बीजेपी के समर्थक है और आलोचक भी | सरकार के प्रत्येक निर्णय पर हम अपने विचार रखने का प्रयास करेंगे |
ईश्वर हमारी सत्य बोलने में मदद करे |
Tuesday, April 30, 2013
Monday, April 29, 2013
तुम हमें गोबर दो | हम तुम्हे गोमांस देंगे ||
तुम हमें गोबर दो |
हम तुम्हे गोमांस देंगे ||
कुछ साल पहले भारत सरकार ने 42 करोड़ रूपए की विदेशी मुद्रा खर्च करके होलैंड से १ करोड़ टन गोबर आयात करने का निर्णय लिया था |
और विदेशी मुद्रा की प्राप्ति के बहाने लाखों पशु काटकर विदेशो मे मांस भेजा जा रहा है |
चले ब्राह्मण तब धरती धधकती हे.
चले ब्राह्मण तब धरती धधकती हे....
बोले ब्राह्मण तो आग बरसती हे....
टकराने की हिम्मत रखो तो ब्राह्मण का सामना करो,
पीठ पीछे बोलके हमारा समय ख़राब मत करो...
खड़ा हो जहा ब्राह्मण वहा ज्ञान की लहर चलती हे,
अरे इस ब्राह्मण से तो अच्छे अच्छो की आवाज बंद होती हे,
परशुराम की संतान हे फरसा साथ में रखो,
शंकराचार्य के ज्ञान को अपने दिमाग में रखो....
ब्राह्मण की सेना का निर्माण करो,
अपने हक अपने अस्तित्व की रक्षा का प्रण आभास करो..
बढ़ाते जाओ हाथ कोई तो ब्राह्मण थामेगा,
आज नहीं तो कल वो भी साथ हो जायेगा...
चलते चलो ब्राह्मण एकता की राह पे,
साथ भाई को जोड़ते चलो,
एक होंगे तो ज्वाला हे हम.
ज्वाला की गर्मी आग हे ह्हुम....
जय जय परशुराम कहते बढ़ो,
अपने अन्दर के डर को मिटाते चलो,
ज्ञान की प्राप्ति बढ़ाते चलो,,,
आदि गुरु की जय जय कर करते रहो....
जम्मू से केरल तक फेले ब्रह्मिनो को एक होना होगा,
अपने हितो की रक्षा के लिए परशुराम भी बनना होगा,
बातो से नहीं बनेगी एकता जमीनी तयारी करनी होगी,
ब्राह्मण साम्राज्य की सेना अस्तित्व में लानी होगी....
परशुराम प्रकट उत्सव 12 मई को आयेगा,
एकता की नयी शुरआत की क्रान्ति कहलायेगा,
अपने अपने शहर के ब्रह्मिनो से जुड़ते चलो,
12 मई को शक्ति प्रदर्शन कर बढ़ते रहो....
आज जरुरत या मज़बूरी समझो,
एकता की मांग को जरुरी समझो....
1 घंटा भी अपने समाज को दो,
नए समाज का निर्माण में योगदान दो.....
हर हर महादेव,
जय जय परशुराम,
ब्राह्मण एकता विजयते
सर्व सनातन जयते...
बोले ब्राह्मण तो आग बरसती हे....
टकराने की हिम्मत रखो तो ब्राह्मण का सामना करो,
पीठ पीछे बोलके हमारा समय ख़राब मत करो...
खड़ा हो जहा ब्राह्मण वहा ज्ञान की लहर चलती हे,
अरे इस ब्राह्मण से तो अच्छे अच्छो की आवाज बंद होती हे,
परशुराम की संतान हे फरसा साथ में रखो,
शंकराचार्य के ज्ञान को अपने दिमाग में रखो....
ब्राह्मण की सेना का निर्माण करो,
अपने हक अपने अस्तित्व की रक्षा का प्रण आभास करो..
बढ़ाते जाओ हाथ कोई तो ब्राह्मण थामेगा,
आज नहीं तो कल वो भी साथ हो जायेगा...
चलते चलो ब्राह्मण एकता की राह पे,
साथ भाई को जोड़ते चलो,
एक होंगे तो ज्वाला हे हम.
ज्वाला की गर्मी आग हे ह्हुम....
जय जय परशुराम कहते बढ़ो,
अपने अन्दर के डर को मिटाते चलो,
ज्ञान की प्राप्ति बढ़ाते चलो,,,
आदि गुरु की जय जय कर करते रहो....
जम्मू से केरल तक फेले ब्रह्मिनो को एक होना होगा,
अपने हितो की रक्षा के लिए परशुराम भी बनना होगा,
बातो से नहीं बनेगी एकता जमीनी तयारी करनी होगी,
ब्राह्मण साम्राज्य की सेना अस्तित्व में लानी होगी....
परशुराम प्रकट उत्सव 12 मई को आयेगा,
एकता की नयी शुरआत की क्रान्ति कहलायेगा,
अपने अपने शहर के ब्रह्मिनो से जुड़ते चलो,
12 मई को शक्ति प्रदर्शन कर बढ़ते रहो....
आज जरुरत या मज़बूरी समझो,
एकता की मांग को जरुरी समझो....
1 घंटा भी अपने समाज को दो,
नए समाज का निर्माण में योगदान दो.....
हर हर महादेव,
जय जय परशुराम,
ब्राह्मण एकता विजयते
सर्व सनातन जयते...
अमेरिका ने आजम खान की पेँट क्योँ उतारी....?
अमेरिका ने आजम खान की पेँट क्योँ उतारी....?
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इसके प्रमुख कारण हैं...।
क्योकि वहाँ वोट बेँक के लिए सुवर का गु खाने वाले नेता नहीँ होते...
वहाँ भी ईटालियन बार बालाएँ होती हे लेकिन उनकी इज्जत दो कोडी की होती है...
वहाँ आउल नाम के लोँडोँ को कोई चपरासी की नोकरी नहीँ देता जबकी भारत मे एसे लोग प्रधानमंत्री बनने का सपना देखते हैं...
वहाँ स्टील के गिलास के साथ उपवास करना सख्त मना है
वहाँ CBI नहीँ है
वहाँ कोई भी नेता चारा कोयला नहीँ खाता
वहाँ से हज को जाने वालोँ को सब्सिडी नहीँ मिलती उल्टा टेक्स देना पडता है
वहाँ चुनाव जीतने के लिए फोकट के मकान लेपटोप का वादा नहीँ बल्कि अपनी योग्यता साबित करनी पडती है...
वहाँ ABP news, AAJ tak जेसे बिकाउ मिडिया नहीँ है
ओर सबसे खास बात वहाँ ओबामा है... मनमोहन सिह जैसा हिजडा नहीँ।
सत्य कड़वा होता है मित्रों...
सत्य कड़वा होता है मित्रों...
* मुफ्त मे मोबाईल कनेक्शन दे सकते हैं लेकिन रोटी नहीं
* ट्रेनों में मुफ्त WI FI मिल सकता है लेकीन पीने का पानी नहीं
* बेकारों को रोजगारी भत्ता द लेकिन किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं!!!
* गाँव-गाँव तक पेप्सी- कोला का जहर पहुँचाया जा सकता है लेकिन पीने का पानी नहीं!!!
* विदेशी कंपनियों का देश को लूटना और गुलाम बनाना मंजूर है लेकिन स्वदेशी उद्योग से आत्मनिर्भर होना नहीं!!!
* विदेशों से उधार लाया जासकता हैं लेकिन कालाधन नहीं!!!
* खरबों रुपये के घोटाले किये जा सकते हैं लेकिन गरीबों की सब्सिडी के लिये खजाने खाली!!!
* राबर्ट वाड्रा व भ्रष्ट मंत्रियों का किसानों की जमी लूटना जाय हो जाता है… …लेकिन स्वामी रामदेव का सरकार से मिली जमीन पर आरोग्य भवन जायज नहीं!!!
* बलात्कार होने के बाद महिला को मुआव्जा मिल सकता लेकिन महिलाओं को पहले से सुरक्षा नहीं!!!
* ओवैसी-नाईक जैसे गद्दारों के दल मंजूर हैं पर RSS जैसे देशभक्त संगठन नहीं!!!
Sunday, April 28, 2013
मुद्दा अगर किसी "खान" नाम से जुड़ा हो तो मीडिया के पिछवाड़े में पटाखे छुटने लगते है.
आज़म खान की तलाशी के बाद स.पा का बयान आया की "ये भारत के १२५ करोड़ नागरिकों का अपमान है.."
???????
क्यूँ भाई ?? कुछ थोड़ी बहुत शर्म बची है या नहीं??
आज़म खान का मतलब पूरा भारत कबसे हो गया??और किस भारत देश की बात कर रहे हो बी भैया,उसी देश की जिसे तुम्हारे इस लाडले नेता ने डायन कहा था...तब तुम्हारे ये तेवर कहाँ थे??
अब बात हमारी महान (???) मीडिया की...
मित्रों देश में कोई भी मुद्दा अगर किसी "खान" नाम से जुड़ा हो तो मीडिया के पिछवाड़े में पटाखे छुटने लगते है..
मोदीजी के लिए बिना वजह का बवाल खड़ा करने वाली मीडिया इस बेशर्म नेता के लिए छाती कूटने से पीछे नहीं हटी...
मोदीजी देश को अपनी माँ कहें फिर भी वो साम्प्रदायिक हैं इनके लिए और ये जनाब देश को डायन कहें फिर भी धर्मनिरपेक्ष...
अगर हमारी मीडिया का गहन अध्ययन किया जाए तो पता चलता है की इन्होने अपनी तरफ से हमारे देश को शायद "इस्लामिक राष्ट्र" घोषित कर दिया है...
जहाँ आपकी खबर किस प्रकार से दिखानी है उसका निर्णय ये देख कर किया जाता है की आपके नाम में खान है या पंडित...
???????
क्यूँ भाई ?? कुछ थोड़ी बहुत शर्म बची है या नहीं??
आज़म खान का मतलब पूरा भारत कबसे हो गया??और किस भारत देश की बात कर रहे हो बी भैया,उसी देश की जिसे तुम्हारे इस लाडले नेता ने डायन कहा था...तब तुम्हारे ये तेवर कहाँ थे??
अब बात हमारी महान (???) मीडिया की...
मित्रों देश में कोई भी मुद्दा अगर किसी "खान" नाम से जुड़ा हो तो मीडिया के पिछवाड़े में पटाखे छुटने लगते है..
मोदीजी के लिए बिना वजह का बवाल खड़ा करने वाली मीडिया इस बेशर्म नेता के लिए छाती कूटने से पीछे नहीं हटी...
मोदीजी देश को अपनी माँ कहें फिर भी वो साम्प्रदायिक हैं इनके लिए और ये जनाब देश को डायन कहें फिर भी धर्मनिरपेक्ष...
अगर हमारी मीडिया का गहन अध्ययन किया जाए तो पता चलता है की इन्होने अपनी तरफ से हमारे देश को शायद "इस्लामिक राष्ट्र" घोषित कर दिया है...
जहाँ आपकी खबर किस प्रकार से दिखानी है उसका निर्णय ये देख कर किया जाता है की आपके नाम में खान है या पंडित...
Saturday, April 27, 2013
इस दौर के बच्चे मुझे अच्छे नहीं लगते....
इस दौर के बच्चे मुझे अच्छे नहीं लगते....
क्युकी उन्हें रिलायंस केशेयर के रेट पता है
मगर आटे दाल के भाव नहीं पता...
उन्हें सात समंदर दूर रहने वाले फ्रेंड के बारे में सब पता है...
मगर पास वाले कमरे में बूढी दादी की बीमारी के बारे में कुछ
नहीं पता...
उन्हें बालीवुड के भांडों के खानदान के बारे में पता है
मगर अपनी गोत्र के बारे में कुछ नहीं पता....
उन्हें यह पता है की नियाग्रा फाल्स कहा है..
मगर लुप्त हुई सरस्वती नदी के बारे में कुछ नहीं पता....
उन्हें जीसस और मरायक की पूरी स्टोरी याद है ..
मगर महाभारत और रामायण के बारे में कुछ नहीं पता...
उन्हेँ शेक्सपियर चेतन भगत के बारे मेँ पता है लेकिन प्रेमचंद
के बारे मेँ नहीँ
जब दुकानदार कहता है ये फॉरिन ब्राँड है तो वो खुश होकर
खरीद लेते हैँ लेकिन स्वदेशी उत्पाद को वो तुच्छ समझते हैँ
उन्हेँ ब्रैड पिट एँजेलिना जॉली सेलेना गोमेज के बारे मेँ पता है
लेकिन राजीव दीक्षित कौन है ये नहीँ पता
अमेरिका मेँ Iphone 5 कब लाँच होगा वो जानते हैँ लेकिन
देश मेँ क्या हो रहा वो नहीँ जानते
एक था टाईगर का वीकली कलैक्शन उन्हेँ पता है लेकिन देश के
गरीब की आय सेअनभिज्ञ है
करीना कैटरीना का बर्थडे याद रखते हैँ वो लेकिन आजाद भगत
सुभाष को भूल जाते हैँ क्युकी वे बच्चे अपने माँ बाप के मनोरंजन का नतीजा है...
अर्जुन और द्रोपदी का अभिमन्यु नहीं........
क्युकी उन्हें रिलायंस केशेयर के रेट पता है
मगर आटे दाल के भाव नहीं पता...
उन्हें सात समंदर दूर रहने वाले फ्रेंड के बारे में सब पता है...
मगर पास वाले कमरे में बूढी दादी की बीमारी के बारे में कुछ
नहीं पता...
उन्हें बालीवुड के भांडों के खानदान के बारे में पता है
मगर अपनी गोत्र के बारे में कुछ नहीं पता....
उन्हें यह पता है की नियाग्रा फाल्स कहा है..
मगर लुप्त हुई सरस्वती नदी के बारे में कुछ नहीं पता....
उन्हें जीसस और मरायक की पूरी स्टोरी याद है ..
मगर महाभारत और रामायण के बारे में कुछ नहीं पता...
उन्हेँ शेक्सपियर चेतन भगत के बारे मेँ पता है लेकिन प्रेमचंद
के बारे मेँ नहीँ
जब दुकानदार कहता है ये फॉरिन ब्राँड है तो वो खुश होकर
खरीद लेते हैँ लेकिन स्वदेशी उत्पाद को वो तुच्छ समझते हैँ
उन्हेँ ब्रैड पिट एँजेलिना जॉली सेलेना गोमेज के बारे मेँ पता है
लेकिन राजीव दीक्षित कौन है ये नहीँ पता
अमेरिका मेँ Iphone 5 कब लाँच होगा वो जानते हैँ लेकिन
देश मेँ क्या हो रहा वो नहीँ जानते
एक था टाईगर का वीकली कलैक्शन उन्हेँ पता है लेकिन देश के
गरीब की आय सेअनभिज्ञ है
करीना कैटरीना का बर्थडे याद रखते हैँ वो लेकिन आजाद भगत
सुभाष को भूल जाते हैँ क्युकी वे बच्चे अपने माँ बाप के मनोरंजन का नतीजा है...
अर्जुन और द्रोपदी का अभिमन्यु नहीं........
गुजरात दंगों की जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ कॉंग्रेस सरकार है
गुजरात दंगों की जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ कॉंग्रेस सरकार है
2॰ बिलावल का ही साथी तथा म्युनिसिपल अध्यक्ष मोहम्मद कलोटा कॉंग्रेस से ही था जिसने भीड़ को उकसा कर ट्रेन मे आग लगवाई
3॰ साबरमती ट्रेन जलने पर कॉंग्रेस के पूर्व संसद एहसान जाफरी ने मिठाई बाँट कर खुशी मनाई
4॰ सड़क पर जाती भीड़ पर अपने घर मे कुछ लोगों को अपने पीछे खड़ा करके 12 बोर की बंदूक से गोली चलाना ताकि भीड़को उकसाया जा सके
6॰ मोदी जी को उक्त दंगे मे फँसाने हेतु तीस्तावाड़, हर्षमंदर, शबनम हाशमी, संजीव भट्ट इत्यादि को फंड प्रदान करना, इंतेहाँ तो तब हो गई जब तीस्तावाड़ कई मामलों एवं हलफनामों मे गलत पाईं गईं लेकिन
उनको दिया जानेवाला पैसा रोका नहीं गया बल्कि और बढ़ा दिया गया
अब आगे आपको क्या करना है आप खुद निर्णय लें.... मोदी लाओ ……… देश बचाओ………॥
1॰ आग लगाने वाला और भीड़ को उकसाने वाला म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल कॉंग्रेस से ही था
2॰ बिलावल का ही साथी तथा म्युनिसिपल अध्यक्ष मोहम्मद कलोटा कॉंग्रेस से ही था जिसने भीड़ को उकसा कर ट्रेन मे आग लगवाई
3॰ साबरमती ट्रेन जलने पर कॉंग्रेस के पूर्व संसद एहसान जाफरी ने मिठाई बाँट कर खुशी मनाई
4॰ सड़क पर जाती भीड़ पर अपने घर मे कुछ लोगों को अपने पीछे खड़ा करके 12 बोर की बंदूक से गोली चलाना ताकि भीड़को उकसाया जा सके
5॰ मोदी जी के द्वारा 8000 पुलिसकर्मी कम पड़ने पर पड़ोस के राज्यों से मदद मांगने पर उक्त सभी कॉंग्रेस शासित राज्यों द्वारा इन्कार
6॰ मोदी जी को उक्त दंगे मे फँसाने हेतु तीस्तावाड़, हर्षमंदर, शबनम हाशमी, संजीव भट्ट इत्यादि को फंड प्रदान करना, इंतेहाँ तो तब हो गई जब तीस्तावाड़ कई मामलों एवं हलफनामों मे गलत पाईं गईं लेकिन
उनको दिया जानेवाला पैसा रोका नहीं गया बल्कि और बढ़ा दिया गया
अब आगे आपको क्या करना है आप खुद निर्णय लें.... मोदी लाओ ……… देश बचाओ………॥
जय श्री राम
चीन की औकात नहीं
चीन की औकात नहीं, जो हमसे यूँ टकरा जाए,
कोई भेदी घर का है, पहले उसको ढूंढा जाए।
... ख़ामोशी भी गद्दारी है, जब निर्णय लेने में देरी हो,
...
