Saturday, July 6, 2013

इशरत जहा - कुछ तथ्य

अगर मोदी के पास गृहमंत्रालय का चार्ज होने से उन्हें एनकाउंटर के लिए ये दोगले कांग्रेसी, मीडिया वाले और तथाकथित मानवाधिकारवादी दोषी सिद्ध करने पर तूल गये तो फिर कोयला मंत्रालय का चार्ज प्रधानमंत्री के पास होते हुए १० लाख करोड़ का घोटाले में प्रधानमंत्री दोषी क्यों नही है ??

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बिहार के एक १८ साल के हिन्दू लडके राहुल राज का मुंबई पुलिस ने इस खबर पर कैमरों के सामने एकाउंटर कर दिया था कि वो राज ठाकरे की हत्या करने मुंबई आया है ...

क्या नितीश कुमार ने कभी राहुल राज को अपना बेटा बोला ?? कुछ कुछ उछलने के बाद नितीश कुमार ही नही बल्कि पूरी की पूरी जेडीयू ने कभी इस मुद्दे को नही उठाया ..

बिहार के लोगो जागो .. और इस दोगली जेडीयू को इसके विस्वासघात की कठोर सजा दो

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" प्रज्ञा ठाकुर " के विरुद्ध जांच में एक भी आरोप अभी तक सिद्ध नहीं हुआ .., फिर भी वह " भगवां आतंकवाद " की दोषी दिखा कर , बिना किसी चार्जशीट के जेल में बंद हैं ! ... क्या मानव अधिकार वाले अथवा मुस्लिम समुदाय या फिर कोर्ट , इशरत जहाँ के अलावा इस प्रकरण पर भी ध्यान देंगे .??.,

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शमीमा जावेद को इत्र का व्यापारी बताती हैं. हलफनामा ये भी कहता है कि शमीमा कौसर को अपनी बेटी इशरत के कॉलेज जाने और ट्यूशन कराने जैसी एक-एक बात याद है, लेकिन उन्हें ये याद नहीं कि आखिर अगर इशरत सेल्स गर्ल के तौर पर जावेद के लिए काम करती थी, तो उसका ऑफिस कहां था. साथ में हलफनामे में सवाल ये भी खड़ा किया गया कि आखिर इत्र और साबुन का वो कैसा कारोबार था, जिसे लेकर जावेद इशरत को कई बार मुंबई से बाहर, देश के दूसरे हिस्सों और शहरों में लेकर गया था, वो भी कई-कई दिनों के लिए.

इशरत और जावेद को लश्कर का आतंकी ठहराने के बाद ये हलफनामा बड़े विस्तार से जीशान जौहर और अमजद अली के पाकिस्तानी होने और उनके लश्कर से संबंधित होने का ब्यौरा मुहैया कराता है. यही नहीं, हलफनामे में इस बात का भी जिक्र है कि किस तरह से मुठभेड़ के एक महीने बाद लश्कर के मुखपत्र माने जाने वाले गजवा टाइम्स ने इशरत और उसके साथ मारे गये लोगों को मुजाहिदीन करार देते हुए इशरत के शव को बिना पर्दा जमीन पर लिटाये जाने पर एतराज जताया था.

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आईबी निदेशक आसिफ इब्राहिम ने केंद्र सरकार को कड़ा पत्र लिखा .. कहा आतकंवादीयो पर राजनीती नही होनी चाहिए और यदि आईबी के अधिकारियो का मनोबल तोड़ा गया तो फिर देश में आतंकी घटनाये बढ़ेगी क्योकि आईबी का कोई भी अधिकारी किसी राज्य या केंद्र को इनपुट देने से डरेगा

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मुद्दा बड़ा इशरत जहाँ का नहीं है बल्कि चिंताजनक बात है की देश की ख़ुफ़िया एजेंसी आईबी को इस मसले पर घसीटना तथा आईबी अफसर राजेन्द्र जी का नाम आरोप पत्र में डालना ......

