किसी दार्शनिक ने कहा कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सत्य हो जाता है। वैसे ही एक झूठ यह है कि मजहब या धर्म के कारण दंगे होते हैं। मोहम्मद गजनी क्या कोई संत फकीर था ? उसका उददेश्य भारत की संपत्ति लूटना और राज करना था। शासन और संपत्ति के लालच में ही तमाम आक्रमणकारी आये। इतने बडे देश में वह बिना अपनी लाॅबी तैयार किये कैसे शासन कर सकते थे? इसलिये तलवार उठाई और धर्मांतरण कराया। अंग्रेजों का भी यही हाल रहा शिक्षा पद्धति फैलाने से लेकर मेघालय, असम, अरुणांचल, नागालैंड में ईसायत का प्रचार प्रसार प्रभु यीशु के साक्षात्कार के लिये नहीं किया। कभी घनघोर नास्तिक रहे बैरिस्टर जिन्ना को लगा कि मजहब का नाम लेने से उनके वेस्टेज इंटरेस्ट की पूर्ती हो सकती है तो वह कटटर मुसलमान बन गये। जो खुदा को मानना तो दूर प्रचंड नास्तिक थे। मजहब या धर्म के जो ठेकेदार थे उनके कारण दंगे होते रहे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अफगानिस्तान में भी एक कालखंड ऐसा आया जब लोगों को एहसास हुआ कि हम आर्यन हैं। इस राष्ट्रीयता का विरोध करने वाले कुछ सियासी और मजहब के ठेकेदार सामने आ गये और दंगे हुए। ईरान में अयातुल्ला खोमानी को पदच्युत कर दिया गया क्यों ? क्यों कि ईरान में जब यही राष्ट्रीयता जगी तो उन्होंने अपने Pre Islamic Heroes के बारे में सोचना शुरु किया जो साेहराब, रुस्तम, जमशेद, बहराम थे जो ईश्लाम से पहले के ईरान के महापुरुष थे। इसका भी विरोध मजहब की आड में सियासत के ठेकेदारों ने किया। इजिप्ट में भी यही हुआ और तुर्की में मुस्तफा कमाल पाशा आये और उन्होंने कहा कि हम ईश्लाम को मानते हैं, अल्लाह को मानते हैं, मस्जिद को मानते हैं, पैगंबर साहब को मानते हैं लेकिन हमारी राष्ट्रीयता की मांग है कि तुर्की पर अरेबिक संस्कृति का हमला नहीं मानेगें। उन्होंने कुरान को अरबी से तुर्की भाषा में अनुवाद कराया और ईश्लाम का तुर्की के अनुसार परिवर्तन किया। इस परिवर्तन को स्वीकार करने वाले युवा तुर्क और मजहबी कटटरपंथियों के बीच दंगे हुए। इसमें मजहब का दोष नहीं सिर्फ राजनैतिक स्वार्थ के कारण ही रक्तपात हुआ।
बीजेपी के समर्थक है और आलोचक भी | सरकार के प्रत्येक निर्णय पर हम अपने विचार रखने का प्रयास करेंगे |
ईश्वर हमारी सत्य बोलने में मदद करे |
Tuesday, January 28, 2014
Sunday, January 26, 2014
अफ्रीकी देश अंगोला में इस्लाम पर प्रतिबंध, मस्जिदों को बंद करने का आदेश
अफ्रीकी देश अंगोला में इस्लाम पर प्रतिबंध, मस्जिदों को बंद करने का आदेश
अपनी संस्कृति बचाने के लिए कड़ा रुख अपनाया अंगोला ने
इस्लाम धर्म और मुसलमानों पर पाबंदी लगाने वाला अंगोला दुनिया का पहला देश बन गया है. इस आशय की खबरें अफ्रीकी अखबारों में छपी हैं. इसके मुताबिक अफ्रीका महाद्वीप के इस तटीय देश अंगोला की कल्चर मिनिस्टर रोसा क्रूज ने कहा है कि न्याय और मानवाधिकार मंत्रालय ने इस्लाम को हमारे देश में कानूनी वैधता नहीं दी है. ऐसे में अगले नोटिस तक सभी मस्जिदें बंद रहेंगी. इसके अलावा इस तरह की खबरें भी हैं कि सरकार ने मस्जिदों को गिराए जाने का भी आदेश दे दिया है.
मंत्री रोसा के मुताबिक ये फैसला देश में पनप रहे कई अवैध धार्मिक मतों को रोकने की कड़ी में लिया गया है. मंत्री ने यह बयान देश की संसद में दिया और कहा कि अंगोला की संस्कृति के खिलाफ जो भी मत हैं, उन्हें रोकने के लिए यह जरूरी था. इस्लाम के अलावा और भी कई मतों, संप्रदायों पर कानूनी रूप से बंदी की तलवार लटक रही है. इस बारे में मंत्री ने कहा कि हमने जिन संप्रदायों की लिस्ट निकाली है, वे अगले आदेश तक पूजा नहीं कर सकते. उन्हें अपने धार्मिक स्थल और उससे जुड़ी सभी रस्मों को बंद करना होगा.
इस फैसले के बारे में अंगोला के प्रेसिडेंट जोस अडुराडो सांतोस ने कहा कि आखिरकार हमारे देश में इस्लामिक प्रभाव के अंत की आखिरी शुरुआत हो चुकी है.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/angola-bans-islam-muslims-becomes-first-country-to-do-so-1-747863.html
अपनी संस्कृति बचाने के लिए कड़ा रुख अपनाया अंगोला ने
इस्लाम धर्म और मुसलमानों पर पाबंदी लगाने वाला अंगोला दुनिया का पहला देश बन गया है. इस आशय की खबरें अफ्रीकी अखबारों में छपी हैं. इसके मुताबिक अफ्रीका महाद्वीप के इस तटीय देश अंगोला की कल्चर मिनिस्टर रोसा क्रूज ने कहा है कि न्याय और मानवाधिकार मंत्रालय ने इस्लाम को हमारे देश में कानूनी वैधता नहीं दी है. ऐसे में अगले नोटिस तक सभी मस्जिदें बंद रहेंगी. इसके अलावा इस तरह की खबरें भी हैं कि सरकार ने मस्जिदों को गिराए जाने का भी आदेश दे दिया है.
मंत्री रोसा के मुताबिक ये फैसला देश में पनप रहे कई अवैध धार्मिक मतों को रोकने की कड़ी में लिया गया है. मंत्री ने यह बयान देश की संसद में दिया और कहा कि अंगोला की संस्कृति के खिलाफ जो भी मत हैं, उन्हें रोकने के लिए यह जरूरी था. इस्लाम के अलावा और भी कई मतों, संप्रदायों पर कानूनी रूप से बंदी की तलवार लटक रही है. इस बारे में मंत्री ने कहा कि हमने जिन संप्रदायों की लिस्ट निकाली है, वे अगले आदेश तक पूजा नहीं कर सकते. उन्हें अपने धार्मिक स्थल और उससे जुड़ी सभी रस्मों को बंद करना होगा.
इस फैसले के बारे में अंगोला के प्रेसिडेंट जोस अडुराडो सांतोस ने कहा कि आखिरकार हमारे देश में इस्लामिक प्रभाव के अंत की आखिरी शुरुआत हो चुकी है.
और भी... http://aajtak.intoday.in/story/angola-bans-islam-muslims-becomes-first-country-to-do-so-1-747863.html
Friday, January 24, 2014
कुमार बकवास कि नई कविता
कुमार बकवास कि नई कविता - -
कोई बंटी समझता है, कोई बबली समझता है।
मगर कुर्सी की बैचेनी को, बस "कजरी" समझता है।
मैं कुर्सी से दूर कैसा हूँ, मुझसे कुर्सी दूर कैसी है !
फकत शीला समझती है या मेरा दिल समझता है !!
सत्ता एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी शीला दीवानी थी कभी कजरी दीवाना है !
-यहाँ सब लोग कहते हैं कजरी सत्ता पिपासु है।
अगर तुम समझो तो ढोंगी है जो ना समझो तो साधू -है। -
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
ये बंगला और ये गाड़ी, मैं इसको खो नही सकता !! -
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो शीला का न हो पाया, वो मेरा हो नही सकता !!
-भ्रमर कोई अगर कुर्सी पर जा बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में सत्ता का जो ख्वाब आ जाये तो हंगामा!!
-अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा कुर्सी का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!
कोई बंटी समझता है, कोई बबली समझता है।
मगर कुर्सी की बैचेनी को, बस "कजरी" समझता है।
मैं कुर्सी से दूर कैसा हूँ, मुझसे कुर्सी दूर कैसी है !
फकत शीला समझती है या मेरा दिल समझता है !!
सत्ता एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी शीला दीवानी थी कभी कजरी दीवाना है !
-यहाँ सब लोग कहते हैं कजरी सत्ता पिपासु है।
अगर तुम समझो तो ढोंगी है जो ना समझो तो साधू -है। -
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
ये बंगला और ये गाड़ी, मैं इसको खो नही सकता !! -
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो शीला का न हो पाया, वो मेरा हो नही सकता !!
-भ्रमर कोई अगर कुर्सी पर जा बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में सत्ता का जो ख्वाब आ जाये तो हंगामा!!
-अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा कुर्सी का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!
Wednesday, January 22, 2014
धरना तो केजरीवाल का मास्टर स्ट्रोक था
अरविंद
केजरीवाल का धरना विफल नहीं रहा है। उन्होंने जो हासिल करना चाहा, वही
हासिल किया। और उनका मकसद तीन-चार पुलिस अफसरों को हटवाना नहीं हो सकता।
उनका गेम प्लान बड़ा था। जब दिल्ली में डैनिश महिला का रेप हुआ तो लोग
अरविंद केजरीवाल सरकार की आलोचना करने लगे। निर्भया रेप केस के सड़क पर
जमकर विरोध ने आम आदमी पार्टी को मजबूत जमीन दिलाई थी। डैनिश महिला के रेप
ने इस जमीन के दरका दिया था। दरार भरने के लिए कुछ बड़ा चाहिए था। और दो
दिन के धरने से अरविंद केजरीवाल ने उसी दरार को भरने के लिए मसाला खोज लिया
अपने इस
धरने से उन्होंने कई निशाने एक साथ साधे हैं। सबसे पहले तो डैनिश महिला के
रेप को लोग भूल गए। साथ ही, उन्होंने सबको यह बहुत अच्छे से बता दिया कि
दिल्ली में कानून-व्यवस्था उनके हाथ में नहीं है। यानी अगली बार जब रेप
होगा (और होगा ही, क्योंकि रेप रोकने के लिए कोई कुछ नहीं कर रहा है,
केजरीवाल भी नहीं) तो जिम्मेदारी बहुत आसानी से दिल्ली पुलिस के सिर होगी।
केजरीवाल ने तो दिखा दिया कि उनके कहने पर तो एक पुलिस अफसर का ट्रांसफर तक
नहीं होता। यानी इस 'कलंक' से उन्होंने मुक्ति पा ली।
फिर,
उन्होंने लोगों को यह भी दिखा दिया कि वह कुर्सी पर भले ही बैठ गए हों,
सड़क को नहीं भूले हैं और जब जरूरत होगी, वह सड़क पर उतर आने, ठिठुरती रात
में जमीन पर सोने के लिए तैयार हैं। उन्होंने लोगों तक यह मेसेज पहुंचा
दिया कि दिल्ली के पूर्ण राज्य के दर्जे के लिए बीजेपी-कांग्रेस अब तक बस
ढकोसला करते आए थे, असली लड़ाई ऐसे लड़ी जाती है।
अपनी जिद
से अरविंद केजरीवाल ने यह साबित कर दिया कि उनके लिए लोकतंत्र और गणतंत्र
के मायने राजपथ पर सैनिकों की परेड में नहीं बल्कि बेहद आम आदमी की जरूरतों
के लिए लड़ने में है। यानी जब लोग उनकी 'आंशिक सफलता' को झेंप बताकर उनकी
खिल्ली उड़ा रहे हैं, वह और बड़ी जीत की ओर बढ़ रहे हैं।
via
विवेक आसरी
Tuesday, January 21, 2014
सोनिया कांग्रेस का ही दूसरा रूप है आआपा
सोनिया कांग्रेस का ही दूसरा रूप है आआपा
अब कारण और रणनीति चाहे जो भी रही होे ह्यआम आदमी पार्टी ह्ण उस स्थिति में पहुंच गई है कि इसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो वह शतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन देने के समान होगा। फिलहाल 'आप' को लेकर हड़बड़ी में जो कहा और लिखा जा रहा है वह रक्षात्मक ज्यादा लगता है और गंभीर विवेचननुमा कम, लहजा कुछ-कुछ सफाई देने जैसा है।
'आप' अपने नेता अरविंद केजरीवाल की सादगी को आगे करती है तो दूसरे राजनैतिक दल भी भागदौड़ करके अपने स्टोर में से कुछ उदहारण ला कर उसका मुकाबला करने का प्रयास करते दिखाई देते हैं। कोई भाग कर गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर को दिखा रहा है, तो कोई हड़बड़ी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार को लेकर उपस्थिति हुआ है। जिनकी इतिहास में रुचि है वे कभी लोकसभा के अध्यक्ष रहे रविराय को ओडिशा के किसी कोने से ढूंढ लाए हैं। जिनकी और भी पीछे जाने की हिम्मत है वे गृहमंत्री रह चुके और अब परलोक जा चुके इंद्रजीत गुप्ता को याद कर रहे हैं। यह एक प्रकार से आम आदमी पार्टी की चाल में ही फंसने जैसा है। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल भी चाहते हैं कि सारी बहस इन्हीं सतही मुद्दों पर घूमती रहे ताकि असली गंभीर मुद्दों से बचा जा सके।
गंभीर और गहरे दूरगामी मुददों पर भारत की राजनीति में बहस ना हो इसको लेकर देश में वातावरण कुछ देशी-विदेशी शक्तियों ने पिछले दो दशकों से ही बनाना शुरू कर दिया था। मीडिया में और विश्वविद्यालयों में यह बहस अच्छा प्रशासन बनाम विचारधाराह के नाम पर चलाई गई थी। इस आंदोलन में यह स्थापित करने की कोशिश की गई थी कि हिंदुस्थान की तरक्की के लिए पहली प्राथमिकता अच्छे प्रशासन की है विचारधारा का राजनीति में ज्यादा महत्व नहीं है। मीडिया की सहायता से सब जगह यह शोर मचाया जाने लगा कि विचारधारा महंगा शौक है जिसे हिंदुस्थान झेल नहीं सकता। हिंदुस्थान को तो अच्छा प्रशासन चाहिए इसी आंदोलन में से भ्रष्टाचार समाप्त करने के स्वर उभरने लगे थे और इसी आंदोलन में देशवासियों में राजनैतिक नेतृत्व और संवैधानिक व्यवस्थाओं के प्रति अनास्था का वातावरण तैयार किया। इस आंदोलन को चलाने वाले लोगों ने बहुत शातिराना अंदाज से यह बात गोल कर दी कि अच्छा प्रशासन या भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की कल्पना एकांत में नहीं की जा सकती। आंदोलन चलाने वालों ने बहुत ही शातिर तरीके से अच्छे प्रशासन अथवा भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन को विचारधारा के खिलाफ खड़ा कर दिया। ऐसा माहौल बनाया गया मानो विचारधारा और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन एक दूसरे के विरोधी हों और हिन्दुस्थान को यदि आगे बढ़ना है तो उसे विचारधारा को त्यागना होगा। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। सत्ता का वैचारिक आधार कोई भी, साम्यवादी, मिश्रित अर्थव्यवस्था, एकात्म मानवतावादी, पूंजीवादी या फिर माओवादी ही क्यों न हो अच्छा प्रशासन तो सभी वैचारिक व्यवस्थाओं के लिए अनिवार्य शर्त है।
