Thursday, July 25, 2013

बाटला हाउस एनकाउंटर

बाटला हाउस एनकाउंटर 19 सितम्बर 2009 को दिल्ली के जामिया नगर के बाटला हाउस में हुआ था। इस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस ने इंडियन मुजाहिदीन के 2 आतंकवादियों आतिफ आमीन और मोहम्मद साजिद को मार गिराया था। इसके अलावा 2 आतंकवादी मोहम्मद सैफ और जीशान गिरफ्तार और एक आतंकी अरिज खान भाग खड़ा हुआ था। इस घटना में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर शहीद मोहन चंद शर्मा की भी भी मृतु हो गई थी।

इस घटना के बाद आतंकियों की मृतु पर सोनिया गाँधी को काफी दुःख हुआ था और सलमान खुर्सिद ने बताया आतंकियों के मरने से सोनिया गाँधी को इतना दुःख हुआ की उनकी आँखों में आंसू आ गए थे।
http://www.youtube.com/watch?v=FTwewvmcOew

इस घटना में इंडियन मुजाहिदीन के मारे जाने की सोनिया गाँधी, अरविन्द केजरीवाल, मुलायम सिंह यादव, मायावती और बहुत सारे राजनेताओ ने भारतीय पुलिस की बहुत निंदा की थी। अभी कुछ दिन पहले अरविन्द केजरीवाल ने "सेक्युलर वोटो" के लिए एक पत्र लिखा जिसमे उन्होंने कहा की बाटला हाउस एनकाउंटर में मारे गए इंडियन मुजाहिदीन के आतंकवादी निर्दोष थे और यह एनकाउंटर फर्जी था।
http://www.youtube.com/watch?v=C2A-NshVSjw

लेकिन आज यह सिद्ध हो गया है की यह एनकाउंटर फर्जी नहीं था और यह आतंकी पाकिस्तान के ISI के इशारो पर देश के विभिन्न शहरो में अनेको आतंकी घटनाओ को अंजाम दे चुके थे।
http://www.youtube.com/watch?v=yg9KaK6wTCU
http://www.youtube.com/watch?v=zzI2RdmtlGw

आज देश के इन राजनेताओ को आतंकवादियों और उनके परिवार वालो के प्रति काफी सहानभूति है, लेकिन मारे गए शहीद मोहन चंद शर्मा और इन आतंकियों के हमले में मारे गए लाखो मासूम नागरिको और सुरक्छा बलो के प्रति इन्हें कोई सहानभूति नहीं है। आज भारत के राजनितिक दल अपने वोट बैंक के लिए देश में आतंकवादी का समर्थन कर रहे है। भारतीय मीडिया के कांग्रेसी और जिहादियो के नियंत्रण में होने के कारन लोगो को सच नहीं पता चल प् रहा है। आज देश के सभी नागरिको को इन देशद्रोहियों के खिलाफ एक जुट होकर खड़े होने की आवश्यकता है।

हो रहा भारत निर्माण...

गरीबी के आंकड़े कम, मुस्लिम जनसंख्या के आंकड़े कम, रुपये की कीमत कम... हो रहा भारत निर्माण...



मोदीजी की सभा का पहला टिकट एक मुस्लिम बहन ने

देख लो सेकुलर का ढोल पिंटने वाले दोगलो, हैदराबाद के मोदीजी की सभा का पहला टिकट एक मुस्लिम बहन ने ख़रीदा है,

अमर्त्य सेन - एक चुतिया




उन सांसदों को विवरण

मित्रो ये उन सांसदों को विवरण है जिन लोगो ने ओबामा प्रशासन को हस्ताक्षर के द्वारा ये कहा था की मोदी जी को USA का वीसा ना दे देखिये पहचानिए अपने अपने सांसदों को, और अब निर्णय कीजिये की क्या ये लोग संसद में बैठने के योग्य है या नहीं निर्णय आप सबको ही करना है ! 











Wednesday, July 24, 2013

मोहम्मद अदीब और दुसरे सांसदों



मोहम्मद अदीब और दुसरे सांसदों .... देख लो .... जिस अमेरिका के चरणों में तुम गिरकर मुस्लिमो के खातिर मोदी को वीजा नही देने की गुजारिश कर रहे हो .... उसी अमेरिका के सैनिक अफगानिस्तान में आठ तालिबानों के लाशो पर लाइन से खड़े होकर मूत रहे है ...

अरे दोगलो तुम्हारी असली औकात यही है ... भूल गये जब इसी अमेरिका ने इराक से लेकर लेबनान तक ..लीबिया के लेकर सोमालिया तक .. अफगानिस्तान से लेकर यमन तक ..लाखो मुसलमानों को उनके घरो में घुसकर मारा ??

मोहम्मद अदीब ..तुम्हारे अब्बा ने तुम्हारे नाम में अदीब शब्द जोड़ा होगा शायद इसलिए की तुममे कुछ अदब आ जाये ..लेकिन तुम जाहिल के जाहिल ही रहे |

अबे दोगलो क्या नरेंद्र मोदी अमेरिका के वीजा के मोहताज है ?? तुमने लाख दुष्प्रचार फैलाकर भी मोदी का क्या बिगाड़ लिया ?? मोदी तीन तीन बार से बम्पर बहुमत से गुजरात के मुख्यमंत्री बनकर तुम्हारे सीने पर मुंग दल रहे है और तुम अपनी दूम अमेरिका के आगे हिला रहे हो ??

अरे दोगलो .. कम से कम अपने रमजान के पवित्र महीने का तो ख्याल किया होता ... तुम जैसी दोगलो की रोजा खुदा क्या खाक कुबूल करते होंगे जो अपने मुल्क में सद्र के होते हुए भी दुसरे मुल्क के सद्र के आगे सर झुकाकर मिन्नते कर रहा है


ये दोगले क्या भूल गये कि जिस अमेरिका के चरणों में ये गिरकर मोदी को वीजा नही देने की गुजारिश कर रहे है उसी अमरीका ने बकायदा परिपत्र जाहिर किया हुआ है की अमेरिका आने वाले हर मुसलमान की नंगे करके तलाशी ली जाए ... तुम एक बार आजम खान से तो पूछ लेते जिन्होंने कहा की मेरे साथ गये कई अन्य हिन्दू लोगो को जो मंत्री भी नही थे उनकी उपर से मामूली तलाशी हुई और मुझे एक कमरे में ले जाकर कपड़े उतरकर कई घंटो तक तलाशी हुई



डॉ स्वामी




डॉ suwramanyam .स्वामी ने कहा है की राहुल गाँधी बुद्धू है और वो ड्रग्स लेता है. अगर है किसी कांग्रेसी में दम है तो डॉ स्वामी पर कोर्ट केस करके दिखाए। क्या आप जानते हैं एक बार कांग्रेसियों ने भारत के बाहर दुसरे देश डॉ स्वामी पर सोनिया के विरोध में मानहानि का दावा किया। तय तारीख पर स्वामीजी कोर्ट में पहुंचे. कार्यवाही शुरू होते ही स्वामीजी ने जज से कहा की मैं सोनिया गाँधी से cross questioning करना चाहता हूँ, कृपया उन्हें कटघरे में बुलाया जाए. ये सुनते ही कांग्रेसियों के पसीने छूट गए और उन्होंने वो केस तुरंत ही वापस ले लिया उसके बाद, एक बार स्वामीजी को परेशान करने के लिए कांग्रेसियों ने उनपर करीबन, १०० मानहानि के केस कर दिए ताकि वे उलझे रहें और कांग्रेस की पोल खोलना बंद कर दे. आप हैरान हो जायेंगे की स्वामीजी ने वे सारे १०० के १०० केस केवल एक ही दिन में खारिज करवा लिए। उसके बाद कांग्रेसियों की कभी हिम्मत नहीं हुई की स्वामीजी को कुछ कह सकें या उनके रास्ते में आयें. मीडिया को सख्त हिदायत दे दी गयी की इस इंसान को कभी भी कवरेज न दें यही कारण है की स्वामीजी के कार्यों की जानकारी आप सबको केवल सोशल मीडिया व् इन्टरनेट पर ही मिलती है..बिकाऊ मीडिया में नहीं..

सोनाक्षी सिन्हा

वैसे हमे किसी की निजी जिंदगी में दखल देने का हक तो नहीं परन्तु जब कोई दुश्मनी ठान ले तो सब जायज है....

शत्रू घन सिन्हा की औकात देखिये .........

जिसे ये अपनी बेटी कहता है वो असल में किसकी कोख से है...

प्रधानमंत्री कौन? सितारे मोदी के पक्ष में हैं







प्रधानमंत्री कौन? सितारे मोदी के पक्ष में हैं

उपलब्ध जन्म विवरणों के अनुसार श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी का जन्म दिनांक 17 सितम्बर 1950 की दोपहर 11 बजे वादनगर जिला मेहसाना गुजरात में हुआ। जैसा कि ऊपर दर्शाया गया है, जन्म के समय वृश्चिक लग्न और कर्क का नवांश उदय हो रहा है।


अनुराधा नक्षत्र में पैदा श्री नरेन्द्र मोदी की जन्म राशि वृश्चिक है। इसमें चन्द्रमा और मंगल का योग लग्न भाव में ही स्थित है। इसके उपरान्त बृहस्पति वक्री चौथे भाव में, राहु पंचम भाव में, शुक्र और शनि दशम भाव में बैठे हैं। स्वग्रही बुध सूर्य और केतु का योग एकादश भाव में है। नवांश कुण्डली में यह स्थिति बदल गई है लग्न में कर्क राशि का मंगल आ गया है। शुक्र और राहु दूसरे भाव में हैं। चन्द्र तीसरे, गुरू पंचम, शनि छठे, सूर्य और बुध सप्तम भाव में और केतु अष्टम भाव में है।


महादशा के अनुसार शनि की भोग्य दशा जन्म के समय 11 वर्ष ढाई मास शेष थी जो 30 नवम्बर 1961 को समाप्त हुई । इसके उपरान्त 30 नवम्बर 1978 तक बुध की महादशा, नवम्बर 1985 तक केतु की महादशा, नवम्बर 2005 तक शुक्र की महादशा। इसमें यह विचारणीय है कि शुक्र उनके दशम भाव में शनि के साथ स्थित है अतः 1985 के बाद नरेन्द्र मोदी जी का राजनैतिक कैरियर आरंभ हो गया था। वर्ष 2005 तक वे केन्द्र की संसद के रास्ते गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो गए थे। शुक्र और शनि एकसाथ बैठे हैं अतः शुक्र की महादशा के दौरान ही उनके ऊपर गुजरात के साम्प्रदायिक दंगों का आरोप भी लगाया जाता है।


वर्ष 2005 के दिसम्बर के बाद सूर्य की महादशा 30 नवम्बर 2011 तक रही जिसमें उन्होंने अपनी छवि को आलीशान तौर पर सुधार कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक योग्य और हरदिलअजीज मुख्यमंत्री की छवि का खिताब अर्जित किया। विरोधी चाहे कुछ भी कहें नमूने के तौर पर सारा गुजरात उनके लिए नतमस्तक रहता है। वे उन सब गुजरातियों के भी हैं जो देश-विदेश में रहते हैं । अपने प्रान्त को रिप्रजेन्ट करते हैं। अमेरिका, चीन, जापान, मलेशिया, सिंगापुर, कजाकिस्तान और रूस जैसे देश नरेन्द्र मोदी के कुशल राजनीतिक प्रबन्धन के कायल है और आज गुजरात में कोई भी विदेशी पूंजी लगाने के लिए तैयार रहता है।

वर्ष नवम्बर 2011 से नरेन्द्र मोदी को चन्द्रमा की महादशा आरंभ हुई। 30 सितम्बर 2012 तक चन्द्रमा में चन्द्रमा का ही अन्तर जारी रहा। इस दौरान गुजरात दंगों और अन्य आरोपों का कलंक भी काफी हद तक मोदी के दामन से धुलता रहा। विपक्षी और विरोधी इसे अभी भी एक छुपा हुआ षड्यंत्र समझ रहे हैं लेकिन वक्त की नजाकत कुछ और ही कहती है। विचारणीय है कि नरेन्द्र मोदी के लग्न में जहां चन्द्रमा नीच राशि का है वहीं दशम भाव में शनि भी शत्रु राशि का है। ये दोनों ग्रह दामन में दाग और बेबुनियाद आरोप लगाने में अग्रणी रहते हैं। किसी की कुण्डली में अगर ऐसा योग देखें तो उसके ऊपर सुलझे और अनसुलझे हत्या का आरोप हमेशा लगाया जाता है।

दूसरी ओर मोदी की कुण्डली में अनेक प्रकार के राजयोग यश, ख्याति और लोकप्रियता के योग विद्यमान हैं जैसे कि केदारयोग, गजकेसरी योग, रूचकयोग, मुसलयोग, वरिष्ठयोग, वोशियोग, पर्वतयोग, कालयोग, भेरीयोग शंखयोग, नीचभंगराजयोग, केन्द्र त्रिकोण, राजयोग, चन्द्र मंगल राजयोग, अमरबेल राजयोग तथा अक्षयसाम्राज्य राजयोग आदि आदि। इन सब योगों का कमाल है कि नरेन्द्र मोदी को एक छोटे आदमी से दुनिया का नामी अच्छा आदमी बनने से कोई नहीं रोक पा रहा है।

उनके अपने राज्य में भी इनकी पार्टी के ही बहुत सारे विरोधी हैं जो उनके कुर्ते पर कैंची मार सकते हैं, लेकिन इससे क्या है जब सारे देश में बच्चे-बच्चे के मुंह पर नरेन्द्र मोदी का नाम होगा। क्योंकि नीच चन्द्रमा को मंगल का सपोर्ट मिलने से जो नीच भंगयोग हुआ वैसा ही दशम भाव के शनि को पंचमेश गुरू का सपोर्ट मिलने से उसका भी नीच भंग हो गया है। अब कहां जाएगा विरोधियों और उसके भाड़े के विरोधियों का चटखारा। सब कुछ चन्द्रमा की महादशा और राहु की अन्तरदशा जो कि अक्टूबर 2014 तक जारी है में उसे गुजरात से दिल्ली संसद तक लाकर विजयी भवः कहते हुए भारतीय जनता पार्टी को अब तक की सबसे अधिक लोकप्रिय पार्टी बनायेगा बल्कि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में ज्यादा जोड़तोड़ भी नहीं करनी पड़ेगी।

मोदी को प्रधानमंत्री घोषित करने के बाद भाजपा भी 240 से 250 के मध्य तक लोकसभा की सीटें जीत सकती हैं।

http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/aasthaaurchintan/entry/the-stars-are-with-narendra-modi-for-pm

सोनिया ने कराई राजीव, इंदिरा की हत्या



कभी कभी ऐसी औरतो के कारनामो के लिए यदि सामूहिक बलात्कार की सजा भी यदि हमारे भारतीय सम्विधान में होती तो उस पर भी संशोधन की आवश्यकता पड़ जाती !!! 