..इस घटना से आईबी की छवि को विश्व स्तर पर धूमिल किया जाना इस देश के लिए घातक न सिद्ध हो ...

एक तरफ जहाँ चीन अपनी ख़ुफ़िया एजेंसियों से साइबर अटेक करने के बाद भी उसका बचाव करता है , अमेरिका अपनी ख़ुफ़िया एजेंसियों से लोगों के फोन टेप,ईमेल चेक करवा रहा है वहीँ दूसरी तरफ भारत में आईबी को कटघरे में खड़े करने की कोशिश आई बी के हाथ कमजोर करेगी ..........


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नितीश कुमार ...आप की याद्स्त कमजोर हो गई
है ...?
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इशरत जन्हा ही नहीं बिहार की बेटी थी ..बल्कि ..?
* मुम्बई में सहीद स्मारक को इज्जत देने वाले मुल्ले
भी बिहार के ही बेटे थे ..?
* दिल्ली गैंग रेप में शामिल मुल्ला भी बिहार
का बेटा था .....?
* मुम्बई बम कांड में शामिल अफरोज अह्म्द्द
भी बिहार का ही बेटा था ..?
......................
इन लोगो को कब महिमामंडित करेंगे : आप और आपके
मुल्ले सांसद

आतंकियों के साथ एक गांव में हथियार खरीदने भी गई थी इशरत

आतंकियों के साथ एक गांव में हथियार खरीदने भी गई थी इशरत


गांव इब्राहिमपुरा, जगनपुरा, फैजाबाद (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले वाशी ने मजिस्ट्रेट के सामने धारा 164 के तहत दिए बयान में बताया था कि इशरत जावेद और पाकिस्तानी सलीम उर्फ अमजद अली राणा के साथ हथियार हासिल करने लखनऊ और इब्राहिमपुरा गांव आई थी।

बयान से यह भी कहा गया कि इशरत को कश्मीर में मुठभेड़ के दौरान सलीम के कंधे में लगी चोट के बारे में पता था। जब गांव के एक डॉक्टर ने सलीम का इलाज किया था तब इशरत और जावेद भी वहां मौजूद थे।

हेडली के बयानों का भी हवाला:

इशरत के आतंकी रिकॉर्ड के बारे में आईबी ने अमेरिका में पकड़े गए आतंकी डेविड हेडली के बयानों का भी हवाला दिया है। हेडली ने एफबीआई और एनआईए को बताया था कि पाक आतंकी जकीउर रहमान लखवी ने मुजम्मिल से मिलवाते हुए उसे इशरत जहां के बारे में बताया था। बकौल हेडली, जकी ने हेडली को यह भी बताया था कि इशरत मुजम्मिल द्वारा भर्ती सुसाइड बॉम्बर थी। जो एक हमले के दौरान हिंदुस्तानी पुलिस के हाथों मारी गई। आईबी ने अपने नोट में यह भी कहा है कि गुजरात में 15 जून 2009 को क्राइम ब्रांच के हाथों मुठभेड़ में मारे गए चारों लोगों के बारे में उसे मीडिया से ही जानकारी मिली थी। आईबी ने यह भी कहा है कि नोट में दिए गए इंटेलीजेंस इनपुट के अलावा मारे गए चारों लोगों की राष्ट्रीयता के बारे में भी आईबी के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है।

नोट में आईबी ने कहा है कि गुजरात राज्य आईबी को जानकारी मिली थी कि दो पाकिस्तानी आतंकी, जो पंजाबी लहजे में बात करते हैं, नाम बदल-बदलकर गुजरात में घूम रहे हैं। उनके साथ पुणे का एक व्यक्ति कोआर्डिनेट कर रहा है। यह जानकारी एसआईबी के जॉइंट डायरेक्टर ने मौखिक रूप से अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर को दी थी।


तालिबान का काँग्रेस सरकार को संदेश

अल् जजिरा न्यूज से खबर ....तालिबान -" ये हिन्दुस्थान आ रहे है हम , बचा सकता है तो बचा ले खुद को " ....तालिबान का काँग्रेस सरकार को संदेश...भाजपा" शिवसेना"अकाली"बजरंगदल " VHP को धमकी ... अब काँग्रेस क्या करेगी ?