मुख्य प्रश्न यह है कि हिन्दुस्थान में पिछले दो दशकों में हड़बड़ी में सुप्रशासन और विचारधारा को एक दूसरे के खिलाफ सिद्घ करने का आंदोलन चलने की जरूरत क्यों पड़ी ? भारत में कुल मिलाकर तीन वैचारिक प्रतिष्ठान आसानी से चिन्हित किए जा सकते हैं। विभिन्न साम्यवादी दलों के नेतृत्व में साम्यवादी वैचारिक मंडल और संघ परिवार के नेतृत्व में एकात्ममानव दर्शन पर आधारित भारतीय वैचारिक मंडल। तीसरा खेमा, जिसे सही अर्थो में वैचारिक मंडल नहीं कहा जा सकता, सोनिया गांधी की पार्टी का है जिसमें सत्ता सुख भोगने के लालच में विभिन्न विचारधाराओं के वाहक अपनी सुविधा अनुसार एक छतरी के नीचे एकत्रित हैं। इस खेमे में नक्सलवाद से लेकर हिन्दुओं की चर्चा करने वालों तक, विशुद्घ पूंजीवाद से लेकर शत-प्रतिशत राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था तक के पक्षधर भी हैं। इसमें अभी भी मुसलमानों को अलग राष्ट्र मानने के पक्षधर हैं और ईसाई स्थान का सपना संजोने वाले भी ही इस खेमे में शामिल हैं। बाबरी ढांचे के टूटने पर खून की नदियां बहाने की धमकियां देने से लेकर शयनगृह में छिप कर ताली बजाने वाले भी इसी खेमे में है। अमेरिका के आगे दंडवत करने वाले भी इसी खेमे में है और उसे सबक सिखाने वाले भी इसी खेमे में है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस खेमे की न कोई अपनी पहचान है और न ही कोई प्रतिबद्घता। भारत की राजनीति में जिन देशी-विदेशी शक्तियों के अपने निहित स्वार्थ हैं उनके लिए सोनिया गांधी की पार्टी जैसा खेमा ही सबसे ज्यादा अनुकू ल होता है। सोवियत रूस के पतन के बाद अमरीका के लिए साम्यवादी वैचारिक मंडलों की चुनौती एक प्रकारी से समाप्त हो गई थी। भारत में इसकी शक्ति पहले भी पश्चिमी बंगाल में ही सिमट कर रह गई थी और इसे निर्णायक चोट ममता बनर्जी ने पहुंचा ही दी थी। इसलिए इतना स्पष्ट ही था कि आने वाले समय में भारत की राजनीति में मुख्य दंगल संघ परिवार के नेतृत्व में राष्ट्रवादी शक्तियों के भारतीय वैचारिक मंडल और सोनिया गांधी की पार्टी और उसके सहयोगी खेमे में होने वाला है।
मान लीजिए सोनिया गांधी पार्टी का खेमा हार जाता है तो भारत की सत्ता के केंद्र में भारतीय वैचारिक प्रतिष्ठान स्थापित हो सकता है, और यदि उसने अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल के प्रयोगों से सबक हासिल कर लिया तो वह लंबे समय तक इस केंद्र में रह भी सकता है। सैम्युअल हंटिंगटन ने जिन सभ्यताओं के संघर्ष की भविष्यवाणी की है, उसके अनुसार भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों के केंद्र में आ जाने से भारतीय संस्कृति और सभ्यता एक बार फिर विश्व में अपना सम्मानपूर्वक स्थान ग्रहण कर सकती है। इसलिए भारत में रुचि लेने वाली देशी- विदेशी शक्तियों को हर हालत में कांग्रेस-1 के पराजित हो जाने पर कांग्रेस-2 को स्थापित करने के प्रयास करने ही थे। लगता है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस-1 के स्थान पर कांग्रेस-2 के रूप में ही आगे बढ़ाई जा रही है। यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल उन सब प्रश्नों पर बात करने से बचते हैं जो इस देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। आश्चर्य है कि जब कभी इन मुददों पर विवशता में बोलते भी हैं तो उनके विचारों में और कांग्रेस-1 के विचारों में कोई मौलिक अंतर दिखाई नहीं देता। कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के प्रश्न पर जो बात पिछले पांच दशकों से कांग्रेस कह रही है, पाकिस्तान कह रहा है, आतंकवादी कह रहे हैं वही बात इस पार्टी के प्रशांत भूषण कह रहे हैं। अनुच्छेद 370 पर आम आदमी पार्टी की वही राय है जो कांग्रेस (आई) की है। आतंकवाद पर भारत और माओवाद प्रभावित राज्यों से सेना को हटाने या फिर वहां उनकी शक्ति को अत्यंत क्षीण करने की बात कांग्रेस-1 भी कह रही है और आम आदमी पार्टी भी कह रही है। कांग्रेस (आई) भी यह मान कर चलती है कि इस देश में मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है और उनके लिए अलग से कानून बनाया जाना चाहिए। मोटे तौर पर ह्यआम आदमी पार्टी ह्णभी यही कहती है। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह भी यह कहते हैं कि इस देश में जहां भी मुस्लिम आतंकवादी मारा जाता है वह फर्जी एनकांउटर होता है। केजरीवाल की पार्टी का भी यही मत है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मामले में आम आदमी पार्टी को भी यही लगता है कि उनका ऑडिट कर देने से समस्या हल हो जाएगी।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं । मोटे तौर पर नीति के मामले में सोनिया गांधी की पार्टी और आम आदमी पार्टी में कोई अंतर नहीं है। बहस केवल इस बात को लेकर हो रही है कि इनके प्रशासन में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है' जब हम आएंगे भ्रष्टाचार को खत्म करने की कोशिश करेंगे। जहां तक वैचारिक नीति का प्रश्न है 'आप' भी कांग्रेस का ही प्रतिरूप है इसलिए जिन पूंजीवादी प्रतिष्ठानों को सोनिया कांग्रेस के गिरने का खतरा दिखाई देता है उन्होंने तुरंत 'आप' पर दांव लगाना शुरू कर दिया है क्योंकि उन्हे लगता है'आप' से वैचारिक नीतिगत निरंतरता बनी रहेगी। इसलिए देशी-विदेशी शक्तियों के गर्हित हित प्रभावित नहीं होंगे। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यदि राष्ट्रवादी शक्तियां सत्ता में आ जाती हैं तो सभ्यताओं के संघर्ष में एक ऐसी सभ्यता फिर से अंगड़ाई लेने लगेगी जिसे अभी तक विश्व शक्तियों ने हाशिए पर धकेल रखा है।
अब कारण और रणनीति चाहे जो भी रही होे ह्यआम आदमी पार्टी ह्ण उस स्थिति में पहुंच गई है कि इसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। यदि ऐसा किया गया तो वह शतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन देने के समान होगा। फिलहाल 'आप' को लेकर हड़बड़ी में जो कहा और लिखा जा रहा है वह रक्षात्मक ज्यादा लगता है और गंभीर विवेचननुमा कम, लहजा कुछ-कुछ सफाई देने जैसा है।
'आप' अपने नेता अरविंद केजरीवाल की सादगी को आगे करती है तो दूसरे राजनैतिक दल भी भागदौड़ करके अपने स्टोर में से कुछ उदहारण ला कर उसका मुकाबला करने का प्रयास करते दिखाई देते हैं। कोई भाग कर गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर को दिखा रहा है, तो कोई हड़बड़ी में त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार को लेकर उपस्थिति हुआ है। जिनकी इतिहास में रुचि है वे कभी लोकसभा के अध्यक्ष रहे रविराय को ओडिशा के किसी कोने से ढूंढ लाए हैं। जिनकी और भी पीछे जाने की हिम्मत है वे गृहमंत्री रह चुके और अब परलोक जा चुके इंद्रजीत गुप्ता को याद कर रहे हैं। यह एक प्रकार से आम आदमी पार्टी की चाल में ही फंसने जैसा है। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल भी चाहते हैं कि सारी बहस इन्हीं सतही मुद्दों पर घूमती रहे ताकि असली गंभीर मुद्दों से बचा जा सके।
गंभीर और गहरे दूरगामी मुददों पर भारत की राजनीति में बहस ना हो इसको लेकर देश में वातावरण कुछ देशी-विदेशी शक्तियों ने पिछले दो दशकों से ही बनाना शुरू कर दिया था। मीडिया में और विश्वविद्यालयों में यह बहस अच्छा प्रशासन बनाम विचारधाराह के नाम पर चलाई गई थी। इस आंदोलन में यह स्थापित करने की कोशिश की गई थी कि हिंदुस्थान की तरक्की के लिए पहली प्राथमिकता अच्छे प्रशासन की है विचारधारा का राजनीति में ज्यादा महत्व नहीं है। मीडिया की सहायता से सब जगह यह शोर मचाया जाने लगा कि विचारधारा महंगा शौक है जिसे हिंदुस्थान झेल नहीं सकता। हिंदुस्थान को तो अच्छा प्रशासन चाहिए इसी आंदोलन में से भ्रष्टाचार समाप्त करने के स्वर उभरने लगे थे और इसी आंदोलन में देशवासियों में राजनैतिक नेतृत्व और संवैधानिक व्यवस्थाओं के प्रति अनास्था का वातावरण तैयार किया। इस आंदोलन को चलाने वाले लोगों ने बहुत शातिराना अंदाज से यह बात गोल कर दी कि अच्छा प्रशासन या भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन की कल्पना एकांत में नहीं की जा सकती। आंदोलन चलाने वालों ने बहुत ही शातिर तरीके से अच्छे प्रशासन अथवा भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन को विचारधारा के खिलाफ खड़ा कर दिया। ऐसा माहौल बनाया गया मानो विचारधारा और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन एक दूसरे के विरोधी हों और हिन्दुस्थान को यदि आगे बढ़ना है तो उसे विचारधारा को त्यागना होगा। जबकि वास्तविकता इसके विपरीत है। सत्ता का वैचारिक आधार कोई भी, साम्यवादी, मिश्रित अर्थव्यवस्था, एकात्म मानवतावादी, पूंजीवादी या फिर माओवादी ही क्यों न हो अच्छा प्रशासन तो सभी वैचारिक व्यवस्थाओं के लिए अनिवार्य शर्त है।
मुख्य प्रश्न यह है कि हिन्दुस्थान में पिछले दो दशकों में हड़बड़ी में सुप्रशासन और विचारधारा को एक दूसरे के खिलाफ सिद्घ करने का आंदोलन चलने की जरूरत क्यों पड़ी ? भारत में कुल मिलाकर तीन वैचारिक प्रतिष्ठान आसानी से चिन्हित किए जा सकते हैं। विभिन्न साम्यवादी दलों के नेतृत्व में साम्यवादी वैचारिक मंडल और संघ परिवार के नेतृत्व में एकात्ममानव दर्शन पर आधारित भारतीय वैचारिक मंडल। तीसरा खेमा, जिसे सही अर्थो में वैचारिक मंडल नहीं कहा जा सकता, सोनिया गांधी की पार्टी का है जिसमें सत्ता सुख भोगने के लालच में विभिन्न विचारधाराओं के वाहक अपनी सुविधा अनुसार एक छतरी के नीचे एकत्रित हैं। इस खेमे में नक्सलवाद से लेकर हिन्दुओं की चर्चा करने वालों तक, विशुद्घ पूंजीवाद से लेकर शत-प्रतिशत राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था तक के पक्षधर भी हैं। इसमें अभी भी मुसलमानों को अलग राष्ट्र मानने के पक्षधर हैं और ईसाई स्थान का सपना संजोने वाले भी ही इस खेमे में शामिल हैं। बाबरी ढांचे के टूटने पर खून की नदियां बहाने की धमकियां देने से लेकर शयनगृह में छिप कर ताली बजाने वाले भी इसी खेमे में है। अमेरिका के आगे दंडवत करने वाले भी इसी खेमे में है और उसे सबक सिखाने वाले भी इसी खेमे में है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि इस खेमे की न कोई अपनी पहचान है और न ही कोई प्रतिबद्घता। भारत की राजनीति में जिन देशी-विदेशी शक्तियों के अपने निहित स्वार्थ हैं उनके लिए सोनिया गांधी की पार्टी जैसा खेमा ही सबसे ज्यादा अनुकू ल होता है। सोवियत रूस के पतन के बाद अमरीका के लिए साम्यवादी वैचारिक मंडलों की चुनौती एक प्रकारी से समाप्त हो गई थी। भारत में इसकी शक्ति पहले भी पश्चिमी बंगाल में ही सिमट कर रह गई थी और इसे निर्णायक चोट ममता बनर्जी ने पहुंचा ही दी थी। इसलिए इतना स्पष्ट ही था कि आने वाले समय में भारत की राजनीति में मुख्य दंगल संघ परिवार के नेतृत्व में राष्ट्रवादी शक्तियों के भारतीय वैचारिक मंडल और सोनिया गांधी की पार्टी और उसके सहयोगी खेमे में होने वाला है।
मान लीजिए सोनिया गांधी पार्टी का खेमा हार जाता है तो भारत की सत्ता के केंद्र में भारतीय वैचारिक प्रतिष्ठान स्थापित हो सकता है, और यदि उसने अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल के प्रयोगों से सबक हासिल कर लिया तो वह लंबे समय तक इस केंद्र में रह भी सकता है। सैम्युअल हंटिंगटन ने जिन सभ्यताओं के संघर्ष की भविष्यवाणी की है, उसके अनुसार भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों के केंद्र में आ जाने से भारतीय संस्कृति और सभ्यता एक बार फिर विश्व में अपना सम्मानपूर्वक स्थान ग्रहण कर सकती है। इसलिए भारत में रुचि लेने वाली देशी- विदेशी शक्तियों को हर हालत में कांग्रेस-1 के पराजित हो जाने पर कांग्रेस-2 को स्थापित करने के प्रयास करने ही थे। लगता है कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस-1 के स्थान पर कांग्रेस-2 के रूप में ही आगे बढ़ाई जा रही है। यही कारण है कि अरविंद केजरीवाल उन सब प्रश्नों पर बात करने से बचते हैं जो इस देश के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। आश्चर्य है कि जब कभी इन मुददों पर विवशता में बोलते भी हैं तो उनके विचारों में और कांग्रेस-1 के विचारों में कोई मौलिक अंतर दिखाई नहीं देता। कश्मीर में जनमत संग्रह कराने के प्रश्न पर जो बात पिछले पांच दशकों से कांग्रेस कह रही है, पाकिस्तान कह रहा है, आतंकवादी कह रहे हैं वही बात इस पार्टी के प्रशांत भूषण कह रहे हैं। अनुच्छेद 370 पर आम आदमी पार्टी की वही राय है जो कांग्रेस (आई) की है। आतंकवाद पर भारत और माओवाद प्रभावित राज्यों से सेना को हटाने या फिर वहां उनकी शक्ति को अत्यंत क्षीण करने की बात कांग्रेस-1 भी कह रही है और आम आदमी पार्टी भी कह रही है। कांग्रेस (आई) भी यह मान कर चलती है कि इस देश में मुसलमानों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है और उनके लिए अलग से कानून बनाया जाना चाहिए। मोटे तौर पर ह्यआम आदमी पार्टी ह्णभी यही कहती है। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह भी यह कहते हैं कि इस देश में जहां भी मुस्लिम आतंकवादी मारा जाता है वह फर्जी एनकांउटर होता है। केजरीवाल की पार्टी का भी यही मत है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मामले में आम आदमी पार्टी को भी यही लगता है कि उनका ऑडिट कर देने से समस्या हल हो जाएगी।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं । मोटे तौर पर नीति के मामले में सोनिया गांधी की पार्टी और आम आदमी पार्टी में कोई अंतर नहीं है। बहस केवल इस बात को लेकर हो रही है कि इनके प्रशासन में भ्रष्टाचार बहुत ज्यादा है' जब हम आएंगे भ्रष्टाचार को खत्म करने की कोशिश करेंगे। जहां तक वैचारिक नीति का प्रश्न है 'आप' भी कांग्रेस का ही प्रतिरूप है इसलिए जिन पूंजीवादी प्रतिष्ठानों को सोनिया कांग्रेस के गिरने का खतरा दिखाई देता है उन्होंने तुरंत 'आप' पर दांव लगाना शुरू कर दिया है क्योंकि उन्हे लगता है'आप' से वैचारिक नीतिगत निरंतरता बनी रहेगी। इसलिए देशी-विदेशी शक्तियों के गर्हित हित प्रभावित नहीं होंगे। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यदि राष्ट्रवादी शक्तियां सत्ता में आ जाती हैं तो सभ्यताओं के संघर्ष में एक ऐसी सभ्यता फिर से अंगड़ाई लेने लगेगी जिसे अभी तक विश्व शक्तियों ने हाशिए पर धकेल रखा है।
The Nehru Returns
देश का दुर्भाग्य ही था कि 1100 व़ी, शताब्दी मे पृथ्वीराज चौहान 17 बार युद्ध जीत के 18 वी बार मोहम्मद गोरी से हार गये।
देश का दुर्भाग्य ही था कि 1500 वी शताब्दी में मेवाड़ के महाराणा सांगा, बाबर को हरा ना सके।
देश का दुर्भाग्य था 1600 वी शताब्दी मे शूरवीर हेमचन्द्र अकबर से जीती हुई लड़ाई धोखे से हार गये।
देश का दुर्भाग्य ही था कि 1600 वी शताब्दी मे कुछ गद्दार लोगो की वजह से महाराणा प्रताप हल्दीघाटी की लड़ाई मे अकबर को हरा ना सके।
देश का दुर्भाग्य ही था कि छत्रपति शिवाजी ओरंगजेब को हरा ना पाए.
