों के बाद भी लगाई जा सकती हैं, नरेंद्र मोदी की विराट छवि के बावजूद, अभी इनसे दबने की क्या जरूरत है?? यदि "अपने अकेले दम" लड़ते हुए पर २०० सीटें आ गईं तो क्षेत्रीय दलों के लिए मोदी अपने-आप सेकुलर बन जाएंगे... और यदि २०० से कम सीटें आती हैं तो फिर पटनायक-नीतीश-जयललिता-मायावती-ममता (यहाँ तक कि पवार भी) सभी के लिए अपने दरवाजे खोल दो... उसमें कुछ भी गलत नहीं है, लेकिन फिलहाल चुनाव अकेले लड़ो...


लाख टके का सवाल यही है कि क्या भाजपा-संघ का नेतृत्व (यानी आडवाणी-सुषमा-जेटली की तिकड़ी) अकेले चुनाव लड़ने संबंधी “बाजी” खेलने की हिम्मत जुटा पाएगा???

भाजपा को गहन आत्ममंथन और नई रणनीति की जरूरत


भाजपा को गहन आत्ममंथन और नई रणनीति की जरूरत...

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव नतीजे आ गए, और परिणाम वही हुआ जिसका अंदेशा जताया जा रहा था. येद्दियुरप्पा भले ही खुद की पार्टी का कोई फायदा ना कर पाए हों, लेकिन अपनी “ताकत” दिखाकर उन्होंने उस भाजपा को राज्य में तीसरे स्थान पर धकेल दिया, जिस राज्य में भाजपा का कमल खिलाने में उन्होंने अपने जीवन के चालीस साल लगाए थे. 


इससे कुछ महीने पहले भी भाजपा के हाथ से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जा चुके हैं. अब आज की तारीख में भाजपा के पास कुल मिलाकर सिर्फ तीन राज्य बचे हैं – मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और गुजरात. देश के अन्य राज्यों में भाजपा कहीं-कहीं टुकड़ों में इधर-उधर बिखरी हुई दिखाई दे जाती है, लेकिन वास्तव में देखा जाए तो फिलहाल भाजपा के पास सिर्फ तीन राज्य हैं, जहाँ लोकसभा की लगभग साठ सीटें ही हैं. भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के सामने असली सवाल यही है कि क्या सिर्फ ६० सीटों के बल पर केन्द्र में सत्ता पाने का सपना देखना जायज़ है? “बिल्ली के भाग्य से छींका टूटेगा और सारा मक्खन अपने-आप उसके मुँह में आ गिरेगा” जैसी मानसिकता के बल पर राजनीतिक घमासान नहीं किए जाते हैं. 


तीन प्रदेशों की इस हार में मूलतः दो सवाल हैं – १) जब कोई टीम मैच हारती है तो सामान्यतः चयनकर्ता-प्रबंधन अथवा टीम का कप्तान अपने पद से या तो इस्तीफ़ा देते हैं या फिर समूची टीम में आमूलचूल परिवर्तन करके उसे ठीक किया जाता है. पहला सवाल इसी से जुड़ा है – लगातार तीन हार (उत्तराखंड, हिमाचल और कर्नाटक) के बाद क्या भाजपा की केन्द्रीय टीम या प्रबंधकों में से किसी ने हार की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए अपना पद त्याग किया है? सिर्फ दिखावे के लिए चार घंटे की मंथन बैठक से कुछ नहीं होता, सीधी बात यह है कि क्या इस हार की जिम्मेदारी सिर्फ राज्य स्तर के नेताओं की है? क्या टीम में बदलाव का समय नहीं आ गया है?

दूसरा सवाल भी इसी से जुड़ा है – एक मिसाल के रूप में कहें तो रिक्शा को खींचने के लिए उसके टायरों में हवा भरी होनी चाहिए, बाहर चलने वाली हवा चाहे तूफ़ान ही क्यों ना हो वह उस रिक्शे को नहीं चला सकती. इसी प्रकार जब तक भाजपा के टायरों में सही ढंग से हवा नहीं भरी जाएगी, तब तक पार्टी की गाड़ी चलने वाली नहीं है. यहाँ पर टायरों में हवा का अर्थ है, कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार करना. वर्तमान में तो भाजपा की हालत यह है कि कई राज्यों में या तो इसके तीनों टायरों (केन्द्र-राज्य-कार्यकर्ता) में कहीं हवा ही नहीं है, जबकि कहीं-कहीं तो तीनों टायरों की दिशा भी एक-दूसरे से विपरीत है. इसका सबसे बेहतर उदाहरण उत्तराखंड और कर्नाटक ही रहे. उत्तराखंड में निशंक-खंडूरी-कोश्यारी ने आपस में ऐसी घमासान मचाई कि काँग्रेस के रावत-बहुगुणा का घमासान भी शर्मा जाए... ऐसा ही कुछ कर्नाटक में भी किया गया, जहाँ पहले दिन से ही येद्दियुरप्पा, दिल्ली में बैठे अनंत कुमार की आँखों की किरकिरी बने रहे, रेड्डी बंधुओं को सुषमा स्वराज का आशीर्वाद मिलता रहा और वे कर्नाटक को बेदर्दी से लूटते रहे. जिसका ठीकरा फूटा येद्दियुरप्पा के माथे पर, जिन्हें संतोष हेगड़े ने बड़ी सफाई से दोषी साबित करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. बाकी का काम दिल्ली में बैठे हवाई नेताओं ने कर दिया और एक जमीनी नेता येद्दियुरप्पा को तब तक लगातार अपमानित करते रहे, जब तक कि उन्होंने नई पार्टी का गठन नहीं कर लिया. “नैतिकता के ठेकेदार” बनने का तो सिर्फ दिखावा भर था, असली मकसद था येद्दियुरप्पा को ठिकाने लगाना. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बावजूद येद्दियुरप्पा को दोबारा सत्ता नहीं सौंपी गई. 



कहने का तात्पर्य यह है कि उत्तराखंड और कर्नाटक के मामले कोई नए नहीं हैं. दिल्ली में बैठे हवाई भाजपा नेताओं ने इसके पहले भी अक्सर जमीनी पकड़ वाले लोकप्रिय क्षेत्रीय भाजपा नेताओं को टंगड़ी मारकर गिराने में खासी दिलचस्पी दिखाई है. फिर चाहे वह कल्याण सिंह हों, चाहे उमा भारती हों या फिर मदनलाल खुराना हों. कल्याण सिंह को बाहर किया तो उत्तरप्रदेश गँवा दिया, खुराना के साथ साजिशें की तो दिल्ली अभी तक हाथ नहीं आया, बाबूलाल मरांडी के साथ सौतेला व्यवहार किया तो झारखंड भी हाथ से निकल ही गया... अब येद्दियुरप्पा का अपमान करके कर्नाटक भी अगले दस साल के लिए त्याग ही दिया है. इसके बावजूद भाजपा के किसी केन्द्रीय नेता ने आगे बढकर यह नहीं कहा कि, “हाँ यह हमारी जिम्मेदारी थी और अब हमें पार्टी और पार्टी की विचारधारा में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है...”. बस जैसा चल रहा है, वैसा ही चलने दिया जा रहा है, जबकि लोकसभा चुनाव सिर पर आन खड़े हुए हैं...

