Saturday, April 13, 2013

आखिर मोदी क्यों हो प्रधान मंत्री??



इस देश में अगर कोई शख्स हर वक्त और सबसे ज्यादा चर्चा में रहता है तो वो हैं गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी। सियासी विरोधियों के लिए कट्टर दुश्मन तो समर्थकों के लिए जुनून की हद तक प्रेम। किसी के लिए भी सियासत के कोई मायने नहीं। अपनों के लिए विकास का प्रेम रह-रहकर उपजता है तो विरोधियों के लिए दंगों से बड़ा कोई दर्द नहीं, लेकिन हकीकत यही है कि महज एक राज्य का मुख्यमंत्री होने के बाद भी केंद्र की सत्ता में बैठा हर शख्स मोदी पर अपनी नजरें गड़ाए रखता है। देश का अगर एक खास तबका इस बात से डरता है कि भूल से भी मोदी इस देश के प्रधानमंत्री न बन जाएं तो इसी देश के एक बड़े तबके (सर्वे के हिसाब से) की ये पुरजोर ख्वाहिश है कि मोदी ही अगला प्रधानमंत्री बनें ताकि भ्रष्टाचार से पूरी तरह खोखले हो चुके और नेताविहीन इस देश को एक सशक्त नेता और विकास पुरुष नसीब हो सके। दोनों तरह के लोग हर मोर्चे पर सक्रिय हैं और तमाम कोशिशें कर रहे हैं। मोदी पर हो रही इस जंग को देखते हुए मैंने सैकड़ों लेख पढ़े और मुझे मोदी के दुश्मनों से ज्यादा उनके समर्थक दिखे। उन्हीं तर्कों के आधार पर इस लेख को लिखने की कोशिश कर रहा हूं कि आखिर वो कौन सी 101 वजहें हैं, जिसके आधार पर मोदी को इस देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए। इसमें गुजरात दंगों और विकास समेत तमाम मुद्दों को मैंने उठाया है। इसे TOP-10 या TOP-20 की तरह समझकर न पढ़ें क्योंकि हो सकता है कई अहम तर्क आखिर में लिखें हों। इसलिए इसे समग्रता में TOP-101 की तरह लिया जाए।

1- मोदी इस समय देश के सबसे लोकप्रिय नेता हैं। हाल के तमाम सर्वे से ये जाहिर है। यहां तक कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हों या सोनिया गांधी या फिर बीजेपी की तरफ से कोई भी नेता उनके आसपास नहीं टिकता।

2- प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी ज्यादा लोगों की पहली पसंद हैं। हाल के सर्वे से भी यही बात सामने आई है। नीलसल सर्वे के साथ किए गए एक न्यूज चैनल के सर्वे के मुताबिक मोदी को 48 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री पद के लिए पहली पसंद बताया जबकि महज सात फीसदी लोगों की पसंद मनमोहन सिंह हैं। सर्वे में कोई दूसरा नेता मोदी के आसपास नहीं दिखता। वहीं एक न्यूज साइट पर कराए गए ओपन सर्वे में 90 फीसदी लोगों ने मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी पहली पसंद बताया।

3- मोदी आम लोगों से जुड़े नेता हैं। ये बात कई दूसरे नेताओं के लिए भी कही जा सकती है लेकिन सवाल प्रधानमंत्री पद के दावेदारों का है। दावेदारों की लिस्ट में जिन लोगों के नाम लीजिए। उनमें से कई तो पार्टी को मिलने वाली सीटों के आधार पर छंट जाएंगे (मसलन नीतीश कुमार) या फिर वो आम इंसान की तरह जिंदगी गुजारते हुए इतने ऊंचे ओहदे तक नहीं पहुंचे होंगे (मसलन राहुल गांधी) या फिर वो आम लोगों से जुड़े नेता नहीं होंगे (मसलन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह)।

4- मोदी चुनाव जीतकर सियासी मैदान में आते हैं, सिर्फ गुटबाजी या रणनीति बनाने में ही माहिर नहीं हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो मोदी न सिर्फ कभी भी, कहीं भी चुनाव जीतने का माद्दा रखते हैं बल्कि रणनीतिक तौर पर भी कुशल राजनीतिक कारीगर हैं। कम से कम गुजरात में न कोई राजनीतिक विरोध दिखता है और न ही पार्टी के भीतर कोई प्रभावशाली गुट हावी हो पाया है।

5- सियासी तौर पर मोदी की आभा को डिकोड करने की कोशिश करूं तो वो न सिर्फ अपने राज्य से बाहर देश के कई इलाकों से अपनी सीट जीतने का माद्दा रखते हैं बल्कि अगर घोषित तौर पर उन्हें प्रधानमंत्री का दावेदार बना दिया जाए तो अकेले दम पर कम से कम 100-150 लोकसभा सीटों पर असर डाल सकते हैं।

6- मोदी को पूरे देश में बड़ा जनाधार हासिल है। सिर्फ गुजरात ही नहीं देश के कई राज्यों का एक बड़ा तबका मोदी की ओर देख रहा है। मोदी जहां जाते हैं, लोगों और मीडिया के आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।

7- चुनावी नतीजे मोदी की दावेदारी को और पुख्ता करते हैं। लगातार तीन बार उन्होंने गुजरात का चुनाव भारी बहुमत से जीता है। भारी विरोध और विपक्ष द्वारा पूरी ताकत लगाने के बावजूद मोदी का कद बढ़ा ही है।