सेना को अधिकार सौंप दो, पेइचिंग तक दौडाया जाए।
सोच रहा जो रण क्षेत्र में, सन 62 को दोहराने की,
समय आ गया आज बता दो, तिब्बत भी लौटाया जाए।
देश के ऊपर संकट हो, कोई कुर्सी की बात करे,
सत्ता के जोंकों को भी, आज सबक सिखाया जाए।
आँख उठे जो मुल्क पर, आँख निकाल बहार करो,
व्यापार पर रोक लगाओ, उसकी रीढ़ पर वार करो
साभार- INDIAN ARMY - भारतीय सेना
मोदी और आज़म खान का अपमान
भारत माँ को डायन कहने वाले आज़म खान की तलाशी लेने पर भारत ने कल रात में ही अमेरिका से विरोध जताया .. जबकि ये अमेरिका का अपना सुरक्षा प्लान है की जिसकी भी चाहे वो अपनी भूमि पर तलाशी ले सकता है ..
लेकिन भारत की भ्रष्ट सरकार ने तब अमेरिका से अपना विरोध क्यों नही जताया जब अमेरिका ने भारत के एक राज्य के तीन बार लोकतान्त्रिक तरीके से चुने गये मुख्यमंत्री को वीजा देने से इंकार कर दिया था जबकि मोदी के पास डिप्लोमेटिक पासपोर्ट है ??
उस वक्त कई बुद्धिजीवी लोगो, कानूनविद, और विदेश मामलो के जानकर लोगो ने इस पर बहुत आश्चर्य जताया था की आखिर भारत सरकार ने इस मामले में अमेरिका से विरोध क्यों नही जताया ? ये मोदी का अपमान नही था बल्कि ये भारत का अपमान था क्योकि मोदी पुलिस के दम पर सत्ता पर नही है बल्कि उनको जनता ने चुना है |
मित्रो, जब चेचेन्या पर रूस ने हमला करके उसे अपने कब्जे में लिया था और वहाँ मौजूद सात हजार मुस्लिम आतंकवादी को मार डाला था ..तो बाद में रूस ने चेचेन्या ओपरेशन के जनरल को साइबेरिया का गवर्नर बनाया था .. जिनका वीजा अमेरिका ने ठुकरा दिया था .. रूस ने तुरंत ही अपने राजदूत को अमेरिका से वापस बुला लिया था और मास्को के अमेरिकी दूतावास के सभी कर्मचारियों को रूस छोड़ने के आदेश दे दिए थे ... जिससे अमेरिका ने माफ़ी मांगते हुए तुरंत ही उस जनरल को वीजा दिया |
बाबा रामदेव के मंच से बोलते हुए मोदी ने कहा
बाबा रामदेव के मंच से बोलते हुए मोदी ने कहा कि देश निर्माण में संतों की अहम भूमिका है. मोदी ने कहा कि वो हर कुंभ मेले में गए हैं लेकिन इस बार के कुंभ मेले में वो नहीं जा सके जिसकी पीड़ा उनके मन में है. उन्होंने कहा, 'मैंने आज तक नहीं देखा कि कभी किसी संत ने सरकार से कुछ मांगा हो. संत मांगने वाले नहीं देने वाले लोग हैं. पढ़ें मोदी ने अपने भाषणा में और क्या-क्या कहा...
- गुजरात की आज दुनिया में चर्चा: नरेंद्र मोदी
- भूकंप के बाद संभल गया गुजरात: नरेंद्र मोदी
- गुजरात ने दिखा दिया उसमें है दम: नरेंद्र मोदी
- भारत फिर से जगतगुरु बन सकता है: नरेंद्र मोदी
- मैं बहुत आशावादी व्यक्ति हूं, विश्वास मेरी रगों में दौड़ता है: नरेंद्र मोदी
- हमारी पुरानी व्यवस्था बेहतर थी: नरेंद्र मोदी
- हम अपनी संस्कृति से दूर जा रहे हैं: नरेंद्र मोदी
- बच्चे आया के भरोसे पल रहे हैं: नरेंद्र मोदी
- हिंदुस्तान का इतिहास बहुत पुराना है: नरेंद्र मोदी
- रामदेव राष्ट्र का स्वास्थ्य ठीक कर रहे हैं: नरेंद्र मोदी
- जनता करारा जवाब देगी: नरेंद्र मोदी
- रामदेव कहते हैं, मैं उनका सगा भाई: नरेंद्र मोदी
- बाबा रामदेव पर क्या नहीं बीती: नरेंद्र मोदी
- दमन से किसी को दबाया नहीं जा सकता: नरेंद्र मोदी
- दिल्ली सरकार राजबाला की गुनहगार: नरेंद्र मोदी
- लोग पहले कहते थे कि साधु काम नहीं करते,लेकिन अब कहते हैं कि साधु काम क्यों करते हैं:मोदी
- मैं बहुत छोटे से गांव में पैदा हुआ: नरेंद्र मोदी
- मुझे पता है लोग बात बनाएंगे: नरेंद्र मोदी
- मैंने तो बचपन में कार भी नहीं देखी थी: नरेंद्र मोदी
- कपालभाति से कपाल की भ्रांतियां दूर होंगी: नरेंद्र मोदी
- मेरी कोई प्लानिंग नहीं है: नरेंद्र मोदी
- 21वीं सदी ज्ञान की सदी है और यह हिंदुस्तान की सदी है: नरेंद्र मोदी
- भारत विश्व का सबसे युवा देश है: नरेंद्र मोदी
- 21वीं सदी ज्ञान की सदी है और यह हिंदुस्तान की सदी है: नरेंद्र मोदी
- भारत विश्व का सबसे युवा देश है: नरेंद्र मोदी
- रामदेव किसी और देश में होते तो उनपर PHD होती: नरेंद्र मोदी
- हम अपना स्वाभिमान खो चुके हैं और देश अपना सामर्थ्य खो चुका है: नरेंद्र मोदी
- बाबा रामदेव का मैनेजमेंट गजब का है: नरेंद्र मोदी
- बाबा रामदेव ने लोगों से संवाद बनाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है: नरेंद्र मोदी
- संतों से सरकार से कभी कुछ नहीं मांगा: नरेंद्र मोदी
- संतों के बीच बोलने के लिए साहस चाहिए: नरेंद्र मोदी
- बाबा रामदेव को सालों से जाता हूं: नरेंद्र मोदी
- संत मांगने वाले नहीं देने वाले लोग: नरेंद्र मोदी
- मैं कुंभ के हर मेले में गया लेकिन इस बार कुंभ में नहीं पहुंचने की पीड़ा: नरेंद्र मोदी
- देश निर्माण में संतों की अहम भूमिका: नरेंद्र मोदी
- बाबा रामदेव के मंच पर नरेंद्र मोदी, मोदी ने कहा, संतों के चरणों में बैठना बहुत बड़ा सौभाग्य.
२००२ के दंगो से भी भीषण दंगे हुए है देश में....
वर्ष १९९२ में जब बाबरी मस्जिद गिराई गई थी तब मुंबई में जो दंगे हुए थे उस वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री कौन थे है किसीको याद ? किसीको उसका नाम याद है क्या ? ठीक १० साल बाद २००२ में जो दंगा गुजरात की भूमि में हुआ था उसकेही तरह १९९२ के मुंबई दंगो की भीषणता थी लेकिन फिर भी उस वक्त के महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का नाम किसीकोभी क्यों याद नहीं है ? उत्तर प्रदेश की मलियाना और मिरत में १९८० के बाद अनेक भीषण दंगे हुए उसमे बड़ी संख्या में मुस्लिम मारे गए थे ! उसी समय में बिहार के भागलपुर और जमशेदपुर में दंगो ने अनेको मुसलमानों की जान ले ली थी उस वक्त इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री कौन थे ? किसीको उनके नाम याद है क्या ? तब उस वक्त इन दोनों राज्यों में किस पार्टी की सरकार थी ? किसीको वह पार्टी पता है क्या ? कुछ याद भी है या नहीं ? मित्रो वो सारे दंगे गुजरात के २००२ के दंगो से भी भीषण थे !!...लेकिन फिर भी उन सारे मुख्यमंत्री और पार्टी के नाम किसीको क्यों याद नहीं ?
गुजरात के दंगे को अगर वहा के मुख्यमंत्री ने अंजाम दिया था और उसके वजहसे मुसलमान मरे थे तो यही तर्क पिछले सारे दंगो के लिए तब के उन सारे राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए क्यों नहीं दिए जाते ? उन सभी दंगो के वक्त और बाद में भी उन सारे मुख्यमंत्रियों का नाम क्यों नहीं उछाला गया ? बहोत दूर नहीं लेकिन इसी गुजरात में गत १० वर्षो में २००२ के बाद एक भी दंगा नहीं हुआ ! अन्यथा प्रत्येक २, ३ वर्ष बाद दंगा होने वाल राज्य ऐसी गुजरात की पहचान बन चुकी थी ! और ऐसे दंगे काफी भीषण हुआ करते थे. विशेषकर १९६९ में हुआ गुजरात का दंगा गुजरात के इतिहास का एक काला पन्ना कहा जाना चाहिए ! उसमे मरे गए मुसलमानों की संख्या हजारो का आंकड़ा पार कर जाती है.
परंतु किसी सेक्युलर की औलाद को १९६९ के गुजरात के मुख्यमंत्री और उसकी पार्टी का नाम याद है क्या ? क्यू याद नहीं है ? अगर किसी राज्य में हुए दंगे के लिए वहा के मुख्यमंत्री को दोषी ठहराया जाता है, उसका जिम्मा उसके माथे पे गडा जाता है.... फिर वे सारे दंगेवाले मुख्यमंत्री दोषी क्यों नहीं ठहराए जाते ?
आज जो लोग गुजरात के मुख्यमंत्री को गुनाहगार सिद्ध करने के लिए दिन रात एक कर रहें है उन्हें अबसे पहले हुए दंगो के मुख्यमंत्री निर्दोष क्यों दिखते है ? ये सारी सेक्युलरो की औलादे यह दिखाने की कोशिश करती है के मरा हुआ प्रत्येक मुसलमान खुद मोदी ने अपने हाथो से मारा था ! ऐसा संशोधन करने वाले सेक्युलर पहले के दंगे किन मुख्यमंत्रियों की देन थी, किसने वे सारे षड्यंत्र किये थे उनके नाम क्यों नहीं बताते ? और उनसे सवाल क्यों नहीं करते ?
यह सारे प्रश्न किसी संघ के या हिंदुत्ववादी विचारधारा वाले मनुष्य के नहीं है ....! यह प्रश्न किये है सलीम खान नाम के एक प्रतिष्ठित मुस्लिम लेखक ने ! जिनका जवाब / उत्तर अभी तक नहीं मिला है !! क्यों के ऐसा कहिये के इन प्रश्नों के उत्तर है ही नहीं !!!! या फिर जवाब देने की कोशिश की गई तो सामने आने वाला सत्य मोदी की शक्ती और बढ़ाएगा उसके हाथ पहले से ज्यादा मजबूत करेगा , उसकी जीत पक्की करेगा और मोदी विरोधी सेक्युलर कीड़ों ने मोदी के विरोध में गोबेल्स के तंत्र से जो जहर उगला है, जो झूठा प्रचार किया है वह पूरा झूठ नंगा हो जायेगा !!!!!!!!!!!!
गुजरात के दंगे को अगर वहा के मुख्यमंत्री ने अंजाम दिया था और उसके वजहसे मुसलमान मरे थे तो यही तर्क पिछले सारे दंगो के लिए तब के उन सारे राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए क्यों नहीं दिए जाते ? उन सभी दंगो के वक्त और बाद में भी उन सारे मुख्यमंत्रियों का नाम क्यों नहीं उछाला गया ? बहोत दूर नहीं लेकिन इसी गुजरात में गत १० वर्षो में २००२ के बाद एक भी दंगा नहीं हुआ ! अन्यथा प्रत्येक २, ३ वर्ष बाद दंगा होने वाल राज्य ऐसी गुजरात की पहचान बन चुकी थी ! और ऐसे दंगे काफी भीषण हुआ करते थे. विशेषकर १९६९ में हुआ गुजरात का दंगा गुजरात के इतिहास का एक काला पन्ना कहा जाना चाहिए ! उसमे मरे गए मुसलमानों की संख्या हजारो का आंकड़ा पार कर जाती है.
परंतु किसी सेक्युलर की औलाद को १९६९ के गुजरात के मुख्यमंत्री और उसकी पार्टी का नाम याद है क्या ? क्यू याद नहीं है ? अगर किसी राज्य में हुए दंगे के लिए वहा के मुख्यमंत्री को दोषी ठहराया जाता है, उसका जिम्मा उसके माथे पे गडा जाता है.... फिर वे सारे दंगेवाले मुख्यमंत्री दोषी क्यों नहीं ठहराए जाते ?
आज जो लोग गुजरात के मुख्यमंत्री को गुनाहगार सिद्ध करने के लिए दिन रात एक कर रहें है उन्हें अबसे पहले हुए दंगो के मुख्यमंत्री निर्दोष क्यों दिखते है ? ये सारी सेक्युलरो की औलादे यह दिखाने की कोशिश करती है के मरा हुआ प्रत्येक मुसलमान खुद मोदी ने अपने हाथो से मारा था ! ऐसा संशोधन करने वाले सेक्युलर पहले के दंगे किन मुख्यमंत्रियों की देन थी, किसने वे सारे षड्यंत्र किये थे उनके नाम क्यों नहीं बताते ? और उनसे सवाल क्यों नहीं करते ?
यह सारे प्रश्न किसी संघ के या हिंदुत्ववादी विचारधारा वाले मनुष्य के नहीं है ....! यह प्रश्न किये है सलीम खान नाम के एक प्रतिष्ठित मुस्लिम लेखक ने ! जिनका जवाब / उत्तर अभी तक नहीं मिला है !! क्यों के ऐसा कहिये के इन प्रश्नों के उत्तर है ही नहीं !!!! या फिर जवाब देने की कोशिश की गई तो सामने आने वाला सत्य मोदी की शक्ती और बढ़ाएगा उसके हाथ पहले से ज्यादा मजबूत करेगा , उसकी जीत पक्की करेगा और मोदी विरोधी सेक्युलर कीड़ों ने मोदी के विरोध में गोबेल्स के तंत्र से जो जहर उगला है, जो झूठा प्रचार किया है वह पूरा झूठ नंगा हो जायेगा !!!!!!!!!!!!
सेल्यूकस की बेटी थी हेलेन
सेल्यूकस की बेटी थी हेलेन , उसका विवाह आचार्य चाणक्य ने प्रस्ताव मिलने पर सम्राट चन्द्रगुप्त से कराया.पर उन्होंने विवाह से पहले हेलेन और चन्द्रगुप्त से कुछ शर्ते रखी जिस पर उन दोनों का विवाह हुआ.
पहली शर्त यह थी की उन दोनों से उत्पन्न संतान उनके राज्य का उत्तराधिकारी नहीं होगा और कारण बताया की हेलेन एक विदेशी महिला है , भारत के पूर्वजो से उसका कोई नाता नहीं है. भारतीय संस्कृति से हेलेन पूर्णतः अनभिग्य है और दूसरा कारण बताया की हेलेन विदेशी शत्रुओ की बेटी है.उसकी निष्ठा कभी भारत के साथ नहीं हो सकती. तीसरा कारण बताया की हेलेन का बेटा विदेशी माँ का पुत्र होने के नाते उसके प्रभाव से कभी मुक्त नहीं हो पायेगा और भारतीय माटी, भारतीय लोगो के प्रति पूर्ण निष्ठावान नहीं हो पायेगा.