देश का दुर्भाग्य था कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे हम अंग्रेज़ो को नहीं हरा पाए.
देश का दुर्भाग्य था कि सुभाषचन्द्र बोस की अंग्रेज़ो से युद्ध से पहले ही मौत हो गयी।
देश का दुर्भाग्य ही था कि सरदार पटेल की जगह नेहरू को प्रधानमन्त्री बना दिया गया।
देश का दुर्भाग्य ही था कि लाल बहादुर शास्त्री जी को धोखे से मार दिया गया।
और वर्तमान में देश का दुर्भाग्य ही होगा यदि हम इस बार वल्लभभाई पटेल जैसे मजबूत इरादों के वाले नरेन्द्रभाई मोदी को प्रधानमन्त्री ना बन पाए।
(याद रहे- युग दोहरा रहा है, केजरीवाल इस समय नेहरु की भूमिका में है, नेहरु की तरह वो भी कश्मीर को पाकिस्तान को देने के पक्ष में है और मोदी जी वल्लभभाई पटेल की भूमिका में, जो सशक्त एवं समृद्ध दिन्दुस्तान बनाने के लिए संकल्पबद्ध है।)
हे भारत राष्ट्र के बुद्धिशील नागरिकों, आओ इस बार हम नया इतिहास बनाएँ -- दोहराएँ नहीं।।।
देश का दुर्भाग्य ही था कि 1500 वी शताब्दी में मेवाड़ के महाराणा सांगा, बाबर को हरा ना सके।
देश का दुर्भाग्य था 1600 वी शताब्दी मे शूरवीर हेमचन्द्र अकबर से जीती हुई लड़ाई धोखे से हार गये।
देश का दुर्भाग्य ही था कि 1600 वी शताब्दी मे कुछ गद्दार लोगो की वजह से महाराणा प्रताप हल्दीघाटी की लड़ाई मे अकबर को हरा ना सके।
देश का दुर्भाग्य ही था कि छत्रपति शिवाजी ओरंगजेब को हरा ना पाए.
देश का दुर्भाग्य था कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम मे हम अंग्रेज़ो को नहीं हरा पाए.
देश का दुर्भाग्य था कि सुभाषचन्द्र बोस की अंग्रेज़ो से युद्ध से पहले ही मौत हो गयी।
देश का दुर्भाग्य ही था कि सरदार पटेल की जगह नेहरू को प्रधानमन्त्री बना दिया गया।
देश का दुर्भाग्य ही था कि लाल बहादुर शास्त्री जी को धोखे से मार दिया गया।
और वर्तमान में देश का दुर्भाग्य ही होगा यदि हम इस बार वल्लभभाई पटेल जैसे मजबूत इरादों के वाले नरेन्द्रभाई मोदी को प्रधानमन्त्री ना बन पाए।
(याद रहे- युग दोहरा रहा है, केजरीवाल इस समय नेहरु की भूमिका में है, नेहरु की तरह वो भी कश्मीर को पाकिस्तान को देने के पक्ष में है और मोदी जी वल्लभभाई पटेल की भूमिका में, जो सशक्त एवं समृद्ध दिन्दुस्तान बनाने के लिए संकल्पबद्ध है।)
हे भारत राष्ट्र के बुद्धिशील नागरिकों, आओ इस बार हम नया इतिहास बनाएँ -- दोहराएँ नहीं।।।
Monday, January 20, 2014
इटली में नन ने बच्चे को जन्म दिया
इटली में नन ने बच्चे को जन्म दिया
Indo Asian News Service, Last Updated: जनवरी 18, 2014 11:20 PM IST
Rs.543 p.m. में – अपने परिवार को दें 1 करोड़ की सुरक्षा
पेट में भयंकर दर्द होने पर उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जहां अल्ट्रा साउंड स्कैन में खुलासा हुआ कि वह पूर्णकालिक गर्भवती है। शुक्रवार को नन ने सामान्य प्रसव के तहत बच्चे को जन्म दिया।
एक पादरी फैब्रिजिओ बोरेलो ने कहा, 'बच्चे भगवान की एक रचना होते हैं और हम मानव जीवन का अत्यंत गहरा सम्मान करते हैं। पोप फ्रांसिस ने खुद ही कहा है कि मानवीय भूलों को किनारे रखते हुए व्यक्तिगत मर्यादा का सम्मान किया जाना चाहिए।' उन्होंने कहा कि नन अपने बच्चे का ध्यान रखेगी।
पादरी ने कहा कि कान्वेंट में अन्य नन को भी गर्भ का पता नहीं था और बच्चे के जन्म पर सभी 'हतप्रभ' हैं।
केजरीवाल के एक ओर झूठ की पोल
युगांडा उच्चायोग ने केजरीवाल को चिट्ठी लिखने का दावा खारिज किया
NDTVcom, Last Updated: जनवरी 20, 2014 07:03 PM IST
Rs.543 p.m. में – अपने परिवार को दें 1 करोड़ की सुरक्षा
इससे पहले, दिल्ली के चार पुलिसकर्मियों के निलंबन की मांग को लेकर धरने पर बैठे केजरीवाल ने कहा था कि युगांडा उच्चायोग की महिला प्रतिनिधि ने दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती को पत्र लिख कर देह व्यापार और मादक पदार्थो के तस्करों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनका आभार जताया है।
केजरीवाल ने युगांडा उच्चायोग की महिला प्रतिनिधि की लिखी कथित चिट्ठी को हवा में लहराकर दिखते हुए कहा था, 'उन्होंने शुक्रवार को हमें कार्रवाई के लिए शुक्रिया कहा है। उन्होंने कहा कि युगांडा से कई महिलाओं को काम देने के नाम पर लाया जाता है और उन्हें देह व्यापार में झोंक दिया जाता है।'
दरअसल, पिछले दिनों एक छापे के दौरान केजरीवाल सरकार के मंत्री और पुलिस के बीच विवाद के बाद पुलिस और दिल्ली सरकार के बीच तनातनी की स्थिति बनी हुई है। केजरीवाल आरोपी पुलिसवालों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, जबकि पुलिस का कहना है कि मंत्री सोमनाथ भारती ने उनके काम में हस्तक्षेप किया। दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन इलाके में दिल्ली सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती के छापे के बाद यह मामला गरमाया था।
'मैं भी आम आदमी' सदस्यता अभियान
मोदी और राहुल गांधी ने आम आदमी पार्टी जॉइन की!नवभारतटाइम्स.कॉम | Jan 20, 2014, 07.29PM IST
नई दिल्ली
क्या अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, बीजेपी के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और माफिया डॉन दाऊद इब्राहिम ने आम आदमी पार्टी जॉइन कर ली है? अगर AAP के रेकॉर्ड पर यकीन करें तो 10 जनवरी से 26 जनवरी के बीच 'मैं भी आम आदमी' के नाम से जारी पार्टी के नि:शुल्क विशेष सदस्यता अभियान के तहत इन लोगों ने सोमवार को पार्टी की सदस्यता के लिए अर्जी दी जिसे पार्टी ने स्वीकार कर लिया।
यकीन नहीं होता तो उन्हें आम आदमी पार्टी की ओर से दिया गया मेंमबरशिप नंबर नीचे देख सकते हैं। दिमाग घूम गया ना? चलिए आपको चक्कर से बाहर निकालते हैं। दरअसल आम आदमी पार्टी इन दिनों जोर-शोर से नि:शुल्क सदस्यता अभियान चला रही है। पार्टी का टारगेट 1 करोड़ लोगों को अपने साथ जोड़ना है। इसके तहत लोगों को www.aamaadmiparty.org/join-us ऑनलाइन फॉर्म भरवाकर भी सदस्य बनाया जा रहा है।
[ जारी है ]
ऑनलाइन सदस्यता के नाम पर बस खानापूर्ति की कई शिकायतें सामने आ रही थीं। बताया जा रहा था कि कोई भी किसी भी नाम से यहां सदस्य बन सकता है। हमने यह जांचने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के नाम से फॉर्म भरे। हैरत की बात यह रही कि यह फॉर्म स्वीकार कर लिया गया और बकायदा तीनों को मेंबरशिप नंबर के साथ स्वीकृति की सूचना दे दी गई।
सदस्यता के लिए भरी गई जानकारियों की कोई जांच-पड़ताल नहीं की गई। पार्टी से जुड़ने वाले शख्स की पृष्ठभूमि तो छोड़िए, उसके नाम तक की ठीक से पड़ताल नहीं की जा रही है। आपको बस फॉर्म भरना है और आप आम आदमी पार्टी के सदस्य बन गए। आपको बाकायदा मेंबरशिप नंबर भी दे दिया जाता है। साथ में नीचे संदेश होता है, 'आप अपने संदर्भ के लिए इस पेज का प्रिंट आउट रख सकते हैं। आप को यह प्रिंट आउट किसी भी AAP कार्यालय को भेजने की जरूरत नहीं है।'
पढ़ें ब्लॉगः तीन बातें, जो AAP को करा सकती हैं पास
गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल ने सदस्यता अभियान शुरू करते हुए कहा था कि 26 जनवरी तक पार्टी का एक करोड़ सदस्य जोड़ने का उद्देश्य है। पार्टी अपने इस सदस्यता अभियान को बेहद सफल बता रही है। 14 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया गया कि पार्टी ने अब तक 10 लाख लोगों को सदस्य बना लिया है। ऐसे में आप का ऑनलाइन सदस्यता अभियान जिस तरह से चल रहा है, उससे पार्टी के दावों पर सवाल उठ रहे हैं।
सुनो राहुल जी, मै बताता हूं क्या दिया कांग्रेस ने देश को ?
सुनो राहुल जी, मै बताता हूं क्या दिया कांग्रेस ने देश को ?
17 जनवरी 2014 को कांग्रेस में सर्वे सर्वा नेता राहुल गाँधी ने कांग्रेस पार्टी द्वारा भारत को दी गयी उपलब्धियों का जिक्र किया ! राहुल गाँधी कुछ बातो का जिक्र करना भूल गए है, मै उन मुद्दों को यहाँ रख रहा हूँ –
1. कश्मीर का मुद्दा : अगर पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु ने सरदार साहब की बात मानी होती और सरदार साहब के अनुसार काम करा होता तो कश्मीर नाम का कोई मुद्दा ही नही होता !
2. चीन से युद्ध में भारत की हार: अंतरराष्ट्रीय नेता बनने के चक्कर में श्री नेहरु ने चीन का मुकाबला पूरी शक्ति के साथ नहीं किया, तथा पैदा हुए भारत को युद्ध के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक रूप से गड्ढे में धकेल दिया !
3. आपातकाल : श्रीमान राहुल गाँधी, आप लोकतंत्र की बहुत बाते करते हो, और बोलते हो लोकतंत्र कांग्रेस पार्टी के डीएनए में है ! आजाद भारत में पहली बार आपातकाल आपकी दादी श्रीमती इन्द्र गाँधी ने ही लगाया था तथा लोकतंत्र को कलंकित करा था ! तो आपके अनुसार इन्दिरा जी में कांग्रेस पार्टी का डीएनए नही है ?
4. राजनीति का अपराधीकरण : जैसा की सब जानते है की आजादी के 67 सालो में लगभग 60 साल आपके परिवार, या आपके परिवार समर्थित व्यक्ति ने ही इस देश पर राज करा है, तो 1977 के बाद राजनीती में अपराधी लोगो की भागीदारी आपकी ही पार्टी के नेतृत्व में शुरू हुई थी, जो अब लगभग हर पार्टी में पहुंच चुकी है !
5. ओपरेशन ब्लू स्टार : जी हाँ, आप की ही पार्टी ने पहले पंजाब में आतंकवाद को बढावा दिया तथा बाद में स्वर्ण मंदिर में निर्दोषों पर गोलियाँ चलवाई !
6. शाह बानो केस : जी हाँ, सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए निर्णय को पलट कर आपके पूज्य पिताजी ने शाह बानो तथा इनके जैसी तमाम मुस्लिम महिलाओं को मुख्यधारा में आने से वंचित कर दिया, आज भारत में मुस्लिम भाइयो की जो आर्थिक दशा है उसका सबसे बड़ा कारण यही है, आपने एक बच्चे की माँ को मजूबत नही होने दिया (सामाजिक, आर्थिक तथा शेक्षणिक रूप से) !
7. आपने देश को अनगिनत भ्रष्टाचार दिए जैसे : 2जी, सिडब्लूजी, कॉलगेट इत्यादि !
8. आजादी के 67 वर्षों बाद भी देश के करोडो लोगो को सड़क, पानी तथा बिजली भी नही मिल पायी है !
9. 28 रूपया प्रति दिन कमाने वाला व्यक्ति आपकी नजरो में गरीब नही है !! इसी प्रकार से आपकी पार्टी गरीबो का मजाक उड़ाती है !
10. प्रतिदिन 45 किसान आत्महत्या कर रहे है, यह भी आपने ही दिया है देश को !
लिस्ट बहुत लंबी है राहुल जी, अगर कभी समय मिले तो गूगल पर "Corrupt Party in the World" लिख कर पूछना, आपको पता लग जायेगा !!
बस बाबा अब रहम करो !!! बहुत कुछ दे चुके हो आप
17 जनवरी 2014 को कांग्रेस में सर्वे सर्वा नेता राहुल गाँधी ने कांग्रेस पार्टी द्वारा भारत को दी गयी उपलब्धियों का जिक्र किया ! राहुल गाँधी कुछ बातो का जिक्र करना भूल गए है, मै उन मुद्दों को यहाँ रख रहा हूँ –
1. कश्मीर का मुद्दा : अगर पूर्व प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु ने सरदार साहब की बात मानी होती और सरदार साहब के अनुसार काम करा होता तो कश्मीर नाम का कोई मुद्दा ही नही होता !
2. चीन से युद्ध में भारत की हार: अंतरराष्ट्रीय नेता बनने के चक्कर में श्री नेहरु ने चीन का मुकाबला पूरी शक्ति के साथ नहीं किया, तथा पैदा हुए भारत को युद्ध के द्वारा आर्थिक तथा सामाजिक रूप से गड्ढे में धकेल दिया !
3. आपातकाल : श्रीमान राहुल गाँधी, आप लोकतंत्र की बहुत बाते करते हो, और बोलते हो लोकतंत्र कांग्रेस पार्टी के डीएनए में है ! आजाद भारत में पहली बार आपातकाल आपकी दादी श्रीमती इन्द्र गाँधी ने ही लगाया था तथा लोकतंत्र को कलंकित करा था ! तो आपके अनुसार इन्दिरा जी में कांग्रेस पार्टी का डीएनए नही है ?
4. राजनीति का अपराधीकरण : जैसा की सब जानते है की आजादी के 67 सालो में लगभग 60 साल आपके परिवार, या आपके परिवार समर्थित व्यक्ति ने ही इस देश पर राज करा है, तो 1977 के बाद राजनीती में अपराधी लोगो की भागीदारी आपकी ही पार्टी के नेतृत्व में शुरू हुई थी, जो अब लगभग हर पार्टी में पहुंच चुकी है !
5. ओपरेशन ब्लू स्टार : जी हाँ, आप की ही पार्टी ने पहले पंजाब में आतंकवाद को बढावा दिया तथा बाद में स्वर्ण मंदिर में निर्दोषों पर गोलियाँ चलवाई !