8- मोदी खुद को गुजरात ही नहीं बल्कि देश के एक बड़े तबके में विकास पुरुष के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कामयाब रहे हैं।

9- मोदी को यूथ से खुद को जोड़ने में कामयाबी मिली है। कई सर्वे से भी ये बात सामने आई है। इस समय देश का एक बड़ा तबका युवाओं का है, जिनके लिए बेरोजगारी, विकास, महंगाई और भ्रष्टाचार एक बडा मुद्दा है। मोदी इन मुद्दों को एक विजन के साथ पेश करते हैं। दिल्ली के SRCC कॉलेज में मोदी के भाषण में इसकी झलक दिखाई पड़ी।

10- मोदी महिलाओं में भी उतने ही लोकप्रिय हैं। Open/C-Voter के सर्वे से साफ है कि राहुल की तुलना में मोदी न सिर्फ पुरुष वोटरों की पसंद हैं बल्कि ज्यादातर महिलाओं ने भी मोदी पर ही भरोसा जताया है।

11- हर उम्र के लोगों में नरेंद्र मोदी ज्यादा लोकप्रिय है। Open/C-Voter के सर्वे में यूथ, बीच की उम्र के लोग और सीनियर सिटीजन्स के ऊपर सर्वे किया गया। मोदी सारे ग्रुप में ज्यादा लोकप्रिय हैं। हालांकि सोशल ग्रुपिंग, एजुकेशनल और इनकम ग्रुप में कहीं-कहीं वो कमजोर पड़ते नजर आते हैं लेकिन कुल मिलाकर औसत निकालें तो मोदी सब पर भारी नजर आते हैं।

12- इस समय के हालात में 2014 के चुनाव को देखते हुए एक तरफ जहां कांग्रेस खुलकर राहुल गांधी पर खेलने का फैसला कर चुकी है, वहीं बीजेपी की तरफ से मोदी की दावेदारी मजबूत है। अब अगर इन दोनों में ही तुलना की जाए तो राहुल की तुलना में मोदी ज्यादा लोगों की पसंद हैं। एक न्यूज चैनल के साथ कराए गए नीलसन सर्वे के मुताबिक देश की 48 फीसदी जनता ने अगर मोदी को पहली पसंद बताया तो महज 18 फीसदी जनता राहुल के साथ नजर आई। वहीं इंडिया टुडे पत्रिका ने भी 12,823 लोगों से बातचीत के आधार पर एक सर्वे किया। इसमें भी प्रधानमंत्री पद के लिए 36 फीसदी लोगों की पसंद मोदी थे, जबकि महज 22 फीसदी लोगों ने राहुल को अपनी पहली पसंद बताया। बाकी कई चैनलों के सर्वे का भी यही हाल है।

13- मोदी हर वक्त आम जनता से जुड़े रहते हैं। चाहे वो सोशल नेटवर्किंग साइट ही क्यों न हो, इंटरव्यू के लिए बड़ी आसानी से उपलब्ध रहते हैं। गुजरात जैसे राज्य का मुख्यमंत्री होने के बावजूद कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी हर जगह के लिए न सिर्फ उपलब्ध होते हैं, बल्कि उनकी इस व्यस्तता के बावजूद सरकारी कामकाज में भी कोई फर्क नहीं पड़ता। जरा किसी दूसरे राज्य के मुख्यमंत्री या किसी पार्टी के ही बड़े नेता को बुलाकर देख लीजिए। कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं।

14- मोदी में निर्णय लेने की क्षमता है, वो बिना किसी दबाव के फैसले ले सकते हैं। क्या प्रधानमंत्री के दावेदारों में किसी दूसरे नेता के लिए ये बात बोल सकते हैं?

15- सिर्फ जेडीयू को छोड़ दें सहयोगी दलों में किसी को भी मोदी को समर्थन देने में कोई दिक्कत नहीं है। एक अहम सवाल तो खुद जेडीयू को लेकर है कि आखिर 20 सीटों के साथ जेडीयू की हैसियत ही क्या है। बल्कि बिहार बीजेपी के लोगों की मानें तो नीतीश की वजह से बिहार में पार्टी दोयम दर्जे की हो गई है। अगर नीतीश को छोड़कर बीजेपी मोदी के भरोसे चुनाव लड़े, तो बड़ी आसानी से न सिर्फ पुरानी परफोर्मेंस को दोहरा सकती है बल्कि उससे ज्यादा सीट भी हासिल कर सकती है। यही नहीं अगर नीतीश बीजेपी से अलग रास्ते पर चलना चाहते हैं तो क्या जेडीयू 20 सीट दोबारा हासिल कर पाएगी।

16- खुद जेडीयू में मोदी को लेकर मतभेद हैं। मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व का आलम ये है कि जेडीयू सांसद जय नारायण निषाद ने ही न सिर्फ मोदी को खुला समर्थन दे दिया, बल्कि उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए अपने घर में दो दिनों का यज्ञ करवाया। इससे मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

17- बीजेपी में मोदी के नाम में एकमत बन सकता है। पार्टी के कई बड़े नेता खुलकर मोदी को प्रधानमंत्री का दावेदार बनाने की वकालत कर चुके हैं। क्या पिछले चंद सालों में किसी दूसरे नेता के लिए ये बात कही जा सकती है?

