Tuesday, March 10, 2020

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं?
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यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है कि मोदी साहेब मीडिया को कंट्रोल कर रहे है । असल में मीडिया को कंट्रोल करना किसी भी सरकार के लिए मुमकिन नहीं है। चाहे सरकार कितनी भी ताकतवर क्यों न हो !!
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पिछले 200 वर्षो में दुनिया के किसी भी देश की कोई भी सरकार प्राइवेट मीडिया को नियंत्रित नहीं कर पायी है। सरकार के पास प्राइवेट मीडिया को कंट्रोल का एक मात्र तरीका यह है कि — वह देश के सारे प्राइवेट मीडिया को बंद कर दे, और सिर्फ सरकारी मीडिया को काम करने अनुमति दे।
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मीडिया पूरी तरह से धनिकों के नियंत्रण में ही रहता है। और धनिकों में भी यह उन धनिकों के नियंत्रण में रहता है जो हथियारों का निर्माण कर रहे है। भारत का मीडिया हथियार बनाने वाली अमेरिकी-ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिको के पूर्ण नियंत्रण में है, और वे ही भारतीय मीडिया के प्रायोजक है। जो नेता पेड मीडिया के प्रायोजकों के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम करते है उन्हें पेड मीडिया में कवरेज दिया जाता है, वर्ना नहीं दिया जाता। किन्तु लोकतंत्र का लिहाज रखने के लिए नागरिको को यह बुत्ता दिया जाता है कि नेता कंट्रोल कर रहा है !!
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चुनाव जीतने एवं छवि बनाए रखने के लिए सभी नेता पेड मीडिया के प्रायोजको का समर्थन चाहते है, अत: वे पेड मीडिया के प्रायोजकों से संपर्क करके कहते है कि, आप एक बार हमें मौका दो, और हम आपके एजेंडे को बेहद तेजी से आगे बढ़ाएंगे। इस तरह सभी पार्टियों के सभी नेताओं में पेड मीडिया का सपोर्ट लेने के लिए एक प्रकार का कम्पीटीशन रहता है। क्योंकि पेड मीडिया के पास भारत का सबसे बड़ा वोट बैंक है !!
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[ इस जवाब के खंड (1) में मैंने तर्क एवं कुछ तथ्यों के आधार पर बताया है कि यूपीए सरकार के समय भी मीडिया सरकार के वश में नहीं था, और मोदी सरकार का भी पेड मीडिया पर शून्य ( मतलब जीरो = 0 ) नियंत्रण है !! खंड (2) बताता है कि कैसे पेड मीडिया के प्रायोजको के सहयोग से मनमोहन सिंह जी एवं मोदी साहेब अपने प्रतिद्वंदियों को पछाड़ कर शीर्ष स्तर तक पहुंचे। ]
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खंड (1)
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क्यों प्राइवेट मीडिया को कोई भी सरकार नियंत्रित नहीं कर सकती
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व्यवसायिक रूप से पेड मीडिया घाटे का धंधा है। जैसे जैसे मीडिया समूह विस्तार करता है, इसका घाटा भी बढ़ता जाता है। जितनी बड़ी मीडिया कम्पनी उतना ज्यादा घाटा। जितनी छोटी मीडिया कम्पनी उतना कम घाटा। अब आपको यह अजीब लगेगा कि ऐसा कैसे हो सकता है। लेकिन सच यही है कि मीडिया व्यवसायिक रूप से घाटे में ही चलता है।
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यदि आप सहज बोध (Common Sense) से इस दिशा में अवलोकन करना शुरू करेंगे तो इसे आसानी से समझ सकते है कि पेड मीडिया कैसे घाटे का धंधा है। और यदि आप इसे धरातल पर घटित होते देखना चाहते है तो, यह मानते हुए कि आपके पास 100 से 500 करोड़ की पूँजी है, एक मॉस मीडिया कम्पनी शुरु करने का प्रोजेक्ट बनाए और वास्तविक आंकड़ो की गणना करें कि एक राष्ट्रिय स्तर का अख़बार / चैनल शुरू करने के लिए आपको कितना पैसा लगेगा और इससे मासिक / सालाना कितनी कमाई होगी।
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यदि आप प्रोजेक्ट बनाने के लिए गंभीरत से प्रयास करते है तो 1-2 महीने में आपको आपकी ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट यह बता देगी कि यह धंधा आपको किस दर से घाटा बनाकर देगा।
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उदाहरण के लिए इन्डियन एक्सप्रेस या टाइम्स ऑफ़ इण्डिया की एक प्रति छापने में सिर्फ कागज एवं प्रिंटिंग की लागत 16 से 20 रू आती है, लेकिन आपको हॉकर यह प्रति 3 रू में दे जाता है !! आप सोचते है कि, शेष पैसा विज्ञापनों से आता है। लेकिन जब आप विज्ञापनों का हिसाब लगायेंगे तो मालूम होगा कि विज्ञापनों से 25 से 30% के आस पास लागत ही वसूल होती है। तो बाकी पैसा वे कहाँ से ला रहे है ? ये पैसा मीडिया समूह 2 स्त्रोतों से लाते है :
वे अपने प्रायोजको से अनुदान लेते है
वे खबरे बेचते है
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ख़बरें बेचने से आशय है कि किसी अख़बार के फ्रंट पेज पर जितनी भी खबरें छपती है उन्हें छापने का पैसा लिया जाता है !! मतलब, यदि दैनिक भास्कर ने फ्रंट पेज पर खबर लगाई है कि “Yes bank डूब गया” तो इसे छापने का पैसा लिया जाता है !! यदि पैसा नहीं दिया गया तो वे इस खबर को इस तरह ड्राफ्ट करेंगे कि सरकार के वोट कट जायेंगे !! तो अख़बार में Yes bank के डूबने की खबर तो आएगी, लेकिन ड्राफ्टिंग कैसी होगी, इसके लिए पेमेंट करनी होती है !! और इसी तरह से वे पूरा अख़बार बेचते है !! प्रत्येक खबर के एवज में पैसे लिए जाते है। और ठीक इसी तरह से टीवी पर भी खबरें बिकती है।
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राजनैतिक खबरों को खरीदने वाले दो वर्ग है। एक वर्ग राजनैतिक पार्टियाँ, नेता, सरकार है, और दूसरा वर्ग वे धनिक है जिनके धंधे को राजनैतिक नीतियाँ प्रभावित करती है। जो ज्यादा बड़ी बोली लगाएगा खबर का प्लाट उसे बेच दिया जायेगा !!
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अब पेड मीडिया के प्रायोजको को तो चुनाव नहीं लड़ना है, अत: मीडिया में जितना भी पैसा वे फूंक रहे है वह उनका घाटा है। इस घाटे को वे कवर कैसे करते है ? वे मीडिया को कंट्रोल करके नेताओं को कंट्रोल करते है, और फिर नेताओं से गेजेट में ऐसी इबारतें छपवाते है, जिससे उन्हें फायदा हो। और इस अतिरिक्त मुनाफे से वे अपना घाटा पूरा कर लेते है। तो व्यावसायिक रूप से मीडिया घाटा बनाता है, लेकिन राजनैतिक लाभ लेकर इसे मुनाफे में बदल लिया जाता है।
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अब यहाँ इस बात को समझना जरुरी है कि एक भ्रष्ट नेता गेजेट में ऐसी इबारतें नहीं छाप सकता जिससे वह बड़े पैमाने पर "कानूनी रूप से" पैसा बना सके। इसके लिए उसे भ्रष्टाचार करना होगा और वह जांच / संदेह के दायरे में आ जाएगा। लेकिन धनिक वर्ग के पास ऐसा इन्फ्रास्त्रक्चर होता है कि वे गेजेट में छापी गयी इबारतो से अरबों रूपये का अतिरिक्त मुनाफा बना सकते है। और यह मुनाफा पूरी तरह से कानूनी होगा, गैर कानूनी नहीं।
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सामंजस्य : यदि सत्ताधारी पार्टी पेड मीडिया के प्रायोजको के हितो में नीतियाँ बनाती है तो सरकार एवं पेड मीडिया के प्रायोजको के आपसी सम्बन्ध मधुर बने रहेंगे, और नेता को सकारत्मक कवरेज मिलेगा।
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टकराव : और यदि सरकार पेड मीडिया के प्रायोजको के हितो के खिलाफ नीतियाँ बनाती है तो टकराव शुरू होगा। जब टकराव आएगा तो सरकार मीडिया को अपने फेवर में लेने की कोशिश शुरू करेगी। और फिर पेड मीडिया कर्मियों को कंट्रोल करने के सरकार के पास 2 रास्ते है :
पैसे से खरीदना
पेड मीडियाकर्मियों को दबाव में लेना
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पैसे से खरीदना : सरकार भ्रष्टाचार करके कितना भी पैसा बना ले किन्तु वे पेड मीडिया का घाटा पूरा नहीं कर सकते। भारत की बात करें तो लगभग 25 न्यूज चेनल एवं 50 बड़े अख़बार है जो प्रतिदिन खबरों के नाम पर अफीम बाँटते है। इसके अलावा फेसबुक, व्हाट्स एप आदि जैसी कम्पनियों का घाटा भी पूरा करना होता है।
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सरकार इतने बड़े स्ट्रक्चर का घाटा पूरा नहीं कर सकती। पेड मीडिया के प्रायोजक यह घाटा इसीलिए पूरा कर सकते है, क्योंकि उनके पास पैसे की बारिश करने वाले कारखाने है, और वे सालो साल से इन मीडिया समूहों का घाटा पूरा कर रहे है। मतलब अब यह बोली लगाने वाला मामला है। धनिक वर्ग सरकार से ज्यादा बोली लगाएगा और मीडियाकर्मी धनिक वर्ग की तरफ चला जायेगा।
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मीडियाकर्मियों को दबाव में लेना : यदि सरकार पेड मीडियाकर्मियों को खरीद नहीं पा रही है तब वे मीडिया को दबाना शुरू करेंगे। किन्तु पेड मीडिया के प्रायोजको के खिलाफ जाकर मुख्य धारा के किसी मीडिया हाउस को दबाना भी मुमकिन नहीं है। क्योंकि पेड मीडिया के प्रायोजको के पास हथियार है !!
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पेड मीडिया के प्रायोजक अमेरिकन-ब्रिटिश-फ्रेंच बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिक है। ये कम्पनियां फाइटर प्लेन, लेसर गाईडेड बम, लेसर गाइडेड मिसाईले, ड्रोन जैसी चीजे बनाती है। इन हथियारों पर नियंत्रण होने के कारण उनके पास वास्तविक ताकत है। अत: पीएम इन कम्पनियों को दबाने का प्रयास करेगा तो ये कम्पनियां उसे युद्ध में खींचेगी।
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तो जब तक सरकार या पीएम के पास हथियार निर्माताओं से टक्कर लेने वाले हथियार ना हो तब तक पीएम सरकारी मीडिया को भी नियंत्रित नहीं कर सकता।
और प्राइवेट मीडिया को तो हथियार होने के बावजूद भी नियंत्रित नहीं किया जा सकता। क्योंकि प्राइवेट मीडिया का घाटा पूरा करने के लिए लगातार पैसा चाहिए होता है, जो कि सरकार के पास नहीं होता।
यदि सरकार प्राइवेट मीडिया को कंट्रोल करने की कोशिश करेगी तो उसे इसका अधिग्रहण ही करना पड़ेगा। और जैसे ही सरकार प्राइवेट मीडिया का अधिग्रहण करेगी यह सरकारी मीडिया हो जाएगा। और इस तरह पीएम को मीडिया पर कंट्रोल लेने के लिए सभी प्राइवेट मीडिया हाउस का अधिग्रहण करना पड़ेगा।
यदि पीएम देश के सभी प्राइवेट मीडिया हाउस का अधिग्रहण कर लेगा तो फ्रीडम ऑफ़ एक्प्रेशन का निलम्बन हो जाएगा और डेमोक्रेसी ख़त्म हो जायेगी !!
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दुसरे शब्दों में प्राइवेट मीडिया पर सरकार का नियंत्रण और डेमोक्रेसी साथ साथ एग्जिस्ट नहीं करती !! ये दोनों चीजे साथ साथ होती ही नहीं है। यदि किसी देश में प्राइवेट मीडिया है तो इसे हमेशा धनिक वर्ग ( हथियार निर्माता ) ही नियंत्रित करेगा, चाहे सरकार कितनी भी ताकतवर क्यों न हो।
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इसे फिर से पढ़िए - प्राइवेट मीडिया पर सरकारी नियंत्रण और डेमोक्रेसी साथ साथ एग्जिस्ट नहीं कर सकती है !!
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कुछ वास्तविक उदाहरण देखिये ;
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(a) स्टालिन : जोसेफ स्टालिन (1922–1953) ने बड़े पैमाने पर हथियारों का उत्पादन करना शुरू किया था, और उसने अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों को सोवियत रूस में आने की अनुमति नहीं दी। यदि स्टालिन प्राइवेट मीडिया को अनुमति दे देते तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक किसी न किसी तरीके से स्टालिन को चित कर देते। अत: स्टालिन ने मीडिया का 100% अधिग्रहण कर लिया और सोवियत रूस में डेमोक्रेसी ख़त्म हो गयी। आज रूस के पास अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के बराबर ताकतवर हथियार है, किन्तु मीडिया आज भी 100% रूसी सरकार के कंट्रोल में है। प्राइवेट मीडिया को वहां काम करने की अनुमति नहीं है। यदि रूस प्राइवेट मीडिया को आज भी अनुमति दे देता है, तो अगले 20-25 साल में अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक रूस के फिर से 8 से 10 टुकड़े कर देंगे।
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वजह यह है कि, रूस के पास जूरी सिस्टम नहीं है। और जूरी सिस्टम न होने के कारण उनके पास हथियार निर्माण करने वाली निजी कम्पनियां नहीं है। रूस के सभी निर्णायक हथियार सरकारी कम्पनियां बनाती है। तो यदि रूस में प्राइवेट मीडिया खोल दिया जाता है, तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक निजी मीडिया को वहां पर सरकारी मीडिया से भी ज्यादा शक्तिशाली बना देंगे। सरकारी मीडिया इतना घाटा नहीं उठा सकेगा, और निजी मीडिया की तुलना में पिछड़ जायेगा।
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और एक बार यदि प्राइवेट मीडिया सरकारी मीडिया से ज्यादा ताकतवर हो गया तो पेड मीडिया का इस्तेमाल करके रूस के 5-7 टुकड़े करना मामूली बात है। तब रूस के राष्ट्रपति को देश बचाने के लिए फिर से प्राइवेट मीडिया का अधिग्रहण करना पड़ेगा !! तो स्टालिन को हथियार भी बनाने थे, और जूरी सिस्टम भी नहीं लाना था। तो फिर एक ही रास्ता बचता है – पेड मीडिया का अधिग्रहण किया जाए।
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(b) चेयरमेन माओ : माओ जिडोंग के साथ भी यही मामला था। उसे भी हथियार बनाने थे और जूरी सिस्टम भी नहीं लाना था। तो उसको भी सबसे पहले मीडिया का अधिग्रहण करना पड़ा। और फिर उसने सरकारी हथियार बनाने शुरू किये। यदि माओ अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को मीडिया चेनल खोलने देता तो वे अगले 5 वर्ष में ही चीन को आधा दर्जन टुकड़ो में विभाजित करके माओ को निपटा देते।
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चीन आज अपनी सेना काफी मजबूत कर चुका है, लेकिन आज भी यदि चीन प्राइवेट चेनल को अनुमति दे दे तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक बिना कोई युद्ध लड़े अगले 20 साल में चीन को के राजनेताओ पर कंट्रोल ले लेंगे। और पूरा मीडिया खोलने की भी जरूरत नहीं है। सिर्फ फेसबुक और गूगल को आने दो तो ये दो कम्पनियां भी चीन को काबू करने के लिए काफी है। चीन मीडिया में विदेशी निवेश खोल नहीं रहा है, और इस वजह से चीन को अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के साथ युद्ध लड़ना पड़ेगा।
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(c) हिटलर एवं मुसोलिनी : इन्होने भी वही ट्रेक लिया। मीडिया पर हिटलर का 100% कंट्रोल था। कोई प्राइवेट मीडिया नहीं। हिटलर बड़े पैमाने पर सरकारी हथियारों का निर्माण कर रहा था, अत: मीडिया पर कंट्रोल लेना जरुरी था। हिटलर मीडिया को छोड़ देता तो सेना नहीं खड़ी कर पाता।
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(d) ईराक-ईरान : सद्दाम हुसैन ने अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों को मीडिया चेनल नहीं खोलने दिए, अत: उसे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के साथ युद्ध में जाना पड़ा। यदि ईराक प्राइवेट मीडिया आने देता तो अमेरिकी-ब्रिटिश शांतिपूर्ण तरीके से सद्दाम को हटाकर मिनरल्स टेकओवर कर लेते, और ईराक युद्ध से बच जाता।
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अभी ईरान भी इसी रास्ते पर है। ईरान में मीडिया पर काफी सेंसरशिप है। ईरान में वोटिंग होती है, लेकिन मीडिया पर 100% सरकारी नियंत्रण है। अभी ईरान यदि मीडिया में विदेशी निवेश खोल देता है तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक 5-7 साल में नागरिको को भेड़ा बनाकर ऐसे नेताओं को शीर्ष पर पहुंचा देंगे जो ईरान के मिनरल्स अमेरिकी कम्पनियों को देना शुरू करें। मतलब, ईरान में शिया-सुन्नी में घर्षण बढ़ जाएगा और अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियां वहां पर “विकास” करने लगेगी। और विकास का सामान (यानी मिनरल्स) ख़त्म होने तक ईरानियो को मालूम ही नहीं चलेगा कि विकास किसका हो रहा था !!
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दुसरे शब्दों में, ईरान प्राइवेट मीडिया को अनुमति देने से इंकार करके ईरान के विकास में बाधा डाल रहा है, अत: अब अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को न चाहते हुए भी पहले ईरान से युद्ध करना पड़ेगा और तब वे वहां पर विकास कर पायेंगे। क्योंकि अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक असली "विकास पुरुष" है। उन्होंने पूरी दुनिया के उन देशो में विकास करने का संकल्प लिया हुआ है, जो हथियार भी नहीं बनाते है, और उनके पास मिनरल्स भी है !! रूस के पास भी काफी मिनरल्स है, किन्तु चूंकि रूस अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को टक्कर देने वाले हथियार बना चुका है, अत: अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच धनिक वहां विकास करने नहीं जाते।
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(e) इंदिरा गाँधी जी : इंदिरा जी ने भी हथियार बनाने शुरू किये तो पहले उन्होंने दूरदर्शन के माध्यम से कम्पीट करने की कोशिश की। पर अंत में उन्हें आपातकाल लगाकर मीडिया पर प्रतिबन्ध लगाने पड़े। वे भारत की अब तक की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री थी, लेकिन प्राइवेट मीडिया को वे भी नियंत्रित नहीं कर पायी थी।
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(f) अमेरिका : अमेरिका के पास आज दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना है, और इसके बावजूद अमेरिका के मीडिया पर वहां के हथियार निर्माताओ का ही नियंत्रण है, राष्ट्रपति का नहीं। पर चूंकि अमेरिका का मीडिया अमेरिकी धनिकों के ही नियंत्रण में है विदेशियों के नहीं, और अमेरिकी नागरिको के पास जूरी सिस्टम-राईट टू रिकॉल-जनमत संग्रह-मल्टी इलेक्शन एवं बंदूक रखने की आजादी है अत: वहां का प्राइवेट मीडिया अमेरिकी हितो का नुकसान नहीं पहुंचाता।
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ऊपर दिए गए सभी ताकतवर लोगो ने हथियार बनाने के बड़े पैमाने पर प्रयास किये और इन सभी को प्राइवेट मीडिया को प्रतिबंधित करना पड़ा। क्योंकि यदि ये लोग पेड मीडिया को काम करने की अनुमति दे देते तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक इन्हें गिराने में कामयाब हो जाते।
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मेरा बिंदु यह है कि असल में दुनिया की कोई भी सरकार आज तक प्राइवेट मीडिया को कंट्रोल नहीं कर पायी है। यदि सरकार के पास हथियार है तब भी सिर्फ सरकारी मीडिया नियंत्रित किया जा सकता है, प्राइवेट मीडिया को नहीं। प्राइवेट मीडिया से तालमेल बनाने का सिर्फ एक ही तरीका है – चुपचाप पेड मीडिया के प्रायोजको के एजेंडे को आगे बढ़ाने वाले क़ानून गेजेट में छापते रहो, और बदले में पेड मीडियाकर्मी नेताजी को जनता के सामने सुपरमेन बना कर दिखाते रहेंगे।
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अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का सिंगल पॉइंटेड एजेंडा यह है कि कोई देश आधुनिक एवं निर्णायक हथियार नहीं बनाएगा !! और यह एजेंडा कोई छुपा हुआ नहीं है। एकदम खुली हुई बात है।
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ऊपर दिए गए लोगो ने हथियार बनाने शुरू किये और और इसीलिए अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के साथ इनका घर्षण बढ़ गया था। और इन लोगो को मीडिया पर प्रतिबन्ध लगाने पड़े।
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तो मनमोहन सिंह जी एवं मोदी साहेब का मीडिया पर कितना वश है ?
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शून्य !! जीरो !! अंडा !! मतलब = 0 !!
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सबूत ?
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पहली बात तो यह कि हम हथियार नहीं बनाते। असल में हम अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के हथियारों पर ही अपनी सेना चला रहे है। तो उनसे टक्कर लेने का सवाल ही नहीं। और जहाँ तक पैसे से खरीदने की बात है, न तो बीजेपी के पास उतना पैसा है और न ही कोंग्रेस के पास कि वे मीडिया खरीद सके। ये खुद ही विदेशियों के चंदे पर चल रहे है, मीडिया का घाटा किधर से पूरा करेंगे। अभी बीजेपी=संघ को विदेशियों से 950 करोड़ एवं कोंग्रेस को 150 करोड़ बेनामी इलेक्टोरल बांड से मिले है। इसी पैसे से इनकी आई टी सेल वगेरह के कर्मचारियों को वेतन आदि दिए जाते है, और इनके कट आउट, झंडी बैनर आदि छपते है।
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यदि संघ=बीजेपी मीडिया का घाटा पूरा कर सकती थी, तो वो पिछले 70 साल में अपना खुद का मीडिया हाउस स्थापित कर लेती थी। उन्होंने कोशिश भी की पर खड़ा नहीं कर पाए। पांचजन्य उन्होंने 1948 में और पाथेय कण 1987 में शुरू किया था। सरकार बना ली लेकिन अपना मीडिया खड़ा नहीं कर पाए !! और इसीलिए चुनाव जीतने के लिए उन्हें पेड मीडिया की जरूरत होती है।
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पाथेय कण - राष्ट्रीय विचारों का सजग प्रहरी
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पाञ्चजन्य - राष्ट्रीय हिंदी साप्ताहिक पत्रिका | Panchjanya - National Hindi weekly magazine
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जवाहर लाल ने भी 1938 में नेशनल हेरल्ड नाम से पेपर शुरू किया था। यह लगातार वित्तीय संकट से जूझता रहा। अंत में अपडेटेड प्रिंटिंग मशीनों के अभाव में घाटा खाकर बंद हो गया !! एक समय पूरा देश ही कोंग्रेस को वोट करता था, लेकिन पेपर उनसे भी नहीं चला !! मलतब, सरकार बनाना आसान है, लेकिन मीडिया हाउस खड़ा करना और उसे चलाते रहना और उसे कंट्रोल करना उससे भी बड़ा काम है। जब तक आप हथियार बनाने की फैक्ट्रियां नहीं चला रहे हो तब तक आप प्राइवेट मीडिया को कंट्रोल नहीं कर सकते !! अभी 2017 में इन्होने नेशनल हेरल्ड का डिजिटल वर्जन ( यानी मुफ्त का मीडिया ) निकालना शुरू किया है।
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National Herald: Live News Today, India News, Top Headlines, Political and World News
The paper had failed to modernise its print technology and had not computerised at the time of suspending operations and had been making losses for several years owing to lack of advertising revenues and overstaffing.
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शिवसेना के पेपर “सामना” की भी यही दशा है। इसे 1988 में बाला साहेब ने शुरू किया था !! ये भी हमेशा हाशिये पर ही रहा, मुख्य धारा में नहीं आ पाया।
Saamana (सामना) | Latest Marathi News | Live Maharashtra, Mumbai, Pune, Nashik News | Marathi Newspaper | ताज्या मराठी बातम्या लाइव
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ये सब तो सामने के प्रयास है। इसके अलावा परदे के पीछे से भी एंट्री मारने के काफी प्रयास इन्होने किये। असल में कोंग्रेस, संघ=बीजेपी, शिवसेना आदि हथियार बनाने की फैक्ट्रियां नहीं चलाते है, इसीलिए मीडिया खड़ा नहीं पर पाए। मीडिया पर कंट्रोल लेने की पहली शर्त यह है कि आपके पास हथियार बनाने के कारखानो पर नियंत्रण होना चाहिए। क्योंकि सिर्फ पैसे से मीडिया पर कंट्रोल आता था तो साबुन और शेम्पू बनाकर पैसा कमाने वाले (अम्बानी-टाटा) लोग भी मीडिया कम्पनियां खोल लेते थे।