Tuesday, July 23, 2013

15 अगस्त 1947 आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है

15 अगस्त 1947 आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है

आजादी नहीं धोखा है, देश का समझौता है
शासन नहीं शासक बदला है, गोरा नहीं अब काला है

15 अगस्त 1947 को देश आजाद नहीं हुआ तो हर वर्ष क्यों ख़ुशी मनाई जाती है ?
क्यों भारतवासियों के साथ भद्दा मजाक किया जा रहा है l इस सन्दर्भ में निम्नलिखित तथ्यों को जानें .... :

1. भारत को सत्ता हस्तांतरण 14-15 अगस्त 1947 को गुप्त दस्तावेज के तहत, जो की 1999 तक प्रकाश में नहीं आने थे (50 वर्षों तक ) l

2. भारत सरकार का संविधान के महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है l

3. संविधान के अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम न्यायलय, उच्च न्यायलय तथा संसद की कार्यवाही अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में होने के बजाय अंग्रेजी भाषा में होगी l

4. अप्रैल 1947 में लन्दन में उपनिवेश देश के प्रधानमंत्री अथवा अधिकारी उपस्थित हुए, यहाँ के घोषणा पात्र के खंड 3 में भारत वर्ष की इस इच्छा को निश्चयात्मक रूप में बताया है की वह ...
क ) ज्यों का त्यों ब्रिटिश का राज समूह सदस्य बना रहेगा तथा
ख ) ब्रिटिश राष्ट्र समूह के देशों के स्वेच्छापूर्ण मिलाप का ब्रिटिश सम्राट को चिन्ह (प्रतीक) समझेगा, जिनमे शामिल हैं .....
(इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैण्ड, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, श्री लंका) ... तथा
ग ) सम्राट को ब्रिटिश समूह का अध्यक्ष स्वीकार करेगा l

5. भारत की विदेश नीति तथा अर्थ नीति, भारत के ब्रिटिश का उपनिवेश होने के कारण स्वतंत्र नहीं है अर्थात उन्हीं के अधीन है l

6. नौ-सेना के जहाज़ों पर आज भी तथाकथित भारतीय राष्ट्रीय ध्वज नहीं है l

7. जन गन मन अधिनायक जय हे ... हमारा राष्ट्र-गान नहीं है, अपितु जार्ज पंचम के भारत आगमन पर उसके स्वागत में गाया गया गान है, उपनिवेशिक प्रथाओं के कारण दबाव में इसी गीत को राष्ट्र-गान बना दिया गया ... जो की हमारी गुलामी का प्रतीक है l

8. सन 1948 में बने बर्तानिया कानून के अंतर्गत भाग 1 (1) 1948 के बर्तानिया के कानून के अनुसार हर भारतवासी बर्तानिया की रियाया है और यह कानून भारत के गणराज्य प्राप्त कर लेने के पश्चात भी लागू है l

9. यदि 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ तो प्रथम गवर्नर जनरल माउन्ट-बेटन को क्यों बनाया गया ??

10. 22 जून 1948 को भारत के दुसरे गवर्नर के रूप में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने निम्न शपथ ली l
"मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यथाविधि यह शपथ लेता हूँ की मैं सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी के प्रति कानून के मुताबिक विश्वास के साथ वफादारी निभाऊंगा, एवं
मैं चक्रवर्ती राजगोपालचारी यह शपथ लेता हूँ की मैं गवर्नर जनरल के पद पर होते हुए सम्राट जार्ज षष्ठ और उनके वंशधर और उत्तराधिकारी की यथावत सव्वा करूँगा l "

11. 14 अगस्त 1947 को भारतीय स्वतन्त्रता विधि से भारत के दो उपनिवेश बनाए गए जिन्हें ब्रिटिश Common-Wealth की ...
धारा नं. 9 (1) - (2) - (3) तथा
धारा नं. 8 (1) - (2)
धारा नं. 339 (1)
धारा नं. 362 (1) - (3) - (5)
G - 18 के अनुच्छेद 576 और 7 के अंतर्गत ....

इन उपरोक्त कानूनों को तोडना या भंग करना भारत सरकार की सीमाशक्ति से बाहर की बात है तथा प्रत्येक भारतीय नागरिक इन धाराओं के अनुसार ब्रिटिश नागरिक अर्थात गोरी सन्तान है l

12. भारतीय संविधान की व्याख्या अनुच्छेद 147 के अनुसार गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट 1935 तथा indian independence act 1947 के अधीन ही की जा सकती है ... यह एक्ट ब्रिटिश सरकार ने लागू किये l

13. भारत सरकार के संविधान के अनुच्छेद नं. 366, 371, 372 एवं 392 को बदलने या रद्द करने की क्षमता भारत सरकार को नहीं है l

14. भारत सरकार के पास ऐसे ठोस प्रमाण अभी तक नहीं हैं, जिनसे नेताजी की वायुयान दुर्घटना में मृत्यु साबित होती है l
इसके उपरान्त मोहनदास गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना और मौलाना अबुल कलाम आजाद ने ब्रिटिश न्यायाधीश के साथ यह समझौता किया कि अगर नेताजी ने भारत में प्रवेश किया, तो वह गिरफ्तार ककर ब्रिटिश हुकूमत को सौंप दिया जाएगाl
बाद में ब्रिटिश सरकार के कार्यकाल के दौरान उन सभी राष्ट्रभक्तों की गिरफ्तारी और सुपुर्दगी पर मुहर लगाईं गई जिनको ब्रिटिश सरकार पकड़ नहीं पाई थी l

15. डंकल व् गैट, साम्राज्यवाद को भारत में पीछे के दरवाजों से लाने का सुलभ रास्ता बनाया है ताकि भारत की सत्ता फिर से इनके हाथों में आसानी से सौंपी जा सके l

उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है की सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को आज तक एक धोखे में ही रखा गया है, तथाकथित नेहरु गाँधी परिवार इस सच्चाई से पूर्ण रूप से अवगत थे परन्तु सत्तालोलुभ पृवृत्ति के चलते आज तक उन्होंने भारत की जनता को अँधेरे में रखा और विश्वासघात करने में पूर्ण रूप से सफल हुए l

सवाल उठता है कि ... यह भारतीय थे या .... काले अंग्रेज ?

नहीं स्वतंत्र अब तक हम, हमे स्वतंत्र होना है
कुछ झूठे देशभक्तों ने, किये जो पाप, धोना है

सरदार भगत सिंह कि मृत्यु के पीछे अंग्रेजों के कानूनों के बहाने गुंडागर्दी एवं क्रूरता के राज्य का पर्दाफाश करना एवं भारत के नौजवानों को भारत कि पीड़ा के प्रति जागृत करना उद्देश था l

राजीव दीक्षित कि शहादत भी षड्यंत्रकारी प्रतीत होती है, SEZ , परमाणु संधि, विदेशी बाजारों के षड्यंत्र ... आदि योजनाओं एवं कानूनी मकडजाल में फंसे भारत को जागृत करने तथा नवयुवकों को इन कार्यों के लिए आगे लाने के कारण l

यदि भगत सिंह और राजीव दीक्षित और समय तक जीवित रहते तो परिवर्तन और रहस्यों कि परत और खुल सकती थी l

भारत इतना गरीब देश है कि 100000,0000000 (1 लाख करोड़) के रोज रोज नए नए घोटाले होते हैं.... ?
क्या गरीब देश भारत से साड़ी दुनिया के लुटेरे व्यापार के नाम पर 20 लाख करोड़ रूपये प्रतिवर्ष ले जा सकते हैं ?
विदेशी बेंकों में जमा धन कितना हो सकता है ? एक अनुमान के तहत 280 लाख करोड़ कहा जाता है ?
पर यह सिर्फ SWISS बेंकों के कुछ बेंकों कि ही report है ... समस्त बेंकों कि नहीं, इसके अलावा दुनिया भर के और भी देशों में काला धन जमा करके रखा हुआ है ?

भारत के युवकों, अपनी संस्कृति को पहचानो, जिसमे शास्त्र और शस्त्र दोनों कि शिक्षा दी जाती थी l आज तुम्हारे पास न शास्त्र हैं न शस्त्र हैं .. क्यों ?? क्या कारण हो सकते हैं ??
भारत गरीब नहीं है ... भारत सोने कि चिड़िया था ... है ... और सदैव रहेगा l तुम्हें तुम्हारे नेता, पत्रकार और प्रशासक झूठ पढ़ाते रहे हैं l
वो इतिहास पढ़ा है तुमने जो नेहरु के प्रधानमंत्री निवास में 75 दिनों तक अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय और अंग्रेजों के निर्देशों पर बनाया गया l
जिसमे प्राचीन शिव मन्दिर तेजो महालय को ताज महल, ध्रुव स्तम्भ को क़ुतुब मीनार और शिव मन्दिर को जामा मस्जिद ही पढ़ाया जाता है l

सारे यूरोप - अमेरिका के लिए लूट का केंद्र बने भारत को गुलामी कि जंजीरों से मुक्त करवाने हेतु आगे आओ l
उठो.... सत्य और धर्म की संस्थापना कि हुंकार तो भरो एक बार, विश्व के सभी देशों कि बोद्धिक संपदा बने भारत l

अन्ना बना मुल्ला



अब समझ आ रहा है बुढाऊ की जवानी क्यों हिचकोले ले रही है ,गाँधी बनना चाह रहा है। विशेष बिरयानी इसे भी पसंद है।

Friday, July 19, 2013

पंढरपुर में प्रसिद्ध विठ्ठल-रखुमाई मंदिर

महाराष्ट्र के पंढरपुर में प्रसिद्ध विठ्ठल-रखुमाई मंदिर में रखरखाव, जमीन और पैसे के हेरफेर का मामला सामने आया है. "हिन्दू विधिज्ञ परिषद" ने पूरे मामले का भंडाफोड करते हुए मुख्यमंत्री चव्हाण को चेतावनी दी है कि वे निष्पक्ष जाँचकर्ताओं और ऑडिटर से इस मंदिर का पिछले दस साल का लेखा-जोखा जाँच करवाएँ, अन्यथा वारकरी सम्प्रदाय के साथ मिलकर एक बड़ा आंदोलन चलाया जाएगा...

विभिन्न वारकरी संस्थाओं के साथ मुम्बई के प्रसिद्ध वकीलों ने RTI के माध्यम से सूचनाएं एकत्र की हैं, जिसके अनुसार अकाउंट्स और रसीदों की आवक-जावक में भारी गडबड़ी हैं. मंदिर के पुराने रिकार्ड के अनुसार भक्तों ने भगवान विठ्ठल को १२०० एकड़ जमीन दान की थी, इस जमीन का कोई हिसाब-किताब नहीं है कि इसका उपयोग कैसे हो रहा है, अथवा इसे बेचा गया या नहीं. अकाउंट्स किताबों के अनुसार सन २००० से २०१० के बीच 1,43,000/- रूपए का गौधन मंदिर से बेचा गया है उसका भी कोई हिसाब "लाभ" खाते में नहीं है. दान व प्रसाद काउंटर की रसीदों में बीच के कई नंबर गायब हैं...

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र सरकार ने १९८५ में इस मंदिर का अधिग्रहण कर लिया था. तब से काँग्रेस सरकार ही मंदिर में ट्रस्टियों, प्रशासकों और कर्मचारियों की नियुक्ति करती आ रही है... और पिछले पन्द्रह साल से तो काँग्रेस-NCP का एकछत्र साम्राज्य है ही...

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आज पवित्र एकादशी है, उम्मीद करें कि "विधर्मियों" के हाथों से विठ्ठल मंदिर की मुक्ति का अभियान जोर पकड़ेगा...

शुभ संध्या मित्रों..

Thursday, July 18, 2013

मोदी ने अपने भाषणों में जो अहम सवाल उठाये

मोदी ने अपने भाषणों में जो अहम सवाल उठाये वो यह है....

* शिक्षा क्‍यों बन गई है मनी मेकिंग मशीन?