6. शाह बानो केस : जी हाँ, सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए निर्णय को पलट कर आपके पूज्य पिताजी ने शाह बानो तथा इनके जैसी तमाम मुस्लिम महिलाओं को मुख्यधारा में आने से वंचित कर दिया, आज भारत में मुस्लिम भाइयो की जो आर्थिक दशा है उसका सबसे बड़ा कारण यही है, आपने एक बच्चे की माँ को मजूबत नही होने दिया (सामाजिक, आर्थिक तथा शेक्षणिक रूप से) !
7. आपने देश को अनगिनत भ्रष्टाचार दिए जैसे : 2जी, सिडब्लूजी, कॉलगेट इत्यादि !
8. आजादी के 67 वर्षों बाद भी देश के करोडो लोगो को सड़क, पानी तथा बिजली भी नही मिल पायी है !
9. 28 रूपया प्रति दिन कमाने वाला व्यक्ति आपकी नजरो में गरीब नही है !! इसी प्रकार से आपकी पार्टी गरीबो का मजाक उड़ाती है !
10. प्रतिदिन 45 किसान आत्महत्या कर रहे है, यह भी आपने ही दिया है देश को !
लिस्ट बहुत लंबी है राहुल जी, अगर कभी समय मिले तो गूगल पर "Corrupt Party in the World" लिख कर पूछना, आपको पता लग जायेगा !!
बस बाबा अब रहम करो !!! बहुत कुछ दे चुके हो आप
Sunday, January 19, 2014
भारत निर्माण के प्रमाण
आजकल टीवी पर एक विज्ञापन आना शुरू हुआ है.."भारत निर्माण के प्रमाण". ये विज्ञापन कांग्रेस की सरकार के पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में हुए विकास को दिखाने के लिए बनाया गया है.
इस विज्ञापन में एक आदमी नींद में 10 वर्ष पीछे के समय में पहुँच जाता है. और वो सपने में देखता है कि मोबाईल फोन, फ्लाईओवर, एअरपोर्ट, दिल्ली मेट्रो सब कुछ गायब है. ये विज्ञापन कहना चाहता है कि ये सब चीजें पिछले दस वर्षों में आई हैं.
अब देखिये इन सब बातों की सच्चाई :
भारत में मोबाईल फोन की शुरुआत 31 July 1996 को हुई, अब से लगभग 18 वर्ष पहले. अर्थात 10 वर्ष पहले भी मोबाईल फोन मौजूद था.
दिल्ली में पहले फ्लाईओवर का निर्माण सन 1982 में हुए एशियन गेम्स के समय में हुआ, अब से लगभग 32 वर्ष पहले. अर्थात 10 वर्ष पहले भी फ्लाईओवर मौजूद था.
दिल्ली मेट्रो की शुरुआत सन 2002 में हुई, अब से लगभग 12 वर्ष पहले. अर्थात 10 वर्ष पहले भी दिल्ली में मेट्रो मौजूद थी. (उद्घाटन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा)
हाँ, दिल्ली में एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का निर्माण जरूर इस सरकार के कार्यकाल में सन 2010 में राष्ट्रमंडल गेम्स के समय में किया गया, लेकिन राष्ट्रमंडल गेम्स के लिए किये गए निर्माण कार्यों में कितने हज़ार करोड़ का घोटाला किया गया ये सारा देश जानता है.
इस विज्ञापन में एक आदमी नींद में 10 वर्ष पीछे के समय में पहुँच जाता है. और वो सपने में देखता है कि मोबाईल फोन, फ्लाईओवर, एअरपोर्ट, दिल्ली मेट्रो सब कुछ गायब है. ये विज्ञापन कहना चाहता है कि ये सब चीजें पिछले दस वर्षों में आई हैं.
अब देखिये इन सब बातों की सच्चाई :
भारत में मोबाईल फोन की शुरुआत 31 July 1996 को हुई, अब से लगभग 18 वर्ष पहले. अर्थात 10 वर्ष पहले भी मोबाईल फोन मौजूद था.
दिल्ली में पहले फ्लाईओवर का निर्माण सन 1982 में हुए एशियन गेम्स के समय में हुआ, अब से लगभग 32 वर्ष पहले. अर्थात 10 वर्ष पहले भी फ्लाईओवर मौजूद था.
दिल्ली मेट्रो की शुरुआत सन 2002 में हुई, अब से लगभग 12 वर्ष पहले. अर्थात 10 वर्ष पहले भी दिल्ली में मेट्रो मौजूद थी. (उद्घाटन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा)
हाँ, दिल्ली में एयरपोर्ट के नए टर्मिनल का निर्माण जरूर इस सरकार के कार्यकाल में सन 2010 में राष्ट्रमंडल गेम्स के समय में किया गया, लेकिन राष्ट्रमंडल गेम्स के लिए किये गए निर्माण कार्यों में कितने हज़ार करोड़ का घोटाला किया गया ये सारा देश जानता है.
Saturday, January 18, 2014
केजरीवाल के 30 झूठ
केजरीवाल के 30 झूठ
===========================
1)काँग्रेस से समर्थन नही लूंगा.. सच=> समर्थन लिया .
2)मै इनकमटैक्स कमिशनर हूँ .. सच=> इनकमटैक्स कमिशनर नही.
===========================
1)काँग्रेस से समर्थन नही लूंगा.. सच=> समर्थन लिया .
2)मै इनकमटैक्स कमिशनर हूँ .. सच=> इनकमटैक्स कमिशनर नही.
3)फोर्ड फाऊंडेशन से चंदा नही लिया. सच=>बाद में चंदा लेनेकी बात कबूली
4)स्टडी लीव्ह में कुछ गलत नहीं किया .. सच=> फोकट का हराम का खाया हूआ सरकारी पगार 9 लाख 27 हजार नोटिस के बाद दिया ...
5)तीन महीनों में अंजलि दमानिया , भूषण, मंयक गांधी के भ्रष्टाचार की जांच करके रिपोर्ट दूंगा ...
सच => अभी तक कुछ नहीं
सच => अभी तक कुछ नहीं
6)अण्णा सिम कार्ड- एक साल तक चलेगा, सेवा देगा ... (कोर्ट में केस है)
सच =>एक महीने में कार्ड ही बंद
सच =>एक महीने में कार्ड ही बंद
7)TV डिबेट में कहा, भ्रष्ट अंजलि दमानिया को पार्टी से निकाला है
सच=>अंजलि आज भी महाराष्ट्र में AAP की सचिव
सच=>अंजलि आज भी महाराष्ट्र में AAP की सचिव
8)" स्वराज " किताब मैंने खुद लिखा सच=> किताब के असली लेखक ने केजरीवाल के खिलाफ पुलिस केस किया ...
9)कहते है - सोनिया गांधी से संबंध नहीं ... सच => सरकारी नोकरी में दिल्ली के बाहर तबादला posting रोकने के लिये , सोनिया गांधी का सिफारिश पत्र लिया ...
10)बटाला हाऊस एन्काउंटर को फर्जी , झूठ कहा .. सच => कोर्ट ने बटाला हाऊस केस को असली सच्चा बताया
~●~दिल्ली चुनाव में के झूठ~●~
11)सरकारी गाडी नहीं लेंगे ... सच=>vip नंबर वाली गाडी तो लीं .
12)हम सरकारी मकान नही लेंगे . सच => सरकारी मकान ले लिये ..
13)सब के सब परिवारों को 700 लीटर पानी मुक्त देंगे .... सच=>701लीटर पानी वाले परिवार को 13% मंहगा पानी
14)सब के सब परिवारों के बिजली बिल 50% कम किये जायेंगे. ... सच=>आधे के उपर दिल्ली की बिजली के दाम 13% मंहगे किये और बाकियों को सिर्फ 23% सस्ते किये
15)चुनाव के पहले पानी के मीटर हवा से चलते है, मीटर खराब है .. सच=> चुनाव के बाद वहीं मीटर अच्छे
16)चुनाव के पहले लाईट मीटर खराब है , जादा रिडींग दिखाते है .. सच => चुनाव के बाद वही मीटर अच्छे, सिर्फ मीटर की जांच होगी
17)15000 आटो रिक्षा फ्री में देंगे .... सच => अब कह रहे हैं ,आटो रिक्षा नही , परमिट-लाइसेंस देंगे
18) कानून मंत्री सोमनाथ भारती ने कुछ गलत नही किया .. सच => कोर्ट ने सोमनाथ भारती को 116 करोड भ्रष्टाचार केस दोषी बताया है
19)शाजिया कैमरे पर 20-20 हजार रूपये पगार के लिये मांगे (sting मे) झूठ => शाजिया को क्लीन चीट देकर स्टिंग को नकली बनाया
20)पुलिस सुरक्षा नहीं लेंगे .. सच => पुलिस सुरक्षा ले लीं
21)शीला दीक्षित को जेल में डालूँगा सच => अब कह रहे है शीला दीक्षित के खिलाफ सबूत ही नहीं ...
22)जनता दरबार लगायेंगे सच=>अब दरबार नही लगायेंगे
23)राखी बिड़ला की उस गेंद वाले बच्चे के परिवार ने माफी नहीं मांगी सच =>वहा के सेकडों लोग कह रहे है माफी मांगी
24)पहले कहा बिन्नी ने मंत्रीपद मांगा नही .. सच =>अब कह रहे हैं, बिन्नी मंत्रीपद मांग रहा था
25)पहले कहा बिजली बिल मत भरो , सबके गलत बिल माफ करेंगे ...........सच => अब कह रहे है , बिल वक्त पर भरो , किसीका भी गलत बिल माफ नहीं होगा
26)संतोष कोली के भाई पर , महीला के घर मे फटाके फोड़े ,महीला विनयभंग की पुलिस केस हूई
झूठ => केजरीवाल ने कहा ऐसा कुछ नहीं किया , महीला झूठ बोल रही है
झूठ => केजरीवाल ने कहा ऐसा कुछ नहीं किया , महीला झूठ बोल रही है
27)हम हमारे कार्यकर्ताओं मे रेवड़ियों के तरफ पद नही बाटेंगे
सच => कुमार विश्वास को दिल्ली हिन्दी अकादमी का अध्यक्ष बनाया , जब की विश्वास उत्तर प्रदेश का रहने
वाला है
सच => कुमार विश्वास को दिल्ली हिन्दी अकादमी का अध्यक्ष बनाया , जब की विश्वास उत्तर प्रदेश का रहने
वाला है
28)पहले कहा - अण्णा वाला जनलोकपाल 15 दिन में लायेंगे ...
सच => 20 दिन हो गये और अब कह रहे है , अण्णा वाला नही -उत्तराखंड जैसा लोकायुक्त कानून लायेंगे
सच => 20 दिन हो गये और अब कह रहे है , अण्णा वाला नही -उत्तराखंड जैसा लोकायुक्त कानून लायेंगे
29)केजरीवाल ने कल कहा जो AAP विधायक है , वो लोकसभा चुनाव नही लडेगा ...
सच => अब कह रहे ,विधायक को भी लोकसभा चुनाव का टिकट मिलेगा
सच => अब कह रहे ,विधायक को भी लोकसभा चुनाव का टिकट मिलेगा
30)केजरीवाल ने पहले कहा , NGO और पार्टी के लिये विदेशी चंदा लिया नही ...
सच => विदेश से भरपूर चंदा लिया , पाकिस्तान से भी
सच => विदेश से भरपूर चंदा लिया , पाकिस्तान से भी
महिला विरोधी अरविंद केजरीवाल द्वारा गृहमंत्रालय के समक्ष अनशन के पीछे की गहरी साजिश को समझिए!
महिला विरोधी अरविंद केजरीवाल द्वारा गृहमंत्रालय के समक्ष अनशन के पीछे की गहरी साजिश को समझिए!
संदीप देव, नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके पूरे मंत्रीमंडल का महिला विरोधी चेहरा सामने आ गया है। अराजकता फैलाते हुए जिस तरह से आम आदमी पार्टी के कानून मंत्री ने विदेशी महिलाओं के घर में जबरन प्रवेश किया और उनके लोगों ने जिस तरह से उन महिलाओं का शारीरिक शोषण किया, वह दर्शाता है कि यह सरकार नहीं, बल्कि अराजक लोगों का समूह है, जो देश की कानून व्यवस्था को खुलेआम ठेंगा दिखा रहा । वैसे भी निचले से लेकर ऊपरी अदालत द्वारा अवैध और आपत्तिजनक ठहराए जा चुके कानून मंत्री के समर्थन में जिस तरह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अदालत को गलत ठहराया था, उससे जाहिर होता है कि वह संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की नहीं, बल्कि नक्सलियों की भाषा बोल रहे हैं। देवयानी के मामले में अमेरिकी बत्तमीजी पर देश की मीडिया और बुद्धिजीवियों ने तो खूब बबाल मचा था, लेकिन आज वही मीडिया और बुद्धिजीवी इस देश में दूसरे देश की महिलाओं के साथ एक चुनी हुई सरकार के मंत्री व उसके समर्थकों द्वारा किए गए गैरकानूनी काम पर मौन हैं। यह साबित करने के लिए काफी है कि वामपंथी धरातल पर दिल्ली की सरकार, मीडिया और बुद्धिजीवियों का महागठजोड़ काम कर रहा है। इतना ही नहीं, विदेशी महिलाओं के यौन उत्पीड़न मामले को हल्का बनाने के लिए पुलिस और गृहमंत्रालय पर दबाव का जो खेल अरविंद केजरीवाल मंत्रीमंडल खेलने जा रहा है, उसका मकसद इस पूरे मामले से ध्यान भटकाने के अलावा अपने खिलाफ चल रही फॉरन फंडिंग की जांच को प्रभावित करना भी है।
आइए पहले मामले को समझें
15 जनवरी 2014 की रात दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती अपने समर्थकों के साथ दिल्ली के खिड़की गांव में किराए पर रही रहीं नाइजीरिया और युगांडा की महिलाओं के घर में न केवल जबरन घुसे, बल्कि उन्हें जबरन रोक कर बंधक बनाने का प्रयास किया, उन पर वेश्यावृत्ति और ड्रग्स स्मगलिंग का गलत आरोप लगाया और यहां तक कि उन्हें अपने सामने ही पेशाब और शौच करने के लिए बाध्य किया। यही नहीं, उन विदेशी महिलाओं के साथ आम आदमी पार्टी की टोपी लगाए कानून मंत्री के साथ मौजूद समर्थकों ने मारपीट भी की और उन्हें जबरन गाड़ी में घुमाते रहे। नाइजीरिया और युगांडा के दूतावासों ने इस पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है।
यही नहीं, दिल्ली के इस अराजक कानून मंत्री के कारण इन दोनों देशों में रह रहे भारतीयों और खासकर भारतीय महिलाओं पर भी यौन और शारीरिक हिंसा की आशंका बढ़ गई है। विदेशी महिलाओं ने सोमनाथ भारती और उनके समर्थकों के खिलाफ मालवीय नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस के मुताबिक इन आरोपों में आईपीसी की धारा 342, 509 और अन्य कई धाराओं के तहत जबरन बंद करने और महिला की मर्यादा भंग करने में केस दर्ज हो सकता है। मंत्री महोदय पुलिस के साथ खुद ही चारों महिलाओं को एम्स ले गए थे और वहां उनका मेडिकल जांच कराया था। जांच में महिलाओं के ड्रग लेने की पुष्टि नहीं हुई है, जबकि कानून मंत्री ने इन महिलाओं पर ड्रग व वेश्यावृत्ति रैकेट चलाने का आरोप लगाते हुए छापा मारा था। विदेशी महिलाओं के वकील और पूर्व सलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने सोमनाथ भारती पर आरोप लगाया है कि कानून मंत्री की ओर से की गई छापेमारी के दौरान उन्होंने अपने समर्थकों के साथ महिलाओं को जबरन बंधक बनाकर उन्हें धमकी दी। साल्वे ने आरोप लगाते हुए कहा कि इनमें से एक महिला को शौचलय तक नहीं जाने दिया और मजबूरन उसे लोगों के सामने ही शौच करना पड़ा।
कानून क्या कहता है?