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सार की बात यह है कि राजनीति को पूरी तरह से पेड मीडिया के प्रायोजक (हथियार निर्माता) कंट्रोल करते है, और उनका सहयोग लिये बिना आप सरकार में शीर्ष स्तर पर नहीं आ सकते। और यदि आप पेड मीडिया के प्रायोजको का सहयोग लेकर सत्ता में आयेंगे तो आपको उनके एजेंडे पर ही काम करना पड़ेगा।
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और उनका एकनिष्ठ एजेंडा यह है कि — आप हथियार नहीं बनाओगे बल्कि अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच कम्पनियों के हथियार ही खरीदोगे, ताकि वे आपकी सेना को नियंत्रित कर सके !!
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आप उनके एजेंडे से एक इंच भी इधर उधर हुए तो वे आपका प्लग निकाल देंगे, और पेड मीडिया की सहायता से नया नेता इंस्टाल कर देंगे।
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खंड (2)
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मनमोहन सिंह जी एवं मोदी साहेब का पेड मीडिया से तालमेल
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(1) मनमोहन सिंह जी : मनमोहन सिंह जी वित्त विभाग में बाबू थे, और राजनीति से उनका कोई लेना देना नहीं था। आई एम् ऍफ़ में नौकरी करने के दौरान उन्होंने अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को एप्रोच किया। चुनाव हुए और कोंग्रेस सत्ता में आयी। मनमोहन सिंह जी ने कोंग्रेस जॉइन की और उन्हें सीधे वित्त मंत्री बना दिया गया। (यदि कोंग्रेस सरकार नहीं बना पाती तो मनमोहन सिंह जी उस पार्टी को जॉइन करते जो पार्टी सरकार बनाती थी !!)
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और मनमोहन सिंह जी ने अपने पहले ही बजट में WTO साइन करके अमेरिकी-ब्रिटिश कम्पनियों के लिए देश खोल दिया। पेड मीडिया के प्रायोजक 1991 में भारत में इतने मजबूत थे कि उन्होंने एक बाबू को देश का वित्त मंत्री बना दिया था !! सीधे पैराशूट लेंडिंग !!
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वाजपेयी ने अपने पहले कार्यकाल में परमाणु परिक्षण कर दिया जिससे पेड मीडिया के प्रायोजक नाराज हो गए। उन्होंने अपने पुराने अय्यार SS को एप्रोच किया। SS ने तमिलनाडु के हाईकोर्ट जज के हवाले से जयललिता को धमकाया और जयललिता सरकार गिराने को राजी हो गयी । इस तरह SS ने सोनिया+जयललिता के बीच समझौता करवाकर वाजपेयी सरकार गिरायी।
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Swamy's reception will bring Sonia and Jaya together
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How Vajpayee Government Was Defeated By A Single Vote In 1999
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लेकिन नए चुनावों में वाजपेयी फिर से जीत कर आ गए और उन्होंने सरकार बना ली। तब अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने पाकिस्तान को हथियार भेजकर कारगिल पर चढ़ाई करने को कहा, और भारत के हथियारों की सप्लाई लाइन काट दी। इस तरह उन्होंने हथियारों के बल पर वाजपेयी को काबू किया !!
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2004 में उन्होंने मनमोहन सिंह जी को पीएम बनाया, और उन्होंने फिर से पेड मीडिया के प्रायोजको के एजेंडे को गति देना शुरू किया। UPA-1 के दौरान अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक चुनाव प्रणाली में evm इंस्टाल कर चुके थे। 2009 के चुनावी नतीजो को evm द्वारा मेनिपुलेट किया गया था। बीजेपी=संघ ने फिर से चुनाव कराने की मांग को लेकर आन्दोलन चलाया, किन्तु पेड मीडिया के प्रायोजको द्वारा धमकाने पर वे पीछे हट गए। इस तरह UPA-2 सरकार evm की देन थी।
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बाद में, 2010 में सुप्रीम कोर्ट में यह साबित हुआ कि 2009 के चुनावों में जिन evm का इस्तेमाल किया गया था उनमें वोटो की हेरा फेरी की जा सकती थी। चुनाव आयोग ने तब पुरानी सारी evm केंसिल की और नए डिजाइन का evm लांच किया। vvpat वाले वर्जन इसीलिए लाये गए थे। लेकिन चुनाव आयोग जो नया डिजाइन लाया है, वह पुरानी evm का भी बाप है। मतलब नए डिजाइन में और भी ज्यादा आसानी से बड़े पैमाने पर वोटो को बदला जा सकता है।
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10 साल तक मनमोहन सिंह जी की छवि को सूतने के बाद उन्होंने डॉक्टर साब को रिटायर कर दिया।
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(2) श्री नरेंद्र मोदी : इंदिरा गाँधी Vs अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक संघर्ष के दौरान संघ के नेता अपने राजनैतिक हितो के लिए स्वाभाविक रूप से अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको के पाले में चले गए थे। 1990 आते आते अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक कोंग्रेस को टेक ओवर कर चुके थे और सोवियत के टूटने के बाद भारत में आंतरिक राजनीति का एक मात्र ध्रुव अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक रह गए। मतलब, एंटी अमेरिकी नेताओं का कोई धनी नहीं बचा था।
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WTO समझौता होने के कारण भारत ऑफिशियली अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के लिए खुल चुका था, अत: बीजेपी=संघ के नेताओं ने अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को जॉइन कर लिया, और उनके सहयोग से सत्ता में आने के प्रयास करने शुरू किये। अब उनके पास कोई चारा भी नहीं था। क्योंकि यदि संघ=बीजेपी अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के खेमे में नहीं चले जाते तो अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक दूसरा ध्रुव बनाने के लिए किसी अन्य पार्टी को खड़ा करते। क्योंकि राजनीति में टोटल कंट्रोल तभी मिलता है, जब आप पक्ष एवं विपक्ष दोनों को फंडिंग करते हो।
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तो संघ=बीजेपी के नेताओं में अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों से गठजोड़ बनाने का कम्पीटीशन शुरू हुआ, और इस मामले में मोदी साहेब ने रफ्ता रफ्ता अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ दिया !!
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(2.1.) मोदी साहेब ने पहली छलांग 1993 में लगायी जब वे IVLP की सीट लेने में कामयाब रहे। IVLP (International Visitor Leadership Program ) अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ स्टेट द्वारा चलाया जाने वाला एक ट्रेनिंग कोर्स है। यह काफी हाई प्रोफाइल प्रोग्राम है। इसके लिए प्रतिभागियों का चयन अमेरिका द्वारा ही किया जाता है, आप इसमें आगे होकर आवेदन नहीं कर सकते। अमेरिका ने संघ को एक बंदा भेजने को कहा और मोदी साहेब ने यह सीट ले ली। मोदी साहेब को इस डिपार्टमेंट ने दो बार ट्रेनिंग दी है। 1993 में एवं 1999 में।
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2014 से पहले इसे तथ्य को पेड मीडिया में कभी रिपोर्ट नहीं किया गया था। अमूमन मुख्यमंत्री जैसे पद पर जाने के बाद व्यक्ति से जुडी इस तरह की घटनाएं सार्वजनिक हो ही जाती है, किन्तु 2013 तक भी इस घटना को कभी भी किसी मुख्य धारा के मीडिया समूह ने रिपोर्ट नहीं किया। 2014 तक सोशल मीडिया काफी ताकतवर हो चुका था, और कई एकाउंट से मोदी साहेब की अमेरिका विजिट की तस्वीरें सामने आने लगी। तब इस घटना को मीडिया में रिपोर्ट किया गया, लेकिन ट्रेनिग प्रोग्राम की बात फिर भी छिपा ली गयी।
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2014 में लिखे गए पेड फर्स्ट पोस्ट का यह आर्टिकल पढ़िए। यह आर्टिकल कहता है कि मोदी साहेब अमेरिका में संघ के प्रचारक के रूप में गए थे !! इस बात को बेहद सफाई से छिपा लिया गया है कि मोदी साहेब अमेरिका में संघ के प्रचारक के रूप में नहीं गए थे, बल्कि अमेरिका के सरकारी लीडरशिप प्रोग्राम के ऑफिशियली ट्रेनी थे।
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Summer of '93: Check out young Narendra Modi hanging out in US - Firstpost
New York was like a "second-home" for Narendra Modi "who stayed for weeks at a time in the US as a party apparatchik tasked with spreading the gospel of the sangh parivar in America.न्यूयॉर्क "नरेंद्र मोदी के लिए एक दूसरे घर" जैसा था, और अमेरिका में किसी समय वे संघ परिवार का प्रचार करने के उद्देश्य से हफ्तों तक रहे थे !!
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अब 2017 में अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ़ स्टेट के अधिकृत फेसबुक पेज पर किया गया यह पोस्ट देखिये, जिसमें यह तथ्य दर्ज है कि मोदी साहेब की अमेरिकी विजिट इस प्रोग्राम का हिस्सा थी।
Exchange Programs - U.S. Department of State
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[ यहाँ मेरा आशय यह नहीं है कि अमेरिकियों ने मोदी साहेब को ट्रेनिंग दी है अत: अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको के एजेंट है। दरअसल, नेता आगे बढ़ने के लिए मौका देखकर सभी विकल्पों का इस्तेमाल करते है, और इसमें कोई गलत बात भी नहीं है। उदाहरण के लिए 1998 में संघ=बीजेपी ने सत्ता में आने के लिए अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का सहयोग लिया था लेकिन सरकार बनाने के बाद वाजपेयी ने परमाणु परिक्षण किया। लेकिन इस बिंदु का इसलिए महत्त्व है कि यहाँ से मोदी साहेब के लिए उन ताकतवर लोगो का सहयोग मिलने का रास्ता खुल गया था, जो भारत एवं वैश्विक राजनीती को नियंत्रित करते है। ]
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(2.2.) दूसरा मौका उन्हें कारगिल युद्ध के दौरान मिला। कारगिल में हमें लेसर गाइडेड बम चाहिए थे, और इस विजिट को सीक्रेट रखा जाना था। कारगिल युद्ध के दौरान मोदी साहेब जाकर आईएम्ऍफ़ एवं विश्व बैंक के अधिकारियों से यह सहमती बनाने के लिए मिले कि यदि अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक भारत को हथियारों की मदद देते है, और पाकिस्तान को हथियारों की मदद रोक देते है तो भारत अपनी अर्थव्यवस्था के कौन कौन से क्षेत्र खोल देगा।
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उनकी पहली मांग मीडिया में विदेशी निवेश की अनुमती थी, ताकि अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक भारत में अपने चैनल खोल सके। 2002 में भारत ने मीडिया अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के लिए खोल दिया। इसके अलावा भी ढेर सारी शर्तें थी।
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कारगिल युद्ध के दौरान मोदी साहेब के बारे में इस लिंक में पढ़ सकते है। किन्तु पेड टेलीग्राफ ने लेसर गाइडेड बम को स्टोरी में से गायब कर दिया है !! कारगिल के लेसर गाईडेड बम के बारे में अलग से गूगल करेंगे तो आपको जानकारी मिल जायेगी।
Hunt for Modi clues in 1999 trip
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(2.3) मुख्यमंत्री पद पर मोदी साहेब की पैराशूट लेंडिंग :
मुख्यमंत्री / प्रधानमंत्री बनने के 2 रूट होते है
चुनाव जीत कर आना, या
पैराशूट लेंडिंग
गुजरात में तब मोदी साहेब मझौले दर्जे के नेता थे, और मुख्यमंत्री होने के हिसाब से उनका कद काफी छोटा था। चुनावी राजनीती के माध्यम से अभी उनको काफी साल और लगने वाले थे। अत: उन्होंने मनमोहन सिंह जी तरह मुख्यमंत्री पद पर पैराशूट लेंडिंग की दिशा में तैयारी शुरू की। केशुभाई पटेल के झमेले के कारण उन्हें गुजरात से निष्कासित करके दिल्ली भेज दिया गया था, और गुजरात इकाई उन्हें गुजरात से दूर ही रखना चाहती थी।
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अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक पहले ही “कह” चुके थे कि मोदी साहेब में नेतृत्व के गुण है, अत: सीधे मुख्यमंत्री बनने की उनकी संभावनाएं बढ़ गयी थी !! और मोदी साहेब ने अपने 13 वर्षीय कार्यकाल में ऐसा कोई कानून नहीं छापा जिससे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के एजेंडे को नुकसान हो। इस तरह मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी साहेब पेड मीडिया के प्रायोजको की गुड बुक में आये।
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पेड मीडिया के प्रायोजको का एजेंडा जिन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी साहेब ने आगे बढ़ाया :
मोदी साहेब ने मुख्यमंत्री रहते हुए मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का कोई क़ानून नहीं छापा, बल्कि और भी नए मंदिरों का अधिग्रहण किया -- Govt in overdrive to take over temples
देशी गाय की नस्ल बचाने और गौ कशी रोकने के लिए कोई क़ानून नहीं छापा।
पुलिस एवं अदालतों को ठीक करने के लिए कोई क़ानून नहीं छापा।
मोदी साहेब ने गुजरात में गणित-विज्ञान का स्तर सुधारने के लिए भी कोई क़ानून नहीं छापा।
उन्होंने गुजरात में अमेरिकी-ब्रिटिश कंपनियों के लिए काफी क्षेत्र खोले
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(2.4) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी : 2012 में मोदी साहेब की अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के साथ नेगोशिएशन शुरू हुयी थी। अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का अगला टारगेट ईरान था, अत: उन्हें ऐसा नेता को आगे लाना था, जो भारत में हिन्दू-मुस्लिम अलगाव की हिंसक जमीन तैयार करें।
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तो उन्होंने पेड मीडिया का इस्तेमाल करके उनकी मुस्लिम विरोधी छवि को खड़ा करना शुरू किया। मोदी साहेब को मुस्लिम विरोधी “दिखाने” का काम करने के लिए तब पेड रविश कुमार, पेड करण थापर एवं पेड राजदीप सरदेसाई जैसे पत्रकारो को पेमेंट की जा रही थी। ओवेसी बंधुओ की हेट स्पीच एवं मंच सजाकर टीवी कैमरों के सामने जालीदार टोपी न पहनने के ड्रामे वगेरह इसी स्क्रिप्ट के हिस्सा थे।
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पेड मीडिया ने नकारत्मक रिपोर्टिंग करके मोदी साहेब की “मुस्लिम विरोधी” छवि को निखारा ताकि हिन्दू वोटर को मोदी साहेब की तरफ भेजा जा सके। 2014 में मोदी साहेब स्पष्ट बहुमत लेकर सत्ता में आये, और 5 वर्ष तक तक मोदी साहेब ने अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के एजेंडे को आगे बढ़ाया।
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अपने पहले कार्यकाल में मोदी साहेब ने जिस तरह के फैसले किये थे उससे उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई थी, और साफ़ नजर आ रहा था कि उनकी सीटे घटेगी। किन्तु चुनावों से एन पहले यानी 2018 में केंचुआ ने चुपचाप vvpat के पारदर्शी कांच को मिरर ग्लास से बदल दिया। अत: इस सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता कि 2019 के चुनावों में उन्हें 30 से 40 सीटो का नुकसान हुआ होगा, किन्तु इसे evm द्वारा मैनेज किया गया !!
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मेरा अनुमान है कि, मोदी साहेब को 2024 में मनमोहन सिंह जी की तरह रिटायर कर दिया जाएगा। उनके नए खिलाडी श्री अमित शाह, श्री योगी जी एवं केजरीवाल है। यदि ईरान अमेरिका के एजेंडे में आता है तो अमित शाह पीएम होंगे। अमित शाह की घड़ी दबाने के लिए श्री योगी जी का इस्तेमाल किया जाएगा। यदि अमित शाह कंट्रोल से बाहर जाते है तो योगी जी पीएम बनेंगे। दोनों ही स्थितियों में ये पेड मीडिया के एजेंडे को 2 गुना स्पीड से आगे बढ़ाएंगे।
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उनके पास दूसरा पैकेट श्री अरविन्द केजरीवाल है। यदि वे केजरीवाल जी को पीएम बनाना तय करते है तो केजरीवाल जी अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के एजेंडे को 4 गुना स्पीड से आगे ले जायेंगे।
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ऊपर जितना भी लिखा गया है उनमे से ज्यादातर तर्क एवं घटनाओं के बारे में निकाले गए मेरे निष्कर्ष पर आधारित है। लेकिन यदि आप इनके कार्यकाल में लिए गए फैसलों को देखे तो साफ़ तौर पर देख सकते है कि मनमोहन सिंह जी जिस दिशा में गाड़ी ले जा रहे थे, मोदी साहेब भी उसी दिशा में गाड़ी दौड़ा रहे है। एक फर्क इतना है कि मोदी साहेब की स्पीड मनमोहन सिंह जी से तेज है !!
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(3) अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों की नीतियों के कुछ मुख्य बिंदु जिन्हें मनमोहन सिंह जी एवं मोदी साहेब ने आगे बढ़ाया :
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(3.1) आर्थिक
(3.1.1) भारत के प्राकृतिक संसाधन, खनिज एवं आवश्यक सेवाओं जैसे मीडिया, पॉवर, बैंकिंग, माइनिंग, रेलवे, संचार, एविएशन के सरकारी उपक्रमों का अधिग्रहण करना।
मनमोहन सिंह जी ने भी देश की संपत्तियां बेची एवं मोदी साहेब भी इन्हें बेहद तेजी से बेच रहे है। जब सारी राष्ट्रिय संपत्तियां बिक जायेगी तो वे डॉलर रिपेट्रीएशन फाइल करेंगे और भारत को बैंक करप्ट करके बचा खुचे संसाधन भी टेक ओवर कर लेंगे। उन्होंने पिछले 20 साल में कितना क्या बेचा है इसके लिए गूगल करें । मैं यहाँ लिखूंगा तो जवाब में 30-40 पेज जोड़ने पड़ेंगे। लेटेस्ट में पॉवर सेक्टर की एक यूनिट (BPCL) बेचने की प्रक्रिया पिछले सप्ताह ही शुरू हुयी है – सरकार ने बीपीसीएल में हिस्सेदारी बेचने के लिए बोलियां आमंत्रित की, पीएसयू नहीं लगा पाएंगी बोली
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(3.1.2) गणित-विज्ञान का आधार तोड़ना।
मनमोहन सिंह जी ने 8 वीं तक फ़ैल न करने का क़ानून छापा था ताकि बच्चे बिना विज्ञान गणित समझे पास होते जाए। मोदी साहेब इससे भी आग गए। उन्होंने 9 वीं एवं 10 वीं की मैथ्स तोड़ने के लिए बेसिक मेथ का विकल्प लेने का क़ानून लागू किया। दिल्ली के 73% अभिभावकों ने इसकी चपेट में आकर अपने बच्चों को बेसिक मैथ्स दिला दी और बच्चे गणित की उत्तर पुस्तिका में सिर्फ अपना नाम लिखकर पास हो गए -- 73% of Class X students in Delhi govt schools opt for basic maths
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(3.1.3) भारत की स्थानीय निर्माण इकाइयों को तोड़ने के लिए अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों को रिग्रेसिव टेक्स सिस्टम चाहिए।
मनमोहन सिंह जी ने जीएसटी लाने की कोशिश की लेकिन सफल न हो पाए। मोदी साहेब ने आते ही जीएसटी डाल दिया !! सेल्स टेक्स, एक्साइज टेक्स, वैट एवं जीएसटी आदि सभी रिग्रेसिव टेक्स है।
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(3.1.4) मनमोहन सिंह जी भी जमीन की कीमतें कम करने के लिए कोई क़ानून नहीं छापा और मोदी साहेब ने भी इसके लिए कोई क़ानून नहीं छापा।
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(3.1.5) तकनिकी उत्पादन तोड़ने के लिए उन्हें अदालतों एवं पुलिस का ऐसा स्ट्रक्चर चाहिए कि पैसा फेंकने वाले का काम हो सके। दोनों ने इन दोनों विषयों को छुआ भी नहीं !!
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(3.2) सामरिक
(3.2.1) भारत की सेना की अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच कम्पनियों पर निर्भरता बढ़ाना।
दोनों ने यथा शक्ति अमेरिकी-ब्रिटिश-फ्रेंच कम्पनियों के हथियार भारत की सेना में इंस्टाल किये और स्वदेशी हथियारों के उत्पादन को सुनिश्चित करने वाले क़ानून छापने से दूरी बनाकर रखी। मनमोहन सिंह जी भारत का परमाणु कार्यक्रम बंद कराया और मोदी साहेब ने इसे फिर से शुरू करने के आदेश निकालने से इनकार किया !!
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(3.2.2) भारत एवं विशेष रूप से कश्मीर में अपने सैन्य अड्डे बनाना।
मोदी साहेब ने इस मामले में अपने कार्यकाल का सबसे खतरनाक कदम उठाया। उन्होंने कोमकासा एग्रीमेंट साइन करके अमेरिकी जनरलो को भारतीय सेना में एक्सेस दी।
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(3.3) धार्मिक :
(3.3.1) अमेरिकी-ब्रिटिश धनिक भारत में जनसँख्या नियंत्रण क़ानून डालने के खिलाफ रहे है ताकि धार्मिक जनसँख्या का संतुलन बिगाड़ कर देश का फिर एक बार विभाजन किया जा सके है। वे भारत में रह रहे 2 करोड़ अवैध विदेशी निवासियों को निष्काषित करने के भी खिलाफ है, ताकि जरूरत पड़ने पर इन्हें किसी भी समय हथियार भेजकर गृह युद्ध ट्रिगर किया जा सके।
दोनों ने जनसँख्या नियंत्रण करने एवं अवैध बंगलादेशीयों को निष्कासित करने का क़ानून नही छापा। मनमोहन ने हिन्दू-मुस्लिम तनाव बढ़ाने के लिए जो जमीन बनायी थी, मोदी साहेब ने उसमें फसल खड़ी करके काफी अच्छे नतीजे दिए।
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(3.3.2) दोनों ने मंदिरों को सरकारी नियंत्रण में लेकर उनकी संपत्तियो का अधिग्रहण किया। मनमोहन ने गोल्ड बांड लाकर मंदिरों का सोना उठाने की कोशिश की थी पर ले नहीं पाए। मोदी साहेब ने मंदिरों को बांड बेच कर सोना ले लिया। मिशनरीज को भारत में विस्तार करने की छूट देने के मामले में भी मोदी साहेब ने ज्यादा अच्छा प्रदर्शन किया।
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तो इस तरह की बातें क्यों फैलती है कि मोदी साहेब पेड मीडिया को कंट्रोल कर रहे है ?
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क्योंकि जो लोग मीडिया को वास्तविक रूप से कंट्रोल करते है, वे चाहते कि लोग इस मुगालते में रहे। डेमोक्रेसी में यदि अवाम को यह शुबहा होने लगे कि पीएम धनिक वर्ग की कठपुतली की तरह काम कर रहा है, और उसमें वास्तविक ताकत नहीं है, तो नागरिक उसे वोट नहीं करते। इसीलिए पेड मीडिया के प्रायोजक पेड मीडियाकर्मियों को निर्देश देते है कि वे नागरिको के दिमाग में यह बात डाले कि मीडिया को उनका पीएम शक्तिशाली है और पूरे मुल्क को कंट्रोल कर रहा है। पेड रविश कुमार को इसीलिए “गोदी मीडिया” का नारा लगाने के लिए भुगतान किया जाता है।
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[ 1910 तक धनिक मीडिया को सामने से कंट्रोल करते थे, और इस वजह से अमेरिका में राष्ट्रपति की इज्जत दो कौड़ी की रह गयी थी। अमेरिकी राजनेताओ एवं शासन ने पेड मीडिया के प्रायोजको को कंट्रोल करने की काफी कोशिश की लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। जितना ही उन्होंने पेड मीडिया के प्रायोजको से टकराव लिया उतना ही उनकी इज्जत उतरती चली गयी। अत: 1910 में पेड मीडिया के प्रायोजको एवं राजनेताओ में या समझौता हुआ कि पेड मीडिया के प्रायोजक नेपथ्य में चले जायेंगे और राजनेता उन्हें चेस करना छोड़ देंगे। तब से उन्होंने खुद को फ्रेम में से निकाल दिया है। ]
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पेड मीडिया के प्रायोजको एवं अमेरिकी सरकार के बीच खुले संघर्ष के इन विवरणों के लिए John D. Rockefeller and standard oil monopoly पर गूगल करें।
एक आर्टिकल यह भी देख सकते है - Constitutional Rights Foundation
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सलंग्न : 1890 में मुख्यधारा के पेड मीडिया में प्रकाशित कार्टून जो स्टेंडर्ड ऑयल के मुखिया रोकेफेलर को सत्ता के साथ खेलते हुए दिखाता है !! दुनिया के लगभग 40% तेल पर आज भी रोकेफेलर परिवार का एकाधिकार है, और निर्णायक हथियार बनाने वाली कई हथियार कंपनियों में होल्डिंग है।
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Wednesday, April 17, 2019