जैसा कि मैंने अपने एक अन्य लेख में पहले भी लिखा था, कि जहाँ एक तरफ कई राजनैतिक दलों ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए ना सिर्फ अपना एजेंडा तय कर लिया है, उस पर काम भी शुरू कर दिया है. और तो और कुछ पार्टियों के उम्मीदवार भी छः माह पहले ही तय हो चुके हैं, ताकि उस उम्मीदवार को अपने इलाके में काम करने का पर्याप्त मौका मिले. और इधर भाजपा के क्या हाल हैं?? काँग्रेस बेहद शातिर पार्टी है, इसके बावजूद प्रमुख विपक्षी दल होने के बावजूद भाजपा में मुर्दनी छाई हुई है. उम्मीदवार तय करना तो बहुत दूर की बात है, अभी तो पार्टी यही तय नहीं कर पाई है कि वह २०१४ के आम चुनाव में किस प्रमुख एजेंडे पर फोकस करेगी? या तो भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व देश की जनता का मूड भाँपने में गलती कर रहा है, अथवा जानबूझकर इस बात टाले जा रहा है कि सामान्य लोग चाहते हैं कि भाजपा स्पष्ट रूप से यह कहे कि वह नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है. लेकिन आपसी खींचतान, आलस्य और मोदी के व्यक्तित्व का खौफ(?) भाजपा-संघ के बड़े नेताओं को त्वरित निर्णय लेने से रोक रहा है. सिर्फ साठ सीटों के प्रभुत्व वाले तीन राज्यों में सत्ता होने के बावजूद भाजपा सोच रही है कि वह ऊलजलूल गठबंधन करके, काँग्रेस के भ्रष्टाचार को हराने में सक्षम हो जाएगी. जबकि कर्नाटक और हिमाचल में जनता ने बता दिया है कि उन्हें भ्रष्टाचार से कोई परहेज नहीं है. उन्हें “काम करने” वाला नेता चाहिए, पार्टी की स्पष्ट नीतियाँ चाहिए. भाजपा दोनों ही मोर्चों पर ढुलमुल रवैया और काहिली का शिकार पड़ी हुई है. ना तो भाजपा यह तय कर पा रही है कि – १) वह मोदी को आगे करेगी या नहीं... २) न ही वह ये तय कर पा रही है कि वह काँग्रेस के भ्रष्टाचार, कुशासन और लूट को प्रमुख मुद्दा बनाएगी या हिंदुत्व के रास्ते पर चलेगी, और ३) न ही पार्टी अभी तक यह निश्चित कर सकी है कि वह गठबंधन करके फायदे में रहेगी कि नुकसान में, इसलिए क्या उसे NDA भंग करके अकेले चुनाव लड़ना चाहिए या नीतीश-पटनायक-ममता-जयललिता के “सदाबहार ब्लैकमेल” सहते हुए कोढ़ी की तरह घिसटते रहना है.... कुल मिलाकर चहुँओर अनिर्णय और भ्रम की स्थिति बनी हुई है... ऐसी स्थिति में भाजपाई उम्मीदवार क्या तय करेंगे. इसीलिए जो लोग चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं, वे अपने-अपने क्षेत्रों में भीतरखाने जनसंपर्क तो कर रहे हैं, लेकिन भारी “कन्फ्यूजन” के शिकार हैं कि पता नहीं उन्हें टिकट मिलेगा या नहीं. उन्हें मोदी का चेहरा आगे रखकर प्रचार करना है या सुषमा का?


यह तो हमने “रोग” देखा, जो लगभग सभी को दिख रहा है (कोई इस बारे बात कर रहा है, कोई चुपचाप तमाशा देख रहा है), रोग की पहचान के बाद अब उसके निदान और निवारण के बारे में सोचना है. ऐसे में सवाल उठता है कि भाजपा को इस “नाकारा किस्म” की स्थिति से कैसे उबरा जाए?

स्वाभाविक है कि शुरुआत शीर्ष से होनी चाहिए. जिस तरह से आगामी राजस्थान विधानसभा चुनाव हेतु वसुंधरा राजे को पूरी तरह से “फ्री-हैंड” दिया गया है, भीतरघातियों पर समय रहते लगाम कसने की शुरुआत हो चुकी है तथा जिसे वसुंधरा पसंद नहीं हैं उन्हें बाहर का रास्ता नापने का अदृश्य सन्देश दिया जा चुका है, ठीक इसी प्रकार की स्थिति केन्द्रीय स्तर पर भी होनी चाहिए. एक बार मन पक्का करके ठोस निर्णय लिया जाना चाहिए कि “सिर्फ नरेंद्र मोदी ही भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे”, जिस गठबंधन सहयोगी को कोई आपत्ति हो, वे अपनी राह चुनने के लिए स्वतन्त्र हैं. (देखना दिलचस्प होगा कि, कौन-कौन NDA छोड़कर जाता है और कहाँ जाता है). भाजपा की स्थिति मप्र-गुजरात और छत्तीसगढ़ में इसीलिए मजबूत है क्योंकि वहाँ शिवराज-मोदी और रमण सिंह के सामने पार्टी में अंदरूनी चुनौती या आपसी सिर-फुटव्वल बहुत कम है.

दूसरा कदम यह होना चाहिए कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को यह स्वीकार करना होगा कि उसने राज्यों के मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रपों की टांग खींचकर सबसे बड़ी गलती की है. गलती स्वीकार करने से व्यक्ति का बड़प्पन ही प्रदर्शित होता है. सभी राज्यों के शक्तिशाली क्षेत्रीय नेताओं को मनाकर, समझा-बुझाकर पार्टी में वापस लाना होगा. उनकी जो भी माँगें हो उन्हें मानने में कोई बुराई नहीं है, क्योंकि वे अपनी शक्ति और जनाधार का साफ़-साफ़ प्रदर्शन कर चुके हैं. ऐसे क्षेत्रीय नेताओं की ससम्मान पार्टी में वापसी होनी चाहिए.


तीसरा उपाय यह है कि – जब देश की पैंतालीस प्रतिशत से अधिक आबादी चालीस वर्ष से कम आयु की है, और २०१४ के चुनाव में १८ से २५ वर्ष के लाखों नए मतदाता जुड़ने वाले हैं, ऐसी स्थिति में पार्टी के अधिक से अधिक युवा और फ्रेश चेहरों वाले नेताओं को आगे लाना जरूरी है, बशर्ते वे “परिवारवाद” की बदौलत उच्च स्तर पर पहुंचें हुए ना हों. जिस प्रकार महाराष्ट्र में साफ़-सुथरी छवि वाले युवा नेता फडनवीस को भाजपा अध्यक्ष बनाया गया है, ऐसी ही ऊर्जा का संचार देश के अन्य राज्यों में भी होना चाहिए (खासकर उन राज्यों में जहाँ भाजपा लगभग जीरो है, जहाँ भाजपा को एकदम शून्य से शुरुआत करना है, ऐसे राज्यों में युवा नेतृत्व को फ्री-हैंड देने से जमीनी हालात बदल सकते हैं).

ज़रा याद कीजिए कि भाजपा ने किसी प्रमुख मुद्दे पर कोई तीव्र आंदोलन कब किया था? तीव्र आन्दोलन का मतलब है दिल्ली सहित सभी राज्यों के प्रमुख नगरों में रैलियां-धरने-पोस्टर और आक्रामक बयान. मुझे तो याद नहीं पड़ता कि भाजपा के बैनर तले किसी बड़े आंदोलन का संचालन पिछले ४-५ साल में कभी ठीक ढंग से किया गया हो. अन्ना आंदोलन या बाबा रामदेव के आंदोलन में संघ के कार्यकर्ता सक्रिय रूप से (लेकिन परदे के पीछे से) शामिल थे और दोनों ही आंदोलन परवान भी चढ़े, परन्तु “खालिस कमल छाप झण्डा” लिए हजारों-हजार कार्यकर्ता पिछली बार सड़कों पर कब उतरे थे??सिर्फ दिल्ली के पाँच सितारा प्रेस क्लबों में बैठकर टीवी-अखबार रिपोर्टरों के सामने बयान पढ़ देने या वक्तव्य जारी करने से रत्ती भर भी फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि राष्ट्रीय मीडिया में भाजपा से जुड़ी सकारात्मक ख़बरों या प्रदर्शनों का प्रभाव-दबाव और झुकाव नहीं के बराबर है. ऐसा लगता है कि “मीडिया बिकाऊ होता है” जैसे सर्वव्यापी और विश्वव्यापी तथ्य को भाजपा के नेता मानते ही नहीं हैं. इस बिंदु का तात्पर्य यह है कि जब मीडिया साफ़-साफ़ आपके विरोध में हों तथा काँग्रेस अथवा “खोखली धर्मनिरपेक्षता” जैसे फालतू मुद्दों के पक्ष में खुलेआम लिखता-बोलता हो, तो यह पहल भाजपा नेताओं को ही करनी पड़ेगी कि आखिर किस प्रकार मीडिया उनकी “सकारात्मक ख़बरों” को दिखाए. ऐसा कुछ होता तो दिखाई नहीं दे रहा है. टीवी चैनलों पर बहस के दौरान चार-चार लोग मिलकर भाजपा के अकेले प्रवक्ता को रगड़ते रहते हैं. अखबारों और टीवी समाचारों में ही देखिए कि यदि टीआरपी की खातिर नरेंद्र मोदी के कवरेज को छोड़ दिया जाए, तो रमन सिंह या शिवराज सिंह अथवा गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर से जुड़ी सकारात्मक और विकासात्मक खबरों को कितना स्थान दिया जाता है? लगभग नहीं के बराबर. बात साफ़ है कि भाजपा के “विचार-समूहों” को मीडिया और प्रेस के बयानों, बहस और कवरेज प्राप्त करने संबंधी नीतियों में बड़े बदलाव की आवश्यकता है, भाजपा का “लचर किस्म का मीडिया प्रबंधन” वाकई गहरी चिंता का विषय है.