Friday, July 5, 2013

आतंकवाद पर आत्मघाती रवैया

आतंकवाद पर आत्मघाती रवैया

जब इशरत जहां पुलिस गोलीकांड मामले में आरोपपत्र दाखिल होने के पूर्व से ही तूफान खड़ा किया जा रहा था तो फिर आरोपपत्र आने के बाद उसे बवंडर में परिणत करने की कोशिश बिल्कुल स्वाभाविक है। हालांकि जिस तरह खुफिया ब्यूरो के अधिकारी से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह आदि के नाम आने से लेकर उनके भविष्य तक का आकलन पहले ही कर दिया गया था वैसा कुछ हुआ नहीं। हां, कुछ लोगों के लिए संतोष का विषय यह है कि आरोपपत्र में सीबीआइ ने जांच जारी रखने की बात कही है। दुर्भाग्य से इस आरोपपत्र की गलत व्याख्या भी की जा रही है। ऐसा माहौल बनाया जा रहा है मानो सीबीआइ ने अपनी जांच में इशरत जहां सहित मारे गए चारों को बिल्कुल निर्दोष साबित कर दिया है। इशरत जहां मामले के दो पहलू हैं। एक यह कि वह और उसके साथियों ने वाकई पुलिस के साथ भिड़ंत की या उन्हें पकड़ने के बाद मारा गया? दो, क्या वे चारों निर्दोष थे या आतंकवाद या अपराध से उनका रिश्ता था? आरोपपत्र में केवल यह कहा गया है कि 15 जून 2004 को अहमदाबाद के नरोदा इलाके में मारी गई इशरत एवं उनके तीन साथियों ने पुलिस से मुठभेड़ नहीं की थी, वे पहले से पुलिस के कब्जे में थे, जिन्हें मारकर मुठभेड़ की झूठी कथा में परिणत कर दिया गया। नि:संदेह इस मामले में पहले आई रिपोटरें से भी पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में आती हैं। मसलन, 9 सितंबर 2009 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट न्यायमूर्ति एसपी तमांग की जांच रिपोर्ट। इसमें भी उनके पास हथियार रखने की बात थी। इसमें कहा गया था कि उप महानिरीक्षक डीजी बंजारा एवं पुलिस आयुक्त केआर कौशिक ने इशरत जहां, जावेद गुलाम शेख उर्फ प्राणेश पिल्लई, अमजद अली उर्फ राजकुमार राणा और जीशान अली को महाराष्ट्र में ठाणे व अन्य जगहों से उठाया और 14 जून की रात्रि में 10-12 बजे के बीच गोली मार दी, लेकिन तमांग की रिपोर्ट व्यापक जांच के बजाय पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मृत्यु के कारण संबंधी रिपोर्ट, फोरेंसिक निष्कर्ष एवं सबडिविजनल मजिस्ट्रेट की प्राथमिक छानबीन पर आधारित थी।

सीबीआइ आरोपपत्र से उनके आतंकवादी न होने का प्रमाण नहीं मिलता। सीबीआइ आरोपपत्र के अनुसार उसने इस पहलू की जांच की ही नहीं। क्यों नहीं की? तो जवाब है कि उच्च न्यायालय ने ऐसा करने को नहीं कहा। खैर, पुलिस ने दावा किया था कि वे चारों मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से आए थे और लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी थे। इसके भी दो पहलू हैं। एक यह कि उनके आतंकवादी होने की सूचना कहां से आई थी? यह साफ है कि केंद्रीय खुफिया ब्यूरो ने पहले इसकी छानबीन की, फिर गुजरात एवं यहां तक कि महाराष्ट्र पुलिस को भी इसकी जानकारी दी। यानी यह गुजरात पुलिस की अपनी सूचना पर कार्रवाई नहीं थी। सीबीआइ कह रही है कि खुफिया ब्यूरो ने पहले अमजद अली उर्फ राजकुमार राणा और जीशान अली को गिरफ्तार किया, फिर इशरत और उसके साथी जावेद गुलाम शेख उर्फ प्राणेश पिल्लई को गिरफ्तार किया गया था। इन चारों को आइबी ने दो तीन हफ्ते तक अपनी हिरासत में रखा, फिर गुजरात पुलिस को सौंप दिया।