18- बीजेपी के भीतर भी मोदी के अलावा कोई दूसरा बड़ा नाम नहीं, जो जमीन से जुड़ा हो। यहां तक कि ज्यादातर सर्वे में आडवाणी भी मोदी से पिछड़ते नजर आए।

19- नरेंद्र मोदी को संघ का भी पूरा समर्थन हासिल है। ये सब कुछ जानते हुए भी कि मोदी की कार्यशैली संघ की कार्यशैली से बिल्कुल अलग है। खुद मोदी के नेतृत्व में गुजरात में संघ उतना प्रभावशाली नहीं रहा।

20- दंगों के दाग लगने के बाद भी मोदी अपनी छवि बदलने में कामयाब रहे हैं।

21- मोदी पर भ्रष्टाचार का कभी कोई आरोप नहीं लगा

22- महज एक राज्य का मुख्यमंत्री होने के बावजूद मोदी ने गुजरात मॉडल को पूरी दुनिया के सामने पेश किया, जिसकी हर तरफ वाहवाही हो रही है।

23- मोदी की धीरे-धीरे विदेशों में भी स्वीकार्यता बढ़ी है। यूरोपियन यूनियन, ब्रिटेन और अमेरिका के राजदूत ने इस बात को माना है।

24- मोदी को लेकर पूरी दुनिया की सोच बदली है। खुद बड़े देश सामने आ कर उनसे संपर्क साधने में जुटे हैं। ब्रिटेन के राजदूत गुजरात जाकर नरेंद्र मोदी से मिले। साफ है मोदी ने विकसित देशों के नुमाइंदों को भी झुकने के लिए मजबूर किया। अगर मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएं तो इस देश की विदेश नीति कितनी मजबूत और ताकतवर होगी, आप समझ सकते हैं।

25- अमेरिका में वार्टन इंडिया इकोनॉमिक फोरम ने भले ही मुट्ठी भर लोगों के विरोध के बाद मुख्य वक्ता नरेंद्र मोदी के भाषण को रद्द कर दिया, लेकिन इसके बाद जो कुछ हुआ, उससे मोदी के प्रभाव का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर करने वाली सभी कंपनियों ने हाथ पीछे खींच लिए। सबसे पहले मुख्य स्पॉन्सर अडानी ग्रुप ने किनारा किया। इसके बाद सिल्वर स्पॉन्सर कलर्स और फिर ब्रॉन्च स्पॉन्सर हेक्सावेअर ने हाथ खींच लिए। यही नहीं इस ग्रुप से जुड़े लोगों ने भी शामिल होने से इनकार कर दिया। शिवसेना नेता सुरेश प्रभु ने फोरम में जाने से इनकार कर दिया। पेन्सिलवेनिया मेडिकल स्कूल की एसोसिएट प्रोफेसर डा. असीम शुक्ला ने इसके खिलाफ मुहिम छेड़ दी। वहीं अमेरिकन एंटरप्राइज इंस्टीट्यूट से संबद्ध और वाल स्ट्रीट जर्नल के स्तंभकार सदानंद धूमे ने ट्वीट कर वार्टन इंडिया इकोनॅामिक फोरम से दूर रहने का एलान किया। न्यूजर्सी में रहने वाले प्रख्यात चिकित्सक और पद्मश्री से सम्मानित सुधीर पारिख ने विरोध दर्ज करते हुए इस सम्मेलन से अपना नाम वापस ले लिया।

26- यही नहीं वॉल स्ट्रीट जनरल द्वारा कराए गए जनमत सर्वेक्षण में 94 फीसदी लोगों ने मोदी के आमंत्रण रद्द करने को गलत माना है। इसके बाद अमेरिका में फ्री स्पीच को लेकर एक मुहिम भी छेड़ दी गई। US India Business Council के चेयरमैन रॉन सोमर्स ने भी मोदी का कार्यक्रम रद्द करने पर नाखुशी जताई

27- गुजरात दंगों को छोड़ दें तो मोदी कभी विवादों में नहीं रहे, कभी आपत्तिजनक बयानबाजी नहीं की, जैसे कि इस समय तमाम दिग्गज नेताओं का मीडिया में छाए रहने का शगल बन चुका है।

28- मोदी एक सुलझे हुए नेता माने जाते हैं। वो दूरदर्शी हैं। किसी भी मुद्दे को लेकर उहापोह की स्थिति में नहीं रहते, जो कि एक अच्छे statesman की पहचान है।

29- मोदी का मीडिया के साथ भी बहुत मित्रतापूर्ण बर्ताव रहा है।

30- मोदी बीजेपी के इस समय करिश्माई नेता हैं। उनकी तुलना में बीजेपी के सेकेंड जेनरेशन का कोई नेता टिकता नजर नहीं आता है।

31- मोदी के प्रति शहरी और युवा मतदाताओं में आकर्षण है। मोदी इनका भरोसा जीतने में कामयाब रहे हैं।

32- मोदी टेक्नोलॉजी फ्रेंडली हैं। नई-नई तकनीक का न सिर्फ इस्तेमाल करते हैं बल्कि युवाओं को प्रोत्साहित भी करते हैं।

