Saturday, December 28, 2013

नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया ‘आखिरी पत्ता’ हैं अरविंद!

नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया ‘आखिरी पत्ता’ हैं अरविंद!

दरअसल विदेश में अमेरिका, सउदी अरब व पाकिस्तान और भारत में कांग्रेस व क्षेत्रीय पाटियों की पूरी कोशिश नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने की है। मोदी न अमेरिका के हित में हैं, न सउदी अरब व पाकिस्तान के हित में और न ही कांग्रेस पार्टी व धर्मनिरेपक्षता का ढोंग करने वाली क्षेत्रीय पार्टियों के हित में। मोदी के आते ही अमेरिका की एशिया केंद्रित पूरी विदेश, आर्थिक व रक्षा नीति तो प्रभावित होगी ही, देश के अंदर लूट मचाने में दशकों से जुटी हुई पार्टियों व नेताओं के लिए भी जेल यात्रा का माहौल बन जाएगा। इसलिए उसी भ्रष्‍टाचार को रोकने के नाम पर जनता का भावनात्मक दोहन करते हुए ईमानदारी की स्वनिर्मित धरातल पर ‘आम आदमी पार्टी’ का निर्माण कराया गया है।

दिल्ली में भ्रष्‍टाचार और कुशासन में फंसी कांग्रेस की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की 15 वर्षीय सत्ता के विरोध में उत्पन्न लहर को भाजपा के पास सीधे जाने से रोककर और फिर उसी कांग्रेस पार्टी के सहयोग से ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार बनाने का ड्रामा रचकर अरविंद केजरीवाल ने भाजपा को रोकने की अपनी क्षमता को दर्शा दिया है। अरविंद केजरीवाल द्वारा सरकार बनाने की हामी भरते ही केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘भाजपा के पास 32 सीटें थी, लेकिन वो बहुमत के लिए 4 सीटों का जुगाड़ नहीं कर पाई। हमारे पास केवल 8 सीटें थीं, लेकिन हमने 28 सीटों का जुगाड़ कर लिया और सरकार भी बना ली।’’

कपिल सिब्बल का यह बयान भाजपा को रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल और उनकी ‘आम आदमी पार्टी’ को खड़ा करने में कांग्रेस की छुपी हुई भूमिका को उजागर कर देता है। वैसे भी अरविंद केजरीवाल और शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित एनजीओ के लिए साथ काम कर चुके हैं। तभी तो दिसंबर-2011 में अन्ना आंदोलन को समाप्त कराने की जिम्मेवारी यूपीए सरकार ने संदीप दीक्षित को सौंपी थी। ‘फोर्ड फाउंडेशन’ ने अरविंद व मनीष सिसोदिया के एनजीओ को 3 लाख 69 हजार डॉलर तो संदीप दीक्षित के एनजीओ को 6 लाख 50 हजार डॉलर का फंड उपलब्ध कराया है। शुरू-शुरू में अरविंद केजरीवाल को कुछ मीडिया हाउस ने शीला-संदीप का ‘ब्रेन चाइल्ड’ बताया भी था, लेकिन यूपीए सरकार का इशारा पाते ही इस पूरे मामले पर खामोशी अख्तियार कर ली गई।

‘आम आदमी पार्टी’ व उसके नेता अरविंद केजरीवाल की पूरी मंशा को इस पार्टी के संस्थापक सदस्य व प्रशांत भूषण के पिता शांति भूषण ने ‘मेल टुडे’ अखबार में लिखे अपने एक लेख में जाहिर भी कर दिया था, लेकिन बाद में प्रशांत-अरविंद के दबाव के कारण उन्होंने अपने ही लेख से पल्ला झाड़ लिया और ‘मेल टुडे’ अखबार के खिलाफ मुकदमा कर दिया। ‘मेल टुडे’ से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यूपीए सरकार के एक मंत्री के फोन पर ‘टुडे ग्रुप’ ने भी इसे झूठ कहने में समय नहीं लगाया, लेकिन तब तक इस लेख के जरिए नरेंद्र मोदी को रोकने लिए ‘कांग्रेस-केजरी’ गठबंधन की समूची साजिश का पर्दाफाश हो गया। यह अलग बात है कि कम प्रसार संख्या और अंग्रेजी में होने के कारण ‘मेल टुडे’ के लेख से बड़ी संख्या में देश की जनता अवगत नहीं हो सकी, इसलिए उस लेख के प्रमुख हिस्से को मैं यहां जस का तस रख रहा हूं, जिसमें नरेंद्र मोदी को रोकने के लिए गठित ‘आम आदमी पार्टी’ की असलियत का पूरा ब्यौरा है।