* आजादी के वक्‍त डॉलर और रुपये की कीमत बराबर थी। फिर आज डॉलर के सामने रुपये की कीमत 60 रुपये से ज्‍यादा क्‍यों?

* मालदीव और बांग्‍लादेश जैसे देशों की करंसी स्थिर है फिर भारत के अर्थशास्‍त्री पीएम रुपये को कमजोर होता क्‍यों देख रहे हैं?

* कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार ने 100 दिन में महंगाई कम करने का वादा किया था, उस वादे का क्‍या हुआ?

* कांग्रेस ने दशकों पहले गरीबी हटाओ का नारा दिया था तो फिर आज गरीबी क्‍यों नहीं हटी?

* 10 साल पहले भारत की दो यूनिवर्सिटी दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज में थीं, लेकिन आज सिर्फ एक क्‍यों?

* 10 साल पहले चीन की एक भी यूनिवर्सिटी दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटीज में नहीं थीं पर आज 32 हैं, ऐसा क्‍यों?

* महंगाई, बेरोजगारी की बात आते ही कांग्रेस सेक्‍युलरिज्‍म का बुर्का क्‍यों पहन लेती है?

* रेलवे स्‍टेशनों पर सड़ रहा अनाज शराब बनाने वालों को क्‍यों बेचा गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उस अनाज को गरीबों में बांटने का आदेश दिया था?

* रेलमंत्री पवन बंसल के खिलाफ सबूत होने के बाद भी सीबीआई ने उन्‍हें गवाह क्‍यों बनाया?

* कोलगेट में सीबीआई रिपोर्ट बदलवाने के पीछे कौन था, पीएमओ इस बारे में देश को सच क्‍यों नहीं बताते?

* भारतीय सैनिकों को सिर काट ले जाने के कुछ दिनों बाद ही पाकिस्‍तानी अधिकारियों को चिकन क्‍यों खिलाया गया?

* भारतीय मछुआरों की हत्‍या के बाद इटली के नौसैनिक क्‍यों वापस भेजे गये?

* महंगाई, बेरोजगारी जैसे सवालों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांध देश को जवाब क्‍यों नहीं देते हैं?

* सरदार सरोवर बांध की फाइल पर क्‍यों बैठे हैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, क्‍यों फाइलें आगे नहीं बढ़ती हैं?

* बिजली बनाने के लिये कोयले की जरूरत है तो क्‍यों उसे पूरा नहीं किया जा रहा है?

* यूपीए शासनकाल में हर फाइल को बढ़ाने में इतना समय क्‍यों लग रहा है?

* पाकिस्‍तान के साथ आंख में आंख डालकर बात क्‍यों नहीं करती है सरकार?

Tuesday, July 16, 2013

गाँधी 1942 में आटोग्राफ देने के 5 रूपये चार्ज लेता था

क्या आप जानते है की इन दोगले कांग्रेसियो के पितामह गाँधी जी 1942 में आटोग्राफ देने के 5 रूपये चार्ज लेते थे .. 

इसके पीछे गाँधीजी तर्क देते थे की जिस वस्तु को इन्सान पैसे खर्च करके हासिल करता है वो उसकी इज्जत करता है और वो पैसा गाँधी जी आश्रम के गौशाला पर खर्च करते थे |

लेकिन मोदी को सामने देखकर कांग्रेसियो की वही हालत हो गयी है जो किसी कुत्ते की हालत शेर के सामने पड़ने पर होती है ..इसलिए इन नीच कांग्रेसियो को अपना ही इतिहास नही याद है ... अगर मोदी जी के सभा से कुछ पैसे इक्कठा करके उत्तराखंड के पीडितो को दिया जाए तो इसमें क्या बुरा है ?


http://www.dadinani.com/capture-memories/read-contributions/major-events-pre-1950/39-mahatma-gandhis-last-autograph-by-r-c-mody


In January 1948, I was living in Alwar, now a part of Rajasthan, which at that time was a quasi-independent Princely State – the Maharaja had signed the Instrument of Accession, but not the Instrument of Merger. Alwar had more than its normal share of the post-Partition riots and unrest, which, for months, had disrupted rail travel to and from Delhi, a distance of about one hundred miles. I needed to go to Delhi urgently, but had to wait until I could get a seat in a Government vehicle going there – the only safe way to travel. I managed to get to Delhi on January 28th.
In Delhi, I attended Mahatma Gandhi’s prayer meeting at the Birla House on the evening of January 29th. I left there my autograph book there for the Mahatma's signature, for which I had to pay his prescribed fee was Rs. 5 for his Harijan Fund. 

Monday, July 15, 2013

कुछ बयान

1. अकबर ओवैसी ने 100 करोड़ हिन्दुओ को 15मिनट मैं काटने की बात की थी क्योकि उसकी वजह से आंध्र प्रदेश मैं कांग्रेस की सरकार चल रही है।

2. आजम खान ने भारत माता को डायन कहा थाक्योंकि उसकी पार्टी सपा की वजह से केंद्र मैं कांग्रेस की सरकार चल रही है।

3. असौद्दीन ओवैसी ने पूना मैं कहा था की पाकिस्तान पर हमला किया तो देश के मुस्लिम इस देश का साथ नहीं देंगे।

4. गिलानी रोज देश तोड़ने की बात करता है और अमरनाथ की यात्रा का विरोध करता है।

5. बुखारी खुद की ISI का एजेंट बोल कर खुले आम दिल्ली पुलिस को चेतावनी देता है और पुलिस कुछ नहीं करती।

और बहुत बड़ी लिस्ट है जो बाते मीडिया, सेकुलरो और कांग्रेस्सियो को रास्त्र विरोधी नहीं लगती पर एक रास्त्र वादी के अपने आप को हिन्दू कहना रास्त्र विरोधी हो जाता है और ये सारे लोग चील कव्वों की तरह टूट पड़ते है।..

आज के समय में रामायण

अगर आज के समय में रामायण होती तो कैसी खबरे
आती??
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● राजा दशरथ ने की श्रवण कुमार की हत्या , FIR दर्ज
● अयोध्या के राजपाठ को लेके राजा-रानी में विवाद बढ़ा |
● केवट द्वारा चरण धुलवाने से मायावती हुई नाराज़ , कहा ये हैं
दलितों का अपमान |
● तड़का वध व सूर्पनखा की नाक कटाई के विरोध में
महिला आयोग का अयोध्या में प्रदर्शन जारी |
● राजा दशरथ की अंतिम शव यात्रा में स्वयं दशरथ भी मौजूद :
इंडिया टीवी
● बाली की हत्या की शक की सुई श्रीराम पर ठहरी , सप्ताह भर
में सीबीआई पेश करेगी रिपोर्ट |
● 6 माह तक रावण को अपनी काख में दबा के घुमने के जुर्म में
बाली के खिलाफ इन्द्रजीत ने मुकदमा दायर किया |
● सोने का हिरन मारने पर श्रीराम जी को वन विभाग से
मिली चेतावनी |
● श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता के अपहरण का मामला दर्ज
कराया ||
● बिना वीसा हनुमान लंका गए , श्रीलंका सरकार ने जताई
आपति |
● समुद्र पर असंवेधानिक सेतु बनाने पर नल व नील से सीबीआई
करेगी पूछताछ |
● अशोक वाटिका उजाड़ने , युवराज अक्ष को मारने व लंका में
आग लगाने के जुर्म में रावण ने वीर हनुमान को बंदी बनाया |
● हिमालय वासियों ने पर्वत श्रृंखला से एक पर्वत के
चोरी हो जाने की रिपोर्ट दर्ज कराई |
● अंगद ने लंका के राजा का उन्ही के निवास स्थान में जाके
किया अपमान |
● विभीषण पर देशद्रोह का आरोप , हुए तड़ीपार |
● श्रीराम ने किया रावण का फर्जी एनकाउंटर , हारत व
श्रीलंका सरकार की दूरियां बढ़ी |
● सीता से अग्नि परीक्षा मांगने पर महिला आयोग ने श्रीराम
की कड़े शब्दों में निंदा की |
● क्या पुष्पक विमान को अयोध्या में उतरने
की अनुमति देगी सरकार ??
● सुप्रीम कोर्ट ने जनता की मांग पर श्रीराम व
उनकी सेना को सभी आरोपों से मुक्त किया |
** इति श्री रामायण कथा समाप्त ***

Saturday, July 13, 2013

६५ साल में आपने "घास खोदी" है

१) यदि अभी भी "मनरेगा" की जरूरत पड़ रही है....
२) यदि अभी भी "खाद्य सुरक्षा" की जरूरत पड़ रही है...
३) यदि अभी भी "कैश ट्रांसफर" की जरूरत पड़ रही है...

इसका मतलब - १) आर्थिक नीतियाँ फेल हैं... (रोजगार नहीं पैदा किए)
इसका मतलब २) खेती, अनाज वितरण और गरीबी में फेल हैं... (गरीब बनाकर रखा)
इसका मतलब - ३) भ्रष्टाचार रोकने में बुरी तरह फेल हुए हैं... (हर स्तर पर कमीशनखोरी को बढ़ाया)...

तो स्वाभाविक है कि ६५ साल में आपने या तो "घास खोदी" है, या फिर "लूटा" है....
इन ६५ साल में से ५५ साल तो एक ही पार्टी (Sorry एक ही परिवार) ने "राज" किया..

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भगवान के लिए "भारत निर्माण" का नमक मत मलो हमारे ज़ख्मों पर...

Thursday, July 11, 2013

क्योकि हम सेकुलर है

9 साल 322 छोटे बड़े आतंकी और नक्सली हमले ,
1 हज़ार से ज्यादा घुसपैठ की घटनाये , 310
भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त , 400 से
ज्यादा सीआरपीएस के जवान वीर
गति को प्राप्त ,
190 कर्तव्यनिष्ठ पुलिसकर्मी वीर
गति को प्राप्त ,
1722 आम नागरिकों की हत्या (आधिकारिक
मौत) ,
खरबों रुँपये की सरकारी संपत्ति बर्बाद , केवल
2
आतंकियों को फांसी ( कोई
भरोसा नहीं की फांसी दी भी या नहीं ) ,
322 छोटे
बड़े आतंकी और नक्सली हमले हर बार
प्रधानमंत्री का एक ही ब्यान :- ऐसे हमले
बर्दाश
नहीं किये जायेगे ||
हो रहा भारत निर्माण ... भारत के इस
निर्माण पर
हक़ है मेरा ||
गर्व से कहो हम इन्डियन है |
गर्व से कहो हम सेकुलर देश है |
गर्व से कहो हम सेकुलर है |
गर्व से कहो हम नहीं सुधरेगे ...............
अब जागने के लिए नहीं कहूंगा .... अब सिर्फ
यही कहूँगा मर जाओ सूअर के
बच्चो कंही गन्दी नाली में जाकर ,
क्योकि मरना तो है
ही तुमको आने वाले दिनों में अपने अमन पसंद
भाइयों के हाथो |
हम तो लड़ कर मरेगे क्योकि हम सेकुलर नहीं है

हिन्दू चुप

श्री राम का जन्म स्थान तम्बू में- हिन्दू चुप.
कैलाश मानसरोवर जाने के लिए चीन की अनुमति - हिन्दू चुप.
कश्मीर में अलग संविधान और अलग झंडा - हिन्दू चुप.
सभी कश्मीरी पंडितो को अपनी जन्मभूमि से खदेड़ दिया गया - हिन्दू चुप.
लाखो बोडो को आसाम में अपनि जन्मभूमि से खदेड़ दिया गया - हिन्दू चुप.
वंदे मातरम का बार बार अपमान - हिन्दू चुप.
संस्कृत की उपेक्षा और उर्दू का मान सम्मान - हिन्दू चुप.
जगह जगह कत्तल खाने - हिन्दू चुप.
आदिवासियों का ईसाईयो द्वारा धर्मपरिवर्तन - हिन्दू चुप.
पोप का भारत आकर सम्पूर्ण भारत काईसाईकरण करने का भाषण - हिन्दू चुप.
तेजोमहालय शिव मंदिर को ताजमहल कब्र बनाया गया- हिन्दू चुप.
ध्रुव स्तंभ का क़ुतुब मीनार के रूप में जाना गया- हिन्दू चुप.
सनातन भारत को इंडिया के नाम से जाना जाए - हिन्दू चुप.
राम सेतू तोडने कि साजीश - हिन्दू चुप.
जाकीर नालायक, ओवैसी और मुल्लो द्वारा हिन्दू देवी देवताओं पर कीचड़
उछालना - हिन्दू चुप.
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कश्मीर की जेल में रहस्मय निधन, पोस्ट-मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.
भाई राजीव दीक्षित जी का रहस्मय निधन, पोस्ट-मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.
लाल बहादुर शास्त्री जी का रहस्मय निधन, पोस्ट-मोर्टेम की जरुरत नहीं - हिन्दू चुप.
सुभाष चंद्र बोस आजादी के बाद १९८५ तक चुप कर गुमनाम जिंदगी जीते रहे - हिन्दू चुप.
चंद्रगुप्त सीरियल का रहस्यमय ढंग से बंद होना - हिन्दू चुप.
शिवाजी सीरियल का रहस्यमय ढंग से बंद होना - हिन्दू चुप.
पोर्न स्टार सनी लिओन की फिल्म काखुले आम प्रदर्शन - हिन्दू चुप.
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भविष्य में :-
कश्मीर का विभाजन - ?
आसाम का विभाजन - ?
केरल का विभाजन - ?
हिन्दू चुप.