33- आम लोगों के बीच लोकप्रिय होने के अलावा उद्योगपतियों के बीच भी मोदी बेहद लोकप्रिय है। उद्योगपतियों के बीच अच्छी पैठ है। मोदी की तमाम बैठकों और कार्यक्रमों में जिस तरह से उद्योगपति खिंचे चले आते हैं, यही कोशिश तो विकास के नाम पर देश की तमाम सरकारें कर रही हैं।

34- नैनो के बंगाल से गुजरात जाने के दौरान मोदी ने विकास को लेकर अपनी एक बेहतरीन छवि बनाई। बंगाल में भले ही टाटा के इस प्रोजेकट को लेकर काफी हंगामा हुआ हो, लेकिन गुजरात शिफ्ट करने के दौरान न तो वहां के आम लोगों को दिक्कत हुई और न ही टाटा को।

35- सिर्फ उद्योगों के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि मोदी ने बाकी क्षेत्रों में भी विकास का काम किया है।

36- समग्र विकास को लेकर मोदी के पास अपना विजन है। कम से कम दिल्ली के एसआरसीसी कॉलेज में मोदी ने अपने लेक्चर के दौरान इसे बेहतरीन तरीके से पेश किया। इसमें खेती से लेकर उद्योग तक हर मुद्दे पर बात हुई।

37- 2002 के गुजरात दंगों को छोड़ दें तो गुजरात में इसके बाद कोई दंगा नहीं हुआ।

38- दंगों को लेकर भले ही नरेंद्र मोदी के दामन पर दाग लगाने की कोशिश की जाती रही हो, लेकिन हकीकत ये है कि अब तक किसी अदालत ने उन्हें दोषी करार नहीं दिया है। खासकर गोधरा कांड के बाद जिस तरह से प्रतिक्रिया में गुजरात दंगे हुए उसे रोकना वाकई मुश्किल था। भारत में बदले को लेकर दंगा फसाद पहले भी हो चुका है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस तरह से सिखों का कत्लेआम किया गया, उसके बाद खुद राजीव गांधी ने ही कहा था कि \"When a big tree falls the earth must shake\". हालांकि न तो इस स्टेटमेंट का समर्थन किया जा सकता है और न ही गुजरात दंगों को कभी जायज ठहराया जा सकता है। इस मामले में मेरी राय ये है कि दोषियों को भी सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए, लेकिन क्या एक खास परिस्थिति में दंगों को न रोक पाने की वजह से मोदी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर सवाल उठाना सही है?

39- दंगों की वजह से गुजरात की न सिर्फ देश में बदनामी हुई बल्कि दूसरे शब्दों में कहें तो पूरी दुनिया में भारत की जमकर बदनामी हुई, लेकिन जिस तरह से पिछले चंद सालों में मोदी ने अपनी मेहनत की वजह से गुजरात की पहचान बदली। इसे मोदी की बड़ी सफलता माना जाएगा। क्या देश को ऐसे ही Statesperson की जरूरत नहीं है?

40- दंगों को लेकर भले ही ये आरोप लगते रहे हों कि मोदी ने इसे होने दिया और पूरा प्रशासनिक अमला हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा, लेकिन हकीकत ये है कि मोदी न सिर्फ सक्रिय थे, बल्कि तमाम कार्रवाई सुनिश्चित कराने के अलावा उन्होंने 28 फरवरी 2002 को रक्षा मंत्री से भी बात की और तत्काल कार्रवाई करने की मांग की। रामजेठमलानी ने SUNDAYGUARDIAN में लिखे अपने लेख में इसे विस्तार से बताया गया है। साथ ही बताया है कि कैसे मोदी फौरन सक्रिय हो गए और दंगों को रोकने की भरपूर कोशिश की।

41- वरिष्ठ वकील रामजेठमलानी ने तथ्यों के आधार पर ये भी सिद्ध करने की कोशिश की है कि गोधरा कांड के बाद दंगा स्टेट प्रायोजित नहीं था। लेख के मुताबिक दंगों के शुरुआती छह दिनों में 61 हिंदुओं और 40 मुस्लिमों की मौत हुई थी। जेठमलानी के तर्क आप SUNDAYGUARDIAN में छपे उनके लेख में पढ़ सकते हैं।

42- 27 दिसंबर 2002 को गोधरा कांड के फौरन बाद मोदी ने अपने सभी 70 हजार सुरक्षाकर्मियों को सड़कों पर उतार दिया। (The Hindustan Times Feb 28, 2002), गुजरात पुलिस ने शुरुआती तीन दिनों में 4,000 राउंड फायर किए। 27 हजार लोगों को गिरफ्तार किया। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन जॉन जोसेफ ने लिखा कि - 6 अप्रैल तक 126 लोग पुलिस की गोलियों में मारे गए। इसमें 77 हिंदू थे। साफ है मोदी के खिलाफ मुस्लिमों पर भेदभाव बरतने के आरोप गलत साबित होते हैं। बल्कि उस समय मीडिया में छपे कई लेख में तो गुजरात पुलिस के खिलाफ कुछ दूसरे ही आरोप लगे हैं...वो भी पत्रिकाओं के हवाले से।

