Saturday, October 12, 2013

बारूद का आविष्कार भारत मे हुआ था

बारूद का आविष्कार भारत मे हुआ था..


बारूद ही नही बन्दुक ओर तोप का उपयोग भारत मे सहस्त्रो वर्ष पूर्व किया जाता था.. आइए थोडा बारूद के इतिहास पर प्रकाश डालते है.. बारूद का आविष्यकार युरोप मे 13 शताब्दी मे बर्थोलड शार्टज ने किया .. वे गनपाउडर के रूप मे बारूद का उपयोग करते थे.. लेकिन इनसे भी पहले चीन के ग्रंथो मे बारूद बनाने की विधि का उल्लेख है.. ये लोग गंधक,सीसा,कोयला,आदि से बारूद बनाते थे..ये चीनी ग्रंथ लगभग 1000 या 960 ईस्वी के है.. लेकिन बारूद का उपयोग भारत मे वैदिक काल से किया जा रहा है.. भारतीय ग्रंथो मे अर्थववेद,कोटिल्य के अर्थशास्त्र मे बारूद के बारे मे है.. अर्थववेद मे कुछ इस तरह का उल्लेख है.. सीसायाध्याह वरूण:सीसायग्नि रूपावति। सीसं म इन्द्र प्रायच्छत् तदङ्र यातुचातनम्॥1/16/2॥ वरूणदेव ने सीसे के सम्बन्ध मे कहा है अग्निदेव उस सीसे को मनुष्यो की सुरक्षा करने वाला बताते है।धनवान इन्द्र ने हमे सीसा प्रदान करते हुए कहा है कि ये असुरो का विनाश करने वाला है... (यहा तीन देवताओ वरूण,अग्नि एंव इन्द्र द्वारा सीसे से आत्मरक्षा ओर शत्रु निवारण प्रयोग बताया है,इन्द्र संगठन सत्ता सीसे की गोली का रहस्य बतला सकते है,वरूण देव(हाईड्रोलिक प्रेशर से) तथा अग्निदेव(विस्फोटन शक्ति से)सीसे की शक्ति प्रदान करते है... "तं त्वा सीसेन विध्याम: (9/16/4)" दुष्टो के नाश के लिए सीसे की गोली बनाकर शत्रु को भेदो.. शुक्र नीति नामक ग्रंथ मे बारूद के साथ साथ तोप,बन्दुक का उल्लेख है।शुक्रनीति मे बन्दुक को नलिका ओर तोप को बृहन्नालिका से सम्बोधित किया है तथा तोप शकट शब्द के रूप मे panzer का भी उल्लेख है.. शुक्र नीति मे बृहन्नालिका ओर क्षुद्रनालिका इस भेद की दो बन्दुके होती थी।इनमे तिर्यक नाल,ऊर्ध्व छिद्र ओर मूल नाल पाँच बालिश्त की होती थी।लक्ष्य वेध के हिसाब से ये दो प्रकार की होती थी-मूल लक्ष्य भेदी ओर अग्रय लक्ष्यभेदी।अचूक निशाना साधने के लिए इनमे एक तिल बिन्दु होता था।यंत्र को चलाकर ये दागी जाती थी..इनमे दाव चूर्ण(बारूद)भरा जाता था।ये ऊपर से दृढकाष्ठ की बनी होती थी।इस नलिका मे एक दृढ शलाका बारूद के नियंत्रण के लिए होती थी।लघु नालिको को चलाने के लिए सवार ओर पैदल नियुक्त किए जाते थे। बृहन्नालिको को हम तोप कह सकते है।जितना बडा गोला इस तोप से दागना हो ओर यह गोला जितनी दूर फेका जाना हो,उसी हिसाब से मोटी त्वचावाली ओर भीतर बडी पोहवाली बृहन्नालिका बनायी जाती थी।