सुभाषचंद बोष की भविष्यवाणी

नेता जी सुभाषचंद बोष की भविष्यवाणी की सटीकटा और देश के वर्तमान हालात ....!!!

आज नेताजी प्रकाशन मंदिर शाहदरा दिल्ली से प्रकाशित हीरालाल दीक्षित की बर्ष 1969 में लिखी पुस्तक '''कांग्रेस की शव परीक्षा और नेता जी के आने की प्रतीक्षा '' पढ़ने का अवसर मिला ... जिसमे कांग्रेस के काले , भ्रष्ट और देशद्रोही तथा गद्दार किस्म के कारनामो को पढ़ का मन और दिल दहल उठा की ये कांग्रेसी आजादी के बाद से ही अपने स्वार्थो को पूरा करने के लिये किस तरह देश को खोखला करने के साथ नुकसान पहुंचाते रहे है ................ खैर वाकी चर्चा फिर कभी आप सब के लिये प्रस्तुत है इस पुस्तक के पेज संख्या 31 पर नेता जी द्वारा भारत के बारे में की गयी भविष्यवाणी जो उन्होंने काबुल से जाते समय उत्तमचंद मल्होत्रा के प्रश्नों के जवाब में कही थी ....!

'' भारतवर्ष की एक नहीं हजारों वीमारियाँ है | इस देश की तान ही नहीं टूट चुकी है तानी भी टूट चुकी है | यदि भारत में प्रजातंत्र ,जम्हूरियत या डेमोक्रेसी कायम हुई तो दो -दो रुपये में एक -एक वोट विकेगा और व्हिस्की एक एक पैग पर अफसर विकेगा | देश का राष्ट्रीय चरित्र इतना गिर जाएगा की दफ्तर में काम करने बाला बाबू भी एक दूसरे से रिश्बत लिये बिना एक दूसरे का काम नहीं करेगा ...सुभाष ने बहुत गंभीर मुद्रा में कहा था "" India needs a man like Aattaruk Camal Pasa for 20 years'' अर्थात भारत को अतार्तुक कमाल पाशा जैसे डिक्टेटर की बीस वर्ष के लिये आवयश्कता है ''''


सुभाष चंद बोष का उपरोक्त कथन भारत के वर्तमान माहौल में कितना सार्थक और सटीक है ..इस पर आप सभी के विचार सादर आमंत्रित |

ये आतंकवादी क्या होता हैं

# चिडिकांत अंकल ये आतंकवादी क्या होता हैं ?
=> बेटा जो लोग दाढ़ी बढ़ा के टोपी पहन के और बन्दुक लेके अपने अल्लाह के पैगाम व शांतिप्रिय धर्म का प्रचार प्रसार करने निकलते हैं उन्हें आतंकवादी कहते हैं |

# अच्छा अंकल ये आतंकवादी हमला क्या होता हैं ?
=> बेटा जब शांतिप्रिय धर्म के लोग अमन व चैन फैलाने के उद्देश्य व जनसँख्या नियंत्रण प्रणाली के अंतर्गत विपक्षी धर्म वालो पर शांतिप्रिय तरीके से धमाके करते हैं तो उसे आतंकवादी हमला कहते हैं |

# इस हमले के बाद क्या होता हैं ?
=> बेटा इस हमले के बाद सभी नेता लोग आपस में मीटिंग करते हैं , प्रधानमंत्री से लेके राष्ट्रपति तक सभी एक बंद कमरे में बैठ कर घंटो चर्चा करते हैं और फिर बाहर आके कहते हैं की इस तरह के हमले बर्दाश्त नहीं किये जायेंगे और कड़ी निंदा करते हैं |

# अच्छा अंकल , ऐसे हमलो के लिए कौन जिम्मेदार होता हैं ?
=> बेटा ज्यादातर तो ऐसे हमलो के लिए आरएसएस , भगवा आतंकवाद व बीजेपी ही जिम्मेदार होती हैं , लेकिन आजकल ऐसे हमलो के लिए मोदी जी को भी जिम्मेदार माना जा रहा हैं |

# अगर कोई आतंकवादी पकड़ा जाता हैं तो क्या होता हैं ?
=> बेटा हमारा देश शांतिप्रिय देश हैं , हम आतंकवादियों की भी आवभगत करते हैं , उन्हें बिरयानी खिलाते व उनकी जरूरतों का पूरा ख्याल रखते हैं एक दामाद की तरह |

# अच्छा अंकल , लास्ट सवाल | ये हमले कैसे रुकेंगे ?
=>
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Sorry , लास्ट सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं |

Wednesday, July 10, 2013

भारतीय सेना पर मनमोहन की भ्रष्ट सरकार का काला साया



भारतीय सेना को मनमोहन सरकार का करारा झटका ...................!!!

देश की जनता के बाद अब भारतीय सेना पर मनमोहन की भ्रष्ट सरकार का काला साया

डिफेंस मिनिस्ट्री ने आर्म्ड फोर्सेज से फ्यूल कॉस्ट में 20 से 40 फीसदी तक की कमी लाने के लिए कहा है। क्रूड की कीमत में तेज उछाल से सरकार का बजट कैलकुलेशन गड़बड़ा गया है। मिनिस्ट्री के फरमान से सैनिक कमांडर और एनालिस्ट सभी हैरान और देश की रक्षा तैयारियों को लेकर चिंतित हैं।

पायलट के मन में सवाल उठ रहा है कि क्या उन्हें हाफ टैंक के साथ फाइटर प्लेन उड़ाने होंगे। आर्मी दुर्गम इलाकों में सेना और साजोसामान की आवाजाही पर खर्च घटाने के उपाय ढूंढने में लगी है। उसको सोचना पड़ रहा है कि क्या 15000 किलोमीटर के इंटरनैशनल बॉर्डर के किनारे कैंप और बैरक को रोशन करने के लिए डीजल में कटौती करनी होगी।

आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, डिफेंस मिनिस्ट्री के तहत आने वाले सप्लाई ऐंड ट्रांसपोर्ट डायरेक्टोरेट ने हाल ही में डिफेंस कमांड्स को लेटर लिखा था। इसमें कहा गया है कि आर्म्ड फोर्सेज की जरूरतों के हिसाब से फ्यूल एलोकेशन में इस फिस्कल इयर 20 से 40 फीसदी की कटौती की जाएगी|

सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज के डायरेक्टर जनरल रिटायर्ड एयर कमोडोर जसजीत सिंह फ्यूल सप्लाई में कटौती पर सवाल करते हैं। सिंह कहते हैं, 'प्राइवेट एयरलाइंस अपने रूट को बेहतर तरीके से मैनेज करके फ्यूल बचा सकती हैं। लेकिन कॉम्बैट प्लेन को आधी भरी टंकी के साथ नहीं उड़ाया जा सकता। मुझे नहीं पता कि किस आधार पर फ्यूल कंजम्पशन घटाने का निर्देश दिया गया है। मुझे नहीं पता कि ट्रेनिंग में एटीएफ कैसे बचाया जाएगा।

मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर आतंकवाद का पुष्टीकरण

मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर आतंकवाद का पुष्टीकरण

गुजरात पुलिस और केन्द्रीय खुफिया ब्यूरो (इंटेलिजेंस ब्यूरो) के संयुक्त ऑपरेशन में १५ जून २००४ को मारी गई मुस्लिम युवती इशरत जहां के मामले में सीबीआई चार्जशीट के साथ ही कांग्रेस समेत छद्म सेकुलरों ने ऐसा स्यापा शुरू किया है मानो इस देश में अब कोई मुसलमान सुरक्षित नहीं है। यह पहला मामला नहीं जब मुस्लिम मतों के लालची लोगों द्वारा ऐसा किया जा रहा है। आतंकवाद को मजहबी सहानुभूति से जोड़कर 1980 के दशक में कश्मीरी मुसलमानों को भड़काया गया था। तीन दशक बाद अब फिर आतंकी गतिविधि का मजहबीकरण कर वोट बैंक की राजनीति करने वाले आतंक विरोधी अभियान की कमर तोड़ने पर आमादा हैं।
1980 के दशक में मकबूल बट्ट की फांसी की सजा को कश्मीर में मुस्लिम युवकों के साथ अत्याचार के रूप में प्रचारित किया गया। परिणामस्वरूप जिस कश्मीर घाटी को पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई पूरे ४ दशकों तक शेख अब्दुल्ला से सौदा करके भी हिंदुस्तान के विरोध में खड़ा नहीं कर पाई थी वही कश्मीर ५ साल के भीतर पाकिस्तान परस्ती में पागलपन की हद तक अलगाववादी हो गया। इक्कीसवीं सदी में जब कश्मीर का अलगाववाद हिंदुस्तानी जवानों की शहादत और पराक्रम के बल पर आखिरी सांसें गिनने को मजबूर हुआ है तब उसी मकबूल बट्ट की कब्र के बगल में दफन अफजल गुरु की फांसी पर शेख अब्दुल्ला का पोता उमर अब्दुल्ला खुद अलगाववादी बीन बजा रहा है।
सेकुलरवाद की नल्ली-निहारी
1980 के दशक में इंदिरा गांधी के राजनीतिक नौसिखिया बेटे राजीव गांधी ने शेख अब्दुल्ला के बेटे फारुख अब्दुल्ला पर विश्वास करने की गलती की थी। इक्कीसवीं सदी में वही गलती राजीव गांधी का बेटा राहुल गांधी उमर अब्दुल्ला की दोस्ती पर अंधविश्वास करके कर रहा है। राजीव गांधी ने शाहबानो के मसले पर मुल्लों की दाढ़ी में मक्खन लगाने का जो तुष्टीकरण किया उससे सेकुलरवाद को मुल्लावाद ने नल्ली-निहारी समझ कर चूस लिया। आज इशरत पर कांग्रेसी जिस तरह की बयानबाजी कर रहे हैं उससे देश का सुरक्षातंत्र ऐसे दौर में पहुंच जाएगा जिसमें आतंकी सक्रियता पर ‘सोर्स रिपोर्ट’ देने में आईबी के आला अफसर कांप जाया करेंगे। आतंकियों पर गोली चलाने से सुरक्षा बल संकोच करने लगेंगे। पहले हम समझ लें कि मकबूल बट्ट पर हमारा तंत्र कहां चूका था। अफजल गुरु पर पूरा तंत्र कैसे घनचक्कर बना? और इशरत जहां के चक्कर में तुष्टीकरण किसे पुष्ट कर रहा है? 1964 में जब पं. जवाहरलाल नेहरू ने आखिरी दिनों में शेख अब्दुल्ला को रिहा किया तब शेख ने पाकिस्तान की तत्कालीन हुकूमत को विश्वास दिलाया था कि जब पाकिस्तानी सेना कश्मीर में घुसेगी तो कश्मीरी पाकिस्तानियों का साथ देंगे। रिसर्च एंड एनालायसिस विंग (रॉ) तब तक नहीं स्थापित हुई थी, तब आईबी पर ही देशी और विदेशी यूनिट से समग्र खुफिया तंत्र का भार था।
जेकेएनएलएफ था पहला आतंकी संगठन
आईबी की विदेशी इकाई कालांतर में रॉ बनी। रॉ के पूर्ववर्ती अफसरों ने शेख अब्दुल्ला और पाकिस्तानी शासकों के संपर्क के प्रति हिंदुस्तान सरकार को एलर्ट दिया था। इसलिए जब पाकिस्तानी सेना कश्मीर की ओर बढ़ी तब हिंदुस्तानी सेना ने पंजाब से हमला कर लाहौर और रावलपिंडी को हमले की जद में ले लिया। पाकिस्तान को समझौते के लिए ताशकंद भागना पड़ा था। तब आईएसआई ने पहली बार जम्मू एंड कश्मीर नेशनल लिबरेशन फ्रंट (जेकेएनएलएफ) नामक पहला आतंकी संगठन बनाया। जेकेएनएलएफ के आतंक की कमान मकबूल बट्ट को थमाई गई। 14 सितंबर 1966 को मकबूल बट्ट ने अपने दो साथियों औरंगजेब तथा काला खान के साथ कश्मीरी पुलिस पर पहला आतंकी हमला किया। इस हमले में लोकल क्राइम ब्रांच सीआईडी के इंस्पेक्टर अमर चंद की मौत हो गई। जवाबी फायरिंग में औरंगजेब मारा गया। मकबूल बट्ट और काला खान गिरफ्तार किए गए। अदालत ने मकबूल बट्ट को मृत्युदंड की सजा मुकर्रर की। 1968 में जेल अधिकारियों की मिलीभगत से श्रीनगर जेल में लंबी सुरंग खोदकर मकबूल बट्ट दो अन्य कैदियों के साथ पाकिस्तान भाग गया। पाकिस्तान में मकबूल बट्ट कुछ अरसे के लिए गिरफ्तार किया गया, पर जब 1970-71 में बांग्लादेश के मुद्दे पर हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा तो मकबूल बट्ट के षड्यंत्र में इंडियन एयरलाइंस का एक विमान अपहृत कर लिया। विमान और उसके यात्रियों को बंधक बना कर लाहौर ले जाया गया। अंतर्राष्ट्रीय दबाव में पाकिस्तान ने जम्मू एंड कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के तत्कालीन प्रमुख मकबूल बट्ट को गिरफ्तार किया। 1974 में जब उसे रिहा किया गया तो २ साल बाद 1976 में बट्ट सीमा पार कर हिंदुस्तान में घुस आया। कुछ दिनों बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। बट्ट को मृत्युदंड की सजा पहले ही सुनाई गई थी सो नए मामलों के बाद वह मृत्युदंड की सजा का स्वाभाविक पात्र था।
...और आतंकी के नाम शहादत दिवस
कुछ मानवाधिकार संगठनों की मदद से 1980 के दशक में मकबूल बट्ट ने राष्ट्रपति के पास क्षमादान की याचिका दायर कर रखी थी। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह मकबूल बट्ट की याचिका पर कोई फैसला करते उसी दौरान 3 फरवरी 1984 को ब्रिटेन के हिंदुस्तानी उच्चायुक्त रवींद्र म्हात्रे का अपहरण हो गया। म्हात्रे का अपहरण जेकेएलएफ ने किया था और बदले में मकबूल बट्ट की रिहाई मांगी गई। इंदिरा गांधी की सरकार ने आतंकियों की मांग को ठुकरा दिया। 6 फरवरी 1984 को रवींद्र म्हात्रे का आतंकियों ने कत्ल कर दिया। नाराज इंदिरा सरकार ने एक सप्ताह के भीतर मकबूल बट्ट की क्षमादान याचिका पर विधिक प्रक्रिया पूरी कर ११ फरवरी 1984 को उसे तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया। इंदिरा गांधी के रहते किसी मुल्ले की हिम्मत नहीं थी कि मकबूल बट्ट के समर्थन में चूं भी करता, पर उनकी हत्या के बाद जब नौसिखियों के हाथ में सत्ता आई तो जेकेएलएफ ने मकबूल बट्ट की लाश मांगनी शुरू कर दी। नेशनल कांफ्रेंस के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला जेकेएलएफ की इस मांग का समर्थन करने लगे। हर 11 फरवरी को जेकेएलएफ खुल्लमखुल्ला मकबूल बट्ट का शहादत दिवस मनाने लगा।
बूटों तले कुचले थे सैकड़ों बट्ट
5 साल के भीतर राजीव गांधी के मुस्लिम तुष्टीकरण ने कश्मीर के मुल्लावाद को इस कदर आतिशी किया कि 1989-90 में जेकेएलएफ ने कश्मीर की घाटी में हजारों हिंदुओं का नरसंहार कर दिया और लाखों कश्मीरी पंडितों को निर्वासित कर दिया। आज भी लगभग ५ लाख कश्मीरी पंडित इस देश में निर्वासित जीवन जी रहे हैं जिसकी सुध सोनिया-मनमोहन-राहुल से लेने की सोचना ही व्यर्थ अब ‘जहां हुए बलिदान मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है’ का नारा लगाने वाली भाजपा भी लेने को तैयार नहीं। कश्मीर में 1990 के बाद लोकतंत्र तभी लौटा जब हिंदुस्तानी सुरक्षा बलों ने अपने बूटों तले सैकड़ों मकबूल बट्टों को कुचला, दर्जनों अफजल गुरुओं को दफन किया और तमाम इशरत जहां जैसी आतंकियों की ललनाओं को दोजख का रास्ता दिखलाया। 1994 में जेकेएलएफ हाथ जोड़कर बोला कि अब हम मकबूल बट्ट की शहादत का स्यापा नहीं करेंगे। तब जाकर 1997 में फिर जम्मू एवं कश्मीर में चुनाव और लोकतंत्र लौटा था। नई सहस्राब्दि का जब देश इंतजार कर रहा था ठीक उसी समय कश्मीर में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकी उमर शेख और मौलाना अजहर मसूद को रिहा कराने के लिए इस्लामी आतंकियों ने आईसी-184 नामक इंडियन एयरलाइंस के विमान का अपहरण कर लिया। विमान कंधार ले जाया गया। यात्रियों की रिहाई के बदले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने मौलाना मसूद अजहर और उमर शेख को तालिबान के हवाले कर दिया। मौलाना अजहर मसूद पाकिस्तान गया और आईएसआई की मदद से उसने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद खड़ा किया। इसी जैश-ए-मोहम्मद ने 13 दिसंबर 2001 को हिंदुस्तान की संसद पर हमला किया। यदि सुरक्षाबल के जवानों ने अपना बलिदान देकर आतंकियों को संसद भवन के बाहरी हिस्से में ही ढेर न किया होता तो क्या होता इसका सिर्फ अनुमान ही लगाया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी सिर्फ वोट बैंक की राजनीति में २००५ से २०१३ तक राष्ट्रपति भवन और गृह मंत्रालय के बीच अफजल की क्षमायाचिका फाइल घूमती रही।
अब्दुल्ला के स्यापे से लौटा आतंकवाद
न्यायपालिका के शीर्षतम बिंदु सर्वोच्च न्यायालय और कार्यपालिका के सर्वोच्च शिखर राष्ट्रपति के निष्पक्ष फैसले के बाद अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया गया। इस सजा के बाद जिस अंदाज में कश्मीरी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्यापा किया उससे कश्मीर में आतंकवाद एक बार फिर लौट आया है। 1976 से 1984 तक पूरे 8 वर्षों तक यदि मकबूल बट्ट का मामला नहीं लटकाया गया होता तो कश्मीर में अलगाववाद शायद ही आतिशी रूप ले पाता। हजारों निर्दोष हिंदू कत्ल होने से बच जाते और लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने केसर की क्यारी नहीं खोनी पड़ती। अफजल गुरु के मामले को ८ साल लटका कर दिल्ली हाईकोर्ट में बमकांड का आमंत्रण दिया। उमर अब्दुल्ला की हरकत अभी और कितनी लाशें गिरवाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा। यदि सुरक्षाबलों ने 1990 से 1996 के बीच कश्मीरी आतंकवाद को निर्ममता से कुचला नहीं होता तो अब्दुल्ला के फारुख और उमर श्रीनगर में पैर रखने की हिम्मत भी नहीं बटोर पाते। पर आज अब्दुल्ला खानदान कठमुल्ला आतंकवाद के सुर में ताल मिला रहा है। कश्मीर के आतंकवाद को कुचलने के लिए अब्दुल्ला के रिश्तेदार राजेश पायलट ने कैसे रुपए बांटे थे और कितनी इशरतों को मौत की नींद सुलवाया उस पर मानवाधिकारवादी ‘थीसिस’ लिख सकते हैं।
इशरत की अम्मा से सवाल
अब बात कर ली जाए इशरत जहां की। इशरत के नाम सेकुलर कसरत करने वाले भी इस बात से इंकार नहीं करते कि उसके साथी प्रणेश पिल्लै उर्फ जावेद गुलाम शेख, अमजद अली राणा और जीशान जौहर लश्कर-ए-तोयबा के आतंकी थे। गुजरात पुलिस की एसआईटी, मजिस्ट्रेट जांच और सीबीआई जांच सभी ने पाया कि ये तीनों आतंकी मिशन पर थे। अल-कायदा के मैन्युअल से लेकर मामूली माफिया ऑपरेशन का जानकार भी बता देगा कि आतंकी दस्ते खूबसूरत और पढ़ी-लिखी लड़कियों को अपना कवर बनाते हैं। इशरत को लश्कर-ए-तोयबा से जुड़ा हुआ न केवल डेविड कोलमेन हेडली का शिकागो कोर्ट में दिया गया बयान साबित करता है बल्कि लश्कर-ए-तोयबा के मुखपत्र गजवा टाइम्स की 2004 की रिपोर्ट भी उसको लश्कर की शहीद घोषित करता है। संभव है कि एनकाउंटर फर्जी हो।
फर्जी एनकाउंटर की कानूनी और न्यायिक प्रक्रिया को न तो नरेंद्र मोदी रोक सकते हैं और न ही इंटेलिजेंस ब्यूरो के डाइरेक्टर आसिफ शेख। इस मुद्दे पर मजहबी सियासत बेतुकी है। यदि पुलिस किसी निर्दोष को मारती है तो भी बात समझ में आती। इशरत की अम्मा के पास भी इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि तीन कुख्यात आतंकियों के साथ उनकी बेटी अल्लामियां का कौन सा खैरात बांटने गई थी? यदि इशरत की फर्जी मुठभेड़ में मौत सांप्रदायिकता है तो 1980 से 1996 तक पंजाब में मारे गए हजारों संदिग्ध किन्तु कानूनन निर्दोष सिखों की मुठभेड़ में मौत को क्या कहा जाए? अकेले मुंबई में 1990 से 2006 तक हर साल औसतन 60 अभियुक्त एनकाउंटर में मारे गए जिसमें अधिकांश फर्जी थे। इन मौतों का जिम्मेदार कौन? कानून का राज होना चाहिए पर जब कानून के हाथ छोटे पड़ने लगे तो क्या निर्दोष नागरिकों की जान बचाने के लिए किए गए हर ऑपरेशन की पोस्टमार्टम संभव है? फिर सिर्पâ एक गुजरात को सांप्रदायिक करार देने के लिए आतंक का पुष्टीकरण क्यों?
अब राज्य सरकारें आईबी की खुफिया जानकारियों पर एक्शन लेने से कतराने लगी हैं। कल गया के बौद्ध मंदिर में हुए विस्फोट की वारदात इसका ताजा उदाहरण है। वर्ना क्या कारण हो सकता है कि इस कांड से पहले ही लश्कर-ए-तोयबा द्वारा वहां रेकी करने की खुफिया रिपोर्ट होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई? इस कांड से एक बात शीशे की तरह साफ हो गई है कि इशरत जहां जैसों पर स्यापा करनेवालों ने पूरे सुरक्षा तंत्र को पंगु बना दिया है। यही कारण है कि अब इन्फॉरमेशन देनेवाला इन्फॉरमेशन देने से कतरा रहा है तो एक्शन लेनेवाला एक्शन लेने से।

http://visfot.com/index.php/current-affairs/9592-muslim-terrorism-in-india-and-secular-1307.html

केजरीवाल का चक्रव्यूह

केजरीवाल का चक्रव्यूह :

नवम्बर में होने वाले दिल्ली चुनाव से पहले,

हम अन्ना को माहोल बनाने के लिए अनशन पे बैठाएंगे, शुरू में हम अनशन में नहीं शामिल होंगे लेकिन अन्ना की सेहत खराब होने पर अरविन्द खुद एक जननायक की तरह उनका अनशन तुडवाएंगे और जन्लोक्पाल को लाने की प्रतिज्ञा करते हुए अन्ना की लायी भीड़ को वोट में बदल देंगे,

माहौल बनाने के लिए कांग्रेस से सेटिंग हो चुकी है, वो दिग्गी, सिब्बल जैसो से हमारे खिलाफ बयानबाजी करवाएंगे, जिस से लोगो में सन्देश जाएगा की मेन विपक्ष हम ही हैं, और फिर मेडियाई सांठगाँठ के दम पे हम आम जनता को ये सन्देश पहुंचा पायेंगे की बीजेपी दिल्ली में है ही नहीं..

इसी क्रम में अगस्त में हमने अमिताभ अजय देवगन की आने वाली फिल्म को भी हथियार बनाने की ठान ली है, जिसका निर्माण सरकार के इशारे पे हमने मिलकर ही कराया है..

अब तुम टाइमिंग देखना संघियों कैसे तुम्हारे नीचे से जमीन निकलती है, क्यूंकि आम जनता हमेशा कटती थी कटती है कटती रहेगी.

कृपया अंदरूनी प्लानिंग को संघियों के साथ शेयर न करैं. जय अरविन्द.....

Tuesday, July 9, 2013

RAW अधिकारी ने कुछ ऐसे खुलासे किये

इंडिया न्युज पर एक बहस के दौरान भारत सरकार के पूर्व RAW अधिकारी आर एस एन सिहँ ने कुछ ऐसे खुलासे किये जो शायद आप को हिला कर रख देंगे।

1) उनका कहना है की आई बी को किसी भी तरह की आतंकी घटना के बारे पूर्व सुचना सरकार को नहीं देनी चाहिए। क्योकि आज कांग्रेस सरकार पाकिस्तान और आतंकवादियों से ब्लैक मेल होकर सभी सुरक्छा अगेंसियो को आपस में लड़ा कर कमजोर कर रही है।

2) उन्होंने बताया की बोधगया में हुए आतंकी हमलो पर उन्हें कोई आश्चर्य नहीं हुआ है। उन्होंने पूछा की नितीश कुमार पाकिस्तान क्यों गय थे? क्या वो वहा पर वोट बैंक के कारन गए थे? अभी २६/११ के खून के छीटे भी नहीं धुले है और यह नितीश पाकिस्तान का दौरा कर रहे है?