शंकराचार्य और सरसंघचालक एक_तुलनात्मक_अध्ययन

वरिष्ठ आईपीएस चाचाजी  श्री Suvrat Tripathi की कलम से।

#शंकराचार्य_और_सरसंघचालक_एक_तुलनात्मक_अध्ययन

सनातन धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था के विरुद्ध बौद्ध धर्म दलितों और दबे-कुचलों की आवाज बनकर उभरा। एक जनक्रांति हुई तथा सामंतवाद की चूलें हिल गई। मुझे इतिहास का कोई विशेष ज्ञान नहीं- पुराणों और शास्त्रों के अध्ययन को आधार बनाकर मैं कुछ प्राक्कल्पनाओं(hypothesis) को प्रस्तुत कर रहा हूं जिसकी प्रमाणिकता के पीछे मेरे पास कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है। यह मेरे अंतर्मन की आवाज है- परिकल्पना है- मेरा बौद्धिक विलास है। ब्राह्मण कभी हारता नहीं है- वह हर पराजय में जय देखता है। जैसे Germany तथा England का साम्राज्यवाद world war से ढह गया तथा colonies समाप्त हो गई तथा भारत जैसे तमाम देश स्वतंत्र हो गए वैसे ही ब्राह्मण-क्षत्रिय, ब्राह्मण-ब्राह्मण तथा क्षत्रिय-क्षत्रिय संघर्ष की आग में वर्णाश्रम व्यवस्था झुलस कर रह गई तथा सनातन धर्म ढलान पर पहुंच गया। बौद्ध धर्म के बाद तो सनातन धर्म के ध्वंसावशेष भी ढह गए। गांधीजी का नए बुद्ध तथा ईसा के प्रतीक के रूप में स्वागत हुआ तथा कहा गया कि-" The greatest Christian of the world is out of Christianity"
डा अंबेडकर का बोधिसत्व के अवतार के रूप में अविर्भाव हुआ। #इंग्लैंड_में_मोदीजी_ने_भारत_को_गांधी_तथा_बुद्ध_का_देश_घोषित_किया तथा #भारत_में_अपने_उद्गारों_से_और_कार्यों_से_देश_को_अंबेडकरमय_बना_दिया।
बौद्ध धर्म जब भारत भूमि पर हावी हो गया था, तो महर्षि पतंजलि के शिष्य पुष्यमित्र शुंग ने बौद्ध धर्म का उन्मूलन कर दिया तथा अन्य कई कारनामे में भी उसके नाम के साथ जोड़े गए। वर्ण व्यवस्था को जाति व्यवस्था में बदल दिया गया तथा बुद्धिजीवियों को ऐसा लगा कि जो ज्वाला दब गई है वह फिर कभी भड़क सकती है। लिहाजा शंकराचार्य का वेदांत दर्शन सामने आया जिसमें चिंतन को उच्चतम सोपान तक ले जाया गया तथा शास्त्रार्थ में शंकराचार्य ने दिग्विजय की। तब से हिंदुत्व शब्द एक तरह से शंकराचार्य के दर्शन का पर्यायवाची बन बैठा। शंकराचार्य ने समस्त पंथों का समन्वय किया-