43- मोदी को भले ही हिंदुत्व के पोस्टर ब्वॉय के तौर पर प्रचारित किया जाता रहा हो, लेकिन मोदी के राज में कई मंदिरों को गैर कानूनी निर्माण की वजह से ढहा दिया गया। सिर्फ एक महीने के भीतर 80 ऐसे मंदिरों को गिरा दिया गया, जिसका निर्माण गैर कानूनी तौर पर सरकारी जमीन पर हुआ था। साफ है मोदी के मिशन का पहला नारा विकास है।

44- 2001 की जनगणना के मुताबिक गुजरात की आबादी का 9 फीसदी हिस्सा मुस्लिमों का है, यानी गुजरात में 45 लाख मुस्लिम हैं। लेकिन इनकी साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा 73 फीसदी थी। यही नहीं सेक्स रेशियो और कामकाज में जुटे आंकड़ों में ये राष्ट्रीय औसत से बेहतर हैं। जामनगर के एक आर्किटेक्ट अली असगर ने एक लेख में लिखा कि \"अगर लोग बेरोजगार होंगे, तो हिंसा होगी। अब चूंकि हर किसी काम मिल रहा है... तो दंगे क्यों होंगे।\"

45- समय गुजरने के साथ मुस्लिमों का भरोसा भी नरेंद्र मोदी पर बढ़ा है। Open/C-Voter सर्वे के मुताबिक मुस्लिमों की भलाई और साम्प्रादियक सद्भाव के मुद्दे पर भी अल्पसंख्यकों का भरोसा मोदी पर बढ़ता नजर आता है। दलित, नक्सल औऱ कश्मीर जैसे मुद्दे के हल के लिए तो लोगों ने मोदी पर खुलकर भरोसा जताया है।

46- भले ही देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोधी पार्टी और नेता मोदी को दंगों के आधार पर घेरने की कोशिश करते हैं, लेकिन खुद गुजरात में मुसलमानों के रुख में नरमी आई है और कई जगह पर मुस्लमों ने मोदी के लिए वोट किया है - ये कहना है खुद जमीयते उलेमा के महासचिव मौलाना महमूद मदनी का। इंडिया टुडे में छपे एक इंटरव्यू में मदनी ने यहां तक कहा कि गुजरात में मुस्लिमों ने बहुत तरक्की की है, बल्कि तथाकथित कुछ सेक्युलर सरकारों से ज्यादा तरक्की गुजरात के मुसलमानों ने की है।

47- मोदी को न सिर्फ अल्पसंख्यक लोगों का समर्थन धीरे-धीरे हासिल हो रहा है, बल्कि जरूरत पड़ने पर मोदी ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को टिकट देने में भी पूरा भरोसा जताया है। लोकल बॉडी चुनाव में जामनगर इलाके में मोदी ने 27 सीटों के लिए 24 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा कर दिया, इसमें 9 महिलाएं थीं। आश्चर्य की बात ये है सभी 24 मुस्लिम उम्मीदवारों ने यहां बीजेपी के कोटे से जीत हासिल की।

48- अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि निचले तबके के लोगों का भी मोदी को समर्थन हासिल है।

49- मोदी ने कभी जात-पांत की राजनीति नहीं की, जो कि इस समय देश के कई बड़े राज्यों के लिए जहर के समान हो चुकी है।

50- मोदी ने कभी भी क्षेत्रवाद को प्रश्रय नहीं दिया और न ही राजनीति की, बल्कि हमेशा राष्ट्रीय सोच के साथ आगे बढ़े।

51- मोदी ने न सिर्फ क्षेत्रवाद की राजनीति को रोका बल्कि एक कदम आगे बढ़कर देश के हर राज्य के युवाओं को गुजरात आने के लिए कहा। एक तरफ जहां देश के हर राज्य में लोग दूसरे राज्य के लोगों का विरोध करते हैं। राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं, वहीं मोदी ताल ठोककर ये कहते हैं कि गुजरात आकर रोजी रोटी कमाओ और देश का विकास करो।

52- क्षेत्रवाद से परे मोदी ने जिस तरह से गुजरात के लोगों की सोच बदली, ऐसे मौके पर मोदी देश की एक बड़ी जरूरत बन चुके हैं। खासतौर पर राष्ट्रीय एकता बहाल करने के लिए मोदी को हर हाल में देश की केंद्रीय सत्ता सौंपनी चाहिए।

53- मोदी गुजरात का मुख्यमंत्री होने के बाद भी खुद को राष्ट्रीय नेता के तौर पर प्रोजेक्ट करने में कामयाब रहे हैं।

54- एक आश्चर्यजनक तथ्य ये है कि मोदी की स्वीकार्यता पूरे देश में बढ़ी है। अब वो सिर्फ पश्चिम भारत ही नहीं बल्कि पूर्व, उत्तर और दक्षिण भारत में भी लोगों की पहली पसंद बन चुके हैं। Open/C-Voter के सर्वे में एक खास तथ्य ये सामने आया कि मोदी दक्षिण भारत में किसी भी दूसरे नेता के मुकाबले दोगुना ज्यादा लोगों की पसंद बन चुके हैं। जबकि हकीकत ये है कि दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी का कोई जनाधार नहीं है। एक आश्चर्य ये भी है कि पश्चिम भारत में ही मोदी राहुल से एक प्वाइंट पीछे नजर आते हैं।