दिल्ली के कानून मंत्री को वेश्यावृत्ति व ड्रग रैकेट चलने की यदि शिकायत मिली थी तो कानून उन्हें इसकी शिकायत स्थानीय पुलिस प्रशासन से करना था और उनकी जांच रिपोर्ट के आने का इंतजार करना चाहिए था। यदि वह छापा ही मारना चाहते थे तो उन्हें पुलिस से कह कर अरेस्ट वारंट जारी कराना चाहिए था, लेकिन इसमें से किसी भी कानूनी पहलू का अनुपालन नहीं किया गया। हद देखिए कि इस नौटंकीबाज सरकार के मंत्रियों ने अपने छापेमारी की सूचना मीडिया को तो दी और मीडिया को लेकर घटना स्थल पर भी पहुंच गए ताकि उनके हीरोगिरी की जानकारी पूरे देश में फैले, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में उठा सकें। सरकार बनने के बाद से ही केजरीवाल सरकार के सभी मंत्री रात के औचक निरीक्षण के नाम पर पहले मीडिया को फोन पर इसकी जानकारी देते हैं और बाद में उनके कैमरे के समक्ष कार्रवाई का नाटक करते हैं। इस मामले में भी यही हुआ, लेकिन जो जरूरी था उसे भुला दिया गया। मसलन, स्थानीय पुलिस को सूचना नहीं दी गई।
देश के कानून पर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को नहीं है भरोसा!
संवैधानिक पदों पर आसीन मुख्यमंत्री और मंत्री पद के विपरीत अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने इस पूरे मामले को नौटंकी में तब्दील कर दिया जबकि यह साफ तौर पर विदेशी महिलाओं के साथ अभद्रता और यौन उत्पीड़न से जुड़ा मामला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पुलिस कमीश्नर से उस रात कानून मंत्री को कानून सिखाने की कोशिश करने वाले चार पुलिस अधिकारियों को तत्काल निलंबित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो सोमवार सुबह 11 बजे नॉर्थ ब्लॉक मतलब गृहमंत्रालय के समक्ष धरना दिया जाएगा। हद देखिए कि दिल्ली के उपराज्यपाल ने इस पूरे मामले की जांच सेवानिवृत जजों से कराने का फैसला 17 जनवरी को लिया था और इसका आदेश भी दिया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल को तो न देश के संविधान की इज्जत है और न ही न्यायपालिका पर भरोसा है! वह इस जांच आदेश को कूड़ा समझते हुए गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के पास जा पहुंचे और धरने की धमकी दे दी।
कानून के जानकारों के मुताबिक यदि जजों का पैनल जांच करता है तो अरविंद केजरीवाल मंत्रीमंडल के कानून मंत्री सोमनाथ भारती कटघरे में होंगे, इसलिए अरविंद केजरीवाल लोगों को गुमराह करने के पुराने खेल पर उतर आए हैं और धरने की बातें कर रहे हैं।
नक्सलियों की राह पर दिल्ली सरकार!
'राजा हरिचंद्र की कलयुगी संतान श्रीमान ईमानदार' अरविंद केजरीवाल सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती के बारे में अदालत ने क्या कहा था, देखिए, 'आरोपी पवन कुमार और उनके वकील (सोमनाथ भारती) का व्यवहार न सिर्फ बेहद आपत्तिजनक और अनैतिक है, बल्कि इससे सबूत भी प्रभावित होते हैं।' सीबीआई अदालत की इस कठोर टिप्पणी के बाद भ्रष्टाचार के आरोपी पवन कुमार के वकील सोमनाथ भारती ने अपनी ही पार्टी के एक और सदस्य प्रशांत भूषण की मदद से पहले हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन दोनों अदालतों ने इसे आपत्तिजनक मानते हुए याचिका रदद कर दी थी। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि उनके कानून मंत्री सोमनाथ भारती ईमानदार हैं और अदालत ने गलत फैसला दिया है। मतलब देश की नीचे से लेकर ऊपर तक की सभी अदालतें गलत है और जो केजरीवाल कह दें वह सही है। यह एकदम से नक्सली व्यवहार है, जिनका भरोसा देश के कानून व्यवस्था में नहीं होता है।
इसी के नक्शेकदम पर चलत हुए दिल्ली सरकार में नंबर-2 के मंत्री मनीष सिसोदिया ने इस पूरे विवाद पर एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि इस देश में किस संवैधानिक संस्था की बात की जा रही है। उनका भरोसा ऐसी संस्था में नहीं है। अब देश में ऐसी बात केवल और केवल माओवादी-नक्सलवादी करते हैं। इस टीम का आचरण भी नक्सलवादियों के समान ही लग रहा है।
इस अनशन के पीछे की गहरी साजिश को समझिए!
दूसरी तरफ दिल्ली हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को अवैध रूप से प्राप्त हुए विदेशी फंडिंग की जांच करने के लिए केंद्र सरकार को आदेश दिया है। केजरीवाल को मालूम है कि चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान अमेरिका से हो रही उनकी समूची फंडिंग का काला चिटठा खुल जाएगा। वैसे तो वह देश की कानून व्यवस्था पर अविश्वास जता कर पहले ही दर्शा चुके है कि इस पर आने वाले अदालती आदेश को भी वह नहीं मानेंगे और आम जनता को फिर से गुमराह करने का खेल खेलेंगे। लेकिन दूसरी तरफ वह गृहमंत्रालय पर अनशन के जरिए दबाव बनाने का खेल भी खेल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया व उनकी पूरी आम आदमी पार्टी विदेशी फंडिंग के मामले में फंस रही है। अरविंद की कोशिश है कि वह अनशन के जरिए गृहमंत्रालय को ब्लैकमेल करें ताकि लोकसभा चुनाव से पहले मंत्रालय अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक न करे और वह आम आदमी पार्टी के नाम पर दिल्ली की ही तरह पूरे देश की जनता को गुमराह कर सकें।
संदीप देव, नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके पूरे मंत्रीमंडल का महिला विरोधी चेहरा सामने आ गया है। अराजकता फैलाते हुए जिस तरह से आम आदमी पार्टी के कानून मंत्री ने विदेशी महिलाओं के घर में जबरन प्रवेश किया और उनके लोगों ने जिस तरह से उन महिलाओं का शारीरिक शोषण किया, वह दर्शाता है कि यह सरकार नहीं, बल्कि अराजक लोगों का समूह है, जो देश की कानून व्यवस्था को खुलेआम ठेंगा दिखा रहा । वैसे भी निचले से लेकर ऊपरी अदालत द्वारा अवैध और आपत्तिजनक ठहराए जा चुके कानून मंत्री के समर्थन में जिस तरह से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अदालत को गलत ठहराया था, उससे जाहिर होता है कि वह संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति की नहीं, बल्कि नक्सलियों की भाषा बोल रहे हैं। देवयानी के मामले में अमेरिकी बत्तमीजी पर देश की मीडिया और बुद्धिजीवियों ने तो खूब बबाल मचा था, लेकिन आज वही मीडिया और बुद्धिजीवी इस देश में दूसरे देश की महिलाओं के साथ एक चुनी हुई सरकार के मंत्री व उसके समर्थकों द्वारा किए गए गैरकानूनी काम पर मौन हैं। यह साबित करने के लिए काफी है कि वामपंथी धरातल पर दिल्ली की सरकार, मीडिया और बुद्धिजीवियों का महागठजोड़ काम कर रहा है। इतना ही नहीं, विदेशी महिलाओं के यौन उत्पीड़न मामले को हल्का बनाने के लिए पुलिस और गृहमंत्रालय पर दबाव का जो खेल अरविंद केजरीवाल मंत्रीमंडल खेलने जा रहा है, उसका मकसद इस पूरे मामले से ध्यान भटकाने के अलावा अपने खिलाफ चल रही फॉरन फंडिंग की जांच को प्रभावित करना भी है।
आइए पहले मामले को समझें
15 जनवरी 2014 की रात दिल्ली के कानून मंत्री सोमनाथ भारती अपने समर्थकों के साथ दिल्ली के खिड़की गांव में किराए पर रही रहीं नाइजीरिया और युगांडा की महिलाओं के घर में न केवल जबरन घुसे, बल्कि उन्हें जबरन रोक कर बंधक बनाने का प्रयास किया, उन पर वेश्यावृत्ति और ड्रग्स स्मगलिंग का गलत आरोप लगाया और यहां तक कि उन्हें अपने सामने ही पेशाब और शौच करने के लिए बाध्य किया। यही नहीं, उन विदेशी महिलाओं के साथ आम आदमी पार्टी की टोपी लगाए कानून मंत्री के साथ मौजूद समर्थकों ने मारपीट भी की और उन्हें जबरन गाड़ी में घुमाते रहे। नाइजीरिया और युगांडा के दूतावासों ने इस पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है।
यही नहीं, दिल्ली के इस अराजक कानून मंत्री के कारण इन दोनों देशों में रह रहे भारतीयों और खासकर भारतीय महिलाओं पर भी यौन और शारीरिक हिंसा की आशंका बढ़ गई है। विदेशी महिलाओं ने सोमनाथ भारती और उनके समर्थकों के खिलाफ मालवीय नगर थाने में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस के मुताबिक इन आरोपों में आईपीसी की धारा 342, 509 और अन्य कई धाराओं के तहत जबरन बंद करने और महिला की मर्यादा भंग करने में केस दर्ज हो सकता है। मंत्री महोदय पुलिस के साथ खुद ही चारों महिलाओं को एम्स ले गए थे और वहां उनका मेडिकल जांच कराया था। जांच में महिलाओं के ड्रग लेने की पुष्टि नहीं हुई है, जबकि कानून मंत्री ने इन महिलाओं पर ड्रग व वेश्यावृत्ति रैकेट चलाने का आरोप लगाते हुए छापा मारा था। विदेशी महिलाओं के वकील और पूर्व सलिसिटर जनरल हरीश साल्वे ने सोमनाथ भारती पर आरोप लगाया है कि कानून मंत्री की ओर से की गई छापेमारी के दौरान उन्होंने अपने समर्थकों के साथ महिलाओं को जबरन बंधक बनाकर उन्हें धमकी दी। साल्वे ने आरोप लगाते हुए कहा कि इनमें से एक महिला को शौचलय तक नहीं जाने दिया और मजबूरन उसे लोगों के सामने ही शौच करना पड़ा।
कानून क्या कहता है?
दिल्ली के कानून मंत्री को वेश्यावृत्ति व ड्रग रैकेट चलने की यदि शिकायत मिली थी तो कानून उन्हें इसकी शिकायत स्थानीय पुलिस प्रशासन से करना था और उनकी जांच रिपोर्ट के आने का इंतजार करना चाहिए था। यदि वह छापा ही मारना चाहते थे तो उन्हें पुलिस से कह कर अरेस्ट वारंट जारी कराना चाहिए था, लेकिन इसमें से किसी भी कानूनी पहलू का अनुपालन नहीं किया गया। हद देखिए कि इस नौटंकीबाज सरकार के मंत्रियों ने अपने छापेमारी की सूचना मीडिया को तो दी और मीडिया को लेकर घटना स्थल पर भी पहुंच गए ताकि उनके हीरोगिरी की जानकारी पूरे देश में फैले, जिसका फायदा लोकसभा चुनाव में उठा सकें। सरकार बनने के बाद से ही केजरीवाल सरकार के सभी मंत्री रात के औचक निरीक्षण के नाम पर पहले मीडिया को फोन पर इसकी जानकारी देते हैं और बाद में उनके कैमरे के समक्ष कार्रवाई का नाटक करते हैं। इस मामले में भी यही हुआ, लेकिन जो जरूरी था उसे भुला दिया गया। मसलन, स्थानीय पुलिस को सूचना नहीं दी गई।
देश के कानून पर अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को नहीं है भरोसा!
संवैधानिक पदों पर आसीन मुख्यमंत्री और मंत्री पद के विपरीत अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने इस पूरे मामले को नौटंकी में तब्दील कर दिया जबकि यह साफ तौर पर विदेशी महिलाओं के साथ अभद्रता और यौन उत्पीड़न से जुड़ा मामला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पुलिस कमीश्नर से उस रात कानून मंत्री को कानून सिखाने की कोशिश करने वाले चार पुलिस अधिकारियों को तत्काल निलंबित करने की मांग की। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो सोमवार सुबह 11 बजे नॉर्थ ब्लॉक मतलब गृहमंत्रालय के समक्ष धरना दिया जाएगा। हद देखिए कि दिल्ली के उपराज्यपाल ने इस पूरे मामले की जांच सेवानिवृत जजों से कराने का फैसला 17 जनवरी को लिया था और इसका आदेश भी दिया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल को तो न देश के संविधान की इज्जत है और न ही न्यायपालिका पर भरोसा है! वह इस जांच आदेश को कूड़ा समझते हुए गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे के पास जा पहुंचे और धरने की धमकी दे दी।
कानून के जानकारों के मुताबिक यदि जजों का पैनल जांच करता है तो अरविंद केजरीवाल मंत्रीमंडल के कानून मंत्री सोमनाथ भारती कटघरे में होंगे, इसलिए अरविंद केजरीवाल लोगों को गुमराह करने के पुराने खेल पर उतर आए हैं और धरने की बातें कर रहे हैं।
नक्सलियों की राह पर दिल्ली सरकार!
'राजा हरिचंद्र की कलयुगी संतान श्रीमान ईमानदार' अरविंद केजरीवाल सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ भारती के बारे में अदालत ने क्या कहा था, देखिए, 'आरोपी पवन कुमार और उनके वकील (सोमनाथ भारती) का व्यवहार न सिर्फ बेहद आपत्तिजनक और अनैतिक है, बल्कि इससे सबूत भी प्रभावित होते हैं।' सीबीआई अदालत की इस कठोर टिप्पणी के बाद भ्रष्टाचार के आरोपी पवन कुमार के वकील सोमनाथ भारती ने अपनी ही पार्टी के एक और सदस्य प्रशांत भूषण की मदद से पहले हाई कोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन दोनों अदालतों ने इसे आपत्तिजनक मानते हुए याचिका रदद कर दी थी। इसके बावजूद अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि उनके कानून मंत्री सोमनाथ भारती ईमानदार हैं और अदालत ने गलत फैसला दिया है। मतलब देश की नीचे से लेकर ऊपर तक की सभी अदालतें गलत है और जो केजरीवाल कह दें वह सही है। यह एकदम से नक्सली व्यवहार है, जिनका भरोसा देश के कानून व्यवस्था में नहीं होता है।
इसी के नक्शेकदम पर चलत हुए दिल्ली सरकार में नंबर-2 के मंत्री मनीष सिसोदिया ने इस पूरे विवाद पर एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि इस देश में किस संवैधानिक संस्था की बात की जा रही है। उनका भरोसा ऐसी संस्था में नहीं है। अब देश में ऐसी बात केवल और केवल माओवादी-नक्सलवादी करते हैं। इस टीम का आचरण भी नक्सलवादियों के समान ही लग रहा है।
इस अनशन के पीछे की गहरी साजिश को समझिए!
दूसरी तरफ दिल्ली हाईकोर्ट ने अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को अवैध रूप से प्राप्त हुए विदेशी फंडिंग की जांच करने के लिए केंद्र सरकार को आदेश दिया है। केजरीवाल को मालूम है कि चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान अमेरिका से हो रही उनकी समूची फंडिंग का काला चिटठा खुल जाएगा। वैसे तो वह देश की कानून व्यवस्था पर अविश्वास जता कर पहले ही दर्शा चुके है कि इस पर आने वाले अदालती आदेश को भी वह नहीं मानेंगे और आम जनता को फिर से गुमराह करने का खेल खेलेंगे। लेकिन दूसरी तरफ वह गृहमंत्रालय पर अनशन के जरिए दबाव बनाने का खेल भी खेल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया व उनकी पूरी आम आदमी पार्टी विदेशी फंडिंग के मामले में फंस रही है। अरविंद की कोशिश है कि वह अनशन के जरिए गृहमंत्रालय को ब्लैकमेल करें ताकि लोकसभा चुनाव से पहले मंत्रालय अपनी जांच रिपोर्ट सार्वजनिक न करे और वह आम आदमी पार्टी के नाम पर दिल्ली की ही तरह पूरे देश की जनता को गुमराह कर सकें।
Friday, January 17, 2014
आम चुनाव 2014 का अमेरिकी मोहरा?
आम चुनाव 2014 का अमेरिकी मोहरा?
