अब्दुल बाबा कि मजार के बहार लगा शिलालेख
" हाथ कंगन को आरसी ( शीशा दिखाने कि ज़रूरत ) क्या
पढ़े लिखे को फ़ारसी ( ख़ास भाषा बोल कर अपना पक्ष रखने कि ज़रुरत ) क्या "
लेकिन आज कल जो नयी पीढ़ी के शेखुलर और मुल्लों कि संकर औलादें हैं जिन्हे कसाई कि भागती सनातन धर्म का हिस्सा लगती है उन्हें सिर्क कसाई बाबा के सर पे सोने का मुकुट कि चमक और हाथ पे लिखा ॐ पढ़ने मात्र से विश्वास हो चला है के कसाई कोई हिन्दू था .
कुछ बंधू बांधव जो शिर्डी जा चुके हैं उन्हें ये बात काफी अछि तरह मालूम है के कसाई के प्रचार कि आड़ मैं क्या घिनौना खेल चल रहा है हिंदुओं को कमजोर करने का . लेकिन ज़रूरी नहीं होता के सारे तजुर्बे आप किये जाएं .
तजुर्बे से सीखने वाला समझदार होता है , लेकिन ज्यादा समझदार वो होता है जो किसी दुसरे के तजुर्बे या किसी दुसरे के कही बात को समझ ले .
जिस तरह नादान छोटे बालक को मोमबत्ती के पास जाने से रोको तो भी वो रौशनी कि और आकर्षित हो कर जायेगा लेकिन जैसे ही हाथ जलेग कभी उसके पास नहीं फटकेगा .
वोही हाल हमारे कुछ भटके हुए हिन्दू बंधू बांधवों का है . कसाई कि भागती मैं पागल हुए जा रहे हैं लेकिन जब इनकी बेटियाँ shekhularism कि मिसाल पेश करते हुए मुस्लमान लड़को के साथ भाग जायेगीं उस दिन हाथ जला के कसाई से भागे तो शायद बहुत देर हो जायेगी .
प्रस्तुत है कसाई बाबा के सेवक अब्दुल बाबा कि मजार के बहार लगा शिलालेख .
शायद ही कोई हिन्दू संत हो जो कुरान सुनता हो ..? लेकिन मुर्ख कसाई भगतों को कोई भी तर्क दे के देख लो , पता नहीं कसाई के फ़कीर वहाँ राख या भभूत मैं क्या डाल के खिला देते हैं के बेवकूफी कि सभी हदें पार करने को कसाई के दीवाने तैयार हो जाते हैं .
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