यं शैवाः समुपासते शिव इति
ब्रह्मेति वेदान्तिनो।
बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कर्मेति मीमांसकाः।।
अर्हंन्नित्यथ जैनशासनरताः तर्केति नैयायिकाः।
सोऽयं नो विदधातु वाञ्छितफलं  त्रैलोक्यनाथो हरिः।।

अर्थात जिसकी शैव लोग शिव के रूप में उपासना करते हैं, तथा वेदांती ब्रह्म के रूप में, बौद्ध बुद्ध के रूप में,मीमांसक कर्म के रूप में, जैनी अर्हन् के रूप में तथा नैयायिक तर्क के रूप में- वे तीनो लोक के नाथ-हरि हमें वांछित फलों को प्रदान करें।
यह दृष्टिकोण शंकराचार्य की देन के रूप में परंपरा में मान्य है। मैं इतिहास का ज्ञाता नहीं- कोई ऐतिहासिक गलती हो तो विद्वान मेरी मूर्खता का बयान करने की जगह सुधारने की कृपा करें- मैं क्षमा याचना पूर्वक स्वीकार कर लूंगा। मेरा इतिहास ज्ञान मात्र शास्त्रों तथा पुराणों तथा साहित्य और उपाख्यानों एवं अंत में दंत कथाओं तथा किंवदंतियों पर आधारित है।
एक common minimum programme संविद सरकार का बना- बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार माना गया- परशुराम, राम, बलराम तथा कृष्ण के बाद के क्रम में तथा #आज_भी_कोई_सनातनी_ब्राह्मण_भी_यदि_कोई_कथा_पुराण_सुनता_है_तो_कथा_प्रारंभ_करने_के_पूर्व तथा संकल्प लेते समय यह घोषणा करता है कि "बौद्धावतारे" अर्थात In the age of Buddha अर्थात We are living in the age of Buddha.
वह बुद्ध पूर्णिमा को गंगा स्नान करता है- जिस गंगा स्नान के मिथक को बुद्ध ने तोड़ा था।
यह परिवर्तन किसने किया- इस पर इतिहासवेत्ता बहस करें- किंतु अनंत श्री करपात्री जी महाराज कथा प्रभु दत्त ब्रहमचारी जी का निकट सानिध्य मुझे उपलब्ध हुआ- उसके आधार पर उस समय की बाल सुलभ बुद्धि से इसे मैं शंकराचार्य की देन मानता हूं। छिन्न-भिन्न भारतीय समाज को एक कड़ी के रुप में शंकराचार्य ने पिरोया, सबको साथ लेकर चले।
इसलिए जब मोदी ने भारत को गांधी तथा बुद्ध का देश घोषित किया तो देश में कहीं इसका विरोध नहीं दिखा क्योंकि पूर्व में ही परशुराम, राम, बलराम तथा कृष्ण को सेवानिवृत्त करके भारत को बुद्ध का देश शंकराचार्य घोषित करवा चुके थे- राम कथा कृष्ण के पूजन में भी पहले बुद्ध के वर्चस्व को स्वीकार करने की घोषणा की जाती है- "बुद्धावतारे"।
इसी तरह मोदी जब देश को गांधीमय तथा अंबेडकरमय करने लगे तो उनकी लोकप्रियता को कोई आघात न लगा- जैसे शंकराचार्य की प्रेरणा से परशुराम, राम, बलराम तथा कृष्ण को पृष्ठभूमि में करके बुद्ध को जनमानस ने अंगीकृत किया- उसी मानसिकता के उत्तराधिकारी भारतीयों ने सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर को पृष्ठभूमि में करके अंबेडकर के आगे मोदी के नेतृत्व में दंडवत करना श्रेयस्कर समझा-
"क्या बिगड़ जाता है, तुम्ही बड़े।"
परंतु बात पूरी नहीं बन पाई दो नए परिवर्तन आ गए थे-

(1)#इस्लाम_तथा_ईसाईयत_का_आविर्भाव_हो_चुका_था। मोदी के प्रेरणास्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने शंकराचार्य की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इनको भी सनातन परंपरा में समाहित करना चाहा किंतु बात नहीं बनी तो नहीं बनी।
" हिंदू ही यहां का राष्ट्र हो तथा अन्य परकीय हैं" की गर्जना जब डा हेडगेवार तथा गुरूजी गोलवलकर ने की, तो तुरंत उसको modify करते हुए अपनी मसीही हिंदू तथा मोहम्मदी हिंदू की धारणा को मूर्त स्वरूप दिया जैसे शैव, स्मार्त, मीमांसक, नैयायिक, वेदांती, जैन, बौद्ध आदि समस्त दर्शनों के अनुयायियों के कल्याण की कामना हरि से की जाने लगी उसी प्रकार इस सूची में मोहम्मदी हिंदू तथा मसीही हिंदू को भी पचाने की कोशिश की गई। यही संघ का भ्रमपूर्ण चिंतन था कदाचित कोई मसीही हिंदू हो सकता है किंतु मोहम्मदी हिंदू का एक ही अर्थ है- मुनाफिक जिसे काफ़िर से भी निकृष्ट माना गया है।
RSS के राष्ट्रवादी मुसलमान की परिभाषा पर टिप्पणी करते हुए सरदार विट्ठल भाई पटेल ने लिखा है-
"There is only one Nationalist Muslim in India and he is Pt. Jawahar Lal Nehru." अर्थात् भारत में केवल एक ही राष्ट्रवादी मुसलमान है और वह है पंडित जवाहरलाल नेहरू।
सरदार पटेल मुसलमानों को राष्ट्रद्रोही नहीं मानते थे किंतु जिस अर्थ में संघ किसी मुसलमान के राष्ट्रवादी होने का प्रमाण पत्र देता है, उस अर्थ को उन्होंने स्पष्ट किया।
इसी प्रकार गांधी जी द्वारा मुसलमानों को समझाने-बुझाने तथा संघ परिवार द्वारा उनको राष्ट्रवादी बनाने के लिए मोहम्मदी हिंदू बनाने के प्रयासों को निरर्थक घोषित करते हुए स्वामी श्रद्धानंद के शिष्य कुंवर सुखलाल ने गर्जना की-
जब तलक तालीम क़ुरआन
पे है इनका एतकाद
ये न समझेंगे मुसाफिर
आप समझाएंगे क्या?
अर्थात जब तक किसी मुसलमान का कुरान पर विश्वास है, तब तक कोई गांधी, हेडगवार या गोलवलकर उनको समझा नहीं पाएगा। कारण क्या है- "जहां महज शक करने से इंसा कुफ्र करता है।"
अर्थात कुरान में संशोधन नहीं हो सकता। एक संशोधित इस्लाम- इस्लाम नहीं है। कुरान की एक लाइन पर भी शक करते ही कोई मुसलमान नहीं रह जाता- वह मुनाफिक हो जाता है।
यहां उल्लेखनीय है कि हिंदुत्व तथा इस्लाम दोनों ही बौद्ध तथा ईसाई धर्म से बिल्कुल अलग है इसलिए इनमे घालमेल नहीं हो सकता। #ईसाईयत_की_कोई_भाषा_नहीं_है- अंग्रेजी का ईसाईयत से कोई लेना-देना नहीं। फ्रांस का ईसाई फ्रेंच में बाइबल पढ़ता है तथा जर्मनी का जर्मन में। ईसा मसीह अंग्रेजी का एक शब्द नहीं जानते थे। उत्तर प्रदेश का इसाई हिंदी में तथा केरल का ईसाई मलयालम में Bible पढ़े तो उसे उतना ही पुण्य मिलेगा। किंतु यज्ञोपवित या विवाह चाहे विश्व के किसी कोने में हो- #मंत्र_संस्कृत_में_ही_बोले_जाएंगे तथा वह भी एक विशेष उच्चारण के साथ- उदात्त, अनुदात्त तथा स्वरित का ध्यान रखते हुए। #नमाज_जहां_भी_अता_होगी_अरबी_में_ही_होगी उसका कोई local भाषा में translation, उसका substituteनहीं होगा। कुरान को हिफ़्ज़ करने वाला ही हाफिज होगा तथा इसका कोई विकल्प नहीं है।

(2) #दूसरा_परिवर्तनीय_यह_आया_कि_पिछड़ों_और_दलितों_में_नए_शक्ति_केंद्रों_का_उदय_हो_गया_था। यदि संघ ने यह अंबेडकर पूजा 1947 में प्रारंभ की होती तो सफलता मिल सकती थी क्योंकि उस समय यदि भारत अंबेडकरमय हुआ होता तो जैसे बुद्ध= incarnation of God Vishnu ( विष्णु का अवतार तथा बुद्ध= मूर्ख मान लिया गया उसी प्रकार Ambedkar= बोधिसत्व तथा Ambedkarite=?  मान लिया जाता क्योंकि अंबेडकर का समाज जागरूक नहीं हो पाया था। किंतु "अब पछताए होत क्या चिड़िया चुग गई खेत" 1947 में सवर्ण आगे थे, अंबेडकर का समाज इतने में ही धन्य हो जाता कि सारा सवर्ण तथा पिछड़ा उन्हें पूछ रहा है तथा वह अंबेडकर के मंदिरों को देखकर धन्य हो जाता। यही हाल सरदार पटेल जैसे कुछ लोगों को लौहपुरुष तथा और भी अधिक आवश्यक होने पर रजत पुरुष तथा स्वर्ण पुरुष बनाकर की जा सकती थी। पिछड़ा कभी लोहिया, चरण सिंह या वी.पी. सिंह के नेतृत्व में संघर्षरत था, जनेश्वर मिश्र "मिनी" लोहिया थे, मोहन सिंह जैसे लोग अग्रणी पर #लालू_तथा_मुलायम_के_मंच_पर_आने_के_बाद_स्थिति_बदल_गई। अब जनेश्वर मिश्र के वंशजों को पता है कि-
" वह दिन हवा हुए,
जब पसीना गुलाब था।
अब इतर भी मलिए
तो खुशबू नहीं आती।।"
 एक समय था जब जनेश्वर मिश्र के नेतृत्व में समाजवादी युवजन सभा के ब्राह्मण युवा, मंच पर चढ़कर डा लोहिया के आह्वान पर जनेऊ उतारकर तड़ाक से "#जाति_तोड़ो_जनेऊ_तोड़ो" अभियान में तोड़ते थे तो सारे अहीर तालियां बजा कर उन्हें 80% बनाम 20% की लड़ाई का योद्धा तथा अपना नायक मानते थे किंतु अब 80% बनाम 20% की लड़ाई खत्म हो चुकी है।
#अखिलेश_और_मायावती_भले_आपस_में_दोस्ती_कर_लें लेकिन अब यह दोस्ती स्वार्थों के लिए अफजल खां तथा शिवाजी की तरह बबुआ तथा बुआ का तालमेल होगा-हिरण्यकश्यप का स्टेट गेस्ट हाउस कांड स्वार्थों के चलते मायावती भुला सकती हूं कि उनका समाज उसकी याद करके सिहर उठता है। इस समझौते के होते ही #जिन_सीटों_पर_अखिलेश_नहीं_लड़ेंगे_वहां_शिवपाल_की_बिना_किसी_ठोस_प्रयास_के_दुकान_खुल_जाएगी तथा #जिन_इलाकों_से_हाथी_नहीं_होगी वहां जो पहले हाथी की लीद ढोते थे तथा अब बगावत के रास्ते पर हैं मौका पाकर हाथी के पीलवान हो जाएंगे तथा उसे अपने अंकुश के नीचे ले लेंगे। #लोहिया_चीखते_रहे_कि_उन्हें_शम्बूक_के_खून_का_राम_से_बदला_लेना_है किंतु शम्बूक के वंशज आत्मनिर्भर हो चुके हैं- #शम्बूक_की_बेटी_मायावती_अब_वशिष्ट_और_राम_के_वंशजों_को_अपने_चरणो_में_लिटा_चुकी_है। कितने भी जोर शोर से बसपाई ब्राह्मण परशुराम जयंती पर फरसा लहरालें किंतु TV पर उनका चेहरा देखते ही कनखियों में दलित मुस्कुरा देता है कि किस रूप में उसने मायावती के दरबार में उनको देखा है-

 "पितु समेत लै लै निज नामा।करन लगे सब दंड प्रणामा।।"

अब शंकराचार्य की भूमिका निभा रहा संघ जो भी समन्वय का फार्मूला रखेगा उसमें सवर्ण को सबसे निचले पायदान पर रहना होगा। आदि शंकराचार्य के फार्मूले में बुद्ध को सर्वोच्च स्थान दिया गया किंतु व्यवहार में सवर्ण शीर्ष पर रहा जिससे दोनों को स्वीकार्य हो गया। किंतु अब सवर्ण जो 1989 तक सत्ता के शीर्ष पर रहा है, एकबारगी अपनी सबसे निम्न स्थिति को स्वीकार नहीं करेगा। पिछड़ों और दलितों में जो शीर्ष पर पहुंचने से वंचित रह जाएगा- उसको साथ लेकर के वह लड़ाई छेड़ देगा तथा जैसे "हाथी नहीं गणेश है" के नारे के साथ यह माहौल ला दिया था कि कई यादव दरोगा अपनी नेम प्लेट बदलवा लिए थे तथा "यादव" शब्द हटवा दिए थे- उसी प्रकार आवश्यकतानुसार पुरानी मायावती- मायावती के किसी नए संस्करण को आगे करके  सारा मायाजाल ध्वस्त कर देगा।
"तप बल विप्र सदा बरियारा" #मात्र67विधायकों_वाली_मायावती_को213विधायकों_के_बूते_मिलने_वाली_सारी_की_सारी_मलाई_को_एकतरफा_चटवा_कर वह अपनी अद्भुत क्षमता प्रदर्शित कर चुका है।

संघ परिवार उसे धमकाएगा- किसी भीम सेना के समर्थकों की आवाज आएगी कि "हम मुसलमान हो जाएंगे।"
इस धमकी पर मैं आपको एक संस्मरण सुना रहा हूं जो कल्पित नहीं है। मैं अपने पूज्य स्वर्गीय पिता श्री की सौगंध खाकर कह रहा हूं कि यह संस्मरण सही है। मेरे पिताजी कौशांबी में सैनी college में Lecturer थे। एक मौर्य जी थे जिनका नाम ध्यान नहीं आ रहा है communist विचारधारा से प्रभावित थे तथा सैनी कॉलेज में एक टीचर श्री राजेंद्र मोहन वर्मा जी थे जो कट्टर communist थे तथा पिताश्री के सनातनी होने के बावजूद इन लोगों की अच्छी मित्रता थी तथा कभी चौराहे पर तथा कभी घर पर debate हो जाती थी। एक बार किसी बात पर बहस के दौरान मौर्य जी तैश में आकर कह बैठे- "#आप_लोगों_की_बनाई_जाति_व्यवस्था_से_त्रस्त_होकर_हम_लोग_मुसलमान_हो_जाएंगे तथा तब आपको पता लगेगा।" वहां चौराहे पर मौजूद कई मुसलमान बड़े प्रसन्न हो गए तथा कई RSS Minded हिंदू परेशान हो गए। पिताजी ने बड़े सौम्य भाव से उनको निरुत्तर कर दिया- कौन सा तीर मार लोगे? जब रोम में बहुजन इसाई हो गया तो उनका राजा भी इसाई धर्म स्वीकार कर लिया तथा उनका राजा बना रहा। क्या तुम मुसलमान बन कर हमारे मकड़जाल से निकल पाओगे? तुम और वर्मा जी दोनों रात भर यह सोचो कि अगर अल्पमत में आने पर हम मुसलमान हो गए तो क्या होगा? हम सैयद बनेंगे तथा तुम वहां भी कुँजड़ा रहोगे, सैयद तो होगे नहीं। जरा पता कर लो क्या कोई सैयद या खान साहब किसी कुँजड़े से कोई वैवाहिक रिश्ता बनाए हैं? यदि बनाए होंगे तो भी वह उतना ही rare होगा जितना हिंदुओं में। यहां हम पुड़ी सब्जी खाकर कथा सुनाते हैं वहां मुर्ग मुसल्लम खाकर कर्बला की कहानी सुनाएंगे। यहां तो आरक्षण की भी अवधारणा है, पाकिस्तान में वह भी नहीं है। हमने इतनी पीढ़ी तक वेद कंठस्थ किया है कुरान हिफ्ज करने में कोई आरक्षण नहीं रहेगा? #पाकिस्तान_में_कोई_तुम्हारे_समाज_का_आज_तक_उतनी_भी_महत्वपूर्ण_जगहों_पर_पहुंचा_है_जितना_भारतवर्ष_में?
जितने मुसलमान भी थे उन्होंने भी सहमति जताई तथा एक भठियारा समाज के उपस्थित व्यक्ति ने कटाक्ष करते हुए अल्लामा इकबाल की पंक्तियां उद्धत की-

शेख हो, सैय्यद हो, पठान हो तुम?
सच बताओ कि मुसलमान हो तुम?

