Saturday, October 5, 2013

रामराज्य के प्रतिपक्ष में एक प्रतिरोध

मेरी महात्मा गांधी से कभी नहीं बनी। वह रामराज्य चाहते थे, मैं बिल्कुल नहीं, क्योंकि यह व्यंग्यकारों के पेट पर लात मारने वाला काम है। आज भी कुछ लोग रामराज्य चाहते हैं, पर यदि चाहने से ही सब कुछ मिल जाता, तो आज हेमा मालिनी हमारे नाती-पोते संभाल रही होंती। कल्पना तो अच्छी खासी कला को किन्नर बना देती है। रामराज्य आने से कार्टूनिस्टों की रोजी-रोटी छिन जाएगी। यह एक वीभत्स खयाल है। काटरून ही पाठकों को सूखे संपादकीय से सुरक्षा देते हैं। मैं रामराज्य से नफरत करता हूं। यह व्यंग्यकारों का मनोबल गिराता है। मनोबल सिर्फ पुलिस का गिरना चाहिए और किसी का नहीं।

गांधी के प्रस्ताव के अनुसार, रामराज्य में स्कूलों में मास्टर रहेंगे। अस्पतालों में डॉक्टर मिलेंगे। बिजली, पानी की कटौती नहीं होगी। पुल नहीं गिरेंगे। नालियों तक में घी-दूध बहेगा। प्रजा को न्याय मिलेगा। पुलिस शालीन रहेगी। वकील झूठ नहीं बोलेंगे। जब तक शादी न हो जाए, मुहल्ले भर के लड़के-लड़कियां भाई-बहन होंगे। हीरोइनें पूरे कपड़े पहनेंगी। रहमान के संगीत में शोर की जगह सुरीलापन रहेगा। रावण संन्यास ले लेगा। विभीषण भूखों मरेंगे। सब कुछ चकाचक! लोग दुष्टता के लिए तरस जाएंगे।

रामराज्य में तेजाब लड़कियों के चेहरों पर असर नहीं करेगा। ऐसी बसें बननी बंद हो जाएंगी, जिनमें बलात्कार होता है। शूर्पणखा की नाक नहीं कटेगी। न जटायु मरण होगा,  न सीता हरण। चहुंओर सुख-शांति होगी। सुख-शांति होगी तो हम व्यंग्यकार, काटरूनिस्ट क्या घुइयां छीलेंगे?  जिस राष्ट्र का धृतराष्ट्र अंधा न हो, वहां भला महाभारत किस काम का?

हे रामराज्य चाहने वालो। साहित्य में हमारी हैसियत हो न हो, मगर अखबारों में तो है। किस माई के लाल ने डिब्बे का दूध पिया है, जो रामराज्य लाए। तुरुप का पत्ता है हमारे पास। अजी, हम रामराज्य के धोबी बन जाएंगे। ऐसे व्यंग्य बाण मारेंगे कि सीता को दुबारा जंगल जाना पड़ेगा। हमने कच्ची गोलियां नहीं खेलीं। यही चुनौती मैंने पिछले दो अक्तूबर को गांधीजी को दी। वह बेचारे क्या जवाब देते? वापस प्रतिमा बन गए। अब हमसे पंगा लेगा कौन?

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