55- मोदी एक मजबूत सियासी नेता हैं। सियासत की जमीन पर तप कर आगे बढ़े हैं और उन्हें सियासत की बारीक समझ है। जाहिर है स्थायित्व और विकास के लिए इस देश को तपस्वी राजनीतिज्ञ की जरूरत है।

56- सियासी हलकों में और मीडिया के लिहाज से ये माना जाता है एक बड़ा नेता वो है, जिसके सबसे ज्यादा सियासी दुश्मन हों। इस देश में इस समय नरेंद्र मोदी इस लिस्ट में नंबर वन पर आएंगे जिनके सियासी दुश्मन सबसे ज्यादा होंगे, लेकिन इसके बाद भी मोदी कभी मैदान छोड़कर नहीं भागे, बल्कि मुकाबला करते हुए आगे ही बढ़ रहे हैं।

57- इस समय देश के सामने सबसे बड़ी विडंबना ये है कि मुश्किल की घड़ी में सर्वोच्च पद पर बैठे नेता सामने नहीं आते। खुलकर अपने बयान नहीं देते, बल्कि खुद को एसी कमरों में कैद कर लेते हैं। मोदी के सत्ता के शिखर पर बैठने से ये मुश्किल दूर हो जाएगी।

58- मोदी भले ही संघ की पसंद बन गए हों, लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी सिर्फ संघ के आदेशों का अनुसरण करेंगे, बल्कि अपने हिसाब से फैसले लेंगे। मोदी के अब तक के तेवर से साफ है कि वो वहीं काम करेंगे जो विकास के लिए जरूरी होगा।

59- मोदी एक्सपेरिमेंट करने में माहिर हैं, चाहे वो अपनी ब्रांडिंग हों, नई तकनीक से जुड़ाव हो या फिर विकास की कोई नई नीति। मसलन - गुजरात वाइब्रेंट, गूगल प्लस से लोगों से जुड़ना, राज्य में आयोजित कई तरह के महोत्सव। हकीकत ये है कि देश का विकास करना हो या फिर नई राह पर ले जाना हो तो एक्सपेरिमेंट करने ही होंगे। वर्ना पुराने रास्ते को पकड़कर तेज प्रगति मुश्किल है।

60- मोदी को अपने विरोधियों से निपटने का हुनर मालूम है। मसलन चुनाव से पहले गुजरात में कांग्रेस ने वादों की झड़ी लगाकर एकबारगी मोदी के लिए मुश्किल पैदा कर दी, लेकिन मोदी के वादों ने कांग्रेस के दावों को हवा कर दिया। हालांकि इस हुनर का गलत इस्तेमाल होने की भी आशंका है, लेकिन ये डर तो हर किसी के साथ है।

61- मोदी को इसलिए भी प्रधानमंत्री बनना चाहिए क्योंकि वो सत्ता पक्ष में बैठे लोगों के भी पहले नंबर के सियासी दुश्मन हैं। इसके बाद भी वो न सिर्फ डटे हुए हैं, बल्कि गुजरात से ही केंद्र को सीधी चुनौती देते हैं।

62- मोदी पर भले ही गुजरात दंगों के आरोप हों, लेकिन मोदी ने कभी भी सांप्रदायिक बात नहीं की। उन्होंने खुद को विकास पुरुष के तौर पर पेश करने में सफलता पाई, जबकि हकीकत यही है कि आज तमाम पार्टियां खुलकर अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए नियम कायदे ताक पर रख देती हैं, लेकिन क्या कभी मोदी ने बहुसंख्यकों के समर्थन में ही कभी कोई सांप्रदायिक बात की?

63- मोदी ने ये वादा भी किया कि गुजरात में दोबारा ऐसे दंगे नहीं होने दिए जाएंगे। ये खुद जर्मन राजदूत ने मीडिया के सामने बयान में कहा। उदाहरण भी सामने है कि गुजरात में मोदी के शासन में दोबारा कोई दंगा नहीं हुआ। यही नहीं एक दूसरा उदाहरण दूं तो उत्तर प्रदेश में अखिलेश राज में एक साल के भीतर 100 से ज्यादा दंगे हुए। ये अब भी जारी है। क्या सिर्फ इसी वजह से अखिलेश को मुख्यमंत्री पद से हटा देना चाहिए या फिर उन्हें हमेशा के लिए प्रधानमंत्री पद से वंचित कर दिया जाना चाहिए। साफ है कि हालात को देखते हुए इसका आकलन करना चाहिए।

64- अगर सिर्फ विकास के नाम पर चुनाव लड़ा जाए तो मोदी सब पर भारी पड़ेंगे। अब ये देश तो तय करना है कि दंगे के विवाद को लेकर हर वक्त रोना रोया जाए और अदालती फैसले से पहले ही मोदी को दोषी करार दिया जाए या फिर विकास का सपना देख रहे लोग मोदी को एक मौका दें।

65- मोदी बहुत अच्छे मैनेजर हैं। देश के प्रधानमंत्री पद पर ऐसे शख्स का होना जरूरी है, जो सभी चीजों को एक साथ मैनेज कर सके।

66- मोदी के नेतृत्व में पार्टी में अनुशासन कायम है। हकीकत ये है कि कोई भी नेता तभी अच्छा काम कर पाएगा जब उसे पार्टी के भीतर ही गुटबाजी का सामना न करना पड़े। हर जगह ये परेशानी बहुतायत में दिखती है, लेकिन गुजरात में मोदी के नेतृत्व में ऐसा कभी नहीं हुआ। कभी कोई पार्टी के भीतर गुटबाजी करने के बाद भी पार्टी को नुकसान नहीं पहुंचा पाया