आज के प्रसंग में पूज्य पिताश्री के वचनों का मूल्यांकन करते समय सोचता हूं कि सहारनपुर प्रसंग के बाद रामपुर कांड ने कुछ हद तक दलितों की आंखें खोल दी होंगी कि #आखिर_कुछ_तो_ऐसी_वजह_रही_होगी_कि_डा_अंबेडकर_बौद्ध_बने_थे_तथा_किसी_अन्य_धर्म_में_नहीं_गए_थे।
इन 2 कारणों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का Social Harmony का फार्मूला कारगर नहीं होगा तथा जिन चार जूतों को उग्र संगठन शक्ति के बल पर नहीं मार पाए उन चार जूतों को खाने के लिए संघ परिवार बहला-फुसलाकर सहर्ष तैयार कर ले- इसकी संभावना न के बराबर है। अतः सामाजिक संरचना को नए सिरे से परिभाषित कर आधुनिक शंकराचार्य की भूमिका में संघ की परिकल्पना शेखचिल्ली के मंसूबे बनकर बिखर जाएगी तथा "अमित शाह" का जुमला बनकर रह जाएगी।

Tuesday, April 2, 2019

देशी गाय को कैसे बचाया जा सकता है?

देशी गाय को कैसे बचाया जा सकता है?
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ऍफ़ डी आई को रोके बिना भारत में गाय को बचाया नहीं जा सकता। यदि ऍफ़ डी आई जारी रही तो 2050 तक हिन्दुओ का एक अच्छा खासा तबका गौ मांस खाने लगेगा, और गौ मांस भक्षण को सार्वजनिक स्वीकार्यता मिल जायेगी। देशी गाय की संख्या इतनी सिकुड़ चुकी होगी कि, इसके दूध एवं उत्पादो से मध्यम वर्ग तक वंचित हो जाएगा, और सिर्फ अमीर लोग ही इसका इस्तेमाल कर सकेंगे।
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देशी गाय A2 दूध देती है, जो कि एक औषधि है। वर्ण संकर गाय, भैंस समेत शेष सभी अन्य दुधारू जानवर A1 दूध देते है। A2 एवं A1 दूध में क्या फर्क है, और क्यों A2 दूध एवं गौ मूत्र फायदेमंद है, इस बार में कृपया गूगल करें। मैंने जवाब में इस विवरण को शामिल नहीं किया है।
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गाय को लेकर अमेरिकी-ब्रिटिश धनिको के दो लक्ष्य है :
देशी गाय के A2 दूध, गौ मूत्र आदि पर एकाधिकार बनाना
भारत में ज्यादातर हिन्दुओ को गौमांस खाने के लिए तैयार करना, ताकि धर्मांतरण किये जा सके।
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देशी गाय के उत्पादों पर एकाधिकार बनाने के लिए वे कानूनों का इस्तेमाल करते है, और हिन्दु युवाओं को गौ मांस भक्षण की तरफ धकेलने के लिए उनके पास पेड मीडिया है।
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( इस जवाब में चार खंड है। खंड (स) एवं (द) महत्त्वपूर्ण है। आप चाहे तो सीधे खंड (स) एवं (द) पढ़ सकते है। )
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खंड (अ)
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(1) मुग़लो के शासन काल में ज्यादातर समय तक गौ कशी निषिद्ध थी। बाबर, हुमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ आदि के काल में गौ हत्या पर प्रतिबंध जारी रहे। औरंगजेब के शासन के शुरूआती वर्षो में गौ हत्या की अनुमति थी, किन्तु बाद में औरंगजेब ने गौ हत्या पर रोक लगाने के लिए गेजेट नोटिफिकेशन निकाले थे । तब से लेकर बहादुरशाह जफर तक बहुधा प्रतिबन्ध जारी रहा। जफ़र के शासन काल में भी गौ कशी पर मृत्यु दंड का प्रावधान था। मुगल शासको द्वारा गौ हत्या का समर्थन नहीं करने के कारण इस काल में गायें बची रही।
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(2) ब्रिटिश गौ मांस खाते थे, और उन्होंने भारत में आने के साथ ही गायें काटने के लिए गेजेट नोटिफिकेशन छापने शुरू किये। जब कत्लखानों में गायें काटी जाने लगी तो मुस्लिम धर्मावलम्बी भी गौ मांस खाने लगे, और यहाँ से हिन्दू-मुस्लिम में गाय को लेकर प्रतिरोध प्रारंभ हुआ। ब्रिटिश द्वारा गौ कशी को प्रोत्साहन देने के पीछे दो कारण थे : धर्मांतरण , एवं हिन्दू-मुस्लिम में राजनैतिक अलगाव खड़ा करना।
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(3) सैन्य नियंत्रण हासिल करने के बाद ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत के सैनिको को कन्वर्ट करने के प्रयास शुरु कर दिए थे। बैरको में हिन्दू देवी देवताओं के चित्र लगाने एवं धार्मिक चिन्ह शरीर पर धारण करने आदि पर प्रतिबन्ध लगाये गए, बैरको में चर्च खोले गए, और रविवार को पादरियों को बुलाकर उन्हें उपदेश किये जाने लगे। 1857 से पहले तक कारतूसो पर भैंस की चर्बी चढ़ाई जाती थी, किन्तु वायसराय ने इस पर गाय एवं सूअर की चर्बी मिक्स करके लगाने के आदेश दिए।
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(4) क्रान्ति तो असफल हो गयी थी, लेकिन 1860 से भारत में देश के विभिन्न स्थानों से गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए छोटे मोटे आन्दोलन शुरू हुए, और ये फैलने-बढ़ने लगे। किन्तु गोरो ने गाय काटने पर प्रतिबन्ध नहीं लगाया। गोरे जानते थे कि, यदि गाय कटती रहेगी तो मुस्लिम गौ मांस खायेंगे और इससे हिन्दू मुस्लिम के बीच के खाई बनेगी। और इस तरह भारत में हिन्दू-मुस्लिम के बीच गाय को लेकर पहली बार दंगो की शुरुआत हुयी !!!
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इसी बीच गोरों ने दलितों को कन्वर्ट करने के लिए कुछ दलित नेताओं को सार्वजनिक रूप से गाय काटने और गौ मांस खाने के लिए चाबी देना शुरू किया। यदि दलित गाय खाना शुरू कर देते थे, तो वे हिन्दू धर्म से च्युत हो जाते थे, और फिर उन्हें कन्वर्ट करना आसान हो जाता था। किन्तु दलितों ने पेड नेताओं के झांसे में आने से इनकार कर दिया।
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भारत में गाय बचाने की यह मूवमेंट देश व्यापी हो चुकी थी, और 1860 से 1895 के दौरान गाय को लेकर सैंकड़ो दंगे हुए। बाद में महर्षि दयानंद सरस्वती से लेकर देश के कई नेता, संत, महंत, राजनेता, सेनानी आदि भी इस मूवमेंट में जुड़ते चले गए। यह विकेन्द्रित आन्दोलन था। हिन्दुओ का तर्क था कि गाय काटना हमारे धर्म के खिलाफ है, और हम अपने देश में गौ कशी नहीं होने देंगे।
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https://goo.gl/2NHb54
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(5) इसी समय इत्तिफाक से भारत में एक संत का अवतरण हुआ। इन्होने 1885 में भारत के हिन्दुओ को यह बात बतानी शुरू की कि :
"गौ मांस का सेवन हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति का अनिवार्य अंग रहा है। और वैदिक काल में ऐसा कोई हिन्दू नहीं हो सकता था, जो गौ मांस न खाता हो। यदि हिन्दूओ को ताकतवर होना है तो उन्हें मांसाहार अवश्य करना चाहिए।"
उन्होंने यह भी बताया कि : "गीता पढ़ने की जगह यदि हिन्दू फ़ुटबाल खेलेंगे तो उन्हें मुक्ति जल्दी मिलेगी !!"
चूंकि ये संत बंगाली थे, अत: मांसाहार उनकी संस्कृति का अंग था, और यह स्वभाविक भी था। किन्तु अंत तक वे माँसाहारी ही बने रहे, और अपने अनुयायियों को भी मांसाहार करने की सलाह दी !! हालांकि, उन्होंने हिन्दुओ को गौ मांस खाने के लिए कभी प्रेरित नहीं किया, किन्तु इसे त्याज्य ही बताया। बात के साधारण होने के बावजूद इन उपदेशो की टाइमिंग का अपना महत्त्व था। इन महाशय ने उस समय गौ हत्या एवं गौ मांस भक्षण के पक्ष में एक वाजिब धार्मिक वजह दे दी थी !!
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जाहिर है, ब्रिटिश काल में इन्हें काफी मकबूलियत प्राप्त हुयी, और आज भी ये भारत के सबसे महान संत माने जाते है !!
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( मैं वेदों आदि का मर्मग्य नहीं हूँ। अत: मुझे नहीं पता कि वैदिक काल में हिन्दू होने के लिए गौ मांस भक्षण करना आवश्यक था, या नही। किन्तु भारत में शायद ये एक मात्र संत हुए, जिन्होंने गौ मांस भक्षण को वैदिक संस्कृति से जोड़ा, और इत्तिफाक से इन्हें अन्तराष्ट्रीय ख्याति भी मिली !! )
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(6) अपने शुरूआती दौर में मोहन दास ने गौ हत्या का विरोध किया था, किन्तु 1947 में मोहन ने स्टेंड लिया कि गौ हत्या को प्रतिबंधित करने के लिए क़ानून नहीं बनाया जाना चाहिए। मोहन का मानना था - धर्म के आधार पर न तो मुस्लिमो के लिए क़ानून बनने चाहिए न हिन्दुओ के लिए।
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(7) 1955 में कोंग्रेस के सांसद ने पहली बार गौ हत्या पर देश व्यापी प्रतिबन्ध लगाने के लिए बिल संसद में रखा था। किन्तु जवाहर लाल ने कोंग्रेस के सांसदों को धमकाया कि यदि यह बिल पास हुआ तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। बिल गिर गया।
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(8) 1966 में हजारो साधू-संतो ने संसद का घेराव करके देश व्यापी गौ हत्या पर रोक लगाने के लिए गेजेट नोटिफिकेशन निकालने की मांग की। पहले लाठी चार्ज, फिर टियर गैस और फिर इंदिरा जी ने गोली चलाने के आदेश दिए। लगभग 66 लोग मारे गए। सरकारी आंकड़ा शायद 11 के आस पास का है। संख्या के बारे में विकी पीडिया पर भी गलत जानकारी रखी है। 2 साल पहले तक वहां सही जानकारी थी। पिछले वर्ष इसे बदल दिया गया।
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बाद में इंदिरा जी ने उन सभी राज्यों में गौ हत्या के क़ानून लागू किये, जहाँ जहाँ पर कोंग्रेस सत्ता में थी। उन सभी राज्यों में गौ हत्या के क़ानून लागू नहीं हुए जहाँ पर कम्युनिस्ट सरकार थी, या कोंग्रेस विपक्ष में थी। इस तरह 150 साल बाद देश के कई राज्यों में फिर से गौ हत्या निषेध के बिल पास हुए !!
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( कृपया ध्यान दें कि गौ हत्या रोकने का क़ानून केंद्र सरकार द्वारा नहीं बनाया जा सकता। यह राज्य का विषय है। अत: सिर्फ राज्य सरकारें ही इस पर प्रभावी क़ानून बना सकती है। )
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खंड (ब)
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1966 से 1998 तक गाय राजनीती से लगभग बाहर रही। ऍफ़ डी आई का विस्तार होने के साथ ही भारत में अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों का नियंत्रण बढ़ने लगा और इस वजह से मिशनरीज की ताकत भी बढ़ना शुरू हुयी। पिछले 10 वर्षो से गाय फिर से राजनीति की मुख्यधारा में है। तो वह चक्र फिर से शुरू हो चुका है जो गोरों ने 200 साल पहले प्रारंभ किया था। इसमें कुछ नई चीजे यह है कि, अब ब्रिटिश-अमेरिकी धनिक पहले के मुकाबले कई गुणा ज्यादा ताकतवर है, और उनके एजेंडे में देशी गाय पर एकाधिकार करने की नीति भी शामिल है।
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आज की तारीख में भारत की किसी भी राजनैतिक पार्टी या नेता में इतना साहस नहीं है कि वे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के खिलाफ जा सके। तो वास्तविक रूप से वे अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों के साथ है, किन्तु मौखिक रूप से गौ हत्या रोकने के पक्ष में बयान वगेरह देते रहते है।
किन्तु वास्तव में गाय बचाने के ये सारे बयान सिर्फ तनाव बढाने के लिए दिए जाते है। क्योंकि यदि गाय बचानी हो तो इसके लिए गेजेट में क़ानून छापने होते है। और क़ानून छापने को कोई पार्टी तैयार नहीं है। कार्यकर्ताओ को भाषण सुनाकर वे यह विश्वास दिला देते है, कि हम गाय बचाने के प्रयास कर रहे है !!
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इसके सैंकड़ो उदाहरण है, किन्तु निचे मैंने कुछ उदाहरण दिए है, जिससे आपको इस नीति की झलक मिल सकती है। तनाव बढाने के इस सर्कस में सभी पॉलिटिकल पार्टियां शामिल है। कोई अपवाद नहीं। कोई भी नहीं।
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(1) वाजपेयी ने 2003 में संसद में देश व्यापी गौ हत्या पर प्रतिबन्ध के लिए बिल पेश किया था। NDA में शामिल अन्य दलों ने इस बिल का विरोध किया और बिल गिर गया। मेरे विचार में बिल अव्यवहारिक था, और इसे गिरना ही था। केंद्र सरकार के पास पुलिस नहीं होती है, अत: गौ हत्या पर केंद्र द्वारा देश व्यापी बिल लाना अव्यवहारिक है। और यदि पास कर भी दिया जाता है, तो यह कभी लागू नहीं होगा।
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https://goo.gl/4oejVN
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(2) 12 जुलाई 2014, एम पी विधानसभा में कोंग्रेस विधायक आरिफ अकील द्वारा गौ रक्षा हेतु निजी बिल सदन में रखा गया। इस बिल में प्रावधान थे कि : गाय की मृत्यु के बाद गायो का अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए , या तो उसे जलाया जाए या उसे दफनाया जाए। गाय के अंगो की तस्करी तथा खरीद फरोख्त पर प्रतिबन्ध लगाया जाए आदि आदि।
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https://goo.gl/b65Nf9
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अक़ील ने सदन में कहा कि गाय को हिन्दू अपनी माता का दर्जा देते है इसलिए गाय की रक्षा तथा सम्मान के लिए सरकार को गौ सरक्षण के क़ानून को पास करना चाहिए। संघ=बीजेपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधानसभा में बिल को 55 वोटो से गिरवा दिया !!! संघ=बीजेपी सरकार द्वारा बिल गिरा दिए जाने पर आरिफ अकिल कोर्ट चले गए और यह बिल पास करने का ऑर्डर करवाने के लिए उन्होंने जनहित याचिका लगाई।
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( इसका यह आशय नहीं है, कि कोंग्रेस गौ हत्या रुकवाना चाहती है। क्योंकि जब मैंने कोंग्रेस के कार्यकर्ताओ से पूछा कि एमपी को जाने दीजिये, आप उन राज्यों में ये बिल पास करवा दीजिये जहाँ आपकी सरकारें है, तो उन्होंने जवाब दिया कि, --- हमें ये बिल पास करने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। पर हम यह स्थापित करना चाहते थे कि, गाय पर क़ानून बनाने को लेकर कोंग्रेस एवं बीजेपी=संघ एक ही है। बस भाषण एवं बयानो में भिन्नता है।)
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(3) पेड आमिर खान ने जब युवाओं को मांस खाने को प्रोत्साहित करने के लिए दंगल फिल्म बनाई तो बीजेपी=संघ के सांसद उदित राज ने एक के बाद एक 3 ट्विट किये कि, गरीब दलितों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए बीफ खाना चाहिए। उन्हें प्रेरित करने के लिए उन्होंने उसेन बोल्ट का उदाहरण भी दिया कि, बोल्ट गरीब थे , किन्तु बीफ खाने से ही वे गोल्ड मैडल जीत पाए। भारत में बीफ सबसे सस्ता पोषक आहार है, अत: गरीबों-दलितों को बीफ खाना चाहिए। ये बयान मैंने अपनी जेब से नहीं रखा है, संघ=बीजेपी के सांसद उदित राज ने ये ट्विट किये थे।
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https://goo.gl/cHxK3L
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कैच इसमें यह है कि, उदित राज ने कार्ल लुईस का जिक्र जानबूझकर नहीं किया। दरअसल 90 के दशक के ओलम्पिक स्वर्ण पदक विजेता कार्ल लुइस 100% शाकाहारी है !! जब लुइस की आयु 20 वर्ष के क़रीब थी तो उन्होंने शाकाहार अपना लिया था, और अपने बेहतरीन प्रदर्शन का श्रेय वे शाकाहार को देते है। उनका दावा है कि, शाकाहार अपनाने के कारण ही उनके प्रदर्शन में सुधार हुआ और वे बेहतर एथलीट बन पाए।
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जाहिर है, संघ=बीजेपी का लक्ष्य खेल और खुराक पर टिप्पणी करना नही था, बल्कि वे गौ माँस सेवन को प्रोत्साहित करना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने गौ मांस का फेवर करने वाला किरदार चुना। संघ=बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने उदित राज पर कार्यवाही करने से इनकार कर दिया था।
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(4) पहले संघ=बीजेपी के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि, जिन्हें गौ मांस खाना है वे पाकिस्तान चले जाए। और इसके जवाब में संघ=बीजेपी के केन्द्रीय राज्य मंत्री किरेन रिजुजू ने सार्वजनिक रूप से कहा कि -- " मैं गौ मांस खाता हूँ, और किसी में हिम्मत है तो मुझे रोक कर दिखाए !! संघ=बीजेपी के किसी भी कार्यकर्ता ने न तो नकवी एवं रिजीजू पर कार्यवाही की मांग की और न ही उनका विरोध किया !! लेकिन यदि किसी सामान्य नागरिक पर उन्हें गौ मांस खाने का शुबहा हो जाए तो वे उसे पीटना शुरू कर देते है !!
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https://goo.gl/Y9iyTv
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(5) जब मनोहर पर्रीकर गोवा के सीएम थे तो हाईकोर्ट ने गोवा में गौ वंश की कटवाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। पर्रीकर तब इस प्रतिबन्ध को हटवाने के लिए कोर्ट गए। जब पर्रीकर को केंद्र में मंत्री बना दिया गया तो, संघ=बीजेपी के लक्ष्मीकान्त पार्सेकर गोवा के सीएम बने और उन्होंने गौ हत्या पर रोक का क़ानून लाने से इनकार कर दिया !! उनका तर्क था कि, हमें बड़ी मुश्किल से अल्पसंख्यको का विश्वास हासिल किया है, गौ हत्या पर बेन लगाकर हम लोगो को नाराज नहीं कर सकते। केंद्र में बीजेपी=संघ का जो भी एजेंडा रहा हो किन्तु गोवा में गौ कशी जारी रहेगी !!
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https://goo.gl/rvZ1rT
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(6) मई 2017, केरल में यूथ कांग्रेस ने सार्वजनिक रूप से गाय काटी, गौ मांस का वितरण किया। और केरल के बीजेपी अध्यक्ष ने घटना का वीडियो ट्विटर पर अपलोड किया। यदि आप इस घटना की गहराई से पड़ताल करेंगे तो जान जायेंगे कि मिशनरीज गाय का इस्तेमाल किस तरह कर रही है। ऊपर दिए गए प्रसंग में 3 घटनाएं है और तीनो का प्रभाव अलग अलग है।
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https://goo.gl/xGQxen
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केरल में गाय काटना कानूनी है। पर भारत में क्या आपने पहले कभी यह सुना या देखा है कि किन्ही नामचीन लोगो ने सार्वजनिक रूप से गाय काटी हो, और इसके फुटेज पूरे देश में फैलाए हो ? क्या ऐसे फुटेज कभी आप तक पहुंचे है ? नहीं !!
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राज्य सरकार ने इन लोगो पर आईपीसी की धारा 428 एवं पशु क्रूरता अधिनियम के तहत केस दर्ज किया। दोनों धाराएं कमजोर है अत: आरोपी आसानी से बच निकलेंगे।
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(!) धारा 428 : जो कोई दस रुपए या उससे अधिक के मूल्य के किसी जीवजन्तु या जीवजन्तुओं को वध करने, विष देने, विकलांग करने या निरुपयोगी बनाने द्वारा रिष्टि करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
यह धारा "रिष्टि" होने की दशा में लागू होती है। रिष्टि करना तब कहा जाता है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाए। इन लोगो ने जो गाय काटी है उसे ये किसी अन्य व्यक्ति से छीन कर तो नहीं लाये थे। गाय इन्ही की रही होगी। खुद की संपत्ति की रिष्टि नहीं की जा सकती, अत: अदालत में यह धारा उड़ जायेगी।
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(!!) पशु क्रूरता अधिनियम में पहला अपराध करने से सिर्फ जुर्माने का प्रावधान है। वो भी 50 से 150 रुपये। दूसरा या तीसरा अपराध करने से जुर्माना 200 रूपये एवं अधिकतम सजा 3 महीने की है। इस तरह से आरोपी 50 रूपये देकर बरी हो जायेंगे।
केरल में गौ वध करना गैर कानूनी नहीं है, इसीलिए इन्हे गौ कशी के जुर्म में भी सजा नहीं दी जा सकती। स्पष्ट है कि कोंग्रेस के पदाधिकारियों ने सब देख भाल कर यह हरकत की थी।
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यदि इन आरोपियों पर आईपीसी की धारा 295 के तहत केस दर्ज किया जाए तो इन्हे 2 साल की सजा हो जायेगी। किन्तु यह सजा तब होगी जब इन पर पुलिस यह धारा लगाए और जज घूस खाकर इन्हे छोड़ न दे। पुलिस राज्यों के अधीन आती है, अत: केंद्र सरकार तकनीकी रूप से इसमें कोई हस्तक्षेप करके यह धारा नहीं लगवा सकती। तो इस तरह यह नजर आता है, कि प्रधानमंत्री जी इसमें कुछ नहीं कर सकते थे। पर ऐसा नहीं है।
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6.1. केंद्र सरकार कैसे यह सुनिश्चित कर सकती है कि इन सभी आरोपियों को जल्दी से जल्दी 2 साल की सजा हो जाए ?
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इसके लिए केंद्र सरकार निम्न कदम उठा सकती थी :
केंद्र सरकार एक गेजेट नोटिफिकेशन निकाल सकती थी कि, पशु क्रूरता अधिनियम तथा आई पी सी की धारा 428 एवं धारा 295 के तहत दर्ज मामलो की सुनवाई नागरिको की ज्यूरी द्वारा की जायेगी।
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यह अधिसूचना जारी होने के बाद यह मुकदमा ज्यूरी के सामने आता। अब ग्रांड ज्यूरी इस मुकदमे की सुनवाई के लिए केरल राज्य के 500 से 1500 नागरिको की ज्यूरी का गठन कर सकती थी। ग्रांड ज्यूरी को यह अधिकार होता है कि वह किसी मुकदमे की धाराएं बदल सके। इस तरह ग्रांड ज्यूरी इन आरोपियों पर धारा 295 लगा देगी। ज्यूरी में सुनवाई रोजाना होती है। तथा वीडियो एवं फोटो के रूप में सबूत मौजूद होने से ज्यूरी इन सभी आरोपियों को 2-3 दिन में ही 2 साल की सजा दे देती।
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ज्यूरी चाहे तो इन आरोपियों का सार्वजनिक नारको टेस्ट भी ले सकती थी। नारको टेस्ट होने से यह सामने आता कि इन कार्यकर्ताओं को ऐसा करने के निर्देश कोंग्रेस के किन किन आला नेताओं से मिले थे। इस तरह इस साजिश में शामिल सभी व्यक्ति आरोपी बनते और ज्यूरी इन्हें भी दो दो साल की सजा दे देती। यदि ज्यूरी चाहे तो अपराध में भूमिका के आधार पर सजा को घटा बढ़ा सकती थी।
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6.2. क्यों मैं कहता हूँ कि यदि जूरी होती कोंग्रेस के इन नेताओं को 100% सजा हो जाती ?
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देखिये, यहाँ एक बात यह समझना जरुरी है कि, केरल में रहने वाले जो भी लोग गौ मांस खाते है, वे भी इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि कुछ लोग सार्वजनिक रूप से गाय काट कर इसके फुटेज पूरे देश में फैलाकर हिन्दुओ की भावनाएं जाया तौर पर भड़काएं। गौ मांस खाना और सार्वजनिक रूप से गाय काट कर पूरे देश में इसे फैलाना बिलकुल अलग बात है।