ध्यान देने वाली बात है कि हाल ही में केन्द्र सरकार ने मीडिया पर “भारत निर्माण” के विज्ञापनों की खैरात जमकर बाँटना शुरू कर दिया है. आगामी कुछ माह में पाँच राज्यों के चुनाव होने वाले हैं, जिसमें से तीन (राजस्थान, दिल्ली और महाराष्ट्र) कांग्रेस के पास हैं और दो (मप्र और छग) भाजपा के पास. पहले वाले तीन राज्यों में देखें तो दिल्ली में केजरीवाल काँग्रेस की मदद करेंगे और शीला की वापसी होगी... महाराष्ट्र में जब तक सेना-भाजपा-मनसे का “महागठबंधन” नहीं होता, तब तक पवार-चव्हाण को हटाना असंभव है, यहाँ राज ठाकरे अपनी ताकत दिखाने पर आमादा हैं इसलिए यह महागठबंधन आकार लेगा कि नहीं इसमें शंका ही है... अब बचा राजस्थान जहाँ पर मामला डाँवाडोल है, कुछ भी हो सकता है. जबकि बाकी के दोनों भाजपा शासित राज्यों में छत्तीसगढ़ को अकेले रमन सिंह की साफ़ छवि और अजीत जोगी जैसे हरल्ले काँग्रेसी नेताओं के कारण भाजपा की जीत की संभावना काफी अधिक है. ठीक इसी प्रकार मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की छवि, काम और आपसी गुटबाजी नहीं होना ही जीत का कारण बन सकता है, हालांकि यहाँ भी मंत्रियों के भ्रष्टाचार और ज्योतिरादित्य सिंधिया की साफ़ छवि, भाजपा की गाड़ी को पंचर कर सकती है. अतः भारत-निर्माण के विज्ञापनों की “टाईमिंग” देखते हुए संभव है कि, यदि इन विधानसभा चुनावों में काँग्रेस खुद के शासन वाले तीनों राज्यों में सत्ता में वापस आ जाती है, तो उसकी लहर पर सवार होकर जनवरी-फरवरी में ही लोकसभा चुनाव में उतर जाए.


अब सोचिये कि अपना घर ठीक करने के लिए भाजपा के पास कितना वक्त बचा है, और आलम यह है कि प्रत्येक राज्य में भाजपा के नेता आपसी गुटबाजी, सिर-फुटव्वल और टांग-खिंचाई में लगे हुए हैं. उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य में संगठन निष्प्राण पड़ा हुआ है. बिहार में कार्यकर्ता “कन्फ्यूज” हैं कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे या नहीं, पार्टी नीतीश के सामने कितने कोण तक झुकेगी? दक्षिण के चारों राज्यों तथा पूर्व में बंगाल-उड़ीसा में पार्टी की क्या दुर्गति है, यह सभी जानते हैं. ऐसे में जयललिता-ममता-नवीन पटनायक-अकाली-नीतीश जैसे क्षेत्रीय दल मजबूत होकर उभरेंगे और जमकर अपनी कीमत वसूलेंगे. इसलिए भाजपा को अवास्तविक सपने देखना बंद करना चाहिए, २०० सीटें (अधिकतम) का लक्ष्य निर्धारित करते हुए सीट-दर-सीट चुनावी प्रबंधन में जुट जाना चाहिए.

अंत में संक्षेप में कहा जाए तो भाजपा के पास अब अधिक विकल्प बचे ही नहीं हैं. पार्टी को युद्ध स्तर पर चुनावी रणनीति में भिड़ना होगा. केन्द्र में सत्ता पाने के लिए तत्काल कुछ कदम उठाने जरूरी हो गए हैं – जैसे नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी पर स्पष्ट रूख (चाहे नतीजा जो भी हो), राज्यों में आपसी खींचतान कर रहे नेताओं में से वास्तविक जमीनी नेता की पहचान कर उसका पूरा साथ देना और असंतुष्टों को समय रहते लात मारकर बाहर करना, जिन राज्यों में भाजपा जीरो है वहाँ बिना कोई गठबंधन किए अपना संगठन खड़ा करना... देवेन्द्र फडनवीस, मीनाक्षी लेखी, स्मृति ईरानी, जैसे युवाओं को मीडिया में अधिकाधिक एक्सपोजर देना तथा अंतिम लेकिन सबसे जरूरी, By Hook or Crook (यानी येन-केन-प्रकारेण) मीडिया में भाजपा-मोदी-संघ की सकारात्मक ख़बरों को ही अधिक स्थान मिले, इस दिशा में प्रयास करना.


अभी भी समय है, यदि भाजपा इन बिंदुओं पर सक्रियता से काम करे, गुटबाजी खत्म करे और स्पष्ट “विचारधारा” के लिए काम करे, तो २०० सीटों का जादुई आँकड़ा प्राप्त किया जा सकता है. यह आँकड़ा प्राप्त कर लेने के बाद ना “साम्प्रदायिकता” कोई मुद्दा रह जाएगा और ना ही नरेंद्र मोदी राजनैतिक अछूत रह जाएंगे. तमाम क्षेत्रीय दल घुटनों-घुटनों तक लार टपकाते हुए अपने-आप भाजपा के पीछे आएँगे. परन्तु सवाल यही है कि रोग तो दिखाई दे रहा है, उसका निदान भी समझ में आ रहा है, परन्तु रोगी पर दवाओं की आजमाईश करने वाले चिकित्सक सुस्त पड़े हों और अनिर्णय के भी शिकार हों, तो भला रोगी ठीक कैसे होगा??? यही भाजपा के साथ हो रहा है..

सेक्यूलर नामक जीव कैसे तैयार किया जाता है

मित्रो इस पोस्ट को सेकुलरो की कान आँख तक पहुचाये.....

क्या आप जानते हैं कि ...... सेक्यूलर नामक जीव कैसे तैयार किया जाता है....????

दरअसल.... हम हिन्दुओं का इतिहास काफी गौरवशाली है..... और, ये ईसाई... तथा .... इस्लाम-फिस्लाम .....हमारे गौरवशाली हिन्दू धर्म के सामने..... "धूल बराबर भी नहीं" हैं...!

इसीलिए .... हरामी सेक्युलरों और देश के गद्दारों द्वारा..... ये महसूस किया गया कि...... जब तक हिन्दू अपने गौरवशाली इतिहास से अवगत रहेंगे ..... तब तक हिन्दुओं को सेक्यूलर नामक नपुंसक बनाना नितांत असंभव है..!

इसीलिए...... ऐसे गद्दारों ने ..... हमारे स्कूलों के पाठयक्रम को अपना सबसे मजबूत हथियार बनाया.... ताकि.... हम हिन्दुओं के मन में बचपन से ही हीन भावना भरी जा सके.... और, धीरे धीरे.....

सेक्यूलर नामक नपुंसक हिन्दू में परिवर्तित कर दिया जाए...!

इस तरह... करते-करते .... आज स्थिति इतनी दयनीय हो गयी है कि....... हिन्दू संस्कारों, और ... धर्म की बात करने पर..... विधवा प्रलाप करने वाले.... तथा, बात-बात पर छाती कूटने वाले.... सेक्यूलर लोग एवं मीडिया..... इस बात पर कभी भी छाती कूटते नजर नहीं आते हैं..... जब हमारे माननीय प्रधानमंत्री विदेश के कांफ्रेंस में जाकर मंच पर यह बयान देते हैं कि...... ""हम भारतीय तो पहले जंगली थे.... और, हम अंग्रेजों के बहुत आभारी हैं.., जिन्होंने हमें गुलाम बनाकर.... हमें सभ्यता सिखलाई...!""

आप खुद ही देखें कि..... हरामी सेक्युलरों और देश के गद्दारों द्वारा..... हमारे स्कूलों में .... कैसी शिक्षा दी जा रही है .... और, कैसे धीरे-धीरे उन्हें हिंदुत्व से दूर करते हुए.....उनमे हीन भावना भर कर..... उन्हें सेकुलर नामक नपुंसक जीव बनाया जा रहा है...!

क्या कोई सेक्यूलर या बुद्धिजीवी ... मुझे इन बातों का तर्कसंगत जबाब दे दे सकता है कि..... ऐसा क्यों है.....??????