एक और शर्त चाणक्य ने हेलेन के सामने रखी की वह कभी भी चन्द्रगुप्त के राज्य कार्य में हस्तक्चेप नहीं करेगी और राजनीति और प्रशासनिक अधिकार से पूर्णतया विरत रहेगी. परन्तु गृहस्थ जीवन में हेलेन का पूर्ण अधिकार होगा.
इंदिरा गांधी एक कठोर और बुद्धिमान शासक थी वो अपने पुत्रो की राजनीतिक गुरु भी थी.उनके एक पुत्र राजिव गांधी ने एक निकृष्ट विदेशी महिला जो की भोजनालयो में भोजन परोसने का कार्य कराती थी से शादी करने का प्रस्ताव रक्खा. उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया और सोनिया तथाकथित नाम के महिला से राजीव का विवाह हुआ. शायद इंदिरा गांधी ने आचार्य चाणक्य से ज़रा भी सीख नहीं ली अंततः अन्यान्य कारणों से राजिव गांधी की मृत्यु हो गयी , कुछ विद्वान् इस ह्त्या में इस विदेशी महिला का भी हाथ मानते है, बाद में यह महिला पूरा राज्यकार्य और प्रशासनिक अधिकार प्राप्त कर लिया और धीरे धीरे देश की सारी राजसत्ता इसकी गुलाम हो गयी है. अब इसका पुत्र जो की अपने पिता की जल्दी मृत्यु के कारण पूर्णतया माँ से ही सारे आचार विचार, व्यवहार ,धर्म संस्कृति, शिष्टाचार प्राप्त किया है राजसत्ता हासिल करने के फिराक में है. और ऐसे अनिष्ठावान , बुद्धिहीन, विदेशी संस्कृति सभ्यता में पले बढे, भारतीय माटी और भारतीय लोगो से दूर ऐसे व्यक्ति को राजसत्ता हासिल करना भारतवर्ष के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा.
यही मूल अंतर तबके स्वाभिमान संपन्न, वीरतापूर्ण , अखंड, ओजस्वी भारतवर्ष और आज के समय के कायर ,दब्बू और स्वभिमानशून्य भारत में है.
सोचे समझे और जागे. राष्ट्र आपका है विदेशियों का नहीं.. संस्कृतियुक्त ,सभी , निष्ठावान लोगो को ही आगे बढाए तभी राष्ट्र तेजस्वी ओजस्वी अखंड और महान बन सकेगा.
पत्थर बन जाओ समाज पूजा करेगा
औरत हो ?
पैदा होने से पहले मार दी जाओगी l
औरत हो ?
बस मे जाओ रेप होगा l
औरत हो ?
पाँच साल की उम्र मे पडोसी रेप करेगा l
औरत हो ?
अदर कास्ट से प्यार करो भाई
ओनरकिल्ड करेगा l
औरत हो ?
लिफ्ट माँगो कार मे रेप होगा ।
औरत हो ?
पढने जाओ टीचर निर्लज्ज करेगा l
औरत हो ?
दहेज के लोभ मे पति जिन्दा जला देगा l
औरत हो ?
अगर नजरे झुका के चलोगी तो समाज
कमजोर और नजरे उठा के चलोगी तो तुझे समाज जीने नही देगा l
इसलिये पत्थर बन जाओ समाज पूजा करेगा
Friday, April 26, 2013
महाभारत अगर आज होती तो..
महाभारत अगर आज होती तो..
...संजय आँखों देखा हाल सुनते हुए विज्ञापन भी प्रसारित करता और अरबपति हो जाता
.."अंधे का पुत्र अँधा" ट्वीट करने के बाद द्रौपदी पर धरा 66A के तहतमुकदमा चलता
...अभिमन्यु को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती कि चक्रव्यूह से निकलना IRCTC पर टिकट कराने से कईं गुणा आसान है
...भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर लेटे हुए देख मीडिया वाले पूछते "आपको कैसा लग रहा है"
...आधार कार्ड बनवाने का जब कौरवों का नंबर आता तो बेचारे कार्ड बनाने वालो को मानसिक तनाव की वजहसे छुट्टी लेनी पड़ जाती
...द्रौपदी के चीर-हरण का सीधा प्रसारण किया जाता
...दुर्योधन कहता कि द्रौपदी का चीरहरण इसलिए किया गया क्योंकि उसने उसको 'भैया" नहीं कहा
...बेचारे सौ कौरव सिर्फ 9 सस्ते गैस सिलेंडरो की वजह से भूखे मर जाते
...युद्ध की हार-जीत पर अरबों रूपयेका सट्टा लगा होता
...चक्रव्यूह से एक दिन पहले सारे न्यूज़ चैनल चक्रव्यूह तोड़ने का तरीका प्रसारित करते
...तथाकथित कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता "कौरवों को इन्साफ दिलवाओ, पांडवों ने पूरे परिवार का नरसंहार किया" के पोस्टर लेकर इंडिया गेट पर बैठे होते
..."हस्तिनापुर पर कौन राज़ करेगा ? "नाम से टीवी कार्यक्रम डेली शॉप की तरह हर रोज़ न्यूज़ चेनलो पर चलता
...भीम का ऑफिशियली वोर्नवीटा से कॉन्ट्रैक्ट होता
...द्रोणाचार्य पर शिक्षा का अधिकार न लागू करने का केस चलता..
...संजय आँखों देखा हाल सुनते हुए विज्ञापन भी प्रसारित करता और अरबपति हो जाता
.."अंधे का पुत्र अँधा" ट्वीट करने के बाद द्रौपदी पर धरा 66A के तहतमुकदमा चलता
...अभिमन्यु को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती कि चक्रव्यूह से निकलना IRCTC पर टिकट कराने से कईं गुणा आसान है
...भीष्म पितामह को बाणों की शैया पर लेटे हुए देख मीडिया वाले पूछते "आपको कैसा लग रहा है"
...आधार कार्ड बनवाने का जब कौरवों का नंबर आता तो बेचारे कार्ड बनाने वालो को मानसिक तनाव की वजहसे छुट्टी लेनी पड़ जाती
...द्रौपदी के चीर-हरण का सीधा प्रसारण किया जाता
...दुर्योधन कहता कि द्रौपदी का चीरहरण इसलिए किया गया क्योंकि उसने उसको 'भैया" नहीं कहा
...बेचारे सौ कौरव सिर्फ 9 सस्ते गैस सिलेंडरो की वजह से भूखे मर जाते
...युद्ध की हार-जीत पर अरबों रूपयेका सट्टा लगा होता
...चक्रव्यूह से एक दिन पहले सारे न्यूज़ चैनल चक्रव्यूह तोड़ने का तरीका प्रसारित करते
...तथाकथित कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ता "कौरवों को इन्साफ दिलवाओ, पांडवों ने पूरे परिवार का नरसंहार किया" के पोस्टर लेकर इंडिया गेट पर बैठे होते
..."हस्तिनापुर पर कौन राज़ करेगा ? "नाम से टीवी कार्यक्रम डेली शॉप की तरह हर रोज़ न्यूज़ चेनलो पर चलता
...भीम का ऑफिशियली वोर्नवीटा से कॉन्ट्रैक्ट होता
...द्रोणाचार्य पर शिक्षा का अधिकार न लागू करने का केस चलता..
सरदार जी तुसी ग्रेट हो.
अंग्रेजो का एक महीने का त्योहार चल रहा था, जिसमे वो NON VEG नही खाते थे.
उनके मोहल्ले मे एक सरदार रहता था, जो हर रोज चिकन बनाकर खाता था.
चिकन की खुशबू से परेशान होकर अंग्रेजो ने अपने पादरी से शिकायत की.
पादरी ने सरदार जी को कहा तुम भी ईसाई धर्म स्वीकार कर लो, जिससे किसी को आपसे कोई समस्या ना हो.
हमारे सरदार जी मान गए.
तो पादरी ने सरदार जी पर Holy water छिडकते हुए कहा “You born as a “SIKH” now you are a “Christian”
अगले दिन फिर सरदार जी के घर से चिकन की खुशबूआई तो सब अंग्रेजो ने पादरी से उसकी फिर शिकायत की.
अब पादरी अंग्रेजो को साथ लेकर सरदार जी के घर मे गए तो देखा,
सरदार जी चिकन पर Holy Water छिडक रहे थे और कह रहे थे,
“You born as “Chicken” but now you are “Potato”
(धर्म परिवर्तन करने वाले और करवाने वाले लोगो को इस बात से सबक लेना चाहिए)
सरदार जी तुसी ग्रेट हो...
उनके मोहल्ले मे एक सरदार रहता था, जो हर रोज चिकन बनाकर खाता था.
चिकन की खुशबू से परेशान होकर अंग्रेजो ने अपने पादरी से शिकायत की.
पादरी ने सरदार जी को कहा तुम भी ईसाई धर्म स्वीकार कर लो, जिससे किसी को आपसे कोई समस्या ना हो.
हमारे सरदार जी मान गए.
तो पादरी ने सरदार जी पर Holy water छिडकते हुए कहा “You born as a “SIKH” now you are a “Christian”
अगले दिन फिर सरदार जी के घर से चिकन की खुशबूआई तो सब अंग्रेजो ने पादरी से उसकी फिर शिकायत की.
अब पादरी अंग्रेजो को साथ लेकर सरदार जी के घर मे गए तो देखा,
सरदार जी चिकन पर Holy Water छिडक रहे थे और कह रहे थे,
“You born as “Chicken” but now you are “Potato”
(धर्म परिवर्तन करने वाले और करवाने वाले लोगो को इस बात से सबक लेना चाहिए)
सरदार जी तुसी ग्रेट हो...
Thursday, April 25, 2013
आई पी एल पर रोक
भारत के गृहमंत्री सुशील टिंडे ने आई पी एल पर रोक लगाने की घोषणा की है.
उन्होने अपने बयान मे कहा है की मैच मे सबसे अधिक रन बनाने वाले खिलाङीयो को जो टोपी दी जा रही है उसमे भगवा आतंकवाद की बू आ रही है. इससे मुस्लिमो की भावनाओं को ठेस पहुच रही है. अतः सेक्युलरिज्म के बचाव के लिये यह जरूरी कदम उठाया गया है, वही वित्तमंत्री लुंगी चितम्बरम ने कहा है की जिन जिन मुसलमानो की भावनायें ज्यादा आहत हुई है उन्हे सरकार मुवावजा देगी.
सलमान मुर्शीद ने कहा है की जब उन्होने ओरेन्ज कैप की तस्वीरे चोनिया जी को दिखायी तो उनके आंखो से आंसु आ गये.
आउल गंदी ने इस बात पर कुर्ता चढाकर और एक चिठ्ठी फाङकर अपना गुस्सा जता दिया है.
वही बिहार के आलु यादव ने कहा है की आगे से ओरेन्ज कैप का इस्तेमाल उनकी लाश की किमत पर होगा.
मप्र से डोगविजय सिंह ने बयान देते हुए कहा है की इसके पीछे आर एस एस एवं उसके अनुषांगिक संगठनो का हाथ है.
मुल्ला यम ने इस पुरे घटनाक्रम की निंदा करते हुए कहा है की इस पुरे मामले ने खांग्रेस और खाजपा दोनो मिले हुए है. मात्र उन्ही की पार्टी मुस्लिमो का हित चाहने वाली है.
वही खाप पार्टी के मुखिया खुजलीवाल ने कहा है की इस विषय पर वो जल्द ही आमरण अनसन करेंगे.
इस विषय पर बहन मायापति ने कहा है की ये मनुवादी ताकतो द्वारा किया गया है उनकी पार्टी ओरेन्ज कैप की कङी से कङी निन्दा करती है और प्रदेश मे राष्ट्रपति शासन की मांग करती है.
इस पुरे मामले से आंदोलित खम्युनिस्टो इस विषय पर एक विचार गोष्ठी रखी है जिसमे टोपी के रंग को बदलकर लाल करने पर विचार किया जायेगा.
वही मनमौन सिंह ने मुद्दे पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया
Wednesday, April 24, 2013
हिन्दू धर्म में परिवर्तित ईसा मसीह की समाधि
कश्मीर के खानयार मौहल्ले में स्थित रोजाबल ही हिन्दू धर्म में परिवर्तित ईसा मसीह की समाधि है । आज - कल कश्मीर की सरकारों ने अरबपंथी कट्टर मजहबी दरिंदों की मांग के आगे झुककर उस समाधि को एक मुस्लिम फकीर की कब्र घोषित कर दिया है तथा वहाँ पर गैर मुस्लिमों के प्रवेश करने एवं फोटोग्राफी करने पर प्रतिबंध लगा दिया है ।
मुझे यकीन है इसे पढ़ कर सारे ईसाइयों का दिल बदल जायगा क्योकि यही सत्य है और सत्य की हमेशा जीत होती है ..जिस प्रकार छल कपट से ईसाई मिशिनारियों ने असाम मणिपुर नागालैंड को ईसाई बनाया ..इस सत्य को उन भोले परिवर्तित ईसाइयों को समझाकर उन्हें पुनः हिंदू बनाया जा सकता है ..यह एक बहुत बड़ा अस्त्र है हमारे लिए ईसाइयों को वापस हिंदू धर्म में परिवर्तित करने के लिए ..जय श्री राम
आप सभी से अनुरोध है की इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि भारत के और विश्व के सभी ईसाई अपने मूल हिंदू धर्म में वापिस आ जाए
BECOMING HINDU AND HIS DEATH IN KASHMIR !
Why 'DA VINCI CODE' movie was BANNED in India ? It was biggest blockbuster success movie in rest of the world..just because the Evangelist Christian missionaries in India feared the Christians will lose faith and convert back to Hinduism,,.the movie showed Jesus Christ MARRIED had children and came to India ...can u tell me y the BBC WORLD documentary (short film) endorsed by the Vatican Titled 'lost years of Jesus’ showing the "tomb of the Jesus in Kashmir " and the places he visited in India was BANNED in India ..I can give u a link for that if u want..Only the Indian Christians are hidden from this truth (f JESUS CONVERSION TO HINDUISM)..This Truth is whispered among the elite Christian Scholars and Theologists in rest of the world..This truth is hidden and dusting somewhere in the old Vatican Libraries.
खाद्यान्न बिल - भुखमरी से अधूरी जंग
भुखमरी से अधूरी जंग
चार साल से केंद्र सरकार प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर दुविधा की शिकार है। यह बिल योजना आयोग से कृषि मंत्रालय और फिर खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय के चक्कर काट रहा है, किंतु जैसे-जैसे 2014 का चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे इस विधेयक को कानूनी जामा पहनाने और भूखे लोगों तक खाद्यान्न पहुंचाने के प्रयास तेज होने लगे हैं। इस कानून से भी बाजी पलटने की उम्मीद है। सरकार का मानना है कि खाद्य सुरक्षा बिल उसे फिर से सत्ता में ले आएगा। यह बिल संप्रग-3 का मार्ग प्रशस्त करता है या नहीं, यह तो अलग सवाल है, किंतु असल सवाल यह है कि क्या यह प्रस्तावित बिल भुखमरी और कुपोषण को दूर कर देश में भूखे लोगों की संख्या को बड़े पैमाने पर घटाने में सफल होगा? आखिरकार, एक ऐसे देश में जिसमें भूख से मरने वालों की विश्व में सबसे अधिक आबादी है और जो विश्व भूख सूचकांक में 66वें स्थान पर आता है, खाद्य कानून तभी अपने उद्देश्य पर खरा उतर सकता है जब भूखों की संख्या में बड़ी गिरावट आए।
बिल में प्रत्येक लाभार्थियों के लिए पांच किलो चावल, गेहूं और मोटा अनाज क्रमश: 3, 2 और 1 रुपये की दर से देने का वायदा किया गया है। इसका लाभ देश के 67 प्रतिशत लोगों को मिलेगा। गांवों की 75 और शहरों की 50 फीसद आबादी इस योजना से लाभान्वित होगी। 1.31 लाख करोड़ रुपये की लागत वाले खाद्य बिल में तीन महत्वपूर्ण प्रस्ताव हैं। इसमें अनुदानित खाद्यान्न का मूल्य हर तीन साल बाद संशोधित किया जा सकता है। मिड डे मील और तीन साल से छोटे बच्चों के लिए घर पर ले जाने वाले राशन के पोषक स्तर को घटा दिया गया है और आवश्यक सुधारों, शोध और विकास के जरिये कृषि पुनरुद्धार पर जोर दिया गया है। इस बिल से उम्मीद जगती है, किंतु यह देखते हुए कि 2004-05 से लेकर 2009-10 के बीच के पांच वषरें में एक करोड़ 45 लाख किसान खेती छोड़ चुके हैं और विनिर्माण क्षेत्र में 50 लाख लोग नौकरी गंवा चुके हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि हर गुजरते साल में भूखे लोगों की संख्या बराबर बढ़ती जाएगी और साथ ही सरकार का खाद्य सुरक्षा पर होने वाला खर्च भी। जब तक सरकार देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर लेती तब तक खाद्य सुरक्षा विधेयक के उद्देश्यों को पूरा करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होगा। चूंकि नीति निर्माता 2014 के चुनाव से आगे का नहीं देख पा रहे हैं, इसलिए भुखमरी मिटाने का यह मौका हाथ से फिसलने जा रहा है।
सवाल उठता है कि खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले गांवों में इतनी भुखमरी क्यों है? देश का खाद्यान्न कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्र में भूखे लोगों की इतनी बड़ी आबादी क्यों मौजूद है? यह समझ से परे है कि पंजाब में, जहां अनाज खुले में सड़ जाता है, दस फीसद लोग भूखे पेट सोने को क्यों मजबूर हैं? वैश्रि्वक भूख सूचकांक में देश की भुखमरी कम करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पंजाब गैबन, होंडुरस और वियतनाम से निचले दर्जे पर क्यों है? खाद्य सुरक्षा कार्यक्त्रम चलाने वाले 22 देशों में खोजी टीम भेजने के बजाय बेहतर होता सरकार देश के भीतर झांकती। यहां उसे उन तमाम सवालों के जवाब मिल जाते जिनकी तलाश में ये देश-देश भटकने जा रहे हैं। इसका जवाब पश्चिम ओडिशा के कालाहांडी-बोलांगीर-कोरापट की भूख पट्टी में मिल जाएगा। कुछ साल पहले तीन दशक तक भुखमरी का दंश झेलने वाले बोलांगीर जिले में कुछ गांवों में जाने का मुझे मौका मिला था। इसके बाद से मेरे साथी देश के अनेक ऐसे गांवों में घूम चुके हैं, जो भुखमरी मिटाने के लिए सामाजिक रूप से कारगर शेयरिंग एंड केयरिंग सिद्धांत पर चल रहे हैं। अगर इस पद्धति पर चलकर ये गांव भुखमरी को मात दे सकते हैं तो यह न मानने का कोई कारण नहीं है कि देश के छह लाख गांवों में से अधिकांश ऐसा नहीं कर सकते।
बोलांगीर और पुणे के कुछ गांवों में लोगों ने परंपरागत आधार पर छोटे-छोटे खाद्यान्न बैंकों की स्थापना की है। गरीब और बेरोजगार लोग इन खाद्यान्न बैंकों से अनाज लेकर अपनी भूख मिटा लेते हैं। उन्हें पर्याप्त मात्रा में उधार अनाज दे दिया जाता है, इस शर्त पर कि फसल कटने के समय या फिर काम मिलने पर वे इस अनाज को हल्के-फुल्के सूद समेत चुका देंगे। इन भूखमुक्त गांवों ने शेयरिंग एंड केयरिंग के चक्त्र से अच्छा खासा खाद्यान्न बैंक तैयार कर लिया है। इसके लिए बस कुछ महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित करने और कुछ गैरसरकारी संगठनों को सक्त्रिय करने की जरूरत है। फिर खाद्य सुरक्षा लोगों की जिम्मेदारी बन जाएगी। गांवों को भूख-मुक्त बनाने का एक लाभ यह होगा कि इससे अविश्वसनीय सार्वजनिक वितरण व्यवस्था पर निर्भरता घटेगी और बढ़ती खाद्यान्न सब्सिडी पर अंकुश लगेगा। खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि उद्योग, खनन और निर्यात के लिए कृषि को बलि न चढ़ा दिया जाए। मध्य महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के हिव्रे बाजार के उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि यदि जनता को जन, जल और जंगल पर अधिकार दे दिया जाए तो भुखमरी की समस्या खत्म हो सकती है। 30 हजार रुपये प्रति व्यक्ति आय वाले इस गांव में साठ से अधिक करोड़पति रहते हैं। अगर गांव खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर हो जाएं तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। तब इसे शहरी गरीबों के लिए लागू किया जा सकेगा। आखिरकार, 6.4 लाख गांवों वाले देश में गांव स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्यक्रम चलाने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद तथा संबद्ध मंत्रालय के अधिकारियों ने शायद एक पुरानी चीनी कहावत नहीं सुनी। अगर आप किसी दिन किसी का पेट भरना चाहते हैं तो उसे एक मछली दे दीजिए, किंतु अगर आप उसका पेट हमेशा के लिए भरना चाहते हैं तो उसे मछली पकड़ना सिखाइए।
किसी भी भूखे देश के लिए इससे अधिक आपराधिक कृत्य कुछ नहीं हो सकता कि वह अपने खाद्यान्न का निर्यात करे। दुर्भाग्य से इस बात से कोई चिंतित नहीं है कि देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता गिरकर 1943 के बंगाल अकाल के बराबर पहुंच गई है। इस साल सरकार ने 90 लाख टन चावल और 95 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है। कोई भी समझदार सरकार करोड़ों भूखे लोगों के होते हुए यह फैसला कैसे कर सकती है। भूख से लड़ाई केवल खाद्यान्न के वितरण के बल पर ही नहीं, बल्कि कृषि उत्पादन, भंडारण, ग्रामीण विकास और व्यापार नीतियों के सम्मिलित बल पर लड़ी जा सकती है। सरकार को सस्ते आयात के माध्यम से किसानों को बर्बाद करने से बचना चाहिए। दुर्भाग्य से, खाद्यान्न बिल में इन सब पहलुओं पर प्रावधान नहीं किए गए हैं।
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-starvation-unfinished-war-10327513.html
चार साल से केंद्र सरकार प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल को लेकर दुविधा की शिकार है। यह बिल योजना आयोग से कृषि मंत्रालय और फिर खाद्य एवं उपभोक्ता मामले मंत्रालय के चक्कर काट रहा है, किंतु जैसे-जैसे 2014 का चुनाव नजदीक आ रहा है वैसे-वैसे इस विधेयक को कानूनी जामा पहनाने और भूखे लोगों तक खाद्यान्न पहुंचाने के प्रयास तेज होने लगे हैं। इस कानून से भी बाजी पलटने की उम्मीद है। सरकार का मानना है कि खाद्य सुरक्षा बिल उसे फिर से सत्ता में ले आएगा। यह बिल संप्रग-3 का मार्ग प्रशस्त करता है या नहीं, यह तो अलग सवाल है, किंतु असल सवाल यह है कि क्या यह प्रस्तावित बिल भुखमरी और कुपोषण को दूर कर देश में भूखे लोगों की संख्या को बड़े पैमाने पर घटाने में सफल होगा? आखिरकार, एक ऐसे देश में जिसमें भूख से मरने वालों की विश्व में सबसे अधिक आबादी है और जो विश्व भूख सूचकांक में 66वें स्थान पर आता है, खाद्य कानून तभी अपने उद्देश्य पर खरा उतर सकता है जब भूखों की संख्या में बड़ी गिरावट आए।
बिल में प्रत्येक लाभार्थियों के लिए पांच किलो चावल, गेहूं और मोटा अनाज क्रमश: 3, 2 और 1 रुपये की दर से देने का वायदा किया गया है। इसका लाभ देश के 67 प्रतिशत लोगों को मिलेगा। गांवों की 75 और शहरों की 50 फीसद आबादी इस योजना से लाभान्वित होगी। 1.31 लाख करोड़ रुपये की लागत वाले खाद्य बिल में तीन महत्वपूर्ण प्रस्ताव हैं। इसमें अनुदानित खाद्यान्न का मूल्य हर तीन साल बाद संशोधित किया जा सकता है। मिड डे मील और तीन साल से छोटे बच्चों के लिए घर पर ले जाने वाले राशन के पोषक स्तर को घटा दिया गया है और आवश्यक सुधारों, शोध और विकास के जरिये कृषि पुनरुद्धार पर जोर दिया गया है। इस बिल से उम्मीद जगती है, किंतु यह देखते हुए कि 2004-05 से लेकर 2009-10 के बीच के पांच वषरें में एक करोड़ 45 लाख किसान खेती छोड़ चुके हैं और विनिर्माण क्षेत्र में 50 लाख लोग नौकरी गंवा चुके हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि हर गुजरते साल में भूखे लोगों की संख्या बराबर बढ़ती जाएगी और साथ ही सरकार का खाद्य सुरक्षा पर होने वाला खर्च भी। जब तक सरकार देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर लेती तब तक खाद्य सुरक्षा विधेयक के उद्देश्यों को पूरा करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं होगा। चूंकि नीति निर्माता 2014 के चुनाव से आगे का नहीं देख पा रहे हैं, इसलिए भुखमरी मिटाने का यह मौका हाथ से फिसलने जा रहा है।
सवाल उठता है कि खाद्यान्न का उत्पादन करने वाले गांवों में इतनी भुखमरी क्यों है? देश का खाद्यान्न कटोरा कहे जाने वाले क्षेत्र में भूखे लोगों की इतनी बड़ी आबादी क्यों मौजूद है? यह समझ से परे है कि पंजाब में, जहां अनाज खुले में सड़ जाता है, दस फीसद लोग भूखे पेट सोने को क्यों मजबूर हैं? वैश्रि्वक भूख सूचकांक में देश की भुखमरी कम करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला पंजाब गैबन, होंडुरस और वियतनाम से निचले दर्जे पर क्यों है? खाद्य सुरक्षा कार्यक्त्रम चलाने वाले 22 देशों में खोजी टीम भेजने के बजाय बेहतर होता सरकार देश के भीतर झांकती। यहां उसे उन तमाम सवालों के जवाब मिल जाते जिनकी तलाश में ये देश-देश भटकने जा रहे हैं। इसका जवाब पश्चिम ओडिशा के कालाहांडी-बोलांगीर-कोरापट की भूख पट्टी में मिल जाएगा। कुछ साल पहले तीन दशक तक भुखमरी का दंश झेलने वाले बोलांगीर जिले में कुछ गांवों में जाने का मुझे मौका मिला था। इसके बाद से मेरे साथी देश के अनेक ऐसे गांवों में घूम चुके हैं, जो भुखमरी मिटाने के लिए सामाजिक रूप से कारगर शेयरिंग एंड केयरिंग सिद्धांत पर चल रहे हैं। अगर इस पद्धति पर चलकर ये गांव भुखमरी को मात दे सकते हैं तो यह न मानने का कोई कारण नहीं है कि देश के छह लाख गांवों में से अधिकांश ऐसा नहीं कर सकते।
बोलांगीर और पुणे के कुछ गांवों में लोगों ने परंपरागत आधार पर छोटे-छोटे खाद्यान्न बैंकों की स्थापना की है। गरीब और बेरोजगार लोग इन खाद्यान्न बैंकों से अनाज लेकर अपनी भूख मिटा लेते हैं। उन्हें पर्याप्त मात्रा में उधार अनाज दे दिया जाता है, इस शर्त पर कि फसल कटने के समय या फिर काम मिलने पर वे इस अनाज को हल्के-फुल्के सूद समेत चुका देंगे। इन भूखमुक्त गांवों ने शेयरिंग एंड केयरिंग के चक्त्र से अच्छा खासा खाद्यान्न बैंक तैयार कर लिया है। इसके लिए बस कुछ महिला स्वयं सहायता समूहों को प्रशिक्षित करने और कुछ गैरसरकारी संगठनों को सक्त्रिय करने की जरूरत है। फिर खाद्य सुरक्षा लोगों की जिम्मेदारी बन जाएगी। गांवों को भूख-मुक्त बनाने का एक लाभ यह होगा कि इससे अविश्वसनीय सार्वजनिक वितरण व्यवस्था पर निर्भरता घटेगी और बढ़ती खाद्यान्न सब्सिडी पर अंकुश लगेगा। खाद्य सुरक्षा के लिए सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिनसे यह सुनिश्चित हो सके कि उद्योग, खनन और निर्यात के लिए कृषि को बलि न चढ़ा दिया जाए। मध्य महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के हिव्रे बाजार के उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि यदि जनता को जन, जल और जंगल पर अधिकार दे दिया जाए तो भुखमरी की समस्या खत्म हो सकती है। 30 हजार रुपये प्रति व्यक्ति आय वाले इस गांव में साठ से अधिक करोड़पति रहते हैं। अगर गांव खाद्य सुरक्षा में आत्मनिर्भर हो जाएं तो सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर निर्भरता काफी कम हो जाएगी। तब इसे शहरी गरीबों के लिए लागू किया जा सकेगा। आखिरकार, 6.4 लाख गांवों वाले देश में गांव स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कार्यक्रम चलाने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद तथा संबद्ध मंत्रालय के अधिकारियों ने शायद एक पुरानी चीनी कहावत नहीं सुनी। अगर आप किसी दिन किसी का पेट भरना चाहते हैं तो उसे एक मछली दे दीजिए, किंतु अगर आप उसका पेट हमेशा के लिए भरना चाहते हैं तो उसे मछली पकड़ना सिखाइए।
किसी भी भूखे देश के लिए इससे अधिक आपराधिक कृत्य कुछ नहीं हो सकता कि वह अपने खाद्यान्न का निर्यात करे। दुर्भाग्य से इस बात से कोई चिंतित नहीं है कि देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता गिरकर 1943 के बंगाल अकाल के बराबर पहुंच गई है। इस साल सरकार ने 90 लाख टन चावल और 95 लाख टन गेहूं का निर्यात किया है। कोई भी समझदार सरकार करोड़ों भूखे लोगों के होते हुए यह फैसला कैसे कर सकती है। भूख से लड़ाई केवल खाद्यान्न के वितरण के बल पर ही नहीं, बल्कि कृषि उत्पादन, भंडारण, ग्रामीण विकास और व्यापार नीतियों के सम्मिलित बल पर लड़ी जा सकती है। सरकार को सस्ते आयात के माध्यम से किसानों को बर्बाद करने से बचना चाहिए। दुर्भाग्य से, खाद्यान्न बिल में इन सब पहलुओं पर प्रावधान नहीं किए गए हैं।
http://www.jagran.com/editorial/apnibaat-starvation-unfinished-war-10327513.html
हिजड़ा प्रधानमंत्री
भारत को एक बड़ा झटका देते हुए चीनी फौज से साफ कर दिया है कि वो दौलतबेग ओल्डी इलाके से वापस नहीं जाएंगे. चीन ने हिमाकत की हद तो ये की है कि अब वे इस इलाके को अपनी सरहद का हिस्सा बता रहे हैं. लद्धाख में भारत की सीमा में चीनी सैनिकों की घुसपैठ ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है. मंगलवार को भारत और चीन के बीच ब्रिगेडियर स्तर की बातचीत फेल होने के बाद भारत ने दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में सेना की एक टुकड़ी भेजने का फैसला किया है. सूत्रों के मुताबिक चीन ने दादागिरी दिखाते हुए इलाके को अपना हिस्सा बताया और पीछे हटने से इनकार कर दिया. चीन का दावा है कि जिस इलाके में उसने चौकी बनाई है वो उसके क्षेत्र का हिस्सा है. तनाव न बढ़े इसके लिए भारत की ओर से पहल भी हुई, भारतीय और चीनी फौज के ब्रिगेडियर लेवेल के अधिकारियों के बीच करीब तीन घंटे की बातचीत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला, चीन दौलतबेग ओल्डी इलाके से टस से मस होने को राजी नहीं है. भारत भी चीन की चाल भांपते हुए जवाबी कार्रवाई में जुट गया है. खबर है कि भारत अपनी फौजी टुकड़ी लद्दाख की सीमा में भेज सकता है. चीनी फौजियों के घुसपैठ की खबरों के बाद सेना ने लद्दाख स्काउट को पहले ही इस इलाके में भेज दिया है. इस विशेष दल में आई.टी.बी.पी के जवान शामिल होते हैं. हालांकि सूत्रों की मानें तो भारत अब भी इस इलाके में फौजी तनाव नहीं चाहता है, यही वजह है कि मसले को बातचीत से सुलझाने की अभी और भी कोशिशें हो सकती है. सेना के मुताबिक 15 अप्रैल की रात को डीबीओ सेक्टर में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की और भारतीय सीमा के 10 किलोमीटर के अंदर चौकी बना ली. बताया जा रहा है कि चीनी सैनिकों के दल में करीब 50 जवान हैं. दौलत बेग ओल्डी इलाके के अलावा चीनी फौज ने बीते 15 अप्रैल को ही पैंगौंग झील में भी घुसपैठ की है. मुश्किल यह है कि भारत और चीन के बीच बनाई गई लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) को चीन के दबाव में आज तक चिन्हित नहीं किया जा सका है, और हर बार इसी का फायदा उठा कर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भारतीय सीमा में दाखिल होती है. चीन की ओर से भारत को उकसाने वाली ये हरकतें अबतक तमाम कूटनीतिक कोशिशों के बाद भी बंद नहीं हुई है. उधर लद्घाख में भारत-चीन सीमा पर जारी तनाव के बीच आर्मी चीफ बिक्रम सिंह जम्मू के दौरे पर हैं. मंगलवार को आर्मी चीफ ने नगरोटा में नार्दन कमांड के चीफ लैफ्टिनैंट जनरल के.टी परनायक और 16 Corps के कमांडर लैफ्टिनेंट जनरल बी.एस. हुड्डा से ताजा हालात पर चर्चा की. आर्मी चीफ को फील्ड कमांडरों ने चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बारे में विस्तार से जानकारी दी. आर्मी चीफ ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से भी मुलाकात की. लद्धाख हिल डेवलपमेंट काउंसिल के पूर्व सीईओ असगर करबलाई ने ताजा हालात के लिए भारत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. असगर करबलाई ने कहा है कि अगर भारत सरकार ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया तो लद्धाख और पूरे देश के लिए खतरा पैदा हो सकता है. करबलाई ने कहा कि चीन अपनी हदें पार कर रहा है और उस तक कड़ा संदेश पहुंचाना जरुरी है.
नितीश कुमार सरकार के राज में हिन्दुओं पर भीषण अत्याचार
नितीश कुमार सरकार के राज में हिन्दुओं पर भीषण अत्याचार
बिहार के सीतामढ़ी जिले के महेशा फरकपुर गांव में सोमवार की रात मूर्ति विसर्जन के लिए जा रहे हिन्दुओं को स्थानीय मुसलमानों ने रोक और मारपीट शुरू की तथा विसर्जन यात्रा रुकवा दी महिलाओं और बच्चियों के साथ अभद्रता की .महेशा फरकपुर गांव में तनाव बरकरार है। चप्पे-चप्पे पर सशस्त्र बल तैनात है। मौके पर जिला प्रशासन के अलावा जिले के करीब एक दर्जन थानाध्यक्ष, सैप व जिला पुलिस के साथ रैपिड एक्शन फोर्स के सैकड़ों जवान कैम्प किए हुए हैं। मो आलम, मो नजीर, मो मोइम, मो नजरे, मो जमशेद समेत 29 लोगों को नामजद व 100 अज्ञात लोगों को अभियुक्त बनाया गया है.उक्त अभियुक्तों पर मूर्ति विसर्जन के दौरान पथराव कर घायल कर देने का आरोप है.आरोप है कि घायल होने के बाद इलाज के लिए जाने के दौरान रास्ता में मो नजीर व मो इकलाख ने घेर कर एक हिन्दू घायल संजय का जेब से 12 सौ रुपया भी छीन लिया. मूर्ति का विसर्जन मुसलमानों ने रात को २ बजे तब होने दिया जब पुलिस के बड़े अधिकारी और रैपिड एक्सन फ़ोर्स के जवान आये।
अभी भी सरकार एवं प्रसाशन हिन्दुओं पर दबाव बनाते हुए एकतरफा दमनात्मक कार्यवाही और फर्जी मुकदमे हिन्दुओं पर कर रहा है सिर्फ मुसलमान वोट की हेतु।
अब हमारे देश में हिन्दुओं के पूजा पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठानो पर भी सेकुलर सरकार प्रतिबन्ध लगाने की और अग्रसर है।
आगे सब समझदार है।।
जय श्री राम
बिहार के सीतामढ़ी जिले के महेशा फरकपुर गांव में सोमवार की रात मूर्ति विसर्जन के लिए जा रहे हिन्दुओं को स्थानीय मुसलमानों ने रोक और मारपीट शुरू की तथा विसर्जन यात्रा रुकवा दी महिलाओं और बच्चियों के साथ अभद्रता की .महेशा फरकपुर गांव में तनाव बरकरार है। चप्पे-चप्पे पर सशस्त्र बल तैनात है। मौके पर जिला प्रशासन के अलावा जिले के करीब एक दर्जन थानाध्यक्ष, सैप व जिला पुलिस के साथ रैपिड एक्शन फोर्स के सैकड़ों जवान कैम्प किए हुए हैं। मो आलम, मो नजीर, मो मोइम, मो नजरे, मो जमशेद समेत 29 लोगों को नामजद व 100 अज्ञात लोगों को अभियुक्त बनाया गया है.उक्त अभियुक्तों पर मूर्ति विसर्जन के दौरान पथराव कर घायल कर देने का आरोप है.आरोप है कि घायल होने के बाद इलाज के लिए जाने के दौरान रास्ता में मो नजीर व मो इकलाख ने घेर कर एक हिन्दू घायल संजय का जेब से 12 सौ रुपया भी छीन लिया. मूर्ति का विसर्जन मुसलमानों ने रात को २ बजे तब होने दिया जब पुलिस के बड़े अधिकारी और रैपिड एक्सन फ़ोर्स के जवान आये।
अभी भी सरकार एवं प्रसाशन हिन्दुओं पर दबाव बनाते हुए एकतरफा दमनात्मक कार्यवाही और फर्जी मुकदमे हिन्दुओं पर कर रहा है सिर्फ मुसलमान वोट की हेतु।
अब हमारे देश में हिन्दुओं के पूजा पाठ एवं धार्मिक अनुष्ठानो पर भी सेकुलर सरकार प्रतिबन्ध लगाने की और अग्रसर है।
आगे सब समझदार है।।
जय श्री राम
गांधी की गौरक्षा के प्रति कोई आस्था नहीं थी
भारत को अस्थिर करने की योजना का एक
भाग के रूप में गौ हत्या शुरू की गई। भारत में
पहली क़साईख़ाना 1760 में शुरू
किया गया था, एक क्षमता के साथ
प्रति दिन 30,000 (हज़ार तीस केवल), कम
से कम एक करोड़ गायों को एक साल में
मारा गया ! एक सवाल के जवाब में
गांधीजी ने कहा था कि जिस दिन भारत
स्वतंत्रत हो जायेगा उसी दिन से भारत में
सभी वध घरों को बंद किया जाएगा, 1929 में
एक सार्वजनिक सभा में नेहरू ने
कहा कि अगर वह भारत का प्रधानमंत्री बने
तो वह पहला काम इन कसाईखानो को बंद
करने का करेंगे, इन 63 सालों में 75 करोड
गायों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।
1947 के बाद से संख्या 350 से 36,000
तक बढ़ गई है सरकार की अनुमति से
36,000 कतलखाने चल रहे हैं इसके
इलावा जो अवैध रूप से चल रहे है वो अलग है
उनकी संख्या की कोई पूरी जानकारी नही है।
गौहत्या पर प्रतिबंध के खिलाफ गांधी - नेहरू
परिवार
15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने
पर देश के कोने - कोने से लाखों पत्र और
तार प्रायः सभी जागरूक
व्यक्तियों तथा सार्वजनिक संस्थाओं
द्वारा भारतीय संविधान परिषद के अध्यक्ष
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के माध्यम से
गांधी जी को भेजे गये जिसमें उन्होंने मांग
की थी कि अब देश स्वतन्त्र हो गया हैं
अतः गौहत्या को बन्द करा दो । तब
गांधी जी ने कहा कि -
" हिन्दुस्तान में गौ- हत्या रोकने का कोई
कानून बन ही नहीं सकता । इसका मतलब
तो जो हिन्दू नहीं हैं उनके साथ
जबरदस्ती करना होगा । " - '
प्रार्थना सभा ' ( 25 जुलाई 1947 )
अपनी 4 नवम्बर 1947 की प्रार्थना सभा में
गांधी जी ने फिर कहा कि -
" भारत कोई हिन्दू धार्मिक राज्य नहीं हैं ,
इसलिए हिन्दुओं के धर्म को दूसरों पर
जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता । मैं
गौ सेवा में पूरा विश्वास रखता हूँ , परन्तु
उसे कानून द्वारा बन्द नहीं किया जा सकता ।
"
इससे स्पष्ट हैं कि गांधी जी की गौरक्षा के
प्रति कोई आस्था नहीं थी । वह केवल
हिन्दुओं की भावनाओं का शौषण करने के लिए
बनावटी तौर पर ही गौरक्षा की बात
किया करते थे , इसलिए उपयुक्त समय आने
पर देश की सनातन आस्थाओं के साथ
विश्वासघात कर गये ।
(विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी के
अनुसार)
भाग के रूप में गौ हत्या शुरू की गई। भारत में
पहली क़साईख़ाना 1760 में शुरू
किया गया था, एक क्षमता के साथ
प्रति दिन 30,000 (हज़ार तीस केवल), कम
से कम एक करोड़ गायों को एक साल में
मारा गया ! एक सवाल के जवाब में
गांधीजी ने कहा था कि जिस दिन भारत
स्वतंत्रत हो जायेगा उसी दिन से भारत में
सभी वध घरों को बंद किया जाएगा, 1929 में
एक सार्वजनिक सभा में नेहरू ने
कहा कि अगर वह भारत का प्रधानमंत्री बने
तो वह पहला काम इन कसाईखानो को बंद
करने का करेंगे, इन 63 सालों में 75 करोड
गायों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।
1947 के बाद से संख्या 350 से 36,000
तक बढ़ गई है सरकार की अनुमति से
36,000 कतलखाने चल रहे हैं इसके
इलावा जो अवैध रूप से चल रहे है वो अलग है
उनकी संख्या की कोई पूरी जानकारी नही है।
गौहत्या पर प्रतिबंध के खिलाफ गांधी - नेहरू
परिवार
15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने
पर देश के कोने - कोने से लाखों पत्र और
तार प्रायः सभी जागरूक
व्यक्तियों तथा सार्वजनिक संस्थाओं
द्वारा भारतीय संविधान परिषद के अध्यक्ष
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के माध्यम से
गांधी जी को भेजे गये जिसमें उन्होंने मांग
की थी कि अब देश स्वतन्त्र हो गया हैं
अतः गौहत्या को बन्द करा दो । तब
गांधी जी ने कहा कि -
" हिन्दुस्तान में गौ- हत्या रोकने का कोई
कानून बन ही नहीं सकता । इसका मतलब
तो जो हिन्दू नहीं हैं उनके साथ
जबरदस्ती करना होगा । " - '
प्रार्थना सभा ' ( 25 जुलाई 1947 )
अपनी 4 नवम्बर 1947 की प्रार्थना सभा में
गांधी जी ने फिर कहा कि -
" भारत कोई हिन्दू धार्मिक राज्य नहीं हैं ,
इसलिए हिन्दुओं के धर्म को दूसरों पर
जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता । मैं
गौ सेवा में पूरा विश्वास रखता हूँ , परन्तु
उसे कानून द्वारा बन्द नहीं किया जा सकता ।
"
इससे स्पष्ट हैं कि गांधी जी की गौरक्षा के
प्रति कोई आस्था नहीं थी । वह केवल
हिन्दुओं की भावनाओं का शौषण करने के लिए
बनावटी तौर पर ही गौरक्षा की बात
किया करते थे , इसलिए उपयुक्त समय आने
पर देश की सनातन आस्थाओं के साथ
विश्वासघात कर गये ।
(विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी के
अनुसार)
Sunday, April 21, 2013
मुसलमानों को रिझाने की मुहिम पर मुलायम....
मुसलमानों को रिझाने की मुहिम पर मुलायम....
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने आम चुनाव से पहले मुस्लिम समुदाय को रिझाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इसके लिए वह सभी प्रभावशाली मुस्लिम संगठनों से संपर्क साधने और उनका समर्थन हासिल करने की कोशिश में लगे हैं।
त्तर प्रदेश में अपनी मजबूत पैठ रखने वाले 'जमीयत उलेमा-ए-हिंद' और 'ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड' के शीर्ष लोगों के साथ मुलायम लगातार संपर्क में हैं। दूसरी ओर बरेलवी समाज में पैठ रखने वाले मौलाना तौकीर रज़ा खान को भी साथ लेने की जुगत में हैं।जमीयत एक सीनियर ऑफिसर ने से कहा, 'यह बात सच है कि मुलायम हमारे साथ संपर्क में हैं। वह लखनऊ के हमारे कार्यक्रम में शामिल हुए थे और उन्होंने हमसे कुछ वादे किए हैं, जिनमें निर्दोष मुस्लिम युवकों की रिहाई अहम है। अगर वह इन वादों को पूरा करते हैं तो चुनाव में उन्हें मुस्लिम समुदाय की हिमायत हासिल हो सकती है।
*****************************
देश के मुस्लिम समाज को गुमराह अरब देश और इस्लामिक देश नही , बल्कि अपने ही देश के हिन्दू सबसे जायदा कर रहे हैं ! क्या कब्रिस्तान , फ्री लेपटॉप , बेरोजगारी भत्ता ,मुस्लिम यूनिवर्सिटी से देश सुधर सकता है ? 'अपराधी' जेल से रिहा कर दिये जायेंगे तो विनाश ही फैलायेंगे....क्या कुतर्क है ?? क्या मुलायम का मुसलमानो पर तो हक है कांग्रेस ने मुसलमानो को 55 साल बेवकूफ बनाया मुलायम के अभी 40 साल बाकी है !
मुसलमान कौम शायद पूरी तरह राजनीतिक हो गयी है, यह अपने पत्ते नही खोलती, तभी सारे दल इनके तलुवे चाटते रहते है ! मुस्लिम तुस्टीकरण और मुस्लिम समाज का उत्थान , दोनो में फर्क है ...मुस्लिम समाज का विकाश देश के विकाश के साथ ही संभव है ! राजनीति में मुलायम भले ही आगे निकलते जा रहे हैं पर देश के फ़र्ज़ के नाम पर आज एक देशद्रोही का काम कर रहे हैं ! कोई फर्क नही है मुलायम , माया ओर नीतीश में ? सब एक ही राजनीति कर रहे हैं ..यही तो कांग्रेस ने किया है ,फिर कांग्रेस और इन दलो में भिन्नता कैसे ..बस नाम अलग है काम तो सबका एक ही है ?
कही ऐसा ना हो इस बार मुस्लिम वोटो के ध्रवीकरण का जवाब हिन्दू वोटो के ध्रवीकरण से मिले ? सारे हिन्दू समाज का वोट ''मोदी जी'' को जा सकता है ...दलित भी मोदी जी का साथ दे सकते हैं ...गुजरात में यह जादू चल रहा है ..पूरा देश मोदी की मांग कर रहा है !
मुलायम जैसे नेताओ के अपने अपने निजी स्वार्थो के कारण आज राजनीति शब्द से ही बुदजीवी वर्ग को घ्रणा हो गयी है , पर यह भी सत्य है कि बिना नीतियो के देश नही चल सकता है ! इन मूर्ख , गुंडे और दबंग नेताओ की जगह क्या बुढ़िजीवी , वेज्ञानिक ओर डॉक्टर्स देश को नही चल सकते हैं ?
''देश के पास मोदी जी है , .....अगर युवा हिम्मत जुटा ले तो सब कुछ संभव है ''
"मैंने गाँधी को क्यों मारा " ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान
"मैंने गाँधी को क्यों मारा " ? नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान
{इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो की आँखे गीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे एक जज महोदय ने अपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालत में उपस्तित लोगो को जूरी बना जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत से नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते }
नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा के सिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है .में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है .प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो एअसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना , में एक धार्मिक और नेतिक कर्तव्य मानता हु .मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे .या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे .महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया .गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी .उसीने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिम तुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देशका एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई .नहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक धर्म के आधार पर राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते है किसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .में साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया .
में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो से करोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलिये मेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया ......में अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्या कन करेंगे
जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना
{यह जानकारी अधिक से अधिक लोगो तक पहुचने के लिए SHARE करे और अमर शहीद नाथूराम गोडसे जी को श्रधांजलि अर्पित करे }
Saturday, April 20, 2013
चीनी सैनिको ने १० किलोमीटर तक गुसपैठ करी..
चीनी सैनिको ने १० किलोमीटर तक गुसपैठ करी..
अब पता चला , आपको आईपीएल के नशे के इंजेक्शन क्यूँ दिये जाते है ....... ताकी आप क्रिकेट खेलते रहो .... और सरहद पे देशप्रेमीसैनिक अपनी जान पे खेल रहे है , लेकिन उसको देख के आपको मनोरंजन नहीं मिलेगा ... क्यूँ?
अब पता चला , आपको आईपीएल के नशे के इंजेक्शन क्यूँ दिये जाते है ....... ताकी आप क्रिकेट खेलते रहो .... और सरहद पे देशप्रेमीसैनिक अपनी जान पे खेल रहे है , लेकिन उसको देख के आपको मनोरंजन नहीं मिलेगा ... क्यूँ?
आईपीएल देखनेवाले नपुंसक भारतीयो ... मूर्ख ..... क्रिकेट देके कौन गया इस देश को ! अंग्रेज़ = कॉंग्रेस
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चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भारतीय भूक्षेत्र में 10 किलोमीटर अंदर तक डीबीओ सेक्टर के बरथे में घुस गई।
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चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी भारतीय भूक्षेत्र में 10 किलोमीटर अंदर तक डीबीओ सेक्टर के बरथे में घुस गई।
रेप देश के साथ भी हो रहा है .....! छोटी छोटी बातोपे मीडिया मे हल्ला हो रहा है ! इस देश की सिर्फ सरकार नहीं ... नागरिक भी चैन की नींद सो रहा है .....!क्या इन लोगो के लिए ही दी थी हमने कुर्बानी ? सोच के , भगतसिंह रो रहा है
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की एक पलटन 15 अप्रैल की रात भारतीय भूक्षेत्र में 10 किलोमीटर अंदर तक डीबीओ सेक्टर के बरथे में घुस गई। यह स्थान करीब 17,000 फुट की उंचाई पर है। चीनी सैनिकों ने वहां तंबू तानकर एक चौकी भी बना ली है। उन्होंने बताया कि चीनी सेना की पलटन में आमौतर पर 50 सैन्यकर्मी होते हैं।
सूत्रों के अनुसार भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवानों ने भी करीब 300 मीटर के फासले पर उस चौकी के सामने अपना शिविर स्थापित कर लिया है। सूत्रों ने कहा कि आईटीबीपी ने चीनी पक्ष से फ्लैग बैठक के लिए कहा है लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की अवधारणा को लेकर मतभेदों के चलते पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में टकराव की स्थिति बन जाती है। इससे अधिक कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया।
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की एक पलटन 15 अप्रैल की रात भारतीय भूक्षेत्र में 10 किलोमीटर अंदर तक डीबीओ सेक्टर के बरथे में घुस गई। यह स्थान करीब 17,000 फुट की उंचाई पर है। चीनी सैनिकों ने वहां तंबू तानकर एक चौकी भी बना ली है। उन्होंने बताया कि चीनी सेना की पलटन में आमौतर पर 50 सैन्यकर्मी होते हैं।
सूत्रों के अनुसार भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवानों ने भी करीब 300 मीटर के फासले पर उस चौकी के सामने अपना शिविर स्थापित कर लिया है। सूत्रों ने कहा कि आईटीबीपी ने चीनी पक्ष से फ्लैग बैठक के लिए कहा है लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की अवधारणा को लेकर मतभेदों के चलते पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में टकराव की स्थिति बन जाती है। इससे अधिक कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया।
पापाजी आप दादा बन गये हो
"पापाजी आप दादा बन गये हो "
बड़े बेटे ने अस्पताल से फ़ोन पर शुभ समाचार दिया तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा |
खुशी के मारे सारा घर सिर पर उठा लिया |
100 का नोट छोटे बेटे को देते हुए बोले :-
"छोटे झटपट लड्डू तो ले आ"
100 का नोट लेकर छोटे फुर्ती से स्कूटर की तरफ दोड पड़ा , वह किक लगानेवाला था की पापा तुरंत बाहर आते हुए बोले -
"थोड़ा रुक जा छोटे पहले अस्पताल से तेरी माँ का फ़ोन आ जाने दे की लड़का हुआ हे या लड़की |
कहीं लड़की हुई होगी तो ........????????? "
------------------------------ -----------------------------
माँ चाहिए,
बहन चाहिए,
पत्नी चाहिए ,
लेकिन बेटी नहीं चाहिए
कैसी गंदी सोच के है ये आज के 21 वी सदी के लोग भी
बेटा हुआ तो आवारागर्दी भी कर सकता है
माँ बाप का अपमान भी कर सकता है
पत्नी के आपने पर घर छोड़ के दूर भी जा सकता है
फिर ये कैसे अपने मन मे ही मान लेते है कि बेटा हुआ तो
कोई डोक्टर इंजीनीर या भारत का प्रधानमंत्री ही बनेगा ।
बेटी हुई तो जीवन भर प्यार करेगी अपने माँ बाप को
दो परिवारों की इज्जत को ढोएगी अपने कंधो पर और
अपने अरमानो का गला घोंट कर भी उस इज्जत को बढ़ाएगी ।
प्रसव का मृत्यु-तुल्य दर्द सह कर किसी के वंश को बढ़ाएगी
पहले माँ-बाप के अंकुश मे जिएगी
फिर भाइयो के, फिर पति के और अंत मे पुत्रो के
अंकुच मे जिएगी ।
इतना त्याग करने वाली और शृष्टि के निर्माण की दूसरी धुरी होने पर
भी स्त्री का ये अपमान क्यो इस देश मे ?
माँ भगवती की हर नवरात्रों मे पुजा करने वालों बेटी उसी भाग्यशाली के घर मे
पैदा होती है जिस घर मे माँ भगवती खुद आना चाहती है ।
हरी ॐ
बड़े बेटे ने अस्पताल से फ़ोन पर शुभ समाचार दिया तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा |
खुशी के मारे सारा घर सिर पर उठा लिया |
100 का नोट छोटे बेटे को देते हुए बोले :-
"छोटे झटपट लड्डू तो ले आ"
100 का नोट लेकर छोटे फुर्ती से स्कूटर की तरफ दोड पड़ा , वह किक लगानेवाला था की पापा तुरंत बाहर आते हुए बोले -
"थोड़ा रुक जा छोटे पहले अस्पताल से तेरी माँ का फ़ोन आ जाने दे की लड़का हुआ हे या लड़की |
कहीं लड़की हुई होगी तो ........????????? "
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माँ चाहिए,
बहन चाहिए,
पत्नी चाहिए ,
लेकिन बेटी नहीं चाहिए
कैसी गंदी सोच के है ये आज के 21 वी सदी के लोग भी
बेटा हुआ तो आवारागर्दी भी कर सकता है
माँ बाप का अपमान भी कर सकता है
पत्नी के आपने पर घर छोड़ के दूर भी जा सकता है
फिर ये कैसे अपने मन मे ही मान लेते है कि बेटा हुआ तो
कोई डोक्टर इंजीनीर या भारत का प्रधानमंत्री ही बनेगा ।
बेटी हुई तो जीवन भर प्यार करेगी अपने माँ बाप को
दो परिवारों की इज्जत को ढोएगी अपने कंधो पर और
अपने अरमानो का गला घोंट कर भी उस इज्जत को बढ़ाएगी ।
प्रसव का मृत्यु-तुल्य दर्द सह कर किसी के वंश को बढ़ाएगी
पहले माँ-बाप के अंकुश मे जिएगी
फिर भाइयो के, फिर पति के और अंत मे पुत्रो के
अंकुच मे जिएगी ।
इतना त्याग करने वाली और शृष्टि के निर्माण की दूसरी धुरी होने पर
भी स्त्री का ये अपमान क्यो इस देश मे ?
माँ भगवती की हर नवरात्रों मे पुजा करने वालों बेटी उसी भाग्यशाली के घर मे
पैदा होती है जिस घर मे माँ भगवती खुद आना चाहती है ।
हरी ॐ
भारत का स्वर्णिम अतीत जिसे जानकर आप चौक जायेंगे ..
भारत का स्वर्णिम अतीत जिसे जानकर आप चौक जायेंगे ..
आज से लगभग 100-150 साल से शुरू करके पिछले हज़ार साल का इतिहास के कुछ तथ्य। भारत के इतिहास/ अतीत पर दुनिया भर के 200 से ज्यादा विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने बहुत शोध किया है। इनमें से कुछ विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों की बात आपके सामने रखूँगा। ये सारे विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञ भारत से बाहर के हैं, कुछ अंग्रेज़ हैं, कुछ स्कॉटिश हैं, कुछ अमेरिकन हैं, कुछ फ्रेंच हैं, कुछ जर्मन हैं। ऐसे दुनिया के अलग अलग देशों के विद्वानों/ इतिहास विशेषज्ञों ने भारत के बारे में जो कुछ कहा और लिखा है उसकी जानकारी मुझे देनी है।
आज आप भारत के विषय में कुछ ऐसी जानकारी पड़ेंगे जो न तो पहले आपने पढ़ी होगी और न ही सुनी होगी | ये बहुत ही आश्चर्य और दुःख की बात यह है कि हमारी सरकार इस प्रकार की जानकारी को छुपाती है, इसको आज की शिक्षा-प्रणाली में शामिल नहीं करती | आखिर क्यों नहीं बताया जाता है हमको हमारे भारत के विषय में !! क्यों स्कूल की किताबो में बस वही सब मिलता है जिससे हम अपने अतीत पर गर्व नहीं, शर्म कर सके !! और दुःख इस बात का भी है कि आधुनिक सरकारी-शिक्षा ने हमें ऐसा बना दिया है कि हमारे लिए भारत के वास्तविक अतीत पर विश्वास करना सहज नहीं है, लेकिन स्कूल में पढ़े आधे-अधूरे सत्य पर हमें विश्वास हो जाता है | चलिए आज आपका एक छोटा सा परिचय करता है .. भारत के स्वर्णिम अतीत है !!!
1. सबसे पहले एक अंग्रेज़ जिसका नाम है ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’, ये भारत में आया और करीब 17 साल रहा। इन 17 वर्षों में उसने भारत का काफी प्रवास किया, पूर्व भारत, पश्चिम भारत, उत्तर भारत, दक्षिण भारत में गया। अपने 17 साल के प्रवास के बाद वो इंग्लैंड गया और इंग्लैंड की पार्लियामेंट ‘हाउस ऑफ कोमेन्स’ में उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद एक लंबा भाषण दिया।
उसका अंश पुन: प्रस्तुत करूँगा उसने कहा था :: “ I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation. ”
इसी भाषण के अंत में वो एक वाक्य और कहता है : वो कहता है ”भारत में जिस व्यक्ति के घर में भी मैं कभी गया, तो मैंने देखा की वहाँ सोने के सिक्कों का ढेर ऐसे लगा रहता हैं, जैसे की चने का या गेहूं का ढेर किसानों के घरों में रखा जाता है और वो कहता है की भारतवासी इन सिक्को को कभी गिन नहीं पाते क्योंकि गिनने की फुर्सत नही होती है इसलिए वो तराजू में तौलकर रखते हैं। किसी के घर में 100 किलो, इसी के यहा 200 किलो और किसी के यहाँ 500 किलो सोना है, इस तरह भारत के घरों में सोने का भंडार भरा हुआ है।”
तक्षिला विश्वविद्यालय
2. इससे भी बड़ा एक दूसरा प्रमाण मैं आपको देता हूँ एक अंग्रेज़ इतिहासकर हुआ उसका नाम है “विलियम डिगबी”। ये बहुत बड़ा इतिहासकर था, सभी यूरोपीय देशों में इसको काफी इज्ज़त और सम्मान दिया जाता है। अमेरिका में भी इसको बहुत सम्मान दिया जाता है, कारण ये है की इसके बारे में कहा जाता है की ये बिना के प्रमाण कोई बात नही कहता और बिना दस्तावेज़/ सबूत के वो कुछ लिखता नहीं है। इस डिगबी ने भारत के बारे में एक पुस्तक में लिखा है जिसका कुछ अंश मैं आपको बताता हूँ। ये बात वो 18वीं शताब्दी में कहता है: ” विलियम डिगबी कहता है की अंग्रेजों के पहले का भारत विश्व का सर्वसंपन्न कृषि प्रधान देश ही नहीं बल्कि एक ‘सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक और व्यापारिक देश’ भी था। इसके आगे वो लिखता है की भारत की भूमि इतनी उपजाऊ है जितनी दुनिया के किसी देश में नहीं। फिर आगे लिखता है की भारत के व्यापारी इतने होशियार हैं जो दुनिया के किसी देश में नहीं। उसके आगे वो लिखता है की भारत के कारीगर जो हाथ से कपड़ा बनाते हैं उनका बनाया हुआ कपड़ा रेशम का तथा अन्य कई वस्तुएं पूरे विश्व के बाज़ार में बिक रही हैं और इन वस्तुओं को भारत के व्यापारी जब बेचते हैं तो बदले में वो सोना और चाँदी की मांग करते हैं, जो सारी दुनिया के दूसरे व्यापारी आसानी के साथ भारतवासियों को दे देते हैं। इसके बाद वो लिखता है की भारत देश में इन वस्तुओं के उत्पादन के बाद की बिक्री की प्रक्रिया है वो दुनिया के दूसरे बाज़ारों पर निर्भर है और ये वस्तुएं जब दूसरे देशों के बाज़ारों में बिकती हैं तो भारत में सोना और चाँदी ऐसे प्रवाहित होता है जैसे नदियों में पानी प्रवाहित होता है और भारत की नदियों में पानी प्रवाहित होकर जैसे महासागर में गिर जाता है वैसे ही दुनिया की तमाम नदियों का सोना चाँदी भारत में प्रवाहित होकर भारत के महासागर में आकार गिर जाता है। अपनी पुस्तक में वो लिखता है की दुनिया के देशों का सोना चाँदी भारत में आता तो है लेकिन भारत के बाहर 1 ग्राम सोना और चाँदी कभी जाता नहीं है। इसका कारण वो बताता है की भारतवासी दुनिया में सारी वस्तुओं उत्पादन करते हैं लेकिन वो कभी किसी से खरीदते कुछ नहीं हैं।” इसका मतलब हुआ की आज से 300 साल पहले का भारत निर्यात प्रधान देश था। एक भी वस्तु हम विदेशों से नहीं खरीदते थे।
3. एक और बड़ा इतिहासकार हुआ वो फ़्रांस का था, उसका नाम है “फ़्रांसवा पिराड”। इसने 1711 में भारत के बारे में एक बहुत बड़ा ग्रंथ लिखा है और उसमे उसने सैकड़ों प्रमाण दिये हैं। वो अपनी पुस्तक में लिखता है की “भारत देश में मेरी जानकारी में 36 तरह के ऐसे उद्योग चलते हैं जिनमें उत्पादित होने वाली हर वस्तु विदेशों में निर्यात होती है। फिर वो आगे लिखता है की भारत के सभी शिल्प और उद्योग उत्पादन में सबसे उत्कृष्ट, कला पूर्ण और कीमत में सबसे सस्ते हैं। सोना, चाँदी, लोहा, इस्पात, तांबा, अन्य धातुएं, जवाहरात, लकड़ी के सामान, मूल्यवान, दुर्लभ पदार्थ इतनी ज्यादा विविधता के साथ भारत में बनती हैं जिनके वर्णन का कोई अंत नहीं हो सकता। वो अपनी पुस्तक में लिख रहा है की मुझे जो प्रमाण मिलें हैं उनसे ये पता चलता है की भारत का निर्यात दुनिया के बाज़ारों में पिछले ‘3 हज़ार वर्षों’ से आबादीत रूप से बिना रुके हुए लगातार चल रहा है।”
4. इसके बात एक स्कॉटिश है जिसका नाम है ‘मार्टिन’ वो इतिहास की पुस्तक में भारत के बारे में कहता है: “ब्रिटेन के निवासी जब बार्बर और जंगली जानवरों की तरह से जीवन बिताते रहे तब भारत में दुनिया का सबसे बेहतरीन कपड़ा बनता था और सारी दुनिया के देशों में बिकता था। वो कहता है की मुझे ये स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है की “भारतवासियों ने सारी दुनिया को कपड़ा बनाना और कपड़ा पहनना सिखाया है” और वो कहता है की हम अंग्रेजों ने और अंग्रेजों की सहयोगी जातियों के लोगों ने भारत से ही कपड़ा बनाना सीखा है और पहनना भी सीखा है। फिर वो कहता है की रोमन साम्राज्य में जीतने भी राजा और रानी हुए हैं वो सभी भारत के कपड़े मांगते रहे हैं, पहनते रहे हैं और उन्हीं से उनका जीवन चलता रहा है।”
भारत का सांस्कृतिक प्रभाव-क्षेत्र
5. एक फ्रांसीसी इतिहासकार है उसना नाम है ‘टैवरणीय’,1750 में वो कहता है: “भारत के वस्त्र इतने सुंदर और इतने हल्के हैं की हाथ पर रखो तो पता ही नहीं चलता है की उनका वजन कितना है। सूत की महीन कताई मुश्किल से नज़र आती है, भारत में कालीकट, ढाका, सूरत, मालवा में इतना महीन कपड़ा बंता है की पहनने वाले का शरीर ऐसा दिखता है की मानो वो एकदम नग्न है। वो कहता है इतनी अदभूत बुनाई भारत के करीगर जो हाथ से कर सकते हैं वो दुनिया के किसी भी देश में कल्पना करना संभव नहीं है।”
6. इसके बाद एक अंग्रेज़ है ‘विलियम वोर्ड’: वो कहता है की “भारत में मलमल का उत्पादन इतना विलक्षण है, ये भारत के कारीगरों के हाथों का कमाल है, जब इस मलमल को घास पर बिछा दिया जाता है और उस पर ओस की कोई बूंद गिर जाती है तो वो दिखाई नहीं देती है क्योंकि ओस की बूंद में जितना पतला रंग होता है उतना ही हल्का वो कपड़ा होता है, इसलिए ओस की बूंद और कपड़ा आपस में मिल जाते हैं। वो कहता है की भारत का 13 गज का एक लंबा कपड़ा हम चाहें तो एक चोटी सी अंगूठी में से पूरा खींचकर बाहर निकाल सकते हैं, इतनी बारीक और इतनी महीन बुनाई भारत के कपड़ों की होती है। भारत का 15 गज का लंबा थान उसका वजन 100 ग्राम से भी कम होता है। वो कहता है की मैंने बार बार भारत के कई थान का वजन किया है हरेक थान का वजन 100 ग्राम से भी कम निकलता है। हम अंग्रेजों ने कपड़ा बनाना तो सन् 1780 के बाद शुरू किया है भारत में तो पिछले 3,000 साल से कपड़े का उत्पादन होता रहा है और सारी दुनिया में बिकता रहा है।”
7. एक और अंग्रेज़ अधिकारी था ‘थॉमस मुनरो’ वो मद्रास में गवर्नर रहा है। जब वो गवर्नर था तो भारत के किसी राजा ने उसको शॉल भेंट में दे दिया। जब वो नौकरी पूरी करके भारत से वापस गया तो लंदन की संसद में सन् 1813 में उसने अपना बयान दिया। वो कहता है: ”भारत से मैं एक शॉल लेकर के आया उस शॉल को मैं 7 वर्षों से उपयोग कर रहा हूँ, उसको कई बार धोया है और प्रयोग किया है उसके बाद भी उसकी क्वालिटी एकदम बरकरार है और उसमे कहीं कोई सिकुड़न नहीं है। मैंने पूरे यूरोप में प्रवास किया है एक भी देश ऐसा नहीं है जो भारत की ऐसी क्वालिटी की शॉल बनाकर दे सके। भारत ने अपने वस्त्र उद्योग में सारी दुनिया का दिल जीत लिया है और भारत के वस्त्र अतुलित और अनुपमेय मानदंड के हैं जिसमे सारे भारतवासी रोजगार पा रहे हैं। इस तरह से लगभग 200 से अधिक इतिहासकारों ने भारत के बारे में यही कहा है की भारत के उद्योगों का, भारत की कृषि व्यवस्था का, भारत के व्यापार का सारी दुनिया में कोई मुक़ाबला नहीं है।”
8. अंग्रेजों की संसद में भारत के बारे में समय समय पर बहस होती रही है। सन् 1813 में अंग्रेजों की संसद में बहस हो रही थी की भारत की आर्थिक स्थिति क्या है ? उसमें अंग्रेजी सांसद कई सारी रिपोर्ट और सर्वेक्षणों के आधार पर कह रहे हैं की: “सारी दुनिया में जो कुल उत्पादन होता है उसका 43% उत्पादन अकेले भारत में होता है और दुनिया के बाकी 200 देशों में मिलाकर 57% उत्पादन होता है।”ये आंकड़ा अंग्रेजों द्वारा उनकी संसद में 1835 में और 1840 में भी दिया गया। इन आंकड़ों को अगर आज के समय में अगर इसे देखा जाए तो अमेरिका का उत्पादन सारी दुनिया के उत्पादन का 25% है, चीन का 23% है। सोचिए आज से लगभग पौने दो सौ साल पहले तक चीन और अमेरिका के कुल उत्पादन को मिलाकर लगभग उससे थोड़ा कम उत्पादन भारत अकेले करता था। इतना बड़ा उत्पादक देश था हमारा भारत। इसके बाद अँग्रेजी संसद में एक और आंकड़ा प्रस्तुत किया गया की: “सारी दुनिया के व्यापार में भारत का हिस्सा लगभग 33% है।” मतलब पूरी दुनिया में जो निर्यात होता था उसमे 33% अकेले भारत का होता था और ये आंकड़ा अंग्रेजों ने 1840 तक दिया है। इसी तरह से एक और आंकड़ा भारत के बारे में अँग्रेजी संसद में दिया गया की: “सारी दुनिया की जो कुल आमदनी है, उस आमदनी का लगभग 27% हिस्सा अकेले भारत का है।” सोचिए सन् 1840 तक भारत ऐसा अदभूत उत्पादक, निर्यातक और व्यापारी देश रहा है। 1840 तक सारी दुनिया का जो निर्यात था उसमें अमेरिका का निर्यात 1% से भी कम हैं, ब्रिटेन का निर्यात 0.5% से भी कम है और पूरे यूरोप और अमेरिका के सभी देशों को मिलाकर उनका निर्यात दुनिया के निर्यात का 3-4% है। 1840 तक यूरोप और अमेरिका के 27 देश मिलकर 3-4% निर्यात करते थे और भारत अकेले 33% निर्यात करता था। उन सभी 27 देशों का उस समय उत्पादन 10-12% था और भारत का अकेले उत्पादन 43% था और ये 27 देशों को इकट्ठा कर दिया जाए तो 1840 तक उनकी कुल आमदनी दुनिया की आमदनी में 4-4.5% थी और भारत की आमदनी अकेले 27% थी।”
9. अब थोड़ी बात भारत की शिक्षा व्यवस्था, तकनीकी और कृषि व्यवस्था की। उद्योगों के साथ भारत विज्ञान और तकनीक में विश्व में सर्वश्रेस्थ था…. भारत के विज्ञान और तकनीक के बारे में दुनिया भर के अंग्रेजों ने बहुत सारी पुस्तकें लिखी हैं। ऐसा ही अंग्रेज़ हैं ‘जी॰डबल्यू॰लिटनर’ और ‘थॉमस मुनरो’, इन दोनों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर बहुत अध्ययन किया था। एक अंग्रेज़ है ‘पेंडुरकास्ट’ उसने भारत की तकनीक और विज्ञान पर बहुत अध्ययन किया और एक अंग्रेज़ है ‘केंमवेल’ उसने भी भारत की तकनीक और विज्ञान पर बहुत अध्ययन किया था।केंमवेल ने कहा है: “जिस देश में उत्पादन सबसे अधिक होता है ये तभी संभव है जब वहाँ पर कारखाने हो और कारखाने तभी संभव हैं जब वहाँ पर टेक्नालजी हो और टेक्नालजी किसी देश में तभी संभव है जब वहाँ पर विज्ञान हो और विज्ञान किसी देश में मूल रूप से शोध के लिए अगर प्रस्तुत है तभी तकनीकी का निर्माण होता है।” 18वीं शताब्दी तक इस देश में इतनी बेहतरीन टेक्नालॉजी रही है स्टील/लोहा/इस्पात बनाने की वो दुनिया में कोई कल्पना नही कर सकता। केंमवेल कहता है की “भारत का बनाया हुआ लोहा/इस्पात सारी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। ये बात वो 1842 में इस तरह कहता है की: “इंग्लैंड या यूरोप में जो अच्छे से अच्छा लोहा या स्टील बनता है वो भारत के घटिया से घटिया लोहे या स्टील का भी मुक़ाबला नही कर सकता।”
अंकोरवाट, विश्व का सबसे बड़ा मंदिर
उसके बाद एक ‘जेम्स फ़्रेंकलिन’ नाम का अंग्रेज़ है जो धातुकर्मी विशेषज्ञ था वो कहता है की: “भारत का स्टील दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है। भारत के कारीगर स्टील को बनाने के लिए जो भट्टियाँ तैयार करते हैं वो दुनिया में कोई नही बना पाता। वो कहता है इंग्लैंड में लोहा बनाना तो हमने 1825 के बाद शुरू किया भारत में तो लोहा 10वीं शताब्दी से ही हजारों हजारों टन में बनता रहा है और दुनिया के देशों में बिकता रहा है। वो कहता है की मैं 1764 में भारत से स्टील का एक नमूना ले के आया था, मैंने इंग्लैंड के सबसे बड़े विशेषज्ञ डॉ॰ स्कॉट को स्टील दिया था और उनको कहा था की लंदन रॉयल सोसाइटी की तरफ से आप इसकी जांच कराइए। डॉ॰ स्कॉट ने उस स्टील की जांच कराने के बाद कहा की ये भारत का स्टील इतना अच्छा है की सर्जरी के लिए बनाए जाने वाले सारे उपकरण इससे बनाए जा सकते हैं, जो दुनिया में किसी देश के पास उपलब्ध नहीं हैं। अंत में वो कहते हैं की मुझे ऐसा लगता है की भारत का ये स्टील हम पानी में भी डालकर रखे तो इसमे कभी जंग नही लगेगा क्योंकि इसकी क्वालिटी इतनी अच्छी है।”
10. एक अंग्रेज़ है लेफ्टिनेंट कर्नल ए॰ वॉकर उसने भारत की शिपिंग इंडस्ट्री पर सबसे ज्यादा शोध किया है। वो कहता है की “भारत का जो अदभूत लोहा/ स्टील है वो जहाज बनाने के काम में सबसे ज्यादा आता है। दुनिया में जहाज बनाने की सबसे पहली कला और तकनीकी भारत में ही विकसित हुई है और दुनिया के देशों ने पानी के जहाज बनाना भारत से सीखा है। फिर वो कहता है की भारत इतना विशाल देश है जहां दो लाख गाँव हैं जो समुद्र के किनारे स्थापित हुआ माना जाता है इन सभी गाँव में जहाज बनाने का काम पिछले हजारों वर्षों से चलता है। वो कहता है की हम अंग्रेजों को अगर जहाज खरीदना हो तो हम भारत में जाते है और जहाज खरीद कर लाते हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी के जीतने भी पानी के जहाज दुनिया में चल रहे हैं ये सारे के सारे जहाज भारत की स्टील से बने हुए हैं ये बात मुझे कहते हुए शर्म आती है की हम अंग्रेज़ अभी तक इतनी अछि क्वालिटी का स्टील बनाना नही शुरू कर पाये हैं। वो कहता है भारत का कोई पानी का जहाज जो 50 साल चल चुका है उसको हम खरीद कर ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाएँ तो 50 साल भारत में चलने के बाद भी वो हमारे यहाँ 20-25 साल और चल जाता है इतनी मजबूत पानी के जहाज बनाने की कला और टेक्नालजी भारत के कारीगरों के हाथ में है। आगे वो कहता है हम जीतने धन में 1 नया पानी का जहाज बनाते हैं उतने ही धन में भारतवासी 4 नए जहाज पानी के बना लेते हैं। फिर वो अंत में कहता है की हम भारत में पुराने पानी के जहाज खरीदें और उसको ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में लगाएँ यही हमारे लिए अच्छा है। इसी तरह से वो कहता है भारत में तकनीक के द्वारा ईंट बनती है, ईंट से ईंट को जोड़ने का चुना बनता है उसके अलावा 36 तरह के दूसरे इंडस्ट्री हैं। इन सभी उद्योगों में भारत दुनिया में सबसे आगे है, इसलिए हमें भारत से व्यापार करके ये सब तकनीकी लेनी है और इन सबको इंग्लैंड में लाकर फिर से पुनउत्पादित करना है।”
11. भारत के विज्ञान के बारे में बीसियों अंग्रेजों ने शोध की है और वो ये कहते हैं की भारत में विज्ञान की 20 से ज्यादा शाखाएँ हैं, जो बहुत ज्यादा पुष्पित और पल्लवित हुई है। उनमें से सबसे बड़ी शाखा है खगोल विज्ञान, दूसरी नक्षत्र विज्ञान, तीसरी बर्फ बनाने का विज्ञान, चौथी धातु विज्ञान, भवन निर्माण का विज्ञान ऐसी 20 तरह की वैज्ञानिक शाखाएँ पूरे भारत में हैं। वॉकर लिखा रहा है की “भारत में ये जो विज्ञान की ऊंचाई है वो इतनी अधिक है इसका अंदाज़ा हम अंग्रेजों को नहीं लगता।” एक यूरोपीय वैज्ञानिक था कॉपरनिकस, उसके बारे में कहा जाता है की उसने पहली बार बताया सूर्य का पृथ्वी के साथ क्या संबंध है, जिसने पहली बार सूर्य से पृथ्वी की दूरी का अनुमान लगाया और जिसने सूर्य से दूसरे उपग्रहों के बारे में जानकारी सारी दुनिया को दी। लेकिन इस कॉपरनिकस की बात को वॉकर ही कह रहा है की ये असत्य है। वॉकर कहता है की अंग्रेजों के हजारों साल पहले भारत में ऐसे विशेषज्ञ वैज्ञानिक हुए हैं जिनहोने पृथ्वी से सूर्य का ठीक ठीक पता लगाया है और भारत के शास्त्रों में उसको दर्ज़ कराया है। यजुर्वेद में ऐसे बहुत सारे श्लोक हैं जिनसे खगोल शास्त्र का ज्ञान मिलता है। कॉपरनिकस का जिस दिन जन्म हुआ था यूरोप में, उससे ठीक एक हज़ार साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक “श्री आर्यभट्ट जी” ने पृथ्वी और सूर्य की दूरी बिलकुल ठीक ठीक बता दी थी और जितनी दूरी आर्यभट्ट जी ने बताई थी उसमे कॉपरनिकस एक इंच भी इधर उधर नही कर पाया। वही दूरी आज अमेरिका और यूरोप में मानी जाती है। भारत में खगोल विज्ञान इतना गहरा था की इसी से नक्षत्र विज्ञान का विकास हुआ। भारतीय वैज्ञानिकों ने ही दिन और रात की लंबाई, समय के आंकड़े निकाले है और सारी दुनिया में उनका प्रचार हुआ है। ये जो दिनों की हम गिनती करते हैं रविवार, सोमवार इन सभी दिनों का नामकरण और अवधि पूरी की पूरी महान महर्षि आर्यभट्ट की निकाली हुई है और उनके द्वारा ही ये दिन तय किए हुए हैं। अंग्रेज़ इस बात को स्वीकार करते हैं की भारत के दिनों को ही उधार लेकर हमने सनडे, मंडे बनाया है। पृथ्वी अपनी अक्ष और सूर्य के चारों ओर घूमती है ये बात सबसे पहले 10वीं शताब्दी में भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रमाणित की थी। पृथ्वी के घूमने से दिन रात होते हैं, मौसम और जलवायु बदलते हैं, ये बात भी भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा प्रमाणित हुई है सारी दुनिया में। सूर्य के कितने उपग्रह हैं और उनका सूर्य के साथ अंतरसंबंध क्या है ये सारी खोज भारत में तीसरी शताब्दी में हुई थी जब दुनिया में कोई पढ़ना लिखना भी नहीं जानता था।
12. एक अंग्रेज़ है ‘डेनियल डिफ़ों’ वो कहता है की “भारत के वैज्ञानिक कितने ज्यादा पक्के हैं गणित में की चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का ठीक ठीक समय बता देते हैं सालों पहले।” 1708 में ये लंदन की संसद में के रहा है की ‘मैंने भारत का पंचांग जब भी पढ़ा है मुझे एक प्रश्न का उत्तर कभी नही मिला की भारत के वैज्ञानिक कई कई साल पहले कैसे पता लगा लेते हैं की आज चन्द्र ग्रहण पड़ेगा, आज सूर्य ग्रहण पड़ेगा और इस समय पर पड़ेगा और सही सही उसी समय पर पड़ता है।’ इसका मतलब भारत के वैज्ञानिकों की खगोल और नक्षत्र विज्ञान में बहुत गहरी शोध है। “
13. भारतीय शिक्षा के बारे में जर्मन दार्शनिक ‘मैक्स मूलर’ ने सबसे ज्यादा शोध किया है और वो ये कहता है की “मैं भारत की शिक्षा व्यवस्था से इतना प्रभावित हूँ शायद ही दुनिया के किसी देश में इतनी सुंदर शिक्षा व्यवस्था होगी जो भारत में है। भारत के बंगाल प्रांत में मेरी जानकारी के अनुसार 80 हज़ार से ज्यादा गुरुकुल पिछले हजारों साल से सफलता के साथ चल रहे हैं।” एक अंग्रेज़ शिक्षाशास्त्री, विद्वान है ‘लुडलो’ वो 18वीं शताब्दी में कह रहा है की “भारत में एक भी गाँव ऐसा नहीं है जहां कम से कम एक गुरुकुल नहीं है और भारत के एक भी बच्चे ऐसे नहीं हैं जो गुरुकुल में न जाते हो पढ़ाई के लिए।” इसके अलावा एक और अंग्रेज़ “जी॰डबल्यू॰ लिटनर”, कहता है की मैंने भारत के उत्तरी इलाके का सर्वेक्षण किया है और मेरी रिपोर्ट कहती है की भारत में 200 लोगों पर एक गुरुकुल चलता है। इसी तरह थॉमस मुनरो कहता है की दक्षिण भारत में 400 लोगों पर कम से कम एक गुरुकुल भारत में है। दोनों के आंकड़े मिलाने पर भारत में औसत 300 लोगों पर एक गुरुकुल चलता था और जिस जमाने के ये आंकड़े है तब भारत की जनसंख्या लगभग 20 करोड़ थी। माने सन् 1822 के आसपास सम्पूर्ण भारत देश में 7,32000 गुरुकल थे। सन् 1822 में भारत में कुल गाँव भी लगभग 7,32000 थे, इस प्रकार लगभग हर गाँव में एक गुरुकुल था। वहीं अंग्रेजों के इतिहास से पता चलता है की सन् 1868 तक पूरे इंग्लैंड में सामान्य बच्चों को पढ़ाने के लिए एक भी स्कूल नहीं था। हमारी शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों से बहुत बहुत आगे थी। सबसे अच्छी बात ये थी की इन गुरुकुलों को चलाने के लिए कभी भी किसी राजा से कोई दान और अनुदान नहीं लिया जाता था, ये सारे गुरुकुल समाज के द्वारा चलाये जाते थे।’ जी॰डबल्यू॰ लिटनर’ की रिपोर्ट कहती है की 1822 में सम्पूर्ण भारत में 97% साक्षरता की दर है। हमारे प्राचीन गुरुकुलों में पढ़ाई का समय होता था सूर्योदय से सूर्यास्त तक। इतने समय में वो 18 विषय पढ़ते है जिसमें वो गणित/ वैदिक गणित, खगोल शास्त्र , नक्षत्र विज्ञान, धातु विज्ञान, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, शौर्य विज्ञान जैसे लगभग 18 विषय पढ़ाये जाते थे।
एक अंग्रेज़ अधिकारी ‘पेंडरगास्ट’ लिखाता है की ‘जब कोई बच्चा भारत में 5 साल, 5 महीने और 5 दिन का हो जाता था बस उसी दिन उसका गुरुकुल में प्रवेश हो जाता था और लगातार 14 वर्ष तक वो गुरुकुल में पढ़ता था। इसके बाद जिसको विशेषज्ञता हासिल करनी होती थी उसके लिए उच्च शिक्षा के केंद्र भी थे। भारत में शिक्षा इतनी आसान है की गरीब हो या अमीर सबके लिए शिक्षा समान है और व्यवस्था समान है। उदाहरण: भगवान श्रीकृष्ण जिस गुरुकुल में पढे थे, उसी में सुदामा भी पढे थे, एक करोड़पति का बेटा और एक रोडपति का।’
जबकि 2009 तक भारत में सरकार द्वारा लाखों करोड़ों खर्च करने के बाद 13,500 विद्यालय और 450 विश्वविद्यालय हैं। जबकि 1822 में अकेले मद्रास प्रांत (उस जमाने का कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडू) में 11,575 विद्यालय और 109 विश्वविद्यालय थे। इसके बाद मुंबई प्रांत, पंजाब प्रांत और नॉर्थ वेस्ट फ़्रोंटिएर चारों स्थानों को मिला दिया जाए तो भारत में लगभग 14,000+ विद्यालय और 500-525 विश्वविद्यालय थे। इसने इंजीनियरिंग, सर्जरी, मैडिसिन, आयुर्वेद, प्रबंधन सबके लिए अलग अलग विद्यालय और विश्वविद्यालय थे। तक्षशिला, नालंदा जैसे 500 से ज्यादा विश्वविद्यालय रहे थे। जबकि पूरे यूरोप में ‘सामान्य लोगों के लिए शिक्षा व्यवस्था’ सबसे पहले इंग्लैंड में 1868 में आयी। इससे पहले जो स्कूल थे वो सिर्फ राजाओं के बच्चों के लिए थे जो उनके ही महल में चला करते थे। साधारण लोगों को उनमे प्रवेश नहीं मिलता था। यूरोप के दार्शनिकों का मानना है की आम लोगों को तो गुलाम बनके रहना है उसको शिक्षित होने से कोई फायदा नहीं। अरस्तू और सुकरात दोनों कहते हैं की “सामान्य लोगों को शिक्षा नहीं देनी चाहिए, शिक्षा सिर्फ राजा और अधिकारियों के बच्चों को देनी चाहिए, इसलिए सिर्फ उनके लिए ही विद्यालय होते थे।”
14. भारत में कृषि व्यवस्था के बारे में “लेस्टर” नाम का अंग्रेज़ कहता है की “भारत में कृषि उत्पादन दुनिया में सर्वोच्च है। अंग्रेजों की संसद में भाषण देते समय वो कहता है, भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से 56 कुंटल धान पैदा होता है। ये उत्पादन औसतन है, भारत के कुछ इलाकों में तो 70-75 कुंटल धान होता है और कुछ इलाकों में 45-50 कुंटल धान पैदा होता है। भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से 120 मीट्रिक टन गन्ना पैदा होता है। कपास का उत्पादन सारी दुनिया में सबसे ज्यादा भारत में है।”
जबकि आज भारत में “यूरिया, डीएपी, फॉस्फेट” डालने के बाद औसतन एक एकड़ में 30 कुंटल से ज्यादा धान पैदा नहीं होता है। जबकि 150 साल पहले सिर्फ गाय के गोबर और गौमूत्र की खाद से एक एकड़ में औसतन 56 कुंटल धान पैदा होता था। आज भारत में “यूरिया, डीएपी, फॉस्फेट” के बोरे के बोरे डालने के बाद एक एकड़ में औसतन उत्पादन 30-35 मीट्रिक टन है।
एक अंग्रेज़ कहता है की: ”भारत में फसलों की विविधता दुनिया में सबसे ज्यादा है। भारत में धान के कम से कम 1 लाख प्रजाति के बीज हैं। भारत में दुनिया में सबसे पहला ‘हल’ बना। जो दुनिया को भारत की अदभूत दें है। इसके अलावा खुरपी, खुरपा, हसिया, हथौड़ा, बेल्ची, कुदाल, फावड़ा आदि सब चीज़ें दुनिया में बाद में आई है भारत में ये सैकड़ों साल पहले ही बन चुकी है। बीज को एक पंक्ति में बोने की परंपरा भी हजारों साल पहले भारत में विकसित हुई है।”
आज भी धान की 50,000 प्रजातियाँ पूरे देश में मौजूद हैं। दुनिया ने सन् 1750 में खेती करना भारत से ही सीखा है। इससे पहले ये यूरोप के लोग जंगली फलों और पशुओं को शिकार करके ही हजारों साल यही खाते रहे हैं। जिस समय इंग्लैंड और यूरोप के लोग दो ही चीज़ें खाते थे या तो जंगली फल या मांस, उस समय भारत में 1 लाख किस्म के चावल होते थे, बाकी चीजों की तो बात ही छोड़ दीजिये। हजारों साल तक भारत ने दुनिया को चावल, गुड, दालें उत्पादित करके खिलाई है। और खाने पीने की हजारों चीज़ें दुनियाभर के देश हमसे खरीदते थे और हमें बदले में सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात देते थे।
15. भारत के लोगों का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे अदभूत था क्योंकि यहाँ की चिकित्सा व्यवस्था भी दुनिया में सबसे उत्तम थी। हजारों लाखों जड़ी बूटियाँ और सर्जरी की विद्या पूरी दुनिया को भारत से ही गयी है। भारत में हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडू, केरल इन राज्यों में सर्जरी के सबसे बड़े शोध केंद्र चला करते थे। जब दुनिया में कोई नहीं जानता था तब आँख में मोतियाबिंद का पहला ऑपरेशन भारत में ही हुआ है। सर्जरी की सबसे आधुनिकम विद्या ‘राइनोंप्लासी’ का सबसे पहला परीक्षण और प्रयोग भी भारत में ही हुआ है। इंग्लैंड की ‘रॉयल सोसाइटी ऑफ सर्जन’ अपने इतिहास में लिखते हैं की हमने सर्जरी भारत से सीखी है और उसके बाद पूरे यूरोप को हमने ये सर्जरी सिखायी है।
आज से 150 वर्ष पहले तक भारत चिकित्सा, तकनीक, विज्ञान, उद्योग, व्यपार सबसे दुनिया में शीर्ष पर रहा है और इन सबका श्रेय भारत की शिक्षा व्यवस्था को जाता है, जो दुनिया में सबसे ऊंची थी। ऐसा अदभूत ‘हमारा भारत’ देश अंग्रेजों के आने से पहले तक था। अंग्रेजों की नीतियों और क़ानूनों के कारण आज भारत ऐसा देश बन गया है जहाँ भय भूख बीमारी निर्धनता अन्याय अपराध अत्याचार भ्रस्टाचार लूट एक ऐसा देश जिसका अपना अस्तित्व संकट में है। इसका एकमात्र कारण है गुलामी की शिक्षा व्यवस्था ‘INDIAN EDUCATIONAL ACT’ !!! वर्त्तमान शिक्षा प्रणाली…….गुलामी का षड्यंत्र ||
कैसे पढ़े इलाको के मुस्लिम नाम
कैसे पढ़े इलाको के मुस्लिम नाम
प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की पराजित हो गया था| वैश्विक इस्लाम मत का प्रमुख व्यक्ति जिसका पद खलीफा कहलाता था, वहां विराजता था| पराजय के बाद वहां के सैन्य प्रमुख मुस्तफा कमाल पाशा ने जिसे कमाल अतातुर्क कहा जाता है, सत्ता पर अधिकार कर लिया और उसने ---- खलीफा को तो अपदस्थ किया ही, अरबी भाषा, फैज टोपी, और बुर्के पर भी प्रतिबंध लगा दिया| इतना ही नहीं उसने इस्ताम्बूल की शाही मस्जिद जो पूर्व कोंस्टेंटिनपोल में सैंट सोफिया कहलाती थी, और जो वेटिकन के बाद ईसाई जगत की सबसे बड़ी पीठ थी को भी एक म्यूजियम बनाने की घोषणा कर दी और तुर्की को सेकुलर राष्ट्र घोषित कर दिया| सबसे विराट इस्लामिक ओटोमन साम्राज्य का भी विखंडन हो गया| -------- यह इस्लामिक जगत के लिए सबसे बड़ी अपमानजनक स्थिति थी| मुस्लिम जगत स्वयं को अपराजेय समझता था| यह पराजय उनके लिए बहुत बड़ा अविश्वसनीय झटका थी| भारत का इससे कोई लेना देना नहीं था पर मोहनदास गाँधी ने अली बंधुओं के साथ मिलकर कमाल अतातुर्क को तार द्वारा प्रार्थना की कि खलीफा को बहाल कर दिया जाए| कमाल अतातुर्क ने गाँधी की इस मांग को ठुकरा दिया| भारत में खलीफा को पुनर्स्थापित करने के लिए खिलाफत आन्दोलन चला जिसका गाँधी ने पूर्ण समर्थन किया| भारत से हजारों मुसलमान खलीफा के लिए लड़ने के लिए अफगानिस्तान के रास्ते से चले पर अफगानिस्तान में उन्हें वहां के मुस्लिम कबाइलियों ने ही लूट लिया| खिलाफत आन्दोलन पूर्ण विफल रहा| उसकी खीज में यानि उसका बदला लेने के लिए उत्तरी केरल और दक्षिण कर्नाटक में मोपला आन्दोलन हुआ जिसमें लाखों हिन्दुओं की ह्त्या कर दी गयी| गाँधी ने उन हत्यारों को अपना भाई कहा| हिन्दुओं को दो ही विकल्प दिए गए ------ या तो अपनी गर्दन कटवाओ या मुसलमन बनो| बलात धर्मपरिवर्तन के कारण ही वहां कई मुस्लिम बहुल क्षेत्र बन गए जिन्हें इंदिरा गाँधी ने मुस्लिम बहुल जिलों का रूप दे दिया
शहतूत
गर्मी का रामबाण::
चूंकि गर्मी में शरीर को पानी की आवश्यकता अधिक होती है, ऐसे में शहतूत रामबाण साबित हो सकता है। इस मौसमी फल में लगभग 91 प्रतिशत पानी की मात्र होती है, इसलिए इसके सेवन से शरीर में पानी का संतुलन बना रहता है। यह फल पित्त और वातनाशक होता है। इसमें पोटैशियम, कैल्शियम, फाइबर, आयरन, कॉपर जैसे माइक्रो न्यूट्रिंएट तत्वों की भरपूर मात्र होने के कारण यह गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए काफीफायदेमंद है। वेलनेस कंसलटेंट डॉ. शिखा शर्मा कहती हैं कि इसमें मौजूद एंटी ऑक्सिडेंट रक्त शुद्ध करता है। कब्ज की शिकायत या एनीमिया के रोगियों को इसके सेवन से फायदा मिलता है। इतना ही नहीं, यह खाना पचाने में भी सहायक होता है।
चूंकि गर्मी में शरीर को पानी की आवश्यकता अधिक होती है, ऐसे में शहतूत रामबाण साबित हो सकता है। इस मौसमी फल में लगभग 91 प्रतिशत पानी की मात्र होती है, इसलिए इसके सेवन से शरीर में पानी का संतुलन बना रहता है। यह फल पित्त और वातनाशक होता है। इसमें पोटैशियम, कैल्शियम, फाइबर, आयरन, कॉपर जैसे माइक्रो न्यूट्रिंएट तत्वों की भरपूर मात्र होने के कारण यह गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए काफीफायदेमंद है। वेलनेस कंसलटेंट डॉ. शिखा शर्मा कहती हैं कि इसमें मौजूद एंटी ऑक्सिडेंट रक्त शुद्ध करता है। कब्ज की शिकायत या एनीमिया के रोगियों को इसके सेवन से फायदा मिलता है। इतना ही नहीं, यह खाना पचाने में भी सहायक होता है।
बहुपयोगी शहतूत::
शहतूत का सेवन कई तरह से किया जाता है। ज्यादातर लोग इसे अच्छी तरह धोकर उस पर काली मिर्च और नमक लगाकर खाना पसंद करते हैं। कच्चे शहतूत का छौंक लगाकर सब्जी बनाई जाती है। यह सब्जी पेट में होने वाले कई रोगों को दूर करने में कारगर होती है। इसके अलावा आइसक्रीम, जेली, मुरब्बा और अन्य पौष्टिक पदार्थो के उत्पादन में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
दक्षिण भारत का पसंदीदा फल ::
दक्षिण भारत में इसका उत्पादन ज्यादा होने के कारण वहां के लोगों के प्रिय फलों में से एक है। तामिलनाडु की रहने वाली जी. मालती कहती हैं कि शायद ही कोई दिन ऐसा होता होगा, जब हम इसे भोजन की थाली में शामिल न करते हों। शहद जैसा मीठा होने के कारण मैं इसका ज्यादातर इस्तेमाल रात में खाना खाने के बाद स्वीट्स के रूप में करती हूं। कई रोगों में कारगर
शहतूत में विटामिन सी, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, ग्लूकोज, मिनरल, फाइबर, फॉलिक एसिड आदि जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं। ऐसे में यह कई रोगों से निजात दिलाने में कारगर है। उदर रोगों, मस्तिष्क रोगों, डायरिया, उल्टी-दस्त और कैंसर जैसी बीमारियों के दौरान अन्य फलों के अलावा शहतूत का सेवन करने की भी सलाह डॉक्टर देते हैं। इसमें शुगर की मात्र लगभग 30 प्रतिशत होती है, इस कारण मधुमेह के मरीज भी इसका सेवन कर सकते हैं।
शरबत शानदार::
शहतूत का फल जितना कारगर है उतना ही गुणकारी है उसका शरबत। यह शरीर में पानी के संतुलन को बनाए रखता है। इसका शरबत बुखार और कफ को कम करता है। पेट के कृमियों को नष्ट कर पाचन शक्ति बढ़ाने के साथ ही रक्त को शुद्ध करने में भी अहम भूमिका निभाता है। गले की खराश और जुकाम ठीक करने के साथ-साथ चिड़चिड़ाहट और सिरदर्द को नियंत्रित करने में भी यह काफी सहायक है। गर्मियों में शहतूत का शरबत आपको लू लगने से बचा सकता है।
औषधीय गुण::
शहतूत की पत्तियां और छाल भी सेहत के लिहाज से काफी उपयोगी हैं। गले की खराश और सूजन के दौरान शहतूत के छाले का काढ़ा बनाकर पीने से राहत मिलती है। दाद और एक्जिमा रोग में इसके पत्ताें का लेप लगाने से राहत मिलती है। साथ ही पैर की बिवाइयों में शहतूत के बीजों की लुगदी लगाने से लाभ मिलता है।
अन्य उपयोग::
इसका प्रयोग न केवल खाने के लिए बल्कि औद्योगिक और दवा के रूप में भी किया जाता है। रेशम के कीड़े के लार्वा शहतूत की पत्तियों को खाकर ही खुद को पोषित करते हैं। हॉकी स्टिक, क्रिकेट बैट, टेनिस और बैडमिंटन के रैकेट बनाने में शहतूत की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है। दाजिर्लिंग में तो इसकी लकड़ियों का इस्तेमाल घर बनाने के लिए भी किया जाता है।
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