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इसे एक और उदाहरण से समझिये :
भारत में कितने लोग गाली देते है, या पोर्न देखते है ? और
उनमें से कितने लोग यह स्वीकार करेंगे कि कोई व्यक्ति टीवी पर आकर गालियाँ दें ?
मेरे विचार में 99.99% लोग नग्नता-हिंसा-बर्बरता आदि के सार्वजनिक प्रदर्शन को बर्दाश्त नहीं करेंगे, और वे सोचेंगे कि यदि इन्हें रोका नहीं गया तो समाज में वैमनस्य एवं हिंसा फैलेगी। तो वे इन आरोपियों को सजा देंगे। जज का दिमाग इस तरीके से काम नहीं करता। उन्हें जो पैसा देता है, वे उस हिसाब से क़ानून की व्याख्या कर देते है। और मिशनरीज के पास पैसे का समन्दर है।
यदि धारा 295 के तहत ट्रायल होता, और ज्यूरी सुनवाई करती तो सजा होना तय था। क्योंकि वीडियो में यह साफ़ नजर आ रहा है कि जब गाय काटी जा रही थी, तो ये लोग कई मोबाइल से इसका वीडियो शूट कर रहे थे। इस तरह यह साबित है कि इनका उद्देश्य सिर्फ गाय काटना ही नहीं था, बल्कि गाय को बर्बर तरीके से काटते हुए वीडियो बनाना, और इसे जनता में फैलाना था। यदि इन्हें सिर्फ कानून का विरोध करना होता था तो ये वीडियो नहीं बनाते थे।
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जूरी द्वारा सजा दिए जाने का परिणाम यह होता कि, आगे कोई इस तरह का दुस्साहस नहीं करता। क्योंकि ज्युरर इस बात पर भी ध्यान देते कि ऐसी घटना से देश में बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक दंगे फ़ैल सकते है, और सैंकड़ो जाने जा सकती है।
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29 मई, 2017 को राईट टू रिकॉल-जूरी सिस्टम कार्यकर्ताओ ने प्रधानमंत्री जी को ट्विट भेजने शुरू किये कि, इन आरोपियों का जूरी ट्रायल करने के लिए पीएम एक नोटिफिकेशन निकाले। किन्तु पीएम ने इस तरह का नोटिफिकेशन नहीं निकाला। यदि तब बीजेपी=संघ के कार्यकर्ता भी इस मामले के लिए जूरी ट्रायल की मांग करनी शुरू करते तो पीएम के नोटिफिकेशन निकालने की सम्भावना बढ़ जाती।
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मेरे द्वारा किया गया ट्विट - https://twitter.com/pawanjury/status/869150717914869760
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किन्तु संघ=बीजेपी के कार्यकर्ताओ की ज्यादा रुचि इस बात में थी कि कैसे इस बात को पूरे देश में फैलाया जाए कि, कोंग्रेस के नेताओं ने सार्वजनिक रूप से गाय काटी है। उन्होंने सजा दिलवाने और इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए कोई कदम न उठाये। यहाँ तक कि बीजेपी की केरल इकाई के शीर्ष नेताओं ने इसका बर्बर वीडियो अपनी प्रोफाइल पर अपलोड किया और इसे पूरे देश में फैलाया !! तो इस तरह गाय का इस्तेमाल सिर्फ लोगो का खून गरम करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन समाधान की अवहेलना की जाती है।
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यही बात जब आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओ से कही गयी कि, आप इन्हे सजा दिलवाने के लिए इनकी ज्यूरी ट्रायल की मांग का ट्वीट भेजने का समर्थन करो, तो उनका कहना यह था कि हम इसकी निंदा कर सकते है, लेकिन जूरी ट्रायल का समर्थन न करेंगे। और वैसे भी गाय हमारे एजेंडे में शामिल नहीं है। हम उसे अन्य पशुओ के सदृश ही समझते है।
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मेरा मानना है कि, आप हिन्दू है या मुसलमान है या मांसाहारी है या शाकाहारी है, या कोंग्रेसी है या भाजपाई है उत्तर भारतीय है या दक्षिण भारतीय है, जो भी है एक भारतीय होने के नाते इस तरह की घटनाओ से देश को एवं देश के हर वर्ग को हर तरफ से नुकसान ही होगा। ऐसी घटनाएं देश में बारूद बिछा देती है, और कभी एक चिंगारी इसमें विस्फोट कर देगी। मिशनरीज पेड मीडिया के माध्यम से गाय का इस्तेमाल देश में इसी तरह का बारूद बिछाने के लिए कर रहा है।
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(7) और कैसे वे गायों का इस्तेमाल समुदाय में आपसी प्रतिरोध बढाने के लिए कर रहे है ?
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अन्य राज्यों का हाल मुझे पता नही । लेकिन राजस्थान में सड़कों पर काफी गायें बढ़ गयी है। इक्का दुक्का नही। बल्कि उनके झुंडो ने सड़कों को अपना ठिकाना बना लिया है । राजमार्ग से लेकर शहरों के मुख्य मार्गों और गलियों तक। सभी जगह। वाहन चलाने वालों को इससे बहुत समस्या का सामना करना पड़ रहा है, और एक्सीडेंट्स भी हो रहे है।
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वे चाहते है कि गाएँ और गौ रक्षक नागरिकों की आँखों में चुभने लगे। यदि नागरिकों को गाये मुसीबत की तरह दिखने लगेंगी तो वे इन्हें बचाने की मुहिम के प्रति उदासीन हो जाएँगे। आवारा पशुओं को प्रबंधित करने तथा नागरी यातायात को समुचित बनाए रखने की ज़िम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है, तथा पशु कल्याण अधिकारी गायों के रख रखाव के लिए उत्तरदायी है। लेकिन शहर के नागरिकों के पास ऐसी कोई प्रक्रिया नहीं है कि वे इन अधिकारियों को नियंत्रित कर सके।
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नगर पालिकाओ ने अचानक से गौ वंश को अधिग्रहीत करके उन्हें आश्रय देना बंद कर दिया है। मुझे नहीं पता, ऐसा क्यों हुआ। अचानक से लावारिस मवेशियों को पकड़ने वाले वाहन निष्क्रिय हो गए है, इस विभाग के कर्मचारियों की ड्यूटी अन्य विभागों में लगा दी गयी है, पालिकाओ द्वारा संचालित कोईंन हाउसेस ने गायों को आश्रय देना बन्द ही नही कर दिया बल्कि उलटे उन्हें बाज़ार में छोड़ दिया है, तथा गौ शालाओं को दिए जा रहे अनुदानों को लम्बित कर दिया गया है। और नतीजे में गौ वंश के झुंडो ने सड़कों पर अपना जमाव बना लिया।
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सड़कों पर गायों की संख्या बढ़ने से अब सड़क दुर्घटनाएँ भी हो रही है । सिर्फ़ वडोदरा में ही गौ वंश के चलते दो व्यक्तियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। देश भर में इस तरह की दुर्घटनाओं में इजाफा हुआ है, और पेड मीडिया द्वारा रिपोर्ट भी किया जा रहा है, कि दुर्घटनाओ की वजह गौ वंश है।
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और यह प्रक्रिया इस तरह समुदाय में प्रतिरोध बढ़ाती है :
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पहले पेड आमिर खान दंगल में युवाओं को मांस खाने के लिए प्रेरित करते है। फिर सांसद उदित राज कहते है कि गरीब-दलित बच्चों को पोषक तत्वों के लिए गौ मांस का सेवन करना चाहिए। ( दरअसल, गौ मांस चिकेन, मटन से सस्ता है। सस्ता होने की वजह भी राजनैतिक है। ) , इसके बाद कोइन हाउस एवं स्थानीय प्रशासन के कमजोर प्रबंधन के कारण गौ वंश की आवक सड़को पर बढ़ने लगी।
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फिर प्रधानमंत्री जी एक के बाद एक सार्वजनिक रूप से गौ रक्षको को गुंडा एवं असामाजिक तत्व कहते है, और नतीजे में गौ रक्षको को ऐसे अन वांछित समूहों के रूप में देखा जाने लगता है, जो एक तरफ तो सड़को पर गायों को संख्या बढाकर दुर्घटनाओ के लिए जिम्मेदार है, और दूसरी तरफ उनकी वजह से गरीब-दलित गौ मांस का सेवन करके खुद को पोषित नहीं कर पा रहे है !!! जबकि सच्चाई यह है कि गौ रक्षक कुछ न कर रहे है, बल्कि सारी अव्यवस्था की वजह वांछित कानूनों का अभाव और गलत कानूनों का लागू होना है।
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ब्रिटिश राज द्वारा सेना को दूध आपूर्ति के लिए जो गौ शालाएं स्थापित की गयी थी, उन्हें भी बंद करने के आदेश दिए गए है, और अब 1 लाख रूपये मूल्य तक की गाय को 1000 रूपये के टोकन एमाउंट में विभिन्न उपक्रमों को दिया जा रहा है !!
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https://goo.gl/ZC4Kys
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इन 40 गौ शालाओं में कुल 25,000 गायें है !! दरअसल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाहें इस जमीन पर है । अभी अगले 5-10 साल में ये लोग मुक्त हुयी इस 20,000 हैक्टेयर जमीन को ठिकाने लगा देंगे, मतलब बेच बाच देंगे। यानी हमारे हाथ से गायें भी गयी और अब जमीन भी जायेगी !!
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https://goo.gl/uAjXHg
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तो वक्त के साथ साथ गाय को लेकर बयान बाजी और हिंसा और भी बढ़ेगी, गौ रक्षको द्वारा स्ट्रीट जस्टिस की घटनाओ में भी इजाफा होगा, पेड मीडिया पर इन्हें बड़े पैमाने पर रिपोर्ट भी किया जाएगा, और ऐसे कोई क़ानून नही छापे जायेंगे जिससे बढ़ते हुए तनाव को कम किया जा सके। और फिर हम किसी भी समय हम गाय को लेकर एक देश व्यापी दंगे के गवाह बनेंगे, जिसके अलाव पर फिर से वोट इकट्ठे किये जायेंगे !!
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और जब गौ मांस पर भक्षण पर इस तरह की बहस शुरू होगी तो अचानक से आप टीवी-अखबारों में कुछ बुद्धिजीवियों को यह तर्क देते हुए सुनेंगे कि हिन्दू धर्म में गौ मांस खाना जायज है, और ऐसा खुद स्वामी विवेकानंद ने कहा है !! अब पिछले 100 वर्षो से पेड मीडिया ने पूरे देश के हिन्दुओ के मानस पर स्वामी विवेकानन्द जी को इतना गहरा छापा है, कि आम राय में स्वामी विवेकानंद को हिन्दू धर्म का प्रतीक मान लिया गया है।
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तो मुझे नहीं लगता कि पेड मीडिया की चपेट में आये नागरिक स्वामी विवेकानंद के वक्तव्यों को डिफेंड करेंगे, बल्कि वे विभिन्न तर्क देकर इन्हें स्वीकार करना शुरू कर देंगे। गौ मांस को सार्वजनिक रूप से धार्मिक स्वीकृत मिलने लगेगी, और फिर मिशनरीज अन्य हिन्दू संतो को मीडिया कवरेज के एवज में गौ मांस का सार्वजनिक समर्थन करने के लिए बाध्य करेंगे।
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और वे ऐसा करेंगे भी। बाकी का काम सँभालने के लिए उनके पास मीडिया कवरेज के भूखे नेता है, और वे इसमें और भी इंधन डालेंगे। तो अब उनके पास आरक्षण के अलावा देश में आग लगाने के लिए एक और मुद्दा गाय है !!
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यह सब इतने धीमी गति से होगा कि आपको लगेगा यह खुद ब खुद हो रहा है !! जैसे आज भारत में हर महीने जीएसटी के कारण सैंकड़ो छोटे-मझौले व्यापारी अपना धंधा गँवा रहे है, और उन्हें इसका अहसास नहीं है, कि वे अपना कारोबार एक गलत क़ानून की वजह से खो रहे है।
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खंड (स)
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(1) और कैसे अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मालिक भारत में देशी गाय की नस्ल को ख़त्म कर देंगे ?
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बहुराष्ट्रीय कम्पनियां A2 दूध के उत्पादन पर एकाधिकार बनाना चाहती है, ताकि इन्हें ऊँचे दाम पर बेचा जा सके। आज से कई दशको पहले अमेरिकी-ब्रिटिश धनिकों ने भारत की देशी गाय की नस्ल आयात की और विदेश में इसे संवर्धित करना शुरू किया। किन्तु जब तक भारत में इस नस्ल की गाये इतनी बड़ी संख्या में मौजूद है, तब तक देशी गाय के उत्पादों को ऊँची कीमत पर नहीं बेचा जा सकता।
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तो भारत में देशी गाय की नस्ल की गायो की संख्या कम करने के लिए उन्होंने मनमोहन सिंह जी + सोनिया जी को 2014 में यह निर्देश दिए थे कि, वे भारत में देशी गायों का निषेचन जर्मन सांडो से बड़े पैमाने पर करवाने के लिए आवश्यक क़ानून गेजेट में छापे। मनमोहन सिंह जी ने इस योजना को हरी झंडी दे दी थी, किन्तु सांडो का आयात होने से पहले ही सत्ता परिवर्तन हो गया। बाद में मोदी साहेब ने पीएम बनने के बाद इन सांडो का आयात किया।
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https://goo.gl/QE4Ht4
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NDDB ( राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड ) चेयरमेन को आदेश दिए गए कि पशुपालको को जर्सी सांडो का वीर्य उपलब्ध करवाया जाए। भारत की लाखों देशी गायो का गर्भाधान अब जर्मन सांडो द्वारा करवा दिया जाएगा। देशी गायों की अगली पीढ़ी में देशी गायों के सिर्फ 50% जींस ही देशी होंगे, और इससे अगली पीढ़ी 25% देशी होगी। तीसरी और चौथी पीढ़ी में क्रमश: देशी जींस 12% एवं इससे कम रह जायेंगे।
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एक गाय की अगली पीढ़ी 6 वर्ष में आती है। इस तरह अगले 20-30 वर्षो में भारत की ज्यादातर देशी गायों का आनुवंशिक रूपांतरण भैंसों-सुअरों में हो चुका होगा। और इस निषेचन के बाद देशी गायें A2 की जगह A1 दूध देने लगेगी !!
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https://goo.gl/pgytYJ
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देशी गाय कम दूध देती है लेकिन भारत की शुद्ध नस्ल की गाय के दूध में A2 प्रोटीन होने के कारण यह दूध प्राकृतिक रूप से सेहत के लिए लाभदायक होता है। जबकि जर्सी जानवर के दूध में A1 प्रोटीन होने से यह दूध सेहत के लिए हानिकर है। A1 प्रोटीन होने से हार्ट अटेक, हाई कोलेस्ट्रोल, एवं पाचन सम्बन्धी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
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यदि सरकार जर्सी सांडो का आयात नहीं करेगी तब भी इस प्रक्रिया को धीमा तो किया जा सकता है किन्तु रोका नहीं जा सकता। क्योंकि सरकार के न करने से भी प्राइवेट कम्पनियां इन सांडो का आयात करेगी और पशुपालक मुनाफा कमाने के लिए अपनी गायों का गर्भाधान इन सांडो से करवाएंगे। उदाहरण के लिए बाबा रामदेव ने भी भारतीय गायों की नस्ल "सुधारने" के लिए ब्राजील के सांडो की सेवाएं लेने का प्रोजेक्ट शुरू किया है। वे इस मद में 500 करोड़ रूपये का निवेश करेंगे।
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https://goo.gl/WYt6yY
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बड़े पैमाने पर इस दूध का उत्पादन होने के कारण इस दूध की लागत कम होती चली जाएगी जबकि देशी गायों का दूध बहुत महंगा पड़ने लगेगा। इस तरह धीरे धीरे कुछ ही दशको में भारतीय प्रजाती की शुद्ध नस्ल की गाये लुप्त हो जायेगी। यह कुछ उसी तरह से होगा जिस तरह से बाजार से देशी टमाटर, देशी बैंगन, देशी लौकी, देशी आम आदि गायब हो गए है।
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भारत में इस तरह का कोई क़ानून नहीं है कि यदि कोई व्यक्ति A1 दूध को A1 बताकर बेचता है तो उस पर कार्यवाही की जा सके। और इस क़ानून के न होने की वजह से जो गौ पालक शुद्ध देशी गाय का दूध बेचना चाहते है, वे यह कभी साबित नहीं कर पायेंगे कि उनका दूध A2 श्रेणी का है। क्योंकि यदि कोई व्यक्ति A2 दूध में A1 दूध मिलाकर बेचता है तो यह पूरी तरह से कानूनी है।
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तो होगा यह कि रंग, रूप काठी में गायें देशी नस्ल की ही रहेगी लेकिन उनके दूध की किस्म बदल जायेगी। दूध A2 नहीं रहेगा, बल्कि A1 हो जाएगा। और जब देशी गायों की संख्या काफी घट जायेगी तो वे इस तरह का क़ानून ले आयेंगे कि A1 दूध को A2 दूध बताकर बेचना गैर कानूनी है। तब वे A2 दूध के दोगुने दाम वसूलना शुरू करेंगे !! और उस समय वे A2 दूध के सबसे बड़े सप्लायर होंगे !!
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यदि आज की तारीख में इस तरह का क़ानून छाप दिया जाता है तो जिन लोगो के पास देशी गायें है वे अपने दूध पर A2 दूध की छाप डालकर बेच सकेंगे और देशी गाय को सरंक्षण मिलने लगेगा।
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खंड (द)
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समाधान
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(1) कृषि मंत्रालय को तीन हिस्सों में विभाजित किया जाए :
कृषि मंत्रालय
पशुपालन मंत्रालय
गाय मंत्रालय।
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फिलहाल डेयरी उद्योग, पशुपालन, गाय आदि सभी मवेशी कृषि मंत्री के अधीन आते है। जो कि काफी बड़ा मंत्रालय है। अब से तीन मंत्री होंगे। कृषि मंत्री अलग होगा। पशुपालन मंत्री अलग से होगा। तथा गाय मंत्री अलग से होगा। जर्सी एवं अन्य सभी प्रकार के विदेशी नस्ल के गाय के सदृश नजर आने वाले जानवर मवेशी की श्रेणी में रखे जायेंगे। जबकि गाय मंत्रालय सिर्फ देशी गायों या भारतीय नस्ल की गायों का ही नियमन करेगा।
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(2) डेयरी उद्योगों एवं दूध विक्रेताओ को अपने दूध के डिब्बे या बोतल पर स्पष्ट रूप से यह अंकित करना होगा कि इसमें जो दूध है वह देशी गाय का है या वर्ण संकर प्रजाति का। दूध विक्रेता अपनी गायों की नस्ल की शुद्धता के लिए विभाग से सर्टिफिकेट ले सकेंगे एवं छोटे पशुपालक अपनी गायों की नस्ल की शुद्धता का सेल्फ सर्टिफिकेट जारी कर सकेंगे। गाय मंत्री इन स्व घोषित सर्टिफिकेट को अनुमोदित करेगा।
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(3) यदि कोई विक्रेता अपने दूध पर देशी गाय के दूध का चिन्ह अंकित करता है और उसमे 5% से अधिक मिलावट पायी जाती है तो उस पर आर्थिक दंड या लाइसेंस का रद्दीकरण किया जाएगा। सभी मामलो की सुनवाई नागरिको की ज्यूरी करेगी। दूध के अन्य उत्पादों जैसे पनीर, घी आदि पर भी यही नियम लागू होंगे।
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(4) गाय मंत्री को नौकरी से निकालने का अधिकार मतदाताओ के पास होगा, तथा कोई शिकायत आने पर सुनवाई करने का अधिकार नागरिको की जूरी के पास होगा। ( यह सबसे महत्तवपूर्ण धारा है। इसके बिना कोई भी प्रावधान लागू नहीं हो पायेगा । सिर्फ कागज में ही रहेगा। )
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(5) गाय मंत्री नस्ल परिक्षण आदि के लिए लेब आदि की का आधारभूत ढांचा उपलब्ध करवाएगा एवं गौ शालाओं का नियमन करेगा।
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(6) देशी गायों का पंचायत स्तर पर पंजीकरण किया जाएगा।
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(7) गाय मंत्री देश में विभिन्न स्तरों पर इस तरह के वैज्ञानिक अनुसन्धान एवं शोध करवाएगा जिससे इन तथ्यों की वैज्ञानिक रूप से पुष्टि हो कि भारतीय गाय का दूध किस तरह से एवं किन मायनों में सेहत के लाभदायक है। वह देश में नागरिको में इन तथ्यों के बारे में जानकारी भी फैलाएगा।
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(8) किसी एक राज्य से दूसरे राज्य में गाय को ले जाने पर पाबन्दी हो । ऐसा करने वालों को भी ज्यूरी पाँच वर्षों की सजा दे सकती है।
( भारत के कई राज्यों जैसे केरला, गोवा, आन्ध्र, बंगाल आदि में गौ हत्या पर प्रतिबन्ध नहीं है। तो अन्य राज्यों से गाये इन राज्यों में ले जायी जाती है, और फिर कानूनी रूप से काट दी गाती है। यह क़ानून ठीक से काम करे इसके लिए पुलिस प्रमुख पर राईट टू रिकॉल एवं जूरी सिस्टम होना जरुरी है, वर्ना गायों को इस राज्य से उस राज्य में ले जाने के एवज में पुलिस एवं जज बड़े पैमाने पर हफ्ता वसूली करना शुरू कर देंगे। )
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(9) गाय का चमड़ा बेचने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए। मृत गाय को दफनाया जायेगा या जलाया जायेगा। जूतों आदि पर "हरा गो-हत्या मुक्त लेबल" लगाना, जिसका मतलब होगा कि चमड़ा जिस पशु से आया है, उसकी प्राकृतिक मृत्यु हुई है और उसका मांस खाने के लिए प्रयोग नहीं किया गया था।
( इस "हरा" चमड़े का मूल्य अधिक होगा लेकिन गो-हत्या और जीव-हत्या कम हो जायेगी।)
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(10) गाय-भैंस खरीदने पर सरकार द्वारा कोई सब्सीडी नहीं मिलेगी।
( छूट के कारण गो-हत्या बढ़ रही है, क्योंकि गाय सस्ते दामों पर कसाई को मिल जाती है और मुनाफा अधिक होता है। उस मुनाफे का एक भाग दोषी जज, पुलिस आदि को रिश्वत के रूप में देते है और छूट जाते है। )
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(11) सरकार बूढ़ी गायों को एक निर्धारित कीमत पर खरीदेगी ।
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(12) शुक्राणु-विभाजन की प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिये पूंजी निवेश किया जाए ताकि सांड की पैदावार कम की जा सके, और इस प्रकार सांड की हत्या कम होगी।
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(13) सरकार गौ-शालाएँ चलायेगी जिसके लिये धन बिना दान से आयेगा। किन्तु जो कोई इसके लिए दान देगा उसे टेक्स में कोई छूट नहीं मिलेगी। शहरों में 10,000 से 30,000 आबादी वाले हर बस्ती में कम से कम एक गौशाला जरूर होनी चाहिये। इस तरह शहरों में हर वार्ड में कम से कम 1 या 2 गौशाला अवश्य हो जायेंगी।
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(14) गायो को ढोने के लिए सिर्फ जालीदार वाहनों का ही उपयोग किया जाएगा, ऐसा क़ानून बने। इन वाहनों पर गौ परिवहन यान लिखा रहेगा और सिर्फ इन्ही वाहनों में गायो को ले जाया जा सकेगा।
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ये कुछ सुझाव मोटे तौर पर दिए गए है। इस सम्बन्ध में अन्य ड्राफ्ट देखने के लिए कृपया यह एल्बम देखें - https://www.facebook.com/pawan.jury/media_set…
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काम की बात : यदि उपरोक्त प्रावधान गेजेट में आते है, तो गाय बचेगी वर्ना नहीं बचेगी। इस बात से कोई फर्क नहीं आएगा कि आप किस नेता को वोट कर रहे है। लेकिन एक बात तय है कि, सरकार को जितनी ज्यादा सीटे मिलेगी, सरकार उतनी ही ज्यादा ताकतवर होगी, और सरकार जितनी ज्यादा ताकतवर होगी, गायें भी उतनी तेजी से कटेगी !! और इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि सरकार किसकी है और पीएम कौन है !! तस्दीक के लिए आप पीछे मुड़कर पिछले 10 साल का हिसाब देख सकते है !! 

