Thursday, November 7, 2013

मांसाहार न करें.

मांसाहार न करें.
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वैज्ञानिक कारण-
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शरीर हारमोनो से संचालित है
हारमोन वह केमिकल हैं जो शरीर से ही स्रावित होते हैं और इसी में अवशोषित होकर इसे प्रभावित कर देते हैं, यह प्रभाव चिरस्थाई होता है. इस प्रभाव को किसी प्रकार मिटाया नही जा सकता. जब हमारी ह्त्या होती है तो हम विषाक्त हारमोन छोड़ते हैं क्यूँ की हमारा मन भय, यंत्रणा और विषाद से भरा होता है. यही सत्य है पशुओ के साथ. एक पशु जब मरता है तो उसके भीतर विषाक्त हारमोन निकल कर उसके मांस में जज्ब हो जाते हैं. पशु समूह में रहते हैं और नित्य अपने साथी को ह्त्या होते महसूस करते हैं. यह हारमोन अनेक दफा रिस-रिस कर उनके मांस में मिल चुका होता है. यह हारमोन विकार, भय, विषाद और भयानक यंत्रणा का परिणाम है और भोजन द्वारा मांसाहारी के शरीर में पहुँच कर वही भाव उत्पन्न करेगा. मांसाहारी स्वयं को हिंसक होने से नही रोक सकता, वह भय ग्रस्त होता है, अवसाद उसकी प्रवृति होती है. क्रोध का वह दास हो जाता है और अनेक व्याधियां उसे घेर लेती हैं . आप मांस खाने के बाद कभी उत्फुल और हल्का अनुभव नही कर सकते .. मांस खाने के बाद एक नकारात्मक भाव हमेशा घेरता है यह उन जहरीले हारमोनो के कारण है.
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शारीरिक कारण-
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मनुष्य का पेट शाकाहार के लिए उपयुक्त है. मानव आंत लम्बी है और यह प्राथमिक आहार के लिए बनाई गयी है. मांस द्वितीयक आहार है .. द्वितीयक आहार का अर्थ है यह पशुओ द्वारा पहले ही पचाया जा चुका है. मांस पुनः हमारे अमाशय में जाता है और यह प्राथमिक आहार की भाँती यंत्र में यात्रा करता है .. अंत कन्फ्यूज हो जाती है. मांस जल्दी पच जाता है लेकिन आँतों में अनेक मेटाबोलिक विकार पैदा करता है. जैसे गैस, एसिडिटी, अल्सर, अपच, कब्ज, आदि. यह शरीर के कन्फ्यूजन के कारण होता है. मांसाहारी पशुवों का अमाशय हमेशा छोटा होता है. जैसे शेर, चीता, मगर आदि का पेट कभी बड़ा नही होता. मानव का पेट शाकाहार के लिए बना है.
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आध्यात्मिक कारण-
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मानव पंचेन्द्रिय है. अर्थात उसके पास पांच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं. जैन धर्म में इसका गहनतम शोध हुआ है . इसी प्रकार पशु चात्रुरेंद्रिय हैं, पौधे द्वेन्द्रिय हैं और पत्थर जड़ आदि एकेंद्रिय हैं. लोग कहते हैं की आखिर पौधों में भी तो जान है तो क्या वह ह्त्या नही हुई?
हमे कम हिंसा और अधिक हिंसा में चुनना है. हिंसा का प्रश्न बाद में है हमारी संवेदना का प्रश्न पहले है. हम हिंसा न भी करे तो भी मृत्यु होती ही है लेकिन हिंसा करके हम कर्मो का जो जाल बनाते हैं वह हमे भुगतान करना पड़ता है. साधारण जीवन में हम कम भुगतान करके अच्छी चीज़ें खरीदते हैं. जैसे टी वी हम वही लेते हैं जो कम मूल्य में अधिक गुणवत्ता पूर्ण हो.. इसी भाँती यदि हम चतुरेंद्रिय की बजाय द्विएन्द्रिय का आहार करेंगे तो यह कम भूगतान में काम चल जाएगा. इससे हिंसा नही होगी. कारण यह है की हमने अपनी संवेदना का विकास किया. इसी लिए धर्मो ने शाकाहार पर इतना जोर दिया है. उपरोक्त विषाक्तता से भी बच जायेंगे और एक अन्य महत्वपूर्ण अंतर यह है की अन्न या वृक्ष का बीज उनके मृत्यु के बाद भी काम आता है. धान का पौधा जो बीज देगा वह धान के काटने के बाद भी काम आएगा. पशु के सन्दर्भ में ऐसा नही है. पशु एक जटिल संरचना है.जो जीवन की मुक्ति में उत्सुक है वह जटिलता से सहजता की तरफ अभियान करता है. कर्म्बंधों का जाल नही निर्मित करता है.