1. जो जीता वही चंद्रगुप्त ना होकर... जो जीता वही सिकन्दर "कैसे" हो गया... ???
(जबकि ये बात सभी जानते हैं कि.... सिकंदर को चन्द्रगुप्त मौर्य ने.. बहुत ही बुरी तरह परास्त किया था.... जिस कारण , सिकंदर ने मित्रता के तौर पर अपने सेनापति सेल्युकश कि बेटी की शादी चन्द्रगुप्त से की थी)

2. महाराणा प्रताप "महान" ना होकर......... अकबर "महान" कैसे हो गया...???
(जबकि, अकबर अपने हरम में हजारों हिन्दू लड़कियों को रखैल के तौर पर रखता था.... जबकि.. महाराणा प्रताप ने..... अकेले दम पर उस अकबर के लाखों की सेना को घुटनों पर ला दिया था)

3. सवाई जय सिंह को "महान वास्तुप्रिय" राजा ना कहकर ..........शाहजहाँ ­को यह उपाधि किस आधार मिली ...... ???
जबकि... साक्ष्य बताते हैं कि.... जयपुर के हवा महल से लेकर तेजोमहालिया {ताजमहल} तक .... महाराजा जय सिंह ने ही बनवाया था)

4. जो स्थान महान मराठा क्षत्रप वीर शिवाजी को मिलना चाहिये वो.......... क्रूर और आतंकी औरंगजेब को क्यों और कैसे मिल गया ..????

5. स्वामी विवेकानंद और आचार्य चाणक्य की जगह... ..... गांधी को महात्मा बोलकर ....हिंदुस्तान परक्यों थोप दिया गया...??????

6. तेजोमहालय- ताजमहल.... लालकोट- लाल किला........... ­फतेहपुर सीकरी का देव महल- बुलन्द दरवाजा........ एवं सुप्रसिद्घ गणितज्ञ वराह मिहिर की मिहिरावली (महरौली) स्थित वेधशाला- कुतुबमीनार..... ­......... क्यों और कैसे हो गया....?????

7. यहाँ तक कि..... राष्ट्रीय गान भी..... संस्कृत के वन्दे मातरम की जगह.... गुलामी का प्रतीक "जन-गण-मन हो गया"..... कैसे और क्यों हो गया....??????

8. और तो और.... हमारे अराध्य ... भगवान् राम.. कृष्ण........... तो इतिहास से कहाँ और कब गायब हो गये......... पता ही नहीं चला....... आखिर कैसे ????

9. हद तो यह कि... .... हमारे अराध्य भगवान राम की जन्मभूमि पावन अयोध्या .... भी कब और कैसे विवादित बना दी गयी... हमें पता तक नहीं चला....!


कहने का मतलब ये है कि..... हमारे दुश्मन सिर्फ.... बाबर , गजनवी , लंगड़ा तैमूरलंग..... या आज के दढ़ियल मुल्ले ही नहीं हैं...... बल्कि आज के सफेदपोश सेक्यूलर भी हमारे उतने ही बड़े दुश्मन हैं.... जिन्होंने हम हिन्दुओं के अन्दर हीन भावना भर ..... हिन्दुओं को सेक्यूलर नामक नपुंसक बनाने का बीड़ा उठा रखा है.....!

हमें पहचाना होगा ऐसे दुश्मनों को..... क्योंकि ये वही लोग हैं...... जो हर हिन्दू संस्कृति को भगवा आतंकवाद का नारा देते हैं.... और, नरेन्द्र भाई मोदी जैसे हिंदूवादी और देशभक्त को..... आगे बढ़ने से रोकना चाहते हैं...... ताकि ... उनके नापाक मंसूबे हमेशा पूरे होते रहें...!

लेकिन... चाहे कुछ भी हो जाए..... हम लोग.... उनके ऐसे नापाक मंसूबों पर पानी फेरते हुए .......... हिन्दुस्थान को हिन्दुराष्ट्र बना कर ही रहेंगे....!

Tuesday, May 28, 2013

चुना से आयुर्वेदिक इलाज

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
http://www.youtube.com/watch?v=D7yQgO2eZvo

****ध्यान रहे पथरी के रोगीओं के लिए चुना वर्जित है****

चुना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर देते है । राजीव दीक्षित Rajiv Dixit

जैसे किसीको पीलिया जो जाये माने जोंडिस उसकी सबसे अछि दावा है चुना ; गेहूँ के दाने के बराबर चुना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है । और येही चुना नपुंसकता की सबसे अछि दावा है - अगर किसीके शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चुना पिलाया जाये तो साल देड साल में भरपूर शुक्राणु बन्ने लगेंगे; और जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अछि दावा है ये चुना । बिद्यार्थीओ के लिए चुना बहुत अछि है जो लम्बाई बढाती है - गेहूँ के दाने के बराबर चुना रोज दही में मिलाके खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिलाके खाओ, दाल नही है तो पानी में मिलाके पियो - इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है । जिन बछोकी बुद्धि कम काम करती है मतिमंद बच्चे उनकी सबसे अछि दावा है चुना, जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चुना खिलाने से अछे हो जायेंगे ।

बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अछि दावा है चुना । और हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अछि दावा है चुना; गेहूँ के दाने के बराबर चुना हरदिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना ।

जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चुना रोज खाना चाहिए किउंकि गर्भवती माँ को सबसे जादा काल्सियम की जरुरत होती है और चुना कैल्सियम का सब्से बड़ा भंडार है । गर्भवती माँ को चुना खिलाना चाहिए अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चुना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फाईदे होंगे - पहला फाईदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नोर्मल डेलीभरी होगा, दूसरा बछा जो पैदा होगा वो बहुत हस्टपुष्ट और तंदरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बछा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चुना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बछा बहुत होसियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।

चुना घुटने का दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है । कई बार हमारे रीड़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बड़ जाती है Gap आ जाता है - ये चुना ही ठीक करता है उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चुने से ठीक होता है । अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे जादा चुने में है । चुना खाइए सुबह को खाली पेट ।

अगर मुह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चुना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है , मुह में अगर छाले हो गए है तो चुने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है । शारीर में जब खून कम हो जाये तो चुना जरुर लेना चाहिए , अनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अछि दावा है ये चुना , चुना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में - अनार के रस में चुना पिए खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है - एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चुना सुबह खाली पेट ।

भारत के जो लोग चुने से पान खाते है, बहुत होसियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चुना अमृत है .. तो चुना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चुने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था कन्सर करता है, पान में सुपारी मत डालिए सोंट डालिए उसमे , इलाइची डालिए , लोंग डालिए. केशर डालिए ; ये सब डालिए पान में चुना लगाके पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।

अगर आपके घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चुना खाते रहिये और हाड़सिंगार के पत्ते का काड़ा खाइए घुटने बहुत अछे काम करेंगे । राजीव भाई कहते है चुना खाइए पर चुना लगाइए मत किसको भी ..ये चुना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है ; आजकल हमारे देश में चुना लगाने वाले बहुत है पर ये भगवान ने खाने के लिए दिया है ।

स्मरण शक्ति बढ़ाने वाले आहार -


स्मरण शक्ति बढ़ाने वाले आहार -------
_____________________________________________________

अच्छी स्मरण शक्ति का होना इन्सान के लिए बहुत हीं जरुरी होता है। जिस इन्सान की स्मरण शक्ति तेज होती है वह हर क्षेत्र में कामयाबी पाता जाता है चाहे वह पढ़ाई का क्षेत्र हो या काम धंधे का या व्यापार का।। यह अलग बात है कि उस इंसान का मेहनती होना एवं अच्छा इंसान होना भी उतना हीं जरुरी है क्योंकि किसी का दिमाग या स्मरण शक्ति चाहे कितनी भी तेज हो, अगर वह मेहनती नहीं होगा तो उसे कामयाबी नहीं मिलेगी।
क्या आपकी स्मरण शक्ति कमजोर है?

क्या आप अपनी स्मरण शक्ति बढ़ाना चाहते हैं?