Sunday, March 24, 2019

सोने की चींटी या कागज के गजराज

*सोने की चींटी या कागज के गजराज' ?*

हर देश में अंतर्देशीय विनिमय के लिए स्थानीय मुद्रा होती है , इसका महत्त्व सिर्फ देश की सीमाओं के भीतर ही होता है. अंतर्राष्ट्रीय विनिमय में इसकी कोई कीमत नही होती.

*भारत की आंतरिक मुद्रा रुपया है. रुपया ,मुद्रा का एक प्रतीक है वास्तविक मुद्रा नही. भौतिक रूप से रुपया सिर्फ एक कागज है.*
*देशो के बीच सभी लेनदेन अन्तराष्ट्रीय मुद्रा में होते है. डॉलर और सोना अन्तराष्ट्रीय मुद्रा है.आर्थिक संकट या युद्ध के दौरान हथियार, अनाज, दवाईयां आदि खरीदने के लिए अन्तराष्ट्रीय मुद्रा ही जीवन रेखा साबित होती है.*
*अभी के समय में डॉलर ही अन्तराष्ट्रीय मुद्रा है.*

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2420167104878368&id=100006553053580

*भारत का डॉलर रिज़र्व 300 बिलियन है , जबकि भारत पर 380 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ है ।भारत में 350 बिलियन डॉलर का पूंजीगत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) है.*
कुल क़र्ज़ : 350+380 = 730 बिलियन डॉलर. MNCs द्वारा जो मुनाफा देश में रूपये के रूप में कमाया जा रहा है उसका डॉलर भी हमें चुकाना है.
स्पष्ट है हम डॉलर के क़र्ज़ में डूब रहे है.
[ उपाय जो हम-आप एवं समस्त भारतीयों द्वारा किये जा सकते हैं, के लिए कृपया धैर्य-पूर्वक पढ़ें. ]*

*लेकिन डॉलर की कीमत भी जब तक है तब तक है, यदि अमेरिका आर्थिक रूप से डूबता है या डॉलर को मेंटेन करने का उसका मेकेनिज्म फेल हो जाता है तो डॉलर भी एक कागज़ का टुकड़ा भर रह जाएगा. आखिर डॉलर भी भौतिक रूप से एक कागज़ ही है, और कुछ नही. मानिए कि आपके बेंक में 1 करोड़ रूपये है, और बेंक डूब जाता है, तो पासबुक का क्या ?*

*मतलब जो मुद्रा कभी भी उड़ सकती है उसमे हम पहले से ही उड़े हुए है.*
*सोना - पिछले 10 हजार वर्षो से सोना सबसे कीमती धातु और मुद्रा रही है. सोना शाश्वत खजाना है, सबसे मूल्यवान द्रव्य ।भौतिक रूप से सोना वास्तविक मुद्रा है.*
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*सोने की लूट और भारत :-*
*प्राचीन काल से ही भारत में विपुल सोना रहा है , सोने की प्रचुरता ने विदेशी आक्रमणकारियो को प्रेरित किया और भारत का सोना लूटा गया. गौरतलब है कि मध्य काल में भारत के नागरिक हथियार विहीन थे इसलिए भारत के राजाओं के हार जाने पर आतताइयो को नगरो में घुसने के लिए किसी बाधा का सामना नही करना पड़ता था , फलस्वरूप 10-20 हज़ार की टुकडियां भी देश के भीतर तक घुस कर बड़े पैमाने पर कत्ले आम और सोने की लूटपाट कर पाती थी .*

*नागरिको द्वारा जो सोने का दान मंदिरों को दिया जाता था उसके संग्रह की प्रवृति मध्य काल में बढ़ने लगी , फलस्वरूप हमारे मंदिर सोने के विशाल भंडारों में तब्दील हो गए. धार्मिक मठो तथा मंदिरों के पुजारियो ,महन्तो में विरासत प्रथा के कारण समाज कल्याण के खर्चो में गिरावट आयी और स्वर्ण संग्रह को बढ़ावा मिला.*