शांति भूषण ने इंडिया टुडे समूह के अंग्रेजी अखबार ‘मेल टुडे’ में लिखा था, ‘‘अरविंद केजरीवाल ने बड़ी ही चतुराई से भ्रष्‍टाचार के मुद्दे पर भाजपा को भी निशाने पर ले लिया और उसे कांग्रेस के समान बता डाला। वहीं खुद वह सेक्यूलरिज्म के नाम पर मुस्लिम नेताओं से मिले ताकि उन मुसलमानों को अपने पक्ष में कर सकें जो बीजेपी का विरोध तो करते हैं, लेकिन कांग्रेस से उकता गए हैं। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उस अन्ना हजारे के आंदोलन की देन हैं जो कांग्रेस के करप्शन और मनमोहन सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ शुरू हुआ था। लेकिन बाद में अरविंद केजरीवाल की मदद से इस पूरे आंदोलन ने अपना रुख मोड़कर बीजेपी की तरफ कर दिया, जिससे जनता कंफ्यूज हो गई और आंदोलन की धार कुंद पड़ गई।’’

‘‘आंदोलन के फ्लॉप होने के बाद भी केजरीवाल ने हार नहीं मानी। जिस राजनीति का वह कड़ा विरोध करते रहे थे, उन्होंने उसी राजनीति में आने का फैसला लिया। अन्ना इससे सहमत नहीं हुए । अन्ना की असहमति केजरीवाल की महत्वाकांक्षाओं की राह में रोड़ा बन गई थी। इसलिए केजरीवाल ने अन्ना को दरकिनार करते हुए ‘आम आदमी पार्टी’ के नाम से पार्टी बना ली और इसे दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के खिलाफ खड़ा कर दिया। केजरीवाल ने जानबूझ कर शरारतपूर्ण ढंग से नितिन गडकरी के भ्रष्‍टाचार की बात उठाई और उन्हें कांग्रेस के भ्रष्‍ट नेताओं की कतार में खड़ा कर दिया ताकि खुद को ईमानदार व सेक्यूलर दिखा सकें। एक खास वर्ग को तुष्ट करने के लिए बीजेपी का नाम खराब किया गया। वर्ना बीजेपी तो सत्ता के आसपास भी नहीं थी, ऐसे में उसके भ्रष्‍टाचार का सवाल कहां पैदा होता है?’’

‘‘बीजेपी ‘आम आदमी पार्टी’ को नजरअंदाज करती रही और इसका केजरीवाल ने खूब फायदा उठाया। भले ही बाहर से वह कांग्रेस के खिलाफ थे, लेकिन अंदर से चुपचाप भाजपा के खिलाफ जुटे हुए थे। केजरीवाल ने लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए इसका पूरा फायदा दिल्ली की चुनाव में उठाया और भ्रष्‍टाचार का आरोप बड़ी ही चालाकी से कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा पर भी मढ़ दिया। ऐसा उन्होंने अल्पसंख्यक वोट बटोरने के लिए किया।’’

‘‘दिल्ली की कामयाबी के बाद अब अरविंद केजरीवाल राष्ट्रीय राजनीति में आने जा रहे हैं। वह सिर्फ भ्रष्‍टाचार की बात कर रहे हैं, लेकिन गवर्नेंस का मतलब सिर्फ भ्रष्‍टाचार का खात्मा करना ही नहीं होता। कांग्रेस की कारगुजारियों की वजह से भ्रष्‍टाचार के अलावा भी कई सारी समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। खराब अर्थव्यवस्था, बढ़ती कीमतें, पड़ोसी देशों से रिश्ते और अंदरूनी लॉ एंड ऑर्डर समेत कई चुनौतियां हैं। इन सभी चुनौतियों को बिना वक्त गंवाए निबटाना होगा।’’

‘‘मनमोहन सरकार की नाकामी देश के लिए मुश्किल बन गई है।...... नरेंद्र मोदी इसलिए लोगों की आवाज बन रहे हैं, क्योंकि उन्होंने इन समस्याओं से जूझने और देश का सम्मान वापस लाने का विश्वास लोगों में जगाया है। ......... मगर केजरीवाल गवर्नेंस के व्यापक अर्थ से अनभिज्ञ हैं।

केजरीवाल की प्राथमिकता

देश की राजनीति को अस्थिर करना
और
नरेंद्र मोदी को सत्ता में आने से रोकना है।

ऐसा इसलिए,
क्योंकि अगर मोदी एक बार सत्ता में आ गए तो ............ केजरीवाल की दुकान हमेशा के लिए बंद हो जाएगी।’’ ???????????????

1 comment:

  1. अगर हिंदू अब भी नहीं समझे तो हिन्दुओ का नष्ट हो जाना उत्तम है

    ReplyDelete

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...