नई दिल्ली | नरेन्द्र मोदी का उभार देश में तेजी से हुआ है। अमेरिका इस बात को समझ रहा है। मोदी से अमेरिका के संबंध ठीक नहीं हैं। वे चीन के करीबी हैं। तो क्या अमेरिका विकल्प खोज रहा है?
मोदी की चीन से नजदीकी की अमेरिका को अखर रही थी। दूसरी तरफ मनमोहन के बाद उसे कोई दिख नहीं रहा था। यहीं पर केजरीवाल की जरूरत अमेरिका को उसी तरह समझ में आती है, जैसे पाकिस्तान में इमरान खान की।
अमेरिका की एशिया नीति को विकिलीक्स ने सभी के सामने 2009 में ही रख दिया था। विकिलीक्स ने अमेरिका के जिस गोपनीय दस्तावेज को जारी किया था, उसके मुताबिक भारत अमेरिका की एशिया नीति के केन्द्र में है।
उसी के आइने में हमें भारतीय सियासत और उसमें अमेरिकी दखल को समझना चाहिए। इस एशिया नीति में अमेरिका ‘न्यू नाटो’ का जिक्र करता है। इसमें भारत में नीतिकारों और वातावरण बनाने वाले समूहों से संपर्क करने की बात कही गई है।
इसमें अधिकारियों, सांसदों, पत्रकारों और अन्य बुद्धिजीवियों को यूरोप के देशों में सैर कराने की बात कही गई है। इस दौरान ‘नाटो’ के देशों और अमेरिका में लाकर उन्हें ‘न्यू नाटों’ के बारे में समझाना चाहिए। इसमें भारत के संदर्भ में अमेरिका ने अपने लक्ष्य को भी समझाया है, लेकिन अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए उसे भारत में अपने अनुकूल नेतृत्व की जरूरत होगी।
इसके लिए अमेरिका को मनमोहन सिंह से आगे सोचना पड़ेगा। 2014 उसके लिए अनुकूल नहीं दिख रहा है, क्योंकि भारत में नरेन्द्र मोदी का उभार अमेरिका को साफ दिख रहा था। नरेन्द्र मोदी से अमेरिका के संबंध ठीक नहीं हैं। 2002 के दंगो के बाद मार्च 2005 में अमेरिका ने नरेन्द्र मोदी को वीजा नहीं दिया। यही नहीं, मोदी का टूरिस्ट वीजा भी निरस्त कर दिया।
यहीं नरेन्द्र मोदी भावी भारतीय विदेश नीति का एजेंडा तय करते दिखते हैं। यह मोदी का स्वाभिमानी एंजेडा है। अमेरिका के नरेन्द्र मोदी को वीजा न देने पर बी. रमन ने 21 मार्च, 2005 को रेडिफ डॉट कॉम पर लिखते हैं। इसमें वह अमेरिकी फैसले पर सवाल खड़ा करते हैं और अमेरिकी नीति को भी समझाते हैं।
बहरहाल, अमेरिकी वीजा न मिलने के करीब एक साल बाद नवंबर 2006 में नरेन्द्र मोदी चीन का रुख करते हैं। चीन में उनका जोरदार स्वागत होता है। इसके बाद नरेन्द्र मोदी लगातार तीन और यात्राएं चीन की करते हैं। 2007 में चीन ने दालियान शहर में होने वाले समर डावोस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए मोदी को आंमंत्रित किया।
नवंबर 2011 में एक बार फिर नरेन्द्र मोदी चीन का रुख करते हैं। इस दौरे से चीन पर नरेन्द्र मोदी के प्रभाव को समझा जा सकता है। इस दौरे में 2010 से जो भारतीय हीरा व्यापारी चीन में बंद था, उन्हें छुड़ाकर मोदी अपने साथ भारत ले आए।
मोदी की चीन से नजदीकी अमेरिका को अखर रही थी। दूसरी तरफ मनमोहन के बाद उसे कोई दिख नहीं रहा था। यहीं पर अरविंद केजरीवाल की जरूरत अमेरिका को उसी तरह समझ में आती है, जैसे पाकिस्तान में इमरान खान की।
केजरीवाल के 'परिवर्तन' का फोर्ड से रिश्ता
नई दिल्ली | अब अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। पहले ‘परिवर्तन’ नामक संस्था के प्रमुख थे। उनका यह सफर रोचक है। उनकी संस्थाओं के पीछे खड़ी विदेशी शक्तियों को लेकर भी कई सवाल हवा में तैर रहे हैं।
एक ‘बियॉन्ड हेडलाइन्स’ नामक वेबसाइट ने ‘सूचना के अधिकार कानून’ के जरिए ‘कबीर’ को विदेशी धन मिलने की जानकारी मांगी। इस जानकारी के अनुसार ‘कबीर’ को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रुपए मिले हैं। कबीर को धन देने वालों की सूची में एक ऐसा भी नाम है, जिसे पढ़कर हर कोई चौंक जाएगा। यह नाम डच दूतावास का है।
पहला सवाल तो यही है कि फोर्ड फाउंडेशन और अरविंद केजरीवाल के बीच क्या संबंध हैं? दूसरा सवाल है कि क्या हिवोस भी उनकी संस्थाओं को मदद देता है? तीसरा सवाल, क्या डच दूतावास के संपर्क में अरविंद केजरीवाल या फिर मनीष सिसोदिया रहते हैं?
इन सवालों का जवाब केजरीवाल को इसलिए भी देना चाहिए, क्योंकि इन सभी संस्थाओं से एक चर्चित अंतरराष्ट्रीय खुफिया एजेंसी के संबंध होने की बात अब सामने आ चुकी है। वहीं अरविंद केजरीवाल एक जनप्रतिनिधि हैं।
पहले बाद करते हैं फोर्ड फाउंडेशन और अरविंद केजरीवाल के संबंधों पर। जनवरी 2000 में अरविंद छुट्टी पर गए। फिर ‘परिवर्तन’ नाम से एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) का गठन किया। केजरीवाल ने साल 2006 के फरवरी महीने से ‘परिवर्तन’ में पूरा समय देने के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी। इसी साल उन्हें उभरते नेतृत्व के लिए मैगसेसे का पुरस्कार मिला।
यह पुरस्कार फोर्ड फाउंडेशन की मदद से ही सन् 2000 में शुरू किया गया था। केजरीवाल के प्रत्येक कदम में फोर्ड फाउंडेशन की भूमिका रही है। पहले उन्हें 38 साल की उम्र में 50,000 डॉलर का यह पुरस्कार मिला, लेकिन उनकी एक भी उपलब्धि का विवरण इस पुरस्कार के साथ नहीं था। हां, इतना जरूर कहा गया कि वे परिवर्तन के बैनर तले केजरीवाल और उनकी टीम ने बिजली बिलों संबंधी 2,500 शिकायतों का निपटारा किया।
विभिन्न श्रेणियों में मैगसेसे पुरस्कार रोकफेलर ब्रदर्स फाउंडेशन ने स्थापित किया था। इस पुरस्कार के साथ मिलने वाली नगद राशि का बड़ा हिस्सा फोर्ड फाउंडेशन ही देता है। आश्चर्यजनक रूप से केजरीवाल जब सरकारी सेवा में थे, तब भी फोर्ड उनकी संस्था को आर्थिक मदद पहुंचा रहा था। केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया के साथ मिलकर 1999 में ‘कबीर’ नामक एक संस्था का गठन किया था। हैरानी की बात है कि जिस फोर्ड फाउंडेशन ने आर्थिक दान दिया, वही संस्था उसे सम्मानित भी कर रही थी। ऐसा लगता है कि यह सब एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी।
फोर्ड ने अपने इस कदम से भारत के जनमानस में अपना एक आदमी गढ़ दिया। केजरीवाल फोर्ड फाउंडेशन द्वारा निर्मित एक महत्वपूर्ण आदमी बन गए। हैरानी की बात यह भी है कि ‘कबीर’ पारदर्शी होने का दावा करती है, लेकिन इस संस्था ने साल 2008-9 में मिलने वाले विदेशी धन का व्योरा अपनी वेबसाइट पर नहीं दिया है, जबकि फोर्ड फाउंडेशन से मिली जानकारी बताती है कि उन्होंने ‘कबीर’को 2008 में 1.97 लाख डॉलर दिए। इससे साफ होता है कि फोर्ड फाउंडेशन ने 2005 में अपना एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए अरविंद केजरीवाल को चुना। उसकी सारी गतिविधियों का खर्च वहन किया। इतना ही नहीं, बल्कि मैगससे पुरस्कार दिलवाकर चर्चा में भी लाया।
एक ‘बियॉन्ड हेडलाइन्स’ नामक वेबसाइट ने ‘सूचना के अधिकार कानून’ के जरिए ‘कबीर’ को विदेशी धन मिलने की जानकारी मांगी। इस जानकारी के अनुसार ‘कबीर’ को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रुपए मिले हैं। कबीर को धन देने वालों की सूची में एक ऐसा भी नाम है, जिसे पढ़कर हर कोई चौंक जाएगा। यह नाम डच दूतावास का है।
यहां सवाल उठता है कि आखिर डच दूतावास से अरविंद केजरीवाल का क्या संबंध है? क्योंकि डच दूतावास हमेशा ही भारत में संदेह के घेरे में रहा है। 16 अक्टूबर, 2012 को अदालत ने तहलका मामले में आरोप तय किए हैं। इस पूरे मामले में जिस लेख को आधार बनाया गया है, उसमें डच की भारत में गतिविधियों को संदिग्ध बताया गया है।
इसके अलावा सवाल यह भी उठता है कि किसी देश का दूतावास किसी दूसरे देश की अनाम संस्था को सीधे धन कैसे दे सकता है? आखिर डच दूतावास का अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से क्या रिश्ता है? यह रहस्य है। न तो स्वयं अरविंद और न ही टीम अरविंद ने इस बाबत कोई जानकारी दी है।
इतना ही नहीं, बल्कि 1985 में पीएसओ नाम की एक संस्था बनाई गई थी। इस संस्था का काम विकास में सहयोग के नाम पर विशेषज्ञों को दूसरे देशों में तैनात करना था। पीएसओ को डच विदेश मंत्रालय सीधे धन देता है। पीएसओ हिओस समेत 60 डच विकास संगठनों का समूह है। नीदरलैंड सरकार इसे हर साल 27 मिलियन यूरो देती है। पीएसओ ‘प्रिया’ संस्था का आर्थिक सहयोगी है। प्रिया का संबंध फोर्ड फाउंडेशन से है। यही ‘प्रिया’ केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की संस्था ‘कबीर’ की सहयोगी है।
इन सब बातों से साफ है कि डच एनजीओ, फोर्ड फाउंडेशन,डच सरकार और केजरीवाल के बीच परस्पर संबंध है। इतना ही नहीं, कई देशों से शिकायत मिलने के बाद पीएसओ को बंद किया जा रहा है। ये शिकायतें दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप से संबंधित हैं। 2011 में पीएसओ की आम सभा ने इसे 1 जनवरी, 2013 को बंद करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय दूसरे देशों की उन्हीं शिकायतों का असर माना जा रहा है।
हाल ही में पायनियर नामक अंग्रेजी दैनिक अखबार ने कहा कि हिवोस ने गुजरात के विभिन्न गैर सरकारी संगठन को अप्रैल 2008 और अगस्त 2012 के बीच 13 लाख यूरो यानी सवा नौ करोड़ रुपए दिए। हिवोस पर फोर्ड फाउंडेशन की सबसे ज्यादा कृपा रहती है। डच एनजीओ हिवोस इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस द हेग (एरासमस युनिवर्सिटी रोटरडम) से पिछले पांच सालों से सहयोग ले रही है। हिवोस ने “परिवर्तन” को भी धन मुहैया कराया है।
इस संस्था की खासियत यह है कि विभिन्न देशों में सत्ता के खिलाफ जनउभार पैदा करने की इसे विशेषज्ञता हासिल है। डच सरकार के इस पूरे कार्यक्रम का समन्वय आईएसएस के डॉ.क्रीस बिकार्ट के हवाले है। इसके साथ-साथ मीडिया को साधने के लिए एक संस्था खड़ी की गई है। इस संस्था के दक्षिणी एशिया में सात कार्यालय हैं। जहां से इनकी गतिविधियां संचालित होती हैं। इस संस्था का नाम ‘पनोस’ है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जो हो रहा है वह प्रायोजित है?
शिमिरित, कबीर और केजरीवाल !