*मध्य काल में भारत के कई मंदिर लूटे गए, जिसमे महमूद ग़जनी द्वारा सोमनाथ के स्वर्ण भंडारों की लूट एतिहासिक रूप से विख्यात है.*
*आधुनिक काल में फ्रांस और पुर्तगाल के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत के सोने को लूटा. ये लूट आज भी बदस्तूर जारी है.*
*किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का आधार देश के स्वर्ण भंडार होते है और आर्थिक बदहाली या आपत्तिकाल में सिर्फ सोना ही राष्ट्र को बचाता है.*

*ग़जनी के आधुनिक वंशज :*
*सारा कुछ लुट गया ,जरा सा रहता है... कभी भारत सोने की चिड़िया कहाता था पर अब चींटी भी नही बचा है. उतने पर भी ग़जनी के वंशज इसे लूटने में लगे है. ग़जनी के पास लूटने के लिए सेना थी पर तब नागरिको के पास हथियार नही थे.आज उसके वंशज क़ानून बना कर बाकायदा सोना लूट रहे है पर नागरिको के पास राईट टू रिकाल नही है.*
पिछले दो दशक से राजनेता विदेशी सत्ताओ से घूस लेकर ऐसे क़ानून पास कर रहे है जिस से देश के स्वर्ण भंडारों की क्षति हो रही है.*

*- UPA ने सोने पर 4% कस्टम ड्यूटी लगाई, इसे बढ़ा कर 6%, फिर 10% किया । आज कस्टम ड्यूटी 12% है.*
*परिणाम - विदेश से सोना खरीदकर लाने वाले भारतीय हतोत्साहित हुए और भारत में सोना आना कम हो गया.*

*- UPA ने सोने पर 1% संपत्ति कर लागू किया इस से नागरिको ने सोने में निवेश करना बंद कर दिया.*

- *सरकार ने सोने के बदले गोल्ड बांड जारी किये, गोल्ड बांड को कर मुक्त रखा गया. इस तरह नागरिको का काफी सोना सरकार ने खींच लिया और बदले में बांड थमा दिए.*

- *बैंक सस्ती ब्याज दर पे गोल्ड लोन देने लगे. कई लोग सोना वापिस छुड़ा नही पाते और सोना बेंक में खिंच जाता है.*

- *पेड मिडिया और पेड इकोनोमिस्ट और मंत्रियो ने 'सोना एक बुरा निवेश है' के ऐलान दिए और नागरिको को सोना खरीदने से हतोत्साहित किया.*
*मंदिरों का सोना खींचने के लिए सरकार ने दक्षिण भारत के कई मंदिरों के ट्रस्टो को अपने नियंत्रण में ले लिया है ताकि सदियों से संचित निधियो को लूटा जा स2012 में चिदम्बरम ने सिद्धि विनायक, पद्मनाभन और तिरुपति आदि मंदिरों को नोटिस भेज कर खजाने के स्वर्ण भण्डारो की जानकारी मांगी.*

- *पद्मनाभन मंदिर के ट्रस्ट को हाईकोर्ट ने अप्रेल 2014 में अपने नियंत्रण में ले लिया और ट्रस्ट को शेषन जज के अधिनस्थ कर दिया.*

- *खजाने के मूल्यांकन और निपटारे के लिए पूर्व न्यायाधीश गोपाल सुब्रमनियम को नियुक्त किया.*
*चूंकि हमारी सुप्रीम और हाई कोर्ट MNCs और मिशनरीज़ लोबी के प्रभाव में है इसलिए ये सभी खजाने अब कोर्ट के माध्यम से लूटे जाने वाले है.*

- *पिछले सप्ताह नरेन्द्र मोदी के आदेश पर IMF एजेंट रघुराम ग़जनी ने तिरुपति मंदिर से 1800 किलो सोना लूटा और बदले में मंदिर को गोल्ड बांड थमाए.*

*पिछले तीन वर्ष से आइएमऍफ़, वर्ल्ड बेंक , मिशनरीज़, MNCs की नज़र हमारे मंदिरों के खजाने पर टिकी हुयी है, ये लोबी नेताओं को धमका कर और घूस देकर ये लूट कर रही है*

यदि नमो को सोना चाहिए तो ओपन मार्केट से खरीद सकते थे, सदियों से संचित नागरिको के दान को उन्होंने क्यों लूटा ?
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*- नमो की नियत साफ़ है तो इस विषय को मिडिया कवरेज की अनुमति क्यों नही दी ?*
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*इन आभूषणो को गला कर ईंटो में क्यों तब्दील किया जा रहा है ?*

- आरएसएस, विहिप और अन्य भगवा ब्रिगेड इस विषय पर चुप क्यों है ?*

- क्या नमो को बहुमत मंदिरों का सोना लूटने के लिए दिया गया है ?

*विश्व में ये इतिहास रहा है कि गोल्ड बांड सिर्फ बांड ही साबित हुए है उनसे गोल्ड कभी वापिस नही मिला.*

*सभी पार्टिया मंदिरों का सोना लूट लिए जाने के पक्ष में है, कोई विरोध नही कर रहा.*

*जो सोना मुग़ल और अंग्रेज नही लूट पाए उसे अब हमारे 'हिंदूवादी' नेता लूट रहे है.*

जब मेवाड़ के राणा प्रताप को मुगलों से लड़ने के लिए सेना बनाने की आवश्यकता थी तब भामाशाह ने उन्हें सोना दान किया था, उसी सोने से प्रताप अपनी सेना खड़ी कर पाए. यदि भामाशाह के पास अकबर के दिए हुए बांड होते तो भामाशाह राणा की मदद नही कर पाते.

जैसी कि संभावना है, यदि भारत डॉलर के क़र्ज़ में गले गले डूब जाता है और दिवालिया हो जाता है तो देश में मौजूद यह सोना ही हमें बचाने वाला है. यदि हमारे पास सोना नही रहा तो हमारी राष्ट्रीय सम्पत्तिया और खनिज बिक जायेंगे.

मान लीजिये की अमेरिका, चीन या पाकिस्तान की सेनाये शहरो के भीतर तक घुस आती है और आपको घर छोड़ कर जंगलो में भागना पड़ता है तो अपने साथ आप सोने के अलावा क्या संपत्ति ढो कर ले जा पायेंगे ?

ऐसे आपात काल में सिर्फ दो ही वस्तुए रक्षा करती है , सोना और हथियार.
सरकार ने नागरिको को हथियार रखने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है, और नित नए क़ानून बना कर नागरिको से सोना खींच रही है और मंदिरों के खजाने लूट रही है.

*चिंता न करें मित्रों,
हमारे समूह ने उपरोक्त सभी समस्याओं का समाधान http://www.righttorecall.info/301.pdf में सुझाया है, आप भी पढ़ें और फॉलो करें. अर्थात सुझाए गए क़ानून-ड्राफ्ट को गजेट में प्रकाशित कर क़ानून का रूप देकर प्रस्ताव लागू करने का दबाव डालें, ये भी याद रखें कि बिना लड़ाई लड़े, कभी विजय नहीं मिलती. आप भी लडें और अपने साथियों तथा अन्य सभी भारतीयों को करने को प्रेरित करें, ये लड़ाई, हमको, आपको सबको मिलकर लड़ना होगा.*

: उपाय-

- *पीएम, वित्त मंत्री और RBI गवर्नर को प्रजा अधीन किया जाए ताकि ऐसी हरकत करने पर जनता इन्हें नौकरी से निकाल सके.*

- सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट एवं शेषन जज को प्रजा अधीन किया जाए ताकि न्यायपालिका प्रजा के प्रति जवाबदेह रहे.*

- *प्रजा अधीन राजा समूह द्वारा प्रस्तावित राष्ट्रीय हिन्दू देवालय प्रबंधन तथा राज्य हिन्दू देवालय प्रबंधन कमेटी क़ानून ड्राफ्ट को गेजेट में छापा जाए, ताकि मंदिरों का प्रबंधन तथा खजाना जनता के नियंत्रण में रहे.*

- *सोने पर लगायी गयी कस्टम ड्यूटी समाप्त की जाए.*

- सोने पर लगाए गए सम्पति कर को समाप्त किया जाए , जमीन पर संपत्ति कर लागू किया जाए.

- *दूरदर्शन चेयरमेन को प्रजा अधीन किया जाए, ताकि ऐसी खबरे दबाने वाले को जनता नौकरी से निकाल सके.*

- हथियार बंद नागरिक समाज की रचना की जाए ताकि युद्ध की स्थिति में नागरिक देश के आंतरिक हिस्सों की रक्षा आतताइयो से कर सके.*

- *विदेशी मुद्रा भण्डार डॉलर की जगह क्रूड ऑयल में रखा जाए.*

*इन सभी कानूूनों के ड्राफ्ट मुफ्त में पढ़ें और सरकार , मंत्रियों , सांसदों , अधिकारियों को ऊपर के कानूनों को गजेट में छापकर प्रकाशित करने को प्रेरित करें* -
http://www.righttorecall.info/301.pdf for English
http://www.righttorecall.info/301.h.pdf हिंदी में*

*प्रजा अधीन राजा समूह*

जय हिंद

Monday, March 11, 2019

कौन बड़ा दोषी? एक नजरिया ये भी

इंदिरा गांधी ने बंगलादेश जैसे ही अलग करवाया तब अमेरिका की आंखें बड़ी हो गईं, एक क्षेत्र में इंदिरा महाशक्ति न बन जाये इस हेतु गैर कांग्रेस सरकार बनाने के मंसूबे पाले हुए था ब्रिटिश अमेरिका नेक्सस।
इसके लिए फोर्ड फाउंडेशन से जेपी को खड़ा किया।
इंदिरा नही झुकी।
निक्सन ने बहुत गालियां दीं।
फिर जनरल नियाज़ी से खालिस्तान को समर्थन दिलवाया उसमे अंततः इंदिरा ने विजय पाई। यह और बात है कि इसमें ब्रिटिश अपने ही जाल में फंस गए थे।
फिर कांग्रेस को इंदिरा की मृत्यु से अभूतपूर्व लाभ हुआ।
तब जाकर इन्होंने बीजेपी को पकड़ा जो 1986 तक हाशिये पर थी, इनको मुद्दा दिलवाया।
जबकि 1980 से 1986 तक भाजपा हिन्दुत्व से दूर समाजवाद पर केंद्रित थी और इनके पोस्टर बॉय गांधी और लोहिया थे।
मजे मक बात यह है कि इन 6 वर्षों में संघ द्वारा टूटकर कमजोर हो चुके जनसंघ को उबारने का कोई प्रयास नही किया गया ।
अमेरिकी ब्रिटिश नेक्सस का यह हाल था कि वह परेशान थे कि जो उंन्होने सोचा वैसा नही हो रहा था। उंन्होने सोचा था कि बाहर बैठकर आराम से सरकार चलाएंगे परन्तु कांग्रेस के उस समय के नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने ब्रिटिशर्स अमेरिकन्स को धूल चटाई।
आज की तरह तब भी दबाव होते थे विदेशी नीतियों पर कार्य करने के परन्तु कांग्रेस उन्हें दबा देती थी, टाल देती थी, लटका देती थी... जैसे जय राम रमेश ने बीटी-बैंगन लटकाया भाजपा द्वारा प्रचंड विरोध प्रदर्शन किए जाने का हवाला देकर, कि जनता विरोध कर रही है, सरकार गिर जाएगी।
एक ऐसी ही लटकाने वाला प्रोजेक्ट टिहरी dam था जो ब्रिटिश दबाव में 1957 में पारित हुआ परन्तु कॉंग्रेस ने 40 साल लगवा दिए उसे कागजों में ही घुमाने में, कहीं मुआवजा, कहीं अधिग्रहण आदि का बहाना लगाकर... पर जब वाजपेयी सरकार आई तो 4 साल में ही उसे पूरा करवा कर पहली सुरंग का उद्घाटन किया था वाजपेयी ने 2001 में, संसद हमले से कोई 3-4 दिन पहले।
तो हिन्दुओ को किससे लाभ...भाजपा से या कांग्रेस से?
खैर अब अमेरिकी नेक्सस ने यह योजना बनाई कि एक गैर कांग्रेसी दल को मजबूत किया जाए जो यदा कदा सरकार बनाकर आकर हमारी योजनाएं फलीभूत कर दिया करे ।
अब यही हुआ
फिर
आरक्षण मुद्दे पर वीपी सिंह को समर्थन देकर उसी समय यह सारे कार्य किये गये, जो आज विष वृक्ष वन हुए हैं, बाद में ऐसे ही बहुत से कार्य देवेगौड़ा और गुजराल सरकार में भी हुए।
राम मंदिर विषय पर ब्रिटिश खुफिया एजेंसी ने पूरा समर्थन दिया जिससे उधर मुलायम और इधर बीजेपी को मजबूती मिली। मुलायम भी इसमें पूरा लिप्त है।
कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान यूपी बिहार में ही हुआ है।
वैश्विक घटनाक्रमो पर गंभीरता से नज़र डालें तो 1975-1980 के बीच बहुत बड़े घटनाकर्मो के षड्यंत्र रचे गए।
2004 से 2014 के मनमोहन सिंह को देखें तो उसने अमेरिकन्स को हर मामले में पटखनी दी, परन्तु हमने भी उसे समझने मे भूल की और बेहिसाब गालियां दी हैं।
यदि भक्तों के वैशाखनन्दन पीएम न बनते तो हमे सोने और पीतल की परख नही हो सकती थी, यह भी बढिया रहा कि छद्म हिन्दू दल की सरकार बनी, मोदी पीएम बना और दोगलेपन की पराकाष्ठाएं जो पर हुईं वह आंखे खोलने वाली सिद्ध हुईं।
अब मनमोहन ने जो इंटरनेशनल माफियाओं के षड्यंत्रों की गति नियंत्रित की उसको मोदी वैशाखनन्दन नाइट्रोजन गैस लगाकर दौड़ा रहे हैं।
10 साल के gap को भरना भी है, Digitalisation की गुलामी सबसे बड़ा विषय है। 2019 के बाद अध्यादेश लगाकर आधार कार्ड लागू किया जाएगा।
खेल बहुत गहरा है थोड़े से शब्दों में समझाना संभव नही है ।
भाजपा को मुद्दे दिए गए, पैदा करवाये गए, उन्ही की राजनीति आज की जा रही है... मुलायम, लालू और माया भी उसी माली के पौधे हैं जिसका वृक्ष भाजपा है।

Saturday, September 15, 2018

150000 cows to be killed

http://indianexpress.com/article/world/new-zealand-to-kill-150000-cows-to-end-bacterial-disease-5194312/

VEDIC HUMPED COW IS NEVER INFECTED WITH SUCH DISEASES LIKE MYCOPLASMA BOVIS ,MAD COW DISEASE OR MIDDLE EAR INFECTIONS ..

ONLY HUMPLESS WESTERN COWS ARE INFECTED... THESE COWS ARE WORSE THAN PIGS..

DESH DROHI VEGGHESE KURIAN SWITCHED OUR PRICELESS HUMPED COW WITH USELESS HUMPLESS COWS..

ROTHSCHLDs APCO BRANDED PM MODI KEEPS PRAISING DESH DROHI VERGHESE KURIAN JUST BECAUSE HE WORKED FOR GUJARATI MILK UNITS..LIKE AMUL AND GUJARAT MILK MARKETING FEDERATION...

THE REPUTATION OF GUJARAT AND GUJARATIS IS MORE IMPORTANT FOR GUJJU NO 2 MODI THAN INDIANS AND BHARATMATA AS A WHOLE..

VEDIC HUMPED COWS GIVE US NUTRITIOUS A2 MILK AND PRICELESS URINE AND DUNG..

HUMPLESS JERSEY/ HOLSTEN COWS GIVE TOXIC A1 MILK AND TOXIC URINE/ DUNG...

LIKE HOW UK CULLED ALL THEIR COWS AFTER FOOT AND MOUTH DISEASE AND MAD COW DISEASE , NATIONS AFFECTED WITH EVEN ONE SINGLE COW HAVING MYCOPLASMA BOVIS DISEASE WILL HAVE TO CULL THE ENTIRE POPULATION OF HUMPLESS COWS..

Following depopulation, farms are disinfected and will lie fallow for 60 days after which they can be restocked.

In India thanks to DESH DROHI ( father of white revolution ) we get only toxic A1 milk of humpless cows..

It is a WHITE LIE that milk of Mycoplasma bovis affected cows do NOT infect humans and presents no food safety risk. That there is no concern about eating meat, milk and milk product..

THEY PROPAGATED THE SAME LIE IN UK AND USA.. BOTH MARGARET THATCHER AND RONALD REAGAN DIED OF BRAIN DISEASE..

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/04/margaret-thatcher-henchwoman-or-heroine.html

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/12/shocking-legacy-of-mad-cow-disease-capt.html

How does it affect cows:--
untreatable mastitis in dairy and beef cows..
severe pneumonia in up to 32% of infected calves, starting as a hacking cough..
ear infections in calves, the first sign typically being one droopy ear, progressing to ear discharges and in some cases a head tilt..
abortions..
swollen joints and lameness (severe arthritis/synovitis) in all ages of cattle..

Mycoplasma bovis is anaerobic in nature ( died in oxygen ) does not contain any cell wall, and is therefore resistant to penicillin and other beta lactam antibiotics which target cell wall synthesis.

THIS BLOGSITE HAS SEND MESSAGES TO PM MODI , PMO , HEALTH MINISTER ABOUT WORSE THAN PIGS HUMPLESS COWS--MORE THAN 200 TIMES .. THEY HAVE ALL BEEN IGNORED...

THERE SHALL BE PEOPLES RETRIBUTION...THIS WILL GO AGAINST THEM...

http://ajitvadakayil.blogspot.in/2013/07/nutritious-a1-milk-of-vedic-cows-with.html

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...