प्रश्न है कि अगर खुफिया ब्यूरो कोई सूचना देता है तो जिम्मेदारी उसकी होगी या राच्य की? अगर राच्य की पुलिस को केंद्रीय खुफिया ब्यूरो के तत्कालीन संयुक्त निदेशक राजेंद्र कुमार ने सूचना दी तो जिम्मेदारी उनकी है और वे अकेले तो इस ऑपरेशन में संलग्न थे नहीं। इसमें वहां के मुख्यमंत्री कैसे षड्यंत्र में शामिल हो सकते हैं। अब आएं उनके आतंकवादी होने और न होने के आरोप पर। आइबी द्वारा सीबीआइ को लिखे पत्र के अनुसार सितंबर 2009 में अमेरिका में पकड़े गए पाकिस्तान मूल के लश्कर-ए-तैयबा आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने एफबीआइ के सामने अपने कुबूलनामे में लिखा है कि इशरत जहां और उसके साथी लश्कर से जुड़े थे और वह स्वयं एक फिदायीन थी। जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनके अनुसार केंद्रीय खुफिया ब्यूरो के अधिकारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी मुजम्मिल का फोन ट्रेस कर रहे थे। इस दौरान सुराग मिला कि जीशान जौहर नामक आतंकवादी 26 अप्रैल 2004 को अहमदाबाद आया है एवं छद्म पहचान के साथ गोता हाउसिंग बोर्ड में रुका है। इसी दौरान दूसरी सूचना 27 मई को अमजद अली राणा के कालूपुल-अहमदाबाद रेलवे स्टेशन के सामने स्थित होटल में ठहरने की जानकारी मिली।

सीबीआइ का कहना है कि पुलिस ने राणा को उठा लिया। तत्पश्चात चारों को 15 जून 2004 को पूर्वी अहमदाबाद में मार गिराया गया। यह मान लिया जाए कि उन्हें उठाकर मारा गया तब भी उनके आतंकवादी होने का संदेह पुख्ता अवश्य होता है। अमेरिका गए राष्ट्रीय जांच एजेंसी एवं कानून मंत्रालय के चार सदस्यीय दल ने वहां क्या जानकारी प्राप्त की उसे देश के सामने लाया जाए। 6 अगस्त 2009 को अपने पहले हलफनामे में गृह मंत्रालय ने इशरत और उसके साथियों को लश्कर आतंकी बताते हुए मुठभेड़ की सीबीआइ जांच का विरोध किया था। दो महीने के भीतर ही हलफनामा बदल दिया गया था। क्यों? जाहिर है, फर्जी मुठभेड़ के आरोप की आड़ में हमें उतावलेपन और केवल मोदी विरोध की भावना में आतंकवादी या संदेहास्पद गतिविधियों वाले पहलू को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। फर्जी मुठभेड़ बिल्कुल अनुचित है, परंतु यह देश की सुरक्षा का मामला है। आतंकवादी रडार में शीर्ष पर होने वाले देश के लिए ऐसा रवैया आत्मघाती होगा। अगर हम आतंकवादियों की खुफिया जानकारी और परवर्ती कार्रवाई में लगी आइबी, पुलिस या सरकारों को ही कठघरे में खड़ा करेंगे तो इससे आतंकवादियों और देश विरोधियों का ही हौसला बढ़ेगा।

Thursday, July 4, 2013

दुनिया का पर्दाफाश करने वाली सीबीआई का पर्दाफाश....