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कॉस्मिक कारण
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आत्मलोक में हम एक प्रेम पूर्ण जगत में रहते हैं. शाकाहार हमें मृत्यु के बाद की आत्मग्लानि से बचाता है. आत्मलोक का जिन्हें अनुभव है वह यह जानते हैं की शिक्षण के क्रम में हमें उन जीवों से सामना करना होता है जिसको हमने कष्ट दिया है. ( वैज्ञानिक विवरण के लिए पढ़े- डेस्टिनी ऑफ़ सोल- माईकल न्यूटन) यह कष्ट हमारे आगामी जन्म की दिशा और दशा का निर्धारण करता है. यदि हमने परोपकार का जीवन जिया है तो मानसिक /आत्मिक लोक में हम सुख का उपभोग करते हैं. यह स्वर्ग कहा गया है अन्यथा जघन्य विषाद का- यानी नर्क का. क्यूँ की अस्तित्व में यह स्वयं सिद्ध नियम है की चीज़े पुनः पुनः हमपर ही लौट आतीं हैं. क्यूँ की अंततः हमारे अतिरिक्त कोई और नही है. यह अद्वैत का अनुभव है.
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मानसिक कारण-
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हम केवल स्थूल शरीर नही हैं. हमारे भीतर अन्य ७ शरीर है. जिसे मैंने अपने आलेख सम्भोग और समाधि: पूर्ण विज्ञान में विस्तार से बताया है,( यह आलेख नीचे के पोस्ट में उपलब्ध है.) हमारे पास एक मनस शरीर है. जो भावों और विचारों से ही संचालित होता है. हमारा स्थूल शरीर सिर्फ आहार से बनता है. मांसाहार इसे विकृत करता है और इसकी पारदर्शिता को नष्ट कर देता है. विकृत स्थूल शरीर को अन्य गहरे शरीरों का अनुभव नही होता . जैसे हमारा दुसरा शरीर है मनस शरीर जो बनता है हमारे मानसिक आहार से. यह विकसित नहीं हो पायेगा यदि प्रथम शरीर स्वस्थ नही हो तो. अतः मांसाहार हमारी प्रतिभा को कुंद करता है. मांसाहारी बुद्धिमान नही हो सकते. जिन परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी मांस खाया गया हो वह पशुवत हो जाते हैं. क्यूँ की स्थूल आहार पशु का है तो प्रभाव भी पशु का ही होना तय है. शरीरो का यह असंतुलन पागलपन में और अन्य मानसिक व्याधियो में बदल जाता है. ब्रिटेन में गाय का मांस खाने वाले पागलपन की एक नई किस्म से पीड़ित हैं. मांसाहार पागलपन और त्वचा रोग का सबसे बड़ा कारण है.
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धार्मिक कारण-
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धर्म है अपने आत्मा की खोज. यह साधनाओ का सार है. सत -चित आनंद का अभियान है. धर्म साधना में आहार यदि निर्भार करने वाला हो. सात्विक हो, अनुत्तेजना देने वाला हो तो यात्रा को पंख लग जाते हैं और मंजिल कम से कम प्रयासों में उपलब्ध हो जाती है. उसी प्रकार जिस प्रकार नाव सागर में चल रही है और हवा भी अनुकूल है. सम्यक शाकाहार अनुकूलन करता है. एक मांसाहारी व्यक्ति ध्यान में १ घंटे नही बैठ सकता. वह गहरे ध्यान में नही जा सकता. जिसने मुर्दा खा रखा है वह समाधि की कल्पना नही कर सकता. जिसने इतनी असंवेदना दिखाई है की किसी की जान हथ कर आहार कर लिया है उसके ह्रदय में परमात्मा को अतिकोमल पुष्प कैसे खिलेगा? इसीलिए धर्मों ने साधना में शाकाहार का इतना महत्व दिया है.
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नैतिक कारण-