67- मोदी सियासी विरोधियों को भी अपने करीब लाने का हुनर जानते हैं। ये सबको पता ही है कि किस तरह से केशुभाई ने गुजरात में मोदी को परेशान करने की कोशिश की, लेकिन आखिरकार जब मोदी चुनाव जीते तो सबसे पहले केशुभाई का आशीर्वाद लेकर उनका दिल जीत लिया। इस देश का एक सच ये है कि जब कोई शख्स सत्ता के शिखर पर पहुंच जाता है तो अपने सियासी दुश्मनों ने गिन-गिनकर बदले लेता है, लेकिन मोदी की यही अदा उन्हें सबसे अलग बनाती है।

68- मोदी पारिवारिक दुनिया से दूर नजर आते हैं। सत्ता और रिश्ते का कभी घालमेल नहीं दिखता। ऐसे शख्स की खासियत ये होती है कि उसे धन दौलत से ज्यादा मोह नहीं होता। इस मामले में मोदी वाजपेयी जैसे नजर आते हैं।

69- मोदी की कोई संतान नहीं, सिवाय बुजुर्ग मां के कभी किसी रिश्तेदार से करीबी नहीं, जिसके लिए भ्रष्टाचार करने की नौबत आए। (अतिश्योक्तिपूर्ण लग सकता है आपको? लेकिन ऐसे लोग ही इतिहास बदलते हैं, जिसकी मिसाल मोदी देते आए हैं।)

70- मोदी की उम्र 62 साल है, यानी वो इतनी उम्र पूरी कर चुके हैं अच्छा खासा अनुभव जुटा सकें। साथ ही ऐसी उम्र भी नहीं जहां भारतीय राजनीति का मतलब बुजुर्ग नेता ही नजर आते हों। गौरतलब है कि कैबिनेट में मंत्रियों की औसत उम्र 64 साल है।

71- मोदी में आज भी वही सादगी बरकरार है, जो उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले मौजूद थी। वो भले ही चार बार से गुजरात के मुख्यमंत्री हों, लेकिन सादगी में कभी कोई कमी नहीं आई। उनकी मां आज भी उसी मकान में रहती हैं, जहां पहले रहती थीं।

72- इस चुनाव में बीजेपी की सबसे बड़ी मजबूरी ये है कि उसने पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए हिंदुत्व के मॉडल को अपना लिया है। एक समय जहां आडवाणी हिंदुत्व के नाम पर सबसे बड़ा चेहरा थे, वहीं आज मोदी से बड़ा दूसरा चेहरा नहीं है।

73- बीजेपी की दूसरी बड़ी मजबूरी ये है कि सिर्फ हिंदुत्व की चाशनी से काम नहीं चलेगा, बल्कि पार्टी ने इसके साथ-साथ विकास का कॉकटेल भी शुरू किया है और इन दोनों हुनर में मोदी से बड़ा दूसरा नेता नहीं। आडवाणी कभी हिंदुत्व और विकास को एक साथ मिला नहीं पाए। कभी वो हिंदुओं के हृदय सम्राट बने, तो अब विकास का नारा देते वक्त उन्होंने हिंदुत्व के मुद्दे को पीछे छोड़ दिया।

74- दुनिया की सबसे प्रभावशाली पत्रिका टाइम ने मार्च 2012 में नरेंद्र मोदी को अपने कवर पेज पर जगह दी। साथ ही ये लिखा कि मोदी का मतलब बिजनेस होता है। पत्रिका ने गुजरात के विकास के लिए न सिर्फ मोदी को श्रेय दिया, बल्कि ये भी लिखा कि मोदी एक दृढ़ और गंभीर नेता हैं, जो देश को विकास के रास्ते पर ले जा सकते हैं, जिससे ये देश चीन से मुकाबला कर सके। इससे मोदी की अंतरराष्ट्रीय तौर पर पहचान की झलक मिलती है।

75- मोदी आम लोगों से सीधे जुड़े होते हैं। उन्हें किसी बिचौलिए की जरूरत नहीं पड़ती। चाहे ये जुड़ाव सोशल नेटवर्किंग साइट के जरिये ही क्यों न हो। आप उनकी साइट के जरिये उनसे सीधे सवाल जवाब कर सकते हैं। मिलने का वक्त मांग सकते हैं, अपने कॉलेज-स्कूल या संस्थान के लिए बुलावा भेज सकते हैं। क्या बाकी कोई मुख्यमंत्री इतनी सहजता से उपलब्ध हैं।

76- मोदी की एक बड़ी ताकत उनकी भाषा है। वो बहुत अच्छी हिन्दी जानते हैं। गुजराती होने के बाद भी हिन्दी भाषा में पूरे देश के साथ बहुत ही बेहतरीन तरीके से खुद को कनेक्ट कर सकते हैं, यानी देश की बहुसंख्यक आबादी की मुश्किलों को उनकी भाषा में सुन सकते हैं और आसानी से उसका जवाब दे सकते हैं।