अगर हाँ तो आप नीचे दिए गए कुछ खाद्य पदार्थों का नियमित रूप से सेवन करके अपनी स्मरण शक्ति बढ़ा सकते है।
पालक

यूँ तो कोई भी हरी पत्तेदार शाक या सब्जी आपकी सेहत के लिए बहुत हीं फायदेमंद होती है लेकिन अगर स्मरण शक्ति या दिमाग तेज करने के लिए आहार की बात की जाये तो पालक सर्वोतम आहारों में से एक माना जाता है।

पालक में विटामिन बी 9 प्रचूर मात्रा में पाया जाता है जिसे फोलेट या फोलिक एसिड के नाम से भी जाना जाता है। इस विटामिन की कमी के कारण मष्तिष्क सम्बन्धी कई विकार उत्पन्न होने लगते हैं जैसे अवसाद, माईग्रेन, डिप्रेशन, तनाव, स्मरण शक्ति का ह्रास होना इत्यादि। इस विटामिन की कमी से तंत्रिका सिस्टम सम्बन्धी कई रोग उत्मन्न होने लगते है। अगर आप नियमित रूप से पालक का सेवन करते हैं तो आपको डिप्रेशन या अवसाद नहीं घेरेगा तथा आपकी स्मरण शक्ति तेज होगी। विटामिन बी 9 के अलावा पालक में विटामिन बी 2 और विटामिन बी 6 भी पाए जाते हैं जो आपके दिमाग को तेज करते हैं एवं सोचने समझने की शक्ति को बढाते हैं।

पालक में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स भी प्रचूर मात्रा में होते हैं जो इंसान के मष्तिष्क के लिए बहुत हीं जरुरी एवं फायदेमंद होते हैं । इनसे आपकी स्मरण शक्ति, तर्क करने की शक्ति एवं एकाग्रता बढती है। इसके सेवन से आप किसी भी काम में ध्यान लगा पाते हैं।

जो लोग शाकाहारी हैं यानि मछली नहीं खाते उनके लिए तो पालक खाना बेहद हीं जरुरी है ताकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स मिल सके।

पालक में अन्य जरुरी विटामिन्स जैसे विटामिन ए, के, इ, सी, तथा जरुरी खनिज जैसे जिंक, मैगनिसिअम , कैल्सियम इत्यादि भी पाए जाते हैं। इसलिए नियमित रूप से पालक का सेवन करें।


सावधानी

लेकिन जिन लोगों को गुर्दे की पथरी की अथवा गुर्दे की कोई अन्य समस्या है उन्हें डॉक्टर की अनुमति के बिना पालक का सेवन नहीं करना चाहिए।
मछली

जामुन -

जामुन भी गुणों से भरपूर होता है जिसमें आपकी स्मरण शक्ति तेज करने की पूरी क्षमता होती है।

इसमें फीसेटिन पाया जाता है जिसकी वजह से आपको पिछली बाते या पढ़ी सुनी गई बातें याद करने में सहायता मिलती है।
डार्क चॉकलेट

भूरे रंग के चॉकलेट यानि डार्क चॉकलेट भी स्मरण शक्ति तेज करते हैं एवं आपके दिमाग की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं लेकिन इसे सीमित मात्रा में हीं खाना चाहिए ताकि आपका वजन न बढ़े।

आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति
स्मरण शक्ति बढ़ाने वाले आहार -------
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अच्छी स्मरण शक्ति का होना इन्सान के लिए बहुत हीं जरुरी होता है। जिस इन्सान की स्मरण शक्ति तेज होती है वह हर क्षेत्र में कामयाबी पाता जाता है चाहे वह पढ़ाई का क्षेत्र हो या काम धंधे का या व्यापार का।। यह अलग बात है कि उस इंसान का मेहनती होना एवं अच्छा इंसान होना भी उतना हीं जरुरी है क्योंकि किसी का दिमाग या स्मरण शक्ति चाहे कितनी भी तेज हो, अगर वह मेहनती नहीं होगा तो उसे कामयाबी नहीं मिलेगी।
क्या आपकी स्मरण शक्ति कमजोर है?

क्या आप अपनी स्मरण शक्ति बढ़ाना चाहते हैं?

अगर हाँ तो आप नीचे दिए गए कुछ खाद्य पदार्थों का नियमित रूप से सेवन करके अपनी स्मरण शक्ति बढ़ा सकते है।
पालक

यूँ तो कोई भी हरी पत्तेदार शाक या सब्जी आपकी सेहत के लिए बहुत हीं फायदेमंद होती है लेकिन अगर स्मरण शक्ति या दिमाग तेज करने के लिए आहार की बात की जाये तो पालक सर्वोतम आहारों में से एक माना जाता है।

पालक में विटामिन बी 9 प्रचूर मात्रा में पाया जाता है जिसे फोलेट या फोलिक एसिड के नाम से भी जाना जाता है। इस विटामिन की कमी के कारण मष्तिष्क सम्बन्धी कई विकार उत्पन्न होने लगते हैं जैसे अवसाद, माईग्रेन, डिप्रेशन, तनाव, स्मरण शक्ति का ह्रास होना इत्यादि। इस विटामिन की कमी से तंत्रिका सिस्टम सम्बन्धी कई रोग उत्मन्न होने लगते है। अगर आप नियमित रूप से पालक का सेवन करते हैं तो आपको डिप्रेशन या अवसाद नहीं घेरेगा तथा आपकी स्मरण शक्ति तेज होगी। विटामिन बी 9 के अलावा पालक में विटामिन बी 2 और विटामिन बी 6 भी पाए जाते हैं जो आपके दिमाग को तेज करते हैं एवं सोचने समझने की शक्ति को बढाते हैं।

पालक में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स भी प्रचूर मात्रा में होते हैं जो इंसान के मष्तिष्क के लिए बहुत हीं जरुरी एवं फायदेमंद होते हैं । इनसे आपकी स्मरण शक्ति, तर्क करने की शक्ति एवं एकाग्रता बढती है। इसके सेवन से आप किसी भी काम में ध्यान लगा पाते हैं।

जो लोग शाकाहारी हैं यानि मछली नहीं खाते उनके लिए तो पालक खाना बेहद हीं जरुरी है ताकि उन्हें पर्याप्त मात्रा में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स मिल सके।

पालक में अन्य जरुरी विटामिन्स जैसे विटामिन ए, के, इ, सी, तथा जरुरी खनिज जैसे जिंक, मैगनिसिअम , कैल्सियम इत्यादि भी पाए जाते हैं। इसलिए नियमित रूप से पालक का सेवन करें। 


सावधानी

लेकिन जिन लोगों को गुर्दे की पथरी की अथवा गुर्दे की कोई अन्य समस्या है उन्हें डॉक्टर की अनुमति के बिना पालक का सेवन नहीं करना चाहिए।
मछली

जामुन -

जामुन भी गुणों से भरपूर होता है जिसमें आपकी स्मरण शक्ति तेज करने की पूरी क्षमता होती है।

इसमें फीसेटिन पाया जाता है जिसकी वजह से आपको पिछली बाते या पढ़ी सुनी गई बातें याद करने में सहायता मिलती है।
डार्क चॉकलेट

भूरे रंग के चॉकलेट यानि डार्क चॉकलेट भी स्मरण शक्ति तेज करते हैं एवं आपके दिमाग की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं लेकिन इसे सीमित मात्रा में हीं खाना चाहिए ताकि आपका वजन न बढ़े।

@[148768761939483:274:आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति]
@[148768761939483:274:आर्यावर्त भरतखण्ड संस्कृति]

Monday, May 27, 2013

ईसाई धर्म में

कुछ दिन पहले एनडीटीवी पर दलाल से पत्रकार और फिर पत्रकार से दलाल बनी बरखा दत्त मे प्रोग्राम मे हिंदुत्व का जम कर मजाक उड़ाया जारहा था ..


इस प्रोग्राम मे दो मुस्लिम मौलवी और दो पादरी और गिरगिट भग्निवेश था ..ये सब हिंदू धर्म मे जातिवाद को लेकर हिंदू धर्म का मजाक बना रहे थे ..


… अब आप जरा इनकी भी सच्चाई देखिये :=


~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
क्या आप जानते हैं कि……
********ईसाई धर्म में ……एक मसीह….एक बाइबल….. और एक ही धर्म है … !