यह विजय दिलाने वाली तोप शकट पर चलती थी। उपरोक्त वर्णन संस्कृत मे शुक्रनीति मे निम्न प्रकार है.. नालिकं दिविधं ज्ञेयं बृहत् क्षुद्र विभेवत:। तिर्यगूर्ध्वच्छिद्रम­ूलं नालं पच्ञवितस्तिकम्॥ मूलाग्रयोलक्ष्यभेदि तिलबिंदुयुतं सदा। यंत्राघाताग्निकृद् द्रावचूर्णमूलककर्णकम­्॥ सुकाष्ठोपांगबुध्नं च मध्यांगुलबिलाथरम्। स्वान्तेsग्निचूर्णसं­धात्री शलाका संयुतं बुढम्॥ लघु नालिका मप्येतत्प्रधायँ पत्तिसादिभि:। यथा दीघँ बृहद्गोलं दूरभेदि तथा तथा। मूलकीलोद्गमाल्लक्ष्य­समसंधानभाजि यत्॥ बृहन्नालिकसंज्ञं तत्काष्ठबुध्नविवर्जि­तम्। प्रवाह्मं शकटाघैस्तुसुयुक्तं विजयप्रदम्॥ (शुक्रनीति 4/1028-1033) शुक्र नीति मे दावचूर्ण मे पाँच पल शोरा,एक पल गन्धक ओर आग से पके अर्क,स्नुही कोयला,एक पल होता था।इन सबको अलग अलग पीस लिया जाता था।फिर इनमे केले या स्नुही के रस की भावना देते थे ओर धूप मे सूखा लेते थे।यह अग्निचूर्ण पिसने पर शक्कर जैसा हो जाता था। भिन्न भिन्न बारूदो मे शोरा भिन्न भिन्न भागो मे मिलाया जाता था,किसी मे छ: भाग तो किसी मे चार भाग,ओर कोयला तथा गन्धक ऊपर बताए परिमाण मे ही।तोप मे लोह के बडे गोले ओर छोटे छोटे छर्रे भी भरे जाते थे। लघुनालिका के लिए सीसा अथवा किसी दुसरी धातु की गोली ली जाती थी ओर नालास्त्र या तोप के लिए लोहसार अथवा अन्य उचित धातु की।बन्दुक ओर तोप की सफाई पर उचित ध्यान रखा जाता था।इनहे संमाजित करके स्वच्छ रखते थे। बारूद तैयार करने के लिए अंगार,गन्धक,सुवर्चि लवण,मन:सिला,हरताल,सी­स किट्ट,हिंगुल,कान्तलो­ह की रज,खपरिया,लाख,नील्य,­रोजिन इन सब द्रव्योकी बराबर अथवा न्यूनाधिक उचित मात्रा ली जाती थी। अग्निसंयोग द्वारा बारूद के ये गोले लक्ष्य तक फेके जाते थे। यही सब संस्कृत मे शुक्रनीति मे इस तरह है.. "सुवचिलवणात् पञ्चपलानि गंधकात्पलम्। अन्तर्धूमविपक्वार्कस­्नुह्माघंगारत: पलम्॥ शुध्दात्संग्राह्म संचूर्ण्य संमील्य प्रपुटेद्रसै:। स्नुह्मर्काणां रसे तच्च शोषयेदातपे तथा॥ पिष्टवा शर्करवच्चैतदग्निचूर्­ण भवेत्खलु। सुवर्चिलवणाद् भागा: षड् वा चत्वार एव वा॥ नालास्त्रार्थाग्निचू­र्णे तु गंधागारो तु पूर्ववत्। गोलो लोहमयो गर्भ: गुटिक: केवलोSपि वा॥ सीसस्य लघुनालार्थे ह्मन्यधातुभवोsपि वा। लोहसारमंय वापि नालास्त्रं त्वन्यधातुजम्॥ नित्यसंमार्जनस्वच्छम­स्त्रपातिभिरावृतम्। अंगारस्यैव गंधस्य सुवचिलवणस्य च॥ शिलाया हरितालस्य तथा सीसमलस्य च हिंगुलस्य यथा कातरजस: कर्परस्य च॥