3) उन्होंने बताया की पूरा उत्तर बिहार इंडियन मुजाहिद्दीन और लस्कर ए तोएबा का गढ़ बन गया है और जब से नितीश कुमार पाकिस्तान गए है तबसे यह और भी ज्यादा बढ़ गया है।

4) भारत का दुश्मन नं: 1 हाफिज सैईद काग्रेस को ब्लैकमेल कर रहा है। क्योकि काग्रेसियोँ द्वारा गरीब जनता के लुटे गए पैसे को हवाला के जरिए विदेशोँ मे पहुचाने मे हाफिज सैईद इनकी मदद करता है। जिसकी ऐवज मे वो भारत मे अपना आँतकी नेटवर्क बे रैकट चला रहा है। आज के बोद्धगया धमाके इसका ताजा सबुत हैँ जिसमे आई बी के अलर्ट के बावजूद भी नितीश सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीँ हुई । इस बात की पुष्टि हाफिज सैईद से जुडे किसी भी मामले मे कांग्रेस सरकार का रुख को देख कर हो जाता है ।

5) उन्होंने बताया की CPI(M) और मावोवादियो में कोई फर्क नहीं है। मैंने इन लोगो को दिन में झंडा और रात में बन्दुक उठाते हुए देखा है। CPIM संसदीय रास्ता है, CPIML उप संसदीय रास्ता है और जो माओवादी है वो गन रहा रास्ता है। बिहार में ही जिहादी और लाल आतंकवाद का मिलाप हुआ है।

6) केन्द्र सरकार द्वारा इशरत जहान एन्काउंटर मामले मे आई बी की भुमिका पर सदेँह करने को श्री सिहं ने बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बताया साथ ही इसको देश की आंतरिक सुरक्षा पर खतरा बताते हुए खुफिया अधिकारियोँ का मनोबल तोडने वाला कदम भी बताया।

http://www.youtube.com/watch?v=vKyLHMS6nTU

युपी के ब्राम्हण समाज जरा सावधान




मित्रों पिछली बार के लोकसभा चुनावों में इस औरत ने हिंदुओं को तोड़ने के लिए नारा दिया था .... तिलक तराजू और तलवार.. इनको मारो जुते चार, तिलक = पंडित, तराजु = वैश्य, तलवार = राजपूत ... ये औरत इन चारों को चार- चार जुते मारने को कह रही थी....

आप भूल सकते हैं लेकिन मैं नहीं भूल सकता इस औरत की इस नीचता को जो इसने हिंदुओं के बीच में नफरत फ़ैलाने की ये घटिया हरकत की थी, और अब दोबारा ये औरत उसी राह पर चल पड़ी है, तथा एक बार फिर ये युपी में हिंदुओं को बांटने के लिए अपनी पार्टी का झंडा लेकर निकल पड़ी है..

कृपया युपी के ब्राम्हण समाज जरा सावधान हो जाए, मायावती- मोदी की तरफ ब्राम्हण समाज का वोट जाते देख पगलागयी है, और ब्राम्हण समाज को अपने फंदे में फ़साने की कोशिश कर रही है, याद रखो ये वही मायावती है जिसने युपी में 'हरिजन एक्ट' लगाकर पचास हजार से ज्यादा ब्राम्हणस् को झूठे मुकदमों में फसाया था, जिससे हरिजन वा ब्राम्हणस् के बीच नफरत की खाई खोदने में ये औरत कुछ हद तक सफल भी हुई थी.. और वो बेचारे आज भी कोर्ट के चक्कर लगा रहे हैं, इसको पता है कि ब्राम्हण मायावती से खार खाए बैठे हैं, जिसकी वजह से मायावती ब्राम्हण समाज को लुभाने में लगी है...

भूल जाओ इस समय कि आप पंडित हो, बनिया हो, जाट हो, मिश्रा हो, शर्मा हो, तिवारी हो, यादव हो, सिंह हो, सिख हो, वर्मा हो आदि.. इस समय आप केवल एक हिंदू हो, और यदि देश बचाना है तो इन चीजों से ऊपर आकार अपने वोट की चोट को सिर्फ एक जगह मारो,

याद रखो हिंदुओं भले ही आप के वोट जात और क्षेत्रवाद के नाम पर बंटे हुए हैं, पर आपके दुश्मन के वोट की चोट हमेशा एक ही जगह पड़ती है, और वो 'जगह' है घोर हिंदूविरोधी कांग्रेस/ सपा/ बसपा पार्टी...

भले ही हम आपस में बंटे हुए हैं, पर इन घोर हिंदू विरोधी पार्टिओं के लिए हम सभी सिर्फ एक हिन्दू हैं, और जिनका लक्ष्य है हिंदुओं का सफाया...

गौर से देख लो युपी के हिंदुओं इस औरत का चेरहा जल्दी ही शायद ये आपके शहर में भी हो सकती है अपनी इसी चाल ले साथ कि हिंदुओं को तोडो और राज करो...

याद रखिये मित्रों युपी में चाहें कांग्रेस हो सपा हो या इसकी बसपा हो, ये तीनों पार्टियाँ आजतक जब भी युपी की सत्ता में आई हैं, हमेशा हिंदुओं को तोड़ कर इन पार्टिओं ने सत्ता पायी है.. और इसी प्रयास में एक बार फिर ये औरत लग गयी है..

शेयर करें/ कापी पेस्ट करें, जय हिंद, जय भारत, वंदेमातरम.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना क्यों?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना क्यों?

जब संघ की स्थापना हुई,उस समय अपने हिंदू समाज की स्थिति ऐसी थी की जो उठता था वही हिंदू समाज पर आक्रमण करता था और यह दृश्य बना हुआ था की जब कभी भी कोई आक्रमण होगा तो हिंदू पिटेगा, हिंदू मरेगा,हिंदू लूटेगा।यह एक परम्परा बन गयी थी।इसलिए हिंदू यानि दब्बू,हिंदू यानि कायर,हिंदू यानि गौ जैसा बड़ा ही शांत रहने वाला प्राणी।इसका तुम अपमान करो तो वह प्रतिकार नहीं करता, इसको मारो तो चुप-चाप मार खाता है।लेकिन इस प्रकार का आत्मविश्वासशुन् ­य शक्तिशुन्य समाज इस दुनिया में ससम्मान रह नहीं सकता।इसलिए अपने संघ के संस्थापक परमपूजनीय डॉ. हेडगेवार जी ने जब देखा की हिंदू समाज पर चारों तरफ से आक्रमण हो रहे है और हिंदू समाज इस देश का राष्ट्रीय समाज होतेहुए भी चुप-चाप सारे अपमानो को सहन कर रहा है,सारे आक्रमणों को झेल रहा है,प्रतिकार नहीं करता तो उन्हें लगा की यह तो ठीक नहीं है।इसलिए उन्होंने प्रतिज्ञा की कि मैं इस हिंदू समाज को बलसंपन,सामर्थ्यसम्पन बनाकर दुनिया में उसे एक अजेय शक्ति के रूप में खड़ा करूँगा।इस हिंदू समाज को संगठित करूँगा और प्रत्येक व्यक्ति में राष्ट्र के प्रति देशभक्ति का भाव जगे,इसलिए शक्ति पूजनके दिन विजयादशमी के दिन सन १९२५ में नागपुर में उन्होंने संघ कार्य की नीव रखी।

दलित समर्थकों में कोई हलचल नहीं

जब गोमती पार्क में बुद्ध की प्रतिमा पर चढ़कर कुछ "शांतिदूत" उत्पात मचा रहे थे, तब भी अम्बेडकरवादी बौद्ध चुपचाप बैठे रहे... बोधगया में भी "मूलनिवासी" (Sorry) इंडियन मुजाहिदीन ने धमाके कर दिए, फिलहाल अम्बेडकरवाद कहीं दुबका हुआ बैठा है... 

और अब यह खबर आई है मुम्बई और इसके आसपास के उपनगरों में मिशनरी संस्थाएं चुन-चुनकर बौद्ध धर्मावलंबियों और दलितों को ईसाई बनाने में लगी हुई हैं... इधर भी कथित दलित समर्थकों में कोई हलचल नहीं है... 

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लगता है इनकी सारी ऊर्जा सिर्फ ब्राह्मणों को गाली देने में ही खर्च हो जाती है...

Monday, July 8, 2013

मैं खुजलीवाल हूँ

मैं भैङिया आया, का शोर हूँ, मैं अपनी करतूतों का जवाब नहीं देने वाला हरामखोर हूँ ।

मैं कीचड़-टट्टी हाथ में लेकर घूमने वाला राजनीतिक मेहतर हूँ, मैं अफजल गूरू का हमदर्द और भूखारी का गिलास धोने वाला वेटर हूँ ॥

मैं मीडिया ''मेड" पोलिटिकल जानी लीवर हूँ, मैं सस्ते फूहङ आरोपों का बजबजाता हुआ सिवर हूँ ।

मैं कांग्रेस की दो टागों के बिच लटकती तीसरी टांग हूँ , मैं जनलोकपाल ठर्रा हूँ, अनशनबाजी की अफीम हूँ और मीडिया पर चढ़ी भांग हूँ ।

मैं नक्सलियों की आँख का तारा हूँ, मैं माऔवादियो का बहुत प्यारा हूँ, मैं काश्मीरी आतंकवादियों का सहारा हूँ, मैं हिजबूल और हुर्रियत का दूलारा हूँ ।

मैं बिजली चोरी सिखाने वाला बिजली चोर हूँ, मैं "सीआईए" और "आईएसआई" की भारतविरोधी ऊम्मीदो की डोर हूँ ।
मैं दंगा-फसाद और हूङदंग हूँ, हड़ताल हूँ, मैं भाजपा के खिलाफ कांग्रेसी बचाव हूँ ।
मैं कई टोपियां बदलने वाला "टोपीबाज" नटवरलाला हूँ, मैं कोर्पोरेट दुनिया का ब्लैकमेलर हूँ, कोर्पोरेट सेठो का दलाल हूँ ।

मैं कोयला चोर जिन्दोलो के कलेजे का "लाल" हूँ , मैं जिन्दलो की दरियादिली और ऊनके 'दान' से मालामाल हूँ ।

मैं बिल्डरों की दौलत पर मंडराने वाला लालची भूत हूँ, मैं खुद ही चोर, खुद दी दरोगा, खुद ही अदालत, खुद ही सबूत हूँ ।

मैं लोकतंत्र की लाश के इन्तिजार में बैठा "डोम" हूँ, मैं देश जलाने के लिए हो रहा अमेरिकी "होम" हूँ ।

मैं झूठ की मशीन हूँ, फरेब का जनरेटर हूँ, मैं जनभावनाऔं का ब्लैक मार्केटियर और हौलसेल ट्रेलर हूँ । मैं कसाब की ऊम्मीदों के पेङ की "मर्सी अपील" डाल हूँ, मैं अमेरिकियोँ की आँख का इंडिया "बाल" हूँ ।

मैं देश की खाज-खुजली हूँ, घटिया हथकंडों वाली बैशर्म चाल हूँ, मैं इस देश का भयानक "गूप्तरोग" हूँ, मैं खुजलीवाल हूँ, मैं खुजलीवाल हूँ,,,,,,,!!


मुद्रा का अवमूल्यन को रोकने के लिए आम जन ये कार्य कर सकते है







भारत सरकार विदेशी लोगो को जो भी भुगतान करती है वो डॉलर के रूप में करती है। क्योंकि डॉलर टायर करेंसी का काम करता है। टायर करेंसी का मतलब है सर्वाधिक प्रचलित मुद्रा यानी डॉलर। अगर हमें तीसरे देश जैसे की सऊदी अरब को कोई भुगतान करना है तो पहले अमरेका से डॉलर खरीदेंगे तब सऊदी अरब को भुगतान करेंगे। जब हम डॉलर खरीदते है तो डॉलर हमारी मुद्रा के मुकाबले महंगा होता है । मांग और आपूर्ति का नियम लागू होता है.। और हमारे रूपये की डॉलर के मुकाबले कीमत गिर जाती है।

मुद्रा अवमूल्यन रोकने के लिए सरकार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बढाने की बात करती है जो सरासर गलत कदम है । क्योंकि जो विदेशी कम्पनी हमारे देश में मुद्रा लाएगी वो उसके बदले में २-३ साल बाद दुगना -तिगुना मुनाफा डॉलर की शक्ल में वापिस लेकर जाती है। तो फिर रिज़र्व बैंक को उनका भुगतान करने के लिए अमेरिका से डॉलर खरीदना पड़ता है और हमारी मुद्रा अवमूल्यन की दरार बढती जाती है। अमेरिका इस काम में भी दोहरा खेल खेलता है , अरब देशो को तेल बेच कर जो डॉलर भुगतान में मिलता है उसे अमेरिका सस्ते दाम में खरीदता है, और भारत जैसे देशो को जिनका आयात ज्यादा है उनको महंगा डॉलर बेचता है। इस तरह से आधुनिक गुलामी का ये हाईटेक तरीका है ।

मुद्रा का अवमूल्यन को रोकने के लिए आम जन ये कार्य कर सकते है .......