लेकिन मजे कि बात ये कि ये रोमन कैथेलिक और प्रोटेस्टेंटमे बंटे हुए है ..
आयरलैंड और बेलफास्ट मे अब तक सिर्फ पचास साल मे ही बीस हज़ार ईसाई आपसी दंगो मे मरे ..
ये कहते है कि युशु इंसान मे कोई फर्क नहीं करता ..
लेकिन गोरे ईसाइयों ने काले ईसाइयों पर भयानक पैशाचिक जुल्म ढाए और आज भी अमेरिका का सबसे खतरनाक आतंकी संगठन कोई मुस्लिम संगठन नहीं बल्कि “द व्हाइट सुपर” है जो गोरो का ग्रुप है और कालो और नीग्रो का दुश्मन है ..
किसी गोरे लोगो के चर्च मे कोई काला ईसाई नहीं जा सकता .
लैटिन कैथोलिक, सीरियाई कैथोलिक चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.
ये दोनों, मर्थोमा चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.
ये तीनों, Pentecost के चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.
और, ये चारों… साल्वेशन आर्मी चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.
इतना ही नहीं, ये पांचों, सातवें दिन Adventist चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.
ये छह के छह, रूढ़िवादी चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.
अब ये सातों जैकोबाइट चर्च में प्रवेश नहीं करेगा.
और, इसी तरह से…….. ईसाई धर्म की 146 जातियां सिर्फ केरल में ही मौजूद हैं,
इतना शर्मनाक होने पर भी ये …. चिल्लाते रहेंगे कि.. एक मसीह, एक बाइबिल, एक धर्म(??)
******अब देखिए मुस्लिमों को …
अल्लाह एक , एक कुरान, एक …. नबी ! और महान एकता……… बतलाते हैं ?
जबकि, मुसलमानों के बीच, शिया और सुन्नी सभी मुस्लिम देशों में एक दूसरे को मार रहे हैं .
और, अधिकांश मुस्लिम देशों में…. इन दो संप्रदायों के बीच हमेशा धार्मिक दंगा होता रहता है..!
इतना ही नहीं… शिया को.., सुन्नी मस्जिद में जाना मना है .
इन दोनों को.. अहमदिया मस्जिद में नहीं जाना है.
और, ये तीनों…… सूफी मस्जिद में कभी नहीं जाएँगे.
फिर, इन चारों का मुजाहिद्दीन मस्जिद में प्रवेश वर्जित है..!
किसी बोहरा मस्जिद मे कोई दूसरा मुस्लिम नहीं जा सकता .
कोई बोहरा का किसी दूसरे के मस्जिद मे जाना वर्जित है ..
आगा खानी या चेलिया मुस्लिम का अपना अलग मस्जिद होता है .
सबसे ज्यादा मुस्लिम किसी दूसरे देश मे नही बल्कि मुस्लिम देशो मेही मारे गए है ..
आज भी सीरिया मे करीब हर रोज एक हज़ार मुस्लिम हर रोज मारे जा रहेहै .
अपने आपको इस्लाम जगत का हीरों बताने वाला सद्दाम हुसैन ने करीब एक लाख कुर्द मुसलमानों को रासायनिक बम से मार डाला था …
पाकिस्तान मे हर महीने शिया और सुन्नी के बीच दंगे भड़कते है .
और इसी प्रकार से मुस्लिमों में भी 13 तरह के मुस्लिम हैं., जो एक दुसरे के खून के प्यासे रहते हैं और आपस में बमबारी और मार-काट वगैरह… मचाते रहते हैं.
*****अब आइये … जरा हम अपने हिन्दू/सनातन धर्म को भी देखते हैं.
हमारी 1280 धार्मिक पुस्तकें हैं, जिसकी 10,000 से भी ज्यादा टिप्पणियां और १,00.000 से भी अधिक उप-टिप्पणियों मौजूद हैं..! एक भगवान के अनगिनत प्रस्तुतियोंकी विविधता, अनेकों आचार्य तथा हजारों ऋषि-मुनि हैं जिन्होंने अनेक भाषाओँ में उपदेश दिया है..
फिर भी, हम सभी मंदिरों में जाते हैं, इतना ही नहीं.. हम इतने शांतिपूर्ण और सहिष्णु लोग हैं कि सब लोग एक साथ मिलकर सभी मंदिरों और सभी भगवानो की पूजा करते हैं .
और तो और…. पिछले दस हजार साल में धर्म के नाम पर हिंदुओं में “कभी झगड़ा नहीं” हुआ .
इसलिए इन लोगों की नौटंकी और बहकावे पर मत जाओ… और…. “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं”…!
जय महाकाल…!!!

Saturday, May 25, 2013

जब भारत माँ हुई लज्जित - कश्मीरी हिंदुओं के निर्वासन

"मन करता है फूल चढा दूँ लोकतंत्र की अर्थी पर,
भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी धरती पर" |


जब भारत माँ हुई लज्जित - कश्मीरी हिंदुओं के निर्वासन :------
१९ जनवरी १९९० – ये वही काली तारीख है जब लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपनी धरती, अपना घर हमेशा के लिए छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा | वे आज भी शरणार्थी हैं | उन्हें वहाँ से भागने के लिए मजबूर करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं | उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिंदू शरणार्थियों को वो भी नहीं |


१९९० के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी | हिजबुल मुजाहिदीन ने ४ जनवरी १९९० को प्रेस नोट जारी किया जिसे कश्मीर के उर्दू समाचारपत्रों �आफताब और अल सफा ने छापा | प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था | कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएँ शुरू हो गयी | कश्मीर की मस्जिदों के लाउडस्पीकर जो अब तक केवल अल्लाह-ओ-अकबर के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कहने लगे कि कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियाँ हमारे लिए छोड़ जाओ | "कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है", "असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन" (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदू स्त्रियों के साथ, लेकिन पुरुष नहीं"), ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे |


दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि सभी कश्मीर में इस्लामी वेश भूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया | कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, मकान और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिन्हित कर दिए गए | यहाँ तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने को उन्हें विवश किया गया | २४ घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ – काफिरों को क़त्ल करो का सन्देश कश्मीर में गूँज रहा था | इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भुला चुका था, वो एक बार फिर अपने सामने था |


आज कश्मीर घाटी में हिंदू नहीं हैं | उनके शरणार्थी शिविर जम्मू और दिल्ली में आज भी हैं | २२ साल से वे वहाँ जीने को विवश हैं | कश्मीरी पंडितों की संख्या ३ लाख से ७ लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए | एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गयी | कभी धनवान रहे ये हिंदू आज सामान्य आवश्यकताओं के मोहताज हैं | उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे | उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आके कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरूंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं |


कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहाँ कभी पांडवों की २८ पीढ़ियों ने राज्य किया था, वो कश्मीर जिसे आज भी भारत माँ का मुकुट कहा जाता है, वहाँ भारत के झंडा लेकर जाने पर सांसदों को पुलिस पकड़ लेती है और आम लोगों पर डंडे बरसाती है | ५०० साल पहले तक भी यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था | औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गया था | बाद में उसे औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित करके भरे दरबार में उसे क़त्ल किया था | भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है | “हिंदू घटा तो भारत बंटा” के 'तर्क’ की कोई काट उपलब्ध नहीं है | कश्मीर उसी का एक उदाहरण मात्र है |


मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेकुलर पार्टियों और हिंदू संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजीदां पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती | गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेकुलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर क़त्ल किए गए दसियों हज़ार कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता | सरकार कहती है कि कश्मीरी हिंदू "स्वेच्छा से" कश्मीर छोड़ कर भागे | इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड़यंत्र भी रचा गया है | आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं जो आज भी विस्थापित हैं | भोगने वाले भोग रहे हैं | जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है, और आँखें याद करके आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है | रामायण की देवी सीता को शरण देने वाली भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पड़ा |


कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है - "मन करता है फूल चढा दूँ लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी धरती पर" |

ऐसे हुआ कश्मीर का विलय, ऐसे पड़ी समस्या की नींव

ऐसे हुआ कश्मीर का विलय, ऐसे पड़ी समस्या की नींव

अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई चल रही थी। अंग्रेजों ने बांटों और राज करो की नीति को आगे बढ़ाने के लिए 1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन बुलाया। सम्मेलन में कांग्रेस और हिन्दू महासभा ने आजादी की मांग की, तो अंग्रेजों ने अंबेडकर, मुस्लिम लीग और भारतीय राजाओं से अपने समर्थन की आशा की।

कश्मीर के महाराजा हरि सिंह उस समय भारतीय राजाओं की संस्था चैम्बर ऑफ प्रिंसेज के अध्यक्ष के रूप में गांधी जी के स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े हो गए। हरि सिंह के इस स्टैंड के कारण गोलमेज सम्मेलन से अंग्रेजों की बांटने की नीति सफल नहीं हुई। हां, अंग्रेज अब कश्मीर के महाराजा से गांधी के समर्थन का बदला लेने के लिए बड़ी सिद्दत से मौके की तलाश करने लगे।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर कश्मीर में अध्यापन कर रहे शेख अब्दुल्ला को ऐसा समय अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने का अच्छा अवसर नजर आया। शेख अब्दुल्ला ने ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ नामक संस्था का गठन कर साम्प्रदायिकता की राजनीति करने लगे। अब्दुल्ला ने कश्मीर में हिन्दी भाषा की शिक्षा और गौहत्या पर प्रतिबंध जैसे कई आन्दोलन चलाकर मुस्लिम युवकों में अपनी पैठ बढ़ाई। कुछ समय बाद कांग्रेस से नजदीकी बढ़ने पर अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी का नाम ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ से बदलकर ‘नेशनल कांफ्रेंस’ कर दिया। फिर 1946 में शेख अब्दुल्ला ने महाराजा के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आन्दोलन चलाया। गांधी जी ने इसका समर्थन नहीं किया, फिर भी जवाहर लाल नेहरू ने गांधी की बात न मानते हुए इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए श्रीनगर जाने का कार्यक्रम बनाया। कश्मीर के महाराजा ने इससे झुब्ध होकर नेहरू को कोहाला पुल पर बंदी बना लिया। नेहरू ने इसे अपने अपमान के रूप के लिया और इस अपमान को आजीवन याद रखा। ऐसा कहा जाता है कि इसी अपमान का बदला लेने के लिए नेहरू पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर को आग में झोंक दिया।

