Friday, April 19, 2013

'आप' की सारी दुकानदारी

ये मानां कि 'आप' की सारी दुकानदारी दिखावे पर ही चल रही है और बिना टी . वी . कवरेज के तुम लोग उसी तरह फड़फडाने लगते हो जैसे कोई मछली पानी के बिना पर कुछ तो शर्म करो, कुछ तो जगह और परिस्थितियों का ख्याल रखो, कुछ तो मानवीय मूल्यों की गरिमा बनाये रखो।

हर जगह हाथ में तिरंगे को अपनी बपौती समझ कर फहराना और नारेबाजी करना शोभा नहीं देता। स्वयंभू सत्यवादी हरिश्चन्द्र को प्रधानमंत्री बनाने के लिए जो भी हथकंडे अपना सकते हो, खूब अपनाओ पर कहीं तो सीमाओं का ख्याल रखो।

माना कि उस मासूम के साथ हुयी जघन्य वारदात से मन में अत्यंत क्षोभ है पर ये 'आप' को इस बात की इजाजत नहीं देता कि अस्पताल के अन्दर घुसकर हुडदंग करो, डाक्टरों के साथ बत्तमीजी करो, एम्बुलेंस के अन्दर घुसकर दुर्व्यवहार करो और पुलिस प्रशासन को उनके कर्तव्यों के निर्वहन से रोको।

माना कि मन में गुस्सा था पर कौन सा कानून इस बात की इजाजत देता है कि ड्यूटी कर रहे एक पुलिस अधिकारी के साथ गली गलौज करो, उसकी वर्दी फाड़ने का प्रयास करो और उसके ऊपर हाथ उठाओ, जबकि वो अस्पताल के अन्दर 'आप' के हुडदंग को रोकने का उचित प्रयास कर रहा था। और अगर किसी को लगता है कि उसे अपना गुस्सा निकालने की आड़ में ये सब करने का अधिकार है तो मेरी नजर में सम्बंधित पुलिस अधिकारी को भी हुडदंगियों को सबक सिखाने का पूरा अधिकार है, फिर चाहे वो कोई महिला हो या पुरुष। सच तो ये है कि 'आप' लोग केवल टी . वी . कैमरा में छाने के लिए इस तरह की छिछोरी हरकतें करते हैं और छिछोरों या छिछोरियों को माकूल सबक सिखाना ही उनका इलाज होता है।

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