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मुझे याद है की मैं जब हॉस्टल में थी और मेस में खाना खाती थी तो मुझसे मेरे मित्र एक प्रश्न अक्सर करते थे. क्षत्रिय कुल/गोत्र/जाती की होकर भी तुम मांस नही खाती?
मैं उनसे पूछती - ' एक बात का उत्तर दो ! क्षत्रित्व नष्ट करने में है की सृजन करने में? क्षत्रित्व संवेदना में है की ह्त्या में? क्षत्रित्व जीवन देने में है? रक्षा करने में है की दुर्बल को मारने में? और आगे मुझे कहने की आवश्यकता नही की उनका क्या उत्तर होगा? मेरे २ साल के अध्ययन काल में उस मेस में मांसाहार बंद हो गया. कुछ मुस्लिम और आदिवासी भी थे उन्होंने ने भी मांसहार त्याग दिया. मानवता है किसी का कुछ भला कर सके तो कर दिया.. न कर सके तो कम से कम बुरा न किया. यह मानव होने का अन्तर्निहित अर्थ है. मांसाहार मानवता के विरुद्ध आचरण है.
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अतिरंजनाये-
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* इस्लाम में मांसाहार की अनुमति है.
यह गलत है. एक जगह बकरे की क़ुरबानी का वर्णन है जो इस सन्दर्भ में है की अपने प्रिय वस्तु की क़ुरबानी दो. जीवो पर दया करने का स्पष्ट आदेश है कुरआन में.
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* बुद्ध में मरे हुए पशु की मांस खाने की अनुमति दी.
यह सत्य है पर यह बुद्ध की मनुष्य के अंधी खाई में कूदने को टालने के लिए छोटे गढ्ढे में कूदने की अनुमति देने के समान है. ताकि कम से कम नुक्सान हो. मनुष्य मूर्छित है. प्रतिबंधित चीज़ उसके मन में अवरोध बन जाती है. मांस खा कर ध्यान नही हो सकता तो जो मांस पर ही अटक गया है उसे खिला दो. उब कर वह ध्यान करने को इसे त्याग देगा. बुद्ध की यह अति जड़ शिष्यों के लिए करुणा थी. और कोई नियम मूर्छित को नही रोक सकते जब तह वह खुद ही न चेते.
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*जीसस , रामकृष्ण, विवेकानंद मांसाहारी थे.
इसके स्पष्ट प्रमाण नही उपलब्ध. रामकृष्ण तो पार थे. उनके लिए अब क्या नियम .क्या त्याग? जीसस आदिम समाज में थे अतः संभव हो सकता है पर कहीं उल्लिखित नही. विवेक नन्द बंगाली संस्कृति में थे .. वह अंततः उपलब्ध हुए. मांस एक अवरोध बना रहा. और उनके मांस के नही वरन मछली खाने की चर्चा है.
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* मांसाहारी बलिष्ट होते हैं.
सांड सदा कमल के फुल से मजबूत होगा लेकिन कभी मूल्यवान नही. बल सूक्ष्म हो तो ज्यादा प्रभावकारी है. कोमलता, सौन्दर्य का भी बल होता है.
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* मांसाहार नही करेंगे तो पशुवो की संख्या अनियंत्रित तौर पर बढ़ जायेगी.
यह मनुष्यों पर भी लागू होता है तो ऐसे विचार धारा के लोग मानव खाना भी प्रारंभ करे.
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मांसाहार के भयानक तथ्य:
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वैश्विक ऊष्मण (Global Warming) को कम करने के लिए 1997 में जापान के क्योटो शहर में दुनिया के 156 देशों के द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई जिसे क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) कहते हैं। इसका उद्देश्य वैश्विक ऊष्मण के कारणों का पता लगाना था। इसमें वैज्ञानिकों का एक बड़ा दल बना जिसके अध्यक्ष थे - डॉ॰ आर॰ के॰ पचौरी। इस दल ने 4 वर्षों के अध्ययन के बाद बताया की सारी दुनिया में गर्मी बढ्ने का मुख्य कारण है लोगों द्वारा मांसाहारी भोजन का उपयोग एवं उपभोग।