15 अगस्त 1947 को मिली देश की स्वतंत्रता के बाद कुछेक देशी रियासतों को छोड़कर सभी रियासतों ने भारत या पाकिस्तान में अपना विलय कर लिया। खुद हिन्दू होते हुए मुस्लिम प्रजा और नेहरू से अपने खराब संबंधों के कारण महाराजा हरि सिंह बहुत चिंतित थे। इसीलिए उन्होंने 15 अगस्त, 1947 को दोनों देशों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। जिन्ना के अलावा भारत की ओर से रियासती मामलों के उस समय के राज्यमंत्री गोपाल स्वामी आयंगर और कांग्रेस के आचार्य कृपलानी ने भी महराजा को विलय के लिए समझाने का असफल प्रयास किया।

सरदार पटेल कश्मीर के भारत में विलय के लिए लगातार प्रयत्न कर रहे थे। महाराजा के भारत में विलय के लिए तैयार हो गए।

25 अक्टूबर को भारत के रियासती मंत्रालय के सचिव वी. पी. मेनन श्रीनगर पहुंचे। 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने अपने राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय कर दिया। विलय की सारी प्रक्रिया वैसे ही पूरी की गई थी जैसे देश की अन्य 529 रियासतों की पूरी हुई थी।

महाराजा चाहते थे कि भारतीय सेना जल्द से जल्द श्रीनगर पहुंचे, लेकिन भारतीय सेना अगले दिन 27 अक्टूबर को पहुंचकर, पाकिस्तानियों को श्रीनगर में ईद मनाने से रोक दिया। श्रीनगर तो भारत के पास ही रहा, लेकिन कश्मीर का एक बड़ा भाग मीरपुर, मुजफ्फराबाद, बाल्टिस्तान आदि पर पाकिस्तान ने नेहरू की गलतियों के कारण कब्जा कर लिया|

Friday, May 24, 2013

फिल्म सिलसिला का वो सीन

फिल्म सिलसिला का वो सीन याद कीजिये ... जिसमे अमिताभ और रेखा कार में घुमने जाते है और कार का एक्सीडेंट हो जाता है .. फिर पुलिस आती है .. और इंस्पेक्टर बने कुलभूषण खरबंदा उन्हें थाने चलने का आदेश देते है ..फिर अभिताभ थाने में अपना और रेखा का नाम लिखवाना नही चाहते ... लेकिन वो लिखवाते है ...

क्या आप जानते है की यश चोपड़ा को इस सीन की प्रेरणा कहा से मिली ??

असल में भारत की एक ताकतवर महिला नेत्री जो कभी केम्ब्रिज शहर के एक रेस्टोरेंट में वेटर का काम करती थी और उस होटल का मालिक सिर्फ लडकीयो को ही वेटर इसलिए रखता था ताकि उसके रेस्तरां में छात्र खूब आये ...

उस महिला नेत्री का वहाँ पढ़ रहे भारत के एक राजपरिवार के सदस्य जिनकी एक विमान दुर्घटना में मौत हो चुकी है उससे सम्बन्ध था ... लेकिन उस राजकुमार ने उस महिला से शादी नही की ... बाद में उस महिला ने भारत के एक ताकतवर खानदान के एक मुर्ख नौजवान को अपने रूपजाल में फंसाकर शादी कर ली ... लेकिन शादी ने बाद भी उस राजकुमार से उस महिला के सम्बन्ध बदस्तूर जारी रहे ... एक दिन उस महिला का पति विदेश गया था और वो महिला उस राजकुमार के साथ रात को दिल्ली में घुमने निकली .. लेकिन अफ्रीका एवेन्यू मार्ग पर उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया और मजबूरी में उन्हें थाने जाना पड़ा था ...

‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है? और वह करता क्या है?


एक बार अकबर दरबार में यह सोच कर आये कि आज बीरबल को भरे दरबार में शरमिन्दा करना है। इसके लिए वो बहुत तैयारी करके आये थे। आते ही अकबर ने बीरबल के सामने अचानक 3 प्रश्न उछाल दिये। प्रश्न थे- ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?

और वह करता क्या है?’’ बीरबल इन प्रश्नों को सुनकर सकपका गये और बोले- ‘‘जहाँपनाह! इन प्रश्नों के उत्तर मैं कल आपको दूँगा।" जब बीरबल घर पहुँचे तो वह बहुत उदास थे।उनके पुत्र ने जब उनसे पूछा तो उन्होंने बताया- ‘‘बेटा! आज अकबर बादशाह ने मुझसे एक साथ तीन प्रश्न ‘ईश्वर कहाँ रहता है? वह कैसे मिलता है?औरवह करता क्या है?’ पूछे हैं। मुझे उनके उत्तर सूझ नही रहे हैं और कलदरबार में इनका उत्तर देना है।’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘पिता जी! कल आप मुझे दरबार में अपने साथ ले चलना मैं बादशाह के प्रश्नों
के उत्तर दूँगा।’’ पुत्र की हठ के कारण बीरबल अगले दिन अपने पुत्र को साथ लेकर दरबार में पहुँचे। बीरबल को देख कर बादशाह अकबर ने कहा-‘‘बीरबल मेरे प्रश्नों के उत्तरदो।

बीरबल ने कहा- ‘‘जहाँपनाह आपके प्रश्नों के उत्तर तो मेरा पुत्र भी दे सकता है।’’ अकबर ने बीरबल के पुत्र से पहला प्रश्न पूछा- ‘‘बताओ! ‘ईश्वर कहाँ रहता है?’’ बीरबल के पुत्र ने एक गिलास शक्कर मिला हुआ दूध बादशाह से मँगवाया और कहा- जहाँपनाह दूध कैसा है?अकबर ने दूध चखा और कहा किये मीठा है। परन्तु बादशाह सलामत या आपको इसमें शक्कर दिखाई दे रही है। बादशाह बोले नही। वह तो घुल गयी। जी हाँ, जहाँपनाह! ईश्वर भी इसी प्रकार संसार की हर वस्तु में रहता है। जैसे शक्कर दूध में घुल गयी है परन्तु वह दिखाई नही दे रही है। बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब दूसरे प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर मिलता केसे है?’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह थोड़ा दही मँगवाइए।’’ बादशाह ने दही मँगवाया तो बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! क्या आपको इसमं मक्खन दिखाई दे रहा है। बादशाह ने कहा- ‘‘मक्खन तो दही में है पर इसको मथने पर ही दिखाई देगा।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! मन्थन करने पर ही ईश्वर के दर्शन हो सकते हैं।’’ बादशाह ने सन्तुष्ट होकर अब अन्तिम प्रश्न का उत्तर पूछा- ‘‘बताओ! ईश्वर करता क्या है?’’ बीरबल के पुत्र ने कहा- ‘‘महाराज! इसके लिए आपको मुझे अपना गुरू स्वीकार करना पड़ेगा।’’ अकबर बोले- ‘‘ठीक है, तुमगुरू और मैं तुम्हारा शिष्य।’’ अब बालक ने कहा-
‘‘जहाँपनाह गुरू तो ऊँचे आसन पर बैठता है और शिष्य नीचे।’’ अकबर ने बालक के लिए सिंहासन खाली कर दिया और स्वयं नीचे बैठ गये। अब बालक ने सिंहासन पर बैठ कर कहा- ‘‘महाराज! आपके अन्तिम प्रश्न का उत्तर तो यही है।’’ अकबर बोले- ‘‘क्या मतलब?मैं कुछ समझा नहीं।’’ बालक ने कहा- ‘‘जहाँपनाह! ईश्वर यही तो करता है। पल भर में राजा को रंक बना देता है और भिखारी को सम्राट बना देता है

मक्का की पुरानी तस्वीर

Thursday, May 23, 2013

सोम रस और शराब में अंतर


अधिक जानकारी के लिए निचे दिए गए लिंक पे click करे:
http://www.youtube.com/watch?v=cV2s70aF6c4