नई दिल्ली | यह शिमिरित ली कौन है, शोधार्थी या अमेरिकी एजेंट? दस्तावेज बताते हैं कि वह बतौर शोधार्थी ‘कबीर’ संस्था से जुड़े थी। इस संस्था के गॉड-फादर अरविंद केजरीवाल रहे हैं।
शिमरित ली को लेकर अटकलें लग रही हैं, क्योंकि शिमरित ली कबीर संस्था में रहकर न केवल भारत में आंदोलन का तानाबाना बुन रही थी, बल्कि लंदन से लेकर काहिरा और चाड से लेकर फिलिस्तीन तक संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त थी।
शिमिरित ली दुनिया के अलग-अलग देशों में विभिन्न विषयों पर काम करती रही है। भारत आकर उसने नया काम किया। कबीर संस्था से जुड़ी। प्रजातंत्र के बारे में उसने एक बड़ी रिपोर्ट महज तीन-चार महीनों में तैयार की। फिर वापस चली गई। आखिर दिल्ली आने का उसका मकसद क्या था? इसे एक दस्तावेजी कहानी और अरविंद केजरीवाल के संदर्भ में समझा जा सकता है।
बहरहाल कहानी कुछ इस प्रकार है। जिस स्वराज के राग को केजरीवाल बार-बार छेड़ रहे हैं, वह आखिर क्या है? साथ ही सवाल यह भी उठता है कि अगर इस गीत के बोल ही केजरीवाल के हैं तो गीतकार और संगीतकार कौन है? यही नहीं, इसके पीछे का मकसद क्या है? इन सब सवालों के जवाब ढूंढ़ने के लिए हमें अमेरिका के न्यूयार्क शहर का रुख करना पड़ेगा।
न्यूयार्क विश्वविद्यालय दुनिया भर में अपने शोध के लिए जाना जाता है। इस विश्वविद्यालय में ‘मध्यपूर्व एवं इस्लामिक अध्ययन’ विषय पर एक शोध हो रहा है। शोधार्थी का नाम है, शिमिरित ली। शिमिरित ली दुनिया के कई देशों में सक्रिय है। खासकर उन अरब देशों में जहां जनआंदोलन हुए हैं। वह चार महीने के लिए भारत भी आई थी। भारत आने के बाद वह शोध करने के नाम पर ‘कबीर’ संस्था से जुड़ गई।
सवाल है कि क्या वह ‘कबीर’ संस्था से जुड़ने के लिए ही शिमिरित ली भारत आई थी? अभी यह रहस्य है। उसने चार महीने में एक रिपोर्ट तैयार की। यह भी अभी रहस्य है कि शिमरित ली की यह रिपोर्ट खुद उसने तैयार की या फिर अमेरिका में तैयार की गई थी।
बहरहाल, उस रिपोर्ट पर गौर करें तो उसमें भारत के लोकतंत्र की खामियों को उजागर किया गया है। रिपोर्ट का नाम है ‘पब्लिक पावर-इंडिया एंड अदर डेमोक्रेसी’। इसमें अमेरिका, स्विट्जरलैंड और ब्राजील का हवाला देते हुए ‘सेल्फ रूल’ की वकालत की गई है। अरविंद केजरीवाल की ‘मोहल्ला सभा’ भी इसी रिपोर्ट का एक सुझाव है। इसी रिपोर्ट के ‘सेल्फ रूल’ से ही प्रभावित है, अरविंद केजरीवाल का ‘स्वराज’। अरविंद केजरीवाल भी अपने स्वराज में जिन देशों की व्यवस्था की चर्चा करते हैं, उन्हीं तीनों अमेरिका, ब्राजील और स्विट्जरलैंड का ही जिक्र शिमिरित भी अपनी रिपोर्ट में करती हैं।
‘कबीर’ के कर्ताधर्ता अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया हैं। यहां शिमरित के भारत आने के समय पर भी गौर करने की जरूरत है। वह मई 2010 में भारत आई और कबीर से जुड़ी। वह अगस्त 2010 तक भारत में रही। इस दौरान ‘कबीर’ की जवाबदेही, पारदर्शिता और सहभागिता पर कार्यशालाओं का जिम्मा भी शिमरित ने ही ले लिया था। इन चार महीनों में ही शिमरित ली ने ‘कबीर’ और उनके लोगों के लिए आगे का एजेंडा तय कर दिया। उसके भारत आने का समय महत्वपूर्ण है।
इसे समझने से पहले संदिग्ध शिमरित ली को समझने की जरूरत है, क्योंकि शिमरित ली कबीर संस्था में रहकर न केवल भारत में आंदोलन का तानाबाना बुन रही थी, बल्कि लंदन से लेकर काहिरा और चाड से लेकर फिलिस्तीन तक संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त थी।
यहूदी परिवार से ताल्लुक रखने वाली शिमिरित ली को 2007 में कविता और लेखन के लिए यंग आर्ट पुरस्कार मिला। उसे यह पुरस्कार अमेरिकी सरकार के सहयोग से चलने वाली संस्था ने नवाजा। यहीं वह सबसे पहले अमेरिकी अधिकारियों के संपर्क में आई। जब उसे पुरस्कार मिला तब वह जेक्शन स्कूल फॉर एडवांस स्टडीज में पढ़ रही थी। यहीं से वह दुनिया के कई देशों में सक्रिय हुई।
जून 2008 में वह घाना में अमेरिकन ज्यूश वर्ल्ड सर्विस में काम करने पहुंचती। नवंबर 2008 में वह ह्यूमन राइट वॉच के अफ्रीकी शाखा में बतौर प्रशिक्षु शामिल हुई। वहां उसने एक साल बिताए। इस दौरान उसने चाड के शरणार्थी शिविरों में महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा संबंधी दस्तावेजों की समीक्षा और विश्लेषण का काम किया। जिन-जिन देशों में शिमिरित की सक्रियता दिखती है, वह संदेह के घेरे में है। हर एक देश में वह पांच महीने के करीब ही रहती है। उसके काम करने के विषय भी अलग-अलग होते हैं। उसके विषय और काम करने के तरीके से साफ जाहिर होता है कि उसकी डोर अमेरिकी अधिकारियों से जुड़ी है।
दिसंबर 2009 में वह ईरान में सक्रिय हुई। 7 दिसंबर, 2009 को ईरान में छात्र दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम में वह शिरकत करती है। वहां उसकी मौजूदगी भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि इस कार्यक्रम में ईरान में प्रजातंत्र समर्थक अहमद बतेबी और हामिद दबाशी शामिल थे।
ईरान के बाद उसका अगल ठिकाना भारत था। यहां वह ‘कबीर’ से जुड़ी। चार महीने में ही उसने भारतीय लोकतंत्र पर एक रिपोर्ट संस्था के कर्ताधर्ता अरविंद केजरावाल और मनीष सिसोदिया को दी। अगस्त में फिर वह न्यूयार्क वापस चली गई। उसका अगला पड़ाव होता है ‘कायन महिला संगठन’। यहां वह फरवरी 2011 में पहुंचती। शिमिरित ने वहां “अरब में महिलाएं” विषय पर अध्ययन किया। कायन महिला संगठन में उसने वेबसाइट, ब्लॉग और सोशल नेटवर्किंग का प्रबंधन संभाला। यहां वह सात महीने रही। अगस्त 2011 तक। अभी वह न्यूयार्क विश्वविद्यालय में शोध के साथ ही ‘अर्जेंट एक्शन फंड’ से बतौर सलाहकार जुड़ी हैं।
पूरी दुनिया में जो सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और स्त्री संबंधी मुद्दों पर जो प्रस्ताव आते हैं, उनकी समीक्षा और मूल्यांकन का काम शिमिरित के जिम्मे है। अगस्त 2011 से लेकर फरवरी 2013 के बीच शिमिरित दुनिया के कई ऐसे देशों में सक्रिय थी, जहां उसकी सक्रियता पर सवाल उठते हैं। इसमें अरब देश शामिल हैं। मिस्र में भी शिमिरित की मौजूदगी चौंकाने वाली है। यही वह समय है, जब अरब देशों में आंदोलन खड़ा हो रहा था।
शिमिरित ली 17वें अरब फिल्म महोत्सव में भी सक्रिय रहीं। इसका प्रीमियर स्क्रीनिंग सेन फ्रांसिस्को में हुआ। स्क्रीनिंग के समय शिमिरित ने लोगों को संबोधित भी किया। इस फिल्म महोत्सव में उन फिल्मों को प्रमुखता दी गई, जो हाल ही में जन आंदोलनों के ऊपर बनी थी।
शिमिरित आई तो फंडिंग बढ़ी
शिमिरित ली के कबीर संस्था से जुड़ने के समय को उसके विदेशी वित्तीय सहयोग के नजरिए से भी देखने की जरूरत है। एक वेबसाइट ने ‘सूचना के अधिकार’ के तहत एक जानकारी मांगी। उस जानकारी के मुताबिक कबीर को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रुपए मिले। 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड ने कबीर की आर्थिक सहायता की।
इसके बाद 2010 में अमेरिका से शिमिरित ली ‘कबीर’ में काम करने के लिए आती हैं। चार महीने में ही वह भारतीय प्रजातंत्र का अध्ययन कर उसे खोखला बताने वाली रिपोर्ट केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को देकर चली जाती है। शिमिरित ली के जाने के बाद ‘कबीर’ को फिर फोर्ड फाउंडेशन से दो लाख अमेरिकी डॉलर का अनुदान मिला। इसे भारत की खुफिया एंजेसी ‘रॉ’ के अपर सचिव रहे बी. रमन की इन बातों से समझा जा सकता है।
एक बार बी. रमन ने एनजीओ और उसकी फंडिंग पर आधारित एक किताब के विमोचन के समय कहा था कि “सीआईए सूचनाओं का खेल खेलती है। इसके लिए उसने ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ और ‘रेडियो फ्री यूरोप’ को बतौर हथियार इस्तेमाल करती है।” अपने भाषण में बी. रमन ने इस बात की भी चर्चा की कि विदेशी खुफिया एजेंसियां कैसे एनजीओ के जरिए अपने काम को अंजाम देती हैं। किसी भी देश में अपने अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए सीआईए उस देश में पहले से काम कर रही एनजीओ का इस्तेमाल करना ज्यादा सुलभ समझती है। उसे अपने रास्ते पर लाने के लिए वह फंडिंग का सहारा लेती है। जिस क्षेत्र में एनजीओ नहीं है, वहां एनजीओ बनवाया जाता है।
आगे केजरीवाल, पीछे ‘सीआईए’ ‘फोर्ड’
नई दि्ल्ली | अरविंद केजरीवाल ने ‘आम आदमी पार्टी’ (आप) बनाकर जो आदर्श रखा है। उस पर वे कितना खरे उतरते हैं? इसे समझना भी जरूरी है। अन्यथा जनता एक बार फिर धोखा खा सकती है।
फोर्ड उंडेशन की वेबसाइट के मुताबिक 2011 में केजरीवाल व मनीष की ‘कबीर’ नामक संस्था को करीब दो लाख अमेरिकी डॉलर का अनुदान मिला था। फॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010 के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना और राशी खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना जरूरी होता है, लेकिन टीम केजरीवाल के सदस्यों ने नियमों का पालन नहीं किया
अरविंद केजरीवाल की शुरुआत ऐसे रास्तों से हो रही है, जिससे एक जमाने में मर्यादित राजनैतिक दल अपने शुरुआती समय में बचत थे। ‘इंडिया अंगेस्ट करप्शन’ अभियान से आंदोलन बनता, इसे पहले ही राजनैतिक महत्वाकांक्षा ने उससे बिखेर दिया। अन्ना और अरविंद में मतभेद वैचारिक नहीं, बल्कि इस मतभेद का आधार अविश्वास और राजनैतिक महत्वकांक्षा रही।
जब तक अरविंद केजरावाल को लगा कि अन्ना को अपने अनुसार चला सकते हैं, तबतक उनके पीछे रहे। लेकिन जैसे ही अन्ना हजारे ने पैसे और पारदर्शिता का सवाल उठाया, तब से मतभेद शुरू हुए। अब अरविंद केजरीवाल संसदीय राजनीति के रास्ते पर निकल चुके हैं। उन वादों के साथ, जो कभी आजादी के बाद सत्ता में आने वाले नेताओं ने किए और बाद में जेपी आंदोलन से निकले हुए राजनेताओं ने किए। अब उन्हीं नेताओं के खिलाफ उन्हीं की ही तरह के वादों के साथ केजरीवाल आए हैं। फैसला देश की जनता को करना है। वह इतिहास दोहराती है या फिर नया लिखती है।
अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल की आखिरी साझा बैठक 19 सितंबर, 2012 को दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में हुई थी। बैठक के बाद बाहर आते ही अन्ना ने मीडिया से चौंकाने वाली बात कही थी कि राजनीति में कोई उनके नाम या चित्र का उपयोग नहीं करेगा। दिल्ली चुनाव में हम इसकी हकीकत देख चुके हैं।
वहीं बैठक में मौजूद लोगों के मुताबिक अन्ना ने केजरीवाल से एक सूत्र सवाल किया था। वह था कि आपके संगठन के लिए धन कहां से आएगा? इस सवाल पर केजरीवाल ने कहा कि जैसे औरों को आता है। इस जवाब में कई रहस्य छुपा था। दूसरे लोग इसे समझ रहे थे। यही वजह थी कि अन्ना ने तत्काल स्वयं को इससे अलग कर लिया। तो क्या दूसरे दलों की तरफ आम आदमी पार्टी भी चुनाव के लिए रुपए का इंतजाम कर रही थी? इसका जवाब आना है। हालांकि, अरविंद केजरीवाल कुछ और दावा कर रहे हैं।
वहीं बैठक में मौजूद लोगों के मुताबिक अन्ना ने केजरीवाल से एक सूत्र सवाल किया था। वह था कि आपके संगठन के लिए धन कहां से आएगा? इस सवाल पर केजरीवाल ने कहा कि जैसे औरों को आता है। इस जवाब में कई रहस्य छुपा था। दूसरे लोग इसे समझ रहे थे। यही वजह थी कि अन्ना ने तत्काल स्वयं को इससे अलग कर लिया। तो क्या दूसरे दलों की तरफ आम आदमी पार्टी भी चुनाव के लिए रुपए का इंतजाम कर रही थी? इसका जवाब आना है। हालांकि, अरविंद केजरीवाल कुछ और दावा कर रहे हैं।
यह भी समझना जरूरी है कि अन्ना ने अरविंद केजरीवाल से यह सवाल क्यों पूछा था? केजरीवाल के गैर सरकारी संगठन पर धन के स्रोतों को लेकर सवाल उठते रहे हैं। इस बाबत एक जनहित याचिका भी दिल्ली हाईकोर्ट में दायर हो चुकी है। खैर, यहां केजरीवाल और उनके संगठनों की पड़ताल से पहले कुछ तथ्यों को समझना उचित रहेगा है।
फोर्ड फाउंडेशन से रिश्ता
अमेरिकी खुफिया एंजेसी सीआईए और फोर्ड फाउंडेशन के दस्तावेजों पर आधारित एक किताब 1999 में आई थी। किताब का नाम है ‘हू पेड द पाइपर? सीआईए एंड द कल्चरल कोल्ड वार’। फ्रांसेस स्टोनर सांडर्स ने अपनी इस किताब में दुनियाभर में सीआईए के काम करने के तरीके को समझाया है। दस्तावेजों के आधार पर लेखक सान्डर्स ने सीआईए और कई नामचीन संगठनों के संबंधों को उजागर किया है। किताब के मुताबिक फोर्ड फाउंडेशन और अमेरिका के मित्र देशों के कई संगठनों के जरिए सीआईए दूसरे देशों में अपने लोगों को धन मुहैया करवाता है।
इतना ही नहीं, बल्कि अमेरिकी कांग्रेस ने 1976 में एक कमेटी बनाई थी। इस कमेटी की तहकीकात में जो जानकारी सामने आई, वह और चौंकाने वाली थी। जांच में पाया गया कि उस समय अमेरिका ने विविध संगठनों को 700 बार दान दिए, इनमें से आधे से अधिक सीआईए के जरिए खर्च किए गए।
यह पहली किताब नहीं है, जिसने इन तथ्यों को सामने रखा है। इसके पहले भी इस तरह की खुफिया एजेंसिओं के देश विरोधी गतिविधियों का पर्दाफाश होता रहा है। पहले के सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी अब नही हैं। लेकिन केजीबी के कारनामे अब सबके सामने हैं। दस्तावेजों के आधार पर केजीबी पर किताब आ चुकी है। किताब कई खंडों में है। इसका नाम ‘द मित्रोखिन आर्काइव-द केजीबी एंड द वर्ल्ड’ है। इस किताब के दूसरे खंड के 17वें और 18वें अध्याय में भारत में केजीबी की गतिविधियों के बारे नें बताया गया है। पैसे के बल पर केजीबी ने भारत में अपने अनुकूल महौल समय-समय पर बनाता रहा। इसमें फोर्ड का भी जिक्र आया है। केजीबी से पैसा लेने वाले नाम बडे है। केजीबी की विदेशी गतिविधियों से संबंधित अभिलेख जिसके जिम्मे था, वही वासिली मित्रोखिन इस किताब के लेखक हैं।
केजीबी अब नही है, लेकिन सीआईए अब भी है। इसकी सक्रियता अपने चरम पर है। सीआईए की गतिविधि का एक सिरा केजरीवाल और उनके संगठनों पर विचाराधीन एक जनहित याचिका से जुड़ा है। दिल्ली हाईकोर्ट में इस याचिका के स्वीकार होने के बाद गृह मंत्रालय ने एफसीआरए के उल्लंघन के संदेह पर ‘कबीर’ नाम की गैर सरकारी संगठन के कार्यालय में छापे मारे। यह संस्था टीम अरविंद के प्रमुख सदस्य मनीष सिसोदिया के देख-रेख में चलती है। और यह अरविंद के दिशा निर्देश पर काम करती है। बहरहाल, कबीर के खिलाफ यह कार्रवाई 22 अगस्त, 2012 को हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट के वकील मनोहर लाल शर्मा की इस याचिका में आठ लोगों को प्रतिवादी बनाया गया था, इनमें अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया के अलावा गृहमंत्रालय और फोर्ड फाउंडेशन भी शामिल है। केन्द्र सरकार को तीन महीने में जवाब देना था जो अवधि अगस्त महीने में पूरी हो चुकी। सरकार की तरफ से कोई जवाब नही आया। यहां सवाल ये उठता है कि केन्द्र सरकार अरविंद केजरीवाल के मामले में इतनी उदासीन क्यों है? इस सवाल के जवाब में यचिकाकर्ता मनोहरलाल शर्मा कहते है “ केन्द्र सरकार अरविंद केजरीवाल को इसलिए बचा रही है क्योंकि अरविंद केजरीवाल की मुहिम से कांग्रेस अपना राजनैतिक फायदा देख रही है”
