Wednesday, December 18, 2013

पुरुष होना ही गुनाह है



मैं नहीं जानता कि इंस्टिट्यूट फॉर सोशल डिमॉक्रेसी के एग्जेक्युटिव डायरेक्टर खुर्शीद अनवर कौन थे, मैं उनसे कभी मिला भी नहीं, मैं ये भी नहीं जानता कि उनकी विचारधारा क्या थी या वो किस राजनैतिक दल के करीब थे, पर मैं इतना जरुर जानता हूँ कि वो उन पुरुषों की कड़ी में एक और नाम हैं जिन्होंने महिलाओं द्वारा उन पर घृणित आरोप लगाये जाने के बाद लोगों के चुभते सवालों, प्रश्नवाचक नज़रों और मीडिया ट्रायल से बचने के लिए मौत को गले लगा लिया और आगे भी गले लगाते रहेंगे।

कितना आसान हो गया है किसी को भी बलात्कारी ठहरा देना। कुछ करना ही नहीं है लड़की को, उसे तो बस एक आदमी पर आरोप लगा कर गायब हो जाना है या चैनल चैनल घूम घूम कर पूरा मुंह ढक कर रोती हुयी सी आवाज में उस आदमी पर ऐसे ऐसे आरोप जड़ देने हैं जिनके बारे में उसकी सात पुश्तों में से किसी ने सोचा भी न हो। ऐसे आरोप जिनसे सम्बंधित घटना लड़की के मुताबिक ही दो चार साल पहले हुयी थी और जिनके बारे में कोई सबूत उसके पास भी नहीं है। अगर कुछ है तो उसके द्वारा बनाई गयी एक कहानी जिसे लेकर वो आरोप लगाती गली गली घूमती है, वह आरोप जिन्हें न वो सच साबित कर सकती है, न वह आदमी झूठ।

उसको सच साबित करना भी कहाँ है क्योंकि उसके द्वारा अपनी कहानी बाजार में उतारते ही रंजना कुमारी, वीणा श्रीवास्तव, शबनम हाश्मी, कविता कृष्णन और इंदिरा जयसिंह जैसे महिलावाद के पैरोकार, महिला आयोग जैसे सरकारी और कुकुरमुत्तो जैसे जगह जगह उग आये गैर सरकारी संगठन, टी. आर. पी. की तलाश में किसी को भी सरेआम नंगा करने को तैयार बैठे भांड पत्रकार और चैनल और उस आदमी के बलात्कारी होने को स्वतः सिद्ध मान कर उसके खिलाफ कैम्पेन चलाने वाला ये दोगला समाज उस आदमी को दोषी साबित कर देंगे और उसे उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देंगे जहाँ मौत से कम कुछ भी उसके लिए बचता ही नहीं।

वो आदमी चीखते हुए, रोते हुए बार बार कहता कि ये आरोप झूठे हैं, इनका कोई सर पैर नहीं पर वो ये भी नहीं जानता कि इन्हें गलत साबित कैसे करूँ? हार कर जब वो मौत के रास्ते चला जाता है तो अफ़सोस के दो बोलों की जगह इन महिलावदियों की प्रतिक्रिया होती है--कायर था, सजा से बचने के लिए मर गया, मरने से निर्दोष थोड़े साबित हो गया, महिलाएं बहुत मर चुकीं, अब पुरुषों की बारी है। बहुत अच्छे देवियों, ऐसा क्यों नहीं करतीं कि सरकार से कह कर हिटलर द्वारा यहूदियों के सामूहिक क़त्ल-ए-आम के लिए बनवाये गए गैस चैम्बरों की तरह के चैंबर बनवा कर सब पुरुषों को मरवा दो और फिर सुकून से ऐसी दुनिया में रहो जहाँ केवल तुम ही तुम हो।

और हाँ, आज इस तरह के आरोपों पर इन महिलाओं के साथ मिलकर किसी व्यक्ति का जीना हराम करने वाले पुरुषों ! चिंता न करो, ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा जब तुम्हारे आस पास की कोई लड़की पाँच सात साल पहले तुम्हारे द्वारा किये गए किसी कथित बलात्कार की कहानी दुनिया के सामने परोस रही होगी और तुम याद भी नहीं कर पा रहे होगे कि वो है कौन और कब का किस्सा बता रही है। तब तुम्हें मदद की जरुरत महसूस होगी पर अफ़सोस जो तुम्हारी मदद कर सकते, वो तुम्हारे जैसे लोगों की बेरुखी के चलते या तो अंदर होंगे या ऊपर। तब तुम पछताओगे, बहुत पछताओगे, पर तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और तुम्हारे सामने भी खुर्शीद अनवर की तरह आत्महत्या का ही विकल्प बचा होगा।




कोई लक्ष्य मनुष्य के साहस से बड़ा नहीं,हारा वही जो लड़ा नहीं
जय श्री राम.........

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