* दुनिया भर में मांस उत्पादन: दुनिया में लगभग 200 देश हैं और सभी देशों को मिलाकर मांस का कुल उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन (एक मीट्रिक टन में लगभग 1000 किग्रा॰ होते हैं)। मांस कंपनियों का कहना है की 2050 तक इस उत्पादन को 46 करोड़ मीट्रिक टन कर देंगे, माने आज के उत्पादन का लगभग दो गुना। इसके मांस कंपनियां पूरी दुनिया को मांसाहारी बनाने के काम में लग गयी हैं। इनके विज्ञापन रोज़ टीवी पर आ रहे हैं। ये मांस कंपनियों का ही विज्ञापन है "संडे हो या मंडे, रोज़ खाओ अंडे" ? और हमारे देश के कई अभिनेता, अभिनेत्री, खिलाड़ी और सम्माननीय लोग पैसे के लालच में अंडों का विज्ञापन करते हैं, जो खुद निजी ज़िंदगी में शाकाहारी हैं।
कुल मांस का उत्पादन 26 करोड़ 50 लाख मीट्रिक टन है जिसमें से मुर्गे मुर्गियों के मांस का उत्पादन है 1 करोड़ मीट्रिक टन। सूअर के मांस का उत्पादन है 10 करोड़ मीट्रिक टन। गाय के मांस का उत्पादन है 6 करोड़ मीट्रिक टन। इतने मांस के उत्पादन के लिए हर साल पूरी दुनिया में 46 अरब (4600 करोड़) जानवरों का कत्ल होता है।

