संघ प्रमुख मोहन जी भागवत को लेकर असीमानंद जी का विवादास्पद इंटरव्यू (?) छापने वाली पत्रिका कारवां के संपादक विनोद के जोस (वास्तविक नाम विनोद खिजाक्केपराम्बिल जोसेफ) बस्तर के जंगलों में माओवादियों के साथ |
यही है असलियत इन महाशय की |इतना ही नहीं तो श्री विनोद खिजाक्केपराम्बिल जोसेफ उर्फ़ विनोद जोस ने बड़े जोरशोर से मुहीम चलाई थी कि अफजल गुरू को फांसी नहीं दी जाना चाहिए | ज़रा उनके तर्क देखिये | फांसी इसलिए नहीं दी जाना चाहिए क्योंकि –1971 में इन्डियन एयर लाइंस का विमान हाईजेक करने वाले कश्मीरी आतंकी हाशिम कुर्रेशी वापस भारत आकर आराम से कश्मीर में रह रहे हैं | इतना ही नहीं तो वे आजकल सरकार के करीबी भी हैं |सैंकड़ों सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की ह्त्या करने वाले नागा नेता आज शांतिवार्ताओं में हिस्सा ले रहे हैं |
भारत सरकार जम्मू कश्मीर किबरेशन फ्रंट के नेता अमानुल्लाह खां पर अतिरिक्त दया दिखा चुकी है |इतना ही नहीं तो पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के हत्यारों को कोर्ट द्वारा सजा दिए जाने के बाद भी फांसी पर नहीं चढ़ाया गया |जब इतने लोगों पर दया दिखाई तो फिर जेकेएलएफ के पूर्व सदस्य के रूप में आत्मसमर्पण करने वाले बेचारे अफजल गुरू के साथ दोहरा मापदंड क्यों ?आपको क्या लगता है ? विनोद जोस के कथनानुसार अफजल गुरू पर दया दिखाना चाहिए थी या ऊपरवर्णित लोगों को भी पकड़कर चौराहों पर फांसी दी जाना चाहिए थी ? जो लोग देश के साथ गद्दारी करें उन्हें जब तक सबक नहीं सिखाया जाएगा तब तक देश समस्याओं के मकडजाल में फंसा ही रहेगा |विषय की प्रस्तुति गलत ढंग से करने को ही तो पीत पत्रकारिता कहते हैं |
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