मनोहरलाल शर्मा यही नही रुकते वो कहते हैं “ कांग्रेस सरकार के लिए अरविंद केजरीवाल अगर मुसीबत होते तो बाबा रामदेव और नितिन गडकरी की तरह ही जांच होती और अदालत में सरकार अपना पक्ष रख चुकी होती।” कुछ लोग यह भी मान रहे हैं कि कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को आगे कर नरेंद्र मोदी की हवा का रुख बदलने की कोशिश कर रही है।
मनोहरलाल शर्मा यही नही रुकते वो कहते हैं “ कांग्रेस सरकार के लिए अरविंद केजरीवाल अगर मुसीबत होते तो बाबा रामदेव और नितिन गडकरी की तरह ही जांच होती और अदालत में सरकार अपना पक्ष रख चुकी होती।” कुछ लोग यह भी मान रहे हैं कि कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को आगे कर नरेंद्र मोदी की हवा का रुख बदलने की कोशिश कर रही है।
शर्मा कहते है “ केजरीवाल की भ्रष्टाचार भगाने की मुहिम फोर्ड फाउंडेशन के पैसे से चल रही है, फोर्ड फाउंडेशन अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का फ्रंटल ऑर्गेनाइजेशन है जो दुनिया के कुछ देशों में सिविल सोसाइटी नाम से मुहिम चला रहा है।” शर्मा के मुताबिक फोर्ड फाउंडेशन कई देशों में सरकार विरोधी आंदोलनों को समर्थन देता रहा है। साथ ही आर्थिक सहयोग भी मुहैया कराता है। इसी रास्ते उन देशों में अपना एजेंडा चलाता है। केजरीवाल और उनकी टीम के अन्य सदस्य संयुक्त रूप से फोर्ड फाउंडेशन से आर्थिक मदद लेते रहे हैं।
शर्मा ने आगे कहा कि केजरीवाल ने खुद स्वीकारा है कि उन्होंने फोर्ड फाउंडेशन, डच एम्बेसी और यूएनडीपी से पैसे लिए हैं। फाउंडेशन की वेबसाइट के मुताबिक 2011 में केजरीवाल व मनीष की ‘कबीर’ नामक संस्था को करीब दो लाख अमेरिकी डॉलर का अनुदान मिला था। फॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट-2010 के मुताबिक विदेशी धन पाने के लिए भारत सरकार की अनुमति लेना और राशी खर्च करने के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना जरूरी होता है, लेकिन टीम केजरीवाल के सदस्यों ने नियमों का पालन नहीं किया”
ये सवाल भी लोग पूछ रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल आखिर 20 सालों तक दिल्ली में ही कैसे नौकरी करते रहे? जबकि राजस्व अधिकारी को एक निश्चित स्थान व पद पर तीन वर्ष के लिए ही तैनात किया जा सकता है। अरविंद की पत्नी पर भी उनके महकमें की कृपा रही। ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही, क्योंकि अशोक खेमका, नीरज कुमार और अशोक भाटिया जैसे अधिकारियों की हालत जनता देख रही है। अशोक खेमका को 19 साल की नौकरी में 43 तबादलों का सामना करना पड़ा है। नीरज कुमार को 15 साल के कैरियर में 15 बार इधर-उधर किया गया है।
शीला दीक्षित के राजनीतिक ‘भिंडरवाले’
नई दिल्ली | बिना जनादेश के अरविंद केजरीवाल सत्ता लालसा की असुर राजनीति फैला रहे हैं। उनको लगता है कि झाडू चलने पर थोड़ी धूल तो उड़ेगी ही। फिर आसमान साफ हो जाएगा।
अरविंद केजरीवाल विचारों की इमानदारी पर फेल हो चुके हैं। कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का विचार ही अपने आपको धोखा देना है। जो राजनीतिक नेता अपने आप को धोखा देता है, वह लोगों की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाता है। इसके उदाहरण गिनाने हों तो केंद्र में चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, एच.डी. देवगौडा, इंद्रकुमार गुजराल के नाम काफी हैं।
दिल्ली की हवा में प्रदूषण तो पहले ही था, पर राजनीति में जहर नहीं था। हवा के प्रदूषण का प्रमाण शीला दीक्षित की सरकार की एक रिपोर्ट से मिलता है। उसमें सांस संबंधी बीमारियों का आकंड़ा है। ‘2005 में पर्यावरण और प्रदूषण के चलते सांस की बीमारियों से 6 हजार 14 मोतें हुई थी। अगले साल यानी 2006 में यह संख्या बढ़कर 9 हजार 164 दिल्ली वासी मोत के शिकार हुए।’ अरविंद केजरीवाल आम आदमी की ओट में जो राजनीति कर रहे हैं, वह सारे देश में लोकतंत्र को बीमार बनाने वाला है।
कैसे? इस तरह कि वे अपने कहे के प्रति ईमानदार नहीं हैं। लेकिन लड़ाई वे बेइमानी के खिलाफ लड़ने के लिए मैदान में उतरे थे। पैसे रुपए की बेइमानी से अधिक खतरनाक वचनबद्धता से डिगना होता है। जो अरविंद केजरीवाल इस समय कर रहे हैं।
इसे कहां से शुरू करें? रामलीला मैदान में जनलोकपाल के लिए आंदोलन छिड़ा। जिसपर उन्होंने डींग मारी कि यह ‘व्यवस्था परिवर्तन’ का आंदोलन है। लोगों ने मान लिया कि वे सच कह रहे थे। तभी मुझे यह सूचना मिल गई थी कि अरविंद दलीय राजनीति में उतरने का इरादा बना रहे हैं। यही कारण था कि अनेक बार उनके बुलावे और मित्रों के आग्रह के बावजूद उस मंच पर जाने की इच्छा नहीं हुई। व्यवस्था परिवर्तन की उनकी समझ क्या है, इसे उनके बदलते बयानों से समझा जा सकता है। क्या राजनीतिक दल बनाकर वे उसी रास्ते पर नहीं चल पड़े हैं जिसपर कभी जनता पार्टी चली थी? जनता पार्टी के किसी नेता ने तब व्यवस्था परिवर्तन का वादा नहीं किया था। हां, जेपी ने ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा देकर उसे हवा दी थी।
भ्रष्टाचार का राजनीतिकीकरण करते हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पहले जनमोर्चा बनाया और फिर जनता दल। जनमोर्चा के ही दिनों में एक दिन चेन्नई से पेरूंदुराई जाते हुए विश्वनाथ प्रताप सिंह से सवाल किया कि आप पार्टी कब बना रहे हैं? थोड़ी देर सोचकर उन्होंने जो जवाब दिया, वह उनकी राजनीतिक ईमानदारी का सबूत था। उसे अगली सीट पर बैठे विध्याचरण शुक्ल और पीछे बैठे संतोष भारतीय ने भी सुना। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कभी व्यवस्था परिवर्तन का नारा नहीं दिया। लेकिन उनसे इसकी उम्मीद जरूर की जाती थी। उन्हें अगर अवसर मिलता तो वे प्रयास करते और वह भी बिना ढोल बजाए।
अरविंद केजरीवाल और उनकी गोल के साथी राजनीतिक टोटकेबाजी में पड़ गए हैं। यह समझे बगैर कि राजनीतिक दल रातों-रात नहीं बनते और बन भी जाते हैं तो ज्यादा दिनों तक चलते नहीं। अरविंद केजरीवाल पर यह आपत्ति नहीं की जानी चाहिए कि उन्होंने अन्ना आंदोलन को भुनाने के लिए राजनीतिक दल क्यों बनाया? यह उनका अधिकार है। पर उससे ज्यादा बड़ा अधिकार दिल्ली की जनता के पास है। उनकी पार्टी चुनाव लड़ी। अनुमान से अधिक सीटें पा सकी। यहां तक तो ठीक है। चुनाव परिणाम के बाद बड़ी मासूमियत से वे बोले कि ‘मैं आम आदमी हूं। मैं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नहीं हूं।’
चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने बयान दिया कि ‘मैं अपने बच्चों की कसम खाता हूं कि कांग्रेस और भाजपा से गठजोड़ नहीं करूंगा।’ चुनाव से पहले के उनके खास-खास वायदों को लोग गांठ बांधकर याद रखे हुए हैं। इसलिए उनका यहां उल्लेख अनावश्यक है। अरविंद केजरीवाल विचारों की इमानदारी पर फेल हो चुके हैं। कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने का विचार ही अपने आपको धोखा देना है। जो राजनीतिक नेता अपने आप को धोखा देता है, वह लोगों की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाता है। इसके उदाहरण गिनाने हों तो केंद्र में चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, एच.डी. देवगौडा, इंद्रकुमार गुजराल के नाम काफी हैं।
अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के बिछाए जाल में फंस चुके हैं। संदीप दीक्षित से उनका एनजीओ का नाता चर्चित रहा है। सवाल भी उठते रहे हैं। वे अपनी राजनीतिक नासमझी में यह साबित करने जा रहे हैं कि वे शीला दीक्षित के बनाए राजनीतिक ‘भिंडरवाले’ हैं। इंदिरा गांधी को ‘भिंडरवाले’ के सफाए के लिए सेना भेजनी पड़ी थी। शीला दीक्षित का काम एक बयान से ही चल जाएगा। उनका पहला बयान अरविंद केजरीवाल को एक चेतवानी है। शीला दीक्षित ने साफ कर दिया है कि ‘कांग्रेस बिना शर्त समर्थन नहीं दे रही है।’
चंद्रशेखर को कांग्रेस ने बिना शर्त समर्थन दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने पूछे जाने पर कहा था कि ‘चंद्रशेखर की सरकार को विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से कम से कम एक महीना ज्यादा चलाएंगे।’ यह पुराने इतिहास की घटना नहीं है, सिर्फ 14 साल पहले की है। कांग्रेस ने चार महीने भी नहीं दिए। अरविंद केजरीवाल से साफ-सुथरे राजनीतिक फैसले के लिए लोग डा. हर्षबर्धन को याद करेंगे।
जनादेश को समझने और सत्ता की लालसा से दूर रहने का उन्होंने एक उदाहरण बनाया है। प्रकृति और राजनीति के नियम मनमाने ढंग से निर्धारित नहीं किए जा सकते। जिसे अरविंद केजरीवाल करते दिख रहे हैं।
केजरीवाल का सच बताती पत्रिका
नई दिल्ली | खेल के नियम बदलने की वाहवाही जिस अरविंद केजरीवाल को दी जा रही है, उनकी एक अलग दास्तान भी है। उसे खोजकर ‘यथावत’ पत्रिका ने छापा है। पत्रिका में अमेरिकी महिला शिमिरित की चर्चा है, जिसने ‘कबीर’ संस्था के लिए रिपोर्ट तैयार की थी।
“केजरीवाल के अतीत को समझे बगैर उनकी रणनीति और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को ठीक-ठीक नहीं समझा जा सकता है।यथावत पत्रिका में जो रिपोर्ट आ रही है, उसमें इसी बात को समझाने की कोशिश हुई है।”-- राकेश सिंह, पत्रकार
‘यथावत’ पत्रिका ने केजरीवाल की इस दास्तान को कवर स्टोरी बनाया है। साथ ही आवरण पर लिखा है, “केजरीवाल के पीछे कौन?” पत्रिका ने इसे एक सनसनीखेज मामला बताते हुए कहा है कि क्या यह अज्ञात है ? ऐसा नहीं है। इसे सिर्फ खोजने की जरूरत है। राकेश सिंह ने ‘यथावत’ पत्रिका के लिए यही किया है।
इस बाबत पत्रकार राकेश सिंह ने ‘द पत्रिका’ से बातचीत में कहा है, “अरविंद केजरीवल और उनके साथी दिल्ली की सरकार चलाने में व्यस्त हैं। पर, उनका एक अतीत भी है, जिसमें एनजीओ और उनके सहयोगियों का मजबूत गठजोरड़ है। उसे समझने की जरूर है।”
राकेश सिंह आगे कहते हैं, “केजरीवाल के अतीत को समझे बगैर उनकी रणनीति और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को ठीक-ठीक नहीं समझा जा सकता है।यथावत पत्रिका में जो रिपोर्ट आ रही है, उसमें इसी बात को समझाने की कोशिश हुई है।”
यथावत ने राकेश सिंह की रिपोर्ट को कवर स्टोरी बनाया है। स्टोरी में उन सूत्रों से पर्दा उठाने का दावा किया गया है, जिससे यह भ्रम पैदा होता है कि कहीं अरविंद केजरीवाल अमेरिकी मोहरे तो नहीं।
इमरान खान की भूमिका में अरविंद केजरीवाल?
नई दिल्ली | क्या अमेरिका अरविंद केजरीवाल की जरूरत ठीक उसी तरह समझ रहा है, जैसी पाकिस्तान में उसे इमरान खान की थी? यह समझने के लिए अरविंद की पृष्ठभूमि को जानना होगा।
कबीर, शिमिरित ली और फोर्ड के अलावा कुछ भारतीय उद्योगपति भी इस मुहिम में शामिल हैं। इंफोसिस के मुखिया और फोर्ड फाउंडेशन के सदस्य नारायण मूर्ति ने भी 2008-2009 में हर साल 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद केजरीवाल की संस्था को दी थी। 2010 में जब शिमिरित कबीर से जुड़ीं तो नारायणमूर्ति ने मदद 25 लाख रुपए से बढाकर 37 लाख रुपए कर दी।
एक-एक कर तार जुड़ रहे हैं। भारत सहित पूरे एशिया में फोर्ड की सियासी सक्रियता को समझने की बात कही जा रही है। इसकी पहचान एक अमेरिकी संस्था की है। दक्षिण एशिया में फोर्ड की प्रमुख कविता एन. रामदास हैं। वह एडमिरल रामदास की सबसे बड़ी बेटी हैं।
एडमिरल रामदास अरविंद केजरीवाल के गॉडफादर हैं। केजरीवाल के नामांकन के समय भी एडमिरल रामदास केजरीवाल के साथ थे। एडमिरल रामदास की पत्नी लीला रामदास ‘आप’ के विशाखा गाइडलाइन पर बनी कमेटी की प्रमुख बनाई गई हैं।
रामदास को भी मैगसेसे पुरस्कार मिला है। यहां सवाल उठता है कि क्या एडमिरल रामदास और उनका परिवार फोर्ड के इशारे पर अरविंद केजरीवाल की मदद कर रहा है? एशिया की सियासत में फोर्ड की सक्रियता इस उदाहरण से भी समझी जा सकती है। फोर्ड फाउंडेशन के अधिकारी रहे गौहर रिजवी अब बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं।
कबीर, शिमिरित ली और फोर्ड के अलावा कुछ भारतीय उद्योगपति भी इस मुहिम में शामिल हैं। इंफोसिस के मुखिया और फोर्ड फाउंडेशन के सदस्य नारायण मूर्ति ने भी 2008-2009 में हर साल 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद केजरीवाल की संस्था को दी थी। 2010 में जब शिमिरित कबीर से जुड़ीं तो नारायणमूर्ति ने मदद 25 लाख रुपए से बढाकर 37 लाख रुपए कर दी।
यही नहीं, इंफोसिस के अधिकारी रहे बालाकृष्णन ‘आम आदमी पार्टी’ में शामिल हो गए। इनफोसिस से ही नंदन नीलेकणी भी जुड़े हैं। नीलेकणी ‘बायोमेट्रिक आधार’ परियोजना के अध्यक्ष भी हैं। आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार बनते ही ‘आधार’ को जरूरी बनाने के लिए केजरीवाल ने कदम बढ़ा दिया है। ‘आधार’ और उसके नंदन को कुछ इस तरह समझा जा सकता है।
जानकारी के मुताबिक नवंबर 2013 में न्यूयार्क की कंपनी मोंगाडीबी नंदन नीलेकणी के ‘आधार’ से जुडती है। इस कंपनी को आधार के भारतीय नागरिकों का डाटाबेस तैयार करने का काम दिया गया है। मैंगाडीबी की पड़ताल से कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। इस कंपनी में इन-क्यू-टेल नाम की एक संस्था का पैसा लगा है। इन-क्यू-टेल सीआईए का ही वित्तीय संगठन है।
यहां अब नंदन नीलेकणी और दिल्ली चुनाव के बीच संबंध को देखने की भी जरूरत है। दिल्ली चुनाव के दौरान अमेरिका से भारत एक मिलयन फोन आए। कहा गया कि यह आम आदमी पार्टी के समर्थन में आए। लेकिन यहां कई सवाल उठते हैं। पहला सवाल, इसे भारत से जुड़े लोगों ने किए या फिर किसी अमेरिकी एजेंसी ने किए? दूसरा सवाल है दिल्ली के लोगों के इतने फोन नंबर अमेरिका में उपलब्ध कैसे हुए? यहीं नंदन नीलेकणी की भूमिका संदेह के घेरे में आती है।
दरअसल नंदन नीलेकणी जिस ‘आधार’ के अध्यक्ष हैं, उसमें फोन नंबर जरूरी है। इतने ज्यादा फोन नंबर सिर्फ नंदन नीलेकणी के पास ही संभव हैं। यही कारण है कि केजरीवाल की सरकार बनने के बाद दिल्ली के लोगों से ‘आधार’ नंबर मांगे जा रहे हैं। जब अदालत ‘आधार’ को जरूरी न मानते हुए अपना फैसला सुना चुकी है तो केजरीवाल सरकार आधार नंबर क्यों मांग रही है। आखिर उसकी मजबूरी क्या है? इस मजबूरी को इंफोसिस प्रमुख और फोर्ड के रिश्ते से समझा जा सकता है।
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