१ . हमें ज्यादा से ज्यादा स्वदेशी उत्पादों को प्रयोग करना चाहिए। ..... जिससे हमारे देश का पैसा लाभांश के रूप में विदेशी निवशको को देश के बाहर ना जाए ।

२. हमें स्वदेशी उत्पादों को प्रयोग के साथ विदेश मे बने वस्तुयों का बहिष्कार करना चाहिए। ... जिससे हमें आयत कम करना पड़े ... क्योंकि आयात करने के लिए हमें विदेशी मुद्रा खरीदनी पड़ती है।

३. शेयर बाज़ार/ कोमोडिटी ट्रेडिंग में पैसा नहीं लगाना चाहिए । .... क्योकि विदेशी निवेशक योजनाबद्ध तरीके से हमारे देश से अरबों रुपया विदेशो में ले जातेहै। ... और उनको भुगतान बैंकों को डॉलर खरीद कर देना होता है और ।

४. क्रिकेट में सट्टा नहीं लगाना लगाना चाहिए । क्योकि सट्टे में आमजन लोग पैसा हारते है और अंतररास्ट्रीय माफिया पैसा जीतता है। और वो पैसा ये लोग भारत में आतंकी संगठनो को भुगतान कर देते है और बदले इनके विदेशी आतंकी आकाओं से विदेशी की मुद्रा के रूप में लेलेते है ,,,, जिससे हवाला का झंझट बच जाता है ये भी हाईटेक तरीका है ।

५. ठंडा मतलब कोकाकोला पेप्सी कोल्ड ड्रिंक पीने से बचना चाहिए .... हम अपनी अंगुल्लियो पर नहीं गिन सकते उतना पैसा रोज विदेशो में जा रहा है। जिससे सबसे ज्यादा हमारी मुद्रा का अवमूल्यन होता है ।

६. घरेलु उत्पादन को ज्यादा से ज्यादा भढावा देना चाहिए । जैसे पशुपालन , जैविक खेती, बासमती चावल, कपडे बनाना, मोबाईल , टीवी बनाना, आदि जिससे हमारे देश का निर्यात बढे और उसके बदले हमें विदेशी मुद्रा मिले। महगाई भी ना बढे। और आयात भी ना करना पड़े। आम के आम और घुटलियो के ट्रिपल दाम ।

७. कम से कम विदेश यात्रा करनी चाहिए । विदेश जाने के लिए हमें डॉलर खरीदना पड़ता है जिससे हमारा रुपया गिरता है।

८. हमें अपने देश में ही पढाई करनी चाहिए । क्योकि पढाई के नाम पर करोडो रुपया हर साल विदेश में चला जाता है। जबकि वो लोग पढ़ने के लिए हमारे यहाँ आते है. हमारे देश में पढ़े डॉक्टरो, इंजीनियरों की दुनिया में सबसे ज्यादा मांग है।

Sunday, July 7, 2013

गाँधी का पाखंड और तानाशाही

गाँधी का पाखंड और तानाशाही

"सादा जीवन उच्च विचार" का दम भरने वाले मूर्खात्मा गाँधी वास्तव में पाखंड और तानाशाही की मिसाल थे. उनके पाखंड के एक नहीं अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं. कभी गाय को पवित्र मानने वाले गाँधी ने किसी मूर्ख आदमी के कहने पर दूध एकदम छोड़ दिया था और जिंदगी भर दूध न पीने का संकल्प किया था. लेकिन जब इसके बिना काम न चला तो गाय या भैंस की जगह बकरी का दूध पीना शुरू कर दिया. यह पाखंड नहीं तो क्या है? अगर दूध ही पीना था तो अत्यंत गुणकारी गोदुग्ध पीना चाहिए था.
इसी तरह वे गरीबी में रहने का पाखंड करते थे. वे गरीबों की तरह रेल में तीसरी श्रेणी में यात्रा करते थे. लेकिन उनके लिए उनके चेले पूरा डिब्बे पर कब्ज़ा कर लेते थे. इस गुंडागर्दी का गाँधी विरोध नहीं करते थे और यह मान लेते थे कि उनके लिए जनता ने खुद डिब्बा खाली छोड़ दिया है. वे बकरी का दूध पीते थे, इसलिए हर जगह बकरी उनके साथ ही जाती थी. वे इस बात की चिंता नहीं करते थे कि इस पर कितना खर्च होगा. सरोजिनी नायडू ने एक बार स्पष्ट स्वीकार किया था कि गाँधी को गरीब बनाये रखने में हमें बहुत धन खर्च करना पड़ता है.
स्वभाव से गाँधी अधिनायकवादी थे. अपनी बात किसी भी प्रकार से सबसे मनवा लेते थे. उनके इस तानाशाही स्वभाव को देखकर ही एक बार किसी विदेशी विद्वान ने कहा था कि यदि इस आदमी के हाथ में कभी सत्ता आई, तो यह इतिहास का सबसे नृशंस और निकृष्ट तानाशाह सिद्ध होगा. गाँधी की इस प्रवृति का स्वाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को बार-बार चखना पड़ता था. हर आन्दोलन को वे चरम पर पहुँचने के बाद भी उद्देश्य पूरा होने से पहले ही वापस ले लेते थे. इसी कारण कांग्रेस द्वारा चलाये गए सारे आन्दोलन बुरी तरह असफल रहे.
एक बार कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारी बहुमत से जीत गए और गाँधी के उम्मीदवार प. सीतारामैय्या बुरी तरह हार गए. गाँधी इस हार को नहीं पचा सके. उन्होंने इसे व्यक्तिगत हार माना और नेताजी के प्रति असहयोग का रवैय्या अपना लिया. उनके चमचे कई नेताओं जैसे नेहरु, आजाद आदि ने भी ऐसा ही किया. मजबूर होकर नेताजी को अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा और वे कांग्रेस को भी छोड़ गए. गाँधी की तानाशाही इस घटना से सबके सामने नंगी हो गयी.
गाँधी की इस मूर्खता का क्या परिणाम हुआ इसे हम आगे देखेंगे.


गाँधी की अहिंसा ओर सत्यता भारत के इतहास का सबसे बड़ा झूठ है...अंग्रजों ने इस महा झूठ को पाला पोसा ..इसकी आड़ में लाखों कत्ल किए..भरपूर हिंसा की...आज भी गो माँस के हज़ारों कारखाने चल रहें हैं..क्या किया गाँधी / नेहरू ने इनको बंद करवाने के लिए ??.

यह हमारे देश के लिए बड़े शर्म की बात है, की देश एक ऐसे आदमी को राष्ट्रपिता का सम्मान दे रहा है, जो इस लायक बिल्कुल भी नही है | मेरे ख्याल से गाँधी को तो राष्ट्रशर्म कहना चाहिए,

देश की आज़ादी के लिए आख़िर श्री मोहनदास करमचंद गाँधी जी का ऐसा कितना बड़ा योगदान है की ...नेताजी सुभाषचंद्र बोस, शहीदे आज़म भगत सिंह, अमर शाहिद अशफ़ाक उल्ला ख़ान, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर "आज़ाद" , उधम सिंह, राजगुरु, सुखदेव, ला,बॉल पाल, दादाभाई नौरोजी और ऐसे बड़े-2 नाम ..... इन सब नामो को "एकसाथ मिला कर भी" उतनी ख़बरे नही बनती जितनी अकेले महात्मा गाँधी जी और नेहरू जी के नामो से बन जाते है ?? .... क्या "देश के स्वतंत्रता संग्राम" नाम की फिल्म के हीरो गाँधी नेहरू और ये बाकी सारे नाम "एक्सट्रा" कलाकार ?? ध्यान रहे की मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की किताब "इंडिया विन्स फ्रीडम" के कुछ पेज इसलिए प्रकाशित नही किए गये थे क्योकि शायद कथित तौर पर उनकी गाँधी जी या नेहरू जी से असहमति थी...... आख़िर नमक बना कर क़ानून तोड़ने के अलावा गाँधी जी की कौन सी बड़ी उपलब्धि गिनाने लायक है ?? आख़िर जिस शख्श ने "देश की गुलामी के समय मे भी" अपनी जिंदगी के 21 साल रंगभेदी दक्षिण अफ्रीका मे आराम से गुज़ारे हो उस शख़्श को सोची समझी कपाट नीति के चलते महिमा मंडित करना क्या सही था ?? क्या कोई गाँधी समर्थक बता पाएगा ?

अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए। गाँधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गाँधी जी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं, किन्तु गाँधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों को आतंकवादी कहा जाता है।
 भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी। उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता।
 मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गाँधी जी ने इस हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया
1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वरूप गाँधी जी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र- विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए अहितकारी घोषित किया
 कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया
 लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
14-15 जून, 1947को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
 मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया
जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्����� करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।
 पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया।
 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे दी गयी।
.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया
द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया, जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है.
 क्या ५००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़? विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी...मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५ टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस समय गाँधी बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा....फिर पुलिस ने मजबूर हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया.... और वो हिंदू--- गाँधी मरता है तो मरने दो ---- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे.
 सन् 1938 में सुभाष चन्द्र बोस बोस कांग्रेस के अध्यक्ष हुए। अध्यक्ष पद के लिए गांधी जी ने उन्हें चुना था और कांग्रेस का यह रवैया था कि जिसे गांधी जी चुन लेते थे वह अध्यक्ष बन ही जाता था क्योंकि हमने सुना है कि जो भी अध्यक्ष बनता था वह वास्तव में 'डमी' होता था, असली अध्यक्ष तो स्वयं गांधी जी होते थे और चुने गए अध्यक्ष को उनके ही निर्देशानुसार कार्य करना पड़ता था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों की कठिनायों को मद्देनजर रखते हुए सुभाष चन्द्र बोस चाहते थे कि स्वतन्त्रता संग्राम को अधिक तीव्र गति से चलाया जाए किन्तु गांधी जी को उनके इस विचार से सहमत नहीं थे। परिणामस्वरूप बोस और गांधी के बीच मतभेद पैदा हो गया और गांधी जी ने उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाने के लिए कमर कस लिया।
गांधी जी के विरोध के बावजूद भी कांग्रेस के सन् 1939 के चुनाव में सुभाष चन्द्र बोस फिर से चुन कर आ गए। चुनाव में गांधी जी समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को 1377 मत मिले जबकि सुभाष चन्द्र बोस को 1580। गांधी जी ने इसे पट्टाभि सीतारमैया की हार न मान कर अपनी हार माना।
गांधी जी तथा उनके सहयोगियों के व्यवहार से दुःखी होकर अन्ततः सुभाष चन्द्र बोस ने 29 अप्रैल, 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
इस प्रतिक्रियात्मक लेख का उद्देश्य ऐतिहासिक घटनाक्रमों का विश्लेषण करते हुए गांधीजी को उनके संघर्षों के लिए योग्य सम्मान देने के साथ -साथ दूसरे पक्ष पर दृष्टि डालना है जिसकी अनभिज्ञता मे हम कई बार अन्य क्रांतिकारियों के योगदान को या तो उपेक्षित कर जाते हैं अथवा उनका श्रेय किसी और को दे बैठते हैं।
जहां तक गांधी जी के सरदार भगत सिंह की फांसी के विषय पर रुख का प्रश्न है यह विषय इतिहास मे निश्चित रूप से मतभेद रखता है, कुछ इतिहासकार मानते हैं कि गांधीजी ने अपनी ओर से भगत सिंह व साथियों को बचाने के लिए पूर्ण प्रयास किया किन्तु कुछ का विचार इससे पूर्णतः विपरीत है। इस विषय को इतिहास मे खँगालने के लिए हमे गांधी-इरविन समझौते से ही शुरुआत नहीं करनी चाहिए जैसा कि कुछ लोग करते हैं बल्कि कुछ पहले की घटनाओं तक पहुंचना आवश्यक है। गांधी जी ने भगत सिंह को बचाने के लिए लॉर्ड इरविन से बातचीत की इसके प्रमाण हैं, किन्तु गांधी जी द्वारा भगत सिंह व अन्य क्रांतिकारियों को आतंकवादी व पथभ्रमित कहना भी छिपा नहीं है। गांधीजी के सबसे करीबी नेहरू अँग्रेजी भाषा व सभ्यता में अधिक श्रद्धा रखने के कारण इन क्रांतिकारियों को फ़ासिस्ट (फासीवादी) कहते थे। भगत सिंह की फांसी का आदेश होने से पूर्व ही गांधीजी ने भगत सिंह का पक्ष लिया हो ऐसा बिलकुल नहीं है। बाद मे गांधी जी ने इरविन के साथ जो पत्राचार किया उसके पीछे गांधी जी की पूर्ण निष्ठा थी ऐसा स्वीकार करने के लिए किन्हीं अंग्रेज़ अधिकारियों की टिपपड़ी मात्र आधार नहीं हो सकती क्योंकि अपमानपूर्ण बाते बोलना अंग्रेजों की आदत थी। अवज्ञा आंदोलन के समय अङ्ग्रेजी स्टेट्समेन अखबार ने कहा था जब तक डोमिनियन स्टेट्स नहीं मिल जाता गांधी समुद्र का पानी उबाल सकते हैं
 यह स्वाभाविक है कि जो गांधी जी भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को उग्रवादी आतंकवादी व भटका हुआ कहते थे उनकी उन क्रांतिकारियों के प्रति विशेष श्रद्धा नहीं थी। THE TRAIL OF BHAGAT SINGH पुस्तक के लेखक ए जी नूरानी का विस्तृत विश्लेषण के बाद निष्कर्ष है गांधी जी के भगत सिंह की सजा माफी के पक्ष में किए गए प्रयास आधे दिल से थे। गांधीजी ने इरविन से भगत सिंह की सजा कम किए जाने की वकालत की अथवा माफी की, यह भी स्पष्ट नहीं है किन्तु इतना तो स्पष्ट है कि गांधीजी ने जो भी चिट्ठियाँ लिखी वे तब लिखीं जब पूरे देश मे भगत सिंह के पक्ष में क्रान्ति की लहर दौड़ चुकी थी तथा गांधी एवं कॉंग्रेस पर, चूंकि अंग्रेजों से समझौतों की चाभी इन्हीं के हाथ मे रहती थी, भगत सिंह की फांसी माफी को लेकर भारी दबाब था। अतः उन कथित उग्रवादियों के लिए प्रयास तभी शुरू हुए। ब्रिटिश गवर्नमेंट की confidential intelligence bureau रिपोर्ट (1917-1936) भगत सिंह की उस समय की लोकप्रियता के विषय मे कहती है कि उस समय भगत सिंह ने गांधीजी को मुख्य राजनैतिक किरदार की भूमिका से बाहर कर दिया था। इससे भगत सिंह के लिए देश मे उमड़े समर्थन एवं काँग्रेस व गांधी जी पर, जिन्होंने इरविन समझौता उसी समय किया था, जनता के भारी दबाब का अनुमान लगाया जा सकता है। इतिहासकारों के अपने अपने विवेचन हैं किन्तु मेरा सीधा प्रश्न यह है कि यदि गांधीजी जनता की भावनाओं के उबाल की कद्र करते हुए वास्तव मे पूर्ण हृदय से भगत सिंह को बचाना चाहते थे तो ठीक 18 दिन पहले इरविन समझौता क्यों कर लिया? परिस्थितियो का हवाला देने वालों को बताना चाहिए कि वे कौन सी परिस्थियाँ थीं जो करोड़ों लोगों कि भावनाओं से अधिक कीमती थीं? गांधी-इरविन समझौता क्या देश को स्वतन्त्रता दे रहा था जिसकी कोई भी कीमत जायज थी? बात-बात पर अनशन करके अपनी बात मनवाने वाले गांधीजी को इस विषय पर अनशन की आवश्यकता क्यों नहीं लगी? जब भगत सिंह जेल मे आमरण अनशन कर रहे थे तब गांधीजी उनसे एक बार भी मिलने भी नहीं जा सके?? इन सच्चाईयों को नकारा जाना वैसे ही कठिन है जैसे कि खिलाफत आंदोलन का समर्थन करना, सरदार पटेल के सामने बुरी तरह हारने के बाद भी नेहरू की जिद पर नेहरू प्रधानमंत्री बनाने का पक्ष लेना, विभाजन को स्वीकार करना आदि-आदि भूलों को नकारा जाना!! हम सभी जानते हैं कि गांधीजी के आगे नेहरू का कोई कद न देश मे था और न कॉंग्रेस मे ही, जहां उन्हें तगड़ी हार मिली थी किन्तु गांधी जी द्वारा नेहरू को बिगड़े बच्चे कि तरह शह देना निश्चित रूप से घातक था उसके पीछे अब कारण ढूंढने से बहुत लाभ नहीं होने वाला! गांधी जी एक महान व्यक्तित्व अवश्य थे किन्तु महान व्यक्ति की महानताओं के पर्दे में महान भूलों को नहीं छुपाया जाना चाहिए क्योंकि इतिहास का उद्देश्य महानताओं से पूर्व भूलों को समझने व उनसे सीखने का है क्योंकि इतिहास स्वयं को पुनः दोहराता है।
यहाँ मोहनदास करमचंद्र गाँधी को महिमा मंडित करने का विरोध किया जा रहा है.देश को आजादी सिर्फ उनकी बदौलत मिली यह कांग्रेसी इतिहास है.इस झूठ के चक्कर में वह स्वातंत्रवीर भुला दिए गए जिन्होंने देश को आजाद करने के लिए हँसते हँसते फांसी का फंदा चूम लिया.अंग्रेजो से वार्ता कर महलों में जेल बिताने वाले छद्दम नायक बन गए.
 आजादी का इतिहास कांग्रेसी भाटों के अलावा भी अन्य लोगों ने लिखा है.आप विद्वान हैं.जरूर अध्ययन किया होगा अगर नहीं किया तो बताएं मैं कुछ अंश पेश करूँ
गाँधी जी और दीगर स्वंत्रता संग्राम सेनानियों में यही अंतर था जो आज के सोनिया गाँधी ,गाँधी राहुल और दूसरे कांग्रेसी नेताओं में है.भले ही उन्हें बोलना तक न आये मंच में दूसरे का लिखा भाषण पढ़ें.संसद में मुंह तक न खुले देश के भाग्यविधाता यही माँ-बेटे की जोड़ी है
जिन लोगों ने देश की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व यहाँ तक कि प्राण तक न्यौछावर कर दिया, हम लोगों में अधिकतर लोग उनके विषय में, दुर्भाग्य से, बहुत कम जानते हैं। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस भी उन महान सच्चे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों में से एक हैं जिनके बलिदान का इस देश में सही आकलन नहीं हुआ। देखा जाए तो अपनी महान हस्तियों के विषय में न जानने या बहुत कम जानने के पीछे दोष हमारा नहीं बल्कि हमारी शिक्षा का है जिसने हमारे भीतर ऐसा संस्कार ही उत्पन्न नहीं होने दिया कि हम उनके विषय में जानने का कभी प्रयास करें। होश सम्भालने बाद से ही जो हमें "महात्मा गांधी की जय", "चाचा नेहरू जिन्दाबाद" जैसे नारे लगवाए गए हैं उनसे हमारे भीतर गहरे तक पैठ गया है कि देश को स्वतन्त्रता सिर्फ गांधी जी और नेहरू जी के कारण ही मिली। हमारे भीतर की इस भावना ने अन्य सच्चे स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों को उनकी अपेक्षा गौण बना कर रख दिया। हमारे समय में तो स्कूल की पाठ्य-पुस्तकों में यदा-कदा "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी...", "अमर शहीद भगत सिंह" जैसे पाठ होते भी थे किन्तु आज वह भी लुप्त हो गया है। ऐसी शिक्षा से कैसे जगेगी भावना अपने महान हस्तियों के बारे में जानने की?
कुछ वर्ष पूर्व जब अपने विराट योग शिविरों में स्वामी रामदेवजी ने यह प्रश्न पूछना शुरु किया कि हमको क्या अधिकार है कि हम, ‘‘दे दी तुने आज़ादी हमे बिना खड्ग बिना ढ़ाल’’ जैसे पूर्णतः असत्य गीतों को आलापकर हमारे वीरों के बलिदान का अपमान करें, तब इसे गांधी के विरुद्ध बात कहकर उनकी आलोचना की गई। पर क्या वर्तमान पीढ़ि को अधिकार नहीं हे कि वे इतिहास का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण समस्त उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर करें? क्या आज के दिन यह प्रश्न नहीं पुछा जाना चाहिये कि गीता का प्रतिदिन पाठ करने वाले हे महात्मा, अंधे धृतराष्ट्र के समान किस मोह में पड़कर तूने काँग्रेस अधिवेशन में लोकतान्त्रिक विधि से निर्वाचित सुभाषचन्द्र बोस को हटाकर अपने चमचे पट्टाभिसीतारामय्या को अध्यक्ष बनाया था? हम में से कम ही लोग इस ऐतिहासिक तथ्य से अवगत होंगे कि इसी विराट हृदय के योद्धा ने इस अन्याय के बाद भी मोहनदास करमचंद गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि दी। नेताजी का प्रशंसा की अतिशयोक्ति में कहा गया विशेषण आज ऐसा चिपक गया है कि हम गांधी के निर्णयों का विश्लेषण ही नहीं करना चाहते। ऐसा करने का नाम लेना भी मानों घोर अपराध है
पर 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के महत्वपूर्ण अध्याय का तो विश्लेषण करना ही होगा आधुनिक भारत के निर्विवाद रुप से सबसे सशक्त इतिहासकार आर सी मजुमदार ने इस पूरी घटना के बारे में स्पष्टता से लिखा है। अहिंसा, ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन के माध्यम से गांधी को भारत की स्वतंत्रता पूरा श्रेय देनेवाले इतिहास को रोज रोज पढ़नेवाले और ‘दे दी हमें . . .’ के तरानों को निर्लज्जता से दोहरानेवाले भारतवासी इस ऐतिहासिक सच्चाई को अवश्य पढ़े।
Majumdar, R.C., Three Phases of India’s Struggle for Freedom, Bombay, Bharatiya Vidya Bhavan, 1967, pp. 58-59. There is, however, no basis for the claim that the Civil Disobedience Movement directly led to independence. The campaigns of Gandhi … came to an ignoble end about fourteen years before India achieved independence…. During the First World War the Indian revolutionaries sought to take advantage of German help in the shape of war materials to free the country by armed revolt. But the attempt did not succeed. During the Second World War Subhas Bose followed the same method and created the INA. In spite of brilliant planning and initial success, the violent campaigns of Subhas Bose failed…. The Battles for India’s freedom were also being fought against Britain, though indirectly, by Hitler in Europe and Japan in Asia. None of these scored direct success, but few would deny that it was the cumulative effect of all the three that brought freedom to India. In particular, the revelations made by the INA trial, and the reaction it produced in India, made it quite plain to the British, already exhausted by the war, that they could no longer depend upon the loyalty of the sepoys for maintaining their authority in India. This had probably the greatest influence upon their final decision to quit India.
 अंतिम पंक्ति में वे स्पष्ट लिखते है कि आज़ाद हिन्द सेना के वीरों के उपर चलाये गये देशद्रोह के मुकदमें में उजागर तथ्यों व उनपर पूरे देश में उठी प्रतिक्रियाओं के कारण द्वितीय महायुद्ध में क्षीण हुए ब्रिटिश साम्राज्य का भारत में टिका रहना असम्भव था। वे भारत में उनकी सेना के सिपाहियों पर विश्वास नहीं कर सकते थे। इस बात का भारत छोड़ने के उनके अंतिम निर्णय पर सर्वाधिक प्रभाव था
नेताजी भारत छोड़कर विदेश जाने से पूर्व रत्नागिरी में स्थानबद्ध सावरकर से मिलने गये थे। सावरकर ने उन्हें द्वितीय महायुद्ध के समय विदेश में जाकर सेना गठित करने का सुझाव दिया। योरोप के क्रांतिकारियों से अपने सम्पर्क भी उन्होंने नेताजी को दिये। इन्हीं में से एक की सहायता से नेताजी अफगानिस्तान मार्ग से योरोप पहुँचे। सावरकर की योजना का दूसरा अंग था- ब्रिटिश सेना का हिन्दवीकरण अर्थात हिन्दूओं क सैनिकीकरण। कुछ वर्ष पूर्व अंडमान से सावरकर के नाम पट्ट को हटाने वाले देशद्रोही नेता सावरकर के जिस पत्र का हवाला देकर उन्हें अंग्रजों का एजण्ट कहते थे वही पत्र सावरकर की चाणक्य नीति का परिचायक है। सावरकर ने अंग्रेजों को इस बात के लिये अनुमति मांगी कि वे देशभर घूमघूम कर युवाओं को सेना में भरती होने का आवाहन करना चाहते है। महायुद्ध के लिये सेना की मांग के चलते सावरकर को स्थानबद्धता से मुक्त किया गया। सावरकर ने देशभर में सभायें कर हिन्दू युवाओं से सेना में भरती होने को कहा। एक अनुमान के अनुसार उनके आह्वान के प्रत्यूत्तर के रूप में 6 लाख से अधिक हिन्दू सेना में भरती हूए। एक साथी के शंका करने पर सावरकर ने उत्तर दिया कि 20 साल पूर्व जिस ब्रिटिश शासन ने हमारे शस्त्र छीने थे वह आज स्वयं हमें शस्त्र देने को तत्पर है। एक बार हमारे युवाओं को शस्त्रबद्ध हो जाने दों। समय आने पर वे तय करेंगे कि इसे किस दिशा में चलाना ह
योजना यह थी कि बाहर से सुभाष की आज़ाद हिन्द सेना चलो दिल्ली के अभियान को छेड़ेगी और जब उनसे लड़ने के लिये अंग्रेज भारतीय सेना के भेजेंगे तो यह सावरकरी युवक विद्रोह कर देंगे। हिरोशिमा व नागासाकी पर हुए अमानवीय आण्विक हमले के कारण जापान के असमय युद्धविराम कर देने से यह योजना इस रूप में पूण नही हो सकीं। किन्तु भारत के स्वतन्त्रता अधिनियम को ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में प्रस्तुत करते समय प्रधानमन्त्री क्लेमण्ट एटली द्वारा दिये कारण इस योजना की सफलता को स्पष्ट करते है। उन्होंने अपनी असमर्थता में सेना के विद्रोह की बात को पूर्ण स्पष्टता से कहा है। गांधी के ‘भारत छोड़ो’ अथवा सविनय आज्ञाभंग का उसमें कतई उल्लेख नहीं मिलता। आज़ाद हिन्द सेना का भय व भारतीय सेना पर अविश्वास के अलावा बाकि कारण केवल दिखावटी सिद्धान्त मात्र है
 कलकत्ता उच्च न्यायालय के पुर्व मुख्य न्यायाधीश पी वी चक्रवर्ति के 30 मार्च 1976 को लिखे पत्र से स्पष्ट है कि एटली ने उन्हें साफ शब्दों में भारत की स्वतन्त्रता के समय ब्रिटिश सोच के बारे में बताया था।

माननीय न्यायमुर्ति के अनुसार पूर्व प्रधानमन्त्री एटलीने दो बाते बिलकुल स्पष्टता से कही है – 1. गांधी का असहयोग व सविनय आज्ञाभंग का आंदोलन तो कबका समाप्त हो गया था। स्पष्ट प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि उसका प्रभाव ‘नहीं के बराबर’ था। 2. भारत छोड़ने की जल्दबाजी के मुख्य कारणों में सुभाष जी की आज़ाद हिन्द सेना और भारतीय शाही नौसेना में विद्रोह से उपजे अविश्वास को गिनाया..
 अब इन तथ्यों पर चर्चा करने का समय आ गया है। केवल स्वतन्त्रता के श्रेय की बात नहीं, भारत के खोये आत्मविश्वास को पुनः पाने की बात है। कब तक भीरु बनकर मार खाने के तराने गर्व से गाते रहेंगे? ? अरे क्या किसी ने भीक्षा में दी है ये स्वतन्त्रता?

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...