कुमार बकवास कि नई कविता - -
कोई बंटी समझता है, कोई बबली समझता है।
मगर कुर्सी की बैचेनी को, बस "कजरी" समझता है।
मैं कुर्सी से दूर कैसा हूँ, मुझसे कुर्सी दूर कैसी है !
फकत शीला समझती है या मेरा दिल समझता है !!
सत्ता एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी शीला दीवानी थी कभी कजरी दीवाना है !
-यहाँ सब लोग कहते हैं कजरी सत्ता पिपासु है।
अगर तुम समझो तो ढोंगी है जो ना समझो तो साधू -है। -
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
ये बंगला और ये गाड़ी, मैं इसको खो नही सकता !! -
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो शीला का न हो पाया, वो मेरा हो नही सकता !!
-भ्रमर कोई अगर कुर्सी पर जा बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में सत्ता का जो ख्वाब आ जाये तो हंगामा!!
-अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा कुर्सी का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!
कोई बंटी समझता है, कोई बबली समझता है।
मगर कुर्सी की बैचेनी को, बस "कजरी" समझता है।
मैं कुर्सी से दूर कैसा हूँ, मुझसे कुर्सी दूर कैसी है !
फकत शीला समझती है या मेरा दिल समझता है !!
सत्ता एक अहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी शीला दीवानी थी कभी कजरी दीवाना है !
-यहाँ सब लोग कहते हैं कजरी सत्ता पिपासु है।
अगर तुम समझो तो ढोंगी है जो ना समझो तो साधू -है। -
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नही सकता !
ये बंगला और ये गाड़ी, मैं इसको खो नही सकता !! -
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना, मगर सुन ले !
जो शीला का न हो पाया, वो मेरा हो नही सकता !!
-भ्रमर कोई अगर कुर्सी पर जा बैठा तो हंगामा!
हमारे दिल में सत्ता का जो ख्वाब आ जाये तो हंगामा!!
-अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा कुर्सी का!
मैं किस्से को हकीक़त में बदल बैठा तो हंगामा!
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