सबसे जादा चाय कोफ़ी से भी पहले बियर, वाइन , हुइस्कि ..शराब एक ऐसा आहार है जो आपके शारीर को जरुरत से जादा गरम कर देता है । और शारीर में जरुरत से जादा गर्मी आने के कारन ही मनुष्य वो सब करता जो सामान्य स्थिति में उससे वो करने की अपेक्षा नही की जा सकती । तो आपकी शारीर को बहुत जादा गरम करे ऐसी शराब अगर है तो ये प्रकृति के अनुकूल नही है, और जो आपके प्रकृति के अनुकूल नही है वो आपकी संस्कृति के भी अनुकूल नही है । क्योंकि आपके प्रकृति के संस्कार ही संस्कृति को निर्धारित करेंगे न, तो आपके संस्कृति के अनुकूल नही है तो शराब न पिये । राजीव भाई ने कुछ परिक्षण किये - जब भी एक साधारण स्वस्थ व्यक्ति को कोई भी शराब पिलाई जाये तो तुरंत उसका Blood Pressure बढना सुरु हो जाता है । अगर इसको आयुर्वेद की भाषा में कहा जाये तो तुरन्त उसका पित्त बढना सुरु हो जाती है , पित्त माने आग लगना सुरु होती है शारीर में । अब हमारा शारीर तो समशीतोष्ण है , जब आग लगेगी शारीर में तो शारीर की साडी प्रतिरक्षा प्रणाली इस आग को शांत करने में लगेगी, और परिरक्ष प्रणाली को काम करने के लिए रक्त इंधन के रूप में चाहिये ; तो आप का रक्त शरीरी का सरे अंगो से भाग कर उहाँ आयेगा जहां आपकी आग को शांत करने का काम चलेगा , माने पेट की तरफ सारा रक्त आ जायेगा । इसका माने रक्त जहां जाना चाहिए उहाँ नही होगा, ब्रेन को चाहिए उहाँ नही है, हार्ट को चाहिए उहाँ नही है, किडनी को चाहिए उहाँ नही है, लीवर को चाहिए उहाँ नही है .. वो सब आ गया पेट में , और ये रहेगा दो से पांच घंटे तक मने दो से पांच घंटे तक आपके शारीर के बाकि ओर्गन्स रक्त की कमी से तड़पेंगे और उनमे खराबी आना सुरु हो जायेंगे । इसलिए शराब पिने वालो के अन्दर के सारे अंग ख़राब होते है और उनको मृत्यु की डर सबसे जादा होते है । इसलिए भारत की प्रकृति और संस्कृति में शराब का स्थान नही है ।

लोग कहते है के, लेकिन सोमरस तो था !! सोमरस और शराब में बहुत बड़ा अंतर है - सोमरस और शराब में अंतर उतना ही है जितना डालडा और गाय के घी में है । सोमरस जो है आयुर्वेद का एक औषधीय रूप है जो आपके शारीर के शांत पित्त को बढाने का काम करता है, माने भूख जादा ठीक से लगे इसके लिये सोमरस पिया जाता है भारत में । शराब और सोमरस में जमीन असमान का अंतर है - शराब क्या करती है जो पित्त आपके शारीर में शांत है उसको भड़का देती है, एक सुलगना होता है एक भड़कना होता है । आग कहीं धीरे धीरे सुलग रहा है तो खतरे की सम्भावना बहुत कम हैं और आग भड़क के लग गयी है तो अस पड़ोसके बिल्डिंग ऐ जल जाएगी । तो शराब जो है वो पित्त को भड़काती है और सोमरस पित्त को सुलगाती है । तो सुलगा हुआ पित्त ये तो हमे चाहिये पर भड़का हुआ नही चाहिये , मने सरब नही चाहिये .. अगर चाहिये तो सोमरस चाहिये । अगर कोई सोमरस पिता है तो उसे जिन्दगी में कभी भी पित्त का रोग नही होगा । सोमरस बहुत ही संतुलित है जैसे नीबू की सरवत और शराब नीबू का रस ।
भारतीय संस्कृति का हिस्सा नही है शराब । और इतनी शराब जो लोग पिने लगे है वो यूरोप की नक़ल से आये, दुर्भाग्य से 450 साल तक हम भारतवासी यूरोपियन की सांगत में फंस गये या तो उनके गुलाम हो गये, तो उनकी नक़ल कर कर के हमने ये शुरु कर दिया ।


 

sakhshi dhoni

पूर्वी लदाख का क्षेत्र जहाँ पर चीनी सेना घुसपैठ


पूर्वी लदाख का क्षेत्र जहाँ पर चीनी सेना घुसपैठ कर रही थी वो क्षेत्र प्राकृतिक संसाधन जैसे खनिज और रेडियोधर्मी ईंधन जैसे उरेनियम और थोरियम से समृद्ध है | सामरिक विशेषज्ञों का केहना है के इस क्षेत्र में चीन की रुचि के पीछे के कारणों में से यह एक हो सकता है | 6 साल पूर्व इस क्षेत्र मे रेडियोधर्मी ईंधन का अविष्कार हुआ जिसमे उरेनियम का रिज़र्व बहुत नवीन है पर थोरियम की गुणवत्ता बहुत उत्तम है, प्रयोगशाला के अनुसार थोरियम की उपलब्धता 5.36% है जबकि देश के दुसरे क्षेत्र मे सिर्फ 0.1% है | 10000-15000 वर्गकिलोमीटर मे फैला हुआ श्योक घाटी का क्षेत्र भूतापीय बोरेक्स और सल्फर से समृद्ध है, इसलिए यहाँ जमीन से थर्मल निर्वहन बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है | इस क्षेत्र मे जमीन के निचे पारा, लोहा, निकल और कोयला भी हो सकता है |

लद्दाख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के द्वारा नियंत्रित है तो विशेष कानूनों के जरिये खनन और अन्वेषण कार्य नियंत्रित होता है , जिसके लिए राज्य से लाइसेंस की आवश्यकता होती है |

दक्षिण - पूर्व लद्दाख के हानले मे भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान है जिसमे विश्व के सबसे ऊंचे वेधशाला है जो एक रणनीतिक परिसंपत्ति है |

पूर्वी लद्दाख पश्मीना फाइबर में भी समृद्ध है जो जम्मू और कश्मीर के सरकार को सालाना 30-40 करोड़ रूपए राजस्य देता है |

अधिक जानकारी के लिए यहाँ देखे : http://www.sunday-guardian.com/news/area-under-chinese-control-rich-in-thorium
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एक कसाई के पास उसका एक दोस्त

एक बार एक कसाई के पास उसका एक दोस्त उससे मिलने गया. वहा उसने देखा कि एक बड़े से पिंजरे नुमा घर में ढेर सारे बकरे कैद हैं और आपस में बड़े ही मस्ती के साथ खेल रहे हैं, और उसी पिंजरे से वह् कसाई एक एक करके बकरे को बाहर निकाल करउसे काट रहा है, और उसका मांस बेच रहा है. उस कसाई के दोस्त को यह नजारा बड़ा ही हैरान करने वाला लगा कि सारे बकरे पिंजरे कि जाली के माध्यम से अपने साथी बकरे को एक एक करके कसाई के द्वारा कटते देख् रहे हैं फिर भी वे खुश लग रहे हैं, और एक दुसरे के साथ खेलने में मशगूल हैं. दोस्त ने कसाई से पूछा कि भाई ऐसा क्यों है , तो कसाई ने बताया कि, मैंने हर बकरे को अकेले में उसके कान में कह दिया है कि , भाई मैं सारे बकरे को हलाल करूँगा लेकिन तुम्हे छोड़ दूँगा.तुम्हे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाउंगा , इस लिए तुम बिलकुल चिंता मुक्त हो कर खेलो और खुश रहो. और इसी वजह से ये सारे के सारे खुश हैं, किसी भी प्रकार का भय और विद्रोह कि भावना इनके मन में नही है. कुछ इसी प्रकार की गलतफहमी हम आम आदमियों को हो गई है. हममें से ज्यादातर लोगों को ऐसा लगता है कि इस व्यवस्था पर मेरी पकड़ है, पहुँच है, इस लिएबाकी लोगों को परेश नहीं. इस व्यवस्था के जो फयदा उठने वाला शक्तिशाली वर्ग है, जिसमे सरकार, समाज के बड़े बड़े पैसे वाले, और हर धर्म और जाती के बड़े बड़े सामंत हैं वे हमें इसी प्रकार के गलतफहमी में डाल रखे हैं. और हम इनके साज़िश में आ कर बेपरवाह हैं. और एक एक करके हम आम आदमी अपने साथियों को इस व्यवस्था के द्वारा हलाल होतेदेख् रहे हैं फिर भी खुश हो कर अपनी दुनिया में मस्त हैं.

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...