* भारत की स्थिति: भारत में हर साल 58 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पादन होता है अर्थात् पूरी दुनिया के मांस उत्पादन का लगभग 2%। भारत में 121 करोड़ नागरिक हैं जिनमें 70% शाकाहारी और 30% मांसाहारी हैं। भारत सरकार के 2009 के आंकड़ों के अनुसार भारत में मांस के उत्पादन में गाय का मांस 14 लाख टन पैदा होता है, भैंस का मांस करीब 14 लाख टन, मटन करीब 2.5 लाख टन, सूअर का मांस करीब 6 लाख 30 हज़ार टन, मुर्गे- मुर्गियों का मांस 16 लाख टन और बाकी छोटे जानवरों का शामिल है। इतने मांस के उत्पादन के लिए भारत में करीब 10 करोड़ 50 लाख जानवरों का कत्ल किया गया। इनमें करीब 4.5 करोड़ गाय, भैंस, बैल हैं और बाकी छोटे जानवर जैसे- बकरे- बकरी, मुर्गे- मुर्गी आदि।
भारत में 3600 सरकार के रजिस्टर्ड (Registered) कत्लखाने हैं और करीब 36000 अनरजिस्टर्ड (Unregistered) कत्लखाने हैं।

* भोजन की कमी और मांसाहार: 1 एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन से 22 लोगों का पेट भरा जा सकता है लेकिन यदि उसी एक एकड़ खेत के एक साल के उत्पादन को अगर जानवरों को खिलाया जाए और फिर उनका मांस खाया जाए तो केवल 2 लोगों का पेट साल भर के लिए भरा जा सकता है।
जानवरों को अनाज इसलिए खिलाया जाता है ताकि उनमें मांस बढ़े और जिन्हें मांस खाना है उन्हें अच्छा मांस मिल सके। विकासशील देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 40% हिस्सा खिला दिया जाता है। भारत जैसे 186 विकासशील देश हैं जो कुल कृषि की उपज का 40% हिस्सा जानवरों को खिला देते हैं। विकसित देशों में जानवरों को कुल कृषि से उत्पन्न अन्न का लगभग 70% हिस्सा खिला दिया जाता है। अमेरिका जैसे दुनिया में 17 विकसित देश हैं। अगर 40% और 70% का औसत निकाला जाए तो 55% निकलता है। अर्थात् दुनिया में औसतन आधा अनाज जानवरों को खिलाकर, उनके मांस को कुछ लोग खाते हैं। इससे अच्छा अगर वो अनाज सीधे ही हम खा जाएँ और जानवरों वाला अनाज मनुष्यों को खाने को मिल जाए तो सारी दुनिया में कहीं भी (एशिया, अफ्रीका में) भूखमरी नहीं होगी। यूएन के अनुसार हर दिन दुनिया में 40,000 लोग भूख से मर जाते हैं। सारी दुनिया में 200 करोड़ लोग भुखमरी की कगार पर हैं अर्थात् दुनिया की करीब 1/3 जनसंख्या भुखमरी की कगार पर है। यूएन की संस्था एफ़एओ (FAO) का कहना है की अगर सारी दुनिया में मांस खाने वाले लोग अपने मांस के उपभोग में सिर्फ 10% की कटौती कर दें या 10% लोग शाकाहारी हो जाएँ तो पूरी दुनिया में एक भी व्यक्ति भूख से नहीं मरेगा।

अमेरिका में हर आदमी एक साल में 165 किलो, चीन में 95 किलो, यूरोप और कनाडा में 130 किलो और भारत में 3.5 किलो मांस प्रतिवर्ष खाता है।

* अब आप सोचेंगे जानवरों के लिए भोजन कहाँ से आयेगा ??
प्रकृति ने बहुत सुंदर व्यवस्था कर राखी है जहां से हमारे लिए भोजन आता है, वहीं से जानवरों के लिए भी पैदा होता है। गेहूं के पौधे का ऊपर वाला लगभग एक फुट का हिस्सा ही हमारे काम आता है और बचा हुआ नीचे का 6-7 फुट जानवरों के काम आता है। इसी तरह मक्का और बाजरा में भी ऊपर का बाल वाला एक फुट हिस्सा हमारे काम आता है और बाकी का जानवरों के काम आता है। मनुष्य के लिए कुल जितना उत्पादन चाहिए उससे 6-7 गुना ज्यादा उत्पादन चारे का हो जाता है।

* मांस उद्योग के कर्ण जंगलों की कटाई: वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की कटाई का सबसे बड़ा कारण है- मांस उद्योग का बढ़ते जाना। मांस उद्योग में मांस की पैकिंग और उस पैकिंग को एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल है- लकड़ी। जिस कच्चे माल का डिब्बे बनाने में इस्तेमाल होता है। वैज्ञानिकों का कहना है की जंगलों की समाप्ति को अगर रोकना है तो मांस उद्योग को बंद कर दिया जाए।

