'हर-हर मोदी' आदि शंकराचार्य की मूल शिक्षाओं के अनुरूप ही है!
by Sundeep Dev
संदीप देव। आदि गुरू शंकराचार्य का अद्वैत सिद्धांत का मूलमंत्र ही है: ''ब्रहम सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह़ौव नापर:।'' अर्थात ''ब्रहम ही सत्य है। जगत मिथ्या है। जीव ब्रहम ही है। जीव ब्रहम से कदापि भिन्न नहीं है।'' यह सिद्धांत ही अद्वैत दर्शन का आधारशिला है। अब सवाल उठता है कि आदि गुरु शंकराचार्य के नाम पर भोजन-वस्त्र और यश पाने वाले स्वरूपानंद सरस्वती यह कैसे भूल गए कि ' जीव ब्रहम से कदापित भिन्न नहीं है'। ईसायत जरूर अद्वैत को नहीं मानता है तभी तो उसने ईशा मसीह तक को ईश्वर नहीं, ईश्वर का 'प्रिय पुत्र' कहा है। आदि शंकराचार्य ने 'अद्वैत' की स्थापना की थी। अद्वैत, जहां दो का भेद मिट जाए अर्थात जहां आत्मा और परमात्मा एक हो जाएं, जहां पुरुष व प्रकृति में कोई भेद न रहे, जहां इ्ंसान उत्तरोत्तर बढ़ते हुए स्वयं भगवान हो जाए।
ईसायत का मूल स्तंभ इटली के रोम की भारत में बसी माता के सान्निध्य में कहीं स्वरूपानंद सरस्वती ''ब्रहम सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह़ौव नापर:'' को भूल तो नहीं गए? कहीं हिंदुओं को आतंकवादी कहने वाले दिग्विजय सिंह के प्रभाव में वह हिंदू धर्म के मूल का सर्वनाश करने की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं? हिंदू आतंकवाद की अवधारणा गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे, दिग्विजय सिंह, गृहराज्य मंत्री आरपीएन सिंह, कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने संभल स्थित जिस आचार्य प्रमोद कृष्णम के आश्रम में बैठकर रचा था (सीबीआई अदालत में यह मामला विचाराधीन है) आज उस प्रमोद कृष्णम को कांग्रेस ने संभल से टिकट दिया। तो सवाल उठता है कि स्वरूपानंद सरस्वती के किसी चेले को भी मोदी विरोध के लिए कांग्रेस की ओर से टिकट मिलने वाला है?
आदि गुरू शंकराचार्य की मूल शिक्षाओं से महरूम स्वरूपानंद सरस्वती को अपने नाम के साथ शंकराचार्य लगाने का कोई अधिकार नहीं है। अद्वैत के ज्ञान से विहीन स्वरूपानंद को ईसायत की शरणस्थली रोम भेज देना चाहिए ताकि वह वहां जाकर अद्वैत का खंडन कर सकें और कह सकें कि जीव और ब्रहम दो अलग-अलग बातें हैं। 'हर-हर मोदी' आदि गुरू शंकराचार्य के ''जीवो ब्रह़ौव नापर:'' की मूल शिक्षा के ही अनुरूप है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है!
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