(शुक्र नीति 1034-1040) आकाशभैरवकल्प नाम के ग्रंथ मे भी अग्निकीडाओ ओर बन्दुको का उल्लेख है।इस ग्रंथ मे बाण वृक्षो का निर्देश है,जो बांस के बने पिंजर होते थे,जिन पर से अग्निबाण अन्तरिक्ष मे छोडे जाते थे।इन पिंजरो पर से ऐसी चिनगारिया निकलती थी कि वे चामर के तुल्य मालूम होती थी।इन बाणो के छूटने पर अन्त मे एक विशेष ध्वनि भी निकलती थी.. (ये एक उच्च किस्म की आतिशबाजी का उल्लेख है) "तत: पश्येद्दारूयंत्रविशे­फान् स्यन्दनाकृतीन्। दिवाभ्रान्त्या कल्पयत: केनचित्तेजसा निशि॥ उच्चावचान् बाणवृक्षान् तत: पश्येज्जनेश्वर:। स्पुलिंगान् चामराकारान् तिर्यगुदगिरतो बहून्॥ तत: प्रलयकालोघद्घनगर्जित­भीषणम्। श्रृणुयाद् बाणनिनदं विनोदावधिसूचकम्।।(आक­ाशभैरवकल्प)
उडीसा के गजपति प्रतापरूद्रदेव की एक पुस्तक(1417-1539ई.) कौतुक चिन्तामणि मे आतिशबाजियो तथा उनके बारूद का उल्लेख है.. इसमे कल्पवृक्ष,चामर बाण,चंद्रज्योति,चंपा­ बाण,पुष्पवर्ति,छुछंद­री रस बाण,तीक्ष्ण नाल ओर पुष्प बाण नाम की आतिशबाजिया है.. इन आतिशबाजियो का बारूद मे निम्न पदार्थ उपयोग मे आते थे-गंधक,शोरा,कोयला,इ­स्पात चूर्ण,लोह चूर्ण,मरकत सी छवी वाला जांगल नामक ताम्र से उत्पन्न द्रव्य,तालक,गैरिक,खा­दिर दारू,बांस की नाल,पंच लवण,चुम्बक पत्तर,चिन्नुकात्रय,ए­रंडीयबीज,अर्कागार,गो­मूत्र,हिंगुल,हरिताक आदि.. अन्य विवरण: विजयनगर के दरबार मे देवराय दितीय के समय सुलतान शाह रूख का दूत अब्दुर्र रज्जाक सन्न1443 ईट मे रहता था इसने लिखा है कि रामनवमी के अवसर पर उसने वहा आतिशबाजिया देखी.. वरमीथा नामक एक विदेशी (सुमात्रा देश) ने अपनी एक पुस्तक मे लिखा है कि उसने 1442 ई. मे विजयनगर मे बहुत सारी आतिशबाजिया देखी थी.. 14 सदी के आसपास मे ये बारूद की विद्या विजयनगर से सुमात्रा दीपो मे पहुची.. बारबोसा ने अपनी 1518ई. की यात्रा मे गुजरात के एक विवाहोत्सव का उल्लेख किया है जिसमे अग्निबाण छोडे गए... उपरोक्त सभी कथनो से यही पता चलता है कि ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र मे भारत पहले सर्वश्रेष्ठ था.. ये देश संसार का पथप्रर्दशक था इसलिए इसे विश्वगुरू बोला जाता था.. यहा एक ओर बात ध्यान देने की है कि जिस देश ने महाभारत ओर रामायण काल मे परमाणु,हाईड्रोजन बम ओर विभिन्न परेक्षेपास्त्र बना दिए उसके लिए बन्दुक बारूद बनाना तो बाए हाथ का खेल है.. पोस्ट पढने के लिए धन्यवाद.. जय श्री राम.. वन्दे भारत जगतगुरू..

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