* मांस उद्योग में पानी की बर्बादी: एक किलो मांस पैदा करने में न्यूनतम 70,000 लीटर पानी लगता है तो 285000000 मीट्रिक टन मांस पैदा करने के लिए 19950000000000000 लीटर पानी बर्बाद होता है।
अर्थात् हम छ: महीने नहाने में जो पानी खर्च करते हैं, उतना ही पानी एक किलो मांस पैदा करने में लग जाता है। अच्छे से अच्छा पानी पीने वाला व्यक्ति अगर एक दिन में 3 लीटर पानी पिये तो महीने में 90 लीटर और साल में 900-1000 लीटर पानी पिएगा। इस तरह 70 साल में वो व्यक्ति 70000 लीटर पानी पिएगा, उतना पानी 1 किलो मांस के उत्पादन में लगता है।
भारत में 20 करोड़ परिवार हैं। मांस पैदा करने वाले उद्योग के लिए एक साल में जितना पानी खर्च होता है उतने ही खर्च में 20 करोड़ परिवारों का सारी ज़िंदगी का पानी का खर्च चल सकता है। एक तरफ भारत ए 14 करोड़ परिवारों को पीने का शुद्ध पानी न मिले और दूसरी तरफ मांस उत्पादन करने वाली कंपनियां लाखों लीटर पानी बर्बाद करें। ये तो बहुत बड़ा अन्याय है ???

* मांस उद्योग के कारण प्राकृतिक आपदाएँ: कत्लखानों में जानवरों को तड़पा तड़पा कर मारा जाता है। बड़े जानवरों को भूखा रखकर उनके शरीर को कमजोर किया जाता है, फिर उनके ऊपर गरम पानी (70-100 डिग्री सेंटीग्रेट) की बौछार डाली जाती है, जिससे उनका शरीर फूलना शुरू हो जाता है। जब उनका शरीर पूरी तरह फूल जाता है तो जीवित अवस्था में ही उनकी खाल को उतारा जाता है। निकालने वाले खून को इकट्ठा किया जाता है और धीरे-2 जानवर मर जाते हैं। इस प्रक्रिया में जानवर बहुत तेज़ चीखते- चिल्लाते हैं। जानवरों की चीखें पूरे वातावरण को तरंगित कर देती हैं और वातावरण में घूमती रहती हैं। इसका वातावरण और मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह नकारात्मक प्रभाव जब बढ्ने लगता है तो लोगों में हिंसा की प्रवत्ति बढ्ने लगती है और इस हिंसा और नाकारात्मकता के कारण दुनिया में अत्याचार और पाप बढ़ रहा है।
"दिल्ली विश्वविद्यालय के 3 प्रोफेसर है जिन्होने 20 साल इस पर रिसर्च और अध्ययन किया है ये नाम हैं डॉ॰ मदन मोहन बजाज, डॉ॰ मोहम्मद सैय्यद मोहम्मद इब्राहिम और डॉ। विजय राज सिंह उनकी भौतिकी (Physics) की रिसर्च कहती है की जितना जानवरों को कत्ल किया जाएगा, जानवरों पर जितनी हिंसा की जाएगी, उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे। उन्होने दुनिया और भारत में जहां जहां कत्लखाने हैं वहाँ रहकर देखा। जानवरों के निकालने वाली Shock Waves को एब्सॉर्ब (Absorb) किया और उनको नापा, तौला और उनका अध्ययन किया और पाया की दुनिया में जो प्राकृतिक आपदाएँ हो रही हैं उनका बहुत बड़ा कारण हैं- कत्लखाने और उनसे निकालने वाली जानवरों की चीख पुकार।

* क्या आप जानते हैं ??
१. कैलिफोर्निया में दुनिया का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां दिन में 36,000 गायों को काटा जाता है।
२. महाराष्ट्र के देवनार में भारत का सबसे बड़ा कत्लखाना है जहां  प्रतिदिन 14,000 गायों को काटा जाता है।

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