Wednesday, April 24, 2013

गांधी की गौरक्षा के प्रति कोई आस्था नहीं थी

भारत को अस्थिर करने की योजना का एक
भाग के रूप में गौ हत्या शुरू की गई। भारत में
पहली क़साईख़ाना 1760 में शुरू
किया गया था, एक क्षमता के साथ
प्रति दिन 30,000 (हज़ार तीस केवल), कम
से कम एक करोड़ गायों को एक साल में
मारा गया ! एक सवाल के जवाब में
गांधीजी ने कहा था कि जिस दिन भारत
स्वतंत्रत हो जायेगा उसी दिन से भारत में
सभी वध घरों को बंद किया जाएगा, 1929 में
एक सार्वजनिक सभा में नेहरू ने
कहा कि अगर वह भारत का प्रधानमंत्री बने
तो वह पहला काम इन कसाईखानो को बंद
करने का करेंगे, इन 63 सालों में 75 करोड
गायों को मौत के घाट उतारा जा चुका है।
1947 के बाद से संख्या 350 से 36,000
तक बढ़ गई है सरकार की अनुमति से
36,000 कतलखाने चल रहे हैं इसके
इलावा जो अवैध रूप से चल रहे है वो अलग है
उनकी संख्या की कोई पूरी जानकारी नही है।
गौहत्या पर प्रतिबंध के खिलाफ गांधी - नेहरू
परिवार
15 अगस्त 1947 को भारत के आजाद होने
पर देश के कोने - कोने से लाखों पत्र और
तार प्रायः सभी जागरूक
व्यक्तियों तथा सार्वजनिक संस्थाओं
द्वारा भारतीय संविधान परिषद के अध्यक्ष
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के माध्यम से
गांधी जी को भेजे गये जिसमें उन्होंने मांग
की थी कि अब देश स्वतन्त्र हो गया हैं
अतः गौहत्या को बन्द करा दो । तब
गांधी जी ने कहा कि -
" हिन्दुस्तान में गौ- हत्या रोकने का कोई
कानून बन ही नहीं सकता । इसका मतलब
तो जो हिन्दू नहीं हैं उनके साथ
जबरदस्ती करना होगा । " - '
प्रार्थना सभा ' ( 25 जुलाई 1947 )
अपनी 4 नवम्बर 1947 की प्रार्थना सभा में
गांधी जी ने फिर कहा कि -
" भारत कोई हिन्दू धार्मिक राज्य नहीं हैं ,
इसलिए हिन्दुओं के धर्म को दूसरों पर
जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता । मैं
गौ सेवा में पूरा विश्वास रखता हूँ , परन्तु
उसे कानून द्वारा बन्द नहीं किया जा सकता ।
"
इससे स्पष्ट हैं कि गांधी जी की गौरक्षा के
प्रति कोई आस्था नहीं थी । वह केवल
हिन्दुओं की भावनाओं का शौषण करने के लिए
बनावटी तौर पर ही गौरक्षा की बात
किया करते थे , इसलिए उपयुक्त समय आने
पर देश की सनातन आस्थाओं के साथ
विश्वासघात कर गये ।
(विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारी के
अनुसार)

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