Saturday, May 25, 2013

ऐसे हुआ कश्मीर का विलय, ऐसे पड़ी समस्या की नींव

ऐसे हुआ कश्मीर का विलय, ऐसे पड़ी समस्या की नींव

अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई चल रही थी। अंग्रेजों ने बांटों और राज करो की नीति को आगे बढ़ाने के लिए 1931 में लंदन में गोलमेज सम्मेलन बुलाया। सम्मेलन में कांग्रेस और हिन्दू महासभा ने आजादी की मांग की, तो अंग्रेजों ने अंबेडकर, मुस्लिम लीग और भारतीय राजाओं से अपने समर्थन की आशा की।

कश्मीर के महाराजा हरि सिंह उस समय भारतीय राजाओं की संस्था चैम्बर ऑफ प्रिंसेज के अध्यक्ष के रूप में गांधी जी के स्वतंत्रता के पक्ष में खड़े हो गए। हरि सिंह के इस स्टैंड के कारण गोलमेज सम्मेलन से अंग्रेजों की बांटने की नीति सफल नहीं हुई। हां, अंग्रेज अब कश्मीर के महाराजा से गांधी के समर्थन का बदला लेने के लिए बड़ी सिद्दत से मौके की तलाश करने लगे।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर कश्मीर में अध्यापन कर रहे शेख अब्दुल्ला को ऐसा समय अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने का अच्छा अवसर नजर आया। शेख अब्दुल्ला ने ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ नामक संस्था का गठन कर साम्प्रदायिकता की राजनीति करने लगे। अब्दुल्ला ने कश्मीर में हिन्दी भाषा की शिक्षा और गौहत्या पर प्रतिबंध जैसे कई आन्दोलन चलाकर मुस्लिम युवकों में अपनी पैठ बढ़ाई। कुछ समय बाद कांग्रेस से नजदीकी बढ़ने पर अब्दुल्ला ने अपनी पार्टी का नाम ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ से बदलकर ‘नेशनल कांफ्रेंस’ कर दिया। फिर 1946 में शेख अब्दुल्ला ने महाराजा के खिलाफ कश्मीर छोड़ो आन्दोलन चलाया। गांधी जी ने इसका समर्थन नहीं किया, फिर भी जवाहर लाल नेहरू ने गांधी की बात न मानते हुए इस आंदोलन को समर्थन देने के लिए श्रीनगर जाने का कार्यक्रम बनाया। कश्मीर के महाराजा ने इससे झुब्ध होकर नेहरू को कोहाला पुल पर बंदी बना लिया। नेहरू ने इसे अपने अपमान के रूप के लिया और इस अपमान को आजीवन याद रखा। ऐसा कहा जाता है कि इसी अपमान का बदला लेने के लिए नेहरू पृथ्वी के स्वर्ग कश्मीर को आग में झोंक दिया।

15 अगस्त 1947 को मिली देश की स्वतंत्रता के बाद कुछेक देशी रियासतों को छोड़कर सभी रियासतों ने भारत या पाकिस्तान में अपना विलय कर लिया। खुद हिन्दू होते हुए मुस्लिम प्रजा और नेहरू से अपने खराब संबंधों के कारण महाराजा हरि सिंह बहुत चिंतित थे। इसीलिए उन्होंने 15 अगस्त, 1947 को दोनों देशों को यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। जिन्ना के अलावा भारत की ओर से रियासती मामलों के उस समय के राज्यमंत्री गोपाल स्वामी आयंगर और कांग्रेस के आचार्य कृपलानी ने भी महराजा को विलय के लिए समझाने का असफल प्रयास किया।

सरदार पटेल कश्मीर के भारत में विलय के लिए लगातार प्रयत्न कर रहे थे। महाराजा के भारत में विलय के लिए तैयार हो गए।

25 अक्टूबर को भारत के रियासती मंत्रालय के सचिव वी. पी. मेनन श्रीनगर पहुंचे। 26 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के महाराजा ने अपने राज्य का भारतीय गणराज्य में विलय कर दिया। विलय की सारी प्रक्रिया वैसे ही पूरी की गई थी जैसे देश की अन्य 529 रियासतों की पूरी हुई थी।

महाराजा चाहते थे कि भारतीय सेना जल्द से जल्द श्रीनगर पहुंचे, लेकिन भारतीय सेना अगले दिन 27 अक्टूबर को पहुंचकर, पाकिस्तानियों को श्रीनगर में ईद मनाने से रोक दिया। श्रीनगर तो भारत के पास ही रहा, लेकिन कश्मीर का एक बड़ा भाग मीरपुर, मुजफ्फराबाद, बाल्टिस्तान आदि पर पाकिस्तान ने नेहरू की गलतियों के कारण कब्जा कर लिया|

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