Sunday, March 30, 2014

साम्प्रदायिक भाजपा और धर्मनिरपेक्ष इमरान मसूद

साम्प्रदायिक भाजपा और धर्मनिरपेक्ष इमरान मसूद

by संजीव कुमार सरीन Monday March 31, 2014


इसे तुष्टिकरण की हद नही तो और क्या कहा जायेगा कि जो तमाम तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल और  उनके नेता प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा के जामिया नगर और बटाला हाउस वाले बयान के बाद भाजपा और प्रो. मल्होत्रा के ख़िलाफ लामबंद हो गये थे, उन तमाम लोगो को सहारनपुर से कॉंग्रेस के उम्मीदवार श्री इमरान मसूद के बयान पर मानो साँप सूंघ गया- किसी ने विरोध करना तो दूर बल्कि कुछ एक ने तो उसे सही ठहराने तक का प्रयास किया|

सबसे पहले बात करते है प्रो. मल्होत्रा के बयान कि जिसमें उन्होने दिल्ली के जामिया नगर और बटाला हाउस इलाके को कथित रूप से आतंकियो का गढ बताया था| इस देश के जागरूक नागरिक अगर अपनी यादाश्त पर ज़ोर डालेंगे तो उन्हे याद आ जायेगा कि दिल्ली में गिरफ्तार होने वाले तमाम आतंकियो में से कितने आतंकवादी दिल्ली के इन्ही इलाकों में से पकड़े जाते है| लिहाज़ा प्रो. मल्होत्रा का बयान तथ्यात्मक रूप से सही होते हुए भी अतिशयोक्ति पूर्ण कहा जा सकता है- क्योकि किसी क्षेत्र विशेष से आतंकियो के पकड़े जाने मात्र आधार पर उस क्षेत्र को आतंकियो का गढ नही कहा जा सकता| लेकिन इन क्षेत्रों से आतंकियों की निरंतर धरपकड़ से एक तो स्पष्ट है कि आतंकी दिल्ली में अपने छिपने के लिये इन इलाकों को श़ायद ज्यादा माकूल पाते है- लिहाज़ा इन इलाकों के नागरिकों का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह इलाके में आने वाले अजनबियों के प्रति ज्यादा सतर्क रहे और सुरक्षा बलों के हर कदम को संदेह की द्रष्टि से ना देखें|
अब बात करते है सहारनपुर से कॉंग्रेस के उम्मीदवार श्री इमरान मसूद के बयान कि जिसमे वह कहते है -"कि वह मोदी की बोटी- बोटी कर देंगे- और गुजरात में तो केवल 4 प्रतिशत मुसलमान है- जबकि यहाँ पर 42 प्रतिशत, लिहाजा वह अच्छे से सबक सीखा देंगे|" श्री मसूद का मोदी जी की बोटी- बोटी कर देने का क्या आशय था- यह हम उन्ही पर छोड़ते है लेकिन हम उनसे यह जरूर जानना चाहेंगे कि मुसलमानो की संख्या के आधार पर वह क्या कहना चाहते थे? क्या व़ह इस क्षेत्र की गैर मुस्लिम जनता को छिपे शब्दों में कोई धमकी दे रहे थे? यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि श्री मसूद के अनुसार उनका यह वीडियो तकरीबन 6 माह पुराना है- और यदि यह सच है तो मामला और भी गंभीर है क्योकि यह वह दौर था जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फरनगर और उसके आस पास के क्षेत्र सूबे की सपा सरकार की नाकाबीलियत के कारण साम्प्रदायिक हिंसा की आग़ में जल रहे थे और श्री मसूद उस समय स्वयम् सपा में थे| अब अगर यह वीडियो वाकई 6 माह पुराना है तो क्या इससे यह जाहिर नही होता कि साम्प्रादयिक दंगों के दौरान कैसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों के नेता उस समय साम्प्रदायिक सदभाव कायम करने के स्थान पर समुदाय विशेष को संख्या बल के आधार पर उकसाने का प्रयास कर रहे थे?
यहाँ पर मैं अपने मुसलमान भाइयों और बहनों से अपील करना चाहूंगा कि आप श्री मसूद जैसे नेता जो आपको एक मज़हबी पहचान की तरह प्रयोग करते है से ना सिर्फ सतर्क रहे बल्कि उनका बहिष्कार भी करें- क्योकि इन्ही जैसे नेताओं के ऐसे बयानों के कारण ही आप के समाज की छवि धूमिल होती है|

अब बात करते है इन दोनों बयानों पर आने वाली विभिन्न राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की प्रतिक्रियाओं की| प्रो. मल्होत्रा के बयान के विरुद आम आदमी और कॉंग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग से शिकायत करी है| इतना ही नही जहां आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग से प्रो. मल्होत्रा के ख़िलाफ आपराधिक केस दर्ज करने की भी मांग करी है वहीं कॉंग्रेस ने कहा है कि यदि प्रो. मल्होत्रा माँफी नही माँगेगे तो उसके कार्यकर्ता भाजपा का घेराव करेंगे|

जहां तक बात है श्री मसूद के बयान पर कार्यवाही की तो श्री मसूद की गिरफ्तारी और 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिये जाने के बाद- श्री राहुल गाँधी द्वारा उनके समर्थन में सहारनपुर में रैली करने और उस रैली में श्री मसूद के बयान पर चुप्पी साधे रखने से क्या यह नही माना जाय कि कॉंग्रेस, श्री मसूद के इस बयान को निन्दा के काबिल नही मानती? जहां तक बात है सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी की तो इन दलों के किसी भी नेता ने निन्दा का एक भी शब्द नही बोला है यानी यह माना जा सकता है कि यह तमाम दल भी श्री मसूद के बयान को निन्दनीय नही मानते है|

अब आप लोग ही फ़ैसला कर लीजिये की किसका बयान ज्यादा निन्दनीय है? जो राजनीतिक दल धर्मनिरपेक्षता के नाम पर प्रो. मल्होत्रा के अतिशयोक्ति पूर्ण बयान पर लामबंद है- वही राजनीतिक दल श्री मसूद के बयान पर ना सिर्फ खामोश है बल्कि कुछ एक नेता तो उनका वचाव भी कर चुके है| अपनी इस हरकत को यह तमाम नेता भले ही धर्मनिरपेक्षता का नाम दें लेकिन वास्तव में इसे तुष्टिकरण कहते है और अब फैसला आप लोगो को करना है कि क्या आपको धर्मनिरपेक्षता की चाशनी में लिपटा हुआ तुष्टिकरण पसंद है जो समाज को 42 प्रतिशत और 58 प्रतिशत के खाँचे में बांटता है या आपको चाहिये समग्र विकास लेकिन तुष्टिकरण किसी का नही और जहां समाज में 4 प्रतिशत और 96 प्रतिशत के मध्य कोई भेदभाव भी नही| सोचिये और सोच कर मतदान करिये|

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