दुनिया का पर्दाफाश करने वाली सीबीआई का पर्दाफाश....

कितना सच कितना झूंठ?

मेरे चंद साधारण सवालों के उत्तर दे सीबीआई

1. नकली नोटों के कारोबार में शामिल जावेद शेख का पुराना अपराधिक इतिहास क्यूँ ओपन नहीं किया गया? वह किस तरह इशरत जहाँ का दोस्त बना इसका खुलासा क्यूँ नहीं किया गया?

2. पाकिस्तानी नागरिक अमज़द अली राणा के प्रमाणिक दस्तावेज क्यूँ नहीं कोर्ट में पेश किये गये? जबकि सीबीआई उन्हें हाँसिल कर चुकी है, उसकी पहचान क्यूँ अभी तक रहस्यमई बनी हुई है?

3. पाकिस्तानी नागरिक जीशान जौहर जिसको की एनकाउंटर से पहले सीबीआई के मुताबिक उसने गुजरात पुलिस को सौंपा था, उसके और अहमद के शवों पर किसी ने दावा क्यूँ नहीं किया? क्या उनकी पहचान कराना उचित नहीं था? जब मुठभेड़ में शामिल तीनो अपराधी थे और उनमे से भी दो का कोई दावेदार नहीं सामने आया तो कहानी साधारण आदमी भी समझ सकता है, ऐसे में जनता को क्यूँ गुमराह किया जा रहा है?

4. 11 जून 2004 को जावेद के साथ इशरत नासिक गई थी, अगले दो दिनों तक नासिक से ही उसने अपनी माँ से फ़ोन से संपर्क किया, इसलिए इसका कारण क्या है की जिसको महारास्ट्र में होना चाहिए था, वह गुजरात कैसे पहुँच गई?

ये चार अहम् सवाल है जो सीबीआई की पूरी जाँच का विषय ही बदल देते हैं, मतलब पूरी जाँच प्रभावित की गई है?

देश और जनता को सच जानने का हक है या नहीं? अगर है तो इन चार महत्वपूर्ण सवालों के जवाब आज मेरे माध्यम से जनता जानना चाहती है, जवाब दो सीबीआई ...

हिन्दू धर्म राजनीति

Wednesday, July 3, 2013

पेप्सी में मिले खतरनाक स्‍तर तक कैंसरकारी तत्व

पेप्सी में मिले खतरनाक स्‍तर तक कैंसरकारी तत्व

पर्यावरण संबंधी समूह सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल हेल्थ ने एक जांच में पेप्सी के उत्पादों में कैंसरकारी तत्व पाया है. समूह ने बुधवार को कहा कि पेप्सी में इस्तेमाल किए गए कैरामेल कलरिंग में अब भी एक कैंसरकारी तत्व चिंताजनक स्तर पर मौजूद है, भले ही कंपनी ने कहा है कि वह अपना फॉर्मूला बदलेगी.
मार्च में पेप्सीको और कोका कोला दोनों ही कंपनियों ने कहा था कि वे राष्ट्रीय स्तर पर अपने-अपने फॉर्मूले में बदलाव करेगी. कंपनियों ने यह बयान कैलिफोर्निया सरकार द्वारा एक कानून पारित करने के बाद दिया था.

कैलिफोर्निया की सरकार ने कानून पारित कर यह अनिवार्य किया है कि पेय पदार्थ में एक निश्चित स्तर तक ही कैंसरकारी तत्व मौजूद रह सकते हैं और साथ ही कंपनियों को कैंसर की चेतावनी वाला एक लेबल लगाना होगा. समूह ने पाया कि जहां कोक के उत्पादों में टेस्ट पाजिटिव नहीं थी, वहीं कैलिफोर्निया से बाहर बेचे गए पेप्सी के उत्पादों में ये तत्व अब भी मौजूद हैं.



और भी... http://aajtak.intoday.in/story/pepsi-still-contains-worrying-levels-of-carcinogen-group-1-735003.html

आजकल लापता है

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...