77- नरेंद्र मोदी न सिर्फ अच्छे वक्ता हैं, बल्कि उन्होंने कई कविताएं लिखी हैं, साथ ही कई लेख लिखकर अपने विचार भी सामने रखते रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने शिक्षा, प्रकृति और अपने अनुभव को भी कई किताबों में समेटा है। इसका मतलब ये है कि वो एक मौलिक चिंतक है, जिसकी इस देश को सख्त जरूरत है।

78- आम लोगों को सुरक्षा मुहैया कराने के मामले में IBN7 Diamond States Award में गुजरात को सर्वश्रेष्ठ राज्य का अवॉर्ड मिला। मोदी के नेतृत्व में ये बड़ा योगदान है क्योंकि देश में इस समय लोगों की सुरक्षा एक बड़ा विषय बन चुका है

79- समग्र कृषि उत्पादों के मामले में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने गुजरात को सर्वश्रेष्ठ राज्य का अवॉर्ड दिया। इसका मतलब है कि मोदी के राज में सिर्फ उद्योगों का ही विकास नहीं हुआ या फिर उद्योगपति ही खुश नहीं हुए बल्कि किसानों के लिए भी खुशखबरी आई। कृषि प्रधान इस देश को आखिर और क्या चाहिए।

80- इस समय देश की बड़ी समस्या महंगाई, भ्रष्टाचार और आर्थिक विकास है। इस मुद्दे पर भी हाल में ओपन पत्रिका और openthemagazine.com ने सर्वे कराया। साथ ही पूछा कि आखिर देश की कौन सी शख्सियत इन मुश्किलों से निजात दिला सकती है। इस मुद्दे पर भी लोगों ने राहुल के मुकाबले मोदी पर ज्यादा भरोसा जताया है।

81- गुजरात में भारत की सिर्फ 5 फीसदी आबादी रहती है जबकि 6 फीसदी एरिया है। लेकिन योगदान की बात करें तो \"Value of Output\" 16.10 फीसदी है, जबकि निर्यात का 16 फीसदी हिस्सा गुजरात से होता है। स्टॉक मार्केट कैपिटलाइजेशन में 30 फीसदी हिस्सा है। औद्योगिक उत्पादन में गुजरात का हिस्सा 16.2 फीसदी है। 10वीं पंचवर्षीय योजना में भारत का विकास दर 8.2 फीसदी तय किया गया, लेकिन गुजरात ने 10.2 फीसदी की रफ्तार से विकास किया। पहले साल में तो रिकॉर्ड 15 फीसदी के हिसाब से विकास हुआ। तटवर्ती क्रूड ऑयल के प्रोडक्शन में गुजरात का हिस्सा 54 फीसदी है। नेचुरल गैस के प्रोडक्शन में 50 फीसदी हिस्सा, भारत की रिफायनरी कैपेसिटी का 46 फीसदी और भारत के कुल क्रूड ऑयल आयात की 60 फीसदी फैसिलिटी गुजरात में है।

82- स्वास्थ्य के मुद्दों पर भी मोदी ने भरपूर ध्यान दिया है, जिसकी देश-विदेश में भरपूर चर्चा हुई। WHO ने गुजरात के स्कूल हेल्थ कार्यक्रम की प्रशंसा की है। इसके तहत 1 करोड़ बच्चों की सेहत हर साल प्राइमरी स्कूल में चेक की जाती है। गर्भवती महिलाओं की देखरेख के लिए चिरंजीवी योजना की भरपूर तारीफ की गई है। सिंगापुर में एशियन इनोवेशन अवॉर्ड में इसकी पहचान पूरी दुनिया के सामने आई। UNICEF की रिपोर्ट \" State of World Children 2009 में भी इसकी भरपूर तारीफ की गई। यही नहीं गुजरात मेडिकल टूरिज्म के तौर पर पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा है।

83- मोदी का मिशन \"Water for all\" विकास की एक नई कहानी बयान करता है। गुजरात में वाटर मैनेजमेंट बाकी राज्यों के लिए नजीर साबित हुआ है। चाहे वो बारिश के पानी को सहेजना हो, वैज्ञानिक तरीके से इस्तेमाल हो, 21 नदियों को आपस में जोड़ना हो। राज्य के 14 हजार गांवों और 154 शहरों में पीने के पानी के लिए वाटर ग्रिड की स्थापना की गई है। इससे पहले जहां 4 हजार गांवों में टैंकर के जरिये पीने का पानी भेजना पड़ता था अब वो घटकर 185 गांव रह गए हैं। (3 साल पहले के आंकड़ों पर आधारित)

84- ज्योति ग्राम योजना की वजह से गुजरात देश का पहला राज्य बन गया जहां के सभी गांव में बिजली मुहैया करा दी गई है। ये नरेंद्र मोदी की कोशिशों का असर है।

85- आम लोगों को न्याय दिलाने में गुजरात की मोदी सरकार ने भी बेहतरीन काम किया है। उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर 2005 में गुजरात में 45 लाख केस पेंडिंग थे जो 2009 में घटकर 22 लाख हो गए। जबकि इन मामलों को आगे शून्य तक करने का इरादा था। सरकार ने 67 ईवनिंग कोर्ट का भी गठन किया, जिससे लोगों को वर्किंग आवर में दिक्कत न हो। लोक अदालत और नारी अदालत से भी